Monday, July 21, 2025
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कामधेनु ने सोशल मीडिया पर शुरू किया नया प्रचार अभियान

बाहरी दीवारों को खराब मौसम से बचाने की पहल

कोलकाता । कामधेनु पेंट्स ने 9 जून से 12 जून 2022 तक कंपनी के सोशल मीडिया चैनलों पर एक विशेष अभियान शुरू किया। अभियान का प्राथमिक उद्देश्य चरम मौसम की स्थिति के हानिकारक प्रभावों से बाहरी इमारतों के रखरखाव और सुरक्षा के बारे में जागरूकता प्रदान करना होगा।
कामधेनु पेंट्स के निदेशक सौरभ अग्रवाल ने कहा, “गर्मी के बढ़ते तापमान और आसन्न मानसून भवन और अन्य संरचनाओं पर उनके नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उपयुक्त उपायों की मांग करता है। अंदर रहने वालों की रक्षा करते हुए बाहरी दीवारें लगातार तत्वों के संपर्क में आती हैं। सूरज और बारिश के संपर्क में आने से यूवी डिग्रेडेशन, रंग फीका पड़ना, दाग, नमी, शैवाल की वृद्धि और ऐसे ही अन्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं। उच्च गुणवत्ता और विशिष्ट एक्सटीरियर इमल्शन पेंट का उपयोग बाहरी को इन सभी मुद्दों से बचाने में मदद कर सकता है और दीवारों को हमेशा के लिए नया बनाए रखने में मदद कर सकता है।”
कामधेनु पेंट्स भारत में उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर सामान्य प्रयोजन के सजावटी पेंट के साथ-साथ विशेषज्ञ विश्व स्तरीय उत्पादों का उत्पादन और बिक्री करता है। विशेष रूप से विकसित एक्सटीरियर इमल्शन उत्पाद जैसे ‘वेदर सुप्रीम’ और ‘वेदर क्लासिक मैक्स’ वैश्विक उत्पादों में सर्वश्रेष्ठ हैं और अत्यधिक नमी और गर्मी से अद्वितीय सुरक्षा प्रदान करते हैं, भारी वर्षा के दुष्प्रभावों से लड़ते हैं, शैवाल के विकास को रोकते हैं। और दीवारों पर कवक, क्षारीय और यूवी गिरावट, और भी बहुत कुछ जबकि आपकी दीवारों के समृद्ध रूप की रक्षा भी करता है।

एचआईटीके के पूर्व छात्र अग्नीश द्वारा सम्पादित शॉर्ट फिल्म पुरस्कृत

किशोरों पर कोरोना के प्रभाव को दर्शाती है फिल्म
दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल के स्कूल सेक्शन वर्ग में पुरस्कृत
कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कोलकाता से सिविल इंजीनियरिंग के 2020 बैच के छात्र की शॉर्ट फिल्म पुरस्कृत हुई है। संस्थान के बी.टेक स्नातक अग्निश चटर्जी द्वारा संपादित 22 मिनट की फिल्म को 12वें दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल 2022 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म (स्कूल सेक्शन) घोषित किया गया। पुरस्कार समारोह गत 30 अप्रैल को नोएडा, दिल्ली एनसीआर में हुआ। फिल्म का निर्देशन गोखले मेमोरियल गर्ल्स स्कूल, कोलकाता की बारहवीं कक्षा की ह्यूमैनिटीज की छात्रा युबासन कपस ने किया था।
‘एईटुकू’ की प्रमुख भूमिकाएं प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकाता की अंग्रेजी द्वितीय वर्ष की छात्रा नीलांजना घोष और महादेवी बिड़ला विश्व अकादमी, कोलकाता की बारहवीं कक्षा की ह्यूमैनिटीज की छात्रा ऐश्वर्या महलानोबिस ने निभाई हैं। संगीत गोखले मेमोरियल गर्ल्स स्कूल की ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा श्रीपूर्णा मजूमदार, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के द्वितीय वर्ष के छात्र शुभायन दे; अभिनव भारती हाई स्कूल के बारहवीं कक्षा के ह्यूमैनिटीज छात्र सोहम समद्दर; और युबासन द्वारा तैयार किया गया था।
लघु फिल्म मानसिक असंतुलन से निपटने का समाधान खुद से प्रेम करने में खोजती है। यह हमें परिवर्तनों और कमजोरियों को स्वीकार करने की सीख देती है। फिल्म का प्रमुख पक्ष यह है कि यह दिखाता है कि लॉकडाउन के दौरान किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर कैसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। फिल्म अकेलेपन जैसे विषयों पर भी जोर देती है और माता-पिता का संघर्ष बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सिविल इंजीनियरिंग स्नातक अग्निश चटर्जी ने कहा, “पूरे संपादन कार्य को कम समय में पूरा करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।”

सामाजिक संदेश के साथ फिल्म ‘जनहित में जारी’ सिनेमाघरों में

कोलकाता । भरपूर कॉमेडी और ड्रामा से भरी फिल्म ‘जनहित में जारी’ की शुक्रवार को धमाकेदार रिलीज हुई। रिलीज के मौके पर विनोद भानुशाली, राज शांडिल्य, विमल लाहोटी और विशाल गुरनानी ने कहा कि इस फिल्म में दर्शकों के लिए एक सामाजिक संदेश छिपी हुई है। जय बसंतू सिंह की विचारधारा और नुसरत भरुचा की फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ समाज में एक शिक्षा भी फैलायेगी। इस फिल्म में अनुद सिंह ढाका, परितोष त्रिपाठी, विजय राज, टीनू आनंद, बृजेंद्र कला समेत अन्य कलाकारों का अभिनय प्रशंसनीय हैं।

शुक्रवार को देश भर में प्रदर्शित जनहित में जारी फिल्म की समीक्षकों ने काफी सराहना की है। यह फिल्म में एक युवा लड़की की यात्रा पर आधारित है, जो सामाजिक प्रतिरोध के बावजूद, जीवन यापन के लिए कंडोम बेचती है, और अपने परिवार, ससुराल वालों और समाज को एक संदेश देने का फैसला करती है। ‘जनहित में जारी’ अपने दमदार प्रदर्शन, प्रफुल्लित करनेवाले डायलॉग और विचारोत्तेजक विषय के साथ दर्शकों के मन में जगह बना रही है। इस फिल्म में दिलचस्प बात यह है कि फिल्म में छिपे संदेश और वर्तमान समय में समाज को इन संदेश की सख्त जरूरत को देखते हुए, निर्माताओं ने इसके रिलीज के दिन ही इसके टिकटों पर कटौती करने की घोषणा की। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देख सके। इस फिल्म में छिपा मनोरंजन और कॉमेडी दर्शकों को हमेशा याद रहेगी। जय बसंतू सिंह द्वारा निर्देशित, ‘जनहित में जारी’ फिल्म, भानुशाली स्टूडियो लिमिटेड और श्री राघव एंटरटेनमेंट एलएलपी के सहयोग से बनी है। थिंकिंक पिक्चर्स लिमिटेड प्रोडक्शन के बैनर तले यह जी स्टूडियोज द्वारा रिलीज की गयी है, रिलीज के पहले दिन ही दर्शकों ने इसे बेहद पसंद किया।

पर्यावरण के प्रति दायित्व समझता है उद्योग जगत – सीएस ममता बिन्नानी

कोलकाता । विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम के पश्चिम बंगाल चैप्टर की अध्यक्ष (एचसी) सीएस ममता बिनानी ने पर्यावरण के महत्व को रेखांकित कियाआअध्यक्ष रह चुकी बिन्नानी ने कहा कि आज हर उद्योग एवं कार्यक्षेत्र समाज के प्रति अपने दायित्व को समझ रहा है और सभी हित धारकों के साथ स्थायी विकास पर जोर दे रहा है।
धन सृजन का प्राथमिक लक्ष्य और यही वजह है कि कंपनियों ने अपनी संपत्ति का खुलासा करते हुए स्थिरता रिपोर्ट तैयार करनी शुरू कर दी है। पर्यावरण, सामाजिक और शासन मानकों पर प्रदर्शन पर बात की जारी है और स्थिति स्पष्ट की जा रही है।
गौरतलब है कि सीएस ममता बिन्नानी बहुत सारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए भी काम कर रही हैं और प्लास्टिक के न्यूनतम उपयोग के अभियान का समर्थन करती हैं। वह सैन फ्रांसिस्को में आयोजित इंटरनेशनल कॉरपोरेट गवर्नेंस नेटवर्क (आईसीजीएन) वार्षिक सम्मेलन 2016 का हिस्सा थीं।

पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को बढ़ाता है केके का अंतिम गीत

शेरदिल के गीत गुलजार के बोल बयां करते हैं जंगलों का दर्द
मुम्बई/ कोलकाता। प्रख्यात गायक केके की आवाज का जादू सदाबहार है और शेरदिल के लिए रिकॉर्ड किया गया अंतिम गीत एक बार बांधने लगा है। गुलजार के गीत पर केके की मखमली आवाज और उस पर पंकज त्रिपाठी का जबरदस्त अभिनय सोने पर सुहागा है। धूप – पानी बहने दे गीत को हाल ही में निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी ने जारी में जारी किया। इस गीत को काफी पसन्द भी किया जा रहा है। संगीत शांतनु मोएत्रा का है। कृष्णकुमार कुन्नाथ, जिन्हें केके के नाम से जाना जाता है, हमारे समय के सबसे प्रतिभाशाली पार्श्व गायकों में से एक थे। अपने 26 वर्षों के शानदार काम के दौरान, उन्हें जनता का खूब प्रेम मिला। धूप पानी बहने दे को अगर पर्यावरण संरक्षण का थीम गीत कहा जाए तो यह अतिशियोक्ति नहीं होगी। इस गीत में जंगलों, नदियों और वन्य जीवन के सिमटते जाने की ऐसी कसक है जिसे सुनकर एक क्षण के लिए हम सोचने लगते हैं कि हम कहाँ जा रहे हैां
एक साथ रिकॉर्ड किया गया आखिरी गाना होने के नाते, गुलज़ार साहब ने कहा “श्रीजीत ने शेरदिल में मुझ पर एक एहसान किया है। इतनी खूबसूरत फिल्म के लिए न सिर्फ मुझे लिखने को मिला, बल्कि केके से सदियों बाद मिलने का मौका मिला। केके ने सबसे पहले माचिस में मेरा एक गाना गाया था, “छोड़ आए हम वो गलियां…”। जब वह शेरदिल के लिए गीत गाने आए, तो मेरा दिल खुशी से भर गया लेकिन यह शर्म की बात है कि इसे उनके अंतिम गीतों में से एक के रूप में जाना पड़ा। मानो वह अलविदा कहने आया हो। शेरदिल में गीत पर्यावरण पर है। फिल्म में जिस तरह से इसका इस्तेमाल किया गया है, वह आपके जंगलों, नदियों, जानवरों और पक्षियों को बचाने का आह्वान है। इतने महत्वपूर्ण संदेश को अपनी आवाज देने के बाद उन्हें थोड़ी देर और रुकना चाहिए था। अफ़सोस यह हमारे हाथ में नहीं था। मैं उसके लिए प्रार्थना करूंगा और उसे याद करूंगा। शेरदिल जहां भी जाएंगे, उनकी याद हमारे साथ रहेगी।’

शांतनु मोइत्रा कहते हैं, “केके ने इस गाने को ऐसे गाया जैसे यह उनका अपना हो। उन्होंने मुझे बताया कि इस गाने ने गुलजार साहब को दो दशक बाद उन्हें वापस दिया है। वह इस बात से भी उत्साहित थे कि वह इस गीत को लाइव कॉन्सर्ट में गाएंगे क्योंकि यह संरक्षण की बात करता है और युवाओं को इसे सुनने की जरूरत है। ”
निर्देशक, श्रीजीत मुखर्जी कहते हैं, “हम गुलज़ार साहब की कविता पर बड़े हुए हैं। हम दिल की हर बात में केके की आवाज से दोस्ती करते हुए बड़े हुए हैं। इसलिए यह मेरे लिए दोहरे सपने के सच होने जैसा है।” सच्ची घटनाओं से प्रेरित होकर, श्रीजीत मुखर्जी ने शहरीकरण के प्रतिकूल प्रभावों, मानव-पशु संघर्ष और गरीबी के बारे में एक अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानी सामने रखी है, जो एक जंगल के किनारे बसे एक गाँव में एक विचित्र प्रथा की ओर ले जाती है। फिल्म 24 जून को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। शेरदिल: द पीलीभीत सागा’ गुलशन कुमार, टी-सीरीज़ फिल्म और रिलायंस एंटरटेनमेंट द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो भूषण कुमार और रिलायंस एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित और मैच कट प्रोडक्शंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित है। फिल्म में पंकज त्रिपाठी, नीरज काबी और सयानी गुप्ता हैं और इसका निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है।

बदलते समय की माँग है मोबाइल पत्रकारिता

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
समय के साथ पत्रकारिता बदली है और बदला है काम करने का तरीका भी। एक समय था जब पत्रकारिता का मतलब कागज और कलम था, फिर माइक आया और अब आया है मोबाइल। अगर वीडियो पत्रकारिता की बात की जाए तो बड़े – बड़े कैमरे और माइक के बगैर पत्रकार काम करने के बारे में सोच नहीं पाते थे और अकेले काम कर पाना, यह तो बहुत कठिन था। पत्रकार और कैमरापर्सन के बीच तालमेल का अभाव कई बार काम करने का मजा खत्म कर देता था मगर अब मोबाइल का समय है। इस छोटे से उपकरण ने जहाँ सब कुछ बदला है, वहीं बदल दी है पत्रकारों की दुनिया। आज सोशल मीडिया को मजबूती देने में इस छोटे से उपकरण का बहुत बड़ा योगदान है, वहीं इसने एक साधारण से व्यक्ति में भी खबरों की दुनिया से जोड़ने की लालसा उत्पन्न कर दी है और इस इच्छा को पूरा करने में सहायक भी बना है।
यही कारण है कि मोबाइल पत्रकारिता की माँग तेजी से बढ़ रही है। यह सही है कि मोबाइल लेकर चलने वाले पत्रकारों को अब भी खारिज किया जाता है मगर अब यह विरोध खत्म भी हो रहा है क्योंकि मोबाइल, खबरों की समझ, कुछ अच्छा करने की ललक और मीडिया मिल जाएं तो एक स्वस्थ और सक्रिय पत्रकारिता की मुहिम तेजी से आगे बढ़ सकती है। इस जरूरत को समझते हुए हाल ही में कोलकाता प्रेस क्लब ने आयोजित मोबाइल पत्रकारिता कार्यशाला मोजो। पत्रकारों की दक्षता बढ़ाने के लिए आयोजित इस पत्रकारिता में हमें भी भाग लेने का अवसर मिला और तब लगा कि जो कुछ सीखा, उसे साझा भी किया जाए जिससे इसके बारे में जानकारी और विस्तृत हो और लोगों को लाभ मिले। बांग्लादेश के चटग्राम विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर राजीव नन्दी ने इस कार्यशाला में प्रशिक्षण दिया। इस कार्यशाला के आयोजन में प्रेस क्लब के अध्यक्ष स्नेहाशीष सूर के साथ, सचिव किंशुक प्रामाणिक और वरिष्ठ पदाधिकारी निताई मालाकार का विशेष योगदान रहा।
मोबाइल का अर्थ यहाँ क्या है
मोजो नामक इस मोबाइल पत्रकारिता कार्यशाला में बहुत कुछ नया सीखने को मिला। तो जो जानते हैं मोबाइल पत्रकारिता के बारे में। सबसे पहले तो यह समझना होगा कि यहाँ मोबाइल का मतलब सिर्फ उपकरण भर नहीं बल्कि चलायमान अर्थात चलने – फिरने या चल या मूवेबल प्रवृति से है। मोबाइल भी हमारे साथ भ्रमण ही करता है और इसके जरिए हम कहीं भी, कभी भी बगैर विशेष तैयारी के कुछ बुनियादी उपकरणों की मदद से ही अपना काम शुरू कर सकते हैं। अगर आपके पास, पेन, नोटपैड और मोबाइल है तो यह काम आपके लिए आसान है।
तो हमें क्या चाहिए इसके लिए
सबसे पहले तो आपके पास एक अच्छा मोबाइल होना चाहिए क्योंकि मोबाइल पत्रकारिता की यह संरचनागत आवश्यकता है। एक्शन प्रो कैमरा, गिम्बल, कॉलर माइक, टाई पॉड (अगर लम्बे समय तक कार्यक्रम कवर करना है), ,सेल्फी स्टिक, गोरिल्ला पॉड, मोनोपॉड, ग्रिप, अच्छा हेडफोन, (आजकल गले में जो लटकाने वाले हेडफोन हैं, वह बेहतर हैं), स्टोरेज के लिए मेमोरी कार्ड, मोबाइल माउंट, पावर बैंक, प्रकाश के लिए लाइट। इसे हम जरूरत के अनुसार ही उपयोग करेंगे। खबर शूट करने से पहले अपने फोन का स्टोरेज खाली करना न भूलें। अगर देखा जाए तो कॉलर माइक, पावर बैंक, छोटा टाइपॉड और गिम्बल भी मोबाइल पत्रकारिता की जरूरतें पूरी कर सकता है। यह आपको ऑनलाइन भी मिल सकता है और बाजारों में भी जहाँ छूट के साथ ये उपलब्ध हैं मगर हम आपको कहेंगे कि जो भी खरीदें, गुणवत्ता का ध्यान जरूर रखें।
सामान तो हो गया, अब
सुविधाओं और उपकरणों से तस्वीरें खींची जा सकती हैं मगर आप जब खबरों की दुनिया और खबरों के व्यवसाय में हैं तो मुद्दे की बात यह है कि आपके पास सोच और शोध दोनों होने चाहिए। आप जिस विषय को उठा रहे हैं, उसकी समझ भी होनी चाहिए। विषय का इतिहास और उसकी समसामायिक जानकारी का होना जरूरी है। पत्रकार हैं तो हर हाल में अपने पेशे के प्रति गम्भीर रहिए, आत्मविश्वास हो मगर अहंकार नहीं, अपनी बात को कहने और समझाने का तरीका होना जरूरी है। आँकड़ों की बात कर रहे हैं तो सम्भव हो तो उसे सत्यापित करें यानी सत्यता जाँच लें या फिर सम्भावित या स्त्रोत का नाम बताते हुए अपनी बात कहें।


फुटेज और शॉर्ट्स कितने लें
एक फिल्म भी बनती है तो उसके लिए लम्बे और लम्बी अवधि के शॉर्टस लिए जाते हैं मगर होती वह 3 घंटे की ही है। इसी तरह मोबाइल पत्रकारिता के समय भी आपके पास हर एंगल के फुटेज होने चाहिए..लम्बे और छोटे शॉर्ट्स, कट शॉर्ट्स, स्टोरी के अनुसार फुटेज लें। क्लोजअप शॉर्ट्स लें। वीडियो की अवधि बहुत बड़ी न हो। खबर के लिए 3 से 4 स्टोरी के लिए 5 से 10 या उससे अधिक हो सकता है और यह स्टोरी पर निर्भर करता है। फेसबुक या इन्स्टाग्राम पर 4 मिनट की स्टोरी सही रहती है। जूम की जगह ऑप्टिकल जूम का उपयोग करें। फोकस को लॉक करें जिससे काम करते हुए लैंडस्केप कहीं पोट्रेट में न बदल जाये। मोबाइल को साइलेंट या एरोप्लेन या डू नॉट डिस्टर्ब मोड पर रखना सही होगा। मोड कोई भी एक ही रखें, लैंडस्केप हो तो लैंडस्केप हों, पोट्रेट हो तो पोट्रेट ही रखें।
यह ऐप आपकी सहायता के लिए
वीडियो एडिटिंग – क्विक, काइनमास्टर, एक्शन डायरेक्टर, पावर डायरेक्टर, एडोब प्रीमियर,
फोटोग्राफी ऐप – स्नैप सीड, पिक्सेल साउंड ऐप,
ध्वनि सम्पादन ऐप – रिक फोज 2, वॉयस रिकार्डर प्रो
भेजें
व्हाट्सऐप, फेसबुक, इन्स्टाग्राम,
सहेजें
मेमोरी कार्ड, ड्रॉप बॉक्स,
करना यह है कि लगातार अभ्यास करते रहें। अभ्यास जितना बेहतर होगा, आपके वीडियो भी उतने ही बेहतर होंगे। सम्पादन बहुत अनिवार्य प्रक्रिया है। वीडियो बनाते समय नैतिकता, ईमानदारी, उद्देश्य, प्रभाव इन सबका बहुत ध्यान रखना जरूरी है क्योंकि यही आपको पेशेवर भी बनाएगा और पत्रकार भी।
शीषर्क
शीर्षक छोटा और आकर्षक होना चाहिए।
हैशटेग में प्रासंगिक शब्दों का उपयोग करें।

आज मोबाइल पत्रकारिता का सही उपयोग आपको लोकप्रिय बनाने के साथ ही आर्थिक रूप से सक्षम बना सकता है। सोशल मीडिया माध्यमों पर मॉनेटाइज होने के बाद आपको भुगतान मिलता है, जरूरत सही दिशा में और सही तरीके से अभ्यास के साथ प्रयास करने की है।

 

भारत को 2030 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में 1.3 अरब वर्ग फुट अतिरिक्त जगह की जरूरत: सीबीआरई

नयी दिल्ली । भारत को आबादी के हिसाब से अस्पताल में बिस्तरों (बेड) के वैश्विक औसत तक पहुंचने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में 2030 तक 1.3 अरब वर्ग फुट अतिरिक्त जगह की जरूरत होगी। रियल एस्टेट कंपनी सीबीआरई ने एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है।

सीबीआरई की रिपोर्ट ‘द इवॉल्विंग इंडियन हेल्थकेयर इकोसिस्टम: व्हाट इट मीन्स फॉर द रियल एस्टेट सेक्टर’ में कहा कि 2019 में भारत में उपलब्ध बिस्तरों की कुल संख्या 19 लाख थी। जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 90 करोड़ वर्ग फुट था। सलाहकार कंपनी ने अनुमान जताया है कि अस्पतालों में बिस्तरों की वैश्विक औसत संख्या तक पहुंचने के लिए भारत को 2030 तक 29 लाख बिस्तरों की जरुरत होगी। रिपोर्ट के अनुसार, आबादी के मुकाबले बिस्तरों की वैश्विक औसत संख्या तक पहुंचने के लिए भारत को 2030 तक अतिरिक्त 1.3 अरब वर्ग फुट क्षेत्र की जरूरत होगी।

सीबीआरई दक्षिण एशिया ने एक बयान में कहा, ‘‘पूरे विश्व में भारत आबादी के हिसाब से सबसे कम अस्पताल बिस्तरों वाले देशों में से एक है। ’’ रिपोर्ट में में यह भी पाया गया कि भारत के दूसरे और तीसरे श्रेणी के शहरों में अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। सीबीआरई के चेयरमैन एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) (भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका) अंशुमान मैग्जीन ने कहा, ‘‘भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र बढ़ती आमदनी, स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता, स्वास्थ्य बीमा तक बेहतर पहुंच और स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का खर्च बढ़ने की वजह से तेजी से आगे बढ़ रहा है।’’

 

प्रख्यात संतूर वादक भजन सोपोरी का निधन

नयी दिल्ली । ‘संतूर के संत’ नाम से प्रसिद्ध भजन सोपोरी का बृहस्पतिवार को कैंसर की बीमारी के कारण हरियाणा में गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 73 साल के थे। सोपोरी के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे सौरभ तथा अभय हैं। दोनों पुत्र भी संतूर वादक हैं। अभय ने कहा, “उन्हें पिछले साल जून में बड़ी आंत का कैंसर होने का पता चला था। हमने उन्हें तीन हफ्ते पहले इम्यूनोथेरेपी उपचार के लिए गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया था। यह कारगर नहीं रहा और उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया।’उन्होंने कहा, “ जब भी मैं प्रस्तुति देता था, पापा मेरे साथ रहते थे। मुझे नहीं पता कि उनके बिना मेरा जीवन कैसा होगा।”
सोपोरी के निधन से कुछ हफ्ते पहले 10 मई को महान संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा का निधन हो गया था। वह भी कश्मीर से ताल्लुक रखते थे और इस वाद्य यंत्र को शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। शनिवार को ही पार्श्व गायक केके का कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। सोपोरी को उनके कॅरियर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया। इनमें 2004 में पद्म श्री, 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और जम्मू कश्मीर स्टेट लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल हैं।
संगीतकार उत्तरी कश्मीर के सोपोर जिले के रहने वाले थे और ‘सूफियाना घराने’ से आते थे। दस साल की उम्र में अपनी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति देने वाले सोपोरी को संतूर वादन की बारीकियां शुरुआत में उनके दादा पंडित संसार चंद सोपोरी और बाद में उनके पिता पंडित शंभू नाथ सोपोरी ने सिखाई थी। सोपोरी के पास दो मास्टर डिग्रियां थीं। एक भारतीय शास्त्रीय संगीत में जो सितार और संतूर दोनों में विशेषज्ञता है। बहुमुखी कलाकार के पास अंग्रेजी साहित्य में भी मास्टर डिग्री थी और उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में पश्चिमी शास्त्रीय संगीत गुर सीखे थे।

सोपोरी ने हिन्दी, कश्मीरी, डोगरी, सिंधी, उर्दू और भोजपुरी के साथ-साथ फारसी और अरबी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाओं में 6,000 से अधिक गीतों के लिए संगीत तैयार किया। अपने करियर के दौरान, उन्होंने गालिब, दाग, मोमिन, बहादुर शाह ज़फर, इकबाल, फैज़ अहमद फैज़ और फिराक गोरखपुरी जैसे महान शायरों की ‘गज़लों’ के लिए भी संगीत तैयार किया। उन्होंने कबीर और मीरा बाई की रचनाओं को भी धुन दी। वर्ष 2011 में भारतीय डाक विभाग ने कला और संस्कृति के क्षेत्र में सोपोरी के असाधारण कार्य को सम्मान देने के लिए पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया।

यूपीएससी परीक्षा में अव्वल श्रुति शर्मा ने अपनी नानी का सपना पूरा किया

नयी दिल्ली । संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में शीर्ष स्थान पाकर श्रुति ने बड़ी सफलता प्राप्त की है। अपने दूसरे प्रयास में श्रुति शर्मा के यूपीएससी परीक्षा में अव्वल आने के बाद उनके जीवन से जुड़ी तमाम बातें लोग जानने को उत्सुक हो उठे और अब सभी को यह पता है कि उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक करने के बाद दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर किया है। उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की रेजिडेंशियल कोचिंग एकेडमी से यूपीएससी की तैयारी की।

लेकिन उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे रोचक पहलू भी हैं जो अभी कम ज्ञात हैं। दरअसल उनकी नानी ने यूपीएससी परीक्षा पास करने का सपना अपनी बेटी यानी श्रुति की मां रचना को लेकर देखा था। लेकिन उनके रिहायशी ग्रामीण इलाके से कोचिंग सेंटर बहुत अधिक दूर होने के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। अब श्रुति शर्मा के परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त करने के बाद सबसे ज्यादा खुशी उनकी नानी को हुई है।

इंजीनियरों और डॉक्टरों के परिवार में जन्मीं श्रुति के पेशे से आर्किटेक्ट पिता सुनील दत्त शर्मा दिल्ली में एक कंस्ट्रक्शन कंसलटेंट फर्म चलाते हैं और इस समय वह उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में स्थित अपने पैतृक गांव बस्ता में बाल ज्ञान निकेतन स्कूल का प्रबंधन भी संभाल रहे हैं। उनकी मां रचना शर्मा स्कूल अध्यापिका रह चुकी हैं। हालांकि उन्होंने भी इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की है।

उनके छोटे भाई क्रिकेट खिलाड़ी हैं और रणजी ट्रॉफी में खेल चुके हैं। अपने परिवार में श्रुति शर्मा पहली लड़की हैं जिन्होंने मानविकी शाखा में इतिहास का अध्ययन किया। उनके परदादा दयास्वरूप शर्मा और उनके दादा देवेन्द्र दत्त शर्मा अपने क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर रहे थे। उनके चाचा यज्ञ दत्त शर्मा और उनकी चचेरी बहन भी डॉक्टर हैं।

नई संस्कृतियों, नई भाषाओं को सीखने समझने में गहन दिलचस्पी रखने वाली, बिजनौर के धामपुर कस्बे में पैदा हुईं श्रुति शर्मा स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के मामले में हमेशा सबसे आगे रहती थीं। उन्हें विश्व सिनेमा बहुत भाता है और इस कड़ी में वह ईरानी और हांगकांग सिनेमा को विशेष रूप से पसंद करती हैं।

अपने गृह प्रदेश, उत्तर प्रदेश कैडर में जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में काम करने की इच्छुक श्रुति को पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण अपने सपने को पूरा करने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन वह कहती हैं कि हर लड़की सिविल सेवा परीक्षा पास कर सकती है, बस उसे केवल परिवार के समर्थन और अवसर की जरूरत है।

इस साल कुल 685 उम्मीदवारों ने यूपीएससी, सीएसई परीक्षा पास की है जिसमें से 508 पुरुष और 177 महिलाएं हैं। इस बार सबसे रोचक बात यह रही कि शीर्ष तीनों स्थान महिला उम्मीदवारों ने हासिल किए जिनमें दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: अंकिता अग्रवाल तथा गामिनी सिंगला ने बाजी मारी।

आधार कार्ड आईआरसीटीसी आईडी से लिंक है तो एक महीने में 24 टिकट कर सकेंगे बुक

12 टिकट बुक होते थे पहले
नयी दिल्ली । अभी तक इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) एक आईडी पर सिर्फ 6 टिकट और आधार लिंक होने पर 12 टिक बुक करने की अनुमति देता था। लेकिन अब अगर आपका आधार कार्ड आपकी यूजर आईडी से लिंक है तो आप एक महीने में डबल यानी 24 टिकट बुक कर सकते हैं।
रेल मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि यात्रियों की सुविधा के लिए भारतीय रेलवे ने एक यूजर की आईडी पर एक महीने में अधिकतम 6 टिकट बुक करने की सीमा बढ़ाकर 12 टिकट करने का निर्णय लिया है। यानी अगर आपका आधार कार्ड आपकी आईडी से लिंक नहीं है तो आप 6 की जगह 12 टिकट बुक कर सकते हैं। इसके अलावा जो आईडी आधार से लिंक हैं वो एक महीने में 12 की जगह 24 टिकट बुक कर सकते हैं।