Tuesday, July 29, 2025
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प्रेम कुमार को प्रदान की गई डॉक्टरेट उपाधि

कोलकाता ।  वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने अपने रजत जयंती अवसर पर 08 जनवरी 2022 को पंचम दीक्षांत महोत्सव का आयोजन किया। यह कार्यक्रम कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए तथा भारत सरकार के निर्देशानुसार मुख्यतः ऑनलाइन आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने प्रेम कुमार को डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की।

            प्रेम कुमार मूलतः उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद के छोटे से गाँव ‘नमेंनी’ के निवासी हैं। उनका परिवार एक निम्नमध्यवर्गीय कृषक परिवार रहा है। जो कि नब्बे के दशक में कृषि के लिए पर्याप्त जमीन के अभाव तथा जीविका की तलाश में दिल्ली शहर की ओर पलायन कर गया और वहीं बस गया। दिल्ली की आजादपुर मंडी में उनके पिता ने पल्लेदारी, दिहाड़ी मजदूरी की, तथा विभिन्न कॉलोनियों की गलियों में सब्जियों की फेरी लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया। प्रारम्भ से ही परिवार की  स्थिति अत्यंत दयनीय थी, इसलिए प्रेम कुमार ने कक्षा दस से ही पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया था, जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे बड़े शैक्षणिक संस्थान से स्नातकोत्तर होने तक जारी रहा। जीवन के तमाम संघर्षों का सामना करते हुए भी शिक्षा के प्रति उनकी लगन उत्तरोत्तर बढ़ती ही रही। यही कारण रहा कि स्नातकोत्तर करते समय ही उन्होंने यूजीसी नेट की परीक्षा दी और जेआरएफ सहित उतीर्ण हुए। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के उपरांत आगे की शिक्षा प्राप्त करने की चाह में प्रेम कुमार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यलय, वर्धा, महाराष्ट्र चले गए। यहाँ से उन्होंने पहले प्रो. कृष्ण कुमार सिंह के निर्देशन में ‘प्रेमचन्द की कहानियों में हाशिये का समाज’ विषय पर एम. फिल. हिंदी की उपाधि, तथा अब डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी के निर्देशन में ‘नई कविता के कवि आलोचकों का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पी-एच. डी. तुलनात्मक साहित्य की उपाधि प्राप्त की है। बताते चलें कि प्रेम कुमार एक मेधावी छात्र रहे हैं जिन्होंने जाति व्यवस्था में अत्यंत निम्न व आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े होने को कभ-भी अपनी कमजोरी न बनने दिया। उन्होंने साहित्यिक और सामाजिक विषयों पर दर्जनों लेख लिखे, प्रपत्र वाचन किए जो कि कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताओं में व्यक्त स्वर समतामूलक समाजव्यवस्था का पक्षधर है।

            प्रेम कुमार कहते हैं कि, मेरे माता-पिता ने स्वयं अभावपूर्ण जीवन जीते हुए भी शिक्षा के महत्व को जाना-समझा और मुझे पढ़ाया। एक सहायक प्रोफेसर के रूप में किसी संस्थान में सरकारी नौकरी पाकर स्वर्गीय पिता के सपने को साकार करना ही वे अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वे ज्योतिबाराव फुले, सावित्रीबाई फुले, महात्मा गांधी, छत्रपति साहू जी, बोधिसत्व बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर, स्वामी विवेकानन्द, भगत सिंह आदि महापुरुषों से अत्यंत प्रभावित हैं। इस प्रभाव को उनके लेखन में स्पष्टतः देखा जा सकता है। अपने गुरुजनों डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, प्रो. प्रीति सागर, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. रूपेश कुमार सिंह का वे विशेष आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने उनके भीतर वैचारिक समझ विकसित की। प्रेम कुमार से डॉ. प्रेम कुमार बनने पर रजनीश कुमार ‘अम्बेडकर’, गिरहे दिलीप, लोकेश कुमार, मुकेश कुमार, अवतार सिंह, बंसराज आदि मित्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से बधाइयाँ दीं।

इस अवसर पर प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी (कुलाधिपति, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), डॉ. विनय सहस्रबुदधे (मुख्य अतिथि), डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (विशिष्ट अतिथि, पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार), प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल (कुलपति, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), प्रो. अवधेश कुमार (डीन, साहित्य विद्यापीठ, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), श्री कादर नवाज़ खान (कुलसचिव, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा) तथा अन्य विद्वज्जन उपस्थित रहे।

हवा में उड़ती जाए पतंग

2 हजार साल पुराना है पतंगबाजी का इतिहास

कम से कम 6 किमी प्रति घंटा की हवा हो तभी उड़ती है पतंग
कागज का छोटा टुकड़ा जब किसी डोर से बंध जाता है और हवा का एक झोंका पाकर इठलाने लगता है तो बन जाती है पतंग। इंसान ने परिंदों को हवा में गोते लगाते देखा तो सोचा कि क्यों न मैं भी कुछ ऐसा करूं। बस, यहीं से उपजी पतंग की सोच, जो कालांतर में मनोरंजन, कला और संस्कृति का हिस्सा बन गई। इतिहास, धर्म और सभ्यता के साथ रूप बदलती पतंग और पतंगबाजी को पर्यटन से भी जोड़ दिया गया है। मकर संक्रांति के मौके पर याद किए जाने वाले सूर्य और पतंग दोनों ही प्रेरणा के स्रोत भी हैं। समझते हैं कि पतंग के अलग-अलग पक्ष और पहलू क्या हैं…

विज्ञान : आसमान में कैसे उड़ती है पतंग?

साधारण पतंग को उड़ने के लिए सबसे बेहतर समय तब होता है, जब कम से कम 6 किलोमीटर और अधिकतम 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चल रही हो। हवा की गति 6 किमी से कम होने पर उड़ने में दिक्कत आती है और अधिक होने पर पतंग से नियंत्रण खोने लगता है।
जिस तरह हवाई जहाज के उड़ने का संबंध हवा से है ठीक वैसा पतंग के साथ भी है। पतंग की हवा में उड़ने की क्षमता उसकी बनावट और उससे बंधी कन्नी की स्थिति पर निर्भर करती है।
आमतौर पर उड़ाई जाने वाली साधारण आकार की पतंग तब उड़ती है, जब उसकी निचली सतह की ओर से हवा का दबाव पड़ता है। कन्नी की ऊपर वाली डोरी पतंग को हवा में खींचती है,जिससे पतंग को ऊंचा उड़ाने के लिए इसके नीचे वाले हिस्से में हवा के सापेक्ष एक कोण बन जाता है।
हवा की गति को जानने के लिए इन दिनों कई तरह की डिवाइस मौजूद हैं। पहले पत्तियों या झंडे के मूवमेंट देखकर हवा की गति का पता लगाया जाता था।

इतिहास : बांस से बने कागज से हुआ था पतंग का आविष्कार

पतंग का इतिहास लगभग 2000 साल से भी अधिक पुराना है। माना जाता है कि सबसे पहले पतंग का आविष्कार चीन के शानडोंग में हुआ। इसे पतंग का घर के नाम से भी जाना जाता है।
एक कहानी के मुताबिक, एक चीनी किसान अपनी टोपी को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसे एक रस्सी से बांध कर रखता था, इसी सोच के साथ पतंग की शुरुआत हुई।
मान्यता ये भी है कि 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चीन दार्शनिक मोझी और लू बान ने बांस के कागज से पतंग का आविष्कार किया था।
549 ईसवीं से कागज की पतंगों को उड़ाया जाने लगा था, क्योंकि उस समय पतंगों को संदेश भेजने के रूप में इस्तेमाल किया गया था। ज्यादातर लोगों का मानना है कि चीनी यात्री हीनयान और ह्वैन सांग पतंग को भारत में लाए थे। वायुमंडल में हवा के तापमान, दबाव, आंर्द्रता, वेग और दिशा के अध्ययन के लिए पहले पतंग का ही प्रयोग किया जाता था।
1898 से 1933 तक संयुक्त राज्य मौसम ब्यूरो ने मौसम के अध्ययन के लिए पतंग केंद्र बनाए हुए थे,जहां से मौसम का अनुमान लगाने की युक्तियों से लैस बॉक्स पतंगें उड़ा कर मौसम सम्बंधी अध्ययन किए जाते थे।

अर्थशास्त्र : भारत में 1200 करोड़ रुपए का पतंग बाजार

एसोचैम के मुताबिक, भारत में सालाना पतंग का बाजार 1200 करोड़ रुपये से अधिक का है। देशभर में 70 हजार से ज्यादा कारीगर पतंग बाजार से जुड़े हैं। बाजार में एक पतंग की कीमत 2 से 150 रुपये तक होती है, लेकिन काइट फेस्टिवल्स मेंं उड़ाई जाने वाली पतंग महंगी होती हैं। यह उसके आकार, बनावट और मटेरियल पर निर्भर करती है।
पतंग कारोबार के लिए गुजरात और उत्तर प्रदेश के कई जिले मशहूर हैं। बरेली, अलीगढ़, रामपुर, मुरादाबाद और लखनऊ में तैयार होने वाला मांझा और पतंग राजस्थान समेत कई राज्यों में भी सप्लाई किया जाता है।
इसी तरह गुजरात में वडोदरा, सूरत, राजकोट और अहमदाबाद पतंग के बड़े बाजार हैं और यहां मनाया जाने वाला उत्तरायण पर्व दुनियाभर में मशहूर है।
एक बड़े आकार की चरखी में मांझे की छह रील भरी जा सकती है। एक रील में 900 मीटर लंबा मांझा होता है। एक औसत क्वालिटी वाली छह रील वाली चरखी लेंगे तो 400-600 रुपये का खर्च आता है।

कला : समझें कन्नी बांधने और पेंच लड़ाने का तरीका

पतंग की उड़ान कन्नी बांधने की कला पर निर्भर है। इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे हवा बेहद कम या सामान्य है, तो कन्नी को थोड़ी छोटी रखना ही बेहतर है। हवा की गति तेज है तो आगे और पीछे दोनों तरफ कन्नी को बराबर रखें।
पतंग के कन्नी बांधने के लिए मांझे का प्रयोग न करें। इसके लिए सद्दी बेहतर है, क्योंकि इसके टूटने का खतरा बेहद कम रहता है।
पेंच दो तरह से लड़ाए जाते हैं डोर खींचकर या ढील देकर। डोर खींचकर पेच लड़ाना चाहते हैं तो आपकी पतंग विरोधी पतंग से नीचे होनी चाहिए।
अगर ढील देकर पेंच लड़ाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि डोर को धीरे-धीरे छोड़ें। इस दौरान पतंग को गोल-गोल घुमाते रहेंगे तो जीतने की संभावना रहेगी। पेंच लड़ाते समय मांझा टकराएं।
भूगोल : देश-दुनिया में पतंग को समर्पित फेस्टिवल्स

ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा पतंगोत्सव फेस्टिवल ऑफ विंड्स के नाम से सिडनी में हर साल सितंबर में सेलिब्रेट किया जाता है।

चीन के वेईफांग शहर में हर साल अप्रैल में काइट फेस्टिवल आयोजित होता है। यहां मान्यता है कि ऊंची पतंग को देखने से नजर अच्छी रहती है।
जापान में हर साल मई के पहले सप्ताह में हमामात्सु के शिजुका प्रान्त में पतंगोत्सव होता है। यहां मानते हैं कि पतंग उड़ाने से देवता प्रसन्न होते हैं।
भारत में खासतौर मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने का रिवाज है। जनवरी के पहले सप्ताह में अहमदाबाद और जयपुर में भारत के सबसे बड़े काइट फेस्टिवल आयोजित किए जाते हैं।
ब्रिटेन में हर साल अगस्त के दूसरे सप्ताह में पोर्ट्समाउथ इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। यहां डिजाइनर से लेकर 3डी पतंगों के लिए लोग जुटते हैं।
हर साल 1 नवंबर को ग्वाटेमाला में काइट्स ऑफ सुपेंगो के नाम से पतंग उत्सव मनाया जाता है। जिसमें 15-20 मीटर चौड़ी पतंगे उड़ाई जाती हैं।
इंडोनेशिया के बाली काइट फेस्टिवल में 4-10 मीटर चौड़ी और 100 मीटर की पूंछ वाली पतंगे उड़ाई जाती हैं। यह अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में सेलिब्रेट किया जाता है।
साउथ अफ्रीका के केपटाउन में जनवरी के दूसरे हफ्ते में इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जाता है।
अमेरिका में द जिल्कर काइट फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जाता है। हर मार्च में यहां म्यूजिक कॉन्सर्ट से लेकर हर उम्र वर्ग के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
इटली में सर्विया इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल हर साल अप्रैल में मनाया जाता है।
गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड जो पतंग के नाम बने

ऑस्ट्रेलिया के रॉबर्ट मूरे ने 2014 में दुनिया में सबसे ऊंची पतंग (चार हजार नौ सौ मीटर ) उड़ाने का रिकॉर्ड बनाया था।
2005 में कुवैत के एक काइट फेस्टिवल में अब्दुल रहमान और फारिस ने दुनिया की सबसे बड़ी पतंग उड़ाई। यह 25 मीटर लंबी और 40 मीटर चौड़ी थी।
2006 में एक डोर से 43 पतंगों का उड़ाने का रिकॉर्ड चीन के मा क्विंगहुआसेट के नाम है।
पुर्तगाल के फ्रेसिस्को लुफिन्हा के पास यात्रा करते हुए सबसे लंबी काइटसर्फिंग यात्रा (862 किमी) करने का रिकॉर्ड है।
2011 में यूनाइटेड नेशनल रिलीफ एंड वर्क एजेंसी ऑर्गेनाइजेशन ने फिलीस्तीन बच्चों के लिए गाजा स्ट्रिप के समुद्रतट पर 12,350 पतंगें उड़ाकर रिकॉर्ड बनाया।

(साभार – दैनिक भास्कर)

विश्व का पहला तिलहन है तिल

तिल एक पुष्पीय पौधा है। इसके कई जंगली रिश्तेदार अफ्रीका में होते हैं और भारत में भी इसकी खेती और इसके बीज का उपयोग हजारों वर्षों से होता आया है। यह व्यापक रूप से दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। तिल के बीज से खाद्य तेल निकाला जाता है। तिल को विश्व का सबसे पहला तिलहन माना जाता है और इसकी खेती 5000 साल पहले शुरू हुई थी।
मकर संक्रांति का त्योहार माघ महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को है। मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति पर दान, स्नान और पूजा का विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति पर विशेष रूप से तिल का दान किया जाता है। साथ ही इसके अलावा पानी में तिल डालकर स्नान करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि तिल का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। तिल शनि की सबसे प्रिय चीज होती है। माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी।
तिल वार्षिक तौर पर 50 से 100 से.मी. तक बढता है। फूल 3 से 5 से.मी. तथा सफेद से बैंगनी रंग के पाये जाते हैं। तिल के बीज अधिकतर सफेद रंग के होते हैं, हालांकि वे रंग में काले, पीले, नीले या बैंगनी रंग के भी हो सकते हैं।
तिल प्रति वर्ष बोया जानेवाला लगभग एक मीटर ऊँचा एक पौधा जिसकी खेती संसार के प्रायः सभी गरम देशों में तेल के लिये होती है। इसकी पत्तियाँ आठ दस अंगुल तक लंबी और तीन चार अंगुल चौड़ी होती हैं। ये नीचे की ओर तो ठीक आमने सामने मिली हुई लगती हैं, पर थोड़ा ऊपर चलकर कुछ अंतर पर होती हैं। पत्तियों के किनारे सीधे नहीं होते, टेढे़ मेढे़ होते हैं। फूल गिलास के आकार के ऊपर चार दलों में विभक्त होते हैं। ये फूल सफेद रंग के होते है, केवल मुँह पर भीतर की ओर बैंगनी धब्बे दिखाई देते हैं। बीजकोश लंबोतरे होते हैं जिनमें तिल के बीज भरे रहते हैं। ये बीज चिपटे और लंबोतरे होते हैं।
भारत में तिल दो प्रकार का होता है— सफेद और काला। तिल की दो फसलें होती हैं— कुवारी और चैती। कुवारी फसल बरसात में ज्वार, बाजरे, धान आदि के साथ अधिकतर बोंई जाती हैं। चैती फसल यदि कार्तिक में बोई जाय तो पूस-माघ तक तैयार हो जाती है। वनस्पतिशास्त्रियों का अनुमान है कि तिल का आदिस्थान अफ्रीका महाद्वीप है। वहाँ आठ-नौ जाति के जंगली तिल पाए जाते हैं। पर ‘तिल’ शब्द का व्यवहार संस्कृत में प्राचीन है, यहाँ तक कि जब अन्य किसी बीज से तेल नहीं निकाला गया था, तव तिल से निकाला गया। इसी कारण उसका नाम ही ‘तैल’ (=तिल से निकला हुआ) पड़ गया। अथर्ववेद तक में तिल और धान द्वारा तर्पण का उल्लेख है। आजकल भी पितरों के तर्पण में तिल का व्यवहार होता है।
वैद्यक में तिल भारी, स्निग्ध, गरम, कफ-पित्त-कारक, बलवर्धक, केशों को हितकारी, स्तनों में दूध उत्पन्न करनेवाला, मलरोधक और वातनाशक माना जाता है। तिल का तेल यदि कुछ अधिक पिया जाय, तो रेचक होता है।

युवा भारत की कालजयी प्रेरणा हमारे स्वामी विवेकानंद

भारत के इतिहास में ऐसी कई विभूतियाँ हैं जो हमें आज भी प्रेरित करती हैं। स्वामी विवेकानन्द ऐसे ही व्यक्तित्व हैं जिनका जीवन हमें नयी राह दिखाता है। विशेष रूप से युवा पीढ़ी उनके जीवन से काफी कुछ सीख सकती है, उनके संघर्ष से सीख सकती है और अपने उद्देश्य की तरफ बढ़ सकती है। पराधीन भारत में जब भारतीयों का विश्वास अपने ही धर्म और अपनी ही संस्कृति पर डगमगाने लगा था तब स्वामी जी ने पूरे विश्व के सामने हिन्दू धर्म और हिन्दूत्व को मजबूती से खड़ा किया। स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 शिकागो भाषण में इस बात को चरितार्थ भी करके दिखाया था। जहां मंच पर संसार की सभी जातियों के बड़े – बड़े विद्वान उपस्थित थे। डॉ. बरोज के आह्वान पर 30 वर्ष के तेजस्वी युवा का मंच पर पहुंचना। भाषण के प्रथम चार शब्द ‘अमेरिकावासी भाइयों तथा बहनों’ इन शब्दों को सुनते ही जैसे सभा में उत्साह का तूफान आ गया और 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया। संवाद का ये जादू शब्दों के पीछे छिपी चिर –पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यातम व उस युवा के त्यागमय जीवन का था। जो शिकागो से निकला व पूरे विश्व में छा गया। उस भाषण को आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। स्वामी जी मानते थे कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो समग्र विकास कर सके, चरित्र निर्माण कर सके। उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष में अडिग रहने की शक्ति दे।
12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद की जयंती को हम युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। उनके जीवन में वह सब कुछ है जो किसी भी युवा को सम्मोहित कर सकता है, प्रेरित कर सकता है। संगीत से लेकर साहित्य तक, तैराकी से लेकर घुड़सवारी तक, अर्थशास्त्र से लेकर वेद -पुराण, वेदान्त तक, उनका अध्ययन विशद था। उनमें ज्ञान की भूख थी, ईश्वर को देखने की ललक थी और यही जिज्ञासु प्रवृति जीवन को एक लक्ष्य देती है। ये नरेन ही थे जो अपने गुरु से पूछ सकते थे कि क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है और यह नरेन ही थे जो ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के योग्य शिष्य बन सकते थे। नरेन एक आदर्श शिष्य रहे जिन्होंने अपने गुरु के सिद्धांतों का ऐसा प्रसार किया कि आज तक वह हमें राह दिखा रहा है। सेवा का वास्तविक अर्थ रामकृष्ण मिशन आज तक समझा रहा है। समस्त भारत में घूमते हुए उन्होंने देश को सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि समझा भी था। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-“यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।” 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने जगत से महाप्रस्थान किया मगर आज भी उनकी प्रेरणा ऐसी है कि जीवन से जूझने की शक्ति देती है।
निश्चित रूप से उनका जीवन आसान नहीं था, शारीरिक, पारिवारिक हर प्रकार के संघर्ष रहे मगर इन संघर्षों के बीच भी नरेन्द्र दत्त जब विवेकानंद बनकर उभरते हैं तो उनका व्यक्तित्व मानों नक्षत्र की तरह समस्त संसार को आलोकित करता है। उनकी वाणी में वह शक्ति थी जो किसी भी हतोत्साहित मनुष्य में प्राण डाल सकती है। आज रामकृष्ण मिशन के अथक प्रयास से गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट स्थित स्वामी विवेकानंद का पैतृक आवास एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में हम सभी को दिशा दिखा रहा है और सभी को यहाँ पर जाना चाहिए। आज भी उनका संदेश हमें प्रेरित करता है – उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।

स्वामी जी से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग

स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था . तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे।

उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा ….. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे . ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा , –  भला आप ये कैसे कर लेते हैं ?

स्वामी जी बोले , – तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। तब तुम कभी चूकोगे नहीं . अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो . मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है।

 

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में सीक्रेट सांता ने बाँटे तोहफे

कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में क्रिसमस का त्योहार अलग अन्दाज में मनाया गया। स्कूल की शिक्षिकाओं और छात्राओं ने सीक्रेट सान्ता बनकर खुशियाँ बाँटीं। छात्राओं को एक उपहार चुनकर खूबसूरती से पैक करने को कहा गया। छात्राओं को कहा गया कि वे जिसे भी जरूरतमंद समझती हैं, उस तक यह उपहार रख दें। क्रिसमस का यह सन्देश प्रसारित हुआ कि क्रिसमस देने और खुशियाँ बाँटने का त्योहार है। गत 22 दिसंबर को प्राइमरी विभाग की छात्राओं ने वर्चुअल असेम्बली में भाग लिया। नर्सरी की छात्राओं ने रंगारंग कपड़े क्रिसमस कैरल गाया और हाउजी भी खेली। क्रिसमस पर विशेष नाश्ता और सान्ता बनकर शिक्षिकाओं का घर तक जाना उनके लिए सुखद तोहफा था। किंडरगार्टेन की छात्राओं को वीडियो के माध्यम से ईसा मसीह के जन्म की कहानी बताय़ी गयी और क्रिसमस पर क्विज का आयोजन हुआ। छात्राओं ने क्रिसमस ट्री बनकर खूब मजे किये। दूसरी कक्षा की छात्राओं ने क्रिसमस कार्ड बनाने सीखे।

आकांक्षा कुरील‘ सावित्रीबाई फुले उत्कृष्ट विद्यार्थी पुरस्कार-2021’ की विजेता

कोलकाता । महिला अध्ययन विभाग एवं सावित्रीबाई फुले पीठ के संयुक्त तत्वावधान में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, डॉ. अम्बेडकर नगर, महू, इंदौर, (मध्य प्रदेश) द्वारा राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय वेब परिसंवाद कार्यक्रम में ‘राष्ट्र सेविका सावित्रीबाई फुले : जीवन एवं कार्य’ विषय पर राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई थी । जिसमें आकांक्षा कुरील ने ‘द्वितीय स्थान’ प्राप्त किया और विश्वविद्यालय ने प्रमाण-पत्र देकर ‘सावित्रीबाई फुले उत्कृष्ट विद्यार्थी पुरस्कार-2021’ से गौरवान्वित किया है ।  आकांक्षा कुरील उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तालुका के छोटे से ग्राम ‘मवई पड़ियाना’ में पली-बढ़ी इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव से और उच्च शिक्षा विश्वविद्यालय से प्राप्त कर रही हैं । हाल ही में जेंडर स्टडीज विषय में स्नातकोत्तर पदवी का अध्ययन कर रही हैं । वे इस प्रतियोगिता में शामिल हुई और पुरस्कार से सम्मानित की गई । इसका संपूर्ण श्रेय वे भारत की पहली महिला शिक्षिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले, बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, छत्रपति शाहूजी महाराज, पेरियार, बिरसा मुंडा जैसे महापुरुषों और अपने माता-पिता, अपने जीवन साथी रजनीश कुमार अम्बेडकर व पारिवारिक सदस्यों को देती हैं ।

राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले का महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं । उनके द्वारा महिला शिक्षा और सशक्तिकरण को लेकर किया गया कार्य हमेशा याद किया जाएगा । उन्होंने विषम परिस्थितियों में समाज को एक नई दिशा दी । हमें उनके द्वारा बताए गए अनेक मार्गों को अपनाने की आवश्यकता है । आज हम जब महिलाओं की स्थिति को देखते हैं तो वहीं पर हम पाते हैं कि वे जमीन से लेकर आसमान तक अपना परचम फहरा रही हैं । इसी स्थिति के कारण वे आज डॉक्टर, प्रोफ़ेसर, वैज्ञानिक, राजनेत्री आदि बनकर समाज परिवर्तन कर रही हैं । ऐसे में आकांक्षा कुरील को ‘सावित्रीबाई फुले उत्कृष्ट विद्यार्थी’ जैसा पुरस्कार मिलने पर उनका समाज अपने-आप में गौरव महसूस कर रहा है । इस अवसर पर प्रो. आशा शुक्ला (कुलपति, ब्राउस), प्रो. कुसुम त्रिपाठी, डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह समेत कई अन्य लोगों ने शुभकामनाएं दीं।

बीएचएस में मनाया गया क्रिसमस

कोलकाता। बिड़ला हाई स्कूल में क्रिसमस का त्योहार उल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का प्रसारण स्कूल के फेसबुक पेज पर किया गया। आरम्भ में परिचय तथा स्वागत का दायित्व छात्र राम दफ्तरी ने  निभाया। इसके पश्चात स्कूल की प्रिंसिपल लवलीन सैगल ने सभी को सम्बोधित किया। विद्यार्थियों और शिक्षकों ने क्रिसमस कैरल गाया। कार्यक्रम के माध्यम देने के आनंद का महत्व समझाया गया।

 

बीएचएस में मनाया गया गणित दिवस

कोलकाता । बिड़ला हाई स्कूल में गत 22 दिसम्बर 2021 को गणित दिवस मनाया गया। यह दिन महान गणितज्ञ श्रीनिवासन रामानुजन की जयंती है। इस आयोजन का उद्देश्य गणित के क्षेत्र में हो रही प्रगति और मानवता के विकास में  गणित के महत्व से लोगों को अवगत कराना था।

साथ

प्रो. संजय जायसवाल

उस दिन उसने
बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा था
आदतें बदलने से
साथ नहीं छूटता

कुछ देर तक मैं चुप रहा

दरअसल आदतें बदलने से
छूटता है बहुत कुछ
मसलन, उसने सबसे पहले चाय पीने की आदत छोड़ी
तो चाय के साथ
मिट्टी के प्याले का साथ छूटा

छूटा कुम्हार के चाक पर घूमती माटी की गंध
छूटा कुम्हार का दुलार
छूट गया लबों से धरती का प्यार

किसने कहा आदतें बदलने से साथ नहीं छूटता
उसने लिखने की आदत छोड़ी
तो कागज़ से नाता टूटा

उसने पढ़ना छोड़ा तो
किताबों में जीवन के कई रंग छूट गए

उसने गाना छोड़ा तो
नदी, चिड़िया, सरगम छूटे

उसने कहना छोड़ा तो
अर्थ छूटा, संवाद टूटा

किसने कहा
आदतें बदलने से साथ नहीं छूटता
रंगमंच से दूर हुए
तो स्टेज छूटा
सामने बैठे दर्शकों की बेचैनियां छूटीं

दरख्तों से मुँह मोड़ा
तो पीठ का सहारा छूटा
जीवन की हरियाली छूटी

साथ चलने की आदत बदली
तो रास्ते छूटे, मंजिल छूटी

उसने जब चुपचाप क्रांति की भाषा छोड़
ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
तब प्रतिवाद, प्रतिरोध और न्याय का साथ छूटा

उसने जब धीरे-धीरे कॉफी हाउसों और मंडलियों में जाना छोड़ा
तब कहकहे छूटे, बतरस छूटे

जब उसने नदी के किनारे से मुँह मोड़ा
तब लहरें छूटीं, नाव छूटी।

किसने कहा आदतें बदलने से साथ नहीं छूटता

राजनेताओं ने सह्दयता और विवेक छोड़ा
तो जनकल्याण छूटा

धर्माचार्यों ने सर्वधर्म छोड़ा
तो छूटा सौहार्द

जिसने राम को छोड़ा
उससे रामराज्य छूटा

किसने कहा आदतें बदलने से साथ नहीं छूटता

आज भी वही अयोध्या है
आज भी वही राम हैं
आज भी वही ब्रज है

पर बहुत पीछे छूट गए हैं
कबीर, जायसी, सूर, तुलसी और मीरा

हमने आदमी होने की तमीज बदल दी

तो आदमियत छूटी

किसने कहा आदतें बदलने से
साथ नहीं छूटता।

संयम, अनुशासन, सृजन ही हमारे रक्षक हैं, शामिल कीजिए जीवन में

नया साल शुरू हो गया है और साल के आरम्भ में ही कोविड ने डराना शुरू कर दिया है। ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों को लेकर सरकारो ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। बंगाल में भी आंशिक लॉकडाउन लग चुका है। सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद आखिर नागरिक और सरकार, इतने लापरवाह क्यों हैं? देश की छोड़िए, क्या अपने प्रति लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं है? 2019 के बाद जिस तरह का भयावह दृश्य कोविड – 19 ने दिखाया, इतनी मौतें हुईं, इतने कारुणिक दृश्य दिखे, आखिर क्या कारण है…कि इसे देखकर भी हम नहीं सुधरे? हम मानते हैं कि हमारी संस्कृति और परम्परा समावेशी है लेकिन समावेशी होने के लिए जनता का जीवन दाँव पर लगाना कहाँ की बुद्धिमानी है? क्या राजनीतिक महत्वाकाँक्षाएँ इतनी बड़ी होनी चाहिए कि खतरे के बावजूद रैलियाँ होती रहें? जब हम बात डिजिटल भारत की करते हैं, ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की करते हैं तो हम डिजिटल मतदान के बारे में विचार क्यों नहीं करते? जिस तरह से हमारी लापरवाही बनी हुई है और कोविड का आतंक फैल रहा है, वहाँ अर्थव्यवस्था को खड़ा करना ही सबसे बड़ी चुनौती है तो क्या ऐसी स्थिति में घर से काम करने की संस्कृति को अधिक व्यावहारिक बनाना एक सही विकल्प नहीं होगा? एक बात तो तय है कि लम्बे समय तक कोविड हमारे बीच रहने जा रहा है, बीमारी को तो बदला नहीं जा सकता, बदलना तो हर एक नागरिक को है। तैयारी तो सरकारों को करनी है तो हम अपनी संरचना को मजबूत करें, यह एक ऐसा कदम है जो आगे की राह खोलेगा मगर उससे भी जरूरी है कि हमारे जीवन में संयम, अनुशासन, सृजन जैसे शब्दों का व्यावहारिक रूप लागू हो क्योंकि यही हमारा रक्षक है मगर उससे पहले भी एक सवाल हम सुधरेंगे कब?

बंगाल में आंशिक लॉकडाउन, बंद रहेंगे सभी स्कूल-काॅलेज

50 फीसद क्षमता के साथ चलेंगी लोकल व मेट्रो ट्रेनें

कोलकाता। बंगाल में कोरोना वायरस संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों के बीच राज्य सरकार ने रविवार को बड़ा कदम उठाते हुए कई कड़े प्रतिबंधों (मिनी लाकडाउन) की घोषणा की। तीन जनवरी, सोमवार से नए नियम लागू होंगे। सोमवार से राज्य में सभी स्कूल-कालेज, विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे। राज्य के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी ने एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए बताया कि सरकारी व निजी कार्यालयों में भी 50 फीसद कर्मचारियों के साथ काम की अनुमति होगी। राज्य में लोकल ट्रेन व मेट्रो 50 फीसद क्षमता के साथ चलेगी। वहीं, लोकल ट्रेन शाम सात बजे तक ही चलेगी। स्वीमिंग पुल, स्पा, सैलून, ब्यूटी पार्लर व जिम बंद रहेंगे। पर्यटन स्थल, चिडियाघर भी बंद रहेंगे। शापिंग माल व कांप्लेक्स सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक आधी क्षमता यानी 50 फीसद उपस्थिति के साथ खुलेंगे। मीटिंग, हाल और कांफ्रेंस में 50 फीसद उपस्थिति की अनुमति होगी। होम डेलिवरी सेवा की अनुमति होगी। शादी-विवाह में मात्र 50 तथा अंतिम संस्कार में 20 लोगों के ही शामिल होने की अनुमति होगी। रात 10 बजे से पांच बजे तक नाइट कर्फ्यू लागू रहेगा। इस दौरान सिर्फ जरूरी सेवाओं को ही अनुमति होगी।

लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में वर्तमान स्थिति की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया। बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्य सचिव ने कहा कि सीएम ममता बनर्जी ने पहले ही कहा था कि कुछ पाबंदियां लगाई जाएगी। ब्रिटेन से आने वाली फ्लाइट पर भी सोमवार से पूरी तरह रोक रहेगी। उन्होंने बताया कि इस बारे में पहले ही पत्र लिखकर केंद्र सरकार को सूचित कर दिया गया है। जोखिम भरे देशों से आने वाले फ्लाइट के यात्रियों का 10 फीसदी आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जाएगा तथा दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों रैपिड एंटीजन टेस्ट बाध्यतामूलक किया गया है। वायरस के नए स्वरूप ओमिक्रोन के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनियों को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है। वहीं, मुंबई और दिल्ली से सप्ताह में मात्र दो दिन सोमवार और शुक्रवार को फ्लाइट चलेगी।

राज्य सरकार ने जो नई कोविड गाइडलाइंस जारी की है, उसके अनुसार मास्क पहनने, शारीरिक दूरी बनाए रखने और साफ-सफाई रखने के नियमों का हमेशा पालन करना अनिवार्य है। कोलकाता में 11 माइक्रो कंटेंनमेंट जोन भी होगा। अन्य जिलों में भी इसी तरह का जोन बनाया जाएगा। अधिसूचना में कहा गया कि जिला प्रशासन, पुलिस आयुक्तालय और स्थानीय अधिकारी मास्क पहनने और शारीरिक दूरी बनाए रखने के राज्य के निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करेंगे। प्रतिबंध उपायों के किसी भी उल्लंघन के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं के तहत कार्रवाई की जा सकती है।