Saturday, July 19, 2025
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नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल ने की सफल टीएवीआई शल्य चिकित्सा

कोलकाता । नारायणा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल ने सफल ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन (टीएवीआई) किया है। यह एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें पुराने, क्षतिग्रस्त वाल्व को हटाए बिना एक नया वाल्व डाला जाता है। कुछ हद तक धमनी में स्टेंट लगाने के समान, टीएवीआई दृष्टिकोण एक कैथेटर के माध्यम से वाल्व की तरफ पूरी तरह से ढहने योग्य प्रतिस्थापन वाल्व प्रदान करता है। चिकित्सकों का मानना है कि एक बार जब नए वाल्व का विस्तार हो जाता है, तो यह पुराने वाल्व लीफलेट को रास्ते से हटा देता है और प्रतिस्थापन वाल्व में ऊतक रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने का काम संभाल लेता है।
गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से ग्रसित एक 78 वर्षीय रोगी, अपनी सहरुग्णता के साथ-साथ उम्र को देखते हुए, सर्जिकल एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट के लिए रोगी बहुत उच्च जोखिम वाला था, जो कि आजकल एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट की पारंपरिक विधि है। इसलिए हमने अपने मरीज को ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) या ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन (टीएवीआई) के साथ इलाज करने की योजना बनाई, जो कि एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट का एक न्यूनतम इनवेसिव सबसे आधुनिक, फिर भी तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण तरीका है। इसने हमारे मरीज को रक्तहीन और दर्द रहित तरीके से अस्पताल में रहने के केवल 48 घंटे के लिए ऑपरेशन करने का लाभ दिया। TAVI/TAVR प्रक्रियाएं अभी भी हमारे देश में भी हमारे राज्य में बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन यह उन रोगियों के इलाज का सबसे नवीन और संभावित तरीका है जो ओपन हार्ट सर्जरी के लिए उच्च जोखिम में हैं।

डॉ. औरिओम कर (कंसल्टेंट इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट) ने कहा कि आज तक हमारे देश में टीएवीआई सर्जरी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। हम इस उपचार को बढ़ावा देने और भविष्य में ऐसे और अधिक रोगियों को लाभान्वित करने के लिए संचयी प्रयास और दृष्टि से लोगों को जागरूक करने के लिए तत्पर हैं। यह प्रक्रिया मानक सर्जिकल वाल्व प्रतिस्थापन के लिए मध्यम से उच्च जोखिम वाले सेवियर रोगसूचक कैल्सीफिक धमनी स्टेनोसिस वाले रोगी के लिए उपलब्ध है।

डॉ. सुनंदन सिकदर (कंसल्टेंट इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट) ने कहा, “सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में हमने कई मील के पत्थर पार किए हैं। हमारे पास कुछ में से, पर्क्यूटेनियस वाल्व रिप्लेसमेंट, हार्ट फेल्योर के रोगियों में डिवाइस इम्प्लांट और जटिल एंजियोप्लास्टी हैं। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी (ईपी स्टडी) और रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफए) नियमित रूप से उत्कृष्ट परिणामों के साथ किया जा रहा है।
डॉ अरुणांसु ढोले (कंसल्टेंट कार्डियक सर्जन) ने कहा कि इतने सारे कार्डिएक मामलों को हमने एमआईसीएस (मिनिमली इनवेसिव कार्डिएक सर्जरी) के माध्यम से सफलतापूर्वक किया है। जैसे सीएबीजी, वॉल्व रिप्लेसमेंट (एवीआर/एमवीआर/डीवीआर), एएसडी क्लोजर, एलए मायक्सोमा, एपिकार्डियक लेड रिप्लेसमेंट आदि। हम थोरैकोस्कोपिक एएसडी क्लोजर कर रहे हैं जिसमें वास्तविक तकनीकी चुनौतियां हैं और इस दुनिया में कुछ केंद्रों पर इसका अभ्यास किया जा रहा है। अब हम टीएवीआई  भी कर रहे हैं जो दुनिया भर में पहले से ही मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है।

उन्होंने कहा कि आमतौर पर, वाल्व रिप्लेसमेंट के लिए स्टर्नोटॉमी के साथ एक ओपन-हार्ट प्रक्रिया की आवश्यकता होती है जिसमें छाती को शल्य चिकित्सा द्वारा खोला जाता है। टीएवीआई प्रक्रिया को ऊरु धमनी के माध्यम से किया जा सकता है जिसे ट्रांसफेमोरल दृष्टिकोण कहा जाता है जिसमें छाती पर सभी छाती की हड्डी को छोड़कर शल्य चिकित्सा चीरा की आवश्यकता नहीं होती है।
सुभासिस भट्टाचार्य (सुविधा निदेशक) ने कहा, “हमारे अस्पताल में मरीज उन्हें सर्वोत्तम देखभाल और उपचार प्रदान करने के हमारे सक्रिय प्रयासों के साक्षी रहे हैं। इन हाई-टेक परिवर्धन के साथ हम उनके चिकित्सा के लिए सबसे उन्नत तकनीक लाने की अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हैं।

बौद्ध धर्म : समाज कल्याण हेतु स्वस्थ और आत्मविश्लेषित धर्म 

– डॉ. वसुंधरा मिश्र

गौतम बुद्ध के जन्म से बुद्धत्व प्राप्ति तक उन्हें बोधिसत्व कहने की प्रथा बहुत प्राचीन है। पालि वाङमय के सुत्तनिपात में बोधिसत्व के रूप में ही बुध्द के जन्म की बात आई है – – –
“सो बोधिसत्तो रतनवरो अतुल्यो।
मनुस्स लोके हित सुखाय जातो।
सक्यानं गामे जनपदे लुंबिनेय्य ।”
अर्थात् श्रेष्ठ रत्न जैसे उस बोधिसत्व ने लुंबिनी जनपद में शाक्यों के गांव में मानवों के हित सुख के लिए जन्म लिया।
बुद्ध का जन्म और उनके द्वारा चलाए गए धर्म का उत्थान कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। बुद्ध और उनकी विचारधारा उस युग में व्याप्त कर्म कांड, हिंसा युक्त यज्ञ के आडंबर और पुरोहित वाद के विरुद्ध आवाज थी जो उपनिषदों और गीता से चली आ रही थी। उस युग में वेद और उपनिषद् पढ़ने का अधिकार शूद्रों को नहीं था, उन्हें यह अधिकार भी न था कि ब्राह्मणों की तरह यज्ञ आदि कर लोक और परलोक में सुख भोगने की योग्यता प्राप्त कर सकें। तत्कालीन समाज कहा जाय तो बौद्धिक संकट का सामना कर रहा था। जनसाधारण के सामने यज्ञ आदि ही प्रमुख धर्म थे जिनसे उन्हें दूर रखा जाता था, जो साधारण लोगों की पहुँच से दूर था। उपनिषदों का भारी भरकम ज्ञान, विभिन्न मत मतांतर, अतिभोग में लिप्तता, स्वार्थ परता, पशु बलि जैसे विषयों से दूर समाज को एक व्यवहारिक धर्म की आवश्यकता महसूस हो रही
थी। एक स्वस्थ्य समाज शस्त्र रहित, पशु हिंसा रहित और कर्म कांड रहित हो तो समाज बहुत हद तक स्वतंत्रता और सहजता महसूस करे। ऐसे ही सड़े गले और रुढ़ी वादी विचारधारा पर अड़े रहना समाज को अवनति और पतन के मार्ग पर ले जाता है। बुद्ध युगीन सामाजिक बुराइयों से समाज को बचाना चाहते थे। बुद्ध क्रांतिकारी विचारक और समाज सुधारक रहे।
बोधिसत्व के गृह त्याग के क्या कारण रहे? इसकी कई कथाएं मिलती हैं परंतु इस प्रश्न का उत्तर स्वयं भगवान् बुद्ध ने अत्त दंड सुत्त में इस प्रकार दिया है—-
“अत्त दण्डा भयं जातं, जनं पस्सथ मेधकं ।
संवेगं कित्त यिस्सामि यथा संविजितं म्या।।
फंदमानं पजं दिस्वा मच्छे अप्पोदके यथा।
अञ्जयञ्ञेहि व्यारुद्धे दिस्वा मं भयभाविसी
समंतम सरो लोको दिसा सब्बा समेरिता।
इच्छं भवनमत्तनो नाद्दसासिं अनोसितं।
ओसाने त्वेव व्यारुद्धे दिस्वा में अरती अह। ”
अर्थात शस्त्र धारण भयावह लगा। यह जनता कैसे झगड़ती है देखो। मुझमें संवेग या वैराग्य कैसे उत्पन्न हुआ यह मैं बताता हूँ। अपर्याप्त पानी में जैसे मछलियां छटपटाती हैं वैसे ही एक दूसरे से विरोध करके छटपटाने वाली प्रजा को देखकर मेरे अंतःकरण में भय उत्पन्न हुआ। चारों ओर का जगत असार दिखाई देने लगा। सब दिशाएँ कांप रही हैं ऐसा लगा और उसमें आश्रय का स्थान खोजने पर निर्भर स्थान नहीं मिला, क्योंकि अंत तक सारी जनता को परस्पर विरुद्ध हुए देखकर मेरा जी ऊब गया।
इस तरह के सुत्त किस अवसर पर कहे गए इसपर बहुत से संदर्भ हैं लेकिन यह सच है कि शस्त्र आदि ग्रहण करना समाज के लिए शत्रुता का प्रतीक है। इस शस्त्र ग्रहण से क्या लाभ? यही न, अंत तक झगड़ते रहो? इस सशस्त्र प्रवृत्ति मार्ग से बोधिसत्व ऊब गए और इसलिए उन्होंने शस्त्र निवृत्ति मार्ग को स्वीकार किया।
अहिंसा को परम धर्म मानने वाले बुद्ध और बुद्ध के अनुयायियों में मांसाहार को लेकर बहुत से प्रसंग हैं। वैसे परिनिर्वाण के दिन बुद्ध भगवान् ने चुंद लुहार के घर में सूअर का मांस खाया था। इस बात की चर्चा करने की आवश्यकता है।
बुद्ध ने परिनिर्वाण के जो पदार्थ खाया था उसका नाम “सूकर मद्दव” था। उस पर बुद्ध घोषचार्य ने अपनी टीका में इसका वर्णन करते हुए कहा है कि कई कहते हैं कि सूकर मद्दव मृदु, स्निग्ध और उत्तम प्रकार का सूअर मांस है, कोई कहते हैं पंचगोरस से बनाया हुए मृदु अन्न का नाम है जैसे गवपान एक विशेष पकवान का नाम है। किसी का कहना है ‘सूकर मद्दव’ एक रसायन था और रसायन के अर्थ में उस शब्द का प्रयोग किया जाता है चुंद ने भगवान् को वह इसलिए दिया कि जिससे भगवान् का परिनिर्वाण न होने पाए। इस टीका में सूकर मद्दव का मुख्य अर्थ सूकर मांस ही किया गया है तथापि बुद्ध घोषचार्य इस अर्थ से सहमत नहीं थे।
“उदान अट्ठ कथा” में सूअर द्वारा कुचले हुए बांस का अंकुर और कुकुरमुत्ता माना है। “अगुत्तरनिकाय” में पंचकनिपात में प्रमाण मिलता है कि बुद्ध भगवान् सूकर का मांस खाते थे। उग्ग गहपति ने भगवान् से आग्रह किया कि भदंत बढ़िया सूअर का यह उत्कृष्ट ढंग से पकाकर तैयार किया हुआ है। मुझ पर कृपा कर इसे ग्रहण करें।
इसी प्रकार महावीर भगवान् पर भी मांसाहारी होने के कई संदर्भ मिलते हैं जो विविध कथाओं में मिलते हैं। श्रमण संस्कृति से निःसृत बौद्ध और जैन धर्म भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं।उनके प्रयत्नों से गोमांसाहार का निषेध होता गया फिर भी बहुत समय तक ब्राह्मणों में मांसहार का निषेध होने में बहुत सी शताब्दियां लगी। याज्ञवल्क्य आदि के कई संदर्भ मिलते हैं।
प्रथमतः यह युक्ति निकाली गई कि यज्ञ के लिए दीक्षा लेने वाला गोमांस न खाएं। प्राणियों की हिंसा के विरुद्ध प्रचार करने वाला पहला ऐतिहासिक राजा अशोक था। उसके पहले शिलालेख में लिखा मिलता है कि यज्ञ या मेले में प्राणियों की बलि और हत्या नहीं होने दी जाएगी। उसमें गाय – बैलों का उल्लेख नहीं मिलता। अतः अनुमान लगाया जा सकता है कि ब्राह्मण और दूसरी उच्च जातियों में भी गोमांसाहार लगभग बंद हो गया था।
भगवान् बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण से पहले अपने शिष्य आनंद को कहा था कि चुंद लुहार पर किसी प्रकार का भी अभियोग न लगे। उसको तो बोलना कि तुम्हारी दी गई भिक्षा से तो बुद्ध को परिनिर्वाण प्राप्त हुआ, तुम्हारा दान तुम्हारे लिए लाभदायक रहा। अतः तथागत से सुना कि पहली वह भिक्षा जिससे तथागत को संबोधि ज्ञान प्राप्त हुआ और दूसरी भिक्षा से परिनिर्वाण मिला। चुंद के कृत्यों को गलत मत ठहरा कर उसके दौर्मनस्य को नष्ट करो।
भगवान् बुद्ध ने अपने युग की कई सामाजिक और धार्मिक बुराइयों का निषेध किया जो सामाजिक, धार्मिक असंतुलन और असंतुष्टता उत्पन्न कर रही थीं। उन्होंने आत्मवाद को छोड़कर अपना दर्शन सत्य की नींव पर खड़ा किया। अतः उनके श्रावक मार के जाल में नहीं फंसे। बुद्ध ने मध्यम मार्ग पर ही जोर दिया जो आज भी प्रासंगिक है। स्वस्थ्य विचारधारा से प्रेरित है, आत्मविश्लेषित धर्म है।
एक बार वैशाली में बुद्ध धर्म और संघ की स्तुति हो रही थी। उस समय लिच्छवि के सिंह सेनापति को गौतम से मिलने की इच्छा हुई। उसने भगवान् से पूछा कि भदंत क्या यह सच है कि आप अक्रियावादी हैं और श्रावकों को आप अक्रियावाद सिखाते हो। भगवान् ने कहा कि कि जो ऐसा समझते हैं गलत सोचते हैं। भगवान् ने कहा कि यह एक पर्याय ऐसा है कि जिससे सत्यवादी मनुष्य कहते हैं कि श्रमण गौतम अक्रियावादी हैं। वह पर्याय कौन सा है? हे! सिंह, मैं कायदुश्चरित वाक्दुष्चरित और मनोदुष्चरित की अक्रिया का उपदेश देता हूँ। मैं क्रिया वादी हूँ पर कायसुचरित, वाक्सुचरित और मनसुचरित की क्रिया का उपदेश देता हूँ। मैं लोभ, द्वेष, मोह सभी पापकारक मनोवृत्तियों के उच्छेद का उपदेश देता हूँ। काय, वाक् और मनो के दुष्चरित से घृणा करता हूँ। लोभ, द्वेष और मोह के विनाश का उपदेश देता हूँ। पाप कारण अकुशल धर्म जिसके नष्ट हो गए हैं, मेरी दृष्टि में वही सच्चा तपस्वी है।
बुद्ध ने कर्म कांड के विरोध में स्वयं के विकास पर जोर दिया । एक स्वस्थ जीवन से जुड़े धर्म का अन्वेषण किया और “अप्प दीपो भव” का उपदेश सूत्र दिया। अर्थात अपना दीपक स्वयं बने। कोई भी किसी के पथ के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से ही हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। भगवान ने स्पष्ट किया कि तुम्हे अपने ही पैरों पर चलना है। अपनी रोशनी स्वयं बनो।

ब्लैक कर्टेन थिएटर – मंचप्रदर्शन ने किया 2 नाटकों का मंचन

कोलकाता । गत शनिवार को “प्रोसेनियम आर्ट सेंटर” में “ब्लैक कर्टेन थिएटर – मंचप्रदर्शन ” ने अपने दो नाटकों का मंचन किया। इनमें पहले नाटक का नाम “शंकर और सुल्ताना” है जो ‘सआदत हसन मंटो की लिखी काली सलवार’ की  कहानी पर आधारित है। दूसरे नाटक का नाम ” फिश करी ” था जिसने दर्शको को सन्देश दिया इन्सान को जब भूख लगती है तो धर्म. जाति, ऊँच – नीच की दीवारें टूट जाती हैं।  ये दो नाटक “ब्लैक कर्टेन थिएटर – मंचप्रदर्शन” के निर्देशक और संस्थापक “अमन जायसवाल” द्वारा लिखित एवं निर्देशित है। अमन जायसवाल ने इन नाटकों को “भौतिक रंगमंच” (फिजिकल थिएटर) में पेश करने का प्रयास किया था जो दर्शको के लिए एक अनोखा अनुभव था। दर्शकों की सराहना भी भरपूर मिली।  अपनी तालियों की गुंज से उनकी और कलाकारो की प्रयास को सफल्ता मे तब्दील कर दी और इन दो नाटकों में भाग लेने वाले कलाकारो – सिमरन सहगल, कर्मा घासी, मोहम्मद वसीम, सुदीप प्रधान, संजय मिश्रा, वसीम अकरम और विपुल अग्रवाल ने भी बढ़िया प्रदर्शन किया।

सम्मानित किये गये ‘खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2021’ के विजेता

कोलकाता । जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) ने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2021 के चैंपियंस को सम्मानित किया। विजेताओं को विश्वविद्यालय द्वारा प्रोत्साहनस्वरूप नकद राशि दी गयी। संस्थान के खेल विभाग द्वारा बेंगलुरु के सीएमएस बिजनेस स्कूल में केआईयूजी 2021 को लेकर सम्मान समारोह आयोजित किया गया। समारोह के विशिष्ट अतिथि जैन (डीम्ड-टू-बी-विश्वविद्यालय) के प्रधान सलाहकार पद्मश्री डॉ. सी.जी. कृष्णदास नायर थे। डॉ। जैन ग्रुप के संस्थापक और जैन के चांसलर (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी के चेनराज रॉयचंद, स्पोर्ट्स डायरेक्टर डॉ. शंकर यूवी जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) समेत अन्य अतिथि भी उपस्थित थे।
गौरतलब है कि जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) हाल ही में समाप्त हुए खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स (केआईयूजी) 2021 के दूसरे संस्करण में 20 स्वर्ण, 7 रजत और 5 कांस्य सहित 32 पदक जीतकर अव्वल रहा। उनके उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए एक पुरस्कार के रूप में, जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) ने रुपये के नकद पुरस्कार की घोषणा की। इसके तहत शिव श्रीधर को 2,75,000 रु. श्रुंगी बांदेकर को 1,97,000 रुपये, रु. श्रीहरि नटराज को 1,55,000 और रु. प्रिया मोहन को 1,50,000। अन्य विजेताओं को भी नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
शिव श्रीधर टीम के लिए सात स्वर्ण पदक जीतकर स्टार तैराक के रूप में उभरे। इसके अलावा, उन्होंने पुरुषों की 200 मीटर व्यक्तिगत स्पर्द्धा में एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। ओलंपियन श्रीहरि नटराज ने विभिन्न तैराकी स्पर्द्धाओं में 3 स्वर्ण पदक जीते, जबकि श्रुंगी बांदेकर ने 4 स्वर्ण पदक जीते।
मेजबान विश्वविद्यालय की प्रिया मोहन ने महिलाओं की 200 मीटर दौड़ के फाइनल और महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में दो स्वर्ण पदक जीते। जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) की सात-पुरुष कराटे टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया और सैयद बाबा ने एकल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) की पुरुष और महिला बैडमिंटन टीमों ने अपने निर्धारित प्रदर्शन से स्वर्ण और दर्शकों का दिल जीता। तलवारबाजी, महिला पोल वॉल्ट और भारोत्तोलन टीमों ने असाधारण प्रदर्शन दर्ज किया और विश्वविद्यालय के लिए पदक जीते।
जैन ग्रुप के संस्थापक और जैन (डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी) के चांसलर चेनराज रॉयचंद ने विजेताओं को बधाई दी।
कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) के खेल निदेशक शंकर यूवी ने कहा, “हमारे 30 वर्षों के प्रयासों का परिणाम हाल ही में समाप्त हुए केआईयूजी के दूसरे संस्करण में दिखाई दे रहा था। हमारे खेल दल ने अपनी जबरदस्त खेल भावना से हमें राष्ट्रीय और वैश्विक मानचित्रों पर मजबूती से स्थापित किया है।
विश्वविद्यालय के लिए सबसे अधिक पदक जीतने वाले शिव श्रीधर ने कहा, “हम चैंपियन बनकर बहुत खुश और गर्व महसूस कर रहे हैं और हमारे खेल में उत्कृष्टता के लिए हमें सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करने के लिए जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी) के आभारी हैं। हमें उस विश्वविद्यालय का हिस्सा होने पर गर्व है जो अकादमिक उत्कृष्टता के साथ खेल संस्कृति को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करता है।”

कोलकाता के छात्रों ने गुजरात में जीता राष्ट्रीय स्तर का हैकथॉन

कोलकाता । शिक्षा का डिजिटल प्रारूप बेहद लोकप्रिय हो रहा है और अर्थव्यवस्था को भी इससे बढ़ावा मिला है। एडुटेक कम्पनियाँ भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, साथ ही शिक्षा एवं रोजगार की स्थिति को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं मगर प्रमाणन प्रक्रिया में थोड़ी सी गड़बड़ियाँ हैं जिसका फायदा जालसाज उठाते हैं। संस्थानों द्वारा आजकल पीडीएफ प्रमाणपत्र भी दिये जा रहें जिनमें आसानी से हेर -फेर किया जा सकता है। विद्यार्थी का नाम आसानी से बदला जा सकता है। इसलिए, पीडीएफ प्रारूप में उत्पन्न प्रमाण पत्र की वैधता की जांच करने के लिए एक उचित प्रमाणीकरण तंत्र की आवश्यकता है। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए, हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बी.टेक (सीएसई) के द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी अग्निश घोष और बी.टेक- ईसीई द्वितीय वर्ष के राजर्षि पॉल की एक जोड़ी ने एक वेब-आधारित एप्लिकेशन डीकर्ट का आविष्कार किया। यह ब्लॉकचेन, एन्क्रिप्शन और नेटवर्क सुरक्षा के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। । नॉन फंजीब्लिटी और टोकनाइजेशन का उपयोग करते हुए, इन विद्यार्थियों ने एक इंटरफ़ेस बनाने में सफलता प्राप्त की है जो पीडीएफ प्रमाणपत्र डेटा को टोकनाइज करता है। टोकनाइजेशन का विचार पीडीएफ प्रमाणपत्र के डेटा को एन्क्रिप्ट करने और इसे एक डिसेन्ट्रलाइज्ड यानी विकेन्द्रित कर उसे ब्लॉकचेन नेटवर्क पर वितरित करने में मदद करता है। हर बार जब कोई उपयोगकर्ता / संगठन प्रमाण पत्र डेटा तक पहुंचना चाहता है, तो वहां से जानकारी प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है नेटवर्क। इस प्रक्रिया में डेटा सुरक्षा की कड़ी प्रक्रिया के तहत कॉपीराइट उल्लंघन, जालसाजी और धोखाधड़ी को रोकने की व्यवस्था की जाती है।
गत29 अप्रैल 2022 को इस एप्लिकेशन ने सरदार वल्लभभाई पटेल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एसवीआईटी), वसाड, गुजरात द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय स्तर के हैकथॉन हैक्सविट जीता इस हैकाथन को फेसबुक (मेटा प्लेटफॉर्म) के टेलेंट एक्विजिशन डिविडन मेजर लीग हैकिंग ने भागीदारी करते हुए प्रायोजित किया था। यह इस वर्ष का एकमात्र ऑफलाइन हैकाथन था।
ऑफ़लाइन कार्यक्रम के लिए 980+ चयनित पंजीकरण थे, उनके ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म में 600 से अधिक प्रोजेक्ट प्रस्तुत किए गए थे, और अंत में 115 टीमों ने देश भर के लगभग 500 प्रोग्रामर के साथ फाइनल इवेंट में प्रतिस्पर्धा की।
हैकथॉन की अवधि लगातार 36 घंटे थी। यहां प्रतिभागियों को अपने विचारों को वेबसाइटों, अनुप्रयोगों और सॉफ्टवेयर प्रोटोटाइप में प्रोग्राम और इकट्ठा करना था। आयोजकों ने प्रतिभागियों को सभी संरचनागत सहायता प्रदान की।

मेन्टरिंग यानी परामर्श के 3 चरण थे जहां कंप्यूटर वैज्ञानिक, स्टार्टअप-संस्थापक और अन्य कंपनी टेक लीड ने प्रतिभागियों को उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले उत्पाद और तकनीकी स्टैक के बारे में सलाह दी। उन 3 राउंड के बीच, जजिंग के 2 राउंड थे जहाँ प्रतिभागियों को जजों के सामने अपने उत्पादों के बारे में जानकारी प्रदान करना और प्रदर्शित करना था। इन राउंड में, जज और मेंटर्स प्रौद्योगिकी के स्तर और उत्पाद ज्ञान से काफी प्रभावित हुए थे, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय कार्यक्रम में विजेता घोषित किया गया था।
अंतिम दौर में, टेक स्टार्ट-अप संस्थापकों और निवेशकों की एक पूरी जूरी थी, जिन्होंने प्रतिभागियों से विभिन्न प्रश्न पूछे, जहां दोनों ने डेटा सुरक्षा के अपने अनूठे विचार के साथ दूसरों को पछाड़कर खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित किया। हैक्सविट के विजेता अग्निश और राजर्षि ने रुपये की पुरस्कार राशि जीती। 50000/- जो उन्होंने एक कल्याणकारी योजना के लिए दान करने का फैसला किया है। हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी. के. अग्रवाल ने दोनों विजेताओं को बधाई दी और उम्मीद जतायी कि उनका यह आविष्कार भविष्य में उपयोगी साबित होगा।

‘राष्ट्रीय आंदोलन और हिंदी साहित्य’ पर संगोष्ठी

खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज और भारतीय भाषा परिषद का साझा आयोजन
कोलकाता । आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर हिंदी विभाग, खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज और भारतीय भाषा परिषद के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और हिंदी साहित्य’ विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर कॉलेज के प्रिंसिपल सुबीर कुमार दत्त ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास हमें प्रेरित करता है।भारतेन्दु और जयशंकर प्रसाद सहित हिंदी के दर्जनों लेखकों का उन्होंने जिक्र किया। परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास हमारे लिए जानने और जीने का आधार है।उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि हमें साहित्य और इतिहास के बीच जीवन के सच को तलाशने की जरूरत है।विषय का प्रवर्तन करते हुए परिषद के निदेशक व प्रख्यात आलोचक डॉ शंभुनाथ ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन हमारे आत्मपहचान की पहल है। हमें भारतेन्दु, प्रेमचंद और गांधी के संदर्भ में राष्ट्रीय आंदोलन को समझने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि स्त्री, किसान,दलित और सामाजिक न्याय को हाशिये से केंद्र में लाए बिना आजादी का अमृत महोत्सव की बात बेमानी है। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ वसुंधरा मिश्रा ने किया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ हितेंद्र पटेल ने कहा कि आजादी की शुरूआत 1857 के पहले ही हो गयी थी और आज भी आजादी की लड़ाई जारी है। हालांकि आज आजादी का स्वरूप बदल गया है। विद्यासागर विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ संजय जायसवाल ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि भारत का राष्ट्रीय आंदोलन का उभार 1857 से प्रारंभ होता। यह आंदोलन भारत के उपनिवेश से राष्ट्र बनने की प्रक्रिया है। जहां राजनीतिक क्रांति के साथ सामाजिक क्रांति की जरूरत को समझा गया है। दार्जिलिंग गवर्मेंट कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ श्रद्धांजलि सिंह ने कहा कि दुनिया की आधी आबादी को अधिकार मिले बिना राष्ट्रीय आंदोलन की परियोजना पूरी नहीं हो सकती। राष्ट्रीय आंदोलन में स्त्रियों की भागीदारी ने भी राष्ट्र मुक्ति के साथ सामाजिक मुक्ति का पथ प्रशस्त किया। इस सत्र का संचालन मधु सिंह ने किया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ सत्या उपाध्याय ने कहा कि हमें राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए विविध आंदोलनों और सुधारों को समझने की जरूरत है। कल्याणी विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ विभा कुमारी ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य पर राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। प्रसिद्ध समीक्षक और अनुवादक मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन को तीन भागों में बांटते हुए आजादी, भाषा और परिवार के टूटने के स्तर पर चर्चा की। कोचबिहार पंचानन विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ रीता चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन को सिर्फ आजादी से जोड़कर देखने के बजाय हमें समाज के सभी वर्गों के विकास और स्वतंत्रता से जोड़ना चाहिए। इस सत्र का सफल संचालन राहुल गौंड़ ने किया। इस अवसर पर आदित्य कुमार गिरि,अमृता कौर, लिली शाह,डॉ विक्रम साव ने शोध पत्र का वाचन किया। धन्यवाद ज्ञापन खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की विभागाध्यक्ष डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने दिया।

उत्तराखंड के पर्य़टन मंत्री ने किया दुबई के अरेबियन ट्रैवल मार्केट का दौरा

कोलकाता । उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज सऊदी अरब के दुबई में आयोजित अरबियन ट्रैवल मार्ट में शामिल हुए। उन्होंने इस मेले में भारत के पर्यटन पवेलियन, उत्तराखंड पर्यटन पवेलियन, उत्तर प्रदेश पर्यटन पवेलियन और मध्य प्रदेश पर्यटन पवेलियन का उद्घाटन भी किया। इस अवसर पर अपने वक्तव्य में उन्होंने उत्तराखंड को रोमांचक पर्यटन का केन्द्र बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में निवेश की अपार सम्भावनाएं हैं। यह राज्य गंगा, यमुना और सरयू जैसी नदियों का उद्गम है और बदरीनाथ एवं केदारनाथ जैसे तीर्थस्थल भी यहाँ हैं। इस अवसर पर पर्यटन मंत्राल के अतिरिक्त महानिदेशक रुपिंदर बरार, दुबई में भारच के कौंसुलेट जनरल डॉ. अमन पुरी, मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के मुख्य सचिव एवं मध्य प्रदेश पर्यटन परिषद के प्रबन्ध निदेशक शिव शेखर शुक्ल, उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के अतिरिक्त निदेशक विवेक सिंह चौहान और नैनीताल जिला पर्यटन के अधिकारी बृजेन्द्र पांडेय भी उपस्थित थे। तीन दिवसीय अरेबियन ट्रैवल मार्ट 9 से 12 मई तक आयोजित हुआ जबकि वर्चुअल इवेन्ट 17 -18 मई को आयोजित हो रहा है।

बीएचएस का वार्षिक समारोह सम्पन्न

कोलकाता । बिड़ला हाई स्कूल का वार्षिक समारोह हाल ही में आयोजित हुआ। इस साल के समारोह की थीम टाइमलेस टुट – ए जर्नी बैक इन टाइम थी। कार्यक्रम का संचालन ग्यारहवीं कक्षा के अमन गुप्ता एवं रोहिताश्व दास ने किया। इस थीम से सम्बन्धित नाटक का मंचन भी तिया गया। वार्षिक रिपोर्ट स्कूल की प्रिंसिपल लवलीन सैगल ने प्रस्तुत की और विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त स्कूल की उपलब्धियों को सामने रखा।

बिड़ला हाई स्कूल में रवीन्द्र जयन्ती पर आयोजित हुए कई कार्यक्रम

कोविड वॉरियर का आईआईएचएम पुरस्कार पल्लवी भंसाली एवं जोसेफ ऑरोकियास्वामी को प्राप्त हुआ। इस साल 7 शिक्षक सेवानिवृत हुए। स्कूल की अल्यूमनी ने जरूरतमंद बच्चों तक 20 हजार आहार उपलब्ध करवाने की पहल की है। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थी पुरस्कृत किये गये। इस साल स्टूडेंट ऑफ द इयर पुरस्कार आरम्भ किया गया। समारोह का समापन राष्ट्रगान से हुआ।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में मनाया गया मदर्स डे

कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल की प्राथमिक विभाग की छात्राओं ने मदर्स डे उत्साह के साथ मनाया। छात्राओं ने अपनी मांओं के लिए अपना प्यार जाहिर किया। उन्होंने माँ के लिए गीत गाये, कार्ड बनाये, धन्यवाद कहते हुए पोस्टर बनाये। अपनी माँ की तस्वीर लिए उनके लिए दोहे पढ़े। जुम्बा सेशन में भी बच्चियों का उत्साह दिखा। थीम आधारित प्रस्तुति, कहानियों, नाटकों, वीडियो क्लिपिंग्स के माध्यम से माँओं का महत्व समझाया गया।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में मनाया गया पृथ्वी दिवस


कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में पृथ्वी दिवस मनाया गया। पर्यावरण से सम्बन्धित मुद्दों के प्रति जागरुकता लाने का प्रयास किया गया। प्राथमिक विभाग की छात्राओं ने इस अवसर पर विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया। छात्राओं को ग्रीन वॉरियर बनने के लिए प्रेरित किया गया। नर्सरी और किंडरगार्टेन की छात्राओं ने स्कूल परिसर में पौधों को पानी दिया और अपनी उंगलियों के निशान से धरती माता की सुन्दर तस्वीरें बनायीं। पाँचवीं कक्षा की छात्राओं ने पावर प्वाइंट के जरिए जल संरक्षण के महत्व को समझाते हुए जल की बर्बादी को रोकने को लेकर चार्ट बनाया। पहली और दूसरी कक्षा की छात्राओं ने मिट्टी से अपने तरीके से हरी – भरी धरती को प्रदर्शित किया। तीसरी कक्षा की छात्राओं ने इन्डोर प्लांट्स की देखभाल की, चौथी कक्षा की छात्राओं ने पोस्टर बनाये। छात्राओं को प्राकृतिक तत्वों के संरक्षण के बारे में समझाने के लिए वीडियो दिखाया गया।

बंगाल में पुनरूत्थान विषय पर बीबीए विभाग द्वारा संगोष्ठी

कोलकाता ।  भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के व्यवसाय प्रशासन विभाग ने गत 7 मई 2022 की सुबह ‘बंगाल के पुनरुत्थान’ पर एक संगोष्ठी ‘कैलिडोस्कोप’ का आयोजन किया। दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।सेमिनार विद्यार्थियों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और आधुनिक शिक्षा की दिशा में एक अभिनव कदम है। यह न केवल नई चीजें सीखने के लिए बल्कि नए विचारों और सूचनाओं को साझा करने के लिए विशेष महत्व रखता है साथ ही पीढ़ी के अंतर को पाटने और वर्तमान पीढ़ी के विद्यार्थियों को ज्ञान की उचित दिशा देता है। साथ ही ज्ञान अवसर, उपलब्धि, सफलता और धन के द्वार खोलता है
इस अवसर पर निर्देशक देवेश शर्मा और अदिबा खान ने चयन दासानी और ज़राफशान सुल्ताना के साथ पैनलिस्टों का परिचय कराया। पैनलिस्टों को उनकी उपस्थिति के लिए सम्मानित किया गया।
पांच प्रमुख वक्ता पैनलिस्टों ने ‘बंगाल के पुनरुत्थान’ पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को व्यक्त किया और वे बंगाल के भविष्य को कैसे देखते हैं? इस पर बात की। भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के महानिदेशक कार्यक्रम के मॉडरेटर प्रोफेसर डॉ सुमन कुमार मुखर्जी ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के फेलो हैं, यूएसएईपी (यूएसएआईडी के तहत) के पर्यावरण फेलो हैं, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में 2014 में मदर टेरेसा पुरस्कार जीता और इंडो ब्रिटिश स्कॉलर्स एसोसिएशन के सदस्य हैं।
संगोष्ठी ‘बंगाल के पुनरुत्थान’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी के साथ आरंभ हुई। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि कैसे एक प्रिज्म एक बहुरूपदर्शक से अलग है। उन्होंने एमएसएमई क्षेत्र जैसे अपनी ताकत बताते हुए पश्चिम बंगाल के भविष्य पर चर्चा की। फिर उन्होंने भारी उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जिनमें सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा, उन्होंने चर्चा की कि कैसे बंगाल राजनीतिक और आर्थिक रूप से सांस्कृतिक रूप से बदल रहा था और मैकेंज़ी मॉडल की रणनीतियों का पालन कर रहा था।
अंबुजा निवेटिया समूह के अध्यक्ष ॉहर्षवर्धन नेवटिया सर्वप्रथम अपनी बात कही और बंगाल के पुनरूत्थान विषय पर अपनी राय रखी। आशावादी रूप से यह कहकर शुरुआत की कि यदि हम दशकों पहले बंगाल की स्थिति को देखें, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में बंगाल में क्या हुआ है और स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन यह बेहतर हो सकता है। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांँचे में उल्लेखनीय बदलाव आया है। हमें अपनी ताकत, रचनात्मक अर्थव्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि कोलकाता को भारत की रचनात्मक बौद्धिक अर्थव्यवस्था के रूप में आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है।

अत्री भट्टाचार्य, आईएएस और पश्चिम बंगाल सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव थे। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को बारे में बात की जो बहुत ही रोचक रूप से प्रस्तुत किया जिसमें काफी विनोदी तत्व रहे। उन्होंने बंगाल के एचडीआई सूचकांक के शीर्ष छह में नहीं होने, नीली और नारंगी अर्थव्यवस्था और बंगाल ने मोड़ को कैसे पार किया, जैसी जानकारी साझा की। उन्होंने कहा, ‘संस्कृति आर्थिक विकास का वाहक है।’

उन्होंने सकारात्मकता का उल्लेख किया कि आय की असमानता में कमी आई है और सरकार को बुनियादी ढांचे और शासन पर ध्यान देना चाहिए। पश्चिम बंगाल में कुशल शैक्षणिक संस्थान हैं, घनी आबादी है, उपजाऊ कृषि भूमि है, एक बड़ा बाजार है और इन कारकों पर एक उचित ध्यान बंगाल को सकारात्मक दिशा में ले जा सकता है।
कलकत्ता चैंबर ऑफ कॉमर्स की अध्यक्ष शैलजा मेहता ने अपनी बात यह कहकर आरंभ की कि बंगाल में इसके लिए बहुत कुछ है और हमें अपनी मूल प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित कर हम अपने कार्यों को क्रियान्वित कर बंगाल को वापस दे सकते हैं।
भारतीय विद्या भवन, कलकत्ता केंद्र के अध्यक्ष डॉ जी. डी गौतम, आईएएस (सेवानिवृत्त) ने अपने जीवन के कुछ उदाहरण साझा किए, उन्होंने देखा कि भारतीय लोगों से हमेशा बुद्धिमान होने की उम्मीद की जाती है। इन चर्चाओं के माध्यम से, उन्होंने लोगों को यह एहसास दिलाया कि हमें संसाधनों के मूल्य को कम नहीं आंकना चाहिए और अगर हम अपनी ताकत का विपणन करते हैं, तो यह अंततः विकास की ओर ले जाएगा।

असम सरकार के सलाहकार डॉ शिलादित्य चटर्जी, आईएएस (सेवानिवृत्त), ने आर्थिक पुनरुद्धार: संभावनाओं और संभावनाओं पर अपने शोध पर चर्चा की। उन्होंने अपनी विस्तृत प्रस्तुति के साथ इस विषय पर प्रकाश डाला, जिसकी शुरुआत इस बात से हुई कि कैसे बंगाल में औसत राज्य जीडीपी विकास दर और उच्च गरीबी दर में तुलनात्मक गिरावट आई है, जिसमें सुधार हुआ है। बंगाल के विभाजन से शुरू होकर, तुलनात्मक रूप से खराब मानव विकास, कृषि विकास के लिए एक सार्वजनिक ऋण की अधिकता और खराब औद्योगिक संबंध, उन्होंने उन कारकों पर चर्चा की, जिनमें सुधार की गुंजाइश है।

भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के छात्र मामलों के प्रो डीन दिलीप शाह ने इस विषय पर विचार रखे और  बंगाल को विकसित करने के प्रयासों में भागीदारी का आह्वान किया। भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के समन्वयक डॉ त्रिदीब सेनगुप्ता ने सभी गणमान्य व्यक्तियों को उनकी विशिष्ट उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया। प्रो. कौशिक बनर्जी ने संगोष्ठी के आयोजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इवेंट मैनेजमेंट टीचर – कोऑर्डिनेटर और इवेंट मैनेजमेंट टीम के साथ इवेंट ऑर्गनाइजर्स का सक्रिय योगदान रहा। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।