जन्माष्टमी विशेष : श्री कृष्ण के ऐतिहासिक और साहित्यिक वर्णन तथा उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में पूजा जाता हैं। उन्हें कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी जाना जाता है। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है। भगवद्गीता में कृष्ण और अर्जुन का संवाद आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है।
जगतगुरु भगवान श्री कृष्ण के जीवनकाल का विस्तृत विवरण सबसे पहले महाकाव्य महाभारत में मिलता है, जिसमें कृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में दर्शाया गया है।
महाभारत के कई अंशों में कृष्ण को केंद्र में रखा गया है। श्री कृष्ण भगवत गीता महाकाव्य के छठे पर्व ( भीष्म पर्व ) के अठारहवे अध्याय में, वासुदेव कृष्ण युद्ध के मैदान में अर्जुन को महान ज्ञान देते हैं। महाभारत के अलावा के परिशिष्ट में भी कृष्ण के बचपन और युवावस्था का एक विस्तृत संस्करण है। इसके अलावा भी दूसरे महाकाव्यों तथा ऐतिहासिक पुस्तकों में भी वासुदेव श्री कृष्ण का आंशिक अथवा विस्तृत वर्णन मिलता है।
भारतीय-यूनानी मुद्रण: लगभग 180ईसा पूर्व इंडो-ग्रीक राजा एगैथोकल्स  ने देवताओं की छवियों पर आधारित वैष्णव दर्शन से संबंधित कुछ सिक्के जारी किये थे। इन सिक्कों पर शंख और सुदर्शन चक्र धारण किये हुए, भगवान विष्णु के अवतार वासुदेव कृष्ण तथा गदा और हल के साथ बलराम को देखा जा सकता है।
प्राचीन संस्कृत वैयाकरण पतंजलि (Patanjali): ने भी अपने महाभाष्य में वासुदेव कृष्ण और उनके सहयोगियों के कई प्रसंगों का उल्लेख किया है। पाणिनी की श्लोक संख्या 3.1.26 में भी एक टिप्पणी के माध्यम से कंस वध अथवा कंस की हत्या से सम्बन्धित किंवदंतियों का वर्णन किया गया है।
हेलियोडोरस शिलालेख (Heliodorus inscription): पुरातत्वविदों द्वारा मध्य भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में औपनिवेशिक काल के, ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख के साथ एक स्तंभ की खोज की थी। यह शिलालेख “वासुदेव” को समर्पित है जो भारतीय परंपरा में कृष्ण का दूसरा नाम है।
हाथीबाड़ा शिलालेख: हेलियोडोरस शिलालेख के अलावा राजस्थान राज्य में स्थित 19वीं सदी ईसा पूर्व के तीन हाथीबाड़ा शिलालेख और एक घोसूंडी शिलालेख मे भी कृष्ण का उल्लेख किया गया है। कई पुराणों में भी भगवान कृष्ण के जीवन के कुछ संदर्भों को विस्तार पूर्वक बताया गया है, अथवा इस पर प्रकाश डाला गया है। भागवत पुराण और विष्णु पुराण में कृष्ण के जीवनकाल की सबसे विस्तृत जानकारी है।
एक ब्रिटिश राजनयिक, औपनिवेशिक प्रशासक और वनस्पतिशास्त्री, सर चार्ल्स एलियट (Sir Charles Eliot) द्वारा भी हिंदू धर्म पुस्तक तथा विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्य के आधार पर कृष्ण की कथा की उत्पत्ति का पता लगाने की कोशिश की गई है। उन्होंने विभिन्न स्रोतों से कृष्ण की ऐतिहासिक उत्पत्ति का पता लगाने का हर संभव प्रयास किया। उनके निष्कर्षों के अनुसार विष्णु के अन्य महान अवतार कृष्ण, भारतीय देवताओं में सबसे विशिष्ट व्यक्तियों में से एक हैं। लेकिन अभी भी उनकी ऐतिहासिक उत्पत्ति अस्पष्ट बनी हुई है। ऋग्वेद में कृष्ण के लिए काले अथवा गहरा नीले रंग वाला शब्द प्रयोग किया गया है। छांदोग्य उपनिषद में, देवकी के पुत्र कृष्ण का उल्लेख अंगिरसा वंश के ऋषि घोर द्वारा शिक्षित किए जाने के रूप में किया गया है, अतः यह संभव है की कृष्ण भी उन्हीं के वंश के थे। कृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम वासुदेव भी है, और यह पाणिनि का एक सूत्र भी है। पतंजलि द्वारा किये गए उल्लेखों पर गौर किया जाए तो, ऐसा लगता है कि यह एक कबीले का नाम नहीं है, बल्कि एक देवता का नाम है। यदि ऐसा है तो संभव है की वासुदेव को ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में एक देवता के रूप में मान्यता दी गई होगी। उनका उल्लेख दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास के शिलालेखों में भी मिलता है। श्री कृष्ण का नाम और इतिहास सदैव रहस्यमयी रहा है, किंतु उनके जीवन की कई ऐसी अनसुनी कहानियां और रोचक तथ्य भी हैं, जो रहस्यमयी होने के साथ-साथ संदेशपूर्ण भी हैं।
1. गायों का स्वर्ग और वैकुंठ: प्रभु श्री राम और श्री कृष्ण के भक्त, कभी भी उन्हें मृत नहीं मानते। बल्कि उनका मानना है की, लीलाओं को समाप्त करने के पश्चात ये दोनों वैकुंठ को लौट गए। राम कृष्ण से अलग हैं, क्योंकि राम नहीं जानते कि वह विष्णु हैं, जबकि कृष्ण कहते हैं की वह विष्णु हैं। मान्यताओं के अनुसार राम विष्णु के सातवें अवतार हैं और कृष्ण आठवें हैं। कुछ भक्त वैकुंठ को सबसे ऊपर मानते हैं तो, कई भक्तों के लिए कृष्ण का गोलोक का स्वर्ग विष्णु के वैकुंठ के स्वर्ग से ऊंचा है। माना जाता है की वैकुंठ दूध के सागर में स्थित है, लेकिन यह सारा दूध गोलोक में स्थित गायों के थन से आता है। ये गायें कृष्ण की बांसुरी से मंत्रमुग्द होकर स्वेच्छा से अपना दूध देती हैं।
2. स्थानीय रूप में वैश्विक कृष्णा: महाराष्ट्र के कवि-संतों जैसे एकनाथ, तुकाराम और ज्ञानेश्वर ने कृष्ण को जन-जन तक पहुंचाया। महाराष्ट्र में लोग कृष्ण की छवि को पंढरपुर के विठोबा के रूप में देखते हैं। राजस्थान और गुजरात में कृष्ण का दर्शन नाथद्वारा के श्रीनाथजी के माध्यम से होता है। ओडिशा के लोग पुरी मंदिर में जगन्नाथ की स्थानीय छवि के माध्यम से कृष्ण से जुड़ते हैं। असम में, कृष्ण के चित्र नहीं हैं किंतु यहां कृष्ण को जप, गायन, नृत्य और प्रदर्शन के माध्यम से पूजा जाता है।
4. बौद्धिक भगवद गीता और भावनात्मक भागवत पुराण: यह तथ्य विवादस्पद प्रतीत होता है किंतु, महाभारत को पारंपरिक रूप से अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह रक्तपात और पारिवारिक युद्ध को दर्शाता है। यही कारण है कि लोग भागवत पुराण से कृष्ण के बचपन और युवावस्था की कहानियों को उनकी मां यशोदा और उनकी प्यारी गोपियों के साथ सुनाना पसंद करते हैं। महाभारत का एकमात्र शुभ हिस्सा भगवद गीता है, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में कृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनाई गई हिंदू दर्शन का सारांश है। अगर भगवद गीता नहीं होती, तो संभवतः लोग कृष्ण के जीवन के उत्तरार्ध को इतना महत्व नहीं देते।
5. जैन और बौद्धों के कृष्ण: बौद्ध और जैन परंपराओं में कृष्ण की कई कहानियां प्रचलित हैं। जैन महाभारत में युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच नहीं बल्की द्वारका के कृष्ण और मगध के सम्राट जरासंध के बीच होता है, जिसमें पांडव कृष्ण का समर्थन करते हैं और कौरव जरासंध का समर्थन करते हैं।
6. अत्याचारियों के प्रति दया: अत्याचारियों पर दया और करुणा करने के संदर्भ में कृष्ण की कई कहानियां प्रचलित हैं। कंस, जरासंध और दुर्योधन कृष्ण विद्या के तीन मुख्य खलनायक हैं। कहा जाता है कि इन तीनों का बचपन बेहद दर्दनाक था। कंस की मां ने उसे जन्म देते ही अस्वीकार कर दिया था। जरासंध जन्म के समय विकृत (deformed) पैदा होता है, उसके पिता की दो रानियाँ उसके आधे शरीर को जन्म देती हैं, और उसके बाद दो हिस्सों को जरा नामक राक्षसी द्वारा आपस में जोड़ दिया जाता है। दुर्योधन की मां अपने अंधे पति के साथ एकजुटता में आंखों पर पट्टी बांधकर रखती है, इसलिए वह जीवन भर अपने माता-पिता द्वारा अनदेखा किया जाता है। यह तर्क इस ओर इशारा करते हैं कि समाज में जिन लोगों को बुरा माना जाता है, उनके साथ अक्सर अन्याय होता है, जो उन्हें इतना असुरक्षित बनाता है, कि वे असंवेदनशील और अमानवीय हो जाते हैं।
भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान देशभर के कृष्ण मंदिर में भक्तों की भरी भीड़ जुटती है। हमारे शहर रामपुर में भी इस पावन अवसर पर पुराना गंज स्थित हरिहर मंदिर, जोकीराम का मंदिर, पीपल टोला स्थित मंदिर, मनोकामना मंदिर और मांई का थान मंदिर में पूजा आराधना की जाती है। आमतौर पर सभी मंदिरों में जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है, और भगवान श्री कृष्ण की देर रात तक पूजा अर्चना होती है।
(साभार – प्रारंग वेबसाइट)

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