Sunday, July 20, 2025
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आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति आयोजन में बही ‘गंगा – गाथा’ की भावधारा

कोलकाता । श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आचार्य विष्णुकांत शास्त्री की स्मृति में किस्सागोई शैली में ‘गंगा – गाथा’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। रथीन्द्र मंच सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उद्योगपति पद्मश्री प्रह्लाद राय अग्रवाल उपस्थित थे। अध्यक्षीय वक्तव्य में कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला ने अपने गुरु आचार्य विष्णुकांत शास्त्री को ‘संस्कृति पुरुष’ बताते हुए साहित्य, संस्कृति एवं अध्यात्म के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान का स्मरण किया। ‘गंगा – गाथा’ की सराहना करते हुए उन्होंने उम्मीद जतायी कि युवा पीढ़ी इससे अपनी संस्कृति का सम्मान करने की प्रेरणा पायेगी। स्वागत भाषण में श्री बड़ाबाजार कुमार सभा पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य शास्त्री सबके हितकारी थे। ‘गंगा – गाथा’ के आयोजन की उन्होने सराहना की। समारोह में प्रख्यात कलाकार डॉ. हिमांशु वाजपेयी, डॉ. प्रज्ञा शर्मा (लखनऊ) तथा वेदान्त भारद्वाज (चेन्नई) ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति से देवनदी की महत्ता का वर्णन साहित्यिक एवं पारम्परिक संस्कृत की रचनाओं को आधार बनाकर किया। गंगा की महिमा के साथ प्रदूषण और मानवीय अतिशय महत्वाकांक्षा के कारण होने वाली दुर्दशा को चित्रित करते हुए इस प्रस्तुति में जागरुकता लाने का प्रयास भी किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत सत्यनारायण तिवाड़ी की श्रीराम वंदना से हुई। कार्यक्रम का संचालन प्रो. कमल कुमार ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन पुस्तकालय के मंत्री महावीर बजाज ने दिया। कार्यक्रम में भागीरथ चांडक, दुर्गा व्यास, सागरमल गुप्त, आचार्य राकेश पांडेय एवं डॉ. सत्या उपाध्याय ने अतिथियों को सम्मानित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मनोज काकड़ा, रामचन्द्र अग्रवाल, शैलेश बागड़ी एवं श्रीमोहन तिवारी समेत कई अन्य लोगों का योगदान रहा।

राजारहाट में खुले मिया तनिष्क के 2 स्टोर

कोलकाता ।  तनिष्क ने कोलकाता में दो नये ज्वेलरी कलेक्शन ‘मिआ तनिष्क स्टोर’ खोले हैं। इन दोनो स्टोरों का उद्घाटन अभिनेत्री एवं सांसद नुसरत जहां और मिआ तनिष्क टाइटन कंपनी लिमिटेड की बिजनेस हेड सुश्री श्यामला रामनन द्वारा किया गया था। ग्राहकों को इस मौके पर विशेष छूट दी गयी।
मिआ तनिष्क के इन दोनो आलीशान आउटलेट स्टोर में पहला आउटलेट कोलकाता के जेसोर रोड में स्थित है और 500 वर्ग फुट में फैला स्टोर है। मिआ तनिष्क का दूसरा भव्य आउटलेट स्टोर न्यू टाउन राजारहाट में स्थित सिटी सेंटर 2 में 270 वर्ग फुट में फैला स्टोर है। इन दोनो स्टोर में विभिन्न प्रकार के स्टड, फिंगर रिंग्स, ब्रेसलेट, पेंडेंट और नेकवियर में सोने, हीरे और रंगीन पत्थरों से तैयार किए गए ट्रेंडी, लोकप्रिय और आधुनिक डिजाइनों की एक विस्तृत श्रृंखला ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं। इस अवसर पर श्यामला रामनन (बिजनेस हेड- मिआ तनिष्क) ने कहा, ‘इन स्टोर के माध्यम से हमारा प्रयास ग्राहकों को ट्रेंडी डिजाइन के गहनों की खरीददारी का अनोखा अनुभव प्रदान करना है।’

एमसीसीआई में ‘साथी’ पर परिचयात्मक सत्र

कोलकाता । आईआईटी खड़गपुर एवं एमसीसीआई ने उद्योग जगत को लेकर “साथी (सोफिस्टीकेटेड एनालिटिकल टेक्निकल हेल्प इंस्टीट्यूट ) आरम्भ की है। इस योजना में साथी एवं साथी सेंटर के चेयरमैन और साथी फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर रविब्रत मुखर्जी शामिल हैं और इनके साथ हाल ही में एमसीसीआई की तरफ से एक परिचयात्मक सत्र आयोजित किया गया। इस अवसर पर साथी के सदस्य डॉ. सांवर धनानिया एनं साथी के सीओओ डॉ. अविनाश जोश शामिल थे।
बैठक का उद्देश्य उद्योग के सदस्यों के साथ जुड़ना था ताकि प्रौद्योगिकी के संबंध में उद्योग की आवश्यकताओं को समझा जा सके कि खड़गपुर में इनक्यूबेशन सेंटर उद्योग के लाभ के लिए स्थापित करने पर विचार कर सकता है। सदस्यों को साथी की योजनाओं और रणनीतियों के बारे में भी जानकारी दी गई।
बैठक की अध्यक्षता एमएसएमई पर एमसीसीआई काउंसिल के चेयरमैन संजीव कुमार कोठारी ने की। एमसीसीआई की एमएसएमई काउंसिल के को चेयरमैन अखिल सोंथालिया, स्टार्टअप एवं स्किल डेवलपमेंट पर एमसीसीआई काउंसिल के चेयरमैन सम्रजीत मित्रा भी उपस्थित थे।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में मनाया गया फादर्स डे

कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल के प्राथमिक विभाग में असेम्बली के दौरान फादर्स डे मनाया गया। इस मौके पर नर्सरी की कक्षा में, बच्चों ने अपने पिता के साथ इस अवसर को चिह्नित करने के लिए शिक्षकों द्वारा संकलित एक वीडियो देखा। काम पर जाने से नन्हीं छात्राओं ने अपने पिता के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित किया।
जहां पिता-बेटी की जोड़ी मिल्कशेक बनाने में लगी हुई थी, वहीं मांएं इन खूबसूरत पलों को कैद करने में लगी थीं। शिक्षिकाओं द्वारा द्वारा सुनाई गयी कहानियों का आनन्द लिया। मनमोहक गीत गाए और अपने पिता को उनके विशेष दिन की शुभकामनाएं देते हुए सुंदर कार्ड उपहार में दिए।
पहली और दूसरी कक्षा की छात्राओं ने अपने पिता को प्यार करने और उनकी देखभाल करने के लिए धन्यवाद देने के लिए पेंट और ऑटो ड्रॉ का उपयोग करके कंप्यूटर कक्षा में कार्ड बनाए। साथ ही उनकी सलामती और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना भी की। तीसरी कक्षा के छात्रों ने उन्हें एक गीत समर्पित कर फादर्स डे मनाया। प्यारी बेटियों द्वारा बनाए गए सुंदर कार्ड और वीडियो कक्षा के साथ साझा किए गए।
चौथी एवं पाँचवीं की छात्राओं ने इस अनमोल रिश्ते की खूबसूरत यादों को संजोते हुए पीपीटी प्रस्तुत किए। इस सम्बन्ध की खूबसूरती को निखारते हुए हस्तनिर्मित और ‘कैनवा’ पर बनाए गए कार्ड दोनों के बीच साझा किए गए। कुल मिलाकर, प्रत्येक बच्चे द्वारा किए गए प्रयास ने एक पिता और एक बेटी के सबसे प्यारे रिश्तों में से एक को सम्मानित और गौरवान्वित किया।

रथयात्रा पर विशेष – ये है पुरी का जगन्नाथ धाम

श्री जगन्नाथ मंदिर की चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार हैं, जो क्रमशः पूर्व मे सिंह द्वार / मोक्ष द्वार, दक्षिण अश्व द्वार / काम द्वार, पश्चिम व्याघ्र द्वार / धर्म द्वार, उत्तर मे हाथी द्वार / कर्म द्वार स्थापित है। मंदिर के सिंह द्वार पर कोणार्क सूर्य मंदिर से लाया अरुण स्तंभ स्थापित किया गया है, तथा कोणार्क मंदिर के मुख्य विग्रह भगवान सूर्य देव को भी यहीं स्थापित कर दिया गया है।

मंदिर के अश्व द्वार के साथ ही हनुमान जी का छोटा सा मंदिर है, जिसमें श्री हनुमंत लाल की विशाल विग्रह उपस्थित है। मंदिर का आर्किटेक्चर कलिंग शैली द्वारा चूना पत्थर से बना है। अभी इस मंदिर को संरक्षित करने के लिए आर्कियालजी ऑफ इंडिया ने मंदिर की बाहरी दीवारों पर सफेद रंग का जंग रोधक लेप लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार मंदिर में एकादशी दर्शन का विशेष महत्व है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार में हरि एवं हर दोनों को शाश्वत मित्र माना गया है। अतः जहाँ-जहाँ हरि निवास करते हैं वहीं आस-पास हर का भी निवास निश्चित है। ऐसे संयोग के अंतर्गत ही भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर को पुरी जगन्नाथ धाम के जोड़ीदार के रूप में माना गया है।

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा
विश्व प्रसिद्ध श्री रथ यात्रा, जगन्नाथ धाम का सबसे प्रमुख त्योहार/मेला/उत्सव है। इस पवित्र यात्रा का आरंभ श्री जगन्नाथ मंदिर से होता है, और मौसी माँ मंदिर होते हुए श्री गुंडिचा मंदिर तक संपन्‍न होती है। इन तीनों मंदिरों को जोड़ती हुई तीन किलोमीटर लम्बी ग्रांडरोड है। जहाँ भगवान जगन्नाथ, भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा दिनभर यात्रा करते हैं। इस यात्रा में देश-विदेश से इतने भक्त शामिल होते हैं, कि ग्रांड रोड पर पैर रखने की जगह मिलना मुश्किल होती है। जगह-जगह भक्तों द्वारा, भक्तों के लिए जल-पान व भोज की व्यवस्था की जाती है।

जगन्नाथ धाम या गोवर्धन मठ?

भारत के पूर्व दिशा में स्थित जगन्नाथ पुरी उड़ीसा राज्य में स्थित है। पुरी भार्गवी व धोदिया नदी के बीच में बसा हुआ है और बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए विश्‍व प्रसिद्ध है। द्वारका की तरह पुरी में शंकराचार्य मठ मंदिर के साथ-साथ जुड़ा नहीं है। गोवर्धन मठ मंदिर से कुछ दूरी पर देवी विमला मंदिर के साथ स्थित है।

आदि गुरु शंकराचार्य के अनुसार जगन्नाथ धाम को गोवर्धन मठ का नाम दिया गया है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के पीछे आरण्य नाम विशेषण लगाया जाता है। इस मठ का महावाक्य है प्रज्ञानं ब्रह्म तथा इसके अंतर्गत आने वाला वेद ऋग्वेद  को रखा गया है। गोवर्धन मठ के प्रथम मठाधीश पद्मपाद थे। पद्मपाद जी आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।

(साभार – भक्ति भारत)

भारत के महानायक : गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- सर्वपल्ली राधाकृष्णन

विद्या भंडारी

5 सितम्बर को जन्मे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डा.राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक,प्रख्यातशिक्षाविद् लेख़क,महान् दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थै।उनके इन्हीं गुणों के कारण 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था और उन्ही के सम्मान में उनके जन्म दिन 5 सितम्बर को भारत में शिक्षा-दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में मद्रास के क्रिश्चियन कालेज मे प्रवेश लिया। 1907 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और वहीं से मास्टर डिग्री प्राप्त की ।बाद मे मैसूर युनिवर्सिटी दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे ।अच्छी सेवा के लिए उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप में काम करने का अवसर मिला ।इंग्लैड में पढ़ाते हुए पश्चिमी दार्शनिकों की इस बात के लिए आलोचना करते थे कि बच्चों को अपने विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए,इसमें धर्म का नाम नहीं आना चाहिए ।एक दर्शन शास्त्र ही है जो किसी भी फिलासफी का तुलनात्मक अध्ययन कर सकता है ।और उन्होंने शिष्यों को अन्य सभ्यताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन करवाया ।यही कारण था कि उनमें सच्चे अध्यापक की छवि साफ देखने को मिलती थी।1928 में आन्ध्र महासभा में उन्होंने भाग लिया जहाँ पर एक प्रेरक भाषण की प्रस्तुति दी और उन्हें राष्ट्रसंघ समिति में बौद्धिक विचारक के रूप में नियुक्त किया गया ।

राष्ट्रपति के रूप में वे सक्षम अध्यापक नहीं रहे इसलिए कार्यकाल चुनौती पूर्ण रहा क्योकि उनके कार्यकाल में दो पडोसी देशों के साथ युद्ध हुए थे।1962 में चीन के साथ भारत को हार का सामना करना पङा था।उसी कार्यकाल में दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु हो गयी थी।लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकंद में और दूसरे 1964 में नेहरू जी की मृत्यु हुई ।1967 में उन्होंने पद पर कार्यरत रहने से इन्कार कर दिया था। उनके कार्यों के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किए गए ।
उनके शैक्षिक विचार बहुत ही प्रेरक एवं परिपक्व थे। उनका मानना था कि शिक्षा को सामाजिक;आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के साधन के रूप में परिभाषित होना चाहिए,सामाजिक और राष्ट्रीय एकता के लिए,उत्पादकता बढ़ाने के लिए शिक्षा का उचित उपयोग होना चाहिए । शिक्षा का महत्व न केवल ग्यान या कौशल में है बल्कि दूसरों का सहयोग करना है ।उनके अनुसार शिक्षा में केवल तकनीकी नहीं बल्कि हमे स्थायी मूल्यों की खोज में सहयोग करना चाहिए ।
उनका मत था कि सही प्रकार की शिक्षा ही समाज और देश की कई समस्याओं का समाधान कर सकती है ।वे ऐसी शिक्षा चाहते थे जो हमें अंतरिक्ष और समय से परे दूसरी अदृश्य और अमूर्त दुनिया को देखने में सहायता करे ,शिक्षा को हमें दूसरा जन्म देना होगा ताकि हम महसूस कर सकें कि हमारे भीतर पहले से क्या है ।शिक्षा का अर्थ व्यक्ति की मुक्ति हैऔर हमें समग्रता की

शिक्षा की आवश्यकता है–मानसिक,शारीरिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक। शिक्षा द्वारा छात्रोंके मन में निरंतर सोच,सत्य का पालन, लोकप्रिय भावनाओं और भीङ के जुनून के प्रतिरोध की शक्ति का विकास होना चाहिएl जानडेवी, पेस्टलौजी, अरविंद,टैगोर, जैसे कई अन्य दार्शनिकों की तरह डा राधाकृष्णन ने सभी के लिए शिक्षा और बच्चो की जरूरतें और रुचि के अनुसार शिक्षा पर ज़ोर दिया । उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति कुछ जन्मजात प्रवृत्तियों के साथ पैदा होता है ।
उन्होंने शास्त्रो का गहन अध्ययन किया था और शंकर अद्वैतवाद से अत्यधिक प्रभावित थे।उनके लिए शिक्षा आत्मा का ग्यान है,शिक्षा अज्ञान दूर करती हैऔर व्यक्ति को प्रबुद्ध बनाती है ।जोर देकर उन्होंने कहा कि शिक्षा न तो किताबी ग्यान है,न ही तथ्यों और आकङो को याद रखना ।यह जीवन और दुनिया से असंबंधित अनगिनत जानकारी के साथ शब्दों का संग्रह या दिमागी कसरत नहीं है बल्कि शिक्षा मानव निर्माण ,चरित्र निर्माण और जीवन निर्माण के लिए मूल्यों और विचारों को आत्मसात करना है ।शिक्षा के क्षेत्र में डा राधाकृष्णन का योगदान अद्वितीय है ।उनके बिना हम आधुनिक भारत की कल्पना ही नहीं कर सकते ।
मै भी विशेष तौर से उनसे प्रभावित हूँ क्योकि मुझे उन्होंने स्वयं राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय पदक प्रदान किया ।भारत स्काउट्स गाइड्स में मुझे राजस्थान से चुना गया था और उसके बाद जोधपुर युनिवर्सिटी के उपकुलपति भी रहे,जहाँ से मेरी शिक्षा एम ए तक पूर्ण हुई ।उनके व्यक्तित्व ने अत्यंत प्रभावित किया ।मै उन्हे मेरी प्रेरणा मानती हूँ ।
व्यक्तिगत तौर पर उनका विवाह शिवाकमु से हुआ ।पाँच पुत्रियांऔर एक पुत्र हुए।पुत्र इतिहासकार के रूप में जाने जाते हैं ।विवाह 14 वर्ष की उम्र में ही हो गया था,पत्नी 10वर्ष की थीं ।
वे मानते थे कि विज्ञान की प्रगति भौतिक विकास के लिए नितान्त आवश्यक है तो प्रगति भी आन्तरिक समृद्धि के लिए उतनी ही आवश्यक और वांछनीय है । 17अप्रेल 1975 को उनका निधन हुआ ।राष्ट्रपति और कर्मठ राजनायक एवं शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी उनके जन्म दिवस पर याद किये जाते हैं और किए जाते रहेंगे ।

मंदिर के बहाने

डॉ. वसुंधरा मिश्र

बहुत हैरानी होती है जब भी हम स्त्रियाँ पिकनिक पर जातीं हैं तो हमेशा की तरह सब कुछ एक ही होता है लेकिन फिर भी अलग होता है । एक से भाव, एक से विचार, एक सी संस्कृति, एक से भगवान, एक से धर्म, एक से राम, और एक सी जाति। हर स्त्री की अपनी कहानी होती है और मजे की बात ये है कि फिर भी अपने आप को कभी भी दूसरों से अलग नहीं पाती। जब भी मैं अपने-आप को तौलती हूँ तो कहीं कोई अंतर नहीं दिखाई पड़ता। घुमा-फिराकर एक ही बात समझ में आती है। हमारी कहानियों में कोई अंतर ही नहीं होता। भले ही हम आज डिजिटल रूप से आगे बढ़ गए हों लेकिन उसके बावजूद भी समाज और परिवार की कहानियाँ एक ही जैसी ही हैं। हाँ! स्वरूप बदलता रहा है।

स्त्री मित्रों के रिश्तों की अजब और गज़ब कहानियाँ होती हैं। मेरे काव्य संग्रह’हर दिन नया’की एक कविता’ रिश्ते ‘याद आ रही है जिसे मैं आप सभी मित्रों के साथ साझा कर रही हूँ-
‘बर्फ से हैं ये मानवीय रिश्ते उन्हें चाहिए गर्म हवा का झोंका
साफ़ करे जो जमी धूल को
परत दर परत खोले जकड़न को
जो तोड़े जड़ता को
तभी तो हिय – हिमालय पर
जमा ग्लेशियर
प्रेम के झरने- सा बहने लगता है
धरती के हरे-हरे आँचल पर।’
हर घर के अंदर और बाहर की कहानी अलग है। पहले संयुक्त परिवार थे और अब एकल परिवार हैं। अब अकेलेपन और अपनी पहचान की कहानी है। अपने लिए समय चुराना और एक साथ पूरा दिन बिताना, रोज के अपने सभी कार्यों को छोड़कर घूमना – फिरना, खाना-पीना आनंद और ऊर्जा से भर देता है। शरीर और मन फिर नए सिरे से अपने काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
जब भी हम वरिष्ठ स्त्रियाँ पिकनिक या गेटटुगेदर के लिए कहीं बाहर जाती हैं तो किसी मंदिर का सहारा लेना सबसे अधिक सुरक्षित होता है। घर वाले निश्चिंत हो जाते हैं कि चलो कोई गड़बड़ नहीं होगी। वहाँ स्त्री को जाने की खुली छूट होती है। मेरी मित्र ने कहा कि जब घर वालों को पता चला कि मंमी पिकनिक मनाने चिन्सुरा या चूँचूडा़ जा रही हैं तो सवाल उठा कि वहाँ ऐसा क्या है? उसने कहा, ‘अरे भाई मंदिर है। सभी जा रही हैं। मित्रों के साथ, वह भी महिला मित्रों के साथ। ‘ तब ठीक है। हमारे बाल चाहे धूप में कितने ही पके हों, पति और बेटे-बेटियों के सामने हम भी बच्चे ही होते हैं। पहले हम उनके अभिभावक थे, अब वे हमारे अभिभावक बन जाते हैं।
इतना ही नहीं, मंदिर का शुद्ध और पवित्र वातावरण हमारे चरित्र निर्माण में सहायक होता है। किसी बार, रेस्तरां, होटल या डिस्को पार्टी को कभी- भी अच्छा नहीं माना गया है । ख़ासकर साठ से ऊपर वाली उम्र की स्त्रियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि उम्र के इस पड़ाव में उन्हें शांतिपूर्ण वातावरण और अच्छा व्यवहार मिल जाए तो उन्हें दुनिया मिल जाती है। उनका मन स्वस्थ हो जाता है। चलो मंदिर के बहाने कम से कम घूमना तो हो जाता है। इसीलिए आप देखेंगे कि स्त्रियाँ धर्म को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्त्रियाँ संस्कृति को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के साथ-साथ चलते हुए बाली में स्थित प्राचीन जटिया दिगंबर जैन मंदिर के दर्शन किए फिर आलम बाजार में स्थित श्री श्याम मंदिर जो सफेद संगमरमर का नक्काशीदार उत्कृष्ट और भव्य कला का नमूना है, वहाँ के भी दर्शन किए। श्री श्याम मंदिर हिंदू मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। श्री श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी। नव दुर्गा की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जिससे वे तीनों लोकों में विजयी बनने में समर्थ हुए थे।श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है।
आलम बाजार में स्थित संगमरमर पत्थर से बना ये श्री श्याम बाबा का मंदिर कोलकाता के मारवाड़ी समाज के लिए विरासत है।हमलोगों ने वहाँ पहले जोत के दर्शन किए और घी से आहूति दी। लगा कि हम राजस्थान में ही हैं।यह संयोग ही था कि हमने बच्छ बारस के दिन ही उनके दर्शन किए जो महत्वपूर्ण रहा। हर कहानी में एक और कहानी जुड़ी रहती है। खैर अधिक विस्तार में जानना है तो दूसरे स्त्रोतों से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
फिर वहाँ से चिन्सुरा स्थित प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर क्षेत्रपाल भौमिया जी के मंदिर गए और वहीं पास में एक श्वेतांबर जैन मंदिर भी देखा।
चार मंदिरों की इस परिक्रमा में हम बीस महिला मित्रों की टोली ने बहुत मजे किए। ये तो मंदिर का बहाना था जिसके कारण हमने ट्रैवेल मीनी बस जो बीस सीटर एसी गाड़ी थी, एक लंबा रास्ता तय किया और साथ का आनंद उठाया।
अब अपनी कहानी शुरू होती है।
सबसे पहले हम लोग श्री पार्श्वनाथ भगवान के प्राचीन जटिया मंदिर गए जो बाली ब्रिज से होते हुए बांयी ओर से जाने वाले रास्ते पर था। वहाँ साधु महाराज जी भी आए हुए थे। दिगंबर साधू थे जो नग्न रहते हुए अपनी साधना करते हैं।
जैन धर्म के मुख्य रूप से दो संप्रदाय श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय हैं। छठीं शताब्दी में भारत के प्रमुख धर्मों में जैन और बौद्ध धर्म रहे हैं ।इन धर्मों ने सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र्य और सम्यक् दर्शन आदि की शिक्षा दी जिसमें ध्यान- समाधि- प्रज्ञा का विशेष महत्व दिया गया है। मनुष्य की शक्ति को उन्नत करने का प्रावधान इन धर्मों की विशेषता है। बुद्ध और महावीर की शिक्षाएंँ परिवार, समाज और देश के बौद्धिक निर्माण के साथ-साथ चरित्र, जीवन मूल्यों और आदर्श की धरातल को मजबूत करती हैं। व्यर्थ के आडंबरों और दिखावे से दूर कर स्वयं को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। समय के परिवर्तन के साथ इन धर्मों में भी मूर्ति पूजा और संप्रदायों ने स्थान ले लिया है ।
मेरी कुछ महिला मित्र जैन नहीं थी, वे हिन्दू धर्म को मानने वाली थीं, वे जैन धर्म में विश्वास नहीं करतीं और जो जैन धर्म को मानने वाली थीं, वे हिन्दू धर्म से परहेज करती हैं। ये भी देखने को मिला। जैन धर्म श्रमण संस्कृति को मान्यता देता है। दोनों तरह की ही महिला मित्रों ने अपने – अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि संभवतः आगे चलकर दिगंबर जैन साधुओं की परंपरा अधिक नहीं चलेगी क्योंकि ऐसे वीतरागी साधुओं की कमी आती जा रही है। यह बहुत ही कठिन साधना है। खैर, हम तो भाग्यशाली थे, जैन साधू के दर्शन भी किए। हिन्दू और जैन सभी मित्रों ने मिलकर भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर में एकसाथ आरती और नमोंकार मंत्र का जप किया।ऐसा लग रहा था सच में, भारत सर्व – धर्म – समभाव की धरती है। इसमें तो कोई संदेह नहीं है
कहा गया है कि अगुणहिं सगुणहिं नहिं कछु भेदा।
उस समय सुबह के साढ़े नौ बजे थे। सभी नाश्ते की मांग कर रही थीं।
मैं बता दूँ कि साढ़े आठ बजे के लगभग हम सभी हावड़ा आईडियल ग्रेंड से ट्रैवल बस में निकल पड़े थे। सभी मित्रों को रेणु ने रोली- टीका लगाया और मीठी सौंफ की एक डिब्बी देकर स्वागत किया जो भारतीय संस्कृति की पहचान है और फिर गाड़ी में अपनी-अपनी सीट पर सभी बैठ गईं।
लक्ष्मी कानोडिया के पति ने हम सभी के लिए गर्म – गर्म समोसे, गांठिया और पापड़ी के साथ आम, अमरूद के थैलै संभला दिए थे। लक्ष्मी ने नाश्ते के लिए ब्रेड – बटर के पैकेट, चटनी, नमक, काली मिर्च के डिब्बे और केले आदि सारे खाने-पीने के सामान संजोकर एक बास्केट में रखे थे। गर्म समोसे के मसाले की खुशबू ने सबके मुंँह में पानी ला दिया था। गाड़ी ज्यों ही रवाना हुई , सबने कहा समोसे ठंडे हो जाएंगे, खा लेते हैं। सबने एक – एक समोसे चटनी के साथ खाए। खूब बढ़ाई मिली लक्ष्मी के पति कानोडिया भाईसाहब को ।
लक्ष्मी ने बताया कि दुकान वाले से उन्होंने कह दिया था कि सभी नाश्ता ताजा बना कर देना। वे स्वयं जाकर नाश्ता का सामान ले आए। महिलाओं को तो बातें बनाना आता ही है। सभी कहने लगीं कितने अच्छे पति हैं लक्ष्मी के। लक्ष्मी का हर आदेश सिर आँखों पर जो रखते हैं। वे दोनों मानो एक दूजे के लिए ही बने हैं। प्रशंसा करते- करते सारे समोसे चट कर दिए गए।
प्रमुख रूप से हमारा प्रोग्राम भोमिया जी के दर्शन का ही था। आईडियल ग्रेंड की रेणु ने सारा इंतजाम अपने ऊपर लिया था । वह स्वयं जैनी है और यह जैन मंदिर उसके लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल भी है। सो ढाई से तीन घंटे के भीतर चिन्सुरा या चूँचूडा़ जो हुगली जिले में स्थित है, भोमिया जी के मंदिर में पहुंँचे। वे नगर रक्षक यानी क्षेत्रपाल हैं।इस मंदिर का नाम ही क्षेत्रपाल मंदिर है। हम जब वहाँ पहुँचे, उनका श्रृंगार हो रहा था। उनके प्रमुख चेहरे पर सिंदूरी रंग का लेप लगाया जा रहा था। सोने की मूँछ और आँखों में तेज झलक रहा था। प्रमुख चेहरे से बायीं ओर सटा एक और चेहरा है। इसकी भी कहानी है। भूमिया देवता को भूमि का रक्षक देवता माना जाता है, इसी वजह से इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। खेतों में बुवाई किए जाने से पहले पहाड़ी किसान बीज के कुछ दाने भूमिया देवता के मंदिर में बिखेर देते हैं। विभिन्न पर्व-उत्सवों के अलावा रबी व खरीफ की फसल पक जाने के बाद भी भूमिया देवता की पूजा अवश्य की जाती है। एक और प्रसंग आता है। गौरक्षा करते हुए, बिना सर के धड़ के सहारे रणभूमि में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने तथा एक रक्षक के रूप में अपनी राजपूती आन बान और शान प्रदर्शित करने के कारण सवाई सिंह भोमिया के रूप में पूजे जाने लगे।
श्री दिगंबर जैन मंदिर क्षेत्रपाल भैरों जी के मंदिर का पुनर्निर्माण विक्रम संवत 1996 में किया गया इसकी गणना प्राचीन मंदिरों में होती है। यह मंदिर चिन्सुरा में श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर एक बैशाख लेन कलकत्ता – 700007 में स्थित है। मंदिर की दीवारों पर बाबा की आरती और बाबा की पूजा का विधान लिखा है। यहाँ तीन भवन बने हैं जिनके नाम सम्यक चारित्र्य, सम्यक ज्ञान और सम्यक दर्शन हैं । हम लोग सम्यक चारित्र भवन में ठहरे । उसके बड़े अहाते में कुर्सियाँ लगा कर बैठे थे , उसी में हमलोगों के विश्राम करने के लिए दो कमरे खोल दिए गए थे । सभी मित्रों ने विश्राम कर तरोताजा होकर भोमिया जी का दर्शन किया। यहीं हमारे भोजन की व्यवस्था की गई थी जो बहुत ही अच्छी व्यवस्था थी। भोजन में गेहूंँ की रोटी, चावल, दाल, गट्टे की सब्जी, भरवाँ परवल, मिस्सी रोटी, सलाद खीरा टमाटर का, बूंदी रायता,कच्चे आम और हरी मिर्च की लूंजी, पापड़ आदि थे जो स्वच्छता से बनाए गए। स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन सभी ने मिलकर कुछ ज्यादा ही खाया। फिर नाश्ते में भी हमें चाय के साथ पकौड़े खाने को मिले। लक्ष्मी भी अपने साथ बहुत सारी खाने की चीजें लाई थी। मित्रों के साथ खाने में बहुत आनंद आया। भोजन तो घर में भी करते हैं परंतु घर में तो दो रोटियाँ भी रुचि से नहीं खाई जाती। सच है कि यहाँ सब मित्रों के साथ सभी ने बहुत ज्यादा खाया। भोजन के बाद बहुत सारे गेम खेलें, अंत्याक्षरी खेली, अपनी-अपनी राम कहानी सुनी और सुनाई।
किसी ने पति की जम कर बुराई की क्योंकि वह पत्नी के साथ फोटो नहीं खिंचवाते, किसी के पति घर की बातें पूरी दुनिया को बता देतें है पत्नी को बाद में मालूम पड़ता है, किसी ने अपनी सुहागरात की बात बताई और अफसोस जताया कि हमारे समय में तो आज की तरह हनीमून पैकेज की व्यवस्था नहीं थी, ऐसे ही धर्मशाला में पहली रात मना ली , किसी को तो पता ही नहीं चला कि पहली रात उसके साथ क्या हुआ, सुबह सबकुछ अस्त व्यस्त देखा तो जाना, पत्नी को बताया गया कि तेरा पति बहुत अच्छा आदमी है, किसी ने कहा कि उसे तो सुहागरात के दूसरे दिन मेंस हो गया था, उस समय तो कपड़ा ही लगाया जाता था सो बहुत ही मुश्किल हुई।
सभी मित्रों की उम्र 60से 70 के बीच में थी। 70 वाली सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त थीं। उनका दैनंदिन जीवन अनुशासन से पूर्ण है। समय पर उठना, खाना-पीना और सूरज ढलने से पहले भोजन कर लेना। शाकाहारी जैन भोजन खाने से व्यक्ति स्वस्थ और ऊर्जा से भरा रहता है, यह उनके चेहरे के तेज से ही पता चल रहा था।
कई अनुभवों को साझा किया गया। उस समय की सास भी बहुत कठोर हुआ करती थी। उस जमाने में पति रात में सोते समय ही पत्नी के कमरे में आते थे । दिन में पति से बात भी कर लो तो बुरा माना जाता था। हमारी वरिष्ठ मित्र ने बताया कि कैसे दरवाजा को पीट – पीट कर रात में भी पति को अंदर कमरे में बुलाना पड़ता था क्योंकि वे तो अपने भाईयों और पिता के साथ बातें करने में लगे रहते थे। हम लोग तो घूंघट में रहते थे। परंतु आज सास की गिनती अच्छे रूप में की जाती है। वह भी समय के साथ स्वभाव को बदलने में कुछ हद तक कामयाब हुई है। अब उसे बहू के हिसाब से चलना पड़ता है और सास उसे बहू नहीं, बेटी की दृष्टि से देखती है। यह अभी भी अपवाद है लेकिन कोशिश चल रही है।
भोमिया मंदिर के पास की गली में एक श्वेतांबर मंदिर भी है। खाना खाने के बाद हमलोग वहाँ भी गए। वहाँ पर बहुत सुंदर बगीचा था जिसे बहुत तरह-तरह के फूलों और पेड़ों से सजाया गया था। सभी मित्रों ने फोटो खिंचवाई और सेल्फी ली। अलग-अलग पोज देकर कभी पेड़ों के झुरमुट के पीछे तो कभी, फूलों को छूते हुए। यही तो जीवन के छोटे- छोटे क्षण हैं जिन्हें हम याद रखते हैं। रंगों से भरी मुस्कान लिए सभी की फोटो को व्हाट्सएप ग्रुप मस्ताना और फेसबुक में सब जगह लगाया गया। यह सब काम गाड़ी में जाते समय ही कर लिया गया। लौटते समय गाड़ी में राजस्थानी, अंग्रेजी और हिंदी फिल्मों के गीतों पर ठुमके लगाए। मस्ती भरे गाने गाए, अंत्याक्षरी गीत और डांस किए और अपने मन की भड़ास जो हम घर में नहीं निकाल पाते हैं, वह सभी ने जम कर निकाला। हम लोगों ने एक से एक बढ़कर गाने भी गाए, कुछ तो नॉनवेज गाने भी गाए गए। महिलाएँ अपने मन की बातों को एक दूसरे से बांँटकर खुश दिख रही थीं। घर के बंद तालों को मानो चाबी मिल जाती हैं। फिर तो बंद दरवाजे परत – दर परत एक के बाद एक खुलने लगते हैं। अपना पूरा निकाल कर सारी चीजें बोल देते हैं।
आज से नहीं, प्राचीन काल से स्त्रियाँ अपने आप को अपनी ही संगत से अपने मित्रों के साथ बहुत प्रेम से हर बात को साझा करती आई हैं और संस्कृति को आगे बढ़ाने की सशक्त माध्यम हैं। बच्चों की देखरेख करना आदि विभिन्न कार्यों में अपना पूर्णरूपेण योगदान देती आईं हैं। भारतीय समाज की मजबूत स्तंभ ही स्त्री है। आधुनिक युग के बदलते परिवेश में व्यक्ति विशेष को अधिक महत्व दिया जाने लगा है जिसके कारण संवेदनाएँ भी संकुचित हुई हैं। रिश्तों को लेकर पारिवारिक सास- बहू के रिश्तों में बहुत ही उथल-पुथल की स्थिति आई है जिसको निभाने में दोनों ही पक्षों में खींचातानी चलती रहती है। इस यात्रा में बहुत कुछ सीखने और जानने का अवसर मिला। रिश्तों में मिठास रहे उसके लिए चुप रहना सबसे बड़ी दवाई है जो धीरे धीरे संबंधों को निभाने में मदद करती है। एक समय के बाद सास – बहू घर के वातावरण से सामंजस्य करती दिखाई पड़ती है क्योंकि दोनों का ही एक नए घर से सामना होता है। आज की युवा पीढ़ी का स्वभाव है तुरंत प्राप्ति। जिसके कारण आज की युवा पीढ़ी का जो तालमेल है वह नहीं बैठ पाता है और सास कहीं न कहीं अपने – आप को अकेला महसूस करती है, उसका आक्रोश तब बढ़ जाता है। वे कहती हैं कि मैंने इतना कुछ किया है और तब भी वही ढाक के तीन पात। अलग – अलग रहने के बाद भी आपस में नहीं बनती है जो कष्टकारी है। सास बनने के बाद माँ से बेटा बहू बात तक नहीं करते तो दुख दुगना हो जाता है। इसी ऊहापोह में जिंदगी के कुछ क्षण यदि सुकून के मिल जाएं तो फिर से ऊर्जा मिल जाती है। फिर से जिंदगी हसीन हो जाती है। हर व्यक्ति की अपनी खुशी होती है और रिश्ते मजबूत हों तो जिन्दगी बहुत आसानी से कटती है बिल्कुल रेशमी कपड़े की तरह फिसलती चली जाती है।
शारदा जी ने पति-पत्नी और वो जैसे गेम में खिलाए। हमेशा की तरह लक्ष्मी ने कॉंच की गोलियों से शोले के गब्बर सिंह की स्टाइल में गेम खिलाया वहीं रेणु ने व्यवस्था में योगदान दिया। गेम में जीतने के बाद गीफ्ट भी सबके मनपसंद के थे। पुष्पा जी को लिपस्टिक मिली, प्रेम को नेलपालिश और फिर फोटो तो खिंचनी तो बनती ही थी। सच में, प्रेम से इस यात्रा की शुरुआत हुई और प्रेम से समाप्त हुई–मेरी कविता’ गंगाजल’ की ये पंक्तियाँ -‘ प्रेम छल छल कल कल करता उद्दाम वेग से /हिम शिखरों से पिघलता गंगा जल है ‘। हम मित्रों की टोली फिर किसी यात्रा पर है और आपसे अपनी कहानी साझा करने के लिए फिर मिलते हैं। धन्यवाद। डॉ वसुंधरा मिश्र का नमस्कार।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स मनाया गया योग दिवस

कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में हाल ही में योग दिवस मनाया गया। महानगर के 6 शिक्षण संस्थान आठवाँ अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन को लेकर साथ आए। इन सभी शिक्षण संस्थानों कई योगासन प्रदर्शित कर शारीरिक फिटनेस के महत्व को समझाया। स्कूलों द्वारा पोषण, विकास, स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता जैसे कई विषय चुने गये थे। इस आयोजन के प्रतिभागी शिक्षण संस्थानों में बिड़ला हाई स्कूल, एपीजे स्कूल, अभिनव भारती, लक्ष्मीपत सिंघानिया अकादमी, श्री शिक्षायतन एवं सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल शामिल थे। सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल द्वारा योगसाधन – इन सर्च ऑफ डिवाइन द्वारा वीडियो स्कूल के फेसबुक पेज पर अपलोड किया गया।

श्रम दिवस पर सम्मानित किये गये शिक्षाकर्मी
सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल के प्राथमिक विभाग की छात्राओं ने श्रम दिवस मनाया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से स्कूल के संचालन को सफल बनाने वाले शिक्षाकर्मियों के प्रति आभार व्यक्त किया गया। चौथी और पाँचवीं कक्षा की छात्राओं ने इस अवसर पर गीत प्रस्तुत किया। इन कर्मियों ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। शिक्षण संस्थान की ओर से इन सभी को सम्मानित भी किया गया।

गोलगप्पा कभी फुलकी, कभी पानीपूरी, द्रौपदी की रसोई से मगध तक, मनभावन फुचका

भारत में स्ट्रीट फूड की गजब विविधता पाई जाती है. यहां पानी पूरी से लेकर आलू टिक्की, तरह-तरह की पकौड़ियां, मोमोज, दही भल्ले, धनिया आलू आदि खूब लोकप्रिय हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में गोलगप्पों के लिए अलग तरह का पानी और फिलिंग को पसंद किया जाता है। कोई गोलगप्पों में आलू भरता है, कोई चने तो कोई मटर, हर चीज का स्वाद बिल्कुल अलग होता है। एक-दो प्लेट पानी पूरी खा लेने के बाद वो आखिरी वाली सूखी पापड़ी का स्वाद भी मुंह में पानी ले आता है। पानी पूरी का शाब्दिक अर्थ है “पानी की रोटी” इसके मूल के बारे में बहुत कम जानकारी है पानी पूरी शब्द 1955 में , और गोल्गप्पा शब्द को 1951 में दर्ज किया गया । पौराणिक कहानियों में गोलगप्पे का इतिहास महाभारत से समय से दिखाया गया है। पहली बार द्रौपदी ने पांडवों के लिए गोलगप्पे बनाए थे. द्रौपदी जब विवाह के बाद ससुराल पहुँची तो कुंती ने उन्हें परखने के लिए एक काम सौंपा था। चूंकि पांडव उस वक्त वनवास पर थे और मांगकर खाते थे तो घर में ज्यादा भोजन नहीं होता था। ऐसे में कुंती यह परखना चाहती थीं कि उनकी बहू द्रौपदी अपने घर-बार को संभालने में कितनी कुशल हैं इसलिए कुंती ने द्रौपदी को थोड़ा आटा और कुछ बची हुई सब्जियां दी थीं और कहा था कि इसी में से सभी पांडवों का पेट भरना है। तब द्रौपदी ने कुछ ऐसा बनाने का सोचा जिससे सभी पांडवों का पेट भर जाए. द्रौपदी को गोलगप्पे बनाने का उपाय सूझा। गोलगप्पे से सभी पांडवों का पेट आसानी से भर गया इसे देखकर मां कुंती बहुत खुश हुईं थी। तब कुंती ने द्रौपदी को अमरता का वरदान दिया था ।

पाटलिपुत्र से है संबंध
प्राचीन भारत के 16 महाजनपद में से एक था मगध साम्राज्य, जिसकी राजधानी थी पाटलीपुत्र। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पानीपुरी सबसे पहले मगध काल में बनाई गई थी। ये उसी दौर में बनाया गया था, जब कतरनी चावल से चूड़ा, तिलवा, लिट्टी चोखा आदि बनाए जा रहे थे। जिस बुद्धिमान खानसामे ने पानीपुरी बनाई उसका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।
ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज और चीनी बौद्ध यात्री फाहियान एवं ह्वेनसांग ने लिखा है कि पानी पूरी सबसे पहले गंगा के किनारे बसे मगध साम्राज्य में बनाई गयी थी। ऐतिहासिक कहानियों में गोलगप्पे का संबंध मगध काल से बताया है। कहते हैं कि ‘फुल्की’ पहली बार मगध में ही बने थे। फुल्की गोलगप्पे का दूसरा नाम है। हालांकि इन्हें पहली बार किसने बनाया था इसके बारे में इतिहास में कोई जानकारी नहीं है लेकिन ये हो सकता है क्योंकि गोलगप्पे में पड़ने वाली मिर्च और आलू दोनों मगध काल यानि 300 से 400 साल पहले भारत आए थे। बिहार में गोलगप्पे को फुलकी कहा जाता है जिससे लगता है कि मगध काल में भी आलू का चटपटा मसाला बनाकर गोलगप्पे खाए जाते थे।

गोलगप्पे और उसका पानी घर में बनाया जाए तो वजन कम करने में मदद मिल सकती है। एक गोलगप्पे में सिर्फ 36 कैलोरी होती है। 6 गोलगप्पों की 1 प्लेट में 216 कैलोरी होती है। दरअसल, गोलगप्पे का तीखा पानी पीने के बाद घंटों तक भूख नहीं लगती है। ऐसे में वजन घटाने में काफी मदद मिल सकती है लेकिन इसके लिए आपको गोलगप्पे और उसका पानी, दोनों ही घर पर तैयार करने होंगे। घर वाले गोलगप्पे कम तेल में बनाए जाते हैं इसलिए वो नुकसान नहीं करते हैंय़ वजन कम करना है तो सूजी के बजाय आटे के गोलगप्पे बनाएं।
(स्त्रोत साभार – जी न्यूज, एबीपी न्यूज, नवभारत टाइम्स)

शुभजिता स्वदेशी – गैराज से शुरू हुआ, आज भारतीयों का अपना सर्च इंजन जस्ट डायल

आजकल हम किसी भी चीज को ढूंढने के लिए सबसे पहले गूगल बाबा को याद करते हैं। गाड़ी के मैकेनिक ढूंढने से लेकर डॉक्टर तक को ढूंढने के लिए लोग एक जिस वेबसाइट पर सबसे ज्यादा जाते हैं वो है जस्ट डायल। आज इसी जस्ट डायल की कहानी –
इस कंपनी की शुरुआत 1994 में 50,000 रुपये के निवेश के साथ हुई। एक गैराज को दफ्तर के रूप में परिवर्तित किया गया और किराए पर कुछ फर्निचर और कंप्यूटर को लेकर 5-6 कर्मचारियों के साथ इस कंपनी की शुरुआत की गयी। कुछ ही समय में जस्ट डायल देश की लोकप्रिय सर्च वेबसाइट बन गयी।
जस्ट डायल के संस्थापक वैंकटाचलम् शांतनु सुब्रमणि मणि जिन्हें वीएसएस मणि के भी नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत यूनाइडेट डेटाबेस इंडिया (यूडीआई) नामक येलो पेजस कंपनी में एक विक्रेता के रूप में की। यहाँ उनका काम एक डेटाबेस को संग्रह करना था, जो लोगों के लिए टेलीफोन पर उपलब्ध कराया जा सके।
मणि ने येलो पेजस कंपनी में 2 साल तक काम किया और यहीं से इन्होंने अपने स्टार्टअप बिजनेस की योजना बनाई। उनके लिए ये दो साल बहुत अहम थे क्योंकि जो उन्होंने वहाँ सीखा, वो उन्हें कोई एमबीए प्रोग्राम भी नहीं सिखा सकता। यहाँ उनकी मुलाकात उद्यमियों के साथ हुई और उनसे इन्होंने कई रणनीतियां सीखा। फिर अपनी योजना को सच करने के लिए मणि ने मित्रों के साथ मिलकर 1989 में “आस्कमी” का शुभारंभ किया।

ये कंपनी लंबे समय के लिए नहीं चली और इसका मुख्य कारण था भारत में फोन की कमी। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1989 में केवल 1 प्रतिशत भारतीयों के पास फोन थे। फोन की यह कम संख्या इसके बिजनेस मॉडल के लिए लाभदायक नहीं रही।
निराशा के दौर से उबरने के बाद मणि ने “वेडिंग प्लानिंग” के व्यवसाय को चुना और इनके इस निर्णय में इनके परिवार ने इनका काफी सहयोग किया। इस “वेडिंग प्लानर” के व्यवसाय की शुरुआत भी इन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर 50,000 रुपये के निवेश के साथ की। हालांकि इस व्यवसाय में ये 2-3 लाख का मुनाफा कमाते रहे परंतु मणि इस काम से खुश नहीं थे इसलिए वे दोबारा अपनी पुरानी योजना की ओर बढ़े।
लोगों को कंपनी का नाम “आस्कमी” तो याद रहता परंतु इसका नंबर याद ना रहता इसलिए यह प्लान जल्द ही ठप हो गया। इससे मणि निराश तो हुए पर उनकी उम्मीद नहीं टूटी। इन्होंने अपने हक के शेयरों को अपने पार्टनरों में बांट कर कंपनी छोड़ दी। यह किस्सा उनके कॅरियर का अंत नहीं था, बल्कि उनकी दूसरी दौड़ की शुरुआत थी।
नंबर चुनने के बाद अगला काम था डेटाबेस बनाना जिसमें विभिन्न व्यवसायों की सारी जानकारी हो। इसके लिए जस्ट डायल की टीम घर-घर तथा दुकानों व दफ्तरों में जा कर जानकारी इकट्ठा करने लगी। समय के साथ इनकी टीम ने काफी अच्छा डेटाबेस तैयार कर लिया था।
सफलता की इसी राह पर चल कर जस्ट डायल ने अन्य देशों में भी प्रवेश करना आरंभ किया। आज इसकी मौजूदगी यूएई, कनाडा, यूके और अमेरिका जैसे देशों में भी है। फिलहाल भारत में इसके 15 दफ्तर हैं।
जस्ट डायल भारत का स्थानीय सर्च इंजन है, जो शुरू में एक वर्गीकृत वेबसाइट के रूप में शुरू हुआ था लेकिन जल्द ही एक स्थानीय खोज इंजन में बदल गया। कंपनी पूरे देश में फैले 15 अलग-अलग कार्यालयों में 9,000 से अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करती है। यह भारत के 2,000 से भी अधिक छोटे और बड़े शहरों को अपनी सेवा प्रदान करती है और इसके पास 12 लाख से भी अधिक का डेटाबेस है।
कंपनी को रोजाना 1. 9 मिलियन से भी अधिक कॉल आते हैं। इसके अलावा, वेबसाइट पर ऑनलाइन खोजों की संख्या वित्त वर्ष 12-13 के लिए 1125.7 मिलियन दर्ज की गयी थी। हर रोज यह कंपनी प्रगति की ओर बढ़ रही है और रोजाना 1.16 मिलियन अनूठे आगंतुक इस वेबसाइट को खोजते हैं। कंपनी ने अपनी सेवाएं कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, यूके और यूएसए में बढ़ा दी है। अब तक, 3.4 मिलियन लोगों ने इसके ऐप को डाउनलोड किया है।
सैफ पार्टनर्स, सेक्वाइया कैपिटल, टाइगर ग्लोबल, ईजीसीएस और एसएपी वेंचर्स ने कंपनी के विकास में रुचि दिखाई और कंपनी में निवेश किया। जून 2012 में जस्ट डायल ने मौजूदा निवेशक सेक्वाइया कैपिटल और नीलम वेंचर्स सहित 57 मिलियन डॉलर जुटाए। इससे पहले भी कंपनी ने जून 2011 में इन्हीं निवेशकों से 10 लाख डॉलर का निवेश जुटाया था। इस फंड को प्रबंधन द्वारा बुद्धिमानी से उपयोग किया गया। जिससे उद्योग का ब्रांड वैल्यू बढ़ गया।
इसके अलावा, कंपनी ने बड़े ब्रांडों और नामों के अलावा स्थानीय व्यवसायों पर भी ध्यान दिया जैसे कि प्लंबर, मोबाइल की दुकानों, पेंटर आदि. क्योंकि कंपनी जानती थी कि आम लोग इन्हें भी खोजते हैं. यह तरीका कंपनी को सफलता के मार्ग पर ले गया। जल्द की कंपनी लोक्रप्रिय हो गई और अच्छी कमाई करने लगी। इनके 10 में से हर एक ग्राहक प्रायोजित सूची के लिए सहमति जताने लगे और इस तरह कंपनी ने मुनाफा कमाना आरंभ किया।
(साभार – न्यूज 18)