Tuesday, December 16, 2025
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16 साल बाद अनशन तोड़ेंगी 44 की इरोम, कहा- मणिपुर में लड़ूंगी चुनाव, करूंगी शादी

इम्फाल.मणिपुर से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) हटाने की मांग को लेकर 16 साल से अनशन कर रहीं इरोम शर्मिला अब चुनाव लड़ेंगी। 44 साल की एक्टिविस्ट के साथियों ने कहा कि इरोम 9 अगस्त को अनशन को खत्म कर देंगी। बताया जा रहा है कि अब वे न केवल मणिपुर असेंबली का चुनाव लड़ेंगी, बल्कि नॉर्मल जिंदगी की ओर कदम बढ़ाएंगी। वे शादी भी करने वाली हैं। बता दें कि अनशन के दौरान उन्हें कई बार अरेस्ट किया गया। जबरन नाक में नली डालकर खाना भी खिलाया गया। लेकिन उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी थी।

अपनी इच्छा के बारे में कोर्ट को भी बताया…

इरोम ने कोर्ट को अपनी इच्छा के बारे में जानकारी दे दी है। बता दें कि अनशन को लेकर चल रहे केस के तहत उन्हें हर 15 दिन में कोर्ट में हाजिरी देनी पड़ती है।  उनके साथियों ने बताया कि वे इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के तौर पर इलेक्शन लड़ना चाहती हैं। बता दें कि इम्फाल के सरकारी हॉस्पिटल में पिछले 16 सालों से उनके लिए एक रूम बुक है। माना जा रहा है कि इरोम डेसमंड कूटिन्हो से शादी करेंगी। दोंनो लंबे समय से एक-दूसरे को जानते हैं।
53 साल के डेसमंड एक ब्रिटिश इंडियन हैं। वे राइटर और सोशल एक्टिविस्ट हैं।
इरोम डेसमंड की फोटो हमेशा अपने पास रखती हैं। उन्हीं के नाम पावर ऑफ अटॉर्नी लिख रखा है। डेसमंड ने जब शर्मिला का संघर्ष ‘बर्निग ब्राईट’ किताब में पढ़ा, तो उन्होंने 2009 में शर्मिला को चिठ्ठी लिखी। तब से वे एक-दूसरे के साथ हैं।

कौन हैं इरोम?

इरोम का जन्‍म 14 मार्च, 1972 को हुआ था। उन्हें आयरन लेडी भी कहा जाता है। वे इरोम नंदा और इरोम सखी देवी के 9 बच्चों में से सबसे छोटी हैं। इरोम के माता-पिता कोंगपाल में ही किराने की दुकान चलाते थे। वे आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट हटाए जाने की मांग को लेकर 2 नवंबर 2000 से आज तक अनशन पर हैं।  बता दें कि उन्होंने यह अनशन असम राइफल्स के जवानों द्वारा एनकाउंटर में 10 लोगों को मार दिए जाने के खिलाफ शुरू किया था। तब वे 28 साल की थीं।

सुसाइड का केस भी चला

2014 में दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन करने के लिए उन पर साल 2013 में सुसाइड की कोशिश को लेकर केस चला था।  बाद में कोर्ट ने उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि उनका यह प्रदर्शन एक सुसाइड एक्ट है।

क्या है AFSPA?

– आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट संसद में 1958 में पास किया गया था। शुरू में इसे अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में लगाया गया था। इसके तहत आर्मी को किसी भी व्‍यक्ति की बिना वारंट के तलाशी या अरेस्ट करने का विशेषाधिकार है।  यदि वह व्‍यक्ति विरोध करता है, तो उसे जबरन अरेस्ट करने का पूरा अधिकार आर्मी के जवानों के पास है। इतना ही नहीं, कानून तोड़ने वाले किसी भी शख्स पर फायरिंग का अधिकार भी आर्मी को है। अगर इस दौरान किसी की मौत भी हो जाती है, तो उसकी जवाबदेही फायरिंग करने या आदेश देने वाले अफसर की नहीं होती है।

मां ने तब इरोम से कहा था, अनशन टूटने के बाद मिलूंगी 16 साल हो गए बेटी से मिले

इरोम चानू शर्मिला ने असम राइफल्स के जवानों द्वारा एनकाउंटर में 10 लोगों को मारे जाने के खिलाफ यह अनशन शुरू किया था। तब वे 28 साल की थीं। इरोम की मां सखी ने अनशन शुरू होने के दिन ये कसम खाई थी कि अनशन टूटने तक वह बेटी से नहीं मिलेंगी।  16 सालों में वो एक बार भी उससे नहीं मिली हैं। शर्मिला ने कहा कि वे 16 साल पुराने आंदोलन की रणनीति में बदलाव करूंगी। 9 अगस्त के बाद इसका खुलासा करूंगी।

 

11 साल की सोनिया टीचर बन चला रही स्कूल, दो बुजुर्ग बनाते हैं अनुशासन

पटियाला – ये है पटियाला के गांव बल्लमगढ़ का एक कमरे का एलीमेंट्री स्कूल। जहां पहली से पांचवीं तक कुल 43 स्टूडेंट हैं और इन्हें पढ़ाती हैं 11 साल की सोनिया। वे स्कूल की अकेली टीचर और पांचवीं की स्टूडेंट भी हैं। वे शौकिया टीचर नहीं बनी, मजबूरी है।

पंचायत ने किया फैसला…
मार्च में इस स्कूल के एकमात्र टीचर सतगुरु सिंह का निधन हो गया। उसके बाद से सरकार ने कोई टीचर नहीं लगाया।

गांववाले कई बार जिला शिक्षा अधिकारी के पास गए लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। स्कूल एक महीने ठप रहा। बच्चों की पढ़ाई खराब हो रही थी। यह देख पंचायत ने स्कूल की सबसे होनहार स्टूडेंट को ही टीचर बनाने का फैसला किया। पांचवीं कक्षा में सोनिया समेत दो स्टूडेंट हैं। उनमें से गांव के ही किसान की बेटी सोनिया को चुना गया। उसने पढ़ाना शुरू किया तो सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चों को संभालने में हुई। वे सोनिया की नहीं सुनते। खूब शोर मचाते थे।  यह देख पंचायत ने बच्चों को कंट्रोल करने के लिए दो बुजुर्गों की ड्यूटी लगा दी। ये लाठी लेकर क्लास में बैठते हैं, जिसके डर से बच्चे चुप रहते हैं। यही नहीं मिड-डे मील में भी गांव के लोग ही मदद करते हैं जिसके बाद बच्चों को दोपहर में खाना खिलाया जाता है। पिछले चार महीने से सोनिया ही यहां टीचर है।

पटियाला जिले में ही 149 स्कूलों में टीचर नहीं

पंजाब में शिक्षा की हालत खराब क्यों हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ये तस्वीर।  जिला शिक्षा अधिकारी बहादुर सिंह ने कहा, ‘जब सरकार के पास टीचर हैं ही नहीं तो मैं टीचर कहां से लाऊं। पटियाला जिले में ही 149 स्कूलों में टीचर नहीं हैं।’ अंदाजा लगाइए पंजाब भर में क्या हालत होगी। इस मामले में जब शिक्षामंत्री दलजीत सिंह चीमा से बात की गई तो उन्होंने कहा- ‘मैं मामले की जांच करवाऊंगा। वैसे जहां टीचर नहीं हैं, वहां आसपास के स्कूलों से टीचर भेजकल वैकल्पिक व्यवस्था करवाई जाती है।’ जब स्थायी हल की बात की तो उन्होंने कहा कि जल्द ही 4500 ईटीटी टीचर भर्ती किए जाएंगे, फिर कहीं कमी नहीं रहेगी।

 

2 भारतीयों को मिला मैग्सेसे अवार्ड, दोनों ने दलितों के विकास में किया उल्लेखनीय योगदान

नई दिल्ली.भारत के दो ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट्स बेजवाड़ा विल्सन और टीएम कृष्णा को 2016 का रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड देने का एलान हुआ है। विल्सन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के कन्वीनर हैं, वहीं कृष्णा कर्नाटक क्लासिकल म्यूजिशियन और सिंगर हैं।

मैग्सेसे कमेटी ने इसलिए चुना अवार्ड के लिए…

कृष्णा को ‘क्लासिकल म्यूजिक को समाज के हर तबके तक ले जाने के लिए’ यह अवॉर्ड दिया जाएगा। मैग्सेसे कमेटी ने बताया, “टीएम कृष्णा ने क्लासिकल म्यूजिक को निचले स्तर, खासकर दलितों और नॉन-ब्राह्मण तबके तक ले जाने का काम किया।”  “साथ ही, कृष्णा ने यह एलान भी किया था कि वे ऐसे किसी समारोह में नहीं गाएंगे, जहां लोगों को टिकट लेना पड़े।” फिलहाल कृष्णा रूस में हैं।

विल्सन लड़ते हैं सफाई वर्कर्स की लड़ाई

-विल्सन सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेशनल कन्वीनर हैं।  एक अनुमान के मुताबिक, भारत में सिर पर मैला ढोने वाले करीब 6 लाख लोगों में से 3 लाख को विल्सन ने इस काम से मुक्त कराया है। सफाई कर्मचारी आंदोलन के भारत के 500 जिलों में 7 हजार से ज्यादा मेंबर हैं।  50 साल के विल्सन बीते 32 साल से इस आंदोलन से जुड़े हुए हैं।

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कौन हैं बेजवाड़ा विल्सन ?

1966 में कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड में जन्मे विल्सन का ताल्लुक एक दलित परिवार से हैं।
बेजवाड़ा पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट हैं। अपने परिवार में इतना पढ़ने वाले अकेले शख्स हैं।
विल्सन के माता-पिता मैला ढोने का काम करते थे।  1986 में विल्सन ने फैसला किया कि भारत में सिर पर मैला ढोने का काम खत्म कराने के लिए आंदोलन शुरू किया जाए। विल्सन बताते हैं, ’20 साल का होने पर मैंने अपनी सफाई कर्मचारी कॉलोनी के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मैं ये भी जानना चाहता था कि बच्चे आखिर स्कूल क्यों छोड़ रहे थे?’
‘पता चला कि बच्चों के पिता कमाई का ज्यादातर हिस्सा शराब में खर्च कर रहे थे। पूछने पर बताया कि वो जो काम करते थे, उसके लिए शराब पीना जरूरी था।’ ‘जानने पर पता चला कि वे लोग मैला ढोते थे। मैंने तय किया इसके लिए कुछ करना होगा।’ ‘हमने आंदोलन चलाया। 1993 में सरकार ने मैला ढोने के कस्टम के खिलाफ कानून बनाया।’

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कौन हैं टीएम कृष्णा ?

चेन्नई में 1976 में पैदा हुए कृष्णा कर्नाटक संगीत के गायक हैं। कृष्णा के पिता बिजनेसमैन हैं और मां कई एजुकेशनल इंस्टीट्यूट चलाती हैं।  कृष्णा की मां कर्नाटक संगीत में ग्रेजुएट हैं। कृष्णा ने 6 साल की उम्र में बी. सीताराम शर्मा से संगीत सीखना शुरू किया था।  12 साल की उम्र में उन्होंने पहला परफॉर्मेंस दिया।
– 1997 में कृष्णा ने संगीता शिवकुमार से शादी की। संगीता खुद भी कर्नाटक संगीत की जानकार हैं।  कृष्णा अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया भर में कॉन्सर्ट कर चुके हैं।

क्या है रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड ?

– रेमन मैग्सेसे फिलीपींस का अवॉर्ड है। यह फिलीपींस के एक्स प्रेसिडेंट रेमन मैग्सेसे के नाम पर दिया जाता है। अवॉर्ड 6 कैटेगरीज- गवर्ननेंट सर्विस, पब्लिक सर्विस, कम्युनिटी लीडरशिप, जर्नलिज्म-लिटरेचर-क्रिएटिव कम्युनिकेशन आर्ट्स, पीस-इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग, इमरजेंट लीडरशिप में दिया जाता है।  भारत में अब तक 53 लोगों को ये अवॉर्ड मिल चुका है।

 

बच्चों की बातों को सुनना और समझना बेहद जरूरी है

मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच रेडियो ऐसा साथी है जो हमेशा से साथ रहा है मगर आज उसका स्वरूप बदल गया है। पहले रेडियो पर उद्घोषक गीत सुनाया करते थे मगर आज उसका रिश्ता आस – पास की बदलती दुनिया से भी है। आर जे अब सिर्फ गीत या प्रशंसकों के नाम भर नहीं सुनाया करते बल्कि आस – पास के परिवेश में उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। वह अपनी बात कहता है मगर इस चुटीले अंदाज में कि सुई आर – पार हो जाती है और आप हँसने के सिवा ज्यादा कुछ नहीं कर सकते बल्कि यह काफी कुछ पत्रकारिता और मनोरंजन का मिला जुला रूप हो गया है। बात जब रेडियो की हो तो बजाते रहो यानि रेड एफ जरूर याद आता है और रेड एफ एम की याद आए तो रेडियो की रानी आर जे नीलम की याद न आए तो ऐसा तो हो नहीं सकता। अभी हाल तक वह सभी को मुर्गा बनाया करती थीं और अब कोलकाता कटिंग में व्यस्त हैं। गाहे – बगाहे डिमांड पर बेईज्जती भी करती हैं और वह भी कुछ इस अंदाज में कि बस कहिए मत। अपराजिता इस बार आपकी मुलाकात रेड एफ एम की लोकप्रिय आर जे नीलम से करवाने जा रही है –

आज का दौर सोशल नेटवर्किंग का दौर है

रेडियो की दुनिया में आज मुझे 10 साल से अधिक हो गए हैं और इस दौरान मैंने काफी कुछ सीखा है। एक व्यक्ति के तौर पर अब कहीं अधिक परिपक्व हो गयी हूँ। आज का दौर सोशल नेटवर्किंग का दौर है और उसके कारण जानकारी का भी दौर है मगर जितनी अधिक जानकारी होती है, दिमाग में हलचल उतनी ही अधिक हो जाती है। इसका असर हमारे संबंधों पर भी पड़ा है। सोशल मीडिया पर बहुत क्रांतिकारी विचार हो पाते हैं मगर हकीकत में उनको लागू कर पाना सम्भव नहीं हो पाता।

छवि बनाना बेहद जरूरी होता है

बतौर इंटरटेनर हर आर जे का अपना स्टाइल होता है और एक छवि होती है जो उसे दूसरों से अलग करती है। आपकी अपनी एक छवि हो, यह बेहद जरूरी है। जहाँ तक मेरी बात है तो मैंने जो सीखा है, अपने अनुभवों से सीखा है और उसी से मेरी छवि विकसित होती है। मेरी कोशिश रहती है कि मैं जो भी करूँ या कहूँ, श्रोता उससे खुद को जोड़ सकें। मैं हमेशा कोशिश करती हूँ कि मेरी प्रस्तुति में बनावटीपन न हो और वह प्राकृतिक रहे इसलिए मैं बातों को छोटी – छोटी चीजों से जोड़ने की कोशिश करती हूँ जो आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा होती है और श्रोता उससे एक सम्पर्क बना लें।

आज के बच्चे काफी समझदार हैं

कई बार होता है कि हम अपनी प्रोफेशनल जीवन की परेशानी से उबर नहीं पाते और घर जाते ही बच्चों पर सारा गुस्सा निकाल देते हैं मगर यह गलत है। हमारे भीतर इतना धैर्य नहीं रहता कि वक्त निकालकर हम बच्चों की बातें सुनें जबकि यह बेहद जरूरी है। मैं मिक्सड नेचर वाली मम्मी हूँ और मेरी बेटी काफी समझदार है। कई बार वह ऐसी बातें करती है कि उनकी बातों पर सोचना पड़ जाता है। बच्चों की बातों को सुनने और समझने की जरूरत है। मुझे लगता है कि माँ बनने के बाद मैं बेहतर इंसान भी बनी हूँ।

लगातार चलने वाली प्रक्रिया है महिला सशक्तीकरण

महिला सशक्तीकरण लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। आज महिलाएं पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो यह समानता सशक्तीकरण है मगर मुझे लगता है कि एक महिला अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीए, बंधी – बँधायी सोच से बाहर निकले और वो करे जो पुरुष ने नहीं किया हो तो वह सशक्तीकरण का दिन होगा।

तनाव का असर अपने काम पर न पड़ने दें

जीवन में तनाव होगा और इसे खत्म नहीं किया जा सकता मगर फिर भी मैं ये कहना चाहूँगी कि जीवन में तनाव न लें। हर समस्या का समाधान हो सकता है और इसके लिए जरूरी है कि तनाव का असर आपके काम पर नहीं पड़ना चाहिए।

 

 

स्टेटस, शराब, जश्नबाजी के शिकंजे में फँसा नौजवानों का यह देश

महानगर में इन दिनों एक किशोर की मौत का रहस्य परेशान कर रहा है। शहर में मौतें होती रहती हैं और पुलिस हर मामले को सुलझा लेती है मगर इस बार आवेश दासगुप्ता नामक किशोर की मौत का रहस्य सुलझाना उसके लिए आसान नहीं है। पुलिस की नजर में यह एक हादसा है तो आवेश का परिवार इसे हत्या का मामला मान रहा है। आवेश के पिता 6 माह पहले दुनिया से चले गए थे और अब आवेश की माँ ने उसे खो दिया है तो यह तकलीफ समझी जा सकती है। बहरहाल मौत अपनी जगह है मगर हमारे बच्चों, उनकी जिंदगी और दोस्तों के साथ बदलती जीवनशैली पर बहस एक बार फिर से आरम्भ हो गयी है। आज से एक दशक पहले शायद बहस और तेज होती और एक भूचाल सा आ जाता मगर आज के किशोर और किशोर से होते युवा जो जिन्दगी बिता रहे हैं, वहाँ अब यह एक सामान्य सी घटना बनकर हो गयी है।

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शराब, सिगरेट और आश्चर्यजनक रूप से मँहगी जीवनशैली देखकर अब घरों में हंगामा नहीं मचता क्योंकि अब ये सब हमारे लिए स्टेटस सिंबल है और यह नशा गलियों – कूचों तक फैलता जा रहा है। याद आता है कि पॉकेटमनी से अधिक खर्च होने पर बचपन में हमसे कई सवाल पूछे जाते थे और सबसे बड़ा सवाल होता था कि इतना पैसा आया कहाँ से? घरों में अब ये सवाल अब कम पूछे जाते हैं जो कि एक जरूरी सवाल है क्योंकि मध्यम वर्गीय से लेकर उच्च वर्ग के परिवारों के अभिभावकों के पास वक्त नहीं है कि वे देखें कि उनके बच्चे कैसी जिन्दगी बिता रहे हैं, उनके दोस्त और परिवेश कैसे हैं औऱ उनकी जीवनशैली कैसी है?  एक समय था जब शराब को गंदगी और विनाश की जड़ माना जाता था मगर आज यह परिवार की आदत है। पार्टियों से लेकर शादियों और उत्सवों में शराब और ड्रग्स न हो तो बात नहीं बनती। सोशल मीडिया पर यह असर साफ देखा जा सकता है जब शराब की पैरवी करने वाले शराब पर प्रतिबंध लगाने वाले बिहार के मुख्यममंत्री नीतिश कुमार को गालियाँ देते हैं और शराब और ड्रग्स को लोकतांत्रिक अधिकार मानते हैं। आवेश के मामले में भी यही हुआ है क्योंकि आवेश और उसके सारे दोस्त शहर के प्रख्यात स्कूलों में पढ़ते थे। 17 साल की उम्र में गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड अब आम बात है। कयास तो यह भी है कि आवेश की हत्या या आत्महत्या के पीछे यह एक वजह हो सकती है।

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सुविचार की माँग करने वाले शायद ही इन पहलुओं पर ध्यान देंगे। आखिर कोई भी जन्मदिन की पार्टी बगैर शराब के अधूरी क्यों लगती है और किशोरों के हाथ में सिर्फ स्मार्टफोन ही क्यों होना चाहिए? अगर देना ही है तो बच्चों को जिंदगी के तमाम अच्छे या बुरे पहलुओं से अवगत करने की जिम्मेदारी बड़े क्यों नहीं निभा पा रहे? सभी स्कूलों में महँगे तोहफों पर पाबंदी रहती है मगर इसका पालन कितने लोग करते हैं? अभिभावकों की छोड़िए, आज तो शिक्षकों का काम तो बगैर सिगरेट के नहीं चलता और कई सरकारी कार्यालयों और उद्योग जगत का भी यही हाल है। ऐसे लोग कैसे नशे और मद्यपान को अवगुण मानेंगे? रही बात मीडिया की तो, वह भी कम गुनहगार नहीं है। कई ऐसे समाचार पत्र, चैनल और पत्रिकाएं हैं जो शराब का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रसार करती हैं। हाथों में बीयर और वाइन की बोतलें और सिगरेट के कश लगाते युवा जब डांस फ्लोर पर थिरकते हैं तो इसमें बुराई नहीं देखी जाती बल्कि इसे पार्टी हार्ड कहा जाता है और फिल्में और आज का तेज संगीत इसमें कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं। जाहिर है कि नामचीन हस्तियों को पैसे दिखते हैं मगर यह नहीं दिखता कि उनकी इस देश और इसके युवाओं के प्रति कोई जिम्मेदारी है। अजय देवगन से लेकर शाहरुख खान तक शराब के विज्ञापन करते हैं और यो यो हनी सिंह इसमें चार बोतल वोदका का तड़का लगा रहे हैं। ऐसे में वही होना तय है जो आज हो रहा है। बच्चे इसे अच्छी चीज मानने लगे हैं और शराब के कारोबार में तेजी से वृद्धि हो रही हैं और इससे भी अधिक बढ़ रही हैं मौतें।Teen-and-drugs

शराब के सेवन से हर 96 मिनट में एक भारतीय की मौत हो रही है। देश के कुछ राज्यों में जबसे शराब पर बैन लगाई गई है, तभी से लोगों में यह चर्चा का मुख्य टॉपिक है। शराब बंदी पर छिड़ी बहस के बीच इंडियास्पेंड ने खुलासा किया है कि भारत में शराब पीने के प्रभावों से प्रतिदिन 15 लोगों या हर 96 मिनट में एक व्यक्ति की मौत हो रही है। इंडिया स्पेंड ने यह खुलासा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर किया है। भारत में प्रति व्यक्ति शराब के उपभोग में 38 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो 2003-05 में 1.6 से बढ़कर 2010-12 में 2.2 लीटर प्रति व्यक्ति हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपॉर्ट में भी यह खुलासा किया गया है कि भारत में 11 प्रतिशत से अधिक लोग शराबी हो गए थे, जबकि अंतर्राष्ट्रीय औसत 16 प्रतिशत है। आंकड़े बताते हैं कि शराब के खिलाफ बड़े पैमाने पर राजनीतिक समर्थन मिले। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि शराब एक स्वास्थ्य समस्या है न कि नैतिक।तमिलनाडु में चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य शुरू करने के पहले दिन जे. जयललिता ने 23 को करीब 500 से अधिक शराब की दुकानें बंद कर दीं। इस साल अप्रैल में बिहार में शराब के उत्पादन, बिक्री और उपभोग पर भी रोक लगा दी गई है। केरल में भी अगस्त, 2014 में शराब की बिक्री सिर्फ पांच तारा होटलों तक सीमित कर दी गई थी। बंगाल में यह माँग उठ रही है मगर दिल्ली दूर है। हाल ही में हुई शराबबंदी से पहले, भारत में गुजरात और नगालैंड ही ऐसे राज्य थे, जहां शराब के लिए निषेध लागू था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार शराब के प्रभावों से सबसे अधिक मौतें महाराष्ट्र में होती हैं। मध्य प्रदेश और तमिलनाडु, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।

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तमिलनाडु के संगठन मक्काल अधिकारम (लोक शक्ति) के एस. राजू ने बताया कि “बड़े अपराध और दुर्घटनाएं शराब के कारण होती हैं। यह डकैती और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के लिए भी जिम्मेदार है”। उन्होंने कहा कि शराब के कारण तमिलनाडु में सबसे अधिक तीस साल से कम उम्र की विधवाएं हैं। सन 2014 में जहरीली शराब पीने से प्रतिदिन पांच लोगों की मौत होती थी। वहीं, मालवानी और मुंबई में 2015 में अवैध शराब पीने से करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी। जहरीली शराब पीने से 2014 में 1699 लोगों की मौत हुई थी, जो 2013 में 387 लोगों की हुई मौत की तुलना में 339 प्रतिशत ज़्यादा है।हालांकि लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रमुख लोक स्वाथ्य विशेषज्ञ विक्रम पटेल ने इस बात पर जोर दिया था कि निषेध से शराब की लत और मौतें कम नहीं हो सकती हैं। ठहरकर देखने की जरूरत है कि सब कुछ हासिल करने की होड़ में बहुत कुछ पीछे छूट रहा है। आज उसे सम्भालने और सचेत होने की जरूरत है वरना इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

नोटः 2014 से शराब के कारण हुई मौत के आंकड़े नहीं दिए जाते हैं, इसलिएयह रिपॉर्ट 2013 के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है।

(आँकड़े एबीपी न्यूज की खबर के आधार पर साभार)

 

अगर आजादी चाहिए तो जिम्मेदारी की बात पहले करनी होगी

आजादी, स्वाभिमान, सौहार्द और महिलाओं का सम्मान कुछ ऐसे शब्द हैं जो भारतीय लोकतंत्र का पीछा कर रहे हैं और सारी बहस इन शब्दों के आस – पास चक्कर काट रही है। हर घटना घूमकर इन शब्दों के पास खड़ी हो जाती है। आजादी के नाम पर बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होता तो शायद बेहतर था। कुछ ऐसी आजादी जो बाहर से देखने पर जायज लगती हैं मगर तह में जाओ तो ऐसा लगता है कि क्या इस आजादी की कोई सीमा है? अभिव्यक्ति की आजादी, आंदोलन की आजादी, चक्का जाम करने की आजादी, फतवे जारी करने की आजादी और महिलाओं की अस्मिता को तार – तार करने वाले बयान की आजादी।

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सहिष्णुता और  असहिष्णुता के इस दौर में हर बात गड़बड़ है। विद्यार्थी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं और मणिपुर और कश्मीर की आजादी माँग रहे हैं और यह सब आए दिन शिक्षण संस्थानों की कहानी बन गया है। गाय को लेकर होने वाली राजनीति और सहिष्णुता की बहसों के बाद फिल्मों का बहिष्कार, इन सबका कोई नतीजा नहीं है। हर जगह आतंक है, पेरिस से लेकर ढाका तक सीरिया से लेकर पाकिस्तान तक, हर जगह धर्म के नाम पर कत्लेआम हो रहा है, जिसकी इजाजत शायद खुदा भी नहीं देता होगा। बहरहाल, अगस्त से आजादी का रिश्ता गहरा है मगर यह रिश्ता जिम्मेदारी से भी तो जुड़े। आस – पास जो घट रहा है और जिस तरह की बयानबाजी हो रही है, उसे देखकर नहीं लगता कि ऐसा हो रहा है। अब तक पुरुष ही महिलाओं पर बयानबाजी करते थे मगर अब महिलाएं ही महिलाओं को नीचा दिखा रही हैं और पितृसत्ता के हाथ में मोहरा बनी बैठी हैं। कम से कम हाल ही में मायावती और दयाशंकर के मामले में जो कुछ हुआ, वह यही दिखाता है। एक पुरुष ने बसपा नेत्री मायावती को घोर आपत्तिजनक शब्द बोले तो उन्होंने उसी पुरुषवादी व्यवस्था का आसरा लेकर उस पुरुष की बेटी और परिवार को लेकर घनघोर आपत्तिजननक शब्दों की बौछार करवा डाली। वह खुद को देवी तो बना बैठीं मगर उनमें उदारता इंसानों वाली भी नहीं दिखी। कल्पना कीजिए, अगर देवियाँ ऐसी होने लगीं, क्या होगा हमारी संस्कति का, जहाँ एक मजबूत बंधन है, गरिमा है। रक्षाबंधन है और जन्माष्टमी भी है।

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कृष्ण के जीवन में महिलाएं हर रूप में हैं और हर रूप में उनका सम्मान भी है, फिर वह राधा हो, रुक्मिणी हो, द्रोपदी हो या सुभद्रा हो, मगर उनके इस रूप को सिर्फ राधा तक समेट दिया गया, ये अलग बात है। कृष्ण ने द्रोपदी के सम्मान की रक्षा की, अगर उसे सक्षम बनाते कि वह अपना सम्मान खुद सुरक्षित रखे तो शायद महाभारत की जरूरत ही नहीं पड़ती। बस, सारी कहानी यहीं ठहर गयी है क्योंकि महिलाओं को सुरक्षा देने की बात जब की जाती है तो इसमें उसका आत्मनिर्भर होना छूट जाता है। शायद यह इसलिए कि व्यवस्था स्त्री को निर्भर देखने की अभ्यस्त है, जब वह पुरुष को तारणहार के रूप में देखती है तो पौरुष को राहत पहुँचती है मगर समय आ गया है कि इस स्थिति से ऊपर उठकर सोचा जाए। वैसे आज पुरुष बदल रहे हैं, इसमें संदेह नहीं है। अब वह महिलाओं से आगे नहीं बल्कि साथ चलना चाहते हैं, औऱ यही शायद बदलाव है और इसी में आजादी भी छुपी है अपने – अपने अहं से आजादी। अपराजिता की ओर से आप सभी को स्वतंत्रता दिवस, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी की अग्रिम शुभकामनाएं। बातें तो बहुत हैं, आगे भी चलती रहेंगी। आजादी अगर चाहिए तो जिम्मेदारी की बात पहले करनी होगी।

 

शिव खेड़ा बने आरटीआई और एलडीआई के ब्रांड एम्बेस्डर

प्रख्यात वक्ता तथा कार्यकर्ता शिव खेड़ा अब राउंड टेबल इंडिया (आरटीआई) और लेडीज सर्कल इंडिया (एलडीआई) के ब्रांड अम्बैस्डर बन गए हैं। हाल ही में महानगर में इस साझेदारी की घोषणा की गयी। शिव खेड़ा ने इस दायित्व के मिलने पर खुशी जाहिर की और कहा कि संस्था का संदेश वह अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएंगे।

Mr. Shiv Khera at the Press Conference for announcement of Brand Ambassador of global movement of Round Table India & Ladies Circle India_10

इस मौके पर आरटीआई के प्रेसिडेंट दीपक मांडा, एरिया 4 के चेयरमैन हरमीत सिंह सेठी, संदीप हरभजनका, सीपीआरटी 34 के चेयरमैन गिरीश टिकमानी, सीपीएलसी 46 के चेयरपर्सन दमनदीप सेठी, राष्ट्रीय सचिव क्रिस्टोफर, एरिया 4 की चेयरपर्सन श्वेता पोद्दार भी उपस्थित थीं।

 

मिस्टर वर्ल्ड बने हैदराबाद के रोहित खंडेलवाल, पहली बार किसी भारतीय को मिला यह ताज़

 पेशे से मॉडल और एक्टर रोहित खंडेलवाल को मिस्टर वर्ल्ड 2016 चुना गया है। 26 साल के रोहित खंडेलवाल न सिर्फ पहले भारतीय हैं बल्कि पहले एशियाई हैं जिन्हें यह ताज़ मिला है।

रोहित खंडेलवाल ने 46 प्रतियोगियों को हराकर यह सम्मान हासिल किया है। 19 जुलाई को ब्रिटेन के साउथपोर्ट में हुए मिस्टर वर्ल्ड के फाइनल में रोहित ने शानदार जीत दर्ज की।

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मिस्टर वर्ल्ड की ऑफिशल वेबसाइट पर दर्ज है कि रोहित ने कहा- मैं मिस्टर वर्ल्ड 2016 बनकर सौभाग्यशाली और विनम्र महसूस कर रहा हूं। मैं अपने सभी प्रशंसकों और उन सभी को जिन्होंने मुझे आशीर्वाद दिए, को शुक्रिया करना चाहता हूं। यह सिर्फ आपका प्यार और सपोर्ट ही है जिसने मुझे प्रेरणा दी और मैं मिस्टर वर्ल्ड 2016 का खिताब जीत सका। अब तक का सफर शानदार रहा। अब आगे क्या होता है… मैं यह देखने के लिए बेहद उत्सुक हूं।

 

मन पर नियंत्रण के लिए करें श्रावण में शिव पूजन

श्रावण शिवजी को अतिप्रिय है। यह ऐसा महीना है जिसका नाम सुनने (श्रवण करने) से ही उद्धार हो जाता है। मान्यता है कि इस मास भगवान शिव अपने ससुराल जाने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और यह अवसर उनकी कृपा आने का सुंदर संयोग रचता है।

सभी मासों में श्रावण मास शिवजी को अति प्रिय है। संभवत: यही वजह है कि इसे विभिन्ना मासों में उत्तम मास कहा जाता है। इस मास का एक भी दिन ऐसा नहीं है जबकि व्रत रखने से विशेष फल की प्राप्ति न होती हो। हर दिन की अपनी अनूठी महिमा है। श्रावण, श्रवण नक्षत्र और सोमवार से भगवान शिव जुड़े हैं।

वे स्वयं अपने मुख से सनतकुमार से कहते हैं कि मुझे 12 महीनों में श्रावन अति प्रिय है। इस मास का महत्व श्रवण योग्य होने के कारण ही इसे श्रावण मास कहा गया है। इस मास के श्रवण से ही सिद्धि प्राप्त होती है। श्रावण मास व श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्र हैं और चंद्र के स्वामी हैं भगवान शिव। यही वजह है कि इस मास में उनकी कृपा या उनका आशीष पाने के लिए भक्तजन उन्हें प्रसन्ना करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं।

जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा था तो भगवान भोलेनाथ ने बताया था कि देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर का त्याग किया था, उससे पहले उन्होंने महादेव को पति रूप में पाने का प्रण लिया था। दूसरे जन्म में सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने श्रावण मास में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया।

तभी से यह माह शिवजी को विशेष रूप से प्रिय हो गया। एक अन्य कथा के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने श्रावण मास में ही लंबी आयु पाने के लिए घोर तप करके शिवकृपा प्राप्त की थी। शिवकृपा से उन्हें ऐसी शक्तियां मिलीं कि उनके सामने यमराज भी परास्त हो गए थे। एक कथा यह भी है कि श्रावण मास में ही शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से हुआ था।

माना जाता है कि हर वर्ष श्रावण मास में शिवजी अपनी ससुराल आते हैं। यही वजह है तब शिव जलाभिषेक करके भक्त उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं। पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था और निकलने वाले विष को शिवजी ने अपने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की थी। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था और तभी से श्रावण मास में शिवजी को जल अर्पित किया जाता है।

सोमवार व्रत क्यों विशेष

सोमवार का व्रत करने से शिवजी प्रसन्ना होते हैं और उस पर भी श्रावण मास के सोमवार का व्रत तो अमोघ फल देने वाला है। सोमवार का अंक 2 होता है जो चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। फिर चंद्रमा का एक नाम सोम भी प्राप्त होता है। चंद्रमा मन का संकेतक है। वह मनुष्य की चंचलता को बताता है।

यही चंद्रमा जो मनुष्य के चित्त को स्थिर नहीं होने देता है वह भगवान शंकर के मस्तक पर शोभा पाता है और उन्हीं के अधीन भी रहता है। जिन लोगों को एकाग्रता और मन की चंचलता के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता हो उनके लिए श्रावण सोमवर व्रत का विशेष महत्व हो जाता है। भगवान शंकर की आराधना व्यक्ति को मन को साधने का वरदान देती है।

 

ब्रूस ली का मार्शल आर्ट सिखाती है ये कमांडो ट्रेनर

नई दिल्ली.देश की इकलौती महिला कमांडो ट्रेनर डॉ. सीमा राव आज लाखों महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं। ये आयरन लेडी 20 सालों से इंडियन आर्मी के साथ सिक्युरिटी फोर्सेस के कमांडोज को ट्रेनिंग देती आ रही हैं। इस काम में उनके पति दीपक राव भी मदद करते हैं। मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुकीं सीमा दुनिया के चुनिंदा लोगों में शामिल हैं, जो ब्रूस ली का ‘जीट कून डो’ जानते हैं।

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सीमा ने मार्शल आर्ट्स पर बनाई फिल्म…

सीमा मार्शल आर्ट्स पर बनी देश की पहली फिल्म ‘हाथापाई’ की प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं, इसमें रोल भी किया। वे फायर फाइटर, स्कूबा डाइवर और मिसेज इंडिया वर्ल्ड की फाइनलिस्ट भी रह चुकी हैं।

इस सुपर वुमन ने माउंटेनेयररिंग और रॉक क्लाइमिंग में भी कई मैडल हासिल किए हैं। सीमा मिलिट्री मार्शल आर्ट्स में 7-डिग्री ब्लैक बेल्ट होल्डर और कॉम्बैट शूटिंग इंस्ट्रक्टर हैं।

 

मुफ्त में देती हैं कमांडो ट्रेनिंग

– एनएसजी, पैरा स्पेशल फोर्सेस, मारकोस मरीन, गरुड़ कमांडो और पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग देती हैं। सीमा और उनके पति दीपक राव जवानों को ट्रेनिंग देने के बदले रूपए नहीं लेते हैं। सीमा के पति करीब 15 हजार जवानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। एक बार उनकी लाइफ में ऐसा दौर भी आया, जब वे गंभीर आर्थिक तंगी से घिर गए। लेकिन ट्रेनिंग फीस नहीं ली।

फ्रीडम फाइटर फैमिली में हुआ जन्म

सीमा का जन्म एक फ्रीडम फाइटर फैमिली में हुआ। वे प्रोफेसर रमाकांत की बेटी हैं। उन्होंने क्राइसिस मैनेजमेंट कॉलेज से एमबीए की डिग्री ली। पीएचडी होल्डर भी हैं। अपने काम में लगन के चलते सीमा पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाई थीं। एक हमले में गंभीर चोट आने से मजबूत इरादों वाली कमांडो ट्रेनर की कुछ वक्त के लिए याद्दाशत चली गई थी।