कोलकाता । हेरिटेज बिजनेस स्कूल ने ओपेन कांटार आईएमआरबी बी – स्कूल सर्वे में निजी कॉलेजों की श्रेणी में पश्चिम बंगाल में प्रथम स्थान प्राप्त किया है जबकि पूर्वी भारत में संस्थान तीसरे स्थान पर रहा। हाल ही में घोषित हुए परिणाम संस्थानों की मान्यता, चयन प्रक्रिया, संरचना, बौद्धिक पूंजी, विविधता, समग्रता, विद्यार्थियों की सुरक्षा एवं प्रशासन, फीस तथा फंडिंग समेत कई मानकों के आधार पर तय किये गये। इसके अतिरिक्त कोविड -19 के दौरान पाठ्यक्रम, गतिविधियों, व्यक्तित्व निर्माण और उद्योग जगत की उपस्थिति, इंटर्नशिप तथा नियुक्तियों को भी आधार बनाया गया। सर्वेक्षण में भारत से 1 हजार से अधिक संस्थानों ने भाग लिया और 158 संस्थान ही अंतिम सूची में जगह बना सके। हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल ने इस उपलब्धि पर खुशी जतायी।
द हेरिटेज अकादमी में जनसम्पर्क के क्षेत्र पर संवाद सत्र आयोजित
कोलकाता । द हेरिटेज अकादमी के मीडिया साइंस विभाग ने हाल ही में जनसम्पर्क यानी पब्लिक रिलेशन यानी पी.आर. क्षेत्र को लेकर एक संवाद सत्र आयोजित किया। प्रिंसिपल्स ऑफ पीआर – ओल्ड एंड न्यू विषय पर आयोजित इस संवाद सत्र को रीतम कम्यूनिकेशंस की सीईओ रीता भिमानी एवं बिड़ला कॉरपोरेशन के उपाध्यक्ष (कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन) विश्वजीत मतिलाल सम्बोधित किया। दोनों ही वक्ताओं ने कॉरपोरेट पी.आर के जनक आर्थर डब्ल्यू पेज के मूल सिद्धांतों पर अपनी बात रखी। आर्थर एटीएंडटी के 1927 से 1947 तक उपाध्यक्ष एवं निदेशक थे। रीता भिमानी ने संस्थानों में पीआर की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पीआर को मीडिया को उपहार की जगह स्टोरीज देकर उनसे सम्पर्क मजबूत करने चाहिए। विश्वजीत मतिलाल ने कहा कि पीआर प्रोफेशनल को मीडिया को नजरअंदाज करने की जगह संतोषजनक उत्तर देने चाहिए। कार्यक्रम में द हेरिटेज अकादमी के प्रिंसिपल डॉ. गौर बनर्जी, मीडिया साइंस विभाग की डीन मधुपा बक्सी भी उपस्थित थीं। संवाद सत्र गत 21 अप्रैल को राष्ट्रीय पी.आर दिवस पर आयोजित किया गया था। इस अवसर पर हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल इस दिन को महत्वपूर्ण बताते संस्थान की उपलब्धियों की चर्चा की। गौरतलब है कि हाल ही में कल्याण भारती ट्रस्ट को पीआरएसआई की ओर से सीएसआर के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ गैर सरकारी संगठन का सम्मान मिला था।
एचआईटीके की छात्रा टीसीएस कोडविटा सीजन -10 के ग्रैंड फिनाले में
कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एचआईटीके) की छात्रा ऋतुपर्णा पादिरा ने प्रतिष्ठित एवं विश्वस्तरीय टीसीएस कोडविटा 2022 के दसवें सीजन की ग्रैंड फिनाले की सूची में जगह बना ली है। टीसीएस द्वारा विद्यार्थियों में कौशल एवं नवाचार यानी इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल यह प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। ऋतुपर्णा उन 30 उम्मीदवारों की सूची में शामिल है जिनका चयन मई में आयोजित होने जा रहे ग्रैंड फिनाले के लिए किया गया है। दूसरे चरण में इस छात्रा ने वैश्विक रैंकिंग में 28वां स्थान प्राप्त किया। पूरे विश्व से 2 हजार विद्यार्थियों ने इस चरण में भाग लिया था। ऋतुपर्णा ने कहा कि उसे कोडिंग अच्छी लगती है और इस प्रतियोगिता ने उसका आत्मविश्वास बढ़ा दिया है। विश्व की शीर्ष प्रोग्रामर बनने की इच्छा रखने वाली इस छात्रा को एकबारगी मेल में प्राप्त उसके चयन की सूचना पर विश्वास नहीं हुआ। हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल एवं संस्थान के कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष डॉ. एस. मजुमदार ने ऋतुपर्णा की सराहना की। गौरतलब है कि संस्थान से इसी विभाग के एक अन्य छात्र श्रंजय राय ने पहले चरण में पूरे भारत की सूची में जगह बनायी थी।
सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में कई कार्यशालाओं ने मार्च को बनाया ‘मैजिकल’
कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में छठी से ग्यारहवीं कक्षा की छात्राओं और अभिभावकों के लिए गत 11 मार्च से 25 मार्च तक मैजिकल मार्च नामक कार्यक्रम वर्चुअल प्रणाली से आयोजित किया गया। विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बना चुके लोगों के सहयोग से यह कार्यक्रम हुआ । इनमें नीलांजना दे, वैशाली चटर्जी दत्त, रेशमी बोस, वैशाली शाह, जॉली चंदा, सायंतनी मुखर्जी, त्रिदीबेश दास, अरबिंद प्रधान, इफरा अहमद, शर्मी चक्रवर्ती, पिंटू दास, दीपांशु पॉल जैसी हस्तियां शामिल थीं। कथकली चटर्जी, ऋषभ चटर्जी और क्योशी पारस कुमार मिश्रा भी आयोजन का हिस्सा बने। दरिचा फाउंडेशन जैसे गैर-लाभकारी संगठनों ने भी कार्यशाला संचालित की।
नीलांजना दे ने ब्लैक इज बैक नामक चारकोल कार्यशाला आयोजित की गयी थी। सत्र की शुरुआत कला के माध्यम के रूप में चारकोल पर एक संक्षिप्त जानकारी के साथ हुई। छात्राओं को स्केचिंग के विभिन्न स्वरों और तकनीकों के बारे में बताया गया। वैशाली चटर्जी ने कविता से संबंधित कार्यशाला संचालित की। कविता की विभिन्न बारीकियों के बारे में बात की गई और छात्रों को यूट्यूब पर कई कविताओं को सुनाया गया और रिसोर्स पर्सन ने सिल्विया प्लाथ की कविताओं को पढ़ा।
बेसिक फन एक्टिंग स्किल यानी अभिनय को लेकर एक कार्यशाला रेशमी बोस द्वारा ली गयी। कार्यशाला ने छात्रों को कुछ शारीरिक गति प्रदान की और नाटक के 6 मुख्य तत्वों को प्रदर्शित किया और छात्राओं को अभिनय दिखाने का मौका मिला। वैशाली शाह ने शेफ विशाल कश्यप के साथ पाककला से सम्बन्धित जानकारी दी। यहाँ उन्होंने माता-पिता के साथ पांच पोषक तत्वों से भरपूर भोजन तैयार किया। इसमें पनीर सॉस के साथ इतालवी पास्ता सलाद, मल्टीग्रेन चिकपी सैंडविच और कई अन्य खाना पकाने और खाना सहेजकर रखने से जुड़े टिप्स दिये। जॉली चंदा द्वारा आयोजित कार्यशाला में मेकअप, त्वचा और बालों की देखभाल से संबंधित टिप्स और ट्रिक्स दिए गये । उन्होंने न केवल मेकअप एवं आहार का ध्यान रखने के लिए सभी को प्रोत्साहित किया।
त्रिदीबेश दास, अरबिंद प्रधान और दरिचा फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक सत्र भी आयोजन का हिस्सा था। यह पश्चिम बंगाल के विभिन्न लोक कला रूपों को समर्पित था। सत्र की शुरुआत बेनी पुतुल नाच के प्रदर्शन और कठपुतली बनाने और कठपुतली बनाने की कला पर चर्चा हुई। इसके बाद उत्तर बंगाल की लोक कलाओं पर बात की गयी। त्रिदीबेश दास ने भारत भर में विभिन्न लोक कला रूपों और गीतों के साथ प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न वाद्ययंत्रों की जानकारी दी । अरबिंद प्रधान ने गीतों के साथ लयबद्ध संगत के रूप में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न ताल वाद्यों का प्रदर्शन किया।
इफरा अहमद ने खेल से जुड़े पोषण और पौष्टिक आहार पर बात की। बढ़ते बच्चों के लिए स्पोर्ट्स न्यूट्रीशन यानी खेल पोषण नामक एक कार्यशाला का आयोजन किया। सत्र में बच्चों को स्वस्थ विकास, आवश्यक सही पोषण एवं व्यायाम के महत्व से अवगत करवाया गया। शर्मी चक्रवर्ती ने सिंग अलॉन्ग का आयोजन किया जिसमें दुनिया भर के विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों और विभिन्न संगीत शैलियों पर चर्चा की गई। संगीत की पूर्वी और पश्चिमी विधाओं में विभिन्न स्वरों और पैमानों का प्रदर्शन किया गया। छात्रों को राग और पैमाने परिवर्तन के साथ गाने के लिए कहा गया।
एनिमल फ्लो का संचालन पिंटू दास द्वारा किया गया था जहां एनिमल फ्लो और पश्चिमी समकालीन नृत्य के संयोजन पर सत्र आयोजित किया गया था। दीपांशु पॉल ने डांस थ्रू लाइफ नामक एक कार्यशाला का आयोजन किया जहां उन्होंने दैनिक जीवन में अभिव्यक्ति के बारे में ज्ञान साझा किया और छात्रों को नौ भाव प्रदर्शित किए।
क्योशी पाराश कुमार मिश्रा ने आत्मरक्षा कार्यशाला का संचालन किया जो हाइब्रिड मोड में छात्रों को कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए तैयार करने के लिए आयोजित किया गया था जहां वे अपना बचाव कर सकते थे। लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए गए और स्कूल बैग, किताबें, कलम, दुपट्टा आदि का इस्तेमाल करते हुए कराटे की चालें सिखाई गईं।
डिजी स्मार्ट का संचालन कथकली चटर्जी और ऋषभ चटर्जी ने किया। मुख्य हार्डकोर विषयों का अध्ययन करने से लेकर डिजिटल मार्केटिंग पर काम करना, बताया गया। उन्होंने विभिन्न संस्थानों के नाम भी साझा किए जो छात्रों को विज्ञापन और मार्केटिंग करने में मदद कर सकते हैं।
सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल की शिक्षिकाओं जैसे सायंतनी मुखर्जी, लिपिका मलिक, जयती भट्टाचार्य और रूमा चक्रवर्ती ने ज़ुम्बा, रिसाइकल्ड आर्ट, ओरिगेमी पर कार्यशालाएँ आयोजित कीं। यह कार्यशाला अभिभावकों और छात्रों के लिए बेहद समृद्ध साबित हुई।
भारत की प्रथम जैन साध्वी पद्मश्री आचार्य श्री चंदना श्री
अंजू सेठिया
कोलकाता । भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा ने पद्मश्री अवार्ड आचार्य श्री चंदना श्री से मुलाकात की आशीर्वाद लिया । जैन एकता पर हमारे काम की सराहना की और फ़रमाया भी ।राजगीर वीरायतन की संस्थापक आचार्यश्री चंदना जी महाराज का पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन किया गया है। देश की पहली जैन साध्वी, जिन्हें जैन समाज में प्रतिष्ठित आचार्य पद से सम्मानित किया है, आचार्य श्री चंदना श्री जी का जन्म 26 जनवरी 1937 को महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित कटारिया जैन परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम शकुंतला था।
आचार्य श्री चंदना ने 14 वर्ष की छोटी सी आयु में ही संन्यास ले लिया था और एक असाधारण यात्रा प्रारंभ की। उन्होंने दीक्षा के तुरंत बाद 12 वर्ष की मौन साधना का कठिन संकल्प लिया और इस दौरान शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। इसी दौरान चंदना श्री जी ने अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में विरायतन की नींव डाली और तब से लगातार आज तक गरीब परिवार के लोगों की निस्वार्थ सेवा भाव से सामाजिक मदद करती आ रही हैं।
मालूम हो कि आचार्य श्री चंदना जी 53 सालों से लोगों को मुफ्त चिकित्सा, शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक रूप से मदद कर रही है। आज पूरे विश्व में 25 स्थानों पर विरायतन का नींव रखते हुए निर्माण कराया है। आचार्य श्री चंदना श्री जी का एक ऐसा नाम है जो सादगी साहस और करुणा को साकार करता है।
उन्होंने जैन धर्म में आ रही रूढ़ियों पर न सिर्फ सवाल खड़े किये बल्कि कई बार उन्हें तोड़ा भी। उनका मानना है मुनि ,आचार्य और साध्वी का कार्य सिर्फ प्रवचन देना नहीं सेवा भी होना चाहिए । वीरायतन पूरे भारतीय उप महाद्वीप में गरीबों के लिये निःशुल्क अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रम संचालित करता है।
वीरायतन ने गुजरात में 2001 के भूकंप, 2004 में आयी सुनामी, 2006 में सूरत की बाढ़, 2008 में कोसी नदी की बाढ़ और 2015 में नेपाल में आये विनाशकारी भूकंप के फौरन बाद आपातकालीन राहत शिविरों और पुनर्वास कार्यक्रमों की जो शुरुआत की उसकी चर्चा आज भी की जाती है। आचार्य श्री चंदना जी ने तीर्थंकर के संदेशों को स्थापित व प्रचारित करने के उद्देश्य से तीर्थ नगरी पलिताना में दिव्य विश्व नामक एक विश्वविद्यालय की स्थापना की है। शक्तिशाली नारी शक्ति 2020 के सर्वे ” नारायणी नमः” में फेम इंडिया मैगजीन और एशिया पोस्ट सर्वे द्वारा समाजिक स्थिती , प्रभाव , प्रतिष्ठा , छवि , उद्देश्य , समाज के लिए प्रयास , देश के आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव जैसे दस मानदंडों पर किए गए स्टेकहोल्ड सर्वे में देश की प्रमुख 20 शक्तिशाली नारी में जैन आचार्य चंदना जी प्रमुख स्थान पर है । आचार्य श्री चंदना जी को पद्मश्री मिलने पर न केवल जैन समाज बल्कि देश को भी बड़ा सम्मान मिला है।
निधि एक अधूरी सी प्रेम कथा को पढ़ते हुए
कथा या कहानी आपको यदि बार-बार पढ़ने के लिए उकसाए और बार-बार मन में अटकी सी रह जाए तो समझ लीजिए कि उसमें कहानी के महत्वपूर्ण गुण छिपे हैं । हर बार के पाठ में उसके नए अर्थ और संदर्भ खुलें, हर बार यह लगे कि कुछ कहने समझने को बचा रह गया। अब सवाल उठता है कि कोई किसी से कुछ ऐसे ही तो नहीं कह देता। बिना किसी भरोसे के, रिश्ते और संबंध के ऐसी बात कहाँ होती है भला। जी हाँ मैं बात कर रही हूँ निधि एक अधूरी सी प्रेम कथा की।
प्रेम, कर्तव्य और देशप्रेम इन तीन मूल उद्देश्यों को लेकर ‘निधि एक अधूरी- सी प्रेम कथा’ उपन्यास अपना विषय तलाशती है, कहीं भी अपने विषय से न भटकते हुए, न इधर-उधर होते हुए। शाब्दिक विवरणों से ज्यादा मनोविज्ञान को पढ़ते, पकड़ने और उसके चित्रण में रमती हुई कथा मूल में प्रेम के साथ कर्तव्य को प्रतिष्ठित करती है। कर्तव्य भी तो प्रेम का ही एक रूप होता है और देशप्रेम तो बड़े और वृहद् अर्थों में प्रेम है। इसलिए यह कहानी हर अर्थ में कर्तव्य प्रधान प्रेम कथा है। निश्छल प्रेमिका नायिका निधि की छवि आधुनिक जीवन के मानवीय भावना से भरी स्त्री की है। नायिका अपने द्वारा उठाए गए कदमों पर अडिग रहती है।
कहानी की भाषा बिलकुल बोलचाल की भाषा है जो वातावरण को सजीवता प्रदान करती है। नेपाली परिवार के बेटे मेजर राहुल से प्रेम करने के कारण नेपाली भाषा के भी वाक्य मिलते हैं। दो भाषाओं का मेल काफी प्रयोगशील और प्रगतिशील है जो उपन्यास की प्रयोगधर्मिता का परिचय देता है। प्रेम में भाषा समस्या नहीं बनती है। एक प्रेम-कहानी की रचना जिस आत्मीयता और लगाव से लेखिका ने रचा है वह काबिले तारीफ है।
‘ निधि एक अधूरी – सी कहानी’ लेखिका पूनम त्रिपाठी का प्रथम लघु उपन्यास है । उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि वे सेना का अंग बनना चाहती थीं लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें वह अवसर नहीं दिया। संभवतः उनकी दबी हुई इसी भावना ने इस प्रेम कथा को जन्म दिया जो देश के प्रति समर्पित सैनिक को केंद्र में रखकर लिखी गई है। सैनिक से प्रेम करने वाली युवती भी विशेष होती है क्योंकि प्रेम करना और उसे निभाना खांडे की धार पर चलना है। एक आम स्त्री और पुरुष की तरह उसका जीवन सरल और सहज नहीं होता। कबीर ने भी कहा है –
प्रेम की गली अति सांकरी जा में दो न समाए। प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय ‘
भले ही यह प्रेम अन्य संदर्भ में कहा गया हो लेकिन विशुद्ध प्रेम त्याग और बलिदान की ही मांग करता है। वह चाहे देश प्रेम हो या युवक-युवतियों का लौकिक प्रेम हो।
यह उपन्यास एक आर्मी मेजर थापा और एक एनसीसी कैडट निधि की प्रेम कथा है। युवती निधि प्रेम के साथ सैनिक की बुलंद आवाज और उसके वजूद को जिंदा रखने का ‘स्ट्रांग’ कदम उठाती है। निधि समाज से लड़ती है, सैनिक सरहद पर लड़ता है। निधि जिंदा रहकर सरहद पर जाने वाले प्रेमी की मृत्यु और जीवन की आशंकाओं से घिरी हुई रोज अपने आप से लड़ती है। दोनों पक्षों की ओर से ही जीवन जीने की अलग – अलग चुनौतियाँ आती हैं जिनका सामना निधि करती है। यह उपन्यास स्त्री की आंतरिक मानवीय भावनाओं के द्वंद्व और पीड़ा का उद्घाटन है। ‘निधि एक अधूरी सी प्रेम कथा’
शीर्षक में ही प्रेम कथा के अधूरेपन को समझा जा सकता है जो अपने समय में पूरा आकार नहीं लेती है।
यह प्रेम कथा कब पूर्णता लेती है? और क्या मेजर थापा सरहद से वापस आते हैं? क्या निधि को दोनों परिवारों का सहारा मिलता है? विवाह के पहले गर्भ में आए बच्चे को जन्म क्यों देती है? ऐसा क्या होता है कि निधि के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं? इस तरह के बहुत से प्रश्नों के उत्तर इस उपन्यास में मिलते हैं।
निधि की होने वाली सास की कहानी भी प्रेम विवाह से शुरू होती है जहाँ उसे अपनी सास से ‘डायन’ की संज्ञा मिलती है। सास नेपाली लामा परिवार की हैं और उनके पति कर्नल थापा परिवार से लेकिन वहाँ भी जाति को लेकर उनके विवाह में बहुत अड़चनें आईं। नेपाली में भी जाति – पांति का विरोध है। निधि की होने वाली सास को तो उसके परिवार ने नकारते हुए उसका दाह-संस्कार तक करा डाला। फौजी ससुराल होने के बावजूद उसकी सास से उसे ‘डायन’ सुनने को मिला और साथ में पीठ पर गर्म पानी तक उढे़ला गया। परंतु निधि के विवाह में ऐसी अड़चन या प्रतारणा नहीं आती है । भुक्तभोगी सास ने निधि को पूरे मन से अपनाया और उसको सम्मान दिया क्योंकि वह समाज की इस प्रतारणा से गुजर चुकी है। वह कहती है कि कास्ट, रिलीजन और मनी ये ऐसी चीजें हैं जो एक दूसरे को अलग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पति का साथ और प्रेम मिला जो सास का जीवन प्रेम से भरा रहा। और वह अपनी पुत्रवधु को किसी भी प्रकार की तकलीफ़ नहीं देना चाहती थी। तभी तो निधि के हर फैसले में ससुर कर्नल थापा ने अपनी बेटी की तरह उसका हर कदम पर साथ दिया । समाज का विरोध अवश्य रहा लेकिन बहू निधि के दृढ़ संकल्प के आगे किसी की नहीं चली। बिना किसी विरोध के दोनों परिवारों ने इस विवाह के लिए स्वीकृति भी दे दी।
मेजर राहुल थापा के साथ हुई रिंग सेरेमनी के समय आए ‘रिश्तेदारों में खुसुर-पुसुर हो रही थी पर प्रकट कोई नहीं कर रहा था। ये समाज का अघोषित नियम है कि सिर्फ खाना-पीना और नुक्स निकालना है। आपकी जरूरत में बहुत कम लोग साथ देगें लेकिन आलोचना करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझेंगे।’ (पृष्ठ 63)लेखिका ने उपन्यास में समाज की नब्ज़ को बहुत गहराई से महसूस किया है।
इस पुस्तक की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ हैं – – ‘झूठी शान, झूठा रुतबा, बड़ी जाति का घमंड, ये सब एक दीमक की तरह हैं जो इंसान और उसकी इंसानियत को खोखला बना देते हैं।’ (पृष्ठ 75)इंसानियत को जिंदा रखने का भरपूर प्रयास इस उपन्यास की विशेषता है।
सैनिक का जीवन कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा होता है जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति नहीं बचा सकता है।सबसे पहले, वे अपने प्रियजनों से दूर बहुत समय बिताते हैं। यह उन्हें भावनात्मक रूप से परेशान करता है और वे राष्ट्र की सुरक्षा में व्यस्त रहते हैं, वे राष्ट्र के संरक्षक हैं और अपने नागरिकों की हर कीमत पर रक्षा करते हैं।
इसके अलावा, वे बहुत निस्वार्थ हैं जो देश के हित को अपने निजी हित से ऊपर रखते हैं। विवाह के एक दिन पहले मेजर राहुल को सरहद पर जाना पड़ता है।
वह अपने माता-पिता और सास – ससुर दोनों के साथ साथ अपनी प्रिया निधि को भावनात्मक सहयोग देने की कोशिश करता है। निधि दो दिन बाद ही मिसेज थापा बन जाती लेकिन जीवन में आई इस अप्रत्याशित घटना ने उसके और मेजर के सुंदर सपने को पलभर में चकनाचूर कर दिया।
वह अपनी मित्र चंदना से कहती है – ‘एक पल में चंदना, बस एक पल में, मेरी तो दुनिया ही बदल गई। सपने चकनाचूर हो गए। चंदू मैंने अकेले रहने का सपना नहीं देखा था। उनके साथ (जुड़वा बच्चों का सपना) विहान और यामिनी के परवरिश का सपना देखा था’ (उन्माद, एक प्रेम कथा, पृष्ठ 71)
कठिनाइयों के बावजूद उनका जीवन एक सीमा के अंदर बंध जाता है। एक सैनिक के लिए सबसे पहले उसका देश होता है,जो लोग इस नौकरी में आने का फैसला करते है वे इस तथ्य से वाकिफ होते है कि उन्हें अपना सम्पूर्ण जीवन देश के प्रति न्योछावर करना होगा,अपने परिवार से लंबे समय तक दूर रहना होगा,और अपने जीवन के सारे सुख ऐश्वर्य का त्याग करना होगा। ये सारी बातें उन्हें दुखी अवश्य करती है पर उनके मन को निराश नहीं करती, वे पूरी लगन के साथ देश सेवा करने को तैयार रहते हैं ।अनुशासन, साहस, संकल्प, मानसिक स्थिरता, मजबूत काया, देशवासियों से प्यार ये सारे गुण एक सोल्जर में विद्यमान होते है। उन्हें अपने देश से बहुत प्यार होता है और उनका देश के प्रति यह लगाव उन्हें और अधिक प्रोत्साहित करता है। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैकडुगल ने मूल प्रवृत्ति को परिभाषित करते हुए अपनी पुस्तक “ऐन आउटलाइन ऑफ सायकोलाजी” में लिखा है कि- मूलप्रवृत्ति (instinct) एक ऐसी मनोदैहिक प्रवृत्ति है जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति किसी उत्तेजक विशेष की ओर ही अपना ध्यान केन्द्रित करता है व किसी विशेष प्रकार के संवेग या आवेग का ही अनुभव करता है और उस उत्तेजक विशेष के प्रति किसी विशेष प्रकार की ही प्रतिक्रिया प्रकट करता है।
विवाह के एक दिन पहले जब मेजर अपने सास- ससुर को बताते हैं कि वे कल दोपहर की ट्रेन से जम्मू जा रहे हैं और फिर बॉर्डर पर। (पृष्ठ 84) देश में इस प्रकार हालात हो जाएंगे यह किसे पता था। वह भी तो शादी करना चाह रहे थे। आफ्टर आल आई एम ए सोल्जर आई हैव टू गो
अपने देश के लिए लड़ना ही होगा। (पृष्ठ 84) ‘कर्तव्य सबसे बड़ा होता है।’ ( पृष्ठ 85) निधि ‘स्ट्रांग’ होने और हमेशा उसी की रहेगी यह वादा करती है। हावड़ा स्टेशन भी छोड़ने जाती है।
तीन महीने में आने का वादा किया था लेकिन मेजर के सभी साथी आ गए लेकिन मेजर नहीं आए।
उपन्यास यहीं से नया मोड़ लेता है। अविवाहित निधि मेजर के बेटे विहान को जन्म देती है और निधि अपनी प्रेम परीक्षा की कसौटी पर खरी उतरती है। वहीं देश प्रेम के लिए भी उसकी भावना ईमानदारी का परिचय देती है। विवाह से पूर्व गर्भवती बहू और बेटी को परिवार के परस्पर सहयोग ने टूटने से बचाया जो उपन्यास की एक और महत्वपूर्ण बात है।
इस उपन्यास को पढ़ते हुए एक और फौजी का स्मरण हो आया। परमवीर चक्र विजेता कर्नल विक्रम बत्रा की मंगेतर डिम्पल चीमा को भी भुलाया नहीं जा सकता जो उनके शहीद हो जाने पर आजीवन विवाह न करने का फैसला करती है। एक परिवार के बेटे का चला जाना बहुत ही दुखदायी घड़ी होती है। वे उसके आने की राह तकते रहते हैं।
उपन्यास नायिका केंद्रित है जहां कहानी स्मृतियों के साथ आरंभ होती है। शुरुआत ही निधि की प्रसव पीड़ा से होती है और वह पीड़ा सुख – दुख के पर्दे के पीछे से प्रेम की झीनी झीनी किरणों का प्रकाश आने वाली सुबह को आनंद से पल भर में भर देता है, पता ही नहीं चलता। माँ नेपाली में कहती है ‘निधि होशमा आऊ। – – – भगवान ले हाम्रो प्रार्थना सुन्नु भए को छा। निधि को पता था कि कान्हा इतना निष्ठुर नहीं हो सकता।
100 पृष्ठों का लघु उपन्यास बारह शीर्षकों विहान, मातृत्व, आकर्षण, खूबसूरत, सफर, वापसी, प्रथम परिचय, अनकही, रहस्योद्घाटन, प्रेम बंधन, उन्माद, पीड़ा, विछोह में विभाजित किया गया है जहां संक्षेप में कहानी के सूत्रों को पिरोया गया है। इसे वृहद रूप भी दिया जा सकता है। लेखिका का प्रयास सराहनीय है। ग्रिफिन पब्लिकेशन से प्रकाशित 2021 में प्रथम संस्करण और मूल्य 230 रुपए हैं। शुभकामनाएं।
साहित्यिकी ने मन्नू भंडारी पर आयोजित की वर्चुअल संगोष्ठी
कोलकाता । कोलकाता की प्रसिद्ध संस्था साहित्यिकी के तत्वावधान में गत 20 अप्रैल को जूम पर लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार मन्नू भंडारी पर एक वर्चुअल संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्था की सचिव श्रीमती मंजूरानी गुप्ता ने अतिथियों और सदस्यों का स्वागत करते हुए मन्नू जी का संक्षिप्त परिचय दिया। गोष्ठी के प्रारंभ में पूनम पाठक ने मन्नू जी की रोचक कहानी “सयानी बुआ” का प्रभावशाली पाठ किया। मन्नू जी की छात्रा रह चुकीं रेणु गौरीसरिया ने मन्नू जी के साथ जुड़े अपने विद्यार्थी जीवन के खुशनुमा अनुभवों को सबके साथ साझा करते हुए मन्नू जी के व्यक्तित्व को साकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे हम सब छात्राओं की अत्यंत प्रिय शिक्षिका थीं। उनके व्यक्तित्व में कहीं कोई बनावट नहीं थी। भीतर बाहर एक सी थीं और छात्राओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती थीं।
अतिथि वक्ता प्रख्यात कवि -कथाकार सुधा अरोड़ा ने मन्नू जी के दिल्ली स्थित घर से इस संगोष्ठी में भाग लिया और मन्नू जी की पुस्तकें, तस्वीरें आदि सबको दिखाईं। उन्होंने कहा कि मन्नू जी तमाम स्त्री लेखिकाओं में निसंदेह सबसे चर्चित लेखिका हैं। उनकी कहानियां ठीक प्रेमचंद की कहानियों की तरह पाठकों के मन पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाती हैं। बेहद सरल- सहज और चित्रात्मक भाषा में वह लिखती थीं। शायद इसीलिए फिल्म निर्देशकों को उनकी कहानियाँ बहुत पसंद आती थीं। बहुत बार अहिंदी भाषी पाठक भी अपने बच्चों के स्कूल की किताबों में “दो कलाकार”, “अकेली” जैसी उनकी एक आध कहानी पढ़कर अन्यान्य कहानियों को पढ़ने के लिए उत्सुक हो उठते हैं। सुधा जी ने कुछ संस्मरणों के हवाले से बताया कि उनके व्यक्तित्व में जितनी सहजता थी उतनी ही दृढ़ता भी थी। अपनी कहानियों की तरह वह अपनी जिंदगी में बहुत बेबाक थीं। उनके उपन्यास वह चाहे “आपका बंटी” हो या “महाभोज” अपने समय के बहुत पहले की रचनाएं हैं और “एक इंच मुस्कान” भी एक माइलस्टोन होता अगर राजेंद्र जी उसमें दखल नहीं देते।
अध्यक्षीय वक्तव्य में कवयित्री विद्या भंडारी ने मन्नू जी की कहानियों के हवाले से कहा कि उनमें नारी के कई रूप चित्रित हुए हैं। उन्होंने स्त्री को स्त्री की निगाह से देखने का प्रयास किया है। विद्या जी ने तमाम श्रोताओं एवं वक्ताओं समेत सुधा जी को विशेष धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपने अंतरंग संस्मरणों से श्रोताओं को मोह लिया। संवाद सत्र में रेवा जाजोदिया, कुसुम जैन, वाणी मुरारका, रचना पांडेय आदि ने अपने सवालों से कार्यक्रम को रोचक बनाया। इस आयोजन में सदस्यों के अलावा शुभ्रा उपाध्याय, प्रियंका सिंह, सुनीता मेहरा आदि अतिथियों ने भी शिरकत की। संगोष्ठी का तकनीकी मोर्चा अत्यंत कुशलतापूर्वक सँभाला नूपुर अशोक ने और संचालन गीता दूबे ने किया।
जीवन साथी चुनना हो तो अपनी शर्तों पर चुनाव करें लड़कियाँ

आजकल शादियों का मौसम चल रहा है। सोशल साइट्स पर शादियों की तस्वीर शेयर की जा रही है। यूनिवर्सिटी के बच्चों की भी शादियाँ हो रही है। कॉम्प्लेक्स में भी कई दिनों से सजावट, गाना-बजाना चल रहा है। प्रीतिभोज का आयोजन हो रहा है। दो लोगों के साथ-साथ कई परिवारों का एक साथ जुडना ही शादी है। शादी के बाद अगर सब कुछ अच्छा रहा, तो अच्छा ही अच्छा रहता है। लेकिन अगर कहीं कोई गड़बड़ हो जाती है तो सबका जीवन बरबाद हो जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा फर्क लड़की पर पड़ता है। वह या तो मानसिक रोगी हो जाती है या फिर नौबत तलाक तक पहुँच जाती है।
अब लड़कियाँ पढ़ लिख रही है, नौकरी कर रही है, व्यवसाय कर रही है, हर क्षेत्र में जा रही है। इसलिए शादी के लिए लड़कियों को बहुत ज्यादा सजग होने की जरूरत है। अब तक शादी के लिए लड़कियों का चयन होता रहा है। पर अब समय आ गया है कि लड़कियों को जहाँ रहना है, वहाँ का माहौल देखे। घर देखें। परिवार देखें। खास तौर पर जिस लड़के से शादी होने वाली है, उसे हर नजरिये से जानें। यह जीवन भर का मामला है, लापरवाही न करें। लड़के की सोच, व्यवहार, बात करने का तरीका, काम करने का तरीका, बड़े-बुजुर्गों के साथ व्यवहार, घर के साथ-साथ बाहर की महिलाओं के साथ बातचीत करने का तरीका, किसी तरह के नशे की आदत तो नहीं, उसके दोस्त कैसे हैं। आस-पास के लोगों के साथ कैसा व्यवहार है। गाली-गलौच तो नहीं करता इत्यादि….इत्यादि।
ये सब तो बहुत जरूरी है। इसके साथ-साथ लड़की के साथ उसकी आदतें मिलती है कि नहीं। यह भी गौर करने की बात है। ऐसा नहीं है कि लड़की और लड़के की पसंद अलग-अलग हो। ऐसी स्थिति में दोनों को तकलीफ होगी। उनका जीवन स्टाइल, फोटो और सेल्फी लेने की आदत मिलती है कि नहीं। लड़के के लिए लड़की की छोटी-मोटी खुशियों का महत्व है कि नहीं। इस सबके अलावा अपना समय, अपनी सोच शेयर करने की आदत है कि नहीं। जीवन जीने के लिए ये सब बहुत जरूरी है। पहले लड़की घर में रहती थी, परिवार में बहुत सदस्य रहते थे। अगर लड़के में कुछ कमी हो तो उसके परिवार वाले उसे समझा देते थे। इसके अलावा घर की बहू को भी संभलने में मदद करते थे। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार हो गया है।
लड़की नौकरी कर रही है। उसकी इच्छाएं, सपने है। उन सपनों को पूरा करने के लिए जीवनसाथी की जरूरत पड़ती है। आजकल लड़कियाँ आर्थिक रूप से मजबूत हुई है, तो वह घर में भी मदद करती है। ऐसे में लड़के की भी जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी की मानसिक स्थिति को समझें, और उसकी बातों को ध्यान से सुने और उसका समाधान निकाले। उसकी भावनाओं का ख्याल रखें। समाज में लड़की, औरत पर इतने जोक्स, चुटकुले और वीडियो बनाये गये है कि उसका असर घर की चहारदीवारी के अंदर दिख रहा है इसलिए यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं लड़का इस मानसिकता का तो नहीं। इसके साथ-साथ उसकी संपत्ति, आय, उसका खर्च करने का तरीका, भविष्य के लिए योजनाएं, बच्चों की जिम्मेदारी के योग्य है कि नहीं। यानि कुल मिलाकर अब ऐसा समय आ गया है कि शादी-ब्याह के लिए हर तरह से सोच-समझ कर लड़की को कदम उठाना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसा करने से लड़कियों की शादी ही नहीं होगी, हताश हो जायेगी।
अभी तक लड़कों ने भी लड़कियों का चुनाव किया है। उसका रूप-रंग, कद, शिक्षा, नौकरी, परिवार, गुण के साथ-साथ नृत्य, गायन, समेत न जाने कितने परीक्षण से लड़कियों को गुजरना पड़ा है। तो क्या ऐसे में लड़कों की शादी नहीं होती थी। होती थी, और अच्छे से होती थी। ठीक इसी तरह लड़कियों की भी होगी, और अच्छे लड़के से होगी।
वैसे समय के साथ-साथ लड़कों ने भी अपने को बहुत बदला है। घर की जिम्मेदारी में सहयोग करते हैं, बच्चों के लालन-पालन में भी बहुत ध्यान दे रहे हैं। पत्नी का ख्याल रख रहे हैं, समय दे रहे हैं, समझ रहे हैं। इसलिए कम ऑन लड़कियों, आगे बढ़ो, तुम्हारी जिंदगी है, तलाश तुम्हें ही करनी होगी।
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता का अधिकार : हाई कोर्ट
लखनऊ । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखनऊ खंडपीठ ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता हासिल कर सकती हैं। कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि तलाकशुदा महिलाओं को यह अधिकार तब तक है, जब तक वे दूसरी शादी नहीं कर लेतीं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में जस्टिस करुणेश सिंह पवार की पीठ ने याचिकाकर्ता रजिया के आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश दिया। वर्ष 2008 में दाखिल इस पुनरीक्षण याचिका में प्रतापगढ़ के एक सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। सेशन कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा था कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के आने के बाद याचिकाकर्ता और उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा। सेशन कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत ही मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है। ऐसे मामलों में सीआरपीसी की धारा 125 लागू नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का किया जिक्र
पीठ ने सत्र अदालत के इस फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शबाना बानो मामले में दिए गए निर्णय के बाद यह तय हो चुका है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला धारा 125 के तहत इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी है। यह आदेश तब तक लागू होता है, जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती। कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही याचिका मंजूर कर ली है।
क्या है पूरा मामला
वर्ष 2008 में यह याचिका दायर की गई थी। इसमें प्रतापगढ़ की सेशन कोर्ट की ओर से 11 अप्रैल 2008 को चुनौती दी गई थी। सेशन कोर्ट ने निचली अदालत के 23 जनवरी 2007 के आदेश को पलट दिया था। निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डिवोर्स एक्ट 1986 के बाद याचिकाकर्ता और उसके पति का मामला इसी एक्ट के अधीन होगा। सेशन कोर्ट ने कहा था कि एक्ट की धार 3 और 4 में मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता का अधिकार है। इन मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होने का भी फैसला सुनाया गया।
इद्दत अवधि को लेकर हुआ था विवाद
मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को इद्दत अवधि तक या उसके बाद भी गुजारा भत्ता के अधिकार को लेकर विवाद चल रहा था। इस मामले में हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलट दिया। हाई कोर्ट ने साफ किया है कि इद्दत अवधि के बाद भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। तलाकशुदा महिला अगर दूसरी शादी कर लेती है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा।
क्या होता है इद्दत
इस्लाम में इद्दत या इद्दाह किसी भी महिला के तलाक या उनके पति की मृत्यु के बाद की एक निर्धारित अवधि होती है। इसका पालन करना महिला के लिए अनिवार्य है। इस अवधि के दौरान महिला किसी अन्य पुरुष के साथ शादी नहीं कर सकती है। इसका मुख्य उद्देश्य तलाक या पूर्व पति की मृत्यु के बाद बच्चे के पितृत्व के बारे में किसी भी संदेह को दूर किया जाना इद्दत की अवधि परिस्थितियों के आधार पर बदलती है।
आम तौर पर तलाक के बाद महिलाओं के लिए यह अवधि तीन माह की होती है। पति की मृत्यु होने की स्थिति में यह अवधि चार चंद्र मास और दस दिन होती है। यह करीब साढ़े चार माह का समय होता है। गर्भवती महिला के तलाक या पति की मृत्यु के बाद इद्दत की अवधि बच्चे के जन्म तक होती है।
संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा कैसे हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने बताया
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा सभी हिस्सेदारों की सहमति से ही किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि बंटवारा उन हिस्सेदारों के कहने पर निरस्त किया जा सकता है जिनकी सहमति प्राप्त नहीं की गई हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट कानून है कि कर्ता/संयुक्त परिवार की संपत्ति का प्रबंधक केवल तीन स्थितियों में संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा कर सकता है – कानूनी आवश्यकता, संपत्ति के लाभ के लिए, और परिवार के सभी हिस्सेदारों की सहमति से।
पीठ ने कहा, यह स्थापित कानून है कि जहां सभी हिस्सेदारों की सहमति से बंटवारा नहीं किया गया हो, यह उन हिस्सेदारों के कहने पर निरस्त हो सकता है जिनकी सहमति प्राप्त नहीं हुई है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक अपील पर यह टिप्पणी की जिसमें एक व्यक्ति द्वारा बंटवारे और उसकी एक तिहाई संपत्ति के पृथक कब्जे के लिए अपने पिता तथा उसके द्वारा लाए गए एक व्यक्ति के खिलाफ दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में, दूसरे प्रतिवादी की ओर से यह स्वीकार किया गया है कि निपटान विलेख एक उपहार विलेख है जिसे पिता ने अपने पक्ष में ‘प्यार और स्नेह से’ निष्पादित किया था। इसने कहा यह अच्छी तरह से स्थापित है कि एक हिंदू पिता या हिंदू अविभाजित परिवार के किसी अन्य प्रबंध सदस्य के पास पैतृक संपत्ति का उपहार केवल ‘पवित्र उद्देश्य’ के लिए देने की शक्ति है और जिसे ‘पवित्र उद्देश्य’ शब्द से समझा जाता है वह है धर्मार्थ और/या धार्मिक उद्देश्य के लिए एक उपहार।
पीठ ने कहा इसलिए, प्यार और स्नेह से निष्पादित पैतृक संपत्ति के संबंध में उपहार का एक विलेख ‘पवित्र उद्देश्य’ शब्द के दायरे में नहीं आता है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में उपहार विलेख किसी धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्य के लिए नहीं है। हमारा विचार है कि पहले प्रतिवादी द्वारा दूसरे प्रतिवादी के पक्ष में निष्पादित निपटान विलेख / उपहार विलेख को प्रथम अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा सही रूप से अमान्य घोषित किया गया था।