वो कहते हैं कि भारत का प्रधानमंत्री होना मुश्किल काम है। उनका मानना है कि, “भारत में अलग अलग पार्टियां है, अलग-अलग सोच है तो उसको एक साथ लाना और ये कोशिश करना कि सबकी एक जैसी सोच हो, बहुत मुश्किल है। नरेंद्र मोदी से उम्मीद है, कि वो ऐसे भारत की नींव डालेंगे जहां एकता हो, जिसमें एक दूसरे के लिए प्यार मोहब्बत हो, एक दूसरे की इज़्जत हो। अब बहुमत की सरकार है तो शायद मोदी जी ये काम कर पाएंगे।”
ज़ाकिर ने असहिष्णुता के मुद्दे पर भी अपनी राय ज़ाहिर करते हुए कहा कि उनके अनुभव में भारत में असहिष्णुता नहीं है।
वे कहते हैं,“ ये राजनीतिक मुद्दे हैं, हिन्दुस्तान में ए आर रहमान की बहुत इज़्जत है, शाहरुख शान की फिल्में हिट होती हैं, आमिर ख़ान को लोग प्यार करते हैं, उस्ताद अमज़द अली खान के श्रोतागण हैं, तो मैं ये कैसे कह सकता हूं कि असहिष्णुता है। हम संगीत की पूजा करते हैं, हम सरस्वती के पुजारी हैं, हम उस संगीत के पुजारी हैं जो भगवान कृष्ण ने बांसुरी पर बजाया और सरस्वती ने वीणा पर बजाया।”
ज़ाकिर हुसैन ने हाल में लंदन के रॉयल फेस्टिवल हॉल में बीबीसी ऑर्केस्ट्रा के साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत कि धुनों पर अपने तबले से ताल मिलाई। ज़ाकिर ने तबले की एक वर्कशॉप में 100 से ज़्यादा बच्चों और दूसरे लोगों को तबला भी सिखाया.
युवा पीढ़ी में शास्त्रीय संगीत के प्रति रवैय्ये को लेकर वो कहते हैं, “शास्त्रीय संगीत स्टेडियम म्यूज़िक नहीं है. अगर हम सोचें कि क्लासिकल म्यूज़िक जे जेड और बियोंस के कॉन्सर्ट की तरह हो तो ये मुमकिन नहीं। ये ऐसा म्यूज़िक नहीं है जो पचास हज़ार लोग आपको दूर से देखें, ये अंतरंग किस्म का संगीत है जिसमें कुछ लोग बैठे हुए हैं, आखों से आंखें मिल रही हैं और आपस में वार्तालाप हो रहा है और वाह-वाह के बीच प्यार मोहब्बत हो।”
ज़ाकिर हुसैन चार पीढ़ियों के कलाकारों के साथ काम कर चुके हैं लेकिन आज भी उनका व्यक्तित्व सदाबहार है। इसका राज़ पूछने पर वो कहते हैं, “संगीत इनसान को जीवित तो रखता है, लेकिन अच्छी सेहत में भी रखता है और अगर आप सिर्फ संगीत की साधना करते हैं तो शराब, सिगरेट और पान की ज़रुरत नहीं। ये सभी चीज़ें उम्र को आपके चेहरे पर ज़ाहिर कर देती हैं, मेरे पिताजी जब 75 साल की उम्र मे स्टेज पर बैठते थे तो 25 साल के नज़र आते थे।”
वो कहते हैं, “लोग हमेशा चाहते हैं कि संगीत का एक ही दौर हो, यानी या तो फ्यूज़न हो, या रॉक का हो, या शास्त्रीय का हो, ऐसा नहीं हो सकता कि सब एक साथ मिल कर एक ही छत के नीचे रहें। मेरे ख्याल से हमें खुश होना चाहिए कि अलग-अलग तरह का संगीत हम को सुनने को मिलता है। हर संगीत के लिए श्रोतागण हैं और सुनने के लिए हाज़िर भी रहते है।”
(साभार – बीबीसी)