सिंहस्थ महाकुंभ में पहली बार उज्जैन के दशहरा मैदान से किन्नर अखाड़े की पेशवाई निकाली गई. इसकी अगवानी किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और सनातन गुरु अजय दास ने की। लक्ष्मी टीवी कलाकार, भरतनाट्यम नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं और किन्नरों के अधिकार के लिए काम करती हैं।
किन्नरों के बारे में कुछ रोचक जानकारी…
किन्नर अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है। किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से सालमें एक बार विवाह करते है.।हालांकि ये विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है. अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। अगर किसी किन्नर की मृत्यु हो जाए तो उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उत्पन्न होता है. रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उत्पन्न होती है. वीर्य और रज समान हो तो किन्नर संतान उत्पन्न होती है। किन्नरों का जिक्र धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. महाभारत युद्ध को पाड़वों को जिताने का योगदान शिंखडी को भी जाता है। महाभारत के अनुसार एक साल के अज्ञातवास को काटने के लिए अर्जुन को एक किन्नर बनना पड़ा था। एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है. फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।