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प्रसार भारती ने लांच किया वेव्स ओटीटी प्लेटफॉर्म
नयी दिल्ली । प्रसार भारती, भारत के राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारणकर्ता ने गोवा में आयोजित भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में अपना नया ओटीटी प्लेटफॉर्म वेव्स लॉन्च किया। वेव्स का उद्घाटन गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, “यह भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। वेल्स ओटीटी पर उपलब्ध विविध प्रकार की सामग्री को देखकर खुशी हो रही है, जिसमें कई भाषाओं के साथ गोवा की भाषा कोंकणी में फिल्में और कंटेंट शामिल हैं।” सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव संजय जाजू ने लॉन्च के दौरान कहा कि वेव्स भारत सरकार के डिजिटल इंडिया विजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समग्र, समावेशी और विविध ओटीटी प्लेटफॉर्म डिजिटल मीडिया और मनोरंजन के बीच की खाई को पाटेगा, खासकर भारतनेट के सहयोग से भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ेगा। वेव्स एक व्यापक और समावेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म के रूप में सामने आया है, जो भारतीय संस्कृति को एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करता है। यह प्लेटफॉर्म 12 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, मराठी, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू, तमिल, गुजराती, पंजाबी, असमिया हैं। यह ऐप 10 से अधिक श्रेणियों में सामग्री प्रदान करता है, जिनमें इंफोटेनमेंट, वीडियो ऑन डिमांड, फ्री-टू-प्ले गेमिंग, रेडियो स्ट्रीमिंग, लाइव टीवी स्ट्रीमिंग, 65 लाइव चैनल, और कई ऐप इन ऐप इंटीग्रेशन शामिल हैं। इसके अलावा, यह प्लेटफॉर्म शैक्षिक सामग्री , ऑनलाइन शॉपिंग और वीडियो व गेमिंग भी प्रदान करता है। प्रसार भारती के अध्यक्ष नवनीत कुमार सेहगल ने कहा, “हम स्वस्थ पारिवारिक मनोरंजन और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
छठ के गीतों को परिवर्तन की आवाज बनाइए
लोक संस्कृति की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा
छठ पूजा विशेष : प्रकृति के प्रति कृतज्ञताबोध का महापर्व है छठ
भारत त्योहारों का देश है। इन त्योहारों के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक निहितार्थ हैं। हिमालय से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक भारत की अपार जैव विविधता में सैकड़ों अलग-अलग समुदाय, जनजातियाँ, संस्कृतियाँ और परंपराएँ हैं, जिनमें अलग-अलग अवसरों, देवताओं और प्राकृतिक घटनाओं का जश्न मनाने वाले सैकड़ों त्योहार हैं। पूरे देश में फसल उत्सवों की एक श्रृंखला है। ये त्यौहार मनुष्यों को प्रकृति के साथ अपने संबंध और एकता का एहसास कराते हैं।
छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जो नेपाल के दक्षिणी क्षेत्र, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। दुनिया भर में इन समुदायों के प्रवासी अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए छठ मनाते हैं। सूर्य (सौर देवता) मानव इतिहास में विश्व भर में मनुष्यों द्वारा पूजी जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक शक्तियों में से एक है। एकेश्वरवाद और अन्य धार्मिक प्रथाओं द्वारा देवताओं के विभिन्न रूपों के विनाश ने सूर्य पूजा को समाप्त कर दिया है। हालाँकि, पूर्वी भारत जैसे कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूर्य पूजा बची हुई है।
सूर्य एक और प्रमुख वैदिक देवता हैं (सरस्वती और विष्णु के अलावा) जिनकी पूजा भारत में प्रागैतिहासिक काल से की जाती है। बिहार की छठ पूजा प्राचीन वैदिक परंपराओं में उसी सूर्य की जीवंत पूजा है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, यह हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने की शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। षष्ठी का अर्थ है छठी या छठ इसलिए इसे छठ पूजा कहा जाता है और जिस देवी की पूजा की जाती है उसे छठ मैया कहा जाता है। यह त्योहार सौर देवता सूर्य और षष्ठी देवी को समर्पित है, जिन्हें छठी मैया भी कहा जाता है)।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति के विभिन्न पहलुओं जैसे सूर्य, चंद्रमा, जल, नदी और पेड़ों की पूजा की जाती है, ताकि मनुष्य अपनी जड़ों से जुड़ा रहे। छठ पूजा इसी संस्कृति का प्रतीक है। यह त्यौहार छठी मैया (षष्ठी माता) और भगवान सूर्य के साथ-साथ उनकी पत्नियाँ उषा (भोर की देवी) और प्रत्यूषा (शाम की देवी) वैदिक पूजा के लिए समर्पित है। हिंदू संस्कृति में, पत्नी को अपने पति की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना जाता है। और इसलिए सूर्य की शक्तियाँ उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा के कारण हैं। छठ के दौरान सुबह सूर्य की पहली किरण (उषा) और शाम को अंतिम किरण (प्रत्यूषा) की पूजा की जाती है ताकि आभार व्यक्त किया जा सके और परिवार के लिए आशीर्वाद मांगा जा सके।
लोकप्रिय धारणा के विपरीत छठ पूजा एक लिंग-निरपेक्ष त्योहार है और पुरुष और महिला दोनों ही उपवास और अनुष्ठान कर सकते हैं। कहा जाता है कि यह त्योहार वैदिक काल से मनाया जाता रहा है। इस त्यौहार के बारे में कई किंवदंतियाँ और गाथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि वैदिक युग के ऋषियों ने विस्तृत पूजा की और सूर्य से जीवन शक्ति प्राप्त करने के लिए शाम और भोर के समय खुद को सीधे सूर्य के प्रकाश में उजागर किया। ऋग्वेद और महाभारत में सूर्य देव की प्रशंसा करते हुए और छठ पूजा जैसी ही रीति-रिवाजों का वर्णन करते हुए श्लोक मौजूद हैं।
छठ पूजा से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा भगवान राम से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब राम और सीता अयोध्या वापस आए तो उन्होंने उपवास किया और छठ पूजा अनुष्ठान किया और अपने कुल देवता सूर्य देव की पूजा की। महाभारत में उल्लेख है कि पांचाली द्रौपदी और पांडवों ने ऋषि धौम्य की सलाह पर छठ पूजा का अनुष्ठान किया था। इससे अंततः पांडवों को अपना राज्य वापस मिल गया और अन्य मुद्दे भी सुलझ गए। छठ पूजा को सबसे ज़्यादा पर्यावरण से जुड़े त्यौहारों में से एक माना जाता है। यह 4 दिनों का त्यौहार है जिसमें प्रकृति, स्थानीय अर्थव्यवस्था, खरीफ की फ़सल और जीवन की विविधता और पोषण में प्रकृति के योगदान के लिए उसे धन्यवाद देने की भावना शामिल है।
पहला दिन: नहाय-खाय: लोग तालाब, नदी, झील जैसे जल निकायों में स्नान करते हैं। वे पानी को घर लाते हैं और फिर उससे प्रसाद पकाते हैं। व्रती (जो व्रत कर रहा है) इस दिन ऐसा भोजन ग्रहण करता है जो बिना किसी मिलावट के तैयार किया जाता है और जब यह तैयार हो जाता है, तो सबसे पहले व्रती और फिर परिवार के अन्य सदस्य खाते हैं।
दूसरा दिन: खरना: लोग नई कटी हुई धान और गन्ने से खीर बनाते हैं। व्रती सूर्यास्त से पहले कुछ भी नहीं खाते, यहाँ तक कि पानी की एक बूँद भी नहीं पीते। पूरा दिन त्यौहार की तैयारी में बीतता है। शाम को व्रती रसियाओ-खीर (गुड़, चावल और दूध से बनी एक तरह की मीठी डिश) और चपाती नामक विशेष प्रसाद तैयार करते हैं। व्रती छठी मैया की पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं। पूजा के बाद व्रती प्रसाद खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं और बाद में इसे परिवार और दोस्तों में बाँटते हैं। खरना की आधी रात को ठेकुआ- छठी मैया के लिए एक विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।
तीसरा दिन: प्रत्यूषा के साथ सूर्य की पूजा – इसे संध्या अर्घ्य (शाम का प्रसाद) भी कहा जाता है। दिन के समय, बांस की डंडियों से बनी एक टोकरी जिसे दउरा कहते हैं, तैयार की जाती है और उसमें ठेकुआ और मौसमी फलों सहित सभी प्रसाद रखे जाते हैं। शाम को व्रती और परिवार के सदस्य पूजा के लिए नदी या किसी अन्य जल निकाय के किनारे इकट्ठा होते हैं। व्रती डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। लोकगीत गाए जाते हैं और शाम को जब सूरज ढल रहा होता है, व्रती संध्या अर्घ्य देते हैं, सूर्य देव की पूजा करते हैं और फिर घर वापस आ जाते हैं।
चौथा दिन: उषा के साथ सूर्य की पूजा – इसे उषा अर्घ्य (सुबह का अर्घ्य) या भोरवा घाट भी कहा जाता है। सुबह-सुबह व्रती और परिवार के सदस्य फिर से जलाशय के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्योदय तक बैठते हैं। सुबह का अर्घ्य सूर्य के उगने के बाद सौरी में रखे अर्घ्य के साथ पानी में जाकर दिया जाता है। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती एक-दूसरे को प्रसाद बांटते हैं और घाट पर मौजूद बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। फिर वे घर लौट आते हैं।
व्रती अदरक और पानी पीकर अपना 36 घंटे का उपवास तोड़ते हैं। उसके बाद भोजन तैयार किया जाता है और व्रती को खाने के लिए दिया जाता है जिसे पारण या परना कहते हैं। इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है।
शुद्धता, अनुष्ठानिक स्नान, किसी भी बाधा को पार करते हुए परिवारों और समुदायों को एक साथ लाना, व्रत, नदियों और मोहल्लों की सफाई तथा भारी उपभोग मांग पैदा करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देना छठ के मुख्य घटक हैं जो इसे बिहार और पड़ोसी क्षेत्रों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार बनाते हैं।
इसी वजह से छठ महापर्व मे महिलाओं की भागीदारी ज्यादा होती है। लेकिन किसी शास्त्र या ग्रंथ में ये उल्लेख नहीं है कि पुरुष छठ का व्रत नहीं कर सकते हैं। ये निर्जला उपवास पुरुष भी रख सकते हैं।
क्या कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं छठ पूजा? – पुरुषों के अलावा कुंवारी कन्याएं भी छठ का व्रत कर सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कुंवारी कन्याएं छठ की पूजा करती हैं, तो उन्हें छठी मैया और सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। देवी-देवताओं के आशीर्वाद से उन्हें योग्य वर मिलता है। साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि, खुशलाही और धन का वास रहता है।
छठ पूजा पर 12 हजार करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान : कैट
आस्था का पर्व छठ पूजा के चार दिवसीय छठ पूजा के दौरान बिहार एवं झारखंड के अलावा देश के अन्य राज्यों में बसे पूर्वांचल के लोग बेहद उत्साह एवं उमंग के साथ छठ पूजा करने को तैयार हैं। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में लगभग 15 करोड़ से अधिक लोग इसमें शामिल होंगे जिससे 12 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री और दिल्ली की चांदनी चौक से भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि इस वर्ष छठ पूजा 96 घंटे (4 दिनों) में देशभर में करीब 12 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है। खंडेलवाल ने कहा कि कपड़े, फल, फूल, सब्जी, साड़ियों एवं मिट्टी के चूल्हे सहित छोटे उत्पादों के व्यापार में बड़ा उछाल देखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि एक अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 15 करोड़ से अधिक लोग छठ पूजा में शामिल होंगे, जिनमें स्त्री, पुरुष युवा के अलावा बच्चे शामिल हैं। खंडेलवाल ने कहा कि “छठ पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है, जो सामाजिक एकता और समर्पण का प्रतीक है। इससे व्यापार और स्थानीय उत्पादकों को भी सीधा लाभ पहुंचता है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को और मजबूत करेगा। छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल होने वाले अधिकांश उत्पाद बड़े पैमाने पर स्थानीय कारीगरों और हस्तशिल्पियों द्वारा बनाये जाते हैं जिससे उन्हें रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए हैं। सांसद खंडेलवाल ने कहा कि छठ पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, जैसे बांस के सूप, केले के पत्ते, गन्ना, मिठाई, फल विशेष रूप से नारियल, सेब, केला और हरी सब्जियां शामिल है। छठ पूजा के अवसर पर महिलाओं के पारंपरिक परिधानों, जैसे साड़ी, लहंगा-चुन्नी, सलवार कुर्ता और पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा, धोती आदि की बड़ी खरीददारी हुई है, जिससे स्थानीय व्यापारियों को लाभ हुआ है और लघु एवं कुटीर उद्योग को भी बल मिला है। वहीं, घरों में छोटे पैमाने पर बनाये जाने वाले सामान की बड़ी बिक्री हो रही है।
रतन टाटा : एक युग, एक प्रेरणा
भारत के इतिहास में जब भी प्रेरणा की बात होगी तो रतन टाटा ऐसे व्यक्तित्व रहेंगे जो हम सबकी प्रेरणा रहेंगे । जिस उद्योग जगत को स्वार्थपरता के लिए अक्सर कठघरे में खड़ा किया जाता है, वहीं टाटा समूह और रतन टाटा ने समाज सेवा और व्यावसायिक चेतना को इस तरह जोड़ा कि वह कहीं अधिक संवेदनशील बना । दरअसल, टाटा नाम हम भारतीयों के जीवहै न का एक अनिवार्य अंग है।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ। टाटा समूह में 1962 में शामिल होकर उन्होंने 1991 में नेतृत्व संभाला। उन्होंने नैनो कार और जगुआर-लैंड रोवर जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम किया। समाज सेवा में भी उनका योगदान अद्वितीय रहा। 9 अक्टूबर 2024 को उनका निधन हुआ। उनकी प्रेरणादायक यात्रा आज भी जीवित है।
28 दिसंबर 1937 की शाम, मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ। उस बच्चे का नाम था रतन नवरोज़ टाटा। रतन का परिवार भारतीय उद्योग के पितामह, जमशेदजी टाटा से जुड़ा हुआ था। उनके दादा ने भारतीय उद्योग की नींव रखी और अपने समय में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की। रतन को बचपन से ही अपने दादा के कार्यों का प्रभाव महसूस हुआ। उन्होंने अपने दादा की कहानियों को सुना और हमेशा यही सोचा कि क्या वह भी एक दिन उनके पदचिन्हों पर चल सकेंगे।
रतन की मां सोनू टाटा और पिता नवरोज़ टाटा ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया कि वे शिक्षा पर ध्यान दें। रतन की शिक्षा मुंबई में हुई और वह एक बुद्धिमान और मेहनती छात्र बने। हालांकि, उनकी जिंदगी में कठिनाइयां भी थीं। जब रतन केवल 10 साल के थे, उनके माता-पिता का तलाक हो गया। यह एक कठिन समय था, लेकिन इसने रतन को और मजबूत बना दिया। वह अपनी दादी के पास रहने लगे, जो उन्हें जीवन के मूल्यों और संघर्षों के बारे में सिखाती थीं।
रतन ने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जहां उन्होंने आर्किटेक्चर और मैनेजमेंट की पढ़ाई की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक व्यापक दृष्टिकोण दिया, लेकिन उन्हें अपने देश से दूर रहने का गहरा अहसास भी हुआ। अमेरिका में पढ़ाई करते समय उन्होंने अपने दादा की बातें याद कीं, ‘यदि आप अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं, तो आपको कड़ी मेहनत करनी होगी।’
1962 में, रतन ने टाटा समूह में एक कर्मचारी के रूप में काम करना शुरू किया। शुरुआत में उन्हें कई बार दूसरों ने नजरअंदाज किया और यह साबित करना पड़ा कि वह एक योग्य लीडर हैं। उन्होंने सबसे पहले एक छोटे से प्रॉजेक्ट पर काम किया, लेकिन जल्दी ही उनकी प्रतिभा का लोहा मान लिया गया।
नेतृत्व का सफर – 1991 में, रतन टाटा ने टाटा समूह का नेतृत्व संभाला। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिनमें से एक था टाटा नैनो का उत्पादन। यह दुनिया की सबसे सस्ती कार बनने का सपना था। रतन ने नैनो को बाजार में उतारने के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन जब उसकी बिक्री उम्मीद के मुताबिक नहीं हुई, तो उन्हें भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। इस समय रतन का दिल टूट गया। उन्होंने सोचा, ‘क्या मैंने गलत निर्णय लिया?’ लेकिन उनकी दादी की बातें उनके दिमाग में गूंजने लगीं, ‘हर कठिनाई में एक अवसर होता है।’
रतन ने अपने अनुभवों से सीखा और नये दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया। उन्होंने न केवल नैनो की रणनीति में बदलाव किया, बल्कि अपनी टीम को भी प्रेरित किया कि वे नए विचारों के साथ आगे बढ़ें। यह उनकी क्षमता का परिचायक था कि उन्होंने न केवल एक असफलता को सफल बनाया, बल्कि अपने इरादों में दृढ़ता भी दिखाई।
वैश्विक पहचान – रतन टाटा ने न केवल टाटा नैनो को फिर से सफल बनाया, बल्कि उन्होंने कई अन्य महत्वपूर्ण अधिग्रहण भी किए। उन्होंने जगुआर और लैंड रोवर को खरीदकर टाटा समूह को वैश्विक पहचान दिलाई। इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया मानक स्थापित किया। उनके इस कदम ने भारतीय उद्योग को एक नई दिशा दी और टाटा समूह को एक शक्तिशाली ब्रैंड बना दिया।
रतन की सफलता की कहानी केवल व्यवसाय तक सीमित नहीं थी। उन्होंने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाईं। उनका मानना था, ‘सफलता का असली अर्थ है दूसरों की भलाई में योगदान करना।’ उन्होंने कहा, ‘हमेशा याद रखें कि असली उद्यमिता वही है जो समाज को बदलने के लिए काम करे।’
समाज सेवा और प्रभाव – रतन टाटा ने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया। उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने और गरीबों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं बनाई। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने कई अस्पतालों की स्थापना की और कई शिक्षण संस्थानों की मदद की।
उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘मैं अपने देश के लिए एक सपना देखता हूं, जहां हर व्यक्ति को अपने अधिकार मिलें।’ उन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए युवाओं को प्रेरित किया कि वे अपने सपनों के पीछे दौड़ें और समाज के उत्थान के लिए कार्य करें।
9 अक्टूबर 2024 को, रतन टाटा का निधन मुंबई में हुआ। उनका जाना केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत था। उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके दृष्टिकोण ने उन्हें एक महान नेता बना दिया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि असली सफलता का मतलब सिर्फ व्यवसाय में सफल होना नहीं है, बल्कि समाज की सेवा करना भी है।
उनकी प्रेरणादायक यात्रा हमें यह याद दिलाती है कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें और कभी हार न मानें, तो चांद की तरह चमकना संभव है। रतन टाटा की जीवनगाथा यह साबित करती है कि सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष करना ही असली सफलता है। उन्होंने अपने जीवन में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे हमें प्रेरित करती रहेंगी। उनकी कहानी हर युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी, यह दिखाते हुए कि कठिनाईयों के बावजूद, अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो आप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
रतन टाटा की विरासत आज भी जीवित है। उनके विचार और कार्य हमें सिखाते हैं कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हमें हमेशा एक कदम आगे बढ़ना चाहिए। उनका नाम न केवल भारतीय उद्योग में बल्कि पूरे विश्व में सम्मान के साथ लिया जाएगा। उन्होंने अपने जीवन में जो आदर्श स्थापित किए, वे हमें हमेशा प्रेरित करेंगे कि हम अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहें और दूसरों की भलाई के लिए काम करें। असली नेतृत्व वही है, जो दूसरों के उत्थान के लिए किया जाए। रतन टाटा ने साबित किया कि अगर दिल में सच्ची मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)