विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर तीन में से एक महिला उत्पीड़न का शिकार होती है। वहीं, घरेलू हिंसा के मामलों में तजिकिस्तान की महिलाओं की स्थिति सबसे खराब है। यहां 2014 तक 64% महिलाओं से रोजाना मारपीट होती थी। ऐसे में यहां ‘जिंदगी शाइस्ता’ प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इसकी वजह से घरेलू हिंसा की दर घटकर 34% रह गई। वहीं, 59% महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने की आजादी भी मिल गई।
क्या है जिंदगी शोइस्ता प्रोजेक्ट?
‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच इंटरनेशनल एनजीओ ने महिलाओं की दिक्कतों को देखते हुए 2014 में यह प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके लिए यूके ने 24 अरब यूरो की फंडिंग की। सबसे पहले इस प्रोजेक्ट की शुरुआत ताजिकिस्तान में की गई। चार साल में सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद यह प्रोजेक्ट अब 14 देशों में चलाया जा रहा है।
पाकिस्तान में स्कूल के प्ले टाइम में होती है काउंसलिंग
जिंदगी शोइस्ता प्रोजेक्ट की मैनेजर शहरीबोनु शोनासिमोवा मानती हैं कि ताजिकिस्तान के नतीजों को अच्छी शुरुआत माना जा सकता है। इसके तहत रवांडा में कपल्स की काउंसलिंग की जा रही है। पाकिस्तान में स्कूल के प्ले टाइम के दौरान महिलाओं और पुरुषों को समझाया जाता है। शहरीबोनु के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट के तहत अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान, किर्गिस्तान और चीन में भी ताजिकिस्तान की तरह काम किया जा रहा है।
‘सम्मान से जीना सिखा गयी यह योजना’
ताजिकिस्तान के उत्तरी जिले पेंजीकेंत के गांव जोमी में रहने वाली रानो महमुरोदोवा (42) की जिंदगी में भी ‘जिंदगी शाइस्ता’ प्रोजेक्ट बदलाव लाया। 18 साल की उम्र में रानो का निकाह हुआ था। करीब 22 साल तक उन्होंने अपने पति के दुर्व्यवहार का सामना किया। नशे का आदी होने के बाद उनके पति ने नौकरी छोड़ दी थी और वे हर वक्त रानो के साथ गाली-गलौज और मारपीट करता था। जोमी गांव का सर्वे किया गया तो घरेलू हिंसा का आंकड़ा 60% पाया गया।
रानो बताती हैं कि लगातार काउंसलिंग के बाद उनके पति के व्यवहार में सुधार आया और वे दोबारा नौकरी करने लगा। उसने रानो से कहा, ‘‘मुझे पता ही नहीं लगा कि मेरे साथ रहना कितना मुश्किल था। तुम्हें 22 साल तक दिए कष्ट के लिए मुझे माफ कर दो।’’ रोमी का कहना है कि जिंदगी शाइस्ता का मतलब गरिमा से जीना होता है। यह प्रोजेक्ट मेरे साथ-साथ देश की हजारों महिलाओं के जीवन में बदलाव ले आया।