कुछ हासिल करना हो तो आपको सुविधाओं के दायरे से बाहर निकलना पड़ता है

कहते हैं कि माँ बच्चे की प्रथम गुरु होती है, बच्चे में अपनी छाया खोज लेती है मगर कुछ मांएँ ऐसी भी होती हैं जो बच्चे के साथ अपना अस्तित्व भी निखार लेती हैं। मातृत्व उनके लिए ठहराव नहीं होता, मातृत्व उनके लिए बंधन भी नहीं होता, वह बच्चे के साथ अपनी अलग पहचान बना लेती हैं। नवनीत प्रिया लोढ़ा ऐसी ही माँ हैं जिन्होंने अपने बेटे प्रखर के साथ आत्मरक्षा की कला कराटे सीखी और आज कई प्रतियोगिताएँ जीत चुकी हैं। प्रिया एक कुशल ग्राफिक डिजाइनर भी हैं जो कई कम्पनियों के साथ काम कर चुकी हैं। अपराजिता आपसे इस बार नवनीत प्रिया लोढ़ा की मुलाकात करवा रही है और नवनीत की कहानी उनकी जुबानी पेश कर रही है –

ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर बहुत काम किए हैं

मैं पेशेवर ग्राफिक डिजाइनर हूँ। वेब मीडिया और प्रिंट मीडिया में ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर बहुत काम किए हैं। ऑनलाइन प्रोमो तैयार किए हैं जिनमें 2 डी एनिमेशन से लेकर किताबें, ब्रोशियर, बैनर, होर्डिंग्स की डिजाइनिग भी शामिल है। यहाँ तक कि बेटे के जन्म के एक दिन पहले तक मैंने नौकरी की है। अरीना मल्टीममीडिया और 123 इंडिया समेत कई कम्पनियों के साथ भी मैंने काम किया है।

मैं तभी काम कर पाती थी, जब मेरा बेटा सो रहा होता था

अगर अनुभवों की बात करूँ तो शुरु में फ्रीलांस करते समय बहुत हताशा का माहौल रहा क्योंकि जिन लोगों के साथ काम करती थी, उनको तुरंत काम चाहिए था। यह सम्भव नहीं था। मैं तभी काम कर पाती थी, जब मेरा बेटा सो रहा होता था। दिन भर की घरेलू जिमम्मेदारियों के साथ कई बार रात भर जाग कर भी काम करती थी। दरअसल डिजाइनिंग का जुनून ऐसा था कि रात को जगकर काम करने में भी दिक्कत नहीं होती थी।

बेटे की कराटे क्लास में जाकर फिर सपना जाग उठा

जब दसवीं कक्षा में थी तो कराटे हमारी आत्मरक्षा से संबंधित गतिविधियों में शामिल था। मेरी रुचि शुरू से ही थी मगर परिवार का सहयोग तब नहीं मिला इसलिए कोर्स पूरा नहीं कर सकी और बाद में अपनी पढ़ाई को लेकर व्यस्त हो गयी। मेरा बेटा जब साढ़े 3 साल का हो गया तो मैंने उसे कराटे सिखाने के बारे में सोचा जो उसके शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक होता। तब दूसरे अभिभावकों की तरह मुझे भी कक्षा खत्म होने तक वहीं बैठकर इंतजार करना पड़ता था मगर यही वह समय था जब मुझे लगा कि किशोरावस्था में छूटे अपने उस सपने को पूरा कर सकूँ। बहुत बार सोचती थी कि मैं भी दाखिला ले लूँ मगर कक्षा में सिर्फ बच्चे ही थे। आखिरकार 2013 में मैंने इन्स्ट्रकर से इस बारे में पूछा और अनुमति माँगी। वे बहुत सकारात्मक थे और मेरा दाखिला कराटे की कक्षा में हो गया।

कुछ हासिल करना हो तो आपको सुविधाओं के दायरे से बाहर निकलना पड़ता है

मेरे पति राजीव लोढ़ा और मेरी ससुरालवालों ने मेरा साथ दिया। यह आसान नहीं था। शुरु – शुरू में शरीर में काफी दर्द होता था जबकि मेरे प्रशिक्षक ने मेरे लिए कक्षा में अलग व्यवस्था की थी मगर एक समय ऐसा था कि एक साथ बहुत पत्नी, माँ और प्रोफेशनल होने की जिम्मेदारियाँ मेरे लिए निभाना बहुत मुश्किल था। इस पर अतिरिक्त समय निकालना बहुत कठिन था मगर कुछ हासिल करना हो तो आपको सुविधाओं के दायरे से बाहर निकलना पड़ता है।

मेरे बेटे प्रखर ने कई चैम्पियनशिप जीती हैं

मैंने ऑल इंडिया शेईशिनकाईशितोरुयू कराटे डू फेडरेशन से सीखा है। मेरे बेटे प्रखर ने कई चैम्पियनशिप जीती हैं जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट भी शामिल है। मैंने कराटे एसोसिएशन ऑफ बंगाल द्वारा राज्य स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।

मेरा बेटा मुझे सुपरमॉम कहता है

मातृत्व ने मेरा जीवन बहुत बदला है और अगर आप मुझे अचीवर कहते हैं तो इसका कारण भी यही है कि मैं माँ हूँ। माँ की जिम्मेदारी निभाते हुए मैंने खुद को शक्तिशाली महसूस किया है। मैं अपने बेटे की आँखों में अपने लिए गर्व देखती हूँ तो वह पल मेरे लिए गौरव भरा होता है। मेरा बेटा मुझे सुपरमॉम कहता है।

महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 10 गुना काम करने की क्षमता रखती हैं

मैंने हमेशा से समय प्रबंधन पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया है और एक साथ बहुत सारे काम करती थी। कहीं पढ़ा था कि एक साथ कई चीजें सम्भालना आपकी दक्षता को बढ़ाता है और आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 10 गुना काम करने की क्षमता रखती हैं और मैं इसमें विश्वास रखती हूँ। शायद यही वजह थी कि मैं एक गृहिणी के साथ ग्राफिक डिजाइनर की जिम्मेदारी भी निभा सकी।

समस्याओं से अधिक अपनी क्षमताओं और जिम्मेदारियों को पहचानें

मैं सभी महिलाओं और लड़कियों से कहना चाहूँगी कि वे अपनी समस्याओं से अधिक अपनी क्षमताओं और जिम्मेदारियों को पहचानें। महिलाओं में क्षमता होने का मतलब है समाज में क्षमता होना।

 

 

शुभजिता

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