किसी भी जेवर को पहनना और अच्छा दिखना…उसे पहनने के तरीके पर निर्भर करता है और यही वह चीज है जो फैशन को बना या बिगाड़ सकती है। खासकर सिल्वर या ऑक्सीडाइज्ड गहनों को लेकर यह बात कही जा सकती है और कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ृ
तो ये टिप्स जरूर आपके काम आएंगे। सिल्वर ज्वेलरी को पहनने के लिए बस थोडा सा ध्यान देने की जरूरत है। फिर देखिए कैसे महफिल में बस आपका खूबसूरत लुक ही लोग देखेंगे।
इंडो वेस्टर्न से लेकर देसी लुक हर किसी के साथ इसे पहना जा सकता है। बस थोडा सा ध्यान देने की जरूरत है। जैसे कि आप कुर्ते के साथ सिल्वर स्टड को मैच कर सकते हैं। हल्के शेड के सिल्क पैटर्न वाले कुर्ते के साथ इस तरह की ज्वैलरी को पहना जा सकता है। बस इस बात का ध्यान रखें कि अगर कुर्ते में एंब्रायडरी हो तो वो सुनहरी ना हों।
सफेद रंग के आउटफिट के साथ आप अपनी मनपसंद स्टाइल कर सकती है। इस रंग के कपड़ों को वैराइटी की स्टाइलिंग से खूबसूरत बनाया जा सकता है। सफेद के साथ सिल्वर कलर की एक्सेसरीज बेहद खूबसूरत लग सकती है। फंकी स्टाइल के नेकपीस को आप सफेद कुर्ते के साथ मैच करें। वहीं आप मौके के हिसाब से सिल्वर चूड़ियों को भी शामिल कर सकती हैं। ये काफी खूबसूरत लुक देंगे।
चांदी और ऑक्सीडाइज्ड जेवरों का रखें ख्याल
भारतीय भाषा परिषद के संस्थापक दिवस पर साहित्यिक अदालती चर्चा
कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में संस्थापक दिवस गत एक मई 2022 को मनाया गया जिसमें कोलकाता की अधिकतर संस्थाओं के प्रतिनिधियों और सदस्यों ने हिस्सा लिया। प्रथम सत्र में उद्घाटन समारोह में भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया एवं वक्तव्य रखते हुए भागीरथ कानोडिया और सीताराम सेकसरिया के अमूल्य योगदान को स्मरण किया । इस अवसर पर प्रो दिलीप शाह, डॉ शंभुनाथ, डॉ. राज्यश्री , धनश्याम सुगला आदि गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही ।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में साहित्यिक अदालती चर्चा में ग्यारह संस्थाओं ने शिरकत की। यह पहला अवसर था कि कोलकाता में साहित्य को एक अदालती चर्चा के माध्यम से सामने रखा गया। पूरे मंच को अदालत का स्वरूप दिया गया था, जिसमें न्यायपीठ के रूप में उपस्थित थे छपते- छपते के संपादक विश्वंभर नेवर, कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला, भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी के डीन दिलीप शाह। न्यायाध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और वागर्थ के संपादक डॉ. शंभुनाथ।
अदालती चर्चा का विषय था ‘संस्थान की दृष्टि और सृष्टि’। चर्चा शुरू होने से पहले इस पूरे परिकल्पना के कर्णधार परिषद के मंत्री डॉ. केयूर मजमुदार ने अतिथियों का स्वागत किया। रवि प्रताप सिंह ने इस अदालती चर्चा की रूपरेखा बताई। सबसे अद्भुत बात यह थी कि इस परिचर्चा में कोलकाता के 11 संस्थाओं ने हिस्सा लिया।
सहभागी संस्थानों में राजस्थानी प्रचारिणी सभा से रतन लाल शाह, साहित्यिकी से कुसुम जैन, परिवार मिलन से अजीत बच्छावत, भारत विकास परिषद से राजीव कुमार अग्रवाल, रचनाकार से सुरेश चौधरी, संस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन से संजय जायसवाल, लिटिल थेस्पियन से उमा झुनझुनवाला, भारत जैन महामंडल से अंजू सेठिया, रंगशिल्पी से प्लाबन बसु और शब्दाक्षर से रवि प्रताप सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। रचनाकार के संस्थापक सुरेश चौधरी ने कहा कि वह सिर्फ साहित्य का प्रचार – प्रसार ही नहीं करते बल्कि कई अच्छी पुस्तकों का प्रकाशन भी करते रहते हैं। उनके कार्यों की गवाही पलाश चतुर्वेदी और रावेल पुष्प ने दी।
रतन लाल शाह ने संस्थान की दृष्टि और सृष्टि विषय पर बात करते हुए कहा कि उनकी संस्थान का लक्ष्य राजस्थानी भाषा के प्रति सम्मान है, राजस्थानी भाषा का प्रचार- प्रसार है। उनके संस्थान के कार्यों की गवाही घनश्याम सुगला ने दी। कुसुम जैन ने कहा कि उनका काम मुख्य तौर से महिलाओं में साहित्यिक कार्यों के प्रति रुचि बढ़ाना है। सविता पोद्दार ने साहित्यिकी की ओर से गवाही दी। उमा झुनझुनवाला ने कहा कि कला और संस्कृति का विकास उनका मुख्य लक्ष्य है। सिर्फ हॉल में ही नहीं, खुले आँगन में भी रंगमंच का कार्य किया जा सकता है। उन्होंने लिटिल थेस्पियन के 28 वर्षों तक अका लेखा-जोखा भी पेश किया जिसकी गवाही रावेल पुष्प ने दी।
रंगशिल्पी के प्लावन बसु ने कहा कि आज अगर हम इस मंच पर हैं तो इसकी वजह थिएटर ही है। उन्होंने इस बात पर अफसोस प्रकट किया कि आज थिएटर देखने वाले दर्शकों की संख्या बहुत ही नगण्य हो गई है। हमें बहुत मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। तरुण नाथ गवाह रहे। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संजय जायसवाल अपने संस्थान के कई कार्यक्रमों की चर्चा की और कहा कि मिशन की कोशिश इस प्रकार के संवाद स्थापित करने की होती है जहाँ सब कुछ सुंदर और सुसंस्कृति को बढ़ावा मिले। उनके कार्यों की गवाही पूजा सिंह ने दी।
न्यायपीठ के सदस्य दिलीप शाह ने नाट्यकर्मियों को अपने कॉलेज भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी में आकर वहांँ के विद्यार्थियों के साथ काम करने का प्रस्ताव किया।
राजीव कुमार अग्रवाल ने अपनी संस्था, जो 1963 में स्थापित हुई थी, के बारे में बताया कि आज पूरे भारत में चौदह सौ शाखाएँ हैं और पैंसठ हजार परिवार इस संस्था से जुड़े हुए हैं। विवेकानंद के आदर्श को लेकर उनकी संस्था चलती है। संस्थान को अर्जुन की दृष्टि रखनी चाहिए, ताकि कार्य सिद्ध हो सके। आज लोग अर्थ दान तो दे देते हैं लेकिन समय दान नहीं देते। अमित अम्बस्ट ने गवाही दी।
रवि प्रताप सिंह ने अपनी संस्था शब्दाक्षर के विषय में बताया कि 2012 में स्थापित संस्था आज बीस हजार लोगों से जुड़ी हुई है। 52 देशों के लोग ऑनलाइन इसमें शामिल हैं। उनके कार्यों की गवाही दयाशंकर मिश्र ने दी।
अंजू सेठिया ने भारत जैन महामंडल के कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया। सरोज भंसाली ने गवाही दी। अजीत बछावत ने परिवार मिलन के बारे में बताया कि वह कई सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं, नेत्र चिकित्सा शिविर, मानस महोत्सव आदि। सौमित्र आनंद गवाह रहे।
न्यायपीठ से विश्वंभर नेवर, प्रो दिलीप शाह एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो राजश्री शुक्ला ने अपना न्याय सुनाया और संस्थानों के प्रति अपने दृष्टिकोण को रखा। न्यायाध्यक्ष डॉ शंभुनाथ ने कई संस्थानों के कार्यों की सराहना की और आगे बढ़ने की सलाह दी। अदालती कार्यवाही की मध्यस्थता की भूमिका में डॉ. वसुंधरा मिश्र, डॉ. केयूर मजमुदार और डॉ. अल्पना सिंह रहे जिन्होनें अपनी भूमिका का निर्वहन किया। डॉ. केयूर मजमुदार ने कई सवालात गवाहों के सामने पेश किए। डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
कुल मिलाकर यह कार्यक्रम सबके समक्ष एक नया कार्यक्रम था। इसकी परिकल्पना नयी और अनोखी थी। मंच को एक अदालती स्वरूप दिया गया था जो वक्ताओं के साथ-साथ दर्शकों को भी बहुत मनभावन लगा। मंच से बताया गया कि मासिक अदालती चर्चा में हर माह किसी न किसी नए – नए विषयों पर चर्चा जारी रहेगी।
संस्थान के प्रतिनिधियों को परिषद के वित्त मंत्री घनश्याम सुगला एवं सदस्य अमित मूंदड़ा ने सभी गणमान्य अतिथियों को भारतीय भाषा परिषद का मोमेंटो देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के संयोजकों में अमित मूंदड़ा, सुशील कान्ति, अमृता चतुर्वेदी और मीनाक्षी दत्ता की सक्रिय भागीदारी रही।
कविगुरु की 161वीं जयन्ती पर देश भर में प्रदर्शित होगी ‘थिंकिंग ऑफ हिम’
भारत-अर्जेंटीना द्वारा साझा निर्मित है यह फिल्म
कोलकाता । इंडो-अर्जेंटीना की फिल्म थिंकिंग ऑफ हिम 6 मई को गुरु टैगोर की जयंती के अवसर पर पूरे भारत के सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। यह फिल्म भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और अर्जेन्टीना की लेखिका विक्टोरिया ओकैम्पो के प्रेरक और पवित्र सम्बन्ध को दिखाएगी। अर्जेंटीना के फिल्म निर्देशक पाब्लो सीजर की इस फिल्म को पुरस्कार विजेता व भारतीय फिल्म निर्माता सूरज कुमार ने निर्मित किया है।
गीतांजलि के फ्रेंच अनुवाद को पढ़ने के बाद, ओकाम्पो ने टैगोर को अपना आदर्श मान लिया और 1924 में जब वह अपनी ब्यूनस आयर्स यात्रा के दौरान बीमार पड़ गए, विक्टोरिया ने उनकी देखभाल की थी। निर्देशक पाब्लो सीज़र 1992 से ब्यूनस आयर्स के विश्वविद्यालय में सिनेमा प्रोफेसर हैं। थिंकिंग ऑफ हिम में टैगोर की भूमिका में पद्म विभूषण विक्टर बनर्जी और विक्टोरिया के रोल में अर्जेंटीना के अभिनेत्री एलोनोरा वेक्सलर हैं। फिल्म में प्रसिद्ध बंगाली अभिनेत्री राइमा सेन और हेक्टर बोर्डोनी भी प्रमुख भूमिका में हैं। टैगोर के प्लेटोनिक प्रेम को ओकैम्पो के आध्यात्मिक प्रेम का प्रतिदान मिला जो कि अर्जेंटीना अकादमी ऑफ लेटर्स की सदस्य बनने वाली पहली महिला भी थीं।भारत में शूटिंग के अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए पाब्लो सीजर ने कहा कि भारत में शूटिंग करना एक अनूठा अनुभव था। मैं भारत को 1994 से जानता हूं, हालांकि पूरे भारत को जानना मुश्किल है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने भारत में कई जगहों के लोगों के स्वभाव और व्यवहार के बारे में बहुत कुछ समझा है, यह एक ऐसा देश है जिसकी मैं व्यक्तिगत रूप से प्रशंसा करता हूं ।
फिल्म के बारे में अपने विचार साझा करते हुए सूरज कुमार ने कहा कि हमें खुशी है कि फिल्म आखिरकार पूरे भारत के सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है और वह भी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की 161वीं जयंती के अवसर पर। हम वास्तव में भाग्यशाली रहे हैं कि पाब्लो सीजर जैसे निर्देशक ने इस फिल्म को निर्देशित किया है और टैगोर की केंद्रीय भूमिका में विक्टर बनर्जी ने इस भूमिका के साथ पूरी तरह से न्याय किया है।
भारतीय मुद्रा पर जीवाणुरोधी प्रभाव का अध्ययन, महानगर के विद्यार्थियों ने खोजा समाधान
कोलकाता । हम जिन नोटों को सम्भालकर जेब या पर्स में रखते हैं, उन में बैक्टेरिया भी हो सकते हैं और बीमारी का कारण बन सकते हैं। विश्व के कई मेडिकल जर्नल इस बारे में काफी शोध प्रकाशित कर चुके हैं।
हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में सॉफिस्टिकेटेड एनालिटिकल इन्स्ट्रूमेंट फैसिलिटी द्वारा जारी एक अध्ययन के अनुसार भारतीय करेंसी नोटों में बैक्टेरिया, फंगस और वायरस होते हैं और यह फ्लू, मेनिन्जाइटिस, गले में संक्रमण जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। सब्जी बाजार, मांस विक्रेताओं, दूध और पान की दुकानों, मोची, पेट्रोल पम्प. किराने की दुकानों से लेकर दवाओं की दुकानों में भी नोटों के कारण बीमारियों का खतरा बना रहता है। पेप्टिक अल्सर, टॉन्सिलिटिस, तपेदिक, जननांग पथ के संक्रमण, हेपेटाइटिस सी, ऐसी अन्य बीमारियों के बीच।
हाल ही में हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बी.टेक (केमिकल इंजीनियरिंग) के तृतीय वर्ष के दो विद्यार्थियों, अनिरुद्ध होर, सप्तर्षि मित्रा ने ”भारतीय मुद्रा पर जीवाणुरोधी प्रभावों का अध्ययन’ विषय पर अपना शोध पत्र एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पढ़ा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियर्स द्वारा हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कोलकाता और एनआईटी, जालंधर के सहयोग से आयोजित एडवांस केमिकल एंड मटेरियल साइंसेज (एसीएमएस) -2022 नामक इस सम्मेलन में इस शोध पत्र को पुरस्कृत किया गया। शोध पत्र को बेस्ट ओरल प्रेजेन्टेशन यानी सर्वश्रेष्ठ वाचिक प्रस्तुति का पुरस्कार मिला। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी परिसर में गत 14-16 अप्रैल को आयोजित इस सम्मेलन में कई आईआईटी, एनआईआईटी संस्थानों के अतिरिक्त बार्क ने भी भाग लिया। सम्मेलन में 586 शोध पत्र पढ़े गये, 16 अतिथि व्याख्यान भी हुए।
छात्रों ने माइक्रोस्कोप के तहत पहचाने गए रोगाणुओं से एक सॉल्यूशन तैयार किया, जो मुद्रा नोटों पर लागू होने पर भारतीय मुद्रा नोटों को लगभग 17 मिनट के लिए जीवाणुरोधी बना देगा। समाधान ज्यादातर प्राकृतिक अवयवों से बना था और मानव त्वचा के लिए बेहद उपयुक्त है।
यह शोध डॉ. अविजित घोष, सहायक प्रोफेसर, केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियर्स (आईआईसीएचई) द्वारा वित्तीय रूप से वित्त पोषित किया गया था। पेटेंट के लिए भी यही आवेदन किया गया था।
द हेरिटेज कॉलेज कोलकाता में नाटक प्रतियोगिता आयोजित
कोलकाता । नाटक शैक्षणिक प्रक्रिया का अंग बन गये हैं। शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिए नाटकों का उपयोग किया जा रहा है। हेरिटेज कॉलेज के ड्रामा क्लब ने गत 2 मई 2022 को एक नाटक प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता के आयोजन में अंग्रेजी भाषा विभाग के छात्रों ने सक्रिय पहल की। द प्रोडिगल डॉटर, भूतर भोबिशोत (द हेरिटेज वर्जन) जैसे नाटकों का मंचन पर प्रदर्शन किया गया। पटकथा में बहुत सारी रचनात्मकता, अभिनय कौशल और नवाचार प्रत्येक नाटक में गए।
द हेरिटेज कॉलेज के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. असीजित दत्ता ने कहा “हमारा मानना है कि छात्रों को चहारदीवारी के पार जाना चाहिए, और परर्फॉर्मिंग आट्रर्स इसके लिए एक उपयुक्त माध्यम है। हमारी शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया का उद्देश्य अनुभवात्मक शिक्षा और वैकल्पिक शिक्षा के तरीकों का उपयोग करना है ताकि छात्रों को अपने विचारों के साथ तलाशने, नयी परिस्थितियों को समझने और अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करने का सही अवसर मिल सके। हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, कोलकाता के सीईओ पी. के. अग्रवाल ने कहा “नाटक को एक शिक्षण सहायता के रूप में उपयोग करना अब केवल सामाजिक मुद्दों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह कक्षाओं में भी अपना रास्ता बनाता है। पढ़ाने के नए तरीकों की खोज करना हमारे कॉलेज में एक नियमित सुविधा है।
‘चेम्सपार्क 2022’ में जल संरक्षण में केमिकल इंजीनियरों के योगदान पर जोर
कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग ( आईआईसीएचई), स्टूडेंट चैप्टर के सहयोग से नवाचार और विशेषज्ञों को लेकर चर्चा आयोजित की। ‘चेम्सपार्क 2022’ स्टूडेंट प्रोग्राम है जो वार्षिक तौर पर आयोजित किया जाता है। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि कलकत्ता विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी विभाग के पूर्व डीन प्रो. शेखर भट्टाचार्य ने इंजीनियरिंग के इंटरडिसिप्लीनरी पक्ष के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि केमिकल इंजीनियरिंग में प्रगति इंजीनियरिंग की अन्य धाराओं के साथ जुड़ी हुई है। ‘केमिकल इंजीनियरिंग की तरह ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग में भी इसी तरह की प्रगति देखी गयी है। प्रधान अतिथि के रूप में उपस्थित बाल्मर एंड लॉरी के पूर्व जीएम एवं आईआईसीएचई के काउंसिल एसके रॉय ने कहा कि केमिकल इंजीनियरिंग और कुछ नहीं बल्कि एप्लाइड साइंस के अक्षर हैं। आज केमिकल इंजीनियरों को पानी की कमी जैसे संकट का समाधान खोजने में सक्षम होना चाहिए। जल संरक्षण और इसकी बर्बादी को रोकना अध्ययन का विषय होना चाहिए। इंजीनियरिंग के सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में उपयोग हो, यह मायने रखता है। कार्यक्रम में हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल प्रो. बासव तौधरी ने भी विचार रखे, साथ ही प्रोसेस सिमुलेशन पर कार्यशाला भी आयोजित की गयी।
एचआईटीके के केमिकल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष प्रो. सुलग्ना चटर्जी ने कहा कि विशेषज्ञों के अनुभवों का लाभ विद्यार्थियों तक पहुँचाना कार्यक्रम का उद्देश्य है। उद्घाटन सत्र में एचआईटीके के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डीन प्रो. पिनाकी भट्टाचार्य, रजिस्ट्रार प्रो. सुजीत बरुआ भी उपस्थित थे। हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल ने आयोजन की सराहना की।
एचआईटीके के विद्यार्थियों के बीच नासा के वैज्ञानिक
कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन विभाग एवं आईईई माइक्रोवेव थ्योरी एंड टेक्नीक्स द्वारा एपी – एमटीटी के सहयोग से एक संवाद सत्र आयोजित हुआ। संवाद सत्र में अमेरिका के पेसाडोना कैलिफोर्निया स्थित कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में नासा जेट प्रोपल्सन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गौतम चट्टोपाध्याय शामिल हुए। ‘मार्स लैंडिंग: रोवर एंड हेलिकॉप्टर’ विषय पर बोलते हुए डॉ. चट्टोपाध्याय ने कहा, “हमें पृथ्वी ग्रह के बाहर जीवन का कोई रूप नहीं मिला, यहां तक कि एक कोशिका भी नहीं मिली। लेकिन जीवन हो सकता है और इसकी खोज अभी बाकी है। ब्रह्मांड में खरबों ग्रह हैं और हम 5000 एक्सोप्लैनेट का अध्ययन कर रहे हैं जिसके लिए भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है। किसी भी ग्रह पर जीवन को जीवित रखने के लिए उसकी सतह चट्टानी होनी चाहिए और पानी के अस्तित्व की संभावना होनी चाहिए।” विभिन्न उदाहरणों का हवाला देते हुए उन्होंने छात्रों को पर्सेवरेंस रोवर के बारे में एक विस्तृत प्रस्तुति दी, जो पिछले वर्ष मंगल पर उतरा है, साथ ही मंगल ग्रह पर एक हेलीकॉप्टर का पहला प्रक्षेपण भी किया गया था। इसे हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक सफलता बनाने के लिए भी किया गया था। सत्र को भी संबोधित करते हुए डॉ. शिबन कौल, एमेरिटस प्रोफेसर, सेंटर फॉर एप्लाइड रिसर्च इन इलेक्ट्रॉनिक्स, आईआईटी दिल्ली और डॉ. चिन्मय साहा, एसोसिएट प्रोफेसर, भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान। दोनों ने क्रमशः माइक्रोवेव इंटीग्रेटेड सर्किट और सैटेलाइट ट्रैकिंग एप्लिकेशन पर नवीनतम तकनीकों के बारे में बात की। एचआईटीके के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशंस विभागाध्यक्ष प्रो. प्रबीर बनर्जी ने बताया संस्थान में एमटीटी – एपी स्टूडेंट्स चैप्टर शुरू करने पर विचार किया जा रहा है।
गौरतलब है कि प्रो. एडी साइंटिफिक इंडेक्स द्वारा वर्ष 2022 के लिए प्रबीर बनर्जी को दुनिया भर के शीर्ष 100 वैज्ञानिकों में शामिल किया गया था।
हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल ने “छात्र विशेषज्ञों के साथ बातचीत से बहुत कुछ सीखते हैं और उन्हें अपने कौशल और ज्ञान को विकसित करने वाले ऐसे अवसरों का लाभ उठाना चाहिए।”
जानिए गंगा का जल क्यों नहीं होता कभी खराब…
प्रथमेश व्यास
भारतीय संस्कृति में नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है। प्रमुख वार-त्योहारों पर श्रद्धालु इन्ही नदियों के घाट किनारे स्नान करने जाते है और पात्रों में भरकर इन नदियों के जल को अपने घरों में भी लाते हैं। इस जल का उपयोग घर की शुद्धि करने, चरणामृत में मिलाने, पूजा या अनुष्ठान करने जैसे कई धार्मिक कार्यों में किया जाता है। लगभग हर हिन्दू परिवार में आपको एक कलश मिल ही जाएगा जिसमे गंगाजल होता है। भारत में लोग गंगा जल को सबसे ज्यादा पवित्र मानते हैं और बताते हैं कि इसका पानी कभी ख़राब नहीं होता। अब सवाल ये है कि इतने अवांछित पदार्थों के मिल जाने के बाद भी गंगा जल आखिर खराब क्यों नहीं होता?
हिन्दू वेद-पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की माने तो उनमें गंगा की महिमा का वर्णन कई कथाओं के माध्यम से मिल जाएगा। इस विषय में एक घटना ये भी प्रचलित है कि एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने वर्ष 1890 में गंगा के पानी पर रिसर्च भी की थी। दरअसल, उस दशक में भारत के कई हिस्सों में हैज़ा का भयंकर प्रकोप था, जिसने कई लोगों की जान ली थी। उस समय लोग लाशों को गंगा नदी में फ़ेंक जाते थे। गंगा के उसी पानी में नहाकर या उसे पीकर अन्य लोग बीमार ना पड़ जाए, इसी बात की चिंता उस वैज्ञानिक को थी। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और गहन शोध के बाद उसने यह पाया की गंगा नदी के पानी में विचित्र वायरस है जो इसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। इस वजह से गंगा के पानी को घरों में कई दिनों तक रखा जाने के बाद भी उसमें से दुर्गंध नहीं आती।
‘पवित्रता के पर्याय’ गंगाजल का नाम आते ही ये सवाल हमारे मन में जरूर आता है। लेकिन इसका जवाब भी वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है। दरअसल, हिमालय में स्थित गंगोत्री से निकली गंगा का जल इसलिए कभी खराब नहीं होता, क्योंकि इसमें गंधक, सल्फर इत्यादि खनिज पदार्थों की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा का जल हिमालय पर्वत पर उगी कई उपयोगी जड़ी-बूटियों को स्पर्श करते हुए आता है। एक अन्य रिपोर्ट ये भी दावा करती है कि गंगा जल में’ बैक्ट्रिया फोस’ नामक एक विशेष बैक्टीरिया पाया जाता है, जो इसमें पनपने वाले अवांछित पदार्थों को खाता रहता है, जिससे इसकी शुद्धता बनी रहती है।
गंगा हिमालय से शुरू होने के बाद कानपुर, वाराणसी और प्रयागराज जैसे शहरों तक पहुंचती है जहां खेतीबाड़ी का कचरा-कूड़ा और औद्योगिक रसायनों की भारी मात्रा इसके पानी में मिल जाती है , इसके बाद भी गंगा का पानी पवित्र बना रहता है। इसका एक और वैज्ञानिक कारण है कि इसे शुद्ध करने वाला तत्त्व गंगा की तलहटी में ही मौजूद है। कई वर्षों से गंगा के पानी पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने ये निष्कर्ष निकाला है कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है, जो दूसरी नदियों के मुकाबले कम समय में पानी में मौजूद गंदगी को साफ़ करने में मदद करती है।
लगातार बढ़ रहे गर्मी के प्रकोप बीच केंद्र ने जारी की ‘हेल्थ एडवाइजरी
नयी दिल्ली । देश भर के कई इलाकों में लगातार बढ़ रहे गर्मी के प्रकोप बीच सरकार ने भीषण गर्मी में खुद को सुरक्षित रखने के लिए जनता के लिए हेल्थ एडवाइजरी (स्वास्थ्य सुझाव) जारी की है।
गर्मी को मात देने के लिए, सरकार द्वारा सुझाए गए कुछ उपायों में हाइड्रेटेड रहना, घर के अंदर पर्याप्त पानी पीना, ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) का उपयोग करना और उच्च पानी की मात्रा वाले मौसमी फल और सब्जियां खाना शामिल हैं।
साथ ही लोगों को हल्के रंगों के पतले, ढीले, सूती कपड़े पहनने की भी सलाह दी गयी है। एडवाइजरी में आगे कहा गया है: “अपना सिर ढकें: सीधी धूप के संपर्क में आने के दौरान छाता, टोपी, टोपी, तौलिया और अन्य पारंपरिक हेडगियर का उपयोग करें।” सरकार ने लोगों को बाहरी गतिविधियों को दिन के ठंडे समय – सुबह और शाम तक सीमित रखने की भी सलाह दी है।
सरकार ने ऐसे लोगों को भी सूचीबद्ध किया है जो गर्मी या गर्मी से संबंधित बीमारी से पीड़ित होने का अधिक जोखिम रखते हैं – जिनमें शिशु, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं, मानसिक बीमारी वाले लोग और बाहर काम करने वाले लोग शामिल हैं।
क्या न करें
धूप में बाहर निकलना, विशेष रूप से दोपहर 12:00 बजे से 03:00 बजे के बीच, नंगे पांव बाहर जाना, गर्मी के चरम घंटों के दौरान खाना पकाना।
सरकार की एडवाइजरी के अनुसार हीट रैश, हीट एडिमा (हाथों, पैरों और टखनों में सूजन, हीट क्रैम्प्स (मांसपेशियों में ऐंठन), हार्ट सिंकोप (बेहोशी), हीट स्ट्रोक गर्मी से संबंधित कुछ बीमारियां हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण द्वारा शनिवार को जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया है, ‘स्वास्थ्य सुविधाओं को ठंडा करने वाले उपकरणों के निरंतर कामकाज के लिए निर्बाध बिजली की व्यवस्था करके, सौर पैनलों की स्थापना (जहां भी संभव हो), इनडोर गर्मी को कम करने के उपायों के माध्यम से, ग्रीन रूफ (एनडीएमए दिशानिर्देशों को संदर्भित किया जा सकता है), खिड़की के रंग, बाहर की छाया, आदि अत्यधिक गर्मी में लचीलापन बढ़ाने की आवश्यकता है।। पानी में आत्मनिर्भरता के लिए वर्षा जल संचयन और पुनर्चक्रण संयंत्रों का भी पता लगाया जा सकता है।
इस एडवाइजरी में लिखा गया है, ‘राज्य सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) के साथ-साथ सामुदायिक स्तर की जागरूकता सामग्री का उपयोग भी कर सकते हैं, जो कि गर्मी की लहर से खुद को बचाने के लिए आबादी द्वारा बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में है। इस पत्र के साथ एनसीडीसी द्वारा तैयार ‘क्या करें और क्या न करें’ को शामिल करते हुए जन स्वास्थ्य परामर्श का एक मानक परिपत्र संलग्न किया जा रहा है। इस दस्तावेज़ को एक टेम्पलेट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित किया जा सकता है और साथ ही व्यापक प्रसार के लिए स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया जा सकता है।”
देश के कुछ हिस्सों में पिछले कुछ हफ्तों से भीषण गर्मी पड़ रही है, जहां उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में उच्च तापमान क्रमशः 35.9 और 37.78 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। देश के दोनों क्षेत्रों ने 122 वर्षों में सबसे गर्म अप्रैल का अनुभव किया।
बिहार में दो साल से प्यासी है बलदहिया नदी
नारायण कुमार, रतनी फरीदपुर (जहानाबाद)। बिहार में एक तरफ जल जीवन हरियाली योजना के तहत विलुप्त हो चुके जल स्रोतों को ढूंढने और उसके जीर्णोद्धार करने का प्रयास चल रहा है, वहीं कल-कल कर बहने वाली एक नदी को कुर्बान कर दिया गया।
इलाके के किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली बलदहिया नदी पिछले दो साल से बूंद बूंद पानी को तरस रही है। यह नदी गया जिले की सीमा से आगे बहते हुए प्रखंड क्षेत्र के भूमि को सिंचित कर सदर प्रखंड के खेतों को पानी देते हुए पटना जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पुनपुन में मिलती है।
इलाके के किसान बताते हैं कि इस नदी से हजारों एकड़ भूमि वर्षों से सिंचित होती थी, लेकिन पिछले दो साल से बरसात में भी यह प्यासी रह जा रही है। दरअसल, गया जिले के टेकारी थाना अंतर्गत फेनगी के समीप बांध बनाया गया है। इस कारण इस नदी को बांध दिया गया है। बांध इतना ऊंचा है कि बाढ़ आने के बाद ही इस नदी तक पानी पहुंच सकेगा। परिणामस्वरूप दो सालों से यह नदी प्यासी है।
नदी में पानी नहीं आने से किसानों की फसल सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। इलाके का भूजल स्तर भी नीचे जा रहा है। यदि निकट भविष्य में इस नदी के साथ न्याय नहीं हुआ तो इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और हजारों एकड़ भूमि बंजर हो जाएगी। सैकड़ों गांवों में भूजल स्तर पाताल में चला जाएगा। इलाके के किसान नदी की दुर्दशा देख परेशान हैं।
बलदहिया नदी के नाम पर है सर्किट हाउस का एक कमरा
जहानाबाद सर्किट हाउस में कमरों के नाम नदियों के नाम पर रखे गये हैं। इनमें एक कमरा बलदहिया के नाम से भी है। ताकि अतिथिशाला में ठहरने वाले लोगों को यहां के जल स्रोतों की जानकारी मिल सके। यह पूरी पहल जिला प्रशासन द्वारा की गयी है जो निश्चित ही जल स्रोतों के प्रति लोगों को सजग करने की अच्छी पहल है। लेकिन बलदहिया के नेम प्लेट को देख नदी की दुर्दशा की तस्वीर भी जेहन में ताजा हो जा रही है। जिस नदी का नाम जिला प्रशासन अपने अतिथियों के समक्ष गर्व से रखता है। उस नदी को पानी के बूंद- बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है। ऐसा न हो कि नेम प्लेट तक ही इस नदी का नाम सीमित रहे और धरातल से यह विलुप्त हो जाए।
(साभार – दैनिक जागरण)