चुनाव का बिगुल बज उठा है…आए दिन रैलियों और सभाओं से सड़कें गुलजार रहेंगी। सोशल
विमर्श का दौर चल पड़ा है और इन दिनों किसान विमर्श केन्द्र में है। किसान
नया साल आ गया मगर गुजरे हुए साल के प्रति नाराजगी कम नहीं हो रही
कोविड -19 के कारण काम करने का तरीका बदला है और ऑनलाइन माध्यमों की पकड़
गलतियों से सीखना बहुत जरूरी होता है मगर ऐसा लगता है कि टीआरपी, राजनीति और
नये नाम और नये शहर के साथ बलात्कार की वीभत्सता अपने घिनौने रूप में हाजिर
पिछले महीने बेटियों के लिए महत्वपूर्ण फैसला आया था…वह यह कि पैतृक सम्पत्ति पर उनका
लड़कियाँ बड़ी सन्तोषी होती हैं…जरा सा प्यार मिल जाए…कोई हँस के दो मीठे बोल भी
साल के 6 महीने बीत गये और कोरोना काल का यह समय अब भी जारी
जब युद्ध होता है तो आप दोनों तरफ नहीं रह सकते। आपको पक्ष चुनना पड़ता