Monday, July 21, 2025
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एक नजर में बजट की दस बड़ी बातें

आम बजट में सरकार ने सभी पक्षों पर ध्यान देने की कोशिश की है। एक नजर विभिन्न सेक्टर्स से जुड़ी बजट की अहम बातों पर –

महंगा-सस्ता:बैटरी चलित कारों को छोड़ कर सभी कारें महंगी। सोने के गहने व ब्रांडेड कपड़े महंगे हुए। छोटी कारों पर 1 फीसदी सेस। एसयूवी पर 4 फीसद और डीजल गाड़ियों पर 2.5 फीसद टैक्स बढ़ा। तंबाकू और उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी 10-15 फीसद बढ़ी। बीड़ी छोड़ अन्य तंबाकू उत्पाद महंगे। 10 लाख से ज्यादा कीमत की कार होंगी और महंगी। 35 लाख तक के होम लोन पर 50,000 रु. की अतिरिक्त छूट, दिव्यांगों के लिए आयातित उपकरण सस्ते, सीमा शुल्क दरों में कमी, कॉर्पोरेट टैक्स को 30 फीसद से घटा कर 29 फीसद किया गया, मकान किराया छूट 24,000 की जगह 60,000 रुपए की गई।

टैक्स प्रावधान:आयकर के स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया, एक करोड़ से ज्यादा आय वालों पर सरचार्ज बढ़ा, 2 करोड़ रु. टर्नओवर टैक्स कम किया गया, 5 लाख की आय पर 3000 रुपए की अतिरिक्त छूट।

हाउसिंग:सरकारी-निजी भागीदारी में सस्ते मकानों के निर्माण को बढ़ावा, पहली बार मकान खरीदने वालों को 50 लाख से कम की खरीद पर ब्याज में रियायत, किराये पर रहने वालों को बड़ा फायदा।

स्टार्टअप्स पर जोर:स्टार्टअप्स की मदद केे लिए कंपनी कानून में सशोधन किया जाएगा। कंपनी अधिनियम में संशोधन करते हुए स्टार्ट अप्स को मदद की जाएगी। इसके लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होगा।

यातायात:आम आदमी के लिए यातायात को बेहतर बनाया जाएगा, इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं पर 2,21,000 करोड़ का खर्च।

ईपीएफ:पहले तीन साल तक कर्मचारियों का पैसा सरकार ही देगी। कर्मचारियों का पीएफ का पैसा नहीं काटेगी सरकार। ईपीएफ का दायरा बढ़ाने का सरकार ने लिया फैसला।

स्टार्टअप्स:स्किल डेवलेपमेंट के लिए 17000 करोड़ रुपए का फंड। 1500 स्किल डेवलेपमेंट सेंटर खुलेंगे। उद्यमिता विकास के लिए विशेष काम होंगे। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का विस्तार।

शिक्षा-बिजली:62 नए नवोदय विद्यालय स्थापित होंगे, उच्च शिक्षा के विकास के लिए नई हेफा, आम भारतीयों को उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए स्कीम, 1 मई 2018 तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य।प्राथमिक शिक्षा के लिए सर्वशिक्षा योजना के लिए आबंटन बढ़ाया जाएगा।

स्वास्थ्य:डायलिसिस उपकरणों पर ड्यूटी खत्म, ग्रामीणों के लिए नेशनल डायलिसिस सेवा योजना की घोषणा। जेनेरिक दवाओं की बिक्री को बढ़ावा दिया जाएगा।

ग्रामीण विकास:ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में अहम कदम। 5 करोड़ बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन दिया जाएगा, गरीब परिवारों के रसोईघरों की दशा सुधाररने के लिए 2200 करोड़ का आवंटन, ग्रामीण विकास के लिए 87765 करोड़ रुपए का आवंटन, नेशनल डिजिटल लिट्रेसी मिशन के तहत 6 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा।

 

जज्बातों को महसूस करेगा ये सुपर कम्प्यूटर

हाईटेक टेक्नोलॉजी के दौर में अब कम्प्यूटर इंसान की भावनाएं भी समझ लेगा। आईबीएम का दावा है कि सुपर कम्प्यूटर वाटसन अब लोगों की जज्बातों को अच्छी तरह से समझ लेगा। वह यह तक नोटिस कर लेगा कि सामने कि सामने वाला इस समय किस मूड में बैठा है।

आप सोच रहे होंगे कि कम्प्यूटर कमांड देने से भला आपका मूड कैसे समझ लेगा, लेकिन आईबीएम का यही दावा है। कंपनी का कहना है कि उसने अपने सुपर कम्प्यूटर में बड़े बदलाव किए हैं। अपडेशन से वह काफी फास्ट ट्रैकर हो गया है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि इंसानी जज्‍बातों को भी समझने लगा है।

इसका टोन एनालाइजर काफी ज्‍यादा इम्‍प्रूव हो गया है। अब यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रेंज में इमोशंस को आपकी लिखाई से आपको आसानी से डिटेक्‍ट कर सकता है। यह आपके मूड को भी पूरी तरह से भांप लेगा। इस सुपर कम्प्यूटर  को वाटसन नाम दिया गया है।

आईबीएम के मुताबिक यह ऐसा कम्प्यूटर  है जो आपके द्वारा टाइप की जाने वाली लाइंस की गहराई से जांच कर लेगा। इसके बाद वह लगभग आपकी हर मंशा को बिल्‍कुल सही तरीके से एक्‍सप्रेस करने में कामयाब होगा। इसके अलावा आप इस पर काम के समय कीपैड पर जैसे प्रेस करेंगे वैसे आपको फालो कर लेगा।

 

इनके नाम पर है अंटार्कटिका में माउंट, ग्लेशियर में की थी व्हेल की गिनती

पटना.बक्सर के NRI सांइटिस्ट अखौरी सिन्हा के नाम पर अंटार्कटिका में एक पर्वत का नाम रखा गया है। साइंस में उनके योगदान को लेकर उनके सम्मान में ऐसा किया गया है। सिन्हा 1972-74 में अमेरिकी कोस्ट गार्ड कटर्स साउथविंड और ग्लेशियरों में सील, व्हेल और पक्षियों की काउंटिंग की थी।

– मैकडोनाल्ड पर्वत श्रृंखला के साउथ पार्ट एरिकसन ब्लफ्स के दक्षिणी पूर्व छोर पर माउंट सिन्हा (990 मीटर) स्थित है।

– सिन्हा उस ग्रुप के मेंबर थे, जिन्होंने वर्ष 1972 और 1974 में बेलिंगशॉसेन और आमंडसेन समुद्री क्षेत्र में अमेरिकी कोस्ट गार्ड कटर्स साउथविंड और ग्लेशियरों में सील, व्हेल और पक्षियों की काउंटिंग की थी।

– सिन्हा ने 1954 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया था।

– इसके बाद उन्होंने 1956 में पटना यूनिवर्सिटी से जू-लॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली।

– इसके बाद उन्होंने 1956 से जुलाई 1961 तक रांची कॉलेज में जू-लॉजी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर भी रहे।

– इसके अलावा वे यूनिवर्सिटी ऑफ मिन्नेसोटा में डिपार्टमेंट ऑफ जेनेटिक्स, सेल बायोलॉजी एंड डेवलपमेंट में सहायक प्रोफेसर भी रहे हैं।

– बताया जाता है कि 1739 में नादिर शाह के आक्रमण के बाद उनका परिवार दिल्ली से बिहार के बक्सर चला गया था।

 

दिग्गज क्रिकेटर मार्टिन क्रो का निधन, शोक में डूबा क्रिकेट जगत

 

न्यूजीलैंड के महान क्रिकेटर मार्टिन क्रो का निधन हो गया है। सोशल मीडिया पर भी संदेशों का तांता लगा हुआ है। क्रो लंबे समय से ब्लड कैंसर लिम्फोमा से जूझ रहे थे. उन्होंने परिजनों के बीच आकलैंड में दम तोड़ा.

मार्टिन क्रो के परिवार ने इस दुखद अवसर पर निजता का सम्मान करने का भी आग्रह किया है. क्रो ने 1982 से 1995 के बीच अपने 13 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में खेले गए 77 टेस्ट मैचों में 45.36 की औसत से न्यूजीलैंड के लिए 5.444 रन बनाए. इनमें 17 शतक और 50 अर्धशतक शामिल हैं. संन्यास के बाद उन्होंने स्काई टीवी के लिए खेल के छोटे फॉर्मेट क्रिकेट मैक्स की शुरुआत की जिससे टी20 क्रिकेट की नींव पड़ी. आईसीसी हॉल ऑफ फेम में शामिल क्रो न्यूजीलैंड के बल्लेबाजों रॉस टेलर और मार्टिन गुप्टिल के मेंटर भी रहे।

न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जान की ने कहा, ‘मार्टिन सच्चा खिलाड़ी था. हमारे सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों और क्रिकेट के जानकारों में शुमार.’

क्रो के चचेरे भाई हॉलीवुड स्टार रसेल क्रो ने कहा कि उन्होंने एक सच्चा दोस्त खो दिया है. क्रो ने ट्विटर पर लिखा, ‘मेरा चैम्पियन, मेरा हीरो, मेरा दोस्त. मैं तुमसे हमेशा प्यार करता रहूंगा. आरआईपी एम डी क्रो.’

न्यूजीलैंड के पूर्व खिलाड़ी क्रेग कमिंग ने कहा कि चोटों का शिकार नहीं होने पर क्रो का करियर और अच्छा होता. उन्होंने कहा, ‘उनमें गेंद को भांपने की गजब की क्षमता थी. गेंद छूटने से पहले ही वह अपनी पोजिशन बना लेते थे.’

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने कहा, ‘इस शानदार क्रिकेटर और बेहतरीन इंसान को हमेशा याद किया जाएगा.’

न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग ने उन्हें सही मायने में महान क्रिकेटरों में से एक कहा. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘क्रो के निधन की खबर सुनकर बहुत दुख हुआ. मेरे और कई अन्य के लिए प्रेरणा थे. सही मायने में महान क्रिकेटरों में से थे.’

टीम इंडिया के टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने भी मार्टिन क्रो को श्रद्धांजिल दी. उन्होंने क्रो को परम दिग्गज और न्यूजीलैंड का प्रतिष्ठित स्टार बताया.

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर पैट सिम्कॉक्स ने लिखा, ‘सुबह उठते ही दुखद खबर, RIP मार्टिन क्रो. खेल में योगदान के लिए धन्यवाद. एक दिग्गज चला गया.’

कमेंटेटर हर्षा भोगले ने लिखा, ‘अच्छा इंसान, महान क्रिकेटर, बेमिसाल कप्तान और एक जुझारू हमारे बीच से जल्दी चला गया. अलविदा मार्टिन क्रो.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘मैं क्रो से आखिरी बार वर्ल्ड कप के फाइनल के दौरान मिला. क्रो वहां आकर बहुत खुश थे.’

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर टॉम मूडी ने अपने ट्वीट में क्रो को मास्टर बैट्समैन के साथ ही खेल का महान विचारक बताया.

सचिन तेंदुलकर ने भी ट्वीट किया.

28 मार्च को लॉन्च होगी टाटा की नई हैचबैक टियागो

28 मार्च को स्वदेशी कंपनी टाटा की नई हैचबैक टियागो लॉन्च की जाएगी। यह कार कई इनोवेटिव और फ्रेश डिजाइन और फीचर्स के साथ आएगी। साथ ही भारत के ग्लोबल नागरिकों के लिए इसमें कटिंग एज ड्राइविंड डायनमिक्स भी होंगे।

जीका वायरस के चलते बदला नाम
गौरतलब है टाटा जीका का नाम बदलकर टाटा टियागो कर दिया गया है. हाल ही में जीका वायरस के फैलने से सैकड़ों लोगों को की जान चली गई। कार का नाम कंपनी की गाड़ी के नाम मिलता-जुलता होने के चलते यह कॉन्ट्रोवर्सी में आ गई थी. इसके बाद ही कंपनी ने इसे बदलने का फैसला किया था।

इन कार को टक्कर देगी टियागो
इसके लिए कार निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स ने नए नाम के चुनाव के लिए बकायदा एक ऑनलाइन कैंपेन चलाया। इसके तहत ब्रांड के फॉलोअर्स को मौका मिला कि वे कार का नया नाम चुन सकें और अंत में टाटा टियागो नाम चुना गया। इस कार का मुकाबला मारुति सुजुकी सेलेरियो, ह्युंडई आई10 और फोर्ड फीगो से होगा।

ये होगी खासियत
यह कार फ्रेश डिजाइन और कई इनोवेटिव फीचर्स के साथ आएगी. साथ ही भारत के ग्लोबल नागरिकों के लिए इसमें कटिंग एज ड्राइविंड डायनेमिक्स भी होंगे। खबरों के मुताबिक, यह कार दो इंजन ऑप्शन के साथ उपलब्ध होगी जिनमें 4 सिलिंडर वाला 1.2 लीटर पेट्रोल और 3 सिलिंडर का 1.05 लीटर डीजल इंजन शामिल हैं।

 

दुप्पटा लें कुछ अलग अंदाज में

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चाहे वो शादी हो, डिनर पार्टी या फिर ऑफिस का एक आम दिन, आपके दुपट्टा पहनने का तरीका पूरी तरह से आपके लुक को बदल सकता है. क्लासिक्स से लेकर सीधे रैंप से लिए गए न्यू-एज स्टाइल्स तक, आपके पास हैं ढेर सारे तरीके अपने दुपट्टे को पहनने के। तो जरा आजमा कर देखिए दुप्पटे के अलग – अलग अंदाज –

सिंपल और बेसिक वी-स्टाइल

दुपट्टे को बीच से मोड़ें और मोड़ी ही जगह को अपने गले के बीच वाली जगह पर लाएं. दुपट्टे को दोनों हिस्से अपने दोनों कंधों के पीछे डाल लें और ये आप तय करें कि आपको इसका ‘वी’ वाला हिस्सा कितना गहरा चाहिए. आसान है!Screen-Shot-2015-12-28-at-7.49.12-pm

वी-स्टाइल को दें थोड़ा ट्विस्ट

पिछले वी-स्टाइल को थोड़ा ट्विस्ट देते हुए, किसी भी एक खुले सिरे को क तरफ से आगे की ओर ले आएं जिससे एक Y बन जाए!

 वन-शोल्डर क्लीन ड्रेप

दुपट्टे को आधा मोड़ें और उसके मोड़ को अपने एक कंधे पर पिन कर लें. ये स्टाइल इससे आसान नहीं हो सकता. ये सबसे आसान तरीका है अपनी सेक्सी कॉलर बोन्स को फ्लॉन्ट करने का!

 कलाई पर बंधा हुआ वन-शोल्डर ड्रेप

पिछली स्टाइल की तरह ही दुपट्टे को ओढ़ें, बस पीछे वाले सिरे को थोड़ा लंबा रखें. अब अपने दूसरे हाथ से दुपट्टे को लंबे हिस्से को अपने हिप के ऊपर से लाते हुए से अपनी कलाई पर बांधे. आप से अपनी चूड़ी पर भी फंसा सकती हैं.

 कलाई पर रखा हुआ वन-शोल्डर ड्रेप

ये स्टाइल बेहद ग्रेसफुल है और हमारा पसंदीदा भी. पुराने स्टाइल को ही फॉलो करें और एक सिरे को कलाई पर बांधने की जगह इसे कलाई पर एक बार घुमाकर ऐसे ही थोड़ा सा लटकना दें.

 बेल्ट के साथ

बेल्ट्स पहले से ही इंडियन फैशन सीन में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. जाने-माने डिज़ाइनर Tarun Tahiliani बेल्टेड साड़ियां और लहंगे पेश कर चुके हैं. तो हम सलाह देंगे कि आप बेल्टेड दुपट्टा लुक किसी भी चीज़ से के साथ ट्राय करें, जो आपको पसंद हो. पायल सिंघल के इस आउटफिट की तरह आप भी इसे धोती पैंट्स और ट्यूनिक्स के साथ ट्राय कर सकती हैं.duppata 4

 दुपट्टा बने साड़ी

एक और आसान लुक है लहंगा साड़ी का. दुपट्टे के एक सिरे को अपने लहंगे के एक तरफ कमर पर खोंसे र दूसरे हिस्से को हिप के ऊपर से आगे लाते हुए कंधे पर डालें. और आप तैयार हैं! आप इसे और ज़्यादा साड़ी का लुक दे सकती हैं दुपट्टे में साड़ी की तरह प्लीट्स बनाकर, साड़ी की तरह ड्रेप करके पिन कर सकती हैं।duppata with belt

 गले के पीछे से आगे को किया गया ड्रेप

आखिर में आप इसे गर्दन के पीछे की तरफ से आगे की तरफ ला सकती हैं. इसमें थोड़ा ड्रामा डालें, अपने गले पर पहनकर और एक छोर को कलाई पर घुमाकर दूसरे हिस्से को ऐसे ही छोड़ दें।

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सशक्तिकरण की राह तो हमारे घर से ही निकलती है

महिला सशक्तिकरण की बातें यूँ तो साल भर चलती रहती हैं मगर मार्च आते ही इसमें अनायास तेजी आ जाती है। साल में एक दिन महिलाओं के सम्मान को लेकर बड़े – बड़े दावे और बड़ी – बड़ी बातें की जाती हैं और 8 मार्च बीतते ही एक बार फिर घड़ी की सुई पुराने समय पर लौट आती है। समय बदला है और महिलाओं की स्थिति भी बदली है मगर क्या जमीनी हकीकत बदली है? यह सच है कि महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और आवाज भी उठा रही हैं और बढ़ती चुनौतियों या यूँ कहें कि बढ़ते महिला अपराधों का एक बड़ा कारण यह है कि अब पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बड़ी चुनौती मिल ही है। दिल्ली का निर्भया कांड हो या पार्क स्ट्रीट का सुजैट जॉर्डन कांड, अभियुक्त इन दोनों महिलाओं को सबक सिखाना चाहते थे। आज भी फतवे, पाबंदी और नसीहतों के साथ बयानबाजी सब महिलाओं के हिस्से आ रही है। महिलाओं को लेकर सोच आज भी नहीं बदली है। आज भी दोहरी मानसिकता महिलाएं हो रही हैं। एक ओर उनको परदे पर सराहा जाता है, इंटरनेट पर खोजा जाता है तो दूसरी ओर उनको अछूत मानकर लोग किनारा भी करते हैं। जाट आरक्षण के नाम पर आंदोलन में महिलाओं को शिकार बनाया जाता है तो दूसरी ओर विश्वविद्यालयों में आजादी के नाम पर महिलाओं की गरिमा को ताक पर रखने का काम भी खुद महिलाएं ही कर रही हैं और इन सब के बीच जो पिस रही है, वह एक आम औरत है। वह आज भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में ये सारे संघर्ष उठा रही है। यह सही है कि जब कुछ टूटता है तो प्रतिक्रिया होती है और इन अपराधों के पीछे महिलाओं की खामोशी का टूटना है। यह तस्वीर का एक पहलू है मगर स्वाधीनता, अधिकार और अभिव्यक्ति के नाम पर कहीं न कहीं रास्ते भटक रहे हैं और महिलाएं खुद आम महिलाओं की राह में मुश्किलें ला रही हैं। ऐसे में हमारी कठिनाइयों के लिए सिर्फ पुरुष नहीं, कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं क्योंकि एक अदद पुरुष के लिए स्त्री के खिलाफ स्त्री ही खड़ी होती है और पुरुष की गलतियों को नजरअंदाज भी वही रिश्तों के नाम पर करती है। जरा सोचिए कि अगर बलात्कार, हत्या और ऐसे तमाम आरोपियों के घरों की स्त्रियाँ अगर इन अपराधियों का बहिष्कार करने लगे, पति की गलतियों को छुपाने की जगह पत्नी उसका साथ छोड़ दे और अपराध की राह पर चलने वाले या लड़कियाँ छेड़ने वाले भाई को माँ और बहन ही छोड़ दे तो क्या अपराधियों का मनोबल बचेगा? फिर भी ऐसा होता नहीं है। रिश्वत की कमाई से किटी पार्टी करने वाली और घरेलू सहायिकाओं के खिलाफ ज्यादती करने वाली, धारा 498 का दुरुपयोग कर एक आम औरत की लड़ाई को मुश्किल बनाने वाली भी औरतें ही हैं। यह सही है कि महिला सशक्तिकरण जरूरी है मगर क्या एक पहिए को ऊपर उठाने के लिए दूसरे पहिए को जमीन में गाड़ना क्या समस्या का समाधान है? क्या यह गलती को दोहराना नहीं है? प्रतिशोध से विनाश हो सकता है मगर सृजन और परिवर्तन करने के लिए संतुलन होना जरूरी है। जो गलत है, उसे छोड़िए और इसके लिए एक औरत बनकर सोचने की जरूरत है, रिश्ते उसके बाद में आते हैं। निश्चित रूप से हमें अपना अधिकार चाहिए मगर उसके लिए शुरुआत घरों से करनी होगी, जिस दिन हर घर का बेटा महिलाओं का सम्मान करना सीखेगा, उस दिन से अपराध भी अपने – आप कम होंगे और यह काम कोई और नहीं हमें और आपको करना होगा। अपराजिता की ओर से सभी को महिला दिवस और फाल्गुन की होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

प्राणशक्ति की वैज्ञानिक समझ

डॉ. राखी राय हल्दरrakhi di

 

नए नए विकल्पों के भंडार खोलते बाज़ार में इच्छाओं को थामे आज इंसान अनजानी मंज़िल की ओर बेलगाम दौड़  रहा है। इच्छाएं मन में पनपती हैं। मन, जिसे चंचल, हठीला कहा जाता है, जब खुश होता है तो सिर से लेकर पैर तक खुशी की लहर दौड़ा देता है। भयभीत हो तो सीने में कंपकपी भर देता है। अगर उदास हो तो सीने में कहीं पाताल में धँसते जाने का एहसास भर देता है। जो मन सिर से लेकर पैर तक हलचल पैदा करने की ताकत रखता है उसकी स्थिति आखिर है कहाँ?

शास्त्रों में इंसान के शरीर के पाँच स्तर माने गए हैं। इन स्तरों को कोश कहा गया है। अन्नमय कोश भौतिक शरीर है जिसे हम देख पाते हैं। प्राणमय कोश चेतना का कोश है। अन्नमय और प्राणमय कोश के बीच आत्मा की नगरी मानी जाती है। मनोमय कोश हमारे आवेगों और संवेगों का वाहक कोश है। विचारधारा के निर्माण में यह कोश खास भूमिका निभाता है। विज्ञानमय कोश को अंतःप्रज्ञा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह कोश सृष्टि के रहस्य की अनुभूति सहज ज्ञान द्वारा कराती है। आज के युग में इन्सानों के विज्ञानमय कोश की भूमिका पर अगर नज़र डालें तो दिखता है कि आज सृष्टि के रहस्य को समझने की श्रद्धापूर्ण चाह से ज्यादा आविष्कार का घमंड और रहस्य को जानकर शक्ति केंद्रों के शोषण से लाभ कमाने की चाह इन्सानों पर हावी है। आनंदमय कोश परम चैतन्य की आध्यात्मिक अनुभूति का आधार स्थल होने के कारण साधु संतों की चर्चा का विषय रहा है। मनोमय और विज्ञानमय कोश मिलकर सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं।

प्राणमय कोश मे प्राण प्रकाश रूप में रहता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से प्रकाश की किरणें निकलती हैं। इसे औरा कहते हैं। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्वास्थ्य पर इस आभा का तेज निर्भर करता है। इसे वैज्ञानिक शब्दावली में बायो प्लाज़्मिक रेज़ कहते हैं। किर्लियन फोटोग्राफी से यह पकड़ में आती है। 1939 में रूसी गवेषक साइमन किर्लियन ने इसका आविष्कार किया था। जड़ एवं चेतन पदार्थ से निकलने वाली अलग अलग रंगों की किरणें पहली बार इसी फोटोग्राफी से पकड़ में आई। इंसान की सोच और मानसिकता पर शरीर से निकलने वाली किरणों का रंग निर्भर करता है। पीले या सुनहरे रंग की किरणें जो अक्सर देवी – देवताओं के चित्रों में मुखमंडल को घेरे रहती है वही आदर्श औरा की स्थिति है। सूक्ष्म दृष्टि के बगैर खुली आँखों से औरा को देख पाना संभव नहीं हो पाता। आज किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा इसे देखना संभव है।

दृश्य जगत के प्रति इंसान की धारणा उसके ज्ञानेन्द्रियों के सहारे तैयार होती है। लेकिन उसकी छोटी बड़ी धारणाओं से विकसित उसकी सोच का असर उसकी औरा पर पड़ता है। आजकल कठिन रोगों की चिकित्सा के लिए किर्लियन फोटोग्राफी से औरा का चित्र खींचकर उसके भंग होने की जगह के सहारे भी बीमारी के उत्स को समझने की कोशिश होने लगी है। एक बड़ी विडंबना यह है कि आम तौर पर समाज में यही बात प्रचलित है कि औरा सिर्फ देवी देवताओं के चित्रों में दिखने वाला काल्पनिक प्रकाश पुंज है। विश्व ने यकीनन वैज्ञानिक स्तर पर उन्नति की है लेकिन व्यक्ति के शरीर और आत्मतत्व की जो बातें ऋषि मुनियों के विचारों की तिजोरी में बंद पड़ी हैं उनपर कायदे से अनुसंधान आज तक नहीं हो पाया।

औरा को दृढ़ बनाने का सवाल दरअसल सार्थक व्यक्तित्व के गठन के सवाल से जुड़ा है। इसी संदर्भ में हठयोग में सात चक्रों का जिक्र मिलता है। सूक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्र प्राणशक्ति के चेतना केंद्र माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में नाथ संप्रदाय एवं कबीर के प्रसंग में हठयोग की बात आती है। लेकिन अक्सर इस प्रसंग को सतही तैर पर बताकर ही आगे बढ़ जाने का रिवाज शिक्षा क्षेत्र में प्रचलित है। हालांकि यह एक ऐसा प्रसंग है जिससे  ‘जो ये पिंडे सोई ब्रहमंडे’ की बात चरितार्थ होती है। सात चक्रों के बैंगनी, गहरा नीला, आसमानी, हरा , पीला ,नारंगी , लाल रंग आसमान के इंद्रधनुष में दिखने वाले सात रंग ही हैं। इंद्रधनुष जैसे आसमान की शोभा बढ़ता है ठीक उसी तरह ध्यान या साधना से पुष्ट सात चक्र व्यक्तित्व को दृढ़ता और सौंदर्य से भरता है।

माथे के सर्वोच्च स्थल पर सहस्रार चक्र है। दो भौहों के बीच में जहां देवी देवताओं के चित्रों में तीसरे नेत्र की स्थिति मानी गई है उसके पीछे आज्ञा चक्र की स्थिति है। गौर करने लायक बात यह है कि प्राणी विज्ञान के हिसाब से यहीं भौतिक शरीर में ‘पिट्यूटरी ग्रंथि’ है जिसे शरीर को नियंत्रित करने वाली प्रमुख ग्रंथि कहते हैं। कंठ के पीछे मेरुदंड पर विशुद्धि चक्र है। हृदय के पीछे मेरुदंड पर अनाहद चक्र की स्थिति है। योगियों ने गहरे ध्यान की अवस्था में यहीं अनाहद नाद के गूंजने की बात की है। मणिपुर चक्र का स्थान मेरुदंड पर नाभी से ऊपर है। मणिपुर अर्थात रत्न की नगरी। इस चक्र को ‘प्राणशक्ति का मोटर’ भी कहते है। यही विवेक के विकास का केंद्र माना जाता है। अधिष्ठान चक्र की स्थिति जंघास्थियों के समांतर मेरुदंड पर है। इस चक्र में आत्म तत्व के संस्कार और स्मृतियाँ एकत्रित रहती हैं। इसलिए इसे अधिष्ठान चक्र कहते हैं। अर्थात ‘स्व के अधिष्ठान का स्थल’ । मूलाधार चक्र सूक्ष्म और स्थूल दोनों शक्तियों का मूल केंद्र है। यहीं कुंडलिनी का निवास माना जाता है। इसी कुंडलिनी जागरण का प्रसंग हठयोगियों में पाया जाता है। दरअसल सूक्ष्म शरीर में जहां चक्रों की स्थिति मानी गई है वहीं भौतिक शरीर की ग्रंथियां भी मौजूद है। चक्रों का प्रभाव ग्रंथियों पर पड़ता है और ग्रंथियों से हॉरमोन निकलकर रक्त में घुलमिल जाते हैं। हॉरमोन से स्वास्थ्य के संबंध की बात एक प्रमाणित सत्य है।हालांकि हठयोग की राह लेना आम लोगों के लिए संभव नहीं, पर प्राणशक्ति को सतेज करने वाले केन्द्रों की समझ और इन केन्द्रों को सुदृढ़ करने की सहज राह पर सोच विचार से सांस्कृतिक विकास के नए आयाम खुलने की संभावनाएं अवश्य बढ़ जाती है। लंबे समय से बुद्धिवाद के सहारे बाजारवाद पर हमला करने में इतनी ऊर्जा व्यय हुई है कि साहित्यिक एवं वैज्ञानिक स्तर पर प्राणशक्ति से संबन्धित बातों को समझकर शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ जीवन जीने की सहज राह खोजने की बात पर ध्यान केन्द्रित ही नहीं हो पाया। साहित्य की बौद्धिक और तार्किक बात आम आदमी को न छू पाई। जनमानस बाजारवाद से प्रभावित विज्ञापनों की धुरी पर ही घूमता रहा। आम आदमी के लिए शरीर की समझ केवल डॉक्टरों की जरूरत की विषय वस्तु बनकर रह गयी।

इंसान के शरीर के अंगों का विवरण आज जीवविज्ञान की मामूली से मामूली किताबों में मिल जाता है। लेकिन इस शरीर को चलाने वाली प्राणशक्ति , प्राणशक्ति और सूक्ष्म शरीर के संबंध की बात, सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रों के पोषण से प्राणशक्ति के पोषण की बात शिक्षा के पाठ्यक्रम में नहीं मिलती। आज नैतिक शिक्षा (वैल्यू एडुकेशन) कई शिक्षण संस्थानों में विषय के रूप में पढ़ाया जाता है लेकिन व्यक्ति की आत्म सत्ता को पहचानने की प्रेरणा दिये बगैर और प्राणशक्ति के पोषण की प्रचलित राहों की उपेक्षा करके ऊपर से नैतिक शिक्षा के आरोपण की कोशिश गलत है।

भौतिक विज्ञान से संबन्धित क्वांटम सिद्धांत आज निर्णय लेने की प्रक्रिया में क्वांटम की भूमिका की बात कर रहा है। एक व्यक्ति में निर्णय लेने के पहले कई विकल्प सूझना दरअसल आत्मशक्ति का बिखराव है। इस शक्ति का  एक बिन्दु पर केन्द्रित होना जरूरी है। तभी व्यक्तित्व में दृढ़ता आ पाएगी । ध्यान  के जरिये इस शक्ति को ही एक बिन्दु पर केन्द्रित करने की कोशिश की जाती है। गौर करें कि आज मेडिटेशन की विद्या को भी बाज़ार की  शर्तों पर बेचा जा रहा है।  बात साफ है कि बाजारवाद प्राणशक्ति को बचाने की राह पर भी जाल बिछा चुका है।

ब्रह्मांड के समस्त पदार्थ की तरह ही इंसान का शरीर भी परमाणु से बना है। इस लिहाज से देखें तो शिक्षण संस्थानों में विषयों को पढ़ाने का एक बड़ा उद्देश्य दृश्य जगत के जड़ और चेतन के बीच साम्य को महसूस करने के साथ साथ इंसान की विलक्षण शक्तियों का एहसास दिलाना होना चाहिए। इस उद्देश्य से शिक्षा ग्रहण करते हुए जीवन और समाज को समृद्ध करने का संकल्प रखना जरूरी है। शिक्षा का लक्ष्य आज सूचनाएँ देने तक ही सिमट कर रह गया है। शिक्षा से आत्मिक विकास और आत्म विस्तार का प्रश्न आज उपेक्षित है। निश्चित रूप से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की गाड़ी जिस राह पर चल रही है उससे आत्मविस्तार के लिए शिक्षा की राह काफी अलग है। विद्यार्थियों में अलग अलग विषयों की सार्थक समझ पैदा करने के लिए पाठ्यक्रम के पुनर्गठन पर लगातार कार्यशालाओं के जरिए विचार विमर्श करना जरूरी है। वरना शिक्षण संस्थान पीढ़ी दर पीढ़ी बाज़ार के शर्त पर विद्यार्थियों को मार्केट के प्रॉडक्ट के रूप में तैयार करती रहेगी। इसके साथ समाज में संवेदनहीनता का जहर भरता जाएगा।

जापान, कोरिया जैसे देशों में शिक्षा क्षेत्रों में रोबोट प्रयोग में लाये जाने लगे हैं। शिक्षा का उद्देश्य अगर सूचना देना हो और उसमे आत्मविस्तार की गुंजाइश न हो तो शिक्षा कार्य के लिए कालांतर में रोबोट की नियुक्ति  होना अस्वाभाविक बात नहीं है। शिक्षा भावी पीढ़ी को आकार देती है। रोबोट के हाथों बनी भावी पीढ़ी कितनी संवेदनहीन होगी और इसके प्रभाव से समाज कैसा बनेगा इस बात पर कायदे से विचार करना जरूरी है।

(लेखिका लोरेटो कॉलेज, कोलकाता में असिस्टेंट  प्रोफेसर तथा सोदपुर सोलीडरिटी सोसाइटी की सचिव हैं)

 

दवा कैबिनेट को दें नया रूप

पुरानी दवाओं, खत्म होते बैंडेज के बॉक्सेस और दवाओं के ट्यूब को मैनेज करना तो आसान है लेकिन दवाओं का अप-टू-डेट कैबिनेट बनाने के लिए उन दवाओं को सही रूप में ऑर्गेनाइज करना भी जरूरी है। इससे आप बीमारी के हिसाब से दवाएं तुरंत निकाल पाएंगे और कब क्या परेशानी हो जाए इसके बारे में अंदाजा लगाना भी तो कठिन होता है। आइए करते हैं दवाओं के इस कैबिनेट का मेकओवर :

ओरल केयर शेल्फ

अपने दांतों और मसूड़ों को टूथपेस्ट और डेंटल फ्लॉस के जरिए स्वस्थ और साफ रखें। कैविटी से बचाव के लिए ऐसे पेस्ट का चुनाव करें, जिसमें फ्लोराइड हो। इस प्रकार का टूथपेस्ट इस्तेमाल करने की सलाह इसलिए दी जाती है ताकि दांतों को कमजोर होने से बचाया जा सके। कई लोगों को फ्लोराइड के नुकसान को लेकर चिंता होती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस केमिकल की अत्यधिक मात्रा पेट में चले जाने के बाद ही वह टॉक्सिक हो सकता है।

हर एक से तीन महीने के अंदर ब्रश को बदलें, जब ब्रश के ब्रिसेल्स खराब नजर आने लगें। खासतौर से जब आप बीमार होने की स्थिति में अपना ब्रश इस्तेमाल करते हैं तो बैक्टीरिया उसमें जम जाते हैं और स्वस्थ होने पर दोबारा आपको संक्रमित कर सकते हैं।

इस तरह बनाए अलग-अलग शेल्फ

फर्स्ट एड शेल्फ

विभिन्‍न प्रकार के पेनकिलर्स फर्स्ट एड बॉक्स या शेल्‍फ में रखें। बुखार और दर्द के लिए दवा जरूर रखें, जिसमें आइब्रूफेन सूजन को कम करने में भी मददगार होगी। बैंडेज के भी पैकेट इस शेल्फ पर रखें और उनकी एक्सपायरी डेट का जरूर खयाल रखें। समय के साथ चिपकाने वाली पट्टी अपनी गुणवत्ता खोती जाती है और कुछ ब्रांड में पटि्टयों पर एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट रहता है जोकि एक्सपायर हो जाता है। एक शोध में यह बात सामने आई है कि फर्स्ट एड बॉक्स में रखा जाने वाला हाइड्रोजन पैराऑक्साइड का प्रयोग कभी भी कटने-छिलने पर नहीं करना चाहिए, इससे जख्म को ठीक होने में वक्त लगता है।

कोल्ड एंड एलर्जी शेल्फ

मौसम बदलने के साथ ही कोल्ड एवं एलर्जी की शिकायत होती रहती है इसके लिए पहले से ही तैयारी कर लेना बेहतर होता है। वेपॉराइजर और सलाइन या डिकंजेस्टेंट नेजल स्प्रे कोल्ड एंड एलर्जी शेल्फ पर रखें। कोल्ड की समस्या में प्रयोग की जाने वाली दवाएं खांसी में आराम पहुंचाती है, गले की सूजन और दर्द को कम करता है। कोल्ड और इन्फ्लूएंजा की स्थिति में बुखार एक आम समस्या होती है ऐसे में सही-सही तापमान का पता लगाने के लिए डिजिटज थर्मोमीटर का होना जरूरी है।

पुराने प्रकार के ग्लास थर्मोमीटर, जिसके टूटने पर खतरनाक मरक्यूरी लीक हो सकती है ऐसे में डिजिटल थर्मोमीटर अधिक तेज और सुरक्षित होते हैं। कुछ आम प्रकार की मौसमी एलर्जी को दूर करने के लिए एंटीहिस्टामाइंस इस शेल्फ पर होना जरूरी है।

 

किसान पिता के पास पैसा नहीं, गांव की 30 युवतियों ने किया शादी से इन्‍कार

(काल्पनिक चित्र)

बीड़। महाराष्‍ट्र में सूख प्रभावित किसानों की हालत खराब है। राज्‍य के लगभग 15 हजार गांवों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया गया है। हालांकि, सरकार ने किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है लेकिन यह भी नाकाफी है। किसानों के इस बुरी हालत के चलते अब उनकी बेटियों ने शादी से इन्‍कार कर दिया है।

खबरों के अनुसार महाराष्‍ट्र के बीड़ जिले में रहने वाले किसानों की बेटियों ने अगले एक साल तक शादी ना करने का निर्णय लिया है। जानकारी के अनुसार बीड़ के मजालगांव में गांव की ही 25-30 युवतियों ने फैसला किया है कि पिता की तंग आर्थिक हालत के चलते वो शादी नहीं करेंगी।

इनमें से एक युवती सविता के अनुसार यह इलाका पिछले 2-3 सालों से सूखा ग्रस्‍त है और मेरे पिता साल में मुश्किल से तीस हजार रुपये तक कमा पाते हैं ऐसे में शादी कैसे हो पाएगी। एक अन्‍य युवती सरिता के अनुसार गांव में लगभग 30 लड़कियों है और हम सब ने निर्णय लिया है कि हम शादी नहीं करेंगे।

हम चाहते हैं सरकार हमारी मदद करे। मालूम हो कि सरकार ने इन किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है लेकिन फिर भी इनकी हालत खराब ही है।