Thursday, July 17, 2025
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केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के सभी प्रतिष्ठानों में लगेंगे रूफटॉप सौर ऊर्जा पैनल

नयी दिल्ली । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर हरित पहल करते हुए यह निर्णय लिया है कि देश में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के सभी प्रतिष्ठानों की छतों पर रूफटॉप सौर ऊर्जा पैनल लगाए जाएंगे।
गृह मंत्रालय के इस कदम से 71.68 मेगावॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन होगा और देशभर में बड़ी संख्या में सुरक्षा प्रतिष्ठानों में हरित ऊर्जा का उपयोग किया जा सकेगा।
गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और शून्य-कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की दिशा में बढ़ने की दिशा में केंद्र सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के परिसरों में सौर ऊर्जा पैनल लगाने का फैसला किया गया है।
इस सिलसिले में केंद्रीय गृह सचिव और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव की मौजूदगी में शुक्रवार को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता गृह मंत्रालय और भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (एसईसीआई) के बीच हुआ है।
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सीएपीएफ और एनएसजी के परिसरों में एसईसीआई की कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 71.68 मेगावॉट है। सीएएएफ के तहत सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसफ, आईटीबीपी और एसएसबी आते हैं।

सार्वजनिक साधारण बीमा कंपनियों को सरकार से मिल सकती है 5,000 करोड़ रुपये की पूंजी

नयी दिल्ली । सरकार चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र की तीन साधारण बीमा कंपनियों में 3,000 करोड़ रुपये से लेकर 5,000 करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त पूंजी डाल सकती है। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इन कंपनियों को यह अतिरिक्त पूंजी साल के दौरान उनके प्रदर्शन और जरूरत के आधार पर दी जाएगी।
पूंजी निवेश मिलने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों- नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि., ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि. और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की वित्तीय सेहत में सुधार होगा।
पिछले वित्त वर्ष में भी सरकार ने इन कंपनियों में 5,000 करोड़ रुपये की पूंजी डाली थी। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान इन कंपनियों को सरकार से 9,950 करोड़ रुपये की पूंजी मिली थी। इसमें से 3,605 करोड़ रुपये का निवेश यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस, 3,175 करोड़ रुपये नेशनल इंश्योरेंस और 3,170 करोड़ रुपये ओरियंटल इंश्योरेंस को मिले थे।
सूत्रों ने बताया कि कमजोर साधारण बीमा कंपनियों को पिछले वित्त वर्ष में पूंजी समर्थन दिया गया था। इस साल इन कंपनियों को फिर से मुनाफे में लाने के लिए कुछ और कोष की जरूरत है। सूत्रों ने बताया कि इन कंपनियों को यह अतिरिक्त पूंजी उनके प्रदर्शन के आधार पर मिलेगी। इन कंपनियों को आगे और कोष दिए जाने की संभावना के मद्देनजर सरकार ने पहले ही उनकी अधिकृत पूंजी बढ़ा दी है।

तीनों सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की परिचालन दक्षता में सुधार के लिए जल्द ही एक बाहरी सलाहकार नियुक्त किया जाएगा। जनरल इंश्योरेंस पब्लिक सेक्टर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (जीआईपीएसए) के जरिये सार्वजनिक क्षेत्र की चार कंपनियों ने पुनर्गठन के लिए अनुरोध प्रस्ताव (आरएफपी) भेजा है। इसका मकसद मुनाफे की स्थिति में लौटना और कर्मचारियों का विकास है।
आरएफपी में कहा गया है कि मुनाफे वाली वृद्धि और प्रदर्शन और क्षमता के प्रबंधन के जरिये कर्मचारियों के विकास के लिए संगठन के पुनर्गठन का प्रस्ताव है। बोली जमा करने की अंतिम तिथि दो जून, 2022 है। सार्वजनिक क्षेत्र की चार साधारण बीमा कंपनियों में से सिर्फ न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ही शेयर बाजारों में सूचीबद्ध है। शेष कंपनियों पर पूर्ण रूप से सरकार का स्वामित्व है।

हवाईअड्डों पर बिकेंगे स्थानीय कारीगरों के उत्पाद

एएआई ने की स्वयं सहायता समूहों से भागीदारी
नयी दिल्ली । भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने विभिन्न हवाईअड्डों पर स्वयं सहायता समूहों को जगह देनी शुरू कर दी है, जहां इन समूहों से जुड़े कारीगर स्थानीय स्तर पर विकसित अपने उत्पादों की बिक्री कर सकेंगे।
क्षेत्र के कुशल कारीगरों के लिए ‘बिक्री स्थल के रूप में हवाईअड्डा’ यानी ‘अवसर’ पहल के तहत स्वयं सहायता समूह अगरतला, कुशीनगर, उदयपुर और मदुरै समेत 12 हवाईअड्डों पर अपने उत्पादों का प्रदर्शन पहले से कर रहे हैं।
एएआई ने बताया कि वाराणसी, कालीकट, कोलकाता, कोयंबटूर और रायपुर समेत कई अन्य शहरों के हवाईअड्डों पर भी संबंधित राज्यों सरकारों के समन्वय से स्थानीय समूहों को उत्पादों की बिक्री के लिए जगह दी जाएगी। विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, रायपुर, सिलचर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट के हवाईअड्डों पर भी स्थानीय समूहों को जगह देने की प्रक्रिया चल रही है।
एएआई के चेयरमैन संजीव कुमार ने कहा, ‘‘अवसर पहल का उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों को हवाई अड्डों पर न केवल एक मंच उपलब्ध करवाना है बल्कि यात्रियों को स्थान विशिष्ट की विरासत और लोकाचार से परिचित करवाना भी है। इन समूहों को हवाई अड्डे पर 100-200 वर्गफुट की जगह दी जाती है जहां ग्रामीण महिलाओं और कारीगरों द्वारा बनाए उत्पादों का प्रदर्शन होता है।

 

मशहूर साहित्यकार रजत कुमार कर का निधन

भुवनेश्वर । प्रतिष्ठित ओड़िया साहित्यकार एवं पद्मश्री से सम्मानित रजत कुमार कर का रविवार को भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। उनके परिवार ने यह जानकारी दी।
परिवार के सदस्यों ने बताया कि रजत हृदय संबंधी बीमारियों से ग्रसित थे। उन्होंने बताया कि रजत ने शाम करीब पांच बजे सीने में दर्द की शिकायत की। इसके बाद रजत को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने रजत के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि ओड़िया संस्कृति में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। पटनायक ने कहा कि रजत का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
रजत को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वह जगन्नाथ संस्कृति के एक कुशल वक्ता थे, जो छह दशकों तक टीवी और रेडियो पर वार्षिक रथ यात्रा के दौरान अपनी ‘कमेंट्री’ के लिए खासतौर पर पहचाने जाते थे।

पीयरलेस समूह के प्रबंध निदेशक पद्मश्री सुनील कांति रॉय का निधन

कोलकाता । कोलकाता के वित्तीय सेवा प्रदाता पीयरलेस समूह के प्रबंध निदेशक (एमडी) सुनील कांति रॉय का यहां एक अस्पताल में निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों से यह जानकारी मिली।
सूत्रों के मुताबिक, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित 78 वर्षीय रॉय वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। रॉय की तबीयत बिगड़ने के बाद सात मई को उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था और रविवार की रात उनका निधन हो गया। उन्होंने 1985 में अपने बड़े भाई बी के रॉय की मृत्यु के बाद पीयरलेस समूह की जिम्मेदारी संभाली थी।

रॉय के पिता ने बांग्लादेश में की थी पीयरलेस की स्थापना

एसके रॉय का जन्म 8 जनवरी 1944 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता, राधेश्याम रॉय एक स्कूल शिक्षक थे, लेकिन बाद में 1932 में उन्होंने बांग्लादेश में पीयरलेस की स्थापना की। वर्ष 1935 में कंपनी के आधार को कलकत्ता (अब कोलकाता) में स्थानांतरित कर दिया। अपने जीवनकाल में रॉय राष्ट्रीय ख्याति के विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक और कॉरपोरेट निकायों से जुड़े रहे।

2009 में मिला पद्म श्री सम्मान

वह वर्ष 2009 से 2010 तक बंगाल नेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (बीएनसीसीआई) के अध्यक्ष और कई वर्षों तक भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की कार्यकारी समिति के सदस्य थे। उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 1993 में ‘राजीव गांधी स्मृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 31 मार्च, 2009 को रॉय को सामाजिक कार्य के क्षेत्र में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया। समूह की वर्तमान में कुल संपत्ति 1,913 करोड़ रुपये है।

यूजीसी ने शुरू किया समन्वित ऑनलाइन प्लेटफार्म ‘‘शोध चक्र

शोध कार्य को बढ़ावा देने की पहल
नयी दिल्ली । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए समन्वित ऑनलाइन प्लेटफार्म ‘‘शोध चक्र’’ की शुरूआत की । यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम जगदीश कुमार ने बताया कि इस प्लेटफार्म पर शोधार्थियों की सुविधा के लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है । उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में इसके माध्यम से कार्यशालाएं भी आयोजित की जायेंगी।
‘‘शोध चक्र’’ का विकास सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क (इनफ्लिबनेट) ने किया है जो यूजीसी का अंतर विश्वविद्यालय केंद्र है । एक अधिकारी ने बताया ‘‘अभी तक कोई ऐसा समर्पित प्लेटफार्म नहीं था जहां शोध के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ा पूरा ब्यौरा उपलब्ध हो । ऐसे में शोध चक्र प्लेटफार्म का लाभ न केवल शोधार्थी उठा सकेंगे बल्कि इसका फायदा पर्यवेक्षकों, गाइड एवं विश्वविद्यालयों को भी होगा । ’’
उन्होंने बताया कि इस प्लेटफार्म की शुरूआत 14 मार्च 2022 को यूजीसी द्वारा दिए गए उस दिशानिर्देश के अनुरूप की गई है जिसमें सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में शोध एवं विकास प्रकोष्ठ स्थापित करने को कहा गया था ।
अधिकारी ने बताया कि यूजीसी ‘शोध चक्र’ प्लेटफार्म पर शोधार्थियों के लिये साहित्य एवं शोध सामग्री की समीक्षा करने से लेकर शोध पत्र (थीसिस) प्रस्तुत करने तक सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं ।
उन्होंने बताया कि इस प्लेटफार्म पर ज्ञान संसाधन के रूप में वीडियो एवं लिखित रूप में सामग्री है । इस पर फिलहाल 3.5 लाख से अधिक शोध पत्र से जुड़ी सामग्री उपलब्ध है।

 ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ को लेकर साथ आए पर्यटन मंत्रालय एवं आईलीड

कोलकाता । युवाओं के साथ जुड़ने के लिए एक भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कोलकाता के इंस्टीट्यूट ऑफ लीडरशिप, एंटरप्रेन्योरशिप एंड डेवलपमेंट यानी (आईलीड)  के साथ एक समझौता किया है। बता दें कि यह पहली बार  पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार, ने युवाओं के साथ जुड़ने के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम में कोलकाता के एक कॉलेज के साथ गठजोड़ किया है। स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस वर्ष ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाना और युवाओं के बीच ‘देखो अपना देश’ और ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की पहल को और बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार ने कोलकाता के सबसे बड़े कॉलेज उत्सव, मैनेजडिया 2022 में आईलीड के साथ जुड़ा  है।

डॉ. साग्निक चौधरी, क्षेत्रीय निदेशक (पूर्व) और उप महानिदेशक, पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा, “दुनिया भारत को आशा और विश्वास के साथ देखती है क्योंकि भारत की जनसांख्यिकी युवा है, भारत की जड़ भी युवा है। भारत की क्षमता में और उसके सपनों में युवा है। भारत अपने विचारों के साथ-साथ अपनी चेतना में भी युवा है। भारत की सोच और दर्शन ने हमेशा परिवर्तन को स्वीकार किया है और इसकी प्राचीनता में आधुनिकता है। देश के युवा हमेशा जरूरत के समय आगे आए हैं। जब भी राष्ट्रीय चेतना विभाजित होती है, युवा आते हैं और देश को एकता के सूत्र में पिरोते हैं-जिसने भारत को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ बनाया। मैनेजेडिया जैसे आयोजनों में सहयोग करने से हमें आजादी का अमृत महोत्सव, एक भारत श्रेष्ठ भारत, देखो अपना देश आदि विषयों पर सार्थक पहल में छात्रों को शामिल करने का अवसर मिलता है, जो निश्चित रूप से उन्हें अपने देश, उनकी विद्या पर गर्व करेगा।

यह मैनेजडिया भारत की अनछुई विविधताओं और युवा प्रतिभाओं की फिर से खोज करने के बारे में है। इसके बारे में बोलते हुए, आईलीडके अध्यक्ष, प्रदीप चोपड़ा ने कहा, “कोलकाता के सबसे बड़े कॉलेज उत्सव, मैनेजेडिया 2022 के लिए पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के साथ जुड़ना आईलीड के लिए एक बड़ा सम्मान है। यह एसोसिएशन एक महान अवसर प्रदान करेगा। हमारे छात्रों को भारत को जानने और तलाशने के लिए। साथ ही, युवाओं के साथ यह जुड़ाव हमें उनके विचारों के माध्यम से भारत की खोज करने में सक्षम बनाएगा। आज के युवा को भारत को जानने का यह एक अविश्वसनीय अवसर है।” इस कार्यक्रम में बंगाल के छात्र मीडिया, प्रबंधन, सोशल मीडिया, फिल्म और फोटोग्राफी, कला, सांस्कृतिक, डिजाइन आदि के विभिन्न दौरों के माध्यम से भारत की विविध प्रकृति और संस्कृति पर ध्यान केंद्रित करते हुए पर्यटन क्षेत्र का पता लगाएंगे। इन दौरों में प्रतिभागियों को विज्ञापन और पीआर, पत्रकारिता, विज्ञापन फिल्म निर्माण, व्लॉगिंग, सोशल मीडिया अभियान, फिल्म और फोटोग्राफी, नाटक और खाना पकाने से संबंधित कार्यों में प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता होगी।

इस साल मैनेजडिया में, 40+ कॉलेज 50+ कार्यक्रमों में भाग लेंगे।  विजेताओं द्वारा बनाई गई सभी सामग्री को पर्यटन प्रचार उद्देश्य के लिए छात्र रचनाकारों द्वारा कॉपीराइट घोषणा के साथ पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के साथ साझा किया जाएगा। मंत्रालय के सहयोग से आईलीड द्वारा आयोजित राउंड के 50 विजेताओं को भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा पूर्वोत्तर भारत के लिए 3 दिन 2 रातों के अध्ययन दौरे के साथ पुरस्कृत किया जाएगा।

विश्व प्रसिद्ध गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर

– डॉ. वसुंधरा मिश्र

एक महान कवि और साहित्यकार के साथ-साथ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी थे। उन्होंने लगभग 2230 गीत लिखे – इन गीतों को रवीन्द्र संगीत कहा जाता है। यह बंगाली संस्कृति के अभिन्न अंग हैं । भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगीत, जो रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए थे, भी इसी रवीन्द्र संगीत का हिस्सा हैं।
उनकी रचनाओं में, उपन्यास: गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बाली, नष्टनीड़, योगायोग; कहानी संग्रह: गल्पगुच्छ; संस्मरण: जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र; कविता : गीतांजलि, सोनार तरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गीतिमाल्य, वलाका; नाटक: रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा, शामिल हैं। वह पहले ग़ैर-यूरोपीय थे जिनको 1913 में साहित्य के लिए गीतांजलि रचना पर नोबल पुरस्कार दिया गया। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ उनकी ही रचनाएँ हैं।

रवीन्द्र संगीत में प्रयुक्त उद्भिद और फूल – श्रृंखला के अंतर्गत आइए जानते हैं कि रवीन्द्र के गीतों में ऐसा क्या है कि वह विश्व प्रसिद्ध है।
कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर के गीतों में मनुष्य के सुख- दुःख, व्यथा- वेदना, आशा – निराशा, आनंद- विषाद, अनुभूति- उपलब्धि आदि नाना प्रकार के भाव मिलते हैं। रवीन्द्र संगीत में भाषा, भाव, स्वर और छंद का मनोरम सम्मिलन कला, रूप और रस की आनंद धारा है। । कवि गुरु के गीत मनुष्य को एक अतिन्द्रिय उपलब्धि की ओर ले जाता है। उनकी यह असाधारण प्रतिभा केवल बंगाल के संगीत को ही एक नया युग प्रदान नहीं करती है अपितु इन गीतों के शब्द, स्वर माधुर्य भाव गांभीर्य और भाषा का प्रयोग समग्र भारतीय भाषा भाषी लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। आइए अशोक या बंजुल फूल के विषय में जानते हैं – – – कामदेव के पंचशरों में से एक अशोक का फूल है। वसंत के आगमन के साथ ही इसमें नए किसलयों का आगमन होता है। ताम्र वर्णीय होने के कारण इसे ताम्रवर्णी भी कहते हैं। वसंतागमन के साथ ही फूल खिलते हैं और ग्रीष्मकाल तक रहते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में संतरी आभा से युक्त लाल या पीले रंग के अशोक के फूल धीरे-धीरे सिंदूरी या गाढ़े रक्त वर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं। अशोक के फूलों के रंग में एक उन्माद एवं उच्छलता भरे भाव होते हैं जिसका वर्णन अनेक गीतों में हुआ है। फूलों में स्थित पुंककेशरों में पतले धागों की तरह कई पुंदंड होते हैं। उनके शीर्ष भाग में परागधानी या पराग रेणु का कक्ष होता है। इन केशरों का जड़ भाग नारंगी और शीर्ष भाग लाल रंग का होता है। फूलों के रंग में परिवर्तन का यही छंद चलता रहता है। परागधानी से लाल परागरेणु खिलकर धरती पर फैल जाते हैं।रवीन्द्र नाथ ने प्रकृति पर्याय के एक गीत 230 में इसका वर्णन आया है। मंजरीबद्ध यह फूल प्रचुर परिमाण में प्रस्फुटित होते हैं, साथ ही पंक्तियाँ भी असंख्य मात्रा में रहती हैं। कई बार सुंदर अशोक मंजूरियाँ खिलकर वलय शोभित भुजाओं के समान शाखाओं को घेर लेती हैं। जिसका उल्लेख कवि ने इस पंक्ति में किया है – – ‘अशोकेर शाखा घेरि वल्लरी बंधन’ अर्थात् अशोक की शाखाओं को घेरकर प्रस्फुटित मंजरियाँ लताओं सी उसे अपने बंधन में बाँधे हुए हैं। यह चित्रांगदा के षष्ठ दृश्य में आया है। सूर्य के प्रकाश में फूलों का रंग अधिक स्पष्ट हो जाता है और दिन के ढलने के साथ ही पत्तियों की छाया में फूलों की स्पष्टता विलीन होती चली जाती है। तभी तो कवि अशोक के फूल को लक्ष्य कर उसे ‘आलोकपियासी ‘(गीत प्रेम 215) अर्थात् आलोक पिपासु कहता है। इसकी शाखाओं की प्रकृति हल्की, पत्तियाँ बड़ी बड़ी शाखाएँ फूल पत्तियाँ हवा के स्पर्शमात्र से ही आंदोलित हो उठती हैं। क्षणभंगुर इसके फूल दिन ढलने के पश्चात परागरेणु के साथ पेड़ से झड़़कर धरती पर बिखर जाते हैं। अशोक के फूलों से बने सुंदर आभूषण युवतियों के सिर , कानों एवं गले में सुशोभित होते हैं। गीत – प्रेम 224 में आया है। चंडालिका में फूल बेचने वाली मालिन अशोक के फूलों के अलंकार बेचती हुई दिखाई देती हैं। प्रकृति जिस प्रकार वसंत में पत्र पुष्प गंध से परिपूर्ण अशोक वृक्ष पर बार बार गर्वित होती है, उसी प्रकार मानव जीवन के वसंत से भी अशोक वृक्ष का युगों से अटूट संबंध जुड़ा हुआ है। अशोक वृक्ष प्रेमोद्दीपक और कामोद्दीपक भी है। इसकी मृदु गंध मनमोहक रूप एवं मादक स्पर्श के असंख्य वर्णन रवींद्र संगीत में मिलते हैं। रावण ने सीता को अशोक वाटिका में ही क्यों रखा? राजनर्तकी श्यामा वज्रसेन के प्रेम को प्राप्त करने के लिए राजमहल का त्याग करती है। उस समय कोटाल (कोतवाल) चिल्लाते हुए कहता है – – ‘वन हते केन गेल अशोक मंजरी फाल्गुनेर अंगन शून्य करि’ राजनर्तकी श्यामा अशोक फूल के ही समान एक रूपायित कामना है जो राजमहल रूपी उद्यान से चली गई है। उसका चले जाना फागुन में अशोक मंजरी का वन से लुप्त होने का अर्थ है कि वातावरण में शून्यता छा गई है। रवीन्द्र संगीत में अशोक का बहुत प्रयोग हुआ है – – -रांगा हासि राशि राशि अशोके पलाशे, विगत वसंतेर अशोक रक्तरागे, आन माधवी मालती अशोकमंजरी आदि बहुत से गीतों में रवीन्द्रनाथ ने अशोक का प्रयोग किया है। (रवीन्द्र संगीत में प्रयुक्त उद्भिद और फूल, पृष्ठ-2-5, हिंदी अनुवाद, डॉ वसुंधरा मिश्र )
रवीन्द्र संगीत में प्रयुक्त उद्भिद और फूल – श्रृंखला के अंतर्गत आइए जानते हैं कि रवीन्द्र के गीतों में ऐसा क्या है कि वह विश्व प्रसिद्ध है।
कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर के गीतों में मनुष्य के सुख- दुःख, व्यथा- वेदना, आशा – निराशा, आनंद- विषाद, अनुभूति- उपलब्धि आदि नाना प्रकार के भाव मिलते हैं। रवीन्द्र संगीत में भाषा, भाव, स्वर और छंद का मनोरम सम्मिलन कला, रूप और रस की आनंद धारा है। । कवि गुरु के गीत मनुष्य को एक अतिन्द्रिय उपलब्धि की ओर ले जाता है। उनकी यह असाधारण प्रतिभा केवल बंगाल के संगीत को ही एक नया युग प्रदान नहीं करती है अपितु इन गीतों के शब्द, स्वर माधुर्य भाव गांभीर्य और भाषा का प्रयोग समग्र भारतीय भाषा भाषी लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। आइए अशोक या बंजुल फूल के विषय में जानते हैं – – – कामदेव के पंचशरों में से एक अशोक का फूल है। वसंत के आगमन के साथ ही इसमें नए किसलयों का आगमन होता है। ताम्र वर्णीय होने के कारण इसे ताम्रवर्णी भी कहते हैं। वसंतागमन के साथ ही फूल खिलते हैं और ग्रीष्मकाल तक रहते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में संतरी आभा से युक्त लाल या पीले रंग के अशोक के फूल धीरे-धीरे सिंदूरी या गाढ़े रक्त वर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं। अशोक के फूलों के रंग में एक उन्माद एवं उच्छलता भरे भाव होते हैं जिसका वर्णन अनेक गीतों में हुआ है। फूलों में स्थित पुंककेशरों में पतले धागों की तरह कई पुंदंड होते हैं। उनके शीर्ष भाग में परागधानी या पराग रेणु का कक्ष होता है। इन केशरों का जड़ भाग नारंगी और शीर्ष भाग लाल रंग का होता है। फूलों के रंग में परिवर्तन का यही छंद चलता रहता है। परागधानी से लाल परागरेणु खिलकर धरती पर फैल जाते हैं।रवीन्द्र नाथ ने प्रकृति पर्याय के एक गीत 230 में इसका असंख्य आया है। मंजरीबद्ध यह फूल प्रचुर परिमाण में प्रस्फुटित होते हैं, साथ ही पंक्तियाँ भी असंख्य मात्रा में रहती हैं। कई बार सुंदर अशोक मंजूरियाँ खिलकर वलय शोभित भुजाओं के समान शाखाओं को घेर लेती हैं। जिसका उल्लेख कवि ने इस पंक्ति में किया है – – ‘अशोकेर शाखा घेरि वल्लरी बंधन’ अर्थात् अशोक की शाखाओं को घेरकर प्रस्फुटित मंजरियाँ लताओं सी उसे अपने बंधन में बाँधे हुए हैं। यह चित्रांगदा के षष्ठ दृश्य में आया है। सूर्य के प्रकाश में फूलों का रंग अधिक स्पष्ट हो जाता है और दिन के ढलने के साथ ही पत्तियों की छाया में फूलों की स्पष्टता विलीन होती चली जाती है। तभी तो कवि अशोक के फूल को लक्ष्य कर उसे ‘आलोकपियासी ‘(गीत प्रेम 215) अर्थात् आलोक पिपासु कहता है। इसकी शाखाओं की प्रकृति हल्की, पत्तियाँ बड़ी बड़ी शाखाएँ फूल पत्तियाँ हवा के स्पर्शमात्र से ही आंदोलित हो उठती हैं। क्षणभंगुर इसके फूल दिन ढलने के पश्चात परागरेणु के साथ पेड़ से झड़़कर धरती पर बिखर जाते हैं। अशोक के फूलों से बने सुंदर आभूषण युवतियों के सिर , कानों एवं गले में सुशोभित होते हैं। गीत – प्रेम 224 में आया है। चंडालिका में फूल बेचने वाली मालिन अशोक के फूलों के अलंकार बेचती हुई दिखाई देती हैं। प्रकृति जिस प्रकार वसंत में पत्र पुष्प गंध से परिपूर्ण अशोक वृक्ष पर बार बार गर्वित होती है, उसी प्रकार मानव जीवन के वसंत से भी अशोक वृक्ष का युगों से अटूट संबंध जुड़ा हुआ है। अशोक वृक्ष प्रेमोद्दीपक और कामोद्दीपक भी है। इसकी मृदु गंध मनमोहक रूप एवं मादक स्पर्श के असंख्य वर्णन रवींद्र संगीत में मिलते हैं। रावण ने सीता को अशोक वाटिका में ही क्यों रखा? राजनर्तकी श्यामा वज्रसेन के प्रेम को प्राप्त करने के लिए राजमहल का त्याग करती है। उस समय कोटाल (कोतवाल) चिल्लाते हुए कहता है – – ‘वन हते केन गेल अशोक मंजरी फाल्गुनेर अंगन शून्य करि’ राजनर्तकी श्यामा अशोक फूल के ही समान एक रूपायित कामना है जो राजमहल रूपी उद्यान से चली गई है। उसका चले जाना फागुन में अशोक मंजरी का वन से लुप्त होने का अर्थ है कि वातावरण में शून्यता छा गई है। रवीन्द्र संगीत में अशोक का बहुत प्रयोग हुआ है – – -रांगा हासि राशि राशि अशोके पलाशे, विगत वसंतेर अशोक रक्तरागे, आन माधवी मालती अशोकमंजरी आदि बहुत से गीतों में रवीन्द्रनाथ ने अशोक का प्रयोग किया है। (रवीन्द्र संगीत में प्रयुक्त उद्भिद और फूल, पृष्ठ-2-5, हिंदी अनुवाद, डॉ वसुंधरा मिश्र) गुरुदेव
रवीन्द्र नाथ टैगोर बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही तथा आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना गया है।

माँ…को समर्पित कविताएँ

– बब्बन 
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी,
उसके कदमों में जन्नत है।
माँ का साया जबतक मुझ पर है,
पूरी मेरी सब मन्नत है।
(1)
जिसकी उँगली पकड़ पकड़ कर,
हमने कदम उठाना सीखा।
सीने से जिसके लिपट लिपट कर,
आँसू जहाँ बहाना सीखा।
कर्त्तव्य ककहरा, रिश्तों की भाषा,
देशप्रेम का जहाँ तराना सीखा।
दूध से जिसके हमने बल पाकर,
सत्य मार्ग पर जाना सीखा।
उस माँ के कदमों के धूल के आगे,
नहीं सुखद कोई धन दौलत है।
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी,
उसके कदमों में जन्नत है।

(2)
ममत्व की गंगा सदा बहाकर,
तन और मन को जिसने धोया,
ठण्डा -गरम शरीर को छूकर,
आँसू से आँचल सदा भिगोया।
हाथो,लातों की सहकर शरारत,
मुझे सुलाया खुद नहीं सोया।
सफलता के लिए उठाकर आँचल,
हर पूजा स्थल पर जाकर रोया।
विश्व जो आज पल्लवित पुष्पित है,
यह सब माँ के ही बदौलत है।
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी,
उसके कदमों मे जन्नत है।

(3)
माँ करुणा की वरुणा,
प्रेम की है पिटारी।
कच्चे घड़े का भीतर से आलम्ब,
उपर से थाप है माँ हमारी।
ममता की हिन्द महासागर,
और वात्सल्य की फुलवारी।
मुहब्बत की मँजूषा,स्नेह की सरिता,
जिसके गोद में सबने भरी किलकारी।
माँ के चरणों मे न्योछावर,
दुनियाँ की सारी सल्तनत है।
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी,
उसके कदमों में जन्नत है।

(4)
विश्व का सबसे व्यापक व महत्वपूर्ण शब्द है माँ
इसमें समाहित है पूरी धरा व विशाल आसमाँ।
इसके व्यापक आँचल से छोटा है सारा जहाँ।
अकेली माँ के आगे बौने हैं हजारों कारवाँ।
सैकड़ों जीवन कुर्बान हमारा,
शीश जहाँ हर क्षण अवनत है।
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी,
उसके कदमों में जन्नत है।

(5)
जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपि गरीयसी।
जननी है तो प्राप्त है हमें,
दुनियाँ की सारी खुशी।
पलने से लेकर कब्र तक,
माँ सबके हृदय में बसी।
सन्तान की सलामती के लिए,
जिसे स्वीकार्य है हर बेबसी।
ऐसी माँ के चरण कमलों में,
न्यौछावर जीवन शत् शत् है।
स्वर्ग से बढ़कर माँ है मेरी
उसके कदमों में जन्नत है ।

मातृ दिवस पर,
सभी माताओं को समर्पित।

प्रयागराज/इलाहाबाद।

नारायण हेल्थ ने स्थापित किया ‘ब्रेन स्ट्रोक’ के लिए स्पोक और हब मॉडल 

कोलकाता । बंगाल समेत पूरे देश में भीषण गर्मी का कहर जारी है और अब स्ट्रोक के मामले भी बढ़ रहे हैं। ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी बीमारी है जिसमें दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित हो जाता है और दिमाग को काम करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह बीमारी दूसरे सीजन में भी होती है लेकिन भीषण गर्मी, खास तौर पर जब शरीर की जरूरत से कम पानी होता है तो इसका असर हावी हो जाता है।

 ‘ब्रेन स्ट्रोक’ एक मेडिकल इमरजेंसी है जिसमें मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति गंभीर रूप से बाधित होती है। भारत में हर 40 सेकंड में एक मरीज को स्ट्रोक होता है और हर 4 मिनट में एक मरीज की स्ट्रोक के कारण मौत हो जाती है। स्ट्रोक भारत में विकलांगता का सबसे आम कारण है, जो एक व्यक्ति को जीवन भर के लिए अपंग और विकलांग बना देता है। यदि स्ट्रोक वाला रोगी समय पर अस्पताल पहुँचता है और स्वास्थ्य देखभाल केंद्र इस रोगी की तुरंत पहचान और उपचार करता है, तो स्ट्रोक का प्रभाव काफी कम हो जाता है। इस विजन को आगे ले जाने के प्रयास में नारायणा हेल्थ, ईस्टर्न क्लस्टर ने तीन क्षेत्रों- कोलकाता, हावड़ा और बारासात में स्ट्रोक के इलाज की सर्वोत्तम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए स्पोक एंड हब स्ट्रोक मॉडल पेश किया है। इसे  महानगर कोलकाता के प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान 7 मई 2022 को शुरू किया गया।

  नारायणा हेल्थ, ईस्टर्न क्लस्टर,  कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रोक केयर के लिए क्लिनिकल लीड  डॉ. कौशिक सुंदर ने कहा कि जब ब्रेन स्ट्रोक की बात आती है तब टाइम इज ब्रेन। कई बार ब्रेन स्ट्रोक के मरीज तत्काल देखभाल के लिए नजदीकी अस्पतालों में पहुंच जाते हैं। जब तक ब्रेन स्ट्रोक का निदान किया जाता है या कोई विशेषज्ञ इस रोगी को देखता है, तब तक महत्वपूर्ण समय नष्ट हो जाता है। अस्पतालों का नारायणा स्वास्थ्य समूह इस तरह से कुछ हट के है।  जैसे यदि कोई मरीज बारासात इकाई में भर्ती हो जाता है और सीटी स्कैन कराता है, तो रिपोर्ट तुरंत कोलकाता में बैठे स्ट्रोक टीम को उपलब्ध होगी। स्ट्रोक टीम तब यह तय कर सकती है कि उस मरीज को उन्नत चिकित्सीय विकल्पों के लिए उच्च केंद्र में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है या नहीं। नारायणा हेल्थ बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के मरीजों को चौबीसों घंटे यह सेवा प्रदान कर रहा है। यह नेटवर्किंग पूरे दिन रोगी को निर्बाध रेफरल, विशेषज्ञ परामर्श और सर्वोत्तम उपचार सुनिश्चित करती है।”

 इस मजबूत टेलीस्ट्रोक और रेफरल सिस्टम के अलावा, एनएच रवींद्रनाथ टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेज कोलकाता ने भी अपने स्ट्रोक क्लीनिक शुरू करने की घोषणा की। जिन रोगियों को पहले ब्रेन स्ट्रोक हुआ , वे जांच और विशेषज्ञ की राय के लिए बहु-क्षेत्रीय अस्पतालों तक पहुंचते हैं। स्ट्रोक क्लिनिक ने सस्ती दरों पर एमआरआई ब्रेन सहित स्ट्रोक जांच पैकेज पेश किया। स्ट्रोक क्लिनिक विशेषज्ञ परामर्श सुनिश्चित करते हैं।

 डॉक्टर कौशिक सुंदर की माने तो नारायणा हेल्थ, अस्पतालों का पूर्वी समूह पिछले कुछ वर्षों में अत्याधुनिक, जटिल न्यूरोइंटरवेंशनल प्रक्रियाओं का प्रदर्शन किया है। उन्होंने हावड़ा जिले में अपनी तरह का पहला स्ट्रोक के रोगी के लिए मस्तिष्क के अंदर एक स्टेंट लगाया था।  इस अनूठी तकनीक को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में रिपोर्ट और प्रकाशित किया गया था। वहीं एन्यूरिज्मल ब्लीड वाले रोगी के लिए पूर्वी भारत में पहली बार ‘सिल्क विस्टा फ्लो डायवर्टर’ नामक एक नए प्रकार के स्टेंट का इस्तेमाल किया गया था।

 एनएच हावड़ा के कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अरिंदम घोष ने कहा, “हालांकि ये प्रक्रियाएं भविष्य और अत्याधुनिक हैं, लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि इनमें से कई मरीज ठीक समय पर अस्पताल नहीं पहुंचते हैं।” “स्ट्रोक उपचार का सबसे अच्छा प्रभाव पड़ता है यदि रोगी तुरंत अस्पताल पहुंचता है और अस्पताल में तुरंत इस रोगी की जरूरतों को पूरा किया जाए”  एनएच समूह के अस्पतालों की एक पहल स्ट्रोक हीरो प्रोग्राम ने स्वास्थ्य देखभाल  कर्मियों और स्ट्रोक के रोगियों के रिश्तेदारों को सम्मानित किया, जो उन्हें जल्दी से अस्पताल ले आए और सुनिश्चित किया कि उन्हें तुरंत सर्वोत्तम उपचार उपलब्ध हो।

 आर वेंकटेश (सीओओ ईस्ट एंड साउथ नारायणा हेल्थ) ने कहा, “हमारे अस्पताल में मरीज उन्हें सर्वोत्तम देखभाल और उपचार प्रदान करने के हमारे सक्रिय प्रयासों के साक्षी रहे हैं। इन हाई-टेक परिवर्धन के साथ हम उनके इलाज के लिए सबसे उन्नत तकनीक लाने की अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हैं।