Tuesday, July 29, 2025
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दयाप्रकाश सिन्हा और ब्रात्य बसु को साहित्य अकादमी पुरस्कार

 कोलकाता : साहित्यकार दया प्रकाश सिन्हा को इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी के लिए दिया जाएगा। इसके साथ ही साहित्य अकादमी राज्य के शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध नाटककार ब्रात्य बसु को उनके नाटकों के लिए सम्मानित करेगी। दया प्रकाश सिन्हा को उनके नाटक ‘सम्राट अशोक’ के लिए मिला यह सम्मान मिला है जबकि बसु को यह सम्मान ‘मीर जाफर’ और अन्य नाटकों के लिए दिया जा रहा है। अंग्रेजी के लिए नमिता गोखले को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इनके साथ ही 20 भारतीय भाषाओं के लेखकों को वर्ष 2021 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा गत गुरुवार को की गयी।

ब्रात्य बसु को ‘अश्लीन’ और ‘अरण्यदेव’ समेत कई नाटकों ने उन्हें खास लोकप्रियता दिलाई है। ‘विंकल ट्विंकल’, ‘रुद्धसंगीत’, ‘कृष्णनगर’ और ‘मुंबई नाइट्स’ सहित उनके कई नाटकों का मंचन अलग-अलग समय पर किया गया है। बता दें कि ब्रात्य बसु ने प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में बांग्ला साहित्य का अध्ययन किया है। बाद में उन्होंने कलकत्ता सिटी कालेज में पढ़ाया। उन्होंने अपने अभिनय कॅरियर की शुरुआत गणकृति नामक एक थिएटर ग्रुप में एक साउंड आपरेटर के रूप में की थी। बाद में उन्होंने उस ग्रुप के लिए नाटकों का लेखन और निर्देशन शुरू किया। ब्रात्य बसु राज्य के प्रमुख नाट्यकार और शिक्षाविद् हैं।

आधुनिक नाटक ‘अशालीन’ उनका पहला नाटक है। उन्होंने वह नाटक 1996 में लिखा था. उनके अन्य उल्लेखनीय नाटक में ‘अरण्यदेव’, ‘शहरियार’, ‘विंकल ट्विंकल’ और ‘मर्डर मिस्ट्री ड्रामा’ हैं। उन्हें 1998 में श्यामल सेन मेमोरियल अवार्ड और 2000 में दिशारी अवार्ड मिला है। साल 2006 में, उन्होंने अपना खुद का थिएटर ग्रुप, ‘ब्रात्यजन’ बनाया। साल 2009 में देवव्रत बिस्वास के जीवन पर आधारित नाटक ‘रूद्ध संगीत’ उनका नवीनतम नाटक है। ब्रात्य बसु ने दो फिल्मों का निर्देशन भी किया है। एक है ‘रास्ता’ और दूसरा है ‘तारा’। पहली फिल्म एक युवक के आतंकवादी बनने के बारे में है, और दूसरी फिल्म समाज और प्रेम की विफलता के बारे में है। उन्होंने कालबेला समेत कई फिल्मों में काम किया है। उन्होंने हाल ही में डिक्शनरी नामक एक और फिल्म का निर्देशन किया है।

देश का 80 फीसदी अनाज-सब्जियां उगाने वाली महिलाओं को ‘किसान’ का दर्जा क्यों नहीं?

13% ही जमीन की मालकिन
नयी दिल्ली । महंगाई बढ़ी तो खेती किसानी में आमदनी कम होने लगी। नफा-नुकसान का तोल-मोल करने वाले पुरुष खेती-बाड़ी छोड़ कमाने खाने शहर चले गए और पीछे रह गईं महिलाएं। खेत की बुआई से लेकर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और फसल की कटाई में जी-तोड़ मेहनत करती हैं। अनाज और सब्जियों को मंडी ले जाकर बेचती हैं।
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश का 80% अनाज और सब्जियां महिलाएं उगाती हैं। इसके बावजूद सिर्फ 13% महिलाएं उस जमीन की मालकिन हैं, जिस पर वे खेती करती हैं। खेती-किसानी से जुड़ी सरकारी योजनाएं भी पुरुषों को ध्यान में रखकर ही बनाईं जाती हैं, जिनमें महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है। महिलाओं को तो आधिकारिक रूप से ‘किसान’ कहे जाने की मान्यता भी नहीं मिली है। खेत-खलिहान से जुड़े ज्यादातर सरकारी संस्थानों पर भी पुरुषों का ही कब्जा है। किसान भाइयों के साथ किसान बहनों का जिक्र तक नहीं किया जाता है। 10 माह के रोते बच्चे को गोद में लेकर चुप कराने की कोशिश करती किसान सरिता राउत बताती हैं कि पूरे-पूरे दिन खेतों में काम करते हैं। रोपाई करते हुए कमर टेढ़ी हो जाती है। खेत पर जाने से पहले और लौटकर आने के बाद घर के काम निपटाने के साथ ही बच्चों को संभालते हैं। जब फसल पककर तैयार हो जाती है तब काट-छांट कर घर ले आते हैं। जब बेचने की बारी आती है, तब महिलाओं का खून-पसीना याद नहीं आता है। महिलाएं अगर उस पैसे से अपनी पसंद की एक साड़ी भी खरीद लें तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। सरिता राउत मध्य प्रदेश के बाला घाट जिले में खुद खेती करने के साथ ही अपने जैसी अन्य महिला किसानों को आधुनिक खेती के गुर सिखाती हैं।
‘समाज की सोच में नहीं है महिला किसान का अस्तित्व’
महिला किसान अधिकार मंच (मकाम) से जुड़ कर महिला किसानों के हक की लड़ाई लड़ने वाली सीमा कुलकर्णी कहती हैं, ”ग्रामीण क्षेत्र में 85 फीसदी से अधिक महिलाएं खेती किसानी का करती हैं। फिर भी हमारे समाज में अभी तक महिला किसान जैसा कुछ अस्तित्व में है ही नहीं। चमकदार व नुमाइशी सरकारी नीति-दस्तावेज में भले ही ‘महिला किसान’ का जिक्र मिल जाए, लेकिन लोगों की सोच और कृषि योजनाओं में किसान लफ्ज का मतलब सिर्फ मर्द ही है। किसानों को मिलने वाले खाद और बीज उन्हीं को मिलते हैं। जमीन हो या फसल दोनों की खरीद और बेच मर्द ही कर सकते हैं।
सरकारी योजनाओं में नहीं है महिला किसानों का जिक्र
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डाटा के मुताबिक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा पैसा महिलाएं बैंक में जमा कराती हैं। बावजूद इसके महिलाओं को कर्ज नहीं मिलता। उन्हें कर्ज के लिए मुद्रा योजना या फिर अन्य स्कीमों का सहारा लेना पड़ता, जिसकी ब्याज दर भारी-भरकम होती है। कृषि क्षेत्र में सरकारी योजनाओं का फायदा, कर्ज और क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था भी पुरुषों के लिए ही है।
महिलाओं के अनुकूल नहीं है मार्केटिंग संरचना
भारतीय किसान यूनियन उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष सचिन शर्मा कहते हैं कि महिलाएं जब फसल को मंडी लेकर जाती हैं या गन्ने को मिल पर लेकर जाती हैं तो वहां 4-4 दिन बाद नंबर आता है। गन्ने की फसल का भुगतान होने में साल बीत जाता है, इससे सबसे ज्यादा दिक्कत महिला किसानों को होती है। वे कैसे बच्चों को पढ़ाएं, कैसे अपना घर चलाएं। बता दें कि गल्ला-मंडियों में महिलाएं काम करती मिल जाएंगी, लेकिन आज तक मार्केटिंग संरचना महिलाओं के अनुकूल नहीं बनायी गयी। मंडियों में महिलाओं के लिए अलग से टॉयलेट तक नहीं होते हैं। न ही अलग बैठने की जगह।
जमीन पर नहीं है मालिकाना हक
इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे-2018 के मुताबिक, 2% से भी कम पैतृक संपत्ति में महिलाओं के नाम हैं। सीमा कुलकर्णी बताती हैं कि महिला किसानों का जमीन पर मालिकाना हक न के बराबर है, जिससे उनकी संसाधनों तक पहुंच सीमित हो जाती है। पति की मौत के बाद महिला किसान को जमीन का स्वामित्व नहीं मिलता है। जमीन पति से सीधे बेटे या भाई के नाम ट्रांसफर कर दी जाती है। महिला किसान सरिता राउत बताती हैं कि जो महिलाएं अकेली हैं, लेकिन खेती है तो उनका गुजारा जैसे-तैसे चल जाता है। लेकिन जिन महिलाओं के पास खेती नहीं है। उन महिलाओं को बटाई या उगाई पर खेती नहीं मिलती है। उन्हें मजबूरन दूसरों के खेत में मजदूरी करने पड़ती है, जहां उन्हें पैसा पुरुषों की तुलना में कम मिलता है।
दरअसल, केंद्र सरकार के पास भूमिहीन किसानों का आंकड़ा नहीं, इसलिए भूमिहीन महिला किसानों की संख्या कितनी है, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। ऐसे में वे खेतों में खून पसीना बहाती हैं, लेकिन उन्हें इसका फायदा नहीं मिलता। किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा नहीं मिलता है। भूमिहीन महिलाओं को किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा, कुछ नहीं मिलता।
भूमिहीन महिलाओं को किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा, कुछ नहीं मिलता।
महिला किसानों की मांगें

किसान की परिभाषा जमीन के मालिकाना हक के आधार पर न तय हो।
पैतृक जमीन के दस्तावेजों में महिलाओं के नाम भी शामिल हों।
बजट में महिलाओं पर खर्च किया जाने वाला हिस्सा तय हो।
महिला किसानों को ध्यान में रखकर कृषि उपकरण और योजनाएं बनाई जाएं।
महिला किसानों को भी मिले सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा।
महिला किसानों को मान्यता देने के क्या होंगे फायदे?
महिलाओं को खेती, पशुपालन, मछली पालन के लिए कर्ज मिल सकेगा।
किसान सम्मान निधि, फसल बीमा और मार्केटिंग सेवाओं को लाभ मिलेगा।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं को समान हक देने से 20-30% बढ़ेगी कृषि उत्पादकता।
कृषि उत्पादन भी 2.5% से 4% तक बढ़ जाएगा।

(साभार – दैनिक भास्कर)

लड़कियाँ जानें अपने कानूनी अधिकार

नयी दिल्ली । दुनिया भर में सरकारों ने महिलाओं के अधिकारों और हितों के संरक्षण के लिए सख्त कानून बनाए। चीन अपने यहां महिलाओं के हित में कानून में संशोधन कर रहा है। भारत में महिलाओं को संपत्ति, सम्मान और समानता के लिए विशेष अधिकार हासिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट ऋषभ राज और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट विवेक शर्मा से जानें महिलाओं के कानूनी अधिकार…
पैतृक संपत्ति पर बेटी का भी हक
पिता की जायदाद पर बेटी का भी उतना ही हक है, जितना कि बेटे का। हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के तहत बेटी को हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली में बेटे के बराबर ही संपत्ति में अधिकार मिलेगा। विवाह के बाद भी बेटी का पित्ता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।
अनुकंपा पर बेटियां को भी मिलती है नौकरी
पिता की अकस्मात मौत के बाद बेटियों को भी अनुकंपा पर नौकरी पाने का हक है। शादी हुई हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
पिता-पति से वाजिब गुजारा भत्ता
एडवोकेट ऋषभ राज के मुताबिक, देश में महिलाओं के गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस क्लेम करने के लिए तीन कानून हैं। सीआरपीसी की धारा 125 के तहत महिलाएं पिता या पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं। जबकि हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 24 और 25 के तहत कोई भी महिला अपने पति से मुआवजा मांग सकती है। प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005′ के तहत भी महिलाएं गुजारा भत्ता ले सकती हैं।
समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम के मुताबिक, वेतन या मजदूर में महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। यानी कि किसी काम के लिए पुरुषों को जितनी तनख्वाह मिलती है, महिलाओं को भी उतनी ही तनख्वाह लेने का पूरा हक है।
मातृत्व संबंधी लाभ लेने का अधिकार
मातृत्व अवकाश यानी मैटरनिटी लीव काम-काजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं है, बल्कि यह उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक कामकाजी महिला प्रसव के दौरान 26 हफ्ते की लीव ले सकती है। इस दौरान महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती है और फिर से काम शुरू कर सकती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं के अधिकार
इंडियन पीनल कोड की धारा 498 के तहत पत्नी, महिला लिव इन पार्टनर या घर में रह रही किसी भी महिला पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा दी जाती है। महिला खुद या उसकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।
कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
कार्य स्थल पर अगर किसी महिला का यौन शोषण किया जा रहा है तो इसके खिलाफ उसे शिकायत दर्ज कराने का पूरा अधिकार है। अगर कंपनी कमेटी में पीड़ित महिला को न्याय नहीं मिलता है तो वह कानूनी कार्रवाई भी कर सकती है। अगर महिला के साथ कार्यस्‍थल पर यौन शोषण हुआ है तो वह यौन शोषण अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है।
स्टॉकिंग से सुरक्षा
आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 के तहत किसी महिला का पीछा करना या उससे बिना उसकी मर्जी के संपर्क स्थापित करने की कोशिश करना, बार-बार मना करने बावजूद उसे बातचीत के लिए दबाव डालने आदि पर कानूनी मदद ली जा सकती है। कोई महिला इंटरनेट पर क्या करती है, इस पर नजर रखना भी स्टॉकिंग के दायरे में आता है। स्टॉकिंग के आरोप में जेल भी हो सकती है।
अश्लील चित्रण से बचने का अधिकार
किसी महिला को अभद्र तरीके से दिखाने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। कानून के तहत महिला के शरीर से जुड़े किसी भी हिस्से को इस तरह दिखाना कि वो अश्लील लगे, दंडात्मक कार्रवाई की वजह बन सकता है।
पहचान न बताने का अधिकार
यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को समाज में किसी तरह की परेशानी न उठानी पड़े, इसके लिए उनकी पहचान छिपाए रखने का प्रावधान है। अगर पीड़िता का नाम जाहिर किया जाता है तो दो साल तक की जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है।
गरिमा और शालीनता से रहने का अधिकार
देश में हर महिला को गरिमा और शालीनता के साथ रहने का अधिकार है। अगर किसी मामले में आरोपी महिला है तो उस की जाने वाली कोई चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
पीड़ित महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का अधिकार है। इसके लिए महिला को स्टेशन हाउस ऑफिसर को विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करना होगा।
देश में कहीं से भी एफआईआर करने का अधिकार
एडवोकेट विवेक शर्मा बताते हैं कि कोई भी महिला अपने खिलाफ हुए किसी भी तरह के अपराध के लिए देश के किसी भी हिस्से में जीरो एफआईआर के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है। इसके अलावा, वर्चुअल तरीके से भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। ऐसा उस परिस्थिति में जहां महिलाएं स्वयं थाने तक जाने में सक्षम नहीं हैं।
रात में नहीं हो सकती गिरफ्तारी
अगर कोई विशेष कारण न हो तो किसी भी महिला को सूरज ढलने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट महिला कांस्टेबल का होना अनिवार्य है। महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में ही आरोपी महिला से पूछताछ की जा सकती है।
(साभार – दैनिक भास्कर)

चीन मामलों के विशेषज्ञ विक्रम मिसरी बने डिप्टी एनएसए

नयी दिल्ली । भारत और चीन के बीच सीमाओं को लेकर चल रहे विवाद के बीच चीन विशेषज्ञ  के तौर पर जाने जाने वाले विक्रम मिसरी को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में तैनात किया गया है। मिसरी पूर्व में बीजिंग में भारत के राजदूत रह चुके हैं। उन्हें डिप्टी नेशनल सिक्योरिटी अडवाइजर के तौर पर नियुक्त किया गया है।
मिसरी साल 1989 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं। आने वाले 31 दिसंबर को पंकज सरन के सेवानिवृत्त होने के बाद मिसरी उनकी जगह लेंगे। जानकारी के मुताबिक, विक्रम मिसरी प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम कर चुके हैं। डिप्टी एनएसए बनने के बाद वह अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को रिपोर्ट करेंगे। हालांकि, मिसरी अकेले डिप्टी एनएसए नहीं हैं। इनके अलावा राजेंद्र खन्ना और दत्ता पंडसलगीर भी इसी पद पर तैनात हैं।
रूस में भारत के राजदूत रहे पंकज सरन के 31 दिसंबर 2021 को रिटायर होने के बाद मिसरी उनका स्थान लेने वाले हैं। नए डिप्टी एनएसए को इंडियन पैसिफिक में रणनीतिक मामलों का अच्छा जानकार माना जाता है।

महानगरों को पहले मिलेगा 5 जी नेटवर्क का तोहफा

नयी दिल्ली । भारत में 5जी का ट्रायल पिछले दो साल से चल रहा है और मई 2022 तक देश में 5जी का ट्रायल चलेगा। 5जी की कमर्शियल लॉन्चिंग को लेकर पूरा देश इंतजार कर रहा है लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया था। अब दूरसंचार विभाग ने कहा है कि मेट्रो और बड़े शहरों में 5जी पहले लॉन्च किया जाएगा। दूरसंचार विभाग की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि गुरुग्राम, बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, हैदराबाद और पुणे जैसे बड़े शहरों में 5जी पहले लॉन्च किया जाएगा और यह लॉन्चिंग ट्रायल तौर पर नहीं, बल्कि कमर्शियल तौर पर होगी। बता दें कि इन शहरों पहले से ही वोडाफोन आइडिया, जियो और एयरटेल अपने 5जी नेटवर्क का ट्रायल कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 5जी के नए स्पेक्ट्रम की नीलामी मार्च-अप्रैल 2022 में होगी और उसके बाद 5जी नेटवर्क को लॉन्च किया जाएगा, हालांकि स्पेक्ट्रम की कीमत को लेकर कोई बयान सामने नहीं आया है। यदि स्पेक्ट्रम की कीमत अधिक होगी तो 5जी के प्लान भी महंगे होंगे।
बहुत महंगी हैं या नहीं, इस पर चर्चा हुई है। और मुझे लगता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए कई चीजें की जा सकती हैं कि भारतीय लोगों के लिए कवरेज बनाने के लिए पैसा है, ”एरिक्सन में एशिया पैसिफिक के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी मैग्नस इवरब्रिंग ने हाल ही में एक साक्षात्कार में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया।
आपकी जानकारी लिए बता दें कि भारतीय बाजार में पिछले दो साल में करीब 100 से अधिक 5जी स्मार्टफोन लॉन्च हुए हैं। इसके अलावा अन्य 5जी डिवाइस भी बाजार में मौजूद हैं। अब बस 5जी की लॉन्चिंग का इंतजार है। स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों ने अब लगभग 4जी फोन को लॉन्च करना ही बंद कर दिया है।

कोरोना संक्रमण से अनाथ बच्चे : कलकत्ता हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

कोलकाता । कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डब्ल्यूबीसीपीसीआर) की ओर से दायर एक याचिका पर केंद्रीय चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में कोरोना महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों के ल‌िए मुआवजे की मांग की गई है। जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस सौमेन सेन की पीठ ने डब्ल्यूबीसीपीसीआर की याचिका पर जवाब मांगा है। इस याचिका में चुनाव आयोग को प्रत्येक बच्चे को मुआवजा प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की गई है। फरवरी,2021 में राज्य में चुनावों की घोषणा के बाद कोरोना महामारी के दौरान जिन बच्चों के माता-पिता की मौत हो गई उन सभी मुआवजा देने की मांग की गई है।
एडवोकेट आन रिकार्ड देबाशीष बनर्जी के माध्यम से अध्यक्ष,डब्ल्यूबीसीपीसीआर द्वारा याचिका दायर की गई है और इसमें कहा गया है कि इस तथ्य के बावजूद कि फरवरी 2021 के दौरान कोरोमा महामारी की दूसरी लहर संभावित थी और दूसरी लहर के संबंध में कई संगठनों और चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा की गई भविष्यवाणियों के बावजूद, भारत के चुनाव आयोग ने 26 फरवरी, 2021 को अभूतपूर्व आठ-चरणों में बंगाल के विधान सभा चुनावों की अधिसूचना जारी कर दी।
हाई कोर्ट ने हालांकि अंतरिम आदेश के लिए कोई गुंजाइश नहीं पाई और रिट याचिका में मांगी गई राहत के आधार पर मामले की सुनवाई का फैसला किया। इसी क्रम में कोर्ट ने 13 जनवरी, 2022 या उससे पहले चुनाव आयोग जवाब देने को कहा है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए 14 जनवरी को होगी। याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग ने अपने विवेक का प्रयोग‌ किए बिना लापरवाही से काम किया। आयोग ने सभी की भलाई के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करने से परहेज किया और आठ चरणों के दीर्घकालिक चुनाव की घोषणा की, जो बंगाल के लोगों, विशेष रूप से राज्य के बच्चों के लिए विनाशकारी साबित हुए।

ऑस्‍ट्रेलिया में मिली ‘हाथों से चलने वाली’ दुर्लभ मछली, गुलाबी रंग देख वैज्ञानिक हैरान

तस्‍मानिया । ऑस्‍ट्रेलिया में तस्‍मानिया के तट पर 22 साल में पहली बार ‘हाथों से चलने वाली’ दुर्लभ मछली मिली है। यह हाथों से चलने वाली मछली गुलाबी रंग की है और अंतिम बार इसे साल 1999 में तस्‍मानिया में देखा गया था। इससे पहले यह केवल 4 बार ही देखी गई थी। ऑस्‍ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्‍होंने गहरे समुद्र में कैमरे से इस दुर्लभ मछली को तस्‍मान फ्रैक्‍चर मरीन पार्क में देखा है। इस मछली को हाल ही में दुर्लभ मछलियों की श्रेणी में रखा गया है। यह मछलियों की उन प्रजाति से ताल्‍लुक रखती है जिनके मुंह चौड़े होते थे। पहले माना जाता था कि ये मछलियां उथले पानी में पाई जाती हैं लेकिन तस्‍मानिया में हालिया खोज के दौरान यह समुद्र में 120 मीटर नीचे मिली है। इस मछली में ‘लंबे हाथ’ हैं जिससे यह समुद्र की तलहटी में चलती है। यह मछली आसानी से तैर भी सकती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ तस्‍मानिया के प्रफेसर नेविल्‍ले बैरेट और उनकी टीम ने एक कैमरा मरीन पार्क की तलहटी में डाला था ताकि कोरल, झींगा और मछलियों की अन्‍य प्रजाति का सर्वेक्षण किया जा सके। एक शोध सहायक ऐश्‍ली बस्तिआनसेन ने अक्‍टूबर महीने में इस कैमरे से लिए गए फुटेज का निरीक्षण किया तो उन्‍हें यह गुलाबी मछली मिली। इस रेकॉर्डिंग में पाया गया कि यह मछली एक पहाड़ से निकली चट्टान में थी। वीडियो में यह कुछ देर तक दिखी और उसके बाद तैरकर चली गई। बैरेट ने कहा, ‘उस समय इसने हमें बहुत शानदार दृश्‍य दिखाया। हमने एक हाथों से चलने वाली गुलाबी मछली की खोज की है।’ ऑस्‍ट्रेलिया में स्विटजरलैंड के आकार का यह मरीन पार्क समुद्री जीवों पर शोध के लिए बनाया गया है। बता दें कि अमेरिका में वैज्ञानिकों की एक टीम ने डायनासोर के समय के एक समुद्री राक्षस की खोज की थी। इस जीव की लंबाई 55 फीट तक देखी गई है। इस जीव का नाम इचिथ्योसॉर (ichthyosaur) है, जो समुद्री मछली का ही एक प्रकार है। रिसर्च से पता चला है कि मछली के आकार के इन समुद्री सरीसृपों (Reptiles) का आकार 24 करोड़ साल पहले काफी तेजी से बढ़ा। इस जीव के सिर का आकार 6.5 फीट मापा गया है।

(स्त्रोत साभार – नवभारत टाइम्स)

जब चोरों ने माफी माँगी और लौटाया सारा सामान

बांदा । उत्तर प्रदेश के बांदा में दिलचस्प घटना सामने आई है। यहां चोरों ने पहले एक वेल्डिंग की दुकान से हजारों का सामान चुराया लेकिन बाद में पीड़ित की माली हालत पता चली तो उनका दिल पसीज गया। चोरों ने माफीनामे के साथ पीड़ित को सारा सामान दोबारा लौटा दिया। उन्होंने चोरी का सामान एक बोरी और डिब्बे में पैक किया और उसके ऊपर एक कागज में माफी भी लिखकर चिपका दिया। यह घटना इलाके के साथ-साथ पुलिस महकमे में भी चर्चा का विषय बनी हुई है।
घटना बांदा के बिसंडा थाना इलाके की है। यहां चंद्रायल गांव में रहने वाले दिनेश तिवारी की आर्थिक हालत काफी खराब है। कुछ समय पहले ही उन्होंने 40 हजार रुपये का कर्ज लेकर वेल्डिंग का काम डाला था। 20 दिसंबर को रोजाना की तरह जब वह अपनी दुकान पहुंचे तो ताला टूटा मिला और औजार समेत अन्य सामान गायब था। उन्होंने बिसंडा थाने में घटना की सूचना दी।
चोरों ने लिखा- हमसे गलती हुई है
हालांकि मौके पर दरोगा के न मिलने के कारण केस दर्ज नहीं हो सका। 22 दिसंबर को उन्हें गांव के कुछ लोगों ने बताया कि उनका सामान कुछ दूरी पर पड़ा हुआ है। चोर दिनेश का सामान गांव की ही एक खाली जगह पर फेंक कर चले गए थे। दिनेश ने देखा कि एक बोरी में उसका सामान रखा हुआ और उसके ऊपर एक कागज भी चिपका हुआ था। लेटर में लिखा था, ‘यह दिनेश तिवारी का सामान है। हमें बाहरी आदमी से आपके बारे में जानकारी हुई। हम सिर्फ उसे जानते हैं जिसने लोकेशन (सूचना) दी कि वह (दिनेश तिवारी) कोई मामूली आदमी नहीं है। पर जब हमें जानकारी हुई तो हमें बहुत दुख हुआ इसलिए हम आपका सामान वापस देते हैं। गलत लोकेशन की वजह से हमसे गलती हुई।’
चर्चा का विषय बनी घटना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वापस सामान मिलने की खुशी पर दिनेश तिवारी ने कहा, ‘मेरी वेल्डिंग की दुकान में 20 दिसंबर को चोरी हो गई थी, जब मैं उस दिन वहां पहुंचा तो चोर वहां से 2 वेल्डिंग मशीन, 1 कांटा (तौलने वाला), 1 बड़ी कटर मशीन, 1 ग्लेंडर और 1 ड्रिल मशीन कुल 6 सामान चोरी कर ले गए थे।’ दिनेश ने बताया कि वह उसी दिन थाने में शिकायत करने पहुंचे थे तो कहा गया कि दरोगा जी मुआयना करने आएंगे लेकिन कोई आया नहीं। हालांकि सामान वापस मिलने से दिनेश राहत महसूस कर रहे हैं। यह घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गई है।

नमामि गंगे परियोजना नदियों को दे रही नया जीवन, 20 नाले यमुना में गिरने हुए बंद

लखनऊ । नमामि गंगे परियोजना के तहत शहरों की लाइफ लाइन मानी जाने वाली नदियों को नया जीवन दिया जा रहा है। प्रदेश में सभी प्रमुख नदियों को योगी सरकार प्रदूषण मुक्त बनाने का कार्य तेजी से कर रही है। कान्हा की नगरी मथुरा में यमुना शुद्धीकरण का बड़ा कार्य किया गया है।
नमामि गंगे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पहली बार 460.45 करोड़ की लागत से यमुना में गिरने 20 नालों को टैप किया गया है। साथ ही 30 एमएलडी का एक नया एसटीपी तैयार कर लिया गया है। नदियों को जीवंत करने के साथ-साथ इनमें सीवरेज गिरने की समस्या का समाधान अत्याधुनिक तरीके से किया जा रहा है। सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास करने में जुटी है।
वहीं, नमामि गंगे परियोजना के तहत मुरादाबाद में रामगंगा सीवरेज योजना बड़ा परिवर्तन लेकर आई है। यहां 330.05 करोड़ की लागत से 13 नालों को नदी में गिरने से रोका गया है। साथ ही 58 एमएलडी का अत्याधुनिक एसटीपी बनकर तैयार है।
मिर्जापुर के चुनार नगर में 2.70 करोड़ की लागत से 10 केएलडी का एफएसटीपी बनाया गया है। फिरोजाबाद में 51.06 करोड़ की लगात से 02 बड़े नालों को आईएंडडी विधि से टैप किया गया है।
कासगंज में 76.73 करोड़ से 02 नालों को टैप करने के साथ 58 एमएलडी एसटीपी का निर्माण पूरा करा लिया गया है। सरकार की ओर से तेजी से नदियों की सफाई के लिए किए गए कार्यों से बड़ा बदलाव आया है। नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि प्रदेश सरकार की ओर से सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों को अत्याधुनिक विधि से निर्मित किया जा रहा है। बिजली की कम से कम खपत के साथ-साथ इनमें बायोगैस प्लांट का प्रयोग किया जा रहा है। सीवर ट्रीटमेंट की नई विधियों का प्रयोग कारगर साबित हुआ है। इन ट्रीटमेंट प्लांटों से नालों का गंदा पानी शुद्ध होने के बाद नदियों में छोड़ा जाता है। इस कारण नदियों में प्रदूषण की मात्रा कम हुई है। नदियों में मशीनों और नांवों से गाद की सफाई का कार्य भी तेजी से किया जा रहा है।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

महामारी की निराशा पीछे छोड़ रियल इस्टेट क्षेत्र पटरी पर, 2022 में बेहतर बिक्री की उम्मीद

नयी दिल्ली । भारत के रियल एस्टेट उद्योग ने 2020 की मंदी को पीछे छोड़ते हुए इस साल मकानों की बिक्री में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर्ज की और कारोबारियों को उम्मीद है कि नए साल 2022 में जोरदार मजबूती देखने को मिलेगी। भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र में इस साल पुनरुद्धार के लिए एक मजबूत नींव रखी गई, जिसके 2030 तक 1,000 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। महामारी से पहले उद्योग का आकार 200 अरब डॉलर था। वर्ष 2021 में उद्योग ने प्रतिष्ठित डेवलपर्स के प्रति मांग बढ़ने, समय से मकान तैयार करने, ग्राहकों द्वारा बड़े और अच्छे घरों की मांग और बिल्डरों द्वारा डिजिटल तकनीकों को तेजी से अपनाने जैसे कुछ रुझान देखने को मिले।
आवासीय बाजार में जनवरी-मार्च के दौरान बिक्री मजबूत थी। इसमें आवास ऋण के लिए ब्याज दरों में ऐतिहासिक कमी और कुछ राज्यों द्वारा स्टांप शुल्क में कमी की प्रमुख भूमिका रही। हालांकि, कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान रियल एस्टेट सहित अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में मांग प्रभावित हुई।
सितंबर तिमाही के दौरान लगभग सभी बड़े सूचीबद्ध डेवलपर्स ने अपनी बुकिंग बिक्री में तेज वृद्धि दर्ज की, जिससे रियल्टी शेयरों में तेजी आई। इस दौरान ज्यादातर मांग ऐसे बिल्डरों के पास देखने को मिली, जो प्रतिष्ठित और भरोसेमंद हैं। क्रेडाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन पटोदिया ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘रियल एस्टेट के लिए 2021 सफल वर्ष रहा, क्योंकि उद्योग ने लचीलेपन, नवाचार और बेहतर प्रदर्शन के साथ वापसी की।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि 2022 रियल एस्टेट क्षेत्र का वर्ष होगा।’’