केरल के त्रिशूर जिले में 1000 साल पुराना वडकुनाथन मंदिर स्थित है। इसे टेंकैलाशम और तमिल भाषा में ऋषभाचलम् भी कहते हैं। यह देवस्थल केरल के सबसे पुराने और उत्तम श्रेणी के मंदिरों में गिना जाता है। यह स्थान उत्कृष्ट कला और वास्तु कला के लिए प्रसिद्ध है, जो केरल की प्राचीन शैली को भली भांति दर्शाता है। वडकुनाथन का अर्थ उत्तर के नाथ है जो केदारनाथ हो सकता है।
प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ वडकुनाथन मंदिर
आध्यात्मिक और शांति पूर्ण परिवेश देता है। मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान परशुराम द्वारा की गई थी। यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य के माता-पिता ने संतान प्राप्ति के लिए यहां अनुष्ठान किया था। मंदिर को संरक्षण के लिए यूनेस्को का उत्कृष्टता पुरस्कार मिल चुका है। मंदिर पुरानी परंपराओं तथा वास्तु शास्त्र की संरक्षण तकनीकों के ज्ञान को समेटे हुए है।
शिवलिंग की जगह नजर आता है घी का टीला
धार्मिक परंपरा के अनुसार शिवलिंग का घी से अभिषेक किया जाता है। पूरी तहर घी से ढंके होने के कारण शिवलिंग दिखाई नहीं देता। घी की एक मोटी परत हमेशा इस विशाल लिंग को ढंकी रहती है। यह एकमात्र मंदिर है जहां शिवलिंग दिखाई नहीं देता। भक्तों को यहां केवल 16 फीट ऊँचा घी का टीला ही नजर आता है। यह बर्फ से ढंके कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसा माना जाता है कि यहां चढ़ाने वाले वाले घी में कोई गंध नहीं होती और यह गर्मियों के दौरान भी पिघलता नहीं है।
हाथियों को खिलाया जाता है खाना
मंदिर में हर साल आनापुरम महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें हाथियों को खाना खिलाया जाता है। इस महोत्सव की शुरुआत में सबसे छोटे हाथी को भोजन देकर हाथियों का भोज शुरू किया जाता है। यह प्राचीन मंदिर विशाल पत्थर की दीवारों से घिरा है। मंदिर परिसर के अंदर चार गोपूरम चार मुख्य दिशाओं में मौजूद हैं। यानी प्रवेश द्वार है। दक्षिण और उत्तर दिशा के गोपूरम प्रतिबंधित है वहीं पूर्व और पश्चिम दिशा वाले गोपूरम से मंदिर में प्रवेश मिलता है।
(साभार – दैनिक भास्कर)