Thursday, August 21, 2025
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आईएएस के लिए हो प्रायोगिक  प्रशिक्षणः डॉ. राजाराम त्रिपाठी

-प्रो. एसबी राय ने दिया साहित्य के छात्रों के लिए इंटर्नशिप पर जोर

– पैरोकार पत्रिका व इबराड ने आयोजित की दो दिवसीय संगोष्ठी व प्रतियोगिता

कोलकाता । प्रख्यात जैविक कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा है कि उच्च शिक्षा के सभी छात्र-छात्राओं समेत साहित्य के विद्यराथी  के लिए प्रायोगिक प्रशिक्षण( इंटर्नशिप) जरूरी है। यहां तक कि आइएएस के लिए भी प्रायोगिक प्रशिक्षण होना चाहिए। परिश्रम से करके कुछ युवा आईएएस अधिकारी बन जाते हैं। लेकिन पहली बार कलेक्टर के पोस्ट पर आसीन होने के बाद उन्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत पड़ती है। पहले से प्रायोगिक प्रशिक्षण लेने के बाद आइएएस अधिकारी कहीं भी पहली बार पदासीन होने पर बेहतर काम करेंगे और सरकारी योजनाओं को दक्षता के साथ मूर्त रूप दे सकेंगे। डॉ. त्रिपाठी ने पैरोकार पत्रिका और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल-बायो साइंस रिचर्स एंड डेवलपमेंट( इबराड) की ओऱ से नई शिक्षा नीतिः हिंदी साहित्य में प्रायोयिग प्रशिक्षण का महत्व विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर प्रधान अतिथि यह बातें कही। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में भी प्रायोगिक प्रशिक्षण का महत्व है। वैश्वीक बाजार का व्यापक विस्तर होने के साथ हिंदी का महत्व बढ़ा है। चीन जैसे देश में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। भाषांतर और अनुवाद के लिए कृतिम मेधा(एआई) और कंप्यूटर आधारित तकनीक का विकास हुआ है। कृतिम मेधा हमारे लिए जोखिम भी पैदा करेगा। इसलिए तकनीक के प्रयोग के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी अब प्रायोगिक प्रशिक्षण जरूरी हो गया है। अपने अध्यक्षीय भाषण में इबराड के चेयरमैन प्रो. एसबी राय ने कहा कि साहित्य में इंटर्नशीप के महत्व को समझाने के लिए स्कूली स्तर पर शिक्षकों के लिए कार्यशालाएं आयोजित करने की जरूरत है। सेमिनार में बतौर वक्ता रेशमी पांडा मुखर्जी (एसोसिएट प्रो. गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज) ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में इंटर्नशिप के हमत्व को विस्तार से रेखांकित किया। विद्यासागर कॉलेज फार वुमेन के सहायक प्राध्यापक अभिजीत सिंह ने पीपीटी के माध्यम से अनुवाद से लेकर सामग्री लेखन, फिल्म लेखन और दक्षता विकास में साहित्य में इंटर्नशिप के महत्व पर प्रकाश डाला। योगेशचंद्र चौधरी कॉलेज की सहायक प्रध्यपिका ममता त्रिवेदी ने कहा कि साहित्य में इंटर्शनशिप को सिर्फ रोजगार प्राप्त करने से जोड़कर ही नहीं देखा जाना चाहिए। इस मौके पर डिजिटल युग में सामाजिक संबंधों के नए रूप शीर्ष से हिंदी निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें 36 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले अभिषेक कोहार, द्वितीय स्थान प्राप्त करनेवाली शालिनी पांडेय और तृतीय स्थान प्राप्त करनेवाली नंदिनी कुमारी को इबराड की ओर से प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह देकर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का संचालन पैरोकार के प्रधान संपादक अनवर हुसैन और पत्रकार राजेश ने किया। धन्यवाद ज्ञापन बिमल शर्मा ने किया। यह सेमिनार दो दिवसीय 25-26 फरवरी को पैरोकार साहित्य महोत्सव के समापन के मौके पर किया गया। महोत्सव में छत्तीसगढ़ के डॉ. राजाराम त्रिपाठी को पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान से, युवा नाटककार डॉ. मोहम्मद आसिफ आलम को पैरोकार नाट्य सम्मान से, शंकर जालान को पैरोकार पत्रकारिता सम्मान और सीमा गुप्ता को पैरोकार काव्य सम्मान से नवाजा गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता ताजा टीवी व छपते छपते के प्रधान संपादक विश्वम्भर नेवर और समापन सत्र की अध्यक्षता इबराड के चेयरमैन प्रो. एसबी राय ने की। दो दिवसीय पैरोकार साहित्य महोत्सव पैरोकार के विशेषांक का लोकार्पण, आज की साहित्यिक पत्रकारिता पर संगोष्ठी, कवि सम्मेलन और राष्ट्रीय सेमिनार के सफल आयोजन के साथ संपन्न हुआ।

कालिदास के शाकुन्तलम पर नृत्य ने समां बांधा

कोलकाता ।  भारतीय भाषा परिषद की स्वर्ण जयंती आयोजन श्रृंखला में अमेरिका से आईं प्रसिद्ध नृत्यांगना लाबणी मोहन्ता के कालिदास के शाकुन्तलम पर नृत्य ने परिषद सभागार में दर्शकों का मन जीत लिया। तबला पर थे प्रसिद्ध वादक रोहेन बोस और सितार पर जयंत बैनर्जी। गायन पर अरिंदम भट्टाचार्य ने अनोखी प्रस्तुति दी। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की संध्या पर दर्शकों की भारी उपस्थिति थी। परिषद की ओर से विमला पोद्दार, आशीष झुनझुनवाला, घनश्याम सुगला और शालीन खेमानी ने अतिथियों का स्वागत किया। विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे रामनिवास द्विवेदी, प्रियंकर पालीवाल, सुनील कुमार शर्मा और महेंद्र सिंह पूनिया। आज के आयोजन के मुख्य संयोजक थे उदीयमान तबला वादक सौरभ गुहा। स्पेनिश वीणा पर थे सचिन पटवर्धन और घटम पर सोमनाथ राय। संगीत संध्या का संचालन करते हुए प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि परिषद की स्वर्ण जयंती पर हम कोलकाता में कई राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम करने जा रहे हैं। परिषद के निदेशक डा. शंभुनाथ ने कहा कि भारतीय कलाएं हमारे मन को व्यापक बनाती हैं और संगीत एक ईश्वरीय अनुभूति है। आशीष झुनझुनवाला ने धन्यवाद दिया।

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विद्यासागर विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा मातृभाषा दिवस का आयोजन
कोलकाता। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा ऑनलाइन काव्य संध्या का आयोजन किया गया। मिशन के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि भाषा माध्यम होती है और हम इसके सहयात्री होते है। मातृभाषा के साथ साहित्यिक पुनर्निर्माण का प्रश्न अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं के बीच सृजनात्मक संवाद से ही संभव है। इस अवसर पर डॉ. सुशीला ओझा, डॉ. वर्षा महेश, दिव्या शर्मा, हिमाद्री, शिप्रा मिश्रा, सिपाली गुप्ता, मनीषा गुप्ता, मधु सिंह, सूर्य देव रॉय और सुषमा कुमारी ने काव्य पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि भाषा परिवेश की होती है। और आम तौर पर इसी परिवेश की भाषा को मातृभाषा कहा जाता है। आज मातृभाषा की पूरी परिपाटी बदल गई है। आजादी के बाद की तीसरी पीढ़ी के पास मातृभाषा के रूप में कमोबेश अंग्रेजी ही काबिज हो गई है। कार्यक्रम का सफल संचालन रुपेश यादव ने किया। इस अवसर पर रामनिवास द्विवेदी, मंजू रानी सिंह, नागेंद्र पंडित, विकास साव, डॉ. मंटू कुमार, उत्तम कुमार, शनि सरोज, महेश कुमार सहित अन्य साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
हिंदी विभाग, विद्यासागर विश्वविद्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। इस अवसर पर अर्जुन शर्की, बिट्टी कौर, निसार अहमद अंसारी व अन्य छात्र-छात्राओं ने मातृभाषा पर अपने विचार व्यक्त किए। विभाग के विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न भाषाओं में गीत प्रस्तुत किए गए। माही कुमारी ने बंगला, अर्जुन शर्की ने नेपाली एवं अदिति ने हिंदी में गायन किया। अंजलि शर्मा, नेहा गुप्ता, माही कुमारी एवं अदिति शर्मा ने हिंदी गीत का सामूहिक गायन किया। नंदिनी सिंह एवं नगमा ने स्वरचित कविताओं का पाठ किया। विभाग के प्राध्यापक श्रीकांत द्विवेदी ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन रूथ कर ने किया।

खुदीराम बोस सेंट्रल कालेज में मातृभाषा दिवस का आयोजन

कोलकाता ।  खुदीराम बोस सेंट्रल कालेज की ओर से अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र में सभी आमंत्रित अतिथियों ने पौधे का जल सिंचन कर पर्यावरण की तरह भाषा को बचाने का संकल्प लिया। बीज वक्तव्य देते हुए कालेज के प्राचार्य डॉ अफसर अली ने कहा मातृभाषा कृत्रिमता से मुक्त सहज और स्वाभाविक होती है। उन्होंने कहा कि मैं सरकार से अपील करता हूं कि जिन भाषाओं की लिपि और व्याकरण नहीं है ऐसी भाषाओं को संरक्षित को करें।स्वागत गीत अंग्रेजी विभाग की अनुसूया मित्र ने गाया। स्वागत वक्तव्य देते हुए बांग्ला विभागाध्यक्ष सभी आमंत्रित अतिथियों का स्वागत किया। कालेज के प्रेसिडेंट शांतनु मल्लिक ने कहा कि बांग्ला को मातृभाषा का दर्जा पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा है। मुख्य अतिथि डॉ इमानुएल हक ने कहा हमें मातृभाषा के साथ दूसरी भाषाएं सीखनी चाहिए। इससे हम समृद्ध होंगे और अपनी मातृभाषा को समृद्ध कर पाएंगे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण शतपती ने कहा कि मातृभाषा एक यंत्र की तरह है जिसके साथ आगे चलकर अस्मिता भी जुड़ गई। भाषा हमें ज्ञान तक पहुंचाती है।इस अवसर पर हिंदी विभाग की छात्रा शिवानी तिवारी ने कवि केदारनाथ सिंह की कविता का पाठ एवं बांग्ला विभाग के छात्र आबीर दास ने आवृत्ति की। अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर राजदीप मंडल ने मातृभाषा पर आधारित एकल नाटक की शानदार प्रस्तुति की। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए हिंदी विभाग की डॉ मधु सिंह ने कहा कि हमें मातृभाषा दिवस के अवसर पर अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं का सम्मान का संकल्प लेना चाहिए। दूसरी भाषाएं सीखने से हमारी भाषा का भी विकास होता है । बांग्ला विभाग के प्रोफेसर रामकृष्ण घोष ने कहा हमें अपनी मातृभाषा के महत्व को समझते हुए इसके विकास के बारे में सोचना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रोफेसर सोमनाथ भट्टाचार्य ने काव्यपाठ किया।

भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के सात एनसीसी कैडेट रिपब्लिक डे कैंप 2025 में चयनित 

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कालेज के कॉलेज के सात एनसीसी कैडेटों को रिपब्लिक डे कैंप (आरडीसी) में दो को सर्वश्रेष्ठ एनसीसी कैडेट के रूप में चुना गया था, दो ड्रिल आकस्मिक के लिएऔर दो ऑल-इंडिया गार्ड ऑफ ऑनर के लिए चुने गए थे ।सभी चयनित कैडेटों को अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने और उनके निदेशालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस मंच पर अवसर प्राप्त हुआ। विभिन्न कार्यक्रमों के लिए कैडेटों का चयन किया गया जिसमें मुख्य रूप से कठोर प्रशिक्षण और कई चयन स्तरों को देखना जिसमें सर्वश्रेष्ठ कैडेट, कर्तव्य पथ के लिए ड्रिल आकस्मिक, प्रधानमंत्री की रैली, गार्ड ऑफ ऑनर, विशेष नौकायन अभियान आदि शामिल रहे। सभी चयनित कैडेट्स 26 दिसंबर को दिल्ली पहुंचे जहां एनसीसी के महानिदेशक द्वारा उन सभी कैडेटों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया । शिविर में विभिन्न कार्यक्रमों को शामिल किया गया, जिसमें प्रमुख गणमान्य लोगों के लिए घर की यात्राएं शामिल हैं, जैसे कि सेना प्रमुख, वायु प्रमुख, नौसेना प्रमुख, प्रधान मंत्री और भारत के राष्ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति रही। । कैडेट्स ने भारत के रक्षा मंत्री के साथ रात्रिभोज में भी भाग लिया। कैडेटों की उल्लेखनीय उपलब्धियों में सीडीटी किशन उपाध्याय और सीडीटी प्रियांशु झा ऑल-इंडिया गार्ड ऑफ ऑनर के लिए चुने गए, उन्होंने उपाध्यक्षों को सम्मानित किए गए गणमान्य लोगों को सम्मानित किया, जिसमें उपाध्यक्ष, सेना के प्रमुख/नौसेना/वायु सेना के कर्मचारी, और भारत के प्रधान मंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री, रक्षा कर्मचारी प्रमुख कर्मचारी आदि शामिल थे। सीडीटी रूफिना टोपो और सीडीटी प्रिंस राज गुप्ता एलीट एनसीसी ड्रिल टुकड़ी के लिए चुने गए। उन्होंने 26 जनवरी 2025 को राजपथ पथ पर मार्च किया। सीडीटी रफिना और प्रिंस दोनों ने विभिन्न सोशल मीडिया चैनलों को अपना साक्षात्कार दिया।सीडीटी आर्यन गुप्ता और सीडीटी शागनिक मित्रा ने क्रमशः वरिष्ठ डिवीजन आर्मी बेस्ट कैडेट और सीनियर डिवीजन नेवी बेस्ट कैडेट के रूप में निदेशालय का प्रतिनिधित्व किया। दोनों निदेशालय की सांस्कृतिक टीम के हिस्सा थे। सीडीटी किशन उपाध्याय और सीडीटी आर्यन गुप्ता: एनसीसी गतिविधियों में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए एनसीसी पदक और बैटन से सम्मानित किया गया । आर्यन ने अपने असाधारण ब्रीफिंग कौशल के लिए सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से सराहना का एक टोकन भी प्राप्त किया।सीडीटी कैप्टन एमडी शमसर खान को आरडीसी 2025 विशेष नौकायन अभियान के कमांडर के रूप में चुना गया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज की एनसीसी टीम द्वारा दिल्ली में 26 जनवरी में भाग लिया जो कॉलेज के लिए गौरव की बात है।

भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थियों ने मनाई पिकनिक

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के तीन सौ से अधिक विद्यार्थियों ने एक साथ पिकनिक मनाई। कोलकाता से 30 किमी दूर एक भव्य रिसोर्ट इबीजा में सभी विद्यार्थियों को शिक्षक और शिक्षिकाओं की निगरानी में बसों द्वारा ले जाया गया। रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह, वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, डॉ वसुंधरा मिश्र, प्रो नीतिन चतुर्वेदी, प्रो समलीन आलम , प्रो दर्शना त्रिवेदी, प्रो राजा पॉल, प्रो इब्राहिम हुसैन, प्रो अथर जमाल, प्रो दुष्यंत चतुर्वेदी, कैप्टन आदित्य राज, डॉ अशोक बोस, प्रो वनीता शर्मा की देख रेख में छात्र छात्राओं ने पिकनिक का आनंद लिया।विद्यार्थियों के लिए बोटिंग, साइकिलिंग, आर्चरी, इनडोर गेम, टेनिस बेडमिंटन आदि अनेक खेल रहे। हाउसी भी खिलावाया गया।डी जे हॉल में इच्छुक विद्यार्थियों ने डांस किया। नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम की चाय और पकौड़े का भरपूर आनंद लिया गया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि कॉलेज से छह बसों में सभी विद्यार्थी और शिक्षक शिक्षिकाएं साथ में गए।

एनआईपी एनजीओ व रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 ने मनाई ब्रेल की 200वीं वर्षगांठ

ब्रेल प्रतियोगिता का किया आयोजन

कोलकाता । ब्रेल की 200वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में एनआईपी – नेत्रहीनों और दिव्यांगों के लिए शिक्षा और सांस्कृतिक केंद्र और रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के अधिकारियों के सहयोग से नेत्रहीनों और दिव्यांगों के लिए ब्रेल प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कोलकाता केंद्र में आयोजित किया गया था, जिसमें लुई ब्रेल की विरासत और उनकी परिवर्तनकारी प्रणाली का जश्न मनाया गया, जो दुनिया भर में दृष्टिहीन समुदाय को सशक्त बनाती है। इस कार्यक्रम में समाज की कई प्रतिष्ठित हस्तियों की उपस्थिति रही, जिसमें रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. कृष्णेंदु गुप्ता, अमर मित्रा, कल्याण सेन बरत, समीर ऐच, अतिन बसाक, देबप्रतिम दासगुप्ता (ताजू), शाम खापा और तापसी बावलानी प्रमुख थे एनआईपी के सचिव देबज्योति रॉय ने इस आयोजन के बारे में अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “ब्रेल प्रतियोगिता नेत्रहीन और दिव्यांगों में मौजूद विशेष क्षमताओं का जश्न मनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह उन्हें समाज में अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पेश करने का अवसर प्रदान करता है और सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता और समावेश के संदेश को पुष्ट करता है। रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. कृष्णेंदु गुप्ता ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए समान अवसर बनाने में ब्रेल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 की ओर से दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने वाली पहलों का समर्थन करने पर हमें बेहद गर्व हैं। ब्रेल प्रतियोगिता स्वतंत्रता और कौशल विकास को बढ़ावा देने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, हम ऐसे प्रयासों के लिए अपना समर्थन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” यह आयोजन और प्रतियोगिता लुई ब्रेल की विरासत को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि थी, जिसकी प्रणाली नेत्रहीन समुदाय को शिक्षा, साहित्य और सामाजिक भागीदारी तक पहुँचने में सक्षम बनाने में सहायक रही है। कार्यक्रम के दौरान ब्रेल के इतिहास को भी सबके बीच साझा किया गया, जो 1800 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, जब इसे चार्ल्स बार्बियर की नाइट राइटिंग प्रणाली से लुई ब्रेल द्वारा संशोधित किया गया था, जो इस क्रांतिकारी कोड की अविश्वसनीय यात्रा का मार्ग प्रशस्त करता है।

महाशिवरात्रि पर बनाएं सिंघाड़े के आटे से आसान व्यंजन

सिंघाड़े के आटे का हलवा
सामग्री- 1 कप सिंघाड़े का आटा, 1/2 कप घी, 1 कप चीनी (या स्वादानुसार), 2 कप पानी, इलायची पाउडर (स्वादानुसार, बादाम और काजू (गार्निश के लिए)
विधि-एक कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें सिंघाड़े का आटा डालें। आटे को धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए भूनें जब तक कि इसकी सुगंध न आने लगे। अलग से एक पैन में पानी और चीनी को उबालें ताकि चाशनी तैयार हो जाए। अब आटे में यह चाशनी धीरे-धीरे डालें और लगातार चलाएं ताकि गांठ न बने। इलायची पाउडर डालें और अच्छी तरह मिलाएं। हलवा गाढ़ा होने पर गैस बंद कर दें और इसे बादाम और काजू से गार्निश करके परोसें।

सिंघाड़े के आटे की पूरी
सामग्री-1 कप सिंघाड़े का आटा, 2 मध्यम आलू (उबले हुए और मसले हुए), हरी मिर्च (बारीक कटी हुई), अदरक (बारीक कटा हुआ), सेंधा नमक (स्वादानुसार), तेल (तलने के लिए)
विधि– एक बड़े कटोरे में सिंघाड़े का आटा, मसले हुए आलू, हरी मिर्च, अदरक और सेंधा नमक डालें। सभी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा पानी डालकर नरम आटा गूंथ लें। आटे से छोटे-छोटे गोले बनाएं और उन्हें पूरी की तरह बेल लें। एक कड़ाही में तेल गर्म करें और पूरियों को सुनहरा होने तक तलें। गर्मागर्म पूरियों को धनिया चटनी या दही के साथ परोसें।

कम हुआ निजी कम्पनियों पर कर्ज का बोझ और बढ़ा मुनाफा

आरबीआई ने निजी क्षेत्र की कंपनियों का जारी किया आंकड़ा

नयी दिल्ली । आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियों के परिचालन लाभ मार्जिन के साथ-साथ शुद्ध लाभ मार्जिन में 2023-24 के दौरान प्रमुख क्षेत्रों में सुधार हुआ। जबकि इस वर्ष निजी क्षेत्र की कंपनियों के कर्ज का बोझ भी कम हुआ, जो मजबूत वित्तीय स्थिति को दर्शाता है।

आरबीआई की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, “2023-24 के दौरान परिचालन लाभ में पिछले वर्ष की 4.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 2023-24 में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के परिचालन लाभ में 2023-24 के दौरान क्रमशः 13.2 प्रतिशत और 15.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 2022-23 में यह दोनों क्षेत्रों के लिए क्रमश: 3.9 प्रतिशत की गिरावट और 16.8 प्रतिशत की वृद्धि थी।”

कर के बाद लाभ में 2023-24 के दौरान 16.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई; सर्विस सेक्टर की कंपनियों ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के 7.6 प्रतिशत की तुलना में कर-पश्चात लाभ वृद्धि 38.1 प्रतिशत दर्ज की। रिजर्व बैंक ने 6,955 कंपनियों के ऑडिटेड वार्षिक खातों के आधार पर 2023-24 के दौरान गैर-सरकारी गैर-वित्तीय (एनजीएनएफ) सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन से संबंधित डेटा जारी किया।रिपोर्ट के अनुसार, डेट-टू-इक्विटी रेशो द्वारा मापी गई इन कंपनियों का लीवरेज 2023-24 के दौरान मध्यम बना रहा। आरबीआई ने कहा कि सकल लाभ में वृद्धि ब्याज व्यय में वृद्धि से आगे निकल जाने के कारण ब्याज कवरेज अनुपात (आईसीआर) 2023-24 के दौरान 4.1 तक सुधर गया; मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का आईसीआर 6.3 पर स्थिर रहा, जबकि सर्विस कंपनियों के लिए यह मामूली रूप से सुधरकर 3.2 हो गया। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2023-24 के दौरान सार्वजनिक सीमित कंपनियों के सैंपल सेट के कुल फंड में इंटरनल सोर्स का हिस्सा दो-तिहाई से अधिक था, जिसका मुख्य कारण रिजर्व और अधिशेष में वृद्धि थी। आरबीआई के अनुसार, इन सार्वजनिक सीमित कंपनियों की सकल अचल संपत्ति 2023-24 के दौरान 10 प्रतिशत बढ़ी; मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, मोटर वाहन और अन्य परिवहन वाहन क्षेत्रों ने अचल संपत्तियों में उच्च वृद्धि दर्ज की।रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि निजी सीमित कंपनियों, जो स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट नहीं हैं, के परिचालन लाभ में भी 2023-24 के दौरान समग्र स्तर पर और साथ ही मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में तेजी आई। नतीजतन, परिचालन लाभ और बिक्री के बाद कर के अनुपात से मापा गया लाभ मार्जिन 2023-24 के दौरान बेहतर हुआ।समग्र स्तर पर, इन कंपनियों के सैंपल का लीवरेज डेट-टू-इक्विटी रेशो के संदर्भ में मार्च 2024 में एक साल पहले के स्तर 45.2 प्रतिशत के करीब रहा। रिपोर्ट के अनुसार, समग्र स्तर पर, आईसीआर 2023-24 के दौरान पिछले वर्ष के 2.7 से सुधरकर 3.1 हो गया; मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर का आईसीआर भी सुधरकर क्रमशः 8.3 और 2.7 पर आ गया।

महाशिवरात्रि पर विशेष : क्या हैं मां काली के चरणों के नीचे मुस्कराते भगवान शंकर का रहस्य ?

भगवती की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली जिनके काले और डरावने रूप की उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एकमात्र ऐसी शक्ति है जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिलकर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आकर लेट गए थे।
प्रकृति त्रिगुणमयी हैं। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश … तीनो प्रकृति के तीन गुणों (अग्नि, जल, आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे सी क्यूब हैं ;अथार्त रचयिता, पालनकर्ता और विनाशकर्ता…। त्रिगुण ..जो वर्तमान में हैं, वही भविष्य में है,जो भविष्य में है, वही भूत में भी हैं।ये तीनों ही काल एक दूसरे के विरोधी हैं ,परन्तु आत्मतत्व स्वरुप से एक ही हैं।
मन के तीन अंग हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक। इसीलिए इन तीनों अंगों के अनुरूप ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्मयोग का समन्वय हुआ।जब तक तीनों तत्त्वों का समुचित योग नहीं होता तब तक साधक को सफलता नहीं मिल सकती ;अर्थात जब तक संसार में त्रिगुण के 6 प्रकार के मनुष्यो में शिव नहीं दिखता साधना(.5 ) में भी नहीं पहुंचती।वास्तव में,पहुंचना है तीनों के पार….साढ़े तीन में …3.5 में।त्रिगुण(.5 )हैं और दूसरा वह परब्रह्म (.5 ) हैं ;वह जहां कोई भी नहीं है, जहां तीनों नहीं हैं।यही हैं शक्तिसहित शिव अर्थात अद्वैत ब्रह्म। वह मूल शक्ति शिव ही हैं।
जीवन का मूल उद्देश्य है -शिवत्व की प्राप्ति।शक्ति के बिना ‘शिव’ सिर्फ शव हैं और शिव यानी कल्याण भाव के बिना शक्ति विध्वंसक।शक्ति जाग्रत करके शिव-मिलन कराना -यह क्रम समना तक चलता है।वास्तव में महाशिवरात्रि… रात्रि है,जाग्रत शक्ति को शिव भाव में मिलन कराने की। यही शिव और शक्ति साधना का रहस्य हैं।जो शक्ति जाग्रत करके शिवमिलन नहीं कराता वो रावण बनता हैं।और इस संसार में दोनों की ही आवश्यकता हैं..चाहे दिन और रात हो या श्रीराम और रावण।जीवन का मूल्य, मात्र सफलता में ही नहीं है।
सत्य के लिए हार जाना भी जीत है। क्योंकि उसके लिए हारने के साहस में ही आत्मा सबल होती है और इन शिखरों को छू पाती है, जो कि परमात्मा के प्रकाश में आलोकित हैं।सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्। शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं.. अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मंगल, परम कल्याण।
भगवान शंकर महाकाली के चरणों में आकर लेट जाते है अथार्त विध्वंसक महाऊर्जा को आधार देकर महाकल्याणकारी बना देते है।अब ये हम पर निर्भर करता है कि ‘हम क्या है’, क्या हम दक्ष है जो अपनी शक्ति का शिव से विवाह नहीं कराना चाहता या ‘हिमालयराज’?दक्ष का परिणाम भी हम सभी को मालूम है।तो महाशिवरात्रि का मूल उद्देश्य है अपनी ऊर्जा का शिव से मिलन कराने का /अपनी ऊर्जा को शिव का आधार देकर कल्याणकारी बनाने का…।

(साभार – वैदिक ऋषिकाएं फेसबुक पेज से)

महाशिवरात्रि पर विशेष : जानिए पावन पर्व महाशिवरात्रि का अर्थ एवं रहस्य

हर माह अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। किंतु फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।
साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है।महाशिवरात्रि साल की सबसे अंधेरी रात है और इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।

2-शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं।इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य की भीतरी ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है।

3-महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे।

4-इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है।

5-हम किसी भी देवी – देवता या महात्मा आदि के जन्मदिन को रात्रि से नहीं जोड़ते। श्रीकृष्ण जी का जन्म रात्रि 12 बजे मनाते है फिर भी जन्म रात्रि शब्द का प्रयोग नहीं करते परन्तु इस रात्रि को शिव रात्रि कहा गया है। क्या इस दिन शिव जी का जन्म होता है या अवतार लेते है या अवतरण होता है।वास्तव में रात्रि का अर्थ अज्ञानता से है।

6-अज्ञान रूपी घोर रात्रि जब धरती पर पापा चार ,अत्याचार ,दुराचार फैलता है तब भक्त आत्माये दुखी होकर परमात्मा का आवाहन करती है। तब परमपिता परमात्मा शिव का इस धरती पर अवतरण होता है।आत्मा के अंदर जो अज्ञान रूपी अन्धेरा है वह ज्ञान सूर्य प्रकट होने से दूर हो जाता है।इसलिए इसी कलियुगी तमो प्रधान रूपी रात्रि पर अर्थात कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के समय ( संगम पर) शिव आते है।यही समय है जो आत्मा परमात्मा का सच्चा कुम्भ मेला है ।

7-माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से महेश्वर के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है।

8-समुद्र मंथन अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित तिथि थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए,देवताओं ने उनके मस्तक पर बेल-पत्र चढ़ाए और जल अर्पित किया तथा चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव के आनंद लेने और जागने के लिए, देवता अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया।

9-रात्रि के साथ शिव शब्द इसलिए जोड़ा गया क्योंकि शिव का अर्थ होता है – “वह जो नहीं है”। सृष्टि का अर्थ है – “वह जो है”। इसलिए सृष्टि के स्त्रोत को शिव नाम से जाना गया। शिव शब्द के अर्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण है वह ध्वनि जो की शिव शब्द से जुडी है। यह ध्वनि एक ख़ास ऊर्जा उत्पन्न करती है जो हमें सृष्टि के स्त्रोत तक ले जा सकती है। इसलिए शिव एक शक्तिशाली मन्त्र भी है।

10-शिवरात्रि पर्व भगवान् शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वे हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादि विकारों से मुक्त करके परम सुख, शान्ति ऐश्वर्यादि प्रदान करते हैं।

समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है। इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग रहता है, अत: शिवरा‍त्रि को लोग जागरण कर व्रत रखते हैं।

11-शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है।भोलेनाथ संहार के अधिष्ठाता होने के बावजूद कल्याण कारक कहलाते हैं।यह सभी जानते हैं कि भगवान शिव संहार शक्ति और तमोगुण के स्वामी है। इसीलिए रात्रि से उनका विशेष लगाव स्वाभाविक है। रात्रि को संहार काल माना जाता है।रात्रि के आते ही सबसे पहले प्रकाश पर अंधकार का साम्राज्य कायम हो जाता है। इसकी वजह यह है कि विनाश में भी सृजन के बीज छुपे रहते हैं। जब तक किसी वस्तु का विनाश नहीं होता है तब तक दूसरी वस्तु का सृजन नहीं होता है।

12-सभी जीव जंतुओं और प्राणियों की कर्म चेष्टाएँ खत्म हो जाती हैं और और निद्रा द्वारा चेतना का भी अंत होता है।पूरी दुनिया रात्रि के समय अचेतन होकर निद्रा में विलीन हो जाती

है।ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज होता है। इसी वजह से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना इस रात्रि में और हमेशा प्रदोष काल में की जाती है।

13-शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में आने का भी एक विशेष अर्थ है।शुक्ल पक्ष में चंद्रमा अपना पूर्ण रूप ले लेता है और कृष्ण पक्ष में धीरे-धीरे चंद्रमा की रोशनी कम होती जाती है।

जैसे जैसे चंद्रमा बढ़ता है, वैसे वैसे संसार के सभी रसवान पदार्थों में वृद्धि और घटने पर सभी पदार्थ क्षीण हो जाते हैं। चंद्रमा के क्षीण होने का असर प्राणियों पर भी पड़ता है।

जब चंद्रमा क्षीण होता है तो जीव जंतुओं के अंतः करण में तामसी शक्तियां प्रबल होने लगती हैं। जिसके कारण उनके अंदर तरह-तरह की अनैतिक और आपराधिक गतिविधियां जन्म लेती हैं।

14- भूत प्रेत भी इन्हीं शक्तियों में से एक है, और शिव को भूत प्रेत का स्वामी माना जाता है। दिन में जब प्रकाश रहता है तब जगत आत्मा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं, पर रात्रि के अंधकार में यही शक्तियां बलवान हो जाती हैं। इन्हीं शक्तियों का

नाश करने और इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए शिव को रात्रि प्रिय माना गया है।जिस प्रकार पानी की गति को रोकने के लिए पुल बनाया जाता है, उसी प्रकार चंद्रमा के क्षीण होने की तिथि आने से पहले उन सभी तामसी शक्तियों का नाश करने के लिए शास्त्रों में शिवरात्रि की आराधना करने का विधान बनाया है।

शिव और महाशिवरात्रि

1-शिव शब्द का मतलब है ‘वह जो नहीं है’। सृष्टि वह है – “जो है”। सृष्टि के परे, सृष्टि का स्रोत वह है – “जो नहीं है’। शब्द के अर्थ के अलावा, शब्द की शक्ति, ध्वनि की शक्ति बहुत अहम पहलू है। हम संयोगवश इन ध्वनियों तक नहीं पहुंचे हैं। यह कोई सांस्कृतिक घटना नहीं है, ध्वनि और आकार के बीच के संबंध को जानना एक अस्तित्व संबंधी प्रक्रिया है। हमने पाया कि ‘शि’ ध्वनि, निराकार या रूपरहित यानी जो नहीं है, के सबसे करीब है। शक्ति को संतुलित करने के लिए ‘व’ को जोड़ा गया।

2-अगर कोई सही तैयारी के साथ ‘शि’ शब्द का उच्चारण करता है, तो वह एक उच्चारण से ही अपने भीतर विस्फोट कर सकता है। इस विस्फोट में संतुलन लाने के लिए, इस विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए, इस विस्फोट में दक्षता के लिए ‘व’ है। ‘व’ वाम से निकलता है, जिसका मतलब है, किसी खास चीज में दक्षता हासिल करना।इसलिए सही समय पर

जरूरी तैयारी के साथ सही ढंग से इस मंत्र के उच्चारण से मानव शरीर के भीतर ऊर्जा का विस्फोट हो सकता है। ‘शि’ की शक्ति को बहुत से तरीकों से समझा गया है। यह शक्ति अस्तित्व की प्रकृति है।

3-शिव शब्द के पीछे एक पूरा विज्ञान है। यह वह ध्वनि है जो अस्तित्व के परे के आयाम से संबंधित है। उस तत्व – “जो नहीं है” – के सबसे नजदीक ‘शिव’ ध्वनि है। इसके उच्चारण से, वह सब जो आपके भीतर है – आपके कर्मों का ढांचा, मनोवैज्ञानिक ढांचा, भावनात्मक ढांचा, जीवन जीने से इकट्ठा की गई छापें – वह सारा ढेर जो आपने जीवन की प्रक्रिया से गुजरते हुए जमा किया है, उन सब को सिर्फ इस ध्वनि के उच्चारण से नष्ट किया जा सकता है और शून्य में बदला जा सकता है।

4-स्थायी शांति, जिसे हम शिव कहते हैं, में जब ऊर्जा का पहला स्पंदन हुआ, तो एक नया नृत्य शुरू हुआ। आज भी, वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हुआ है कि अगर खाली स्थान में या उसके आस-पास भी आप इलेक्ट्रोमैगनेटिक ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, तो सूक्ष्म आणविक कण प्रकट होते हैं और नृत्य करने लगते हैं। तो एक नया नृत्य शुरू हुआ, जिसे हम सृजन का नृत्य कहते हैं।सृजन के इस नृत्य को – जो खुद ही स्थायी शांति से उत्पन्न हुआ – कई अलग-अलग नाम दिए गए। सृष्टि के उल्लास को प्रस्तुत करने की कोशिश में हमने उसे कई अलग-अलग रूपों में नाम दिया।

5-‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है।

6-वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है।

7-सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।

8-प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है।

9-इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।

10-शिव शब्द या शिव ध्वनि में वह सब कुछ विसर्जित कर देने की क्षमता है, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं। वह सब कुछ जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, फिलहाल आप जिसे भी ‘मैं’ मानते हैं, वह मुख्य रूप से विचारों, भावनाओं, कल्पनाओं, मान्यताओं, पक्षपातों और जीवन के पूर्व अनुभवों का एक ढेर है। अगर आप वाकई अनुभव करना चाहते हैं, कि इस पल में क्या है, अगर आप वाकई अगले पल में एक नई हकीकत में कदम रखना चाहते हैं, तो यह तभी हो सकता है जब आप खुद को हर पुरानी चीज़ से आजाद कर दें। वरना आप पुरानी हकीकत को ही अगले पल में खींच लाएंगे।

11-रोज, हर पल, कई दशकों का भार घसीटने का बोझ, जीवन से सारा उल्लास खत्म कर देता है।ज्यादातर लोगों के लिए बचपन की

मुस्कुराहटें और हंसी, नाचना-गाना जीवन से गायब हो गया है और उनके चेहरे इस तरह गंभीर हो गए हैं मानो वे अभी-अभी कब्र से निकले हों। यह सिर्फ बीते हुए कल का बोझ आने वाले कल में ले जाने के कारण होता है। अगर आप एक बिल्कुल नए प्राणी के रूप में आने वाले कल में, अगले पल में कदम रखना चाहते हैं, तो शिव ही इसका उपाय है।

12-तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है।

13-एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं।उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं।महाशिवरात्रि को मानव शरीर में उर्जाएं कुदरती तौर पर ऊपर की ओर जाती हैं।इसलिए इस रात को हम सब जागें और अपनी रीढ़ सीधी रखें ताकि हम इस रात को मौजूद अद्भुत ऊर्जा के लिए उपलब्ध हो पाएं ।हम सभी इस रात को अपने लिए एक जागरण की रात बनाएं।

14-ब्रह्मा, विष्णु, शंकर (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति महेश्वर अंश से ही होती है। मूल रूप में शिव ही कर्ता, भर्ता तथा हर्ता हैं। सृष्टि का आदि कारण शिवहै।शिव ही ब्रह्म हैं। ब्रह्म की परिभाषा है – ये भूत जिससे पैदा होते हैं, जन्म पाकर जिसके कारण जीवित रहते हैं और नाश होते हुए जिसमें प्रविष्ट हो जाते हैं, वही ब्रह्म है। यह परिभाषा शिव की परिभाषा है। शिव आदि तत्त्व है, वह ब्रह्म है, वह अखण्ड, अभेद्य, अच्छेद्य, निराकार, निर्गुण तत्त्व है। वह अपरिभाषेय है, वह नेति-नेति है।

15-शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी , मंगलकारी और वह सदा आत्माओं का कल्याण करनेवाला है इसलिए वह सदाशिव है।शिवरात्रि हम सभी की शुभरात्रि है।हम शिवरात्रि के समय उपवास रखते है और जागरण भी करते है लेकिन क्या उपवास ,जागरण करना ही इस शुभरात्रि का उद्देश्यहै। अगर हम मान भी ले तो उस दिन वॉच मेन भी जागते है तो क्या उनका जागरण नहीं हुआ। वास्तव में, आत्म जागृति की बात है जागरण की बात नहीं है ।

क्या अर्थ है आत्म जागृति का ?-

1-मनुष्य चेतना के दो आया है: एक मूर्च्छा, एक अमूर्च्छा। मूर्च्छा का अर्थ है सोये-सोये जीना; बिना होश के जीना। अमूर्च्छा का अर्थ है, होशपूर्वक जीना; जाग्रत, विवेकपूर्ण। मूर्च्छा का अर्थ है, भीतर का दीया बुझा है।अमूर्च्छा का अर्थ है, भीतर का दीया जला है।मूर्च्छा में रोशनी बाहर होता है।बाहर की रोशनी से ही आदमी चलता है। जहां इंद्रियां ले जाती हैं, वहीं जाता है।क्योंकि अपने स्वरूप का तो कोई बोध नहीं। लोग जो समझा देते हैं, समाज जो बता देता है, वहीं आदमी चल पड़ता है क्योंकि न तो अपनी कोई जड़ें होती हैं अस्तित्व में, न अपना भान होता है। ‘मैं कौन हूं,’ इसका कोई पता ही नहीं।

2-अमूर्च्छित चित्त, जागा हुआ चित्त बिलकुल दूसरे ही ढंग से जीता है। उसके जीवन की व्यवस्था आमूल से भिन्न होती है। वह दूसरों के कारण नहीं चलता, वह अपने कारण चलता है। वह सुनता सबकी है। वह मानता भीतर की है। वह गुलाम नहीं होता। भीतर की मुक्ति को ही जीवन में उतारता है। कितनी ही अड़चन हो, लेकिन उस मार्ग पर ही यात्रा करता है जो पहुंचायेगा। और कितनी ही सुविधा हो, उस मार्ग पर नहीं जाता, जो कहीं नहीं पहुंचायेगा।

3-अमूर्च्छित व्यक्ति अपने भीतर अपने जीवन की विधि खोजता है। अपने होश में अपने आचरण को खोजता है। अपने अंतःकरण के प्रकाश से चलता है। कितना ही थोड़ा प्रकाश हो अंतःकरण का प्रकाश, सदा पर्याप्त है।छोटे से छोटा दीया भी इतना तो दिखा ही देता है, कि एक कदम साफ हो जाए। एक कदम चल लो, फिर और एक कदम दिखाई पड़ जाता है। कदम-कदम करके हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाती है।

4-जाग्रत स्‍वप्‍न और सुषुप्‍ति— इन तीनों अवस्थाओं को पृथक रूप से जानने से तुर्यावस्था का भी ज्ञान हो जाता है। तुर्या है -चौथी अवस्था। तुर्यावस्था का अर्थ है – परम ज्ञान।

तुर्यावस्था का अर्थ है कि किसी प्रकार का अंधकार भीतर न रह जाये, सभी ज्योतिर्मय हो उठे; जरा सा कोना भी अंतस का अंधकारपूर्ण न हो;सब ओर जागृति का प्रकाश फैल जाये।

अभी जहां हम हैं, वहां या तो हम जाग्रत होते हैं या हम स्‍वप्‍न में होते हैं या हम सुषुप्‍ति में होते हैं। चौथे का हमें कुछ भी पता नहीं है। जब हम जाग्रत होते हैं तो बाहर का जगत तो दिखाई पड़ता है, हम खुद अंधेरे में होते हैं; वस्तुएं तो दिखाई पड़ती हैं, लेकिन स्वयं का कोई बोध नहीं होता; संसार तो दिखाई पड़ता है, लेकिन आत्मा की कोई प्रतीति नहीं होती। यह आधी जाग्रत अवस्था है।

5- सुबह नींद से उठकर…जिसको हम जागरण कहते हैं ; वह अधूरा जागरण है। और अधूरा भी कीमती नहीं है; क्योंकि व्यर्थ तो दिखाई पड़ता है और सार्थक दिखाई नहीं पड़ता। कूड़ा -करकट तो दिखाई पड़ता है, हीरे अंधेरे में खो जाते हैं। खुद तो हम दिखाई नहीं पड़ते कि कौन हैं और सारा संसार दिखाई पड़ता है।दूसरी अवस्था है स्‍वप्‍न की। हम तो दिखाई पड़ते

ही नहीं स्‍वप्‍न में, बाहर का संसार भी खो जाता है। सिर्फ, संसार से बने हुए प्रतिबिंब मन में तैरते हैं। उन्हीं प्रतिबिंबों को हम जानते और देखते है – जैसे कोई दर्पण में देखता हो.. चांद को या झील पर कोई देखता हो ..आकाश के तारों को। सुबह जागकर हम वस्तुओं को सीधा देखते हैं; स्‍वप्‍न में हम वस्तुओं का प्रतिबिंब देखते हैं, वस्तुएं भी नहीं दिखाई पड़ती।

6-और तीसरी अवस्था है -जिससे हम परिचित है -बाहर का जगत भी खो जाता है; वस्तुओं का जगत भी अंधेरे में हो जाता है; और प्रतिबिंब भी नहीं दिखाई पड़ते; स्‍वप्‍न भी तिरोहित हो जाता है; तब हम गहन अंधकार में पड़ जाते हैं …उसी को हम सुषुप्ति कहते हैं। सुषुप्ति में न तो बाहर का ज्ञान रहता है,न भीतर का। जाग्रत में बाहर का ज्ञान रहता है। और जाग्रत और सुषुप्ति के बीच की एक मध्य कड़ी है: स्‍वप्‍न, जहां बाहर का ज्ञान तो नहीं होता, लेकिन बाहर की वस्तुओं से बने हुए प्रतिबिंब हमारे मस्तिष्क में तैरते है और उन्हीं का ज्ञान होता है।

7-चौथी तुर्या अवस्था है:वही सिद्धावस्था है। सारी चेष्टा उसी को पाने के लिए है। सब ध्यान, सब योग तुर्यावस्था को पाने के उपाय हैं। तुर्यावस्था का अर्थ है: भीतर और बाहर दोनों का ज्ञान; अंधेरा कहीं भी नहीं— न तो बाहर और न भीतर, पूर्ण जागृति;जिसको हमने बुद्धत्व कहा है, जिसमें न तो बाहर अंधकार है, न भीतर, सब तरफ प्रकाश हो गया है; जिसमें वस्तुओं को भी हम जानते हैं, स्वयं को भी हम जानते है। ऐसी जो चौथी अवस्था है, वह कैसे पाई जाए ..इसके ही सब सूत्र हैं।

(साभार – वैदिक ऋषिकाएं फेसबुक पेज से)