Saturday, June 7, 2025
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भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की एन सी सी टीम ने मनाया 76वां एन सी सी दिवस

कोलकाता ।  भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने 20 नवम्बर  को एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम की मेजबानी की और अतिरिक्त महानिदेशक एनसीसी पश्चिम बंगाल और सिक्किम निदेशालय, मेजर जनरल विवेक त्यागी ने आज 76वें एनसीसी दिवस का जश्न मनाने के लिए संस्थान का दौरा किया। यह प्रमुख संस्थान अकादमिक उत्कृष्टता को आगे बढ़ाते हुए समग्र विकास और भविष्य के नेताओं को तैयार करने पर अपना ध्यान केंद्रित रखता है।  लगभग 10,000 छात्रों के साथ, कॉलेज पश्चिम बंगाल और सिक्किम एनसीसी निदेशालय की सेना, वायु और नौसेना विंग में छात्रों के नामांकन का दावा करता है। कॉलेज के एनसीसी कैडेट एनसीसी गतिविधियों के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत सक्रिय रहे हैं और शीर्ष स्तर पर एनसीसी निदेशालय का प्रतिनिधित्व किया है, जिनमें से कई ने सशस्त्र बलों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी जगह बनाई है।
एडीजी मेजर जनरल विवेक त्यागी ने एनसीसी दिवस समारोह का निरीक्षण किया और कैडेटों को संबोधित किया, युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देने और राष्ट्र निर्माण में एनसीसी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। इस अवसर पर  उत्कृष्ट कैडेटों को पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और कैडेटों की उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करते हुए रैंक समारोह भी आयोजित किया गया। छात्रों के साथ बातचीत करते हुए एनसीसी के भविष्य की योजनाओं और अवसरों पर बहुमूल्य जानकारी साझा की। कार्यक्रम के दौरान आयोजित हथियार प्रदर्शन शो ने कई युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें भारतीय सेना के बेहतर ढंग से परिचित कराया गया ।
विभिन्न छात्र समूहों ने उद्यमिता, नवाचार और प्रदर्शन कला को प्रोत्साहित करने की दिशा में संस्थान के फोकस के बारे में जानकारी देते हुए उच्च ऊर्जा और जीवंत सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। एडीजी ने इनमें से प्रत्येक समूह के साथ बातचीत की और उत्कृष्ट अवधारणा, मानकों के लिए उनकी सराहना की। एडीजी मेजर जनरल विवेक त्यागी ने अपने वक्तव्य में कहा – “भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने लगातार एनसीसी के आदर्शों के प्रति असाधारण प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है। कैडेटों के उत्साह और समर्पण की सराहना करता हूं।”  ।मेजर जनरल विवेक त्यागी की यात्रा उत्साहजनक रही। उनका व्यवहार गर्मजोशीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण था, वह आगे आने वाले, मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं और कॉलेज के छात्रों के मामलों में बहुत रुचि दिखाते हैं , उन्होंने प्रदर्शन के हर पल का आनंद लिया और स्वयं सभी कैडेटों को रैंक प्रदान किया । भवानीपुर कॉलेज के युवा एन.सी.सी. के विद्यार्थियों को उनकी उपलब्धियों पर सम्मानित किया। उन्होंने हमारे जहाज और एयरो-मॉडलर के साथ भी बातचीत की।
इस कार्यक्रम का संयोजन छात्रों और  एनसीसी अधिकारियों  लेफ्टिनेंट आदित्य राज और अरित्रिका दुबे द्वारा किया गया  राष्ट्रीय गौरव पैदा करने का एक अनूठा कदम था, जिन्होंने इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ऐसा कॉलेज के रेक्टर और डीन छात्र मामलों के प्रो दिलीप – प्रोफेसर दिलीप शाह ने कहा।
राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) भारतीय छात्रों के बीच अनुशासन, देशभक्ति और नेतृत्व को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख युवा संगठन है। एनसीसी की उत्पत्ति का पता कोलकाता में स्थापित प्रारंभिक विश्वविद्यालय कैडेट कोर से लगाया जा सकता है और आज पश्चिम बंगाल और सिक्किम एनसीसी निदेशालय में एक लाख से अधिक कैडेट हैं, जबकि आगे विस्तार हो रहा है ।  डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि भवानीपुर कॉलेज की एन सी सी टीम एनसीसी दिवस समारोह मुख्य कार्यक्रम की ओर भी अग्रसर है। 24 नवंबर, जिसमें  सभी कैडेट और कर्मचारी हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए  एनसीसी के आदर्शों के लिए स्वयं को समर्पित करने के लिए संकल्पबद्ध हैं

नागार्जुन ने लॉन्च की गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की एनिमेटेड सीरीज

कोलकाता । दक्षिण भारतीय अभिनेता नागार्जुन ने ‘इफ्फी’ गोवा में मशहूर एनिमेटेड सीरीज ‘कृष’, ‘त्रिश’ और ‘बाल्टीबॉय: भारत हैं हम’ का सीजन 2 लॉन्च किया। यह सीरीज गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी को दिखाएगी। शो आकाशवाणी पर रेडियो सीरीज और स्पॉटिफाई पर पॉडकास्ट के रूप में भी उपलब्ध होगा।
इस वर्ष गोवा में आयोजित ‘इफ्फी 2024’ काफी खास है। भारत का 55वां अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव  कई सारी बेहतरीन फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ कई नई फिल्मों की घोषणा और लॉन्च का केंद्र भी बनेगा। इसी कड़ी में  दक्षिण भारतीय अभिनेता नागार्जुन ने भारत के गुमनाम या सबसे कम चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित एनिमेटेड सीरीज ‘कृष’, ‘त्रिश’ और ‘बाल्टीबॉय: भारत हैं हम’ के दूसरे सीजन को लॉन्च किया।
सुपरस्टार नागार्जुन ने इस कार्यक्रम में सूचना और प्रसारण सचिव संजय जाजू, प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी, सीबीसी के महानिदेशक योगेश बावेजा, शो के निर्माता मुंजाल श्रॉफ और ग्राफिटी स्टूडियो के तिलक शेट्टी, नेटफ्लिक्स इंडिया की पब्लिक पॉलिसी निदेशक महिमा कौल और प्राइम वीडियो की निदेशक और एसवीओडी प्रमुख शिलांगी मुखर्जी के साथ शिरकत की।
भारत के गुमनाम या सबसे कम चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित एनिमेटेड सीरीज के पहले सीजन ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। अब इसके दूसरे सीजन को भी लॉन्च कर दिया गया है। पहले सीजन की ही तरह दूसरा सीजन भी  दूरदर्शन, नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम वीडियो पर एक साथ प्रीमियर होगा। यह सीरीज हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, मराठी, गुजराती, बंगाली, असमिया और ओडिया सहित सात अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं – फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, रूसी, कोरियाई, चीनी और अरबी में उपलब्ध होगी। इस सीरीज को विश्वभर के 150 देशों के दर्शक देख सकेंगे।
सीजन 2 प्रसार भारती के नए लॉन्च किए गए ओटीटी प्लेटफॉर्म वेव्स पर उपलब्ध है। इस सीरीज में देश भर के गुमनाम नायकों  को सामने लाने की पहल है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश के ताजी देले और पोंगे देले, हिमाचल प्रदेश के वजीर राम सिंह पठानिया और झारखंड के बिरसा मुंडा शामिल हैं। इस अवसर पर नागार्जुन ने कहा, “मैं बहुत सारी पौराणिक कथाओं और श्री राम, लक्ष्मण, भरत, अर्जुन की कहानियों को देखकर बड़ा हुआ हूं, लेकिन हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां, जिन्होंने हमारे देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। नए शो भारत है हम के साथ, बच्चों और अगली पीढ़ी को हमारे नायकों के बारे में पता चलेगा।”
प्राइम वीडियो, भारत की निदेशक और प्रमुख – एसवीओडी शिलांगी मुखर्जी ने कहा, “हम 1 दिसंबर से प्राइम वीडियो पर ‘कृष’, ‘त्रिश’ और ‘बाल्टीबॉय: भारत हैं हम’ का नया सीजन शुरू करके बहुत खुश हैं। यह सीरीज भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई नायकों के अमूल्य योगदान को खूबसूरती से उजागर करती है, जिससे भारत और दुनिया भर के दर्शकों को हमारे समृद्ध इतिहास के बारे में और जानने का मौका मिलता है। ‘कृष’, ‘त्रिश’ और ‘बाल्टीबॉय: भारत हैं हम’ एक रेडियो श्रृंखला और एक पॉडकास्ट के रूप में भी उपलब्ध होंगे। ‘बाल्टीबॉय: भारत हैं हम’ ऑल इंडिया रेडियो पर होगा, जो पूरे भारत में 12 भाषाओं में प्रसारित होगा। प्रत्येक एपिसोड रविवार को सुबह 10:30 बजे सुना जा सकेगा।

एचपी घोष अस्पताल में रोबोटिक अशिष्ट स्पाइन सर्जरी की सुविधा

 कोलकाता । एचपी घोष अस्पताल ने पूर्वी भारत में स्पाइन केयर में  क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हुए ‘रोबोटिक सहायक स्पाइन सर्जरी’ प्रणाली का सफल लॉन्च कर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। इस कार्यक्रम में अग्रणी मेज़र-एक्स रोबोटिक सिस्टम का प्रदर्शन किया गया, जो सटीक स्पाइन सर्जरी में अत्याधुनिक पद्धति के साथ नए युग की शुरुआत है। इस कार्यक्रम में अत्याधुनिक चिकित्सा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए अस्पताल की  प्रतिबद्धता पर भी प्रकाश डाला गया।
इस कार्यक्रम में रोबोटिक- सहायक स्पाइन सर्जरी प्रणाली कोलकर इससे जुड़े विस्तृत प्रदर्शन को दिखाया गया, जो अत्याधुनिक तकनीक से बनी है। यह मुख्य रूप से उच्च सटीकता, बेहतर रोगी परिणामों और तेजी से रिकवरी सुनिश्चित करके स्पाइनल सर्जरी में क्रांति लाने के लिए डिज़ाइन की गई है।
एचपी घोष हॉस्पिटल और द स्पाइन फाउंडेशन के पेशेवर चिकित्सकों की विशेषज्ञ टीम है, जिसमें डॉ. सौम्यजीत बसु, एमबीबीएस, एमएस (ऑर्थोपेडिक्स), एफआरसीएस (एडिनबर्ग), डीएनबी (ऑर्थोपेडिक्स); डॉ. इंद्रजीत रॉय, एमबीबीएस, एमएस (जनरल सर्जरी), एमसीएच (न्यूरोसर्जरी); डॉ. त्रिनंजन सारंगी, एमबीबीएस, एमडी (एनेस्थिसियोलॉजी) के साथ एचपी घोष अस्पताल के सीईओ सोमनाथ भट्टाचार्य जैसे बेहद अनुभवी चिकित्सक शामिल हैं।  द स्पाइन फाउंडेशन के निदेशक और लीड स्पाइन सर्जन डॉ. सौम्यजीत बसु और एचपी घोष हॉस्पिटल के सीईओ सोमनाथ भट्टाचार्य ने कहा, “एचपी घोष हॉस्पिटल में रोबोटिक-असिस्टेड स्पाइन सर्जरी का सफल कार्यान्वयन हमारे लिए एक बेहद बड़ी उपलब्धि है।” यहां मरीजों की बेहतर देखभाल करना अस्पताल के सभी सदस्यों की अपने मरीजों के प्रति प्रमुख दायित्व है। हम यहां न केवल अत्याधुनिक तकनीक पेश कर रहे हैं, बल्कि पूर्वी भारत में रीढ़ की हड्डी की देखभाल में एक नया मानक भी स्थापित कर रहे हैं। मेज़र-एक्स रोबोटिक सिस्टम हमें अद्वितीय परिशुद्धता के साथ सर्जरी करने की अनुमति देता है, जिससे मरीजों के लिए सुरक्षित परिणाम सुनिश्चित होते हैं, खासकर जटिल मामलों में।  इस कार्यक्रम में रीढ़ की देखभाल के लिए अस्पताल की ओर से व्यापक दृष्टिकोण पर भी जोर दिया गया, जो नवीनतम रोबोटिक तकनीक के साथ-साथ डिजिटल एक्स-रे, 128-स्लाइस सीटी, उन्नत एमआरआई और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी जैसे उन्नत नैदानिक ​​​​उपकरणों को एकीकृत करता है। उन्नत माइक्रोस्कोप, एंडोस्कोप, नेविगेशन, हाई-स्पीड ड्रिल, सी-आर्म, ओ-आर्म, रोबोटिक और न्यूरोमॉनिटरिंग से सुसज्जित अपने 5 मॉड्यूलर ऑपरेटिंग थिएटरों के साथ, एचपी घोष अस्पताल स्पाइनल हेल्थकेयर में निरंतर सबसे आगे है।

प्रसार भारती ने लांच किया वेव्स ओटीटी प्लेटफॉर्म

नयी दिल्ली । प्रसार भारती, भारत के राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारणकर्ता ने गोवा में आयोजित भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में अपना नया ओटीटी प्लेटफॉर्म वेव्स लॉन्च किया। वेव्स का उद्घाटन गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, “यह भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। वेल्स ओटीटी पर उपलब्ध विविध प्रकार की सामग्री को देखकर खुशी हो रही है, जिसमें कई भाषाओं के साथ गोवा की भाषा कोंकणी में फिल्में और कंटेंट शामिल हैं।” सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव संजय जाजू ने लॉन्च के दौरान कहा कि वेव्स भारत सरकार के डिजिटल इंडिया विजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समग्र, समावेशी और विविध ओटीटी प्लेटफॉर्म डिजिटल मीडिया और मनोरंजन के बीच की खाई को पाटेगा, खासकर भारतनेट के सहयोग से भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ेगा। वेव्स एक व्यापक और समावेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म के रूप में सामने आया है, जो भारतीय संस्कृति को एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करता है। यह प्लेटफॉर्म 12 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, मराठी, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू, तमिल, गुजराती, पंजाबी, असमिया हैं। यह ऐप 10 से अधिक श्रेणियों में सामग्री प्रदान करता है, जिनमें इंफोटेनमेंट, वीडियो ऑन डिमांड, फ्री-टू-प्ले गेमिंग, रेडियो स्ट्रीमिंग, लाइव टीवी स्ट्रीमिंग, 65 लाइव चैनल, और कई ऐप इन ऐप इंटीग्रेशन शामिल हैं। इसके अलावा, यह प्लेटफॉर्म शैक्षिक सामग्री , ऑनलाइन शॉपिंग और वीडियो व गेमिंग भी प्रदान करता है। प्रसार भारती के अध्यक्ष नवनीत कुमार सेहगल ने कहा, “हम स्वस्थ पारिवारिक मनोरंजन और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

छठ के गीतों को परिवर्तन की आवाज बनाइए 

छठ महापर्व सिर्फ महापर्व नहीं बल्कि एक भावना है। अब वैश्विक हो चला यह पर्व प्रकृति के प्रति समर्पण और कृतज्ञता बोध की अभिव्यक्ति है। कृतज्ञता बोध उस प्रकृति के प्रति जिसने हमें जीवन दिया है, उर्जा के स्रोत उस सूर्य के प्रति जो धरती की उर्जा का आधार है । हर उस व्यक्ति के प्रति जो समाज को सुन्दर बनाने के लिए ताप सहता रहा, जलता रहा दीये की तरह आजीवन। जब दीये और सूर्य की बात होती है तो छठी मइया की बात होती है, छठ के गीतों की बात होती है और छठ के गीतों की बात होती है तो अनायास किवदंती गायिका शारदा सिन्हा की आवाज गूंज उठती है। एक समय था जब छठ पूजा को मात्र यूपी व बिहार का पर्व मानकर हिन्दीभाषियों के प्रति उपेक्षाभाव के कारण कमतर समझा जाता था । शारदा सिन्हा हमारी लोक संस्कृति के आकाश में ऐसे कठिन समय में सूर्य की तरह उभरीं और हमारी लोक संस्कृति की माला में हमारे लोकगीतों को गूंथकर ऐसा हार बना दिया जिसे आज हम गर्व से पहन रहे हैं । आजीवन सूर्य की तरह तपतीं रहीं और इस बार छठी मइया अपनी इस दुलारी बिटिया को साथ ही लेती गयीं । छठ के घाटों पर कोकिल कंठी शारदा जी के गीत गूंजते रहेंगे सदा सदा के लिए। वैसे यह समय है कि छठ के पारम्परिक गीतों को आधुनिकता और समानता के स्वर दिए जाएं क्योंकि समय बदल चुका है तो समाज को बदलना है और छठ के गीत परिवर्तन की आवाज बन सकते हैं…कम से कम उन चीजों को तो छोड़ ही सकते हैं जो सामाजिक विषमता का प्रतीक हैं और छठी मइया को यह अच्छा भी लगेगा क्योंकि मां अपने बच्चों में कोई भेद नहीं करतीं, ये हम हैं जो अपने स्वार्थ के लिए परम्परा को दूषित करते हैं। गायकों और गीतकारों की भूमिका बहुत बड़ी है । छठ के गीतों को परिवर्तन की आवाज बनाइए । शारदा सिन्हा जी को सादर नमन करते हुए शुभजिता के छठ विशेषांक का अर्घ्य छठी मइया के चरणों में हम रख रहे हैं….रउरा सभे के छठ पूजा के अनघा बधाई..।
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
सम्पादक, शुभजिता

लोक संस्कृति की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा

पहिले-पहिल हम कइनी छठी मईया व्रत तोहार, करिहा क्षमा छठी मईया भूल-चूक गलती हमार..। संपूर्ण मैथिली व भोजपुरी समाज के साथ-साथ देश की लोक गायिकी की समृद्ध कड़ी में लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, गहरा आघात है। छठ गीतों का स्वर रहीं शारदा सिन्हा का न रहना, उन करोड़ों छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं के लिए अपना स्वर खो देने जैसा अनुभव है, जो वर्षों से उनके छठ गीतों के अलावा किसी दूसरे गायक को नहीं सुना। बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से लेकर मुंबई, मॉरिशस, अमेरिका, लंदन और जहां-जहां बिहार व पूर्वांचल समुदाय के लोग पहुंचे, उन छठ घाटों पर शारदा सिन्हा के गीत गूंजते हैं।
शारदा सिन्हा न सिर्फ मैथिली व भोजपुरी बल्कि समूची संगीत बिरादरी की अमूल्य धरोहर थीं। उनका गायन सुन कर लगता था जैसे साक्षात सरस्वती कंठ में विराजमान हों। दुनिया से जाते वक्त भी उन्होंने अपने भीतर दैवीय शक्ति होने का एहसास करा गईं। छठ में उनका जाना इसका संकेत मान सकते हैं। अब वे सशरीर उपस्थित नहीं हैं लेकिन हर साल जब-जब छठ का त्योहार आएगा, शारदा सिन्हा के गीत उनकी मौजूदगी का अहसास कराएंगे। देशी और पांरपरिक लोक संस्कृति की मूर्ति शारदा सिन्हा सदैव लोगों के दिलों में रची-बसी रहेंगी। निश्चित रूप से स्वर कोकिला शारदा का यूं चले जाना गीत-संगीत की सुमधुर दुनिया को बड़ा आघात है।
संगीत की दुनिया में शारदा का न रहना, ‘कोयल बिना न सोभे बगिया’, जैसा माना जाएगा। उनका इस धरती पर अवतरण भी दैवीय चमत्कार जैसा रहा। आठ भाइयों के बाद वह जन्मीं। घर में सबकी लाडली-दुलारी थीं। माता-पिता ने बड़ी मन्नतें की थी कि उनके घर में लक्ष्मी का आगमन हो। शारदा सिन्हा के रूप में उनकी इच्छा पूरी हुई। 1 अक्टूबर 1952 को शारदा सिन्हा का जन्म हुआ। दो वर्षों के भीतर गायन के प्रति उनके रुझान का पता चलने लगा था। 15 वर्ष की उम्र पहुंचते-पहुंचते उनकी आवाज व्यापक स्तर पर लोगों ने पसंद करना शुरू कर दिया। हालांकि जब उनकी शादी हुई तो सास को यह कतई पसंद नहीं था कि उनकी बहू गाना-बाना गाएं। हालांकि भारी विरोध के बाद भी उन्होंने गायन यथावत रखा। जब देश-विदेश से प्रशंसाएं मिलने लगी, तो सास ने भी कह दिया- बहू, तुम अच्छा गाती हो, गाती रहो। शारदा सिन्हा के दो बच्चे हैं, जिनमें एक बेटा अंशुमन सिन्हा और एक बेटी वंदना। शारदा के पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन भी इसी वर्ष सितंबर में हुआ। उनके जाने के बाद से वह पूरी तरह टूट गई थीं।
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के जले सुपौल के हुलास गांव में हुआ था। विवाह बेगुसराय में हुआ। वह गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रहीं। बीएड की पढ़ाई के अलावा उन्होंने म्यूजिक स्ट्रीम में पीएचडी करके समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर बनीं। पर, उनकी रुचि सदैव गायिकी में ही रही। कॉलेज से रिटायर होने के बाद उन्होंने संगीत की फ्री शिक्षा देना जारी रखा।
अस्सी-नब्बे के दशक का वह दौर, जब उनके भजन और फिल्मी गानों का बोलबाला था। सलमान खान और भाग्यश्री अभिनीत फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में गाया गाना ….‘कहे तोसे ये तोहरी सजनिया’ ….इतना फेमस हुआ कि उन्हें रातोंरात बड़ा फिल्मी सिंगर बना दिया। उनके फिल्मी गानों की डिमांड बढ़ गई। शारदा सिन्हा को राजनीति के ऑफर भी बहुतेरे मिले। लेकिन शारदा सभी ऑफरों को विनम्रता से ठुकराती गईं। कई मर्तबा उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा भी कि उन्हें राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं। समाज ने उन्हें छठ कोकिला की उपाधि दे रखी थी जिसे वह ताउम्र सबसे बड़ा सम्मान मानती रहीं।
छठ गीतों के अलावा भी उन्होंने विभिन्न भाषाओं में एक से एक हिट गाने दिए। देश के सर्वोच्च सम्मान से भी उन्हें केंद्र सरकार ने नवाजा। उनके न रहने से एक युग का अंत हुआ है। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उनकी मीठी, मधुर, सुरीली आवाज श्रोताओं के कानों में सदा गूंजेगी।
(साभार – हिन्दुस्तान समाचार पर प्रकाशित डॉ. रमेश ठाकुर का आलेख)

छठ पूजा विशेष : प्रकृति के प्रति कृतज्ञताबोध का महापर्व है छठ

भारत त्योहारों का देश है। इन त्योहारों के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक निहितार्थ हैं। हिमालय से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक भारत की अपार जैव विविधता में सैकड़ों अलग-अलग समुदाय, जनजातियाँ, संस्कृतियाँ और परंपराएँ हैं, जिनमें अलग-अलग अवसरों, देवताओं और प्राकृतिक घटनाओं का जश्न मनाने वाले सैकड़ों त्योहार हैं। पूरे देश में फसल उत्सवों की एक श्रृंखला है। ये त्यौहार मनुष्यों को प्रकृति के साथ अपने संबंध और एकता का एहसास कराते हैं।
छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जो नेपाल के दक्षिणी क्षेत्र, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। दुनिया भर में इन समुदायों के प्रवासी अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए छठ मनाते हैं। सूर्य (सौर देवता) मानव इतिहास में विश्व भर में मनुष्यों द्वारा पूजी जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक शक्तियों में से एक है। एकेश्वरवाद और अन्य धार्मिक प्रथाओं द्वारा देवताओं के विभिन्न रूपों के विनाश ने सूर्य पूजा को समाप्त कर दिया है। हालाँकि, पूर्वी भारत जैसे कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूर्य पूजा बची हुई है।
सूर्य एक और प्रमुख वैदिक देवता हैं (सरस्वती और विष्णु के अलावा) जिनकी पूजा भारत में प्रागैतिहासिक काल से की जाती है। बिहार की छठ पूजा प्राचीन वैदिक परंपराओं में उसी सूर्य की जीवंत पूजा है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, यह हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने की शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। षष्ठी का अर्थ है छठी या छठ इसलिए इसे छठ पूजा कहा जाता है और जिस देवी की पूजा की जाती है उसे छठ मैया कहा जाता है। यह त्योहार सौर देवता सूर्य और षष्ठी देवी को समर्पित है, जिन्हें छठी मैया भी कहा जाता है)।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति के विभिन्न पहलुओं जैसे सूर्य, चंद्रमा, जल, नदी और पेड़ों की पूजा की जाती है, ताकि मनुष्य अपनी जड़ों से जुड़ा रहे। छठ पूजा इसी संस्कृति का प्रतीक है। यह त्यौहार छठी मैया (षष्ठी माता) और भगवान सूर्य के साथ-साथ उनकी पत्नियाँ उषा (भोर की देवी) और प्रत्यूषा (शाम की देवी) वैदिक पूजा के लिए समर्पित है। हिंदू संस्कृति में, पत्नी को अपने पति की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना जाता है। और इसलिए सूर्य की शक्तियाँ उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा के कारण हैं। छठ के दौरान सुबह सूर्य की पहली किरण (उषा) और शाम को अंतिम किरण (प्रत्यूषा) की पूजा की जाती है ताकि आभार व्यक्त किया जा सके और परिवार के लिए आशीर्वाद मांगा जा सके।
लोकप्रिय धारणा के विपरीत छठ पूजा एक लिंग-निरपेक्ष त्योहार है और पुरुष और महिला दोनों ही उपवास और अनुष्ठान कर सकते हैं। कहा जाता है कि यह त्योहार वैदिक काल से मनाया जाता रहा है। इस त्यौहार के बारे में कई किंवदंतियाँ और गाथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि वैदिक युग के ऋषियों ने विस्तृत पूजा की और सूर्य से जीवन शक्ति प्राप्त करने के लिए शाम और भोर के समय खुद को सीधे सूर्य के प्रकाश में उजागर किया। ऋग्वेद और महाभारत में सूर्य देव की प्रशंसा करते हुए और छठ पूजा जैसी ही रीति-रिवाजों का वर्णन करते हुए श्लोक मौजूद हैं।
छठ पूजा से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा भगवान राम से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब राम और सीता अयोध्या वापस आए तो उन्होंने उपवास किया और छठ पूजा अनुष्ठान किया और अपने कुल देवता सूर्य देव की पूजा की। महाभारत में उल्लेख है कि पांचाली द्रौपदी और पांडवों ने ऋषि धौम्य की सलाह पर छठ पूजा का अनुष्ठान किया था। इससे अंततः पांडवों को अपना राज्य वापस मिल गया और अन्य मुद्दे भी सुलझ गए। छठ पूजा को सबसे ज़्यादा पर्यावरण से जुड़े त्यौहारों में से एक माना जाता है। यह 4 दिनों का त्यौहार है जिसमें प्रकृति, स्थानीय अर्थव्यवस्था, खरीफ की फ़सल और जीवन की विविधता और पोषण में प्रकृति के योगदान के लिए उसे धन्यवाद देने की भावना शामिल है।
पहला दिन: नहाय-खाय: लोग तालाब, नदी, झील जैसे जल निकायों में स्नान करते हैं। वे पानी को घर लाते हैं और फिर उससे प्रसाद पकाते हैं। व्रती (जो व्रत कर रहा है) इस दिन ऐसा भोजन ग्रहण करता है जो बिना किसी मिलावट के तैयार किया जाता है और जब यह तैयार हो जाता है, तो सबसे पहले व्रती और फिर परिवार के अन्य सदस्य खाते हैं।
दूसरा दिन: खरना: लोग नई कटी हुई धान और गन्ने से खीर बनाते हैं। व्रती सूर्यास्त से पहले कुछ भी नहीं खाते, यहाँ तक कि पानी की एक बूँद भी नहीं पीते। पूरा दिन त्यौहार की तैयारी में बीतता है। शाम को व्रती रसियाओ-खीर (गुड़, चावल और दूध से बनी एक तरह की मीठी डिश) और चपाती नामक विशेष प्रसाद तैयार करते हैं। व्रती छठी मैया की पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं। पूजा के बाद व्रती प्रसाद खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं और बाद में इसे परिवार और दोस्तों में बाँटते हैं। खरना की आधी रात को ठेकुआ- छठी मैया के लिए एक विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।
तीसरा दिन: प्रत्यूषा के साथ सूर्य की पूजा – इसे संध्या अर्घ्य (शाम का प्रसाद) भी कहा जाता है। दिन के समय, बांस की डंडियों से बनी एक टोकरी जिसे दउरा कहते हैं, तैयार की जाती है और उसमें ठेकुआ और मौसमी फलों सहित सभी प्रसाद रखे जाते हैं। शाम को व्रती और परिवार के सदस्य पूजा के लिए नदी या किसी अन्य जल निकाय के किनारे इकट्ठा होते हैं। व्रती डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। लोकगीत गाए जाते हैं और शाम को जब सूरज ढल रहा होता है, व्रती संध्या अर्घ्य देते हैं, सूर्य देव की पूजा करते हैं और फिर घर वापस आ जाते हैं।
चौथा दिन: उषा के साथ सूर्य की पूजा – इसे उषा अर्घ्य (सुबह का अर्घ्य) या भोरवा घाट भी कहा जाता है। सुबह-सुबह व्रती और परिवार के सदस्य फिर से जलाशय के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्योदय तक बैठते हैं। सुबह का अर्घ्य सूर्य के उगने के बाद सौरी में रखे अर्घ्य के साथ पानी में जाकर दिया जाता है। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती एक-दूसरे को प्रसाद बांटते हैं और घाट पर मौजूद बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। फिर वे घर लौट आते हैं।
व्रती अदरक और पानी पीकर अपना 36 घंटे का उपवास तोड़ते हैं। उसके बाद भोजन तैयार किया जाता है और व्रती को खाने के लिए दिया जाता है जिसे पारण या परना कहते हैं। इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है।
शुद्धता, अनुष्ठानिक स्नान, किसी भी बाधा को पार करते हुए परिवारों और समुदायों को एक साथ लाना, व्रत, नदियों और मोहल्लों की सफाई तथा भारी उपभोग मांग पैदा करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देना छठ के मुख्य घटक हैं जो इसे बिहार और पड़ोसी क्षेत्रों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार बनाते हैं।
इसी वजह से छठ महापर्व मे महिलाओं की भागीदारी ज्यादा होती है। लेकिन किसी शास्त्र या ग्रंथ में ये उल्लेख नहीं है कि पुरुष छठ का व्रत नहीं कर सकते हैं। ये निर्जला उपवास पुरुष भी रख सकते हैं।
क्या कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं छठ पूजा? – पुरुषों के अलावा कुंवारी कन्याएं भी छठ का व्रत कर सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कुंवारी कन्याएं छठ की पूजा करती हैं, तो उन्हें छठी मैया और सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। देवी-देवताओं के आशीर्वाद से उन्हें योग्य वर मिलता है। साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि, खुशलाही और धन का वास रहता है।

छठ पूजा पर 12 हजार करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान : कैट

आस्‍था का पर्व छठ पूजा के चार दिवसीय छठ पूजा के दौरान बिहार एवं झारखंड के अलावा देश के अन्य राज्यों में बसे पूर्वांचल के लोग बेहद उत्साह एवं उमंग के साथ छठ पूजा करने को तैयार हैं। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में लगभग 15 करोड़ से अधिक लोग इसमें शामिल होंगे जिससे 12 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है। कन्‍फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री और दिल्ली की चांदनी चौक से भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि इस वर्ष छठ पूजा 96 घंटे (4 दिनों) में देशभर में करीब 12 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है। खंडेलवाल ने कहा कि कपड़े, फल, फूल, सब्जी, साड़ियों एवं मिट्टी के चूल्हे सहित छोटे उत्पादों के व्यापार में बड़ा उछाल देखा जा रहा है। उन्‍होंने बताया कि एक अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 15 करोड़ से अधिक लोग छठ पूजा में शामिल होंगे, जिनमें स्त्री, पुरुष युवा के अलावा बच्चे शामिल हैं। खंडेलवाल ने कहा कि “छठ पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है, जो सामाजिक एकता और समर्पण का प्रतीक है। इससे व्यापार और स्थानीय उत्पादकों को भी सीधा लाभ पहुंचता है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को और मजबूत करेगा। छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल होने वाले अधिकांश उत्पाद बड़े पैमाने पर स्थानीय कारीगरों और हस्तशिल्पियों द्वारा बनाये जाते हैं जिससे उन्हें रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए हैं। सांसद खंडेलवाल ने कहा कि छठ पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, जैसे बांस के सूप, केले के पत्ते, गन्ना, मिठाई, फल विशेष रूप से नारियल, सेब, केला और हरी सब्जियां शामिल है। छठ पूजा के अवसर पर महिलाओं के पारंपरिक परिधानों, जैसे साड़ी, लहंगा-चुन्नी, सलवार कुर्ता और पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा, धोती आदि की बड़ी खरीददारी हुई है, जिससे स्थानीय व्यापारियों को लाभ हुआ है और लघु एवं कुटीर उद्योग को भी बल मिला है। वहीं, घरों में छोटे पैमाने पर बनाये जाने वाले सामान की बड़ी बिक्री हो रही है।

रतन टाटा : एक युग, एक प्रेरणा

भारत के इतिहास में जब भी प्रेरणा की बात होगी तो रतन टाटा ऐसे व्यक्तित्व रहेंगे जो हम सबकी प्रेरणा रहेंगे । जिस उद्योग जगत को स्वार्थपरता के लिए अक्सर कठघरे में खड़ा किया जाता है, वहीं टाटा समूह और रतन टाटा ने समाज सेवा और व्यावसायिक चेतना को इस तरह जोड़ा कि वह कहीं अधिक संवेदनशील बना । दरअसल, टाटा नाम हम भारतीयों के जीवहै न का एक अनिवार्य अंग है।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ। टाटा समूह में 1962 में शामिल होकर उन्होंने 1991 में नेतृत्व संभाला। उन्होंने नैनो कार और जगुआर-लैंड रोवर जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम किया। समाज सेवा में भी उनका योगदान अद्वितीय रहा। 9 अक्टूबर 2024 को उनका निधन हुआ। उनकी प्रेरणादायक यात्रा आज भी जीवित है।
28 दिसंबर 1937 की शाम, मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ। उस बच्चे का नाम था रतन नवरोज़ टाटा। रतन का परिवार भारतीय उद्योग के पितामह, जमशेदजी टाटा से जुड़ा हुआ था। उनके दादा ने भारतीय उद्योग की नींव रखी और अपने समय में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की। रतन को बचपन से ही अपने दादा के कार्यों का प्रभाव महसूस हुआ। उन्होंने अपने दादा की कहानियों को सुना और हमेशा यही सोचा कि क्या वह भी एक दिन उनके पदचिन्हों पर चल सकेंगे।
रतन की मां सोनू टाटा और पिता नवरोज़ टाटा ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया कि वे शिक्षा पर ध्यान दें। रतन की शिक्षा मुंबई में हुई और वह एक बुद्धिमान और मेहनती छात्र बने। हालांकि, उनकी जिंदगी में कठिनाइयां भी थीं। जब रतन केवल 10 साल के थे, उनके माता-पिता का तलाक हो गया। यह एक कठिन समय था, लेकिन इसने रतन को और मजबूत बना दिया। वह अपनी दादी के पास रहने लगे, जो उन्हें जीवन के मूल्यों और संघर्षों के बारे में सिखाती थीं।
रतन ने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जहां उन्होंने आर्किटेक्चर और मैनेजमेंट की पढ़ाई की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक व्यापक दृष्टिकोण दिया, लेकिन उन्हें अपने देश से दूर रहने का गहरा अहसास भी हुआ। अमेरिका में पढ़ाई करते समय उन्होंने अपने दादा की बातें याद कीं, ‘यदि आप अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं, तो आपको कड़ी मेहनत करनी होगी।’
1962 में, रतन ने टाटा समूह में एक कर्मचारी के रूप में काम करना शुरू किया। शुरुआत में उन्हें कई बार दूसरों ने नजरअंदाज किया और यह साबित करना पड़ा कि वह एक योग्य लीडर हैं। उन्होंने सबसे पहले एक छोटे से प्रॉजेक्ट पर काम किया, लेकिन जल्दी ही उनकी प्रतिभा का लोहा मान लिया गया।
नेतृत्व का सफर – 1991 में, रतन टाटा ने टाटा समूह का नेतृत्व संभाला। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिनमें से एक था टाटा नैनो का उत्पादन। यह दुनिया की सबसे सस्ती कार बनने का सपना था। रतन ने नैनो को बाजार में उतारने के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन जब उसकी बिक्री उम्मीद के मुताबिक नहीं हुई, तो उन्हें भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। इस समय रतन का दिल टूट गया। उन्होंने सोचा, ‘क्या मैंने गलत निर्णय लिया?’ लेकिन उनकी दादी की बातें उनके दिमाग में गूंजने लगीं, ‘हर कठिनाई में एक अवसर होता है।’
रतन ने अपने अनुभवों से सीखा और नये दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया। उन्होंने न केवल नैनो की रणनीति में बदलाव किया, बल्कि अपनी टीम को भी प्रेरित किया कि वे नए विचारों के साथ आगे बढ़ें। यह उनकी क्षमता का परिचायक था कि उन्होंने न केवल एक असफलता को सफल बनाया, बल्कि अपने इरादों में दृढ़ता भी दिखाई।
वैश्विक पहचान – रतन टाटा ने न केवल टाटा नैनो को फिर से सफल बनाया, बल्कि उन्होंने कई अन्य महत्वपूर्ण अधिग्रहण भी किए। उन्होंने जगुआर और लैंड रोवर को खरीदकर टाटा समूह को वैश्विक पहचान दिलाई। इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया मानक स्थापित किया। उनके इस कदम ने भारतीय उद्योग को एक नई दिशा दी और टाटा समूह को एक शक्तिशाली ब्रैंड बना दिया।
रतन की सफलता की कहानी केवल व्यवसाय तक सीमित नहीं थी। उन्होंने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाईं। उनका मानना था, ‘सफलता का असली अर्थ है दूसरों की भलाई में योगदान करना।’ उन्होंने कहा, ‘हमेशा याद रखें कि असली उद्यमिता वही है जो समाज को बदलने के लिए काम करे।’
समाज सेवा और प्रभाव – रतन टाटा ने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया। उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने और गरीबों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं बनाई। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने कई अस्पतालों की स्थापना की और कई शिक्षण संस्थानों की मदद की।
उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘मैं अपने देश के लिए एक सपना देखता हूं, जहां हर व्यक्ति को अपने अधिकार मिलें।’ उन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए युवाओं को प्रेरित किया कि वे अपने सपनों के पीछे दौड़ें और समाज के उत्थान के लिए कार्य करें।
9 अक्टूबर 2024 को, रतन टाटा का निधन मुंबई में हुआ। उनका जाना केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत था। उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके दृष्टिकोण ने उन्हें एक महान नेता बना दिया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि असली सफलता का मतलब सिर्फ व्यवसाय में सफल होना नहीं है, बल्कि समाज की सेवा करना भी है।
उनकी प्रेरणादायक यात्रा हमें यह याद दिलाती है कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें और कभी हार न मानें, तो चांद की तरह चमकना संभव है। रतन टाटा की जीवनगाथा यह साबित करती है कि सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष करना ही असली सफलता है। उन्होंने अपने जीवन में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे हमें प्रेरित करती रहेंगी। उनकी कहानी हर युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी, यह दिखाते हुए कि कठिनाईयों के बावजूद, अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो आप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
रतन टाटा की विरासत आज भी जीवित है। उनके विचार और कार्य हमें सिखाते हैं कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हमें हमेशा एक कदम आगे बढ़ना चाहिए। उनका नाम न केवल भारतीय उद्योग में बल्कि पूरे विश्व में सम्मान के साथ लिया जाएगा। उन्होंने अपने जीवन में जो आदर्श स्थापित किए, वे हमें हमेशा प्रेरित करेंगे कि हम अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहें और दूसरों की भलाई के लिए काम करें। असली नेतृत्व वही है, जो दूसरों के उत्थान के लिए किया जाए। रतन टाटा ने साबित किया कि अगर दिल में सच्ची मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

छठ पूजा विशेष : छठी मइया के गीत

जय छठी मईया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
……………………
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल 
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके
हो करेलु छठ बरतिया से झांके ऊंके
हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी
हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके
अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरितिया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरितिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी उनके लागी
हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी उनके लागी
हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी
नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके
नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके
हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके
हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी
हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
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