पिता पर दो कविताएं

दो लड़कियों का पिता होने से

Chandrakantdewtale

– चन्द्रकान्त देवताले

पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी

मैं पिता हूँ

दो चिड़ियाओं का जो चोंच में धान के कनके दबाए

पपीते की गोद में बैठी हैं

सिर्फ़ बेटियों का पिता होने से भर से ही

कितनी हया भर जाती है

शब्दों में

मेरे देश में होता तो है ऐसा

कि फिर धरती को बाँचती हैं

पिता की कवि-आंखें…….

बेटियों को गुड़ियों की तरह गोद में खिलाते हैं हाथ

बेटियों का भविष्य सोच बादलों से भर जाता है

कवि का हृदय

एक सुबह पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ

कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी थर्राता है

पत्तियों की तरह

और अचानक डर जाता है कवि चिड़ियाओं से

चाहते हुए उन्हें इतना

करते हुए बेहद प्यार।

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पिता से गले मिलते

Kunwar_Narayan

– कुंवर नारायण

पिता से गले मिलते

आश्वस्त होता नचिकेता कि
उनका संसार अभी जीवित है।

उसे अच्छे लगते वे घर
जिनमें एक आंगन हो
वे दीवारें अच्छी लगतीं
जिन पर गुदे हों
किसी बच्चे की तुतलाते हस्ताक्षर,
यह अनुभूति अच्छी लगती
कि मां केवल एक शब्द नहीं,
एक सम्पूर्ण भाषा है,

अच्छा लगता
बार-बार कहीं दूर से लौटना
अपनों के पास,

उसकी इच्छा होती
कि यात्राओं के लिए
असंख्य जगहें और अनन्त समय हो
और लौटने के लिए
हर समय हर जगह अपना एक घर

10 thoughts on “पिता पर दो कविताएं

  1. lords mobile hack free says:

    Hi there! This post couldn’t be written any better! Reading through this post reminds me
    of my previous room mate! He constantly kept talking about this.
    I will forward this article to him. Pretty confident he’ll have a
    great read. Thank you for sharing!

    • सुषमा त्रिपाठी says:

      आभार। यकीनन यह कविता बहुत अच्छी है

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