कोलकाता । प्रसिद्ध नाट्यकला केंद्र नृत्यक्षेत्र द्वारा गत सोलह जून को ज्ञान मंच सभागार में अपने शिष्यों और वरिष्ठ महान शिष्य कलाकारों के साथ नृत्य का आयोजन किया गया। प्रमुख रूप से ‘नाट्य दर्शन’ और ‘कृष्णप्रिया’ की प्रस्तुति की गई जो विलक्षण नृत्य प्रतिभा को व्यक्त करती है । इस पूरे प्रोडक्शन का श्रेय आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी को जाता है जो प्रसिद्ध कोरियोग्राफर हैं।
आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी भरतनाट्यम के गुरु पद्मश्री चित्रा विश्वेश्वरन और डॉ पद्मा सुब्रमण्यम की शिष्या हैं। नृत्य में भरतनाट्यम, ओडिसी और कत्थक तीनों शास्त्रीय नृत्यों का प्रयोग रहा । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के विद्यार्थियों को नृत्य की शिक्षा दे रही नृत्यांगना संचयिता मुंशी साहा ने इस नृत्यकला का परिचय दिया उनकी गुरु प्रसिद्ध कोरियोग्राफर अनुसुइया घोष बनर्जी हैं जिनके निर्देशन में इस नृत्य की कोरियोग्राफी की गई। चेन्नई के गुरुकुल से जुड़ी नृत्य गुरु अनुसुइया दिल्ली, गाजियाबाद में खेतान पब्लिक स्कूल में परफार्मिंग आर्ट की कल्चरल हेड हैं और उन्हें आर्ट इनटिग्रिशन और सी लर्निंग से जुड़े कार्यक्रम में महारत हासिल है।
नृत्यांगना अनुसुया घोष बनर्जी ने नृत्य के माध्यम से नाट्यदर्शन में नाट्यकला के माध्यम से जीवन के विभिन्न रूपों को अभिव्यक्ति प्रदान की। नृत्य किस प्रकार हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा से जुड़ा हुआ है, बताया। दर्शन और अध्यात्म के भावों को नृत्य के द्वारा नृत्यक्षेत्र की बीस से अधिक नृत्यांगनाओं द्वारा बेहतरीन प्रस्तुति दी गई ।भारतीय नृत्य जीवन दर्शन और उत्सव का प्रतीकात्मक रूप है। नाटक ब्रह्म से साक्षात्कार कराने का माध्यम तो है ही, साथ ही भारतीय मूल्यों, संस्कृति और संस्कार के निर्माण में सहायक है। युवाओं को अधिक से अधिक शास्त्रीय नृत्य की ओर आकर्षित करने के लिए नृतयक्षेत्र कला संगीत और नृत्य की शिक्षा देने के लिए कृतसंकल्प है।यह नृत्य प्रस्तुति सोलह जून को हुई है। इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
नृत्यक्षेत्र द्वारा नाट्यदर्शन और कृष्ण प्रिया की प्रस्तुति
चिड़िया से टकराकर हवा में बंद हुआ विमान का इंजन
कला संस्कृति अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपना स्थान बना रही है लघुकथा – सिद्धेश्वर
कोलकाता ! ” साहित्य में आज सर्वाधिक लिखी और पढ़ी जा रही विधा बन गई है लघुकथा l लघुकथा सहज रूप से पाठकों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही है l अपने देश में विकसित यह लघुकथा, आज अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपना स्थान बना रही है l हिंदी लघुकथाओं का देश विदेश में अनुवाद हो रहे हैं ! यहां तक कि लघुकथाओं पर अब लघु फिल्में भी बनाई जा रही है ! “
अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था ” रचनाकार ” के तत्वधान में ऑनलाइन आयोजित लघुकथा संगोष्ठी में पढ़ी गई लघुकथााओं पर, समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए, लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकार सिद्धेश्वर ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि लघुकथा का अंत, जिस्म में सुई चुभोने के जैसा होना चाहिए, और लेखक को अपनी लघुकथा के अंत में कोई टिप्पणी देने से बचना चाहिए, तभी लघुकथा अत्यंत प्रभावकारी होती है ! “
” रचनाकार ” संस्था के संस्थापक एवं संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश चौधरी दादा ने कहा कि – लघुकथा तभी अपने आप में सार्थक होती है, जब उसमें कसाव हो, और उसमें एक शब्द भी अनावश्यक उपयोग नहीं किया जाए ! सिद्धेश्वर जी की इस बात से मैं सहमत हूं कि आज अधिकांश लघुकथाएं ‘ कालदोष ‘ से ग्रसित है, इससे नए रचनाकारों को बचना चाहिए ! हमने इसी उद्देश्य से ” रचनाकार,” संस्था के माध्यम से हर महीने लघुकथा आलोचना संगोष्ठी की शुरुआत की है , ताकि युवा लघुकथाकारों को दिशा निर्देश मिलें, और एक साथ मिलकर हम लघुकथा को और बेहतर बना सकें, लघुकथा की समृद्धि में अपना योगदान दें सके !
लघुकथा लेखिका कोलकाता की लघुकथा लेखिका विद्या भंडारी के सशक्त संचालन में देश भर से चुने हुए सात लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया, और प्रत्येक लघुकथा पाठ के बाद, सिद्धेश्वर एवं सुरेश चौधरी दादा ने त्वरित समीक्षा प्रस्तुत किया l इस यादगार संगोष्ठी में बेंगलुरु की स्वीटी सिंघल ने ‘बोझ ‘, पीलीभीत के विजेंद्र जैमिनी ने ‘सवेरा’, कानपुर की अन्नपूर्णा बाजपेई ने ‘फैशन’, आसाम की कुमुद शर्मा ने ‘ शादी के बाद ‘, पटना के सिद्धेश्वर ने ‘ अंतर’, अहमदाबाद की डॉ ऋचा शर्मा ‘सिहरन ‘ और कोलकाता की विद्या भंडारी ने ‘एहसास ‘ लघुकथाओं का पाठ किया l निश्चित तौर पर , ऑनलाइन या ऑफलाइन, इस तरह का आयोजन, लघुकथाओं पर केंद्रित होनी ही चाहिए !
भवानीपुर कॉलेज और सुलेखा इंक फैक्ट्री ने प्रस्तुत किया स्वराज इंक
कोलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज और सुलेखा वर्क लिमिटेड, सुलेखा पार्क के संयुक्त तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जादवपुर कोलकाता में स्थित सुलेखा फैक्ट्री के प्रांगण में हुए इस कार्यक्रम में भवानीपुर कॉलेज के डीन प्रो दिलीप शाह, कोऑर्डिनेटर प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, छपते छपते हिंदी दैनिक कोलकाता के प्रधान संपादक और ताजा टीवी के डायरेक्टर विश्वंभर नेवर, आनंदबाजार पत्रिका के प्रधान संपादक सुपर्ण पाठक विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर सुलेखा स्याही के मालिक कौशिक मोइत्रा द्वारा नयी निर्मित स्वराज इंक प्रस्तुत किया गया। वरिष्ठ संपादक विश्वंभर नेवर ने सुलेखा स्याही के विषय पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि सुलेखा स्याही पुराने दिनों की याद ताजा करती है। वर्तमान में फाउन्टेन पेन ने बॉल पेन का स्थान ले लिया है। सुलेखा इंक वैसा ही परिचित नाम है जैसे बाटा, डनलप आदि। आज सौ वर्षों के बाद भी सुलेखा स्याही की पहचान है।
आनंद बाजार पत्रिका के संपादक सुपर्ण पाठक ने कहा कि आज भी सुलेखा कई लोगों की पसंदीदा स्याही है। उनके पॉकेट में अभी भी फाउंटेन पेन रहता है। सुलेखा फैक्ट्री के मालिक कौशिक मोइत्रा ने बताया कि सुलेखा स्याही उनके दादा चलाते थे आज उन्हीं की इच्छा को पूरा करने के लिए सुलेखा स्याही की फैक्ट्री को पुनर्जीवित किया गया है। गांधीजी के सिद्धांत सुलेखा स्याही से जुड़े हुए हैं जो स्वराज और स्वाधीनता और देशप्रेम से जुड़े हैं। गांधी जी के सिद्धांत से अनुप्रेरित होकर खादी और ग्राम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मोइत्रा ने सुलेखा स्याही का उत्पादन शुरू किया है। 25 से अधिक स्त्रियों को रोजगार उपलब्ध कराया है। साथ ही, फैक्ट्री में सोलर पावर प्लांट से बिजली व्यवस्था की गई है जो पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने का महत्वपूर्ण कदम है। प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने स्याही और फाउंटेन पेन से जुड़े बचपन के अनुभवों को साझा किया। इस अवसर पर डॉ वसुंधरा मिश्र ने ‘युद्ध और शांति’ कविता सुनाई। चॉम सर शुभव्रत गांगुली , ज्योत्स्ना अगिवाल, अहाना मोइत्रा द्वारा संयोजित यह कार्यक्रम पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है । चॉम सर ने सुलेखा अकादमी के द्वारा कोलकाता के स्कूलों के बच्चों को लेकर सुलेख प्रतियोगिता भी कराने का प्रस्ताव दिया। इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ को “हरिचाँद ठाकुर-गुरुचाँद ठाकुर सम्मान”
कोलकाता । महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र, कोलकाता के पूर्व प्रभारी एवं लेखक-विचारक डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ को ‘‘हरिचाँद ठाकुर-गुरुचाँद ठाकुर सम्मान’’ से सम्मानित किया गया है। हावड़ा स्थित रामगोपाल मंच सभागार में मूलनिवासी कर्मचारी कल्याण महासंघ (मक्कम) की प. बंगाल ईकाई, बाबासाहेब डॉ. बी.आर.अम्बेडकर मिशन, हुगली, भारतीय दलित साहित्यकार मंच (प.बं.) तथा पश्चिम बंगाल सफाई कर्मचारी एकता संघ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक भव्य अभिनंदन समारोह में डॉ सुनील को यह सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम का संचालन लेखक व कवि रामजीत राम ने किया। इस अवसर पर उपस्थित भंते रखित श्रमण, समाजसेवी शारदा प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘पैरोकार’ पत्रिका के संपादक अनवर हुसैन, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के राजभाषा अधिकारी डॉ. ब्रजेश कुमार यादव, महाराजा श्रीश चंद्र कालेज के राजनीति शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रेम बहादुर मांझी, सहायक प्रोफ़ेसर एवं आलोचक डॉ. कार्तिक चौधरी, आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग के मीडिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. ललित कुमार, मक्कम के राज्य सचिव एवं शिक्षक-एक्टिविस्ट विनोद कुमार राम, कोषाध्यक्ष शशिकांत प्रसाद, मूलनिवासी संघ के अध्यक्ष विष्णु पाल, रामचंद राम, रामवचन यादव, राजेश कुशवाहा तथा शंकर सिंह आदि गणमान्य वक्ताओं ने डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। अपने संबोधन में डॉ सुनील कुमार ‘सुमन’ ने आयोजकों का धन्यवाद देते हुए कहा कि बंगाल के दो महापुरुषों के नाम पर स्थापित इस अमूल्य सम्मान को हासिल करना मेरे लिए बहुत ही गौरव की बात है। इससे मेरी सामाजिक ज़िम्मेदारी और बढ़ गयी है। इस आयोजन को सफल बनाने में अम्बेडकर मिशन (प.बं.) के अध्यक्ष ई. वीरा. राजू, धर्मराज राम एवं गौतम पासवान आदि ने भी सहयोग किया।
डाकघर एजेंटों का भविष्य सुनिश्चित नहीं : एनएसएसएएआइ
की विभिन्न समस्याओं के समाधान की मांग
कोलकाता: डाकघर एजेंटों का भविष्य सुनिश्चित नहीं है, केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए, यह कहना है राष्ट्रीट अल्प बचत अभिकर्ता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पृथ्वीश भट्टाचार्य का सोमवार को कोलकाता प्रेस क्लब में संघ द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में श्री भट्टाचार्य ने एजेंटों की समस्याओं को रखते हुए 22 विभिन्न मांगों को रखा, जिन पर केंद्र सरकार को तुरंत ध्यान देने की मांग की. उन्होंने कहा कि पूरे देश में पुरुष और महिला मिलाकर कुल साढ़े पांच लाख एजेंट हैं, लेकिन इन एजेंटों को परिचय पत्र तक नहीं दिये गये हैं. बिना परिचय पत्र के काम करने के कारण चुनाव की घोषणा के समय ग्राहकों व निवेशकों के रुपये जमा करने जाने के दौरान एजेंटों को पुलिस की चेकिंग में पहचान पत्र नहीं रहने से परेशानियों को झेलना पड़ता है. वित्त मंत्रालय द्वारा हर एजेंट को जल्द से जल्द एक पहचान पत्र दिया जाना चाहिए, एजेंटों का भविष्य नहीं है, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि की सुविधा चालू होनी चाहिए. यहीं नहीं अगर एजेंट मर जाते हैं, तो उनके परिवार को उसकी एजेंसी सौंप देना चाहिए, उन्होंने कहा कि एजेंसी के नवीनीकरण के दौरान हर तीन साल पर मांगी जानेवाली पुलिस सत्यापन रिपोर्ट को तत्काल रोक दिया जाना चाहिए, क्योंकि सरकार और लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए नियुक्त एजेंट असामाजिक या अपराधी नहीं है. उन्होंने कहा कि देश के हर डाकघरों में एजेंटों के बैठने और काम करने के लिए एक निश्चित स्थान तय किया जाना चाहिए. मौके पर एनएसएसएएआई के राष्ट्रीय सचिव मनोज कुमार मिश्रा ने कहा कि डाकघर में अधिक समय लिंक फेल रहते है, जिस कारण एजेंटों को नुकसान उठाना पड़ता है. पहले एजेंटों का कमिशन एक प्रतिशत था, जिसे आधा कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से सभी स्तरों पर मजदूरी में वृद्धि की गयी है, हम मांग करते है कि मानकीकृत एजेंसी प्रणाली (एसएएस) एजेंट के दो प्रतिशत और महिला प्रधान क्षेत्रीय बचत योजना एजेंट (एमपीकेबीवाई) का कमिश्नपांच प्रतिशत किया जाये. एनएसएसएआई के बंगाल सर्कल के महासचिव सिंचन चटर्जी ने कहा कि एजेंटों की तमाम समस्याओं को लेकर आगामी दिन दो दिवसीय पांचवा राष्ट्रीय सम्मेलन होगा, जो हावड़ा के शरत सदन में आयोजित होगा. इस दौरान देश के 23 राज्यों से प्रतिनिधि शामिल होंगे.
बीसीसीआई ने खोली तिजोरी, दोगुनी हुई पूर्व खिलाड़ी और अंपायर्स की पेंशन
मुम्बई । इंडियन प्रीमियर लीग की मीडिया अधिकारों की नीलामी से अब तब करीब 46000 करोड़ रुपये की कमाई कर चुके भारतीय क्रिकेट बोर्ड यानी बीसीसीआई ने पूर्व क्रिकेटरों (पुरुष और महिला) और पूर्व अंपायरों की मासिक पेंशन में बढ़ोतरी की घोषणा की। प्रथम श्रेणी के खिलाड़ियों में जिन्हें पहले 15,000 रुपये मिलते थे, उन्हें अब 30,000 रुपये मिलेंगे, जबकि 37,500 रुपये पाने वाले पूर्व टेस्ट खिलाड़ियों को अब 60,000 रुपये और 50,000 रुपये पेंशन वालों को 70,000 रुपये मिलेंगे।
अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी, जिन्हें अब तक 30,000 रुपये मिलते थे उन्हें अब से 52,500 रुपये मिलेंगे। इसके अलावा 2003 से पहले संन्यास लेने और 22,500 रुपये पाने वाले प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों को पेंशन के तौर पर अब 45,000 रुपये मिलेंगे।
बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने कहा, ‘यह बेहद जरूरी है कि हम अपने पूर्व क्रिकेटरों की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखे। खिलाड़ी बोर्ड के लिए जीवन रेखा की तरह है और बोर्ड के तौर पर यह हमारी जिम्मेदारी है कि खेल से संन्यास के बाद हम उनका ख्याल रखे। अंपायर गुमनाम नायकों की तरह हैं और बीसीसीआई उनके योगदान को समझता है।’
बीसीसीआई वर्षों से अंपायरों के योगदान को महत्व देता है और यह उनके लिए आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। बीसीसीआई सचिव जय शाह ने कहा, ‘लगभग 900 कर्मियों को योजना का लाभ मिलेगा, जिसमें 75 प्रतिशत से अधिक लाभार्थियों को 100 प्रतिशत की वृद्धि मिलेगी।’
बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण सिंह धूमल ने कहा, ‘बीसीसीआई आज जो कुछ भी है, वह अपने पूर्व क्रिकेटरों और अंपायरों के योगदान के कारण है। हमें मासिक पेंशन में वृद्धि की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है, जो हमारे पूर्व क्रिकेटरों की भलाई के लिए एक संकेत होगा।’
लंबे समय तक युगल साथ-साथ पति-पत्नी की तरह रहे तो वह शादीशुदा माने जाएंगे: सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर लंबे समय तक आदमी और औरत साथ-साथ (सहजीवन) रह रहे हों तो इसे शादी की अवधारणा मानी जाएगी। यानी सालों साल अगर कपल पति-पत्नी की तरह रह रहा हो तो यह धारणा माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा हैं। ऐसे मामले में शादीशुदा जिंदगी को नकारने वाले पर दायित्व होगा कि वह साबित करे कि शादी नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि कपल अगर लंबे समय तक साथ रहते हैं तो उनके नाजायज संतान भी उनके परिवार की संपत्ति में हिस्से का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह मामला आया था कि क्या सहजीवन में रहने वाले कपल के मामले में पर्याप्त सबूत हैं कि साबित हो सके कि वह पति-पत्नी हैं? सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी सवाल था कि क्या लंबे समय से साथ रहने वाले कपल के इलिजिटिमेट यानी गैर कानूनी औलाद संपत्ति में हकदार होगा? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वैसे कपल की संतान जो बिना शादी के लंबे समय से सहजीवन में रह रहे हैं वैसे बच्चे को भी फैमिली की संपत्ति में हक होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने रेकॉर्ड्स को देखा
सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को परीक्षण कर बताया कि दस्तावेज से साबित होता है कि महिला और पुरुष दोनों सहजीवन यानी साथ-साथ लंबे समय से पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले के जजमेंट का हवाला देकर कहा कि यह सेटल व्यवस्था है कि अगर आदमी और औरत लंबे समय से सालों साल पति-पत्नी की तरह रह रहा हो और सहजीवन में हो तो यह धारणा होगी कि वह शादीशुदा हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-114 में शादी को नकारने वाले की जिम्मेदारी होगी कि वह साबित करे कि शादी नहीं हुई थी। पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने इस मामले में व्यवस्था दी हुई है
पहले कोर्ट ने क्या कहा था
इस मामले में 15 जून 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर कपल पति-पत्नी की तरह सालों से साथ रह रहे हैं तो ये धारणा माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा हैं और महिला पत्नी की तरह गुजारा भत्ता मांग सकती है। हाई कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि अगर दोनों पार्टी पति-पत्नी की तरह सालों से साथ रह रहे हैं तो महिला द्वारा सीआरपीसी की धारा-125 में गुजारा भत्ता के दावे में ये माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा युगल हैं।
कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा हुआ है कि ये तय सिद्धांत है कि अगर आदमी और औरत लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहें तो गुजारा भत्ता के दावे के मामले में दोनों धारणा के तहत पति-पत्नी माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में व्यवस्था दे रखी है कि पत्नी की परिभाषा के तहत माना जाएगा कि अगर कोई कपल लंबे समय तक शादीशुदा युगल की तरह यानी पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं तो सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा के समय शादी के सबूत पेश करने का शर्त नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि अगर युगल पति-पत्नी के तौर पर लंबे समय से साथ रहते हैं तो ये अनुमान व धारणा माना जाता है कि दोनों शादीशुदा युगल हैं।
कोलकाता के ट्रैफिक पुलिसकर्मी को ब्रिटिश संसद में मिलेगा ‘द प्राइड ऑफ बंगाल’ अवार्ड
अरुप मुखर्जी पुरुलिया में चलाते हैं शबर बच्चों के लिए निःशुल्क आवासीय स्कूल
कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। कोलकाता पुलिस के एक साधारण से ट्रैफिक पुलिसकर्मी को उनके असाधारण कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद में ‘द प्राइड आफ बंगाल अवार्ड्स’ से सम्मानित किया जाएगा। ये हैं 47 साल के अरूप कुमार मुखर्जी। अरूप कोलकाता पुलिस के साउथ ट्रैफिक गार्ड में कांस्टेबल के पद पर हैं। अरूप वर्षों से बंगाल के पुरुलिया जिले के सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में शामिल ‘शबर’ के सामाजिक उत्थान में जुटे हुए हैं। पुरुलिया में सब उन्हें ‘शबर पिता’ के नाम से जानते हैं। अरूप को आगामी 20 जुलाई को ‘हाउस आफ कामंस’ में सामाजिक कार्य एवं समुदाय समर्थन’ श्रेणी के तहत इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा और पुरुलिया के गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को ब्रिटिश संसद में मान्यता प्रदान की जाएगी। ब्रिटिश संस्था एडवाटेक फाउंडेशन की तरफ से यह पुरस्कार दिया जाता है।
अरूप पुरुलिया के पुंचा थाना इलाके के पारुई गांव में शबर समुदाय के बच्चों के लिए आवासीय स्कूल चलाते हैं, जहां उनके रहने से लेकर खाने-पीने तक की सारी व्यवस्था निश्शुल्क है। अरूप ने इस स्कूल की शुरुआत 2011 में 15 बच्चों के साथ की थी। वर्तमान में स्कूल में 125 बच्चे पढ़ते हैं।
न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात की संस्थाएं भी कर चुकी हैं सम्मानित
इससे पहले न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात की संस्थाओं की ओर से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। न्यूजीलैंड की सामाजिक संस्था की ओर से अरूप को प्रेरणादायी पुलिसकर्मी की संज्ञा देते हुए उनका नाम ‘मार्वलस बुक आफ रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। एक अमेरिकी संस्था की ओर से उन्हें सम्मानित करते हुए उनका नाम ‘हाई रेंज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड्स’ में शामिल किया गया है। इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात की सामाजिक संस्था ने उन्हें ‘ब्रेवो इंटरनेशनल बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड्स’ में जगह दी है।
अरूप ने बताया-‘अंतरराष्ट्रीय सामाजिक संस्थाओं से मिल रहे सम्मान से मैं अभिभूत हूं। पुरस्कार व सम्मान से निश्चित रूप से उत्साह बढ़ता है लेकिन मैं पुरस्कार या सम्मान की चाह में काम नहीं करता बल्कि ऐसा करके मुझे आंतरिक रुप से काफी खुशी मिलती है।’ अरूप ने लाकडाउन के समय फंड जुटाकर शबर समुदाय के चार हजार परिवारों के खाने-पीने की भी व्यवस्था की थी। अरूप मूल रूप से पारुई गांव के ही रहने वाले हैं। उनके परिवार में माता-पिता, चाचा-चाची, पत्नी और एक बेटा-बेटी हैं। अरूप 2011 से कोलकाता ट्रैफिक पुलिस में कार्यरत हैं।
(साभार – दैनिक जागरण)
अग्निपथ योजना : सेना भर्ती में बड़ा बदलाव, चार साल के लिए मिलेगा देश सेवा का मौका
नयी दिल्ली । रक्षा मंत्रालय ने सेना भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। सेना भर्ती के लिए सरकार की ओर से ‘अग्निपथ भर्ती योजना’ को लॉन्च किया गया है। इस मौके पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया, इसके तहत सेना में चार साल के लिए अग्निवीरों यानी युवाओं की भर्ती की जाएगी। सरकार की ओर से यह कदम सेना की औसत उम्र कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। उन्होंने बताया कि इस समय सेना की औसत उम्र 32 साल है, जिसे अगले कुछ सालों में 26 साल करने का प्रयास किया जाएगा। यह योजना रक्षा बलों के खर्च और आयु प्रोफाइल को कम करने की दिशा में सरकार के प्रयासों का एक हिस्सा मानी जा रही है। ऐसे में बिंदुवार समझते हैं क्या है यह योजना और युवाओं को किस तरह से मिलेगा मौका?
‘अग्निपथ भर्ती योजना’ के तहत युवा चार साल की अवधि के लिए सेना में शामिल होंगे और देश की सेवा करेंगे। चार साल के अंत में लगभग 75 फीसदी सैनिकों को ड्यूटी से मुक्त कर दिया जाएगा और उन्हें आगे के रोजगार के अवसरों के लिए सशस्त्र बलों से सहायता मिलेगी। केवल 25 फीसदी जवानों को चार साल बाद भी मौका मिलेगा। हालांकि यह तभी संभव होगा जब उस समय सेना की भर्तियां निकली हों।
कई निगम ऐसे प्रशिक्षित और अनुशासित युवाओं के लिए नौकरी आरक्षित करने में भी रुचि लेंगे जिन्होंने देश की सेवा की है। योजना के तहत सशस्त्र बलों का युवा प्रोफाइल तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। युवाओं को नई तकनीकों से प्रशिक्षित किया जाएगा।
चार साल की नौकरी छोड़ने के बाद युवाओं को सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा। जो 11.71 लाख रुपए होगा। योजना के तहत इस साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती की जाएगी।
जानें कितना मिलेगा वेतन
साल महीनेवार वेतन हाथ में आने वाली राशि
प्रथम वर्ष 30000 21000
दूसरे वर्ष 33000 23100
तीसरे वर्ष 36000 25580
चौथे वर्ष 40000 28000
चार साल बाद मिलेगा सेवा निधि पैकेज
वेतन से कटने वाला पैसा अग्निवीर कॉर्प्स फंड में जमा होगा। जितना पैसा अग्निवीर के वेतन से कटेगा, उतनी ही राशि सरकार भी अग्निवीर कॉर्प्स फंड में डालेगी, जो चार साल की सेवा पूरी करने के बाद अग्निवीर को ब्याज सहित वापस मिलेगा। यह राशि करीब 11.71 लाख रुपये होगी, जो सेवा निधि पैकेज के रूप में मिलेगी। पूरी राशि कर मुक्त होगी।