बातें करती हैं, मन खोलिए, भागीदारी बढ़ाइए, आपकी जरूरत है

त्योहारों का मौसम दस्तक दे चुका है मगर विवादों का मौसम साल भर छाया रहता है। मित्रता दिवस और रक्षाबंधन सप्ताह की शुरुआत में ही आ गए मगर देश के भाईचारे और मैत्री में नए सिरे से जान फूँकने की जरूरत पड़ रही है। त्योहार आ गये मतलब गृहिणियों की जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गयीं और वे बगैर किसी शिकायत के मन में तमाम असंतोष समेटे एक बार फिर खुशियों का स्वागत करने को तत्पर हैं। अपने लिए वक्त निकालना है या उनका कोई जीवन है, उनकी कोई जरूरत है, उनकी सहेलियाँ हैं, ये सब गृहस्थी की गाड़ी के पहिए में पिस जाता है। न वे मुँह खोलती हैं और न ही मन, एक अनजाना सा डर हमेशा उनका पीछा रहता है और सुपर मॉम बनाने के चक्कर में अपना चैन गँवा देती हैं। एक बार रुककर सोचिए तो ये खामोशी क्या सचमुच आपकी गृहस्थी को सुरक्षित रखेगी? क्या एक बड़ी वजह नहीं है कि आपकी कुंठा, आपका फ्रस्टेशन आपका परिवार, आपके बच्चे ही नहीं आपके विद्यार्थियों और और कर्मचारियों से लेकर सहयोगियों पर उतरता है। ये वही लोग हैं, जिनके लिए आप सब कुछ भूलकर जान दे रही हैं। अगर कोई आपसे बात करना चाहे तो आप कुछ नहीं या तुम नहीं समझोगे, कहकर बात टाल देती हैं। घर और बाहर का हर बोझ, शहीदों की तरह अपने कन्धे पर उठाए घूम रही हैं, सिर्फ इसलिए कि आपकी छवि अच्छी बनी रहे। अब सोचिए, क्या आपको आपकी जरूरत नहीं है, क्या आप खुद पर अन्याय करके या अन्याय सह कर, खामोश रहकर हर समाधान निकाल लेंगी। आपके दोस्त आपके आस – पास हैं, ये वहीं हैं, जिनसे आप हमेशा बातें करती हैं मगर सिर्फ काम की बातें करती हैं। दोस्त आपकी जिन्दगी से गायब होते जा रहे हैं। रुकिए, बातों के साथ मन खोलिए, क्या पता आप जो सोच रही हों, आप जिन बातों से परेशान हो, उसका कोई हल इन बातों में मिल जाए। सासू माँ को चाय पिलानी हो तो उनके साथ गप भी मारी जा सकती है। पति को बेड टी देना हो तो वह टहलते हुए भी किया जा सकता है और तब तक थोड़ी देर के लिए बच्चों को उनके साथ छोड़ा भी जा सकता है। बरतन रखते समय बेटी को शामिल किया जा सकता है और वॉशिंग मशीन सम्भालने की जिम्मेदारी बेटे को भी दी जा सकती है। मोबाइल का बिल भाई भी दे सकता है और केरोसिन की कतार में आपके जेठ जी भी खड़े हो सकते हैं। आप बाजार अपनी जेठानी और देवरानी के साथ भी जा सकती हैं और उनके साथ गोलगप्पे भी खा सकती हैं। हर रविवार आधे घंटे अपनी सहेलियों के साथ बातें करें, ध्यान लगाएं। मोहल्ले की औरतों के साथ अंताक्षरी खेलें और किसी सामाजिक गतिविधि से जुड़ें मगर ये सिर्फ आप ही कर सकती हैं। बातें करती रहती हैं, इस बार जरा मन भी खोल लीजिए। इस स्वाधीनता दिवस पर खुद को कुंठाओं और बंधनों से आजाद कीजिए और समाज में अपनी भागीदारी बढ़ाइए। अनुभव ही होगा, अच्छा न हुआ तो बुरा ही होगा मगर आप खुद को महसूस करेंगी। संवाद की जरूरत है हमें, हमारे देश को, हमारी राजनीति को, मोदी को राहुल को, नीतिश को, लालू को मगर संवाद के बाद सीमा में बंधने की नहीं बाँध देने की जरूरत है वैसे ही जैसे हमारी सेना चीन और पाकिस्तान को बाँध देने के लिए तत्पर है। व्यक्ति से समाज बनता है और आप मशीन नहीं, एक व्यक्ति हैं, इसे स्वीकार कीजिए, समस्याएँ तो बस चुटकी में सुलझ जाएँगी। अपराजिता की ओर से सारे मित्रों और सारी सखियों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, स्वतन्त्रता दिवस पर जय भारत।

शुभजिता

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