नयी दिल्ली : कोमालिका के लिए अंडर-18 विश्व चैंपियन बनना किसी बड़ी राहत से कम नहीं है। कुछ माह पहले ही 17 साल की इस तीरंदाज ने दीपिका कुमारी जैसी तीरंदाज के साथ ओलंपिक क्वालिफाइंग सीनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में जगह बना ली, लेकिन इतने बड़े मंच पर यह तीरंदाज दबाव में बिखर गयी।
नतीजन पुरुष ओलंपिक क्वालिफाई कर गए और महिला टीम रह गई, लेकिन थोड़े ही समय में कोमालिका ने पहली बार सब जूनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए टीम में जगह बनाई और यहां वह दीपिका के बाद विश्व चैंपियन बनने वाली देश की दूसरी तीरंदाज बन गयीं। कोमालिका ने मेड्रिड से खुलासा किया उन्हें फिट रहने के लिए माँ ने 2012 में तीरंदाजी शुरू कराई। तब उन्हें जमेशदपुर में पास की ही अकादमी में लकड़ी का धनुष पकड़ा दिया गया। कुछ समय बाद उन्हें इस खेल में मजा आने लगा और उन्होंने नेशनल खेलने की ठानी। 2016 तक वह इंडियन राउंड (लकड़ी के धनुष से) में ही खेलती रहीं। इसी दौरान दीपिका के कोच धर्मेंद्र तिवारी की उन पर नजर पड़ी। धर्मेंद्र बताते हैं कि उनके कहने पर ही 2016 में कोमालिका को टाटा अकादमी के लिए ट्रायल दिलाया गया। यहां वह चयनित हो गयीं। तब से वह उन्हीं के पास हैं। अकादमी ने उन्हें महंगा रीकर्व धनुष दे रखा है। इसी से उन्होंने यह पदक जीता है। धर्मेंद्र मानते हैं कि कोमालिका के लिए यह पदक बहुत बड़ा है। अब उसके दिमाग से सीनियर विश्व चैंपियनशिप की विफलता को बोझ हट गया होगा। 12वीं की छात्रा कोमालिका पढ़ाई में भी होशियार हैं। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा 85 प्रतिशत अंकों से पास की हैं। उनके पिता घनश्याम बारू एक छोटा से होटल चलाते हैं जबकि मां आंगनवाड़ी में सेविका हैं। घनश्याम और धर्मेंद्र के मुताबिक कोमालिका हमेशा मुस्कराती है। जिस काम को भी हाथ लगाती है उसे पीछे नहीं छोड़ती है। स्कूल में वह एथलेटिक्स में भी अच्छी थी। अध्यापक ने उसे एथलेटिक्स में आने को कहा, लेकिन मां ने उसे तीरंदाजी में ही बने रहने को कहा।