Monday, March 31, 2025
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स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर मनाएं दिवाली

दीपावली हम हिन्दुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। हम में ज्यादातर लोग इस त्योहार का सालभर इंतजार करते हैं। यह लोगों के जीवन में आनंद और खुशियों का त्योहार है। देशभर में यह दिवाली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस त्योहार पर लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और खूब मिठाइयों का सेवन किया जाता है। तला-भुना, नमकीन, मीठा, मसालेदार चीजों का अधिक सेवन स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, दिवाली का त्योहार जिस समय पड़ता है, इस दौरान देश में प्रदूषण काफी अधिक होता है। त्योहार के दिन भी खूब बम-पटाखे फूटते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफी अधिक बढ़ सकता है। यह स्वास्थ्य के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप त्योहार के समय अगर अपने स्वास्थ्य की सही तरीके से देखभाल नहीं करते हैं, तो इससे आपके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिवाली पर सेहतमंद कैसे रह सकते हैं और स्वस्थ तरीके से किस तरह हम यह त्योहार मना सकते हैं। आपको बता दें कि कुछ सरल टिप्स को फॉलो और जरूरी बातों को ध्यान में रखकर आप आसानी से सेहतमंद तरीके से खुशियों का त्योहार मना सकते हैं। इस लेख में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
सीमित मात्रा में खाएं – भले ही दिवाली खुशियों, मिठाईयों और खाने-पीने का त्योहार है। लेकिन इस दौरान कोशिश करनी चाहिए, आप कुछ भी अधिक मात्रा में न खाएं। अपनी सामान्य डाइट पर ही रहें। ज्यादा मीठा और पकवान खाने से बचें। यह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
मधुमेह के मरीज मीठा खाने से बचें – जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है ऐसे लोगों को त्योहार पर भूलकर भी मिठाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही कम मात्रा में खाना चाहिए। अपनी दवाओं का भी खास ध्यान रखें।
अस्थमा के मरीज बरतें सावधानी – अस्थमा के मरीजों के लिए दीपावली का त्योहार और भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए क्योंकि प्रदूषण की वजह सांस लेने में परेशानी हो सकती है। कोशिश करें कि अपने घर के भीतर ही रहें। घर में एयर प्यूरीफायर का प्रयोग करें।
मास्क लगाकर रहें – त्योहार पर होने वाला प्रदूषण सिर्फ अस्थमा के मरीजों के लिए ही नहीं, सामान्य लोगों के लिए भी घातक हो सकता है। यह आंखों को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए मांस्क पहनें और आंखों पर चश्मा लगाकर रखें।
पौष्टिक आहार लें – अपने खानपान का खास ध्यान रखें। थोड़ा बहुत मीठा और पकवान भले ही खाएं, लेकिन अपने नियमित आहार को न छोड़ें। स्वस्थ और पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें। फल-सब्जियों का सेवन अधिक करें। साबुत अनाज खाएं, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर आहार लें।
भरपूर पानी पिएं – आपको दिनभर पानी जरूर पीना चाहिए। पानी स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। आपको हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि आप दिनभर खूब पानी पिएं। यह शरीर की आंतरिक रूप से साफ-सफाई करने में मदद करता है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है।

दिवाली पर अगर न मिल रही हो छुट्टी तो इस तरह मनाएं उत्सव

दिवाली साल भर का त्योहार होता है और भारत में पर्व व त्योहार लोग अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करते हैं। जो लोग घर से दूर किसी दूसरे शहर में नौकरी या पढ़ाई करते हैं, वो भी दिवाली की छुट्टी पर घर वापसी करते हैं और घरवालों के साथ ही ये त्योहार सेलिब्रेट करते हैं। वैसे तो दिवाली के मौके पर लगभग देशभर में छुट्टी होती है, लेकिन पुलिस और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के अलावा कई ऐसी कंपनियां या नौकरी हैं, जिसमें छुट्टी नहीं मिल पाती। वहीं एक या दो दिन की छुट्टी में दूसरे शहर स्थित अपने घर जा पाना कई लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है।
ऐसे लोग चाहकर भी दिवाली पर अपने घर, गांव व परिवार के साथ त्योहार नहीं मना पाते हैं। अगर आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं, जो किसी कारणवश दिवाली पर घर नहीं जा पा रहे हैं या त्योहार के दिन उन्हें दफ्तर जाकर काम करना पड़ रहा है तो उदास न हों। त्योहार का मौका है, ऐसे समय को भी खुलकर एंजॉय करें और कुछ मजेदार तरीकों से दफ्तर में दिवाली का पर्व मनाएं, ताकि परिवार की कमी को कम किया जा सके और दिवाली की रौनक को महसूस किया जा सके।
कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां 24*7 काम होता है। इसलिए जरूरी नहीं कि दिवाली पर हर शख्स को छुट्टी मिल सके। ऐसे में किसी ना किसी को तो अपनी छुट्टी के साथ समझौता करना ही पड़ता है। अगर इस बार आपको दिवाली पर दफ्तर जाना पड़ रहा है तो इन आसान टिप्स के साथ अपनी ऑफिस वाली दिवाली का आनंद उठा सकते हैं। जानिए, इन टिप्स के बारे में…
उत्सव के लिए पारंपरिक कपड़े पहनकर दफ्तर जाएं, ताकि और दिनों की तुलना में आपको अलग महसूस हो।
तैयार होकर गए हैं तो सेल्फी और फोटो तो बनती हैं। अपने सहकर्मियों के साथ तस्वीरें लें और दिवाली को यादगार बनाने की कोशिश करें।
टीम के सदस्यों के लिए मिठाइयां लेकर जाएं और सबके साथ मिलकर इस त्योहार को एंजॉय करें।
काम से समय निकालकर अपने घरवालों को और दोस्तों को कॉल या वीडियो कॉल करें और घरवाली दिवाली का भी हिस्सा बनें।
वक्त मिले तो दफ्तर को सजाएं, दीये जलाएं और रंगोली भी बना सकते हैं।
दफ्तर में हुई फेस्टिव डेकोरेशन के साथ अपनी तस्वीर लें और इन्हें अपने घरवालों के साथ शेयर करें।
सहकर्मियों के साथ कुछ गेम्स भी खेल सकते हैं, जिससे सभी का मन फ्रेश हो जाएगा और घर से दूर होने के बाद भी किसी को अकेलापन महसूस न हो।
– घरवालों और दोस्तों को ऑनलाइन दिवाली के गिफ्ट और मिठाइयां भेज सकते हैं।

जानकी जीवन, विजयदशमी तुम्हारी आज है

मैथिली शरण गुप्त
जानकी जीवन, विजयदशमी तुम्हारी आज है,
दीख पड़ता देश में कुछ दूसरा ही साज है।
राघवेंद्र! हमें तुम्हारा आज भी कुछ ज्ञान है,
क्या तुम्हें भी अब कभी आता हमारा ध्यान है?
वह शुभ स्मृति आज भी मन को बनाती है हरा,
देव! तुम तो आज भी भूली नहीं है यह धरा।
स्वच्छ जल रखती तथा उत्पन्न करती अन्न है,
दीन भी कुछ भेंट लेकर दीखती संपन्न है॥
व्योम को भी याद है प्रभुवर तुम्हारी वह प्रभा!
कीर्ति करने बैठती है चंद्र-तारों की सभा।
भानु भी नव-दीप्ति से करता प्रताप प्रकाश है,
जगमगा उठता स्वयं जल, थल तथा आकाश है॥
दुःख में ही है! तुम्हारा ध्यान आया है हमें,
जान पड़ता किंतु अब तुमने भुलाया है हमें।
सदय होकर भी सदा तुमने विभो! यह क्या किया,
कठिन बनकर निज जनों को इस प्रकार भुला दिया॥
है हमारी क्या दशा सुध भी न ली तुमने हरे?
और देखा तक नहीं जन जी रहे हैं या मरे।
बन सकी हमसे न कुछ भी किंतु तुमसे क्या बनी?
वचन देकर ही रहे, हो बात के ऐसे धनी!
आप आने को कहा था, किंतु तुम आए कहाँ?
प्रश्न है जीवन-मरण का हो चुका प्रकटित यहाँ।
क्या तुम्हारा आगमन का समय अब भी दूर है?
हाय तब तो देश का दुर्भाग्य ही भरपूर है!
आग लगने पर उचित है क्या प्रतीक्षा वृष्टि की,
यह धरा अधिकारिणी है पूर्ण करुणा दृष्टि की।
नाथ इसकी ओर देखो और तुम रक्खो इसे,
देर करने पर बताओ फिर बचाओगे किसे?
बस तुम्हारे ही भरोसे आज भी यह जी रही,
पाप पीड़ित ताप से चुपचाप आँसू पी रही।
ज्ञान, गौरव, मान, धन, गुण, शील सब कुछ खो गया,
अंत होना शेष है बस और सब कुछ हो गया॥
यह दशा है इस तुम्हारी कर्मलीला भूमि की,
हाय! कैसी गति हुई इस धर्म-शीला भूमि की।
जा घिरी सौभाग्य-सीता दैन्य-सागर-पार है,
राम-रावण-वध बिना संभव कहाँ उद्धार है?
शक्ति दो भगवान् हमें कर्तव्य का पालन करे,
मनुज होकर हम न परवश पशु-समान जिएँ-मरें।
विदित विजय-स्मृति तुम्हारी यह महामंगलमयी,
जटिल जीवन-युद्ध में कर दे हमें सत्वर जयी॥

महाराजा ळक्ष्मीश्वर सिंह की दो कहानियां

पं. भवतोष झा
बचपन में मैंने दो कहानियाँ सुनीं थी। एक  कहानी तो बिट्ठो गाँव से जुड़ी है, जहाँ मेरा ननिहाल है। चूँकि इस कहानी का स्रोत मेरा ननिहाल ही है और केवल तीन-चार पीढ़ी की बात है, इसलिए हो सकता है कि वह इतिहास ही  हो। आप न मानें, तो फिर उसे ‘एनेक्डोट’ रहने दीजिएगा।
ऐतिहासिक पुरुष की कहानियाँ होतीं हैं, कुछ अतिरंजित भी होतीं है, कुछ में काफी हद तक सच्चाई होती है, कोई-न-कोई इतिहास अवश्य जुड़ा होता है; उन्हें हम इतिहास में स्थान नहीं दे पाते। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के बारे में भी बहुत सारी कहानियाँ बूढ़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। अब तो वह परम्परा खतम हो गयी है। मेरे बचपन तक कहानियाँ सुनाने की बात जिन्दा थी। दरभंगा के महाराज 2,400 वर्ग मील से अधिक क्षेत्र तथा 750,000 से अधिक जनता के शासक थे। 1888ई.मे उनकी आमदनी 2,00,000 रुपये प्रति वर्ष थी। वे अक्सर कलकत्ता में रहा करते थे और अंग्रेजी सरकार पर इस बात के लिए जोर डालते रहते थे कि वह ब्रिटेन की जनता की तरह समान नागरिकता नियम भारतीय उपनिवेश के लिए भी लागू करे। वे अंगरेजों के द्वारा फैलाये गये भेद-भाव की नीति का विरोध करते थे। जब एक ही शासन के अंतर्गत भारत भी है, इंग्लैंड भी है तो जो जनाधिकार इंग्लैंड की जनता को मिली है वह भारत की जनता को क्यों न मिले। इसके लिए उन्होंने अनेक कानूनों में संशोधन भी कराया था। उन्ही की दो कहानियाँ मैंने बचपन में सुनी थी।
कहानी सं. 1- कलकत्ता में बिट्ठो का ऐसा ताशा बजबाया कि न्यूसेंस का कानून एक ही दिन में सुधर गया
बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहा करते थे। उनके पड़ोस में एक गबैयाजी का मकान था। रात में जब महाराज के सोने का समय होता तो गबैयाजी अपना सितार लेकर बैठ जाते और राग अलापने लगते। जोरों की आवाज मुहल्ले में गूँज जाती!महाराज की नींद में खलल पड़ जाती तो वे बेचैन हो उठते। भला कब तक बर्दास्त करते। उन्होंने गबैयाजी के पास अगले दिन खबर भिजबायी; आग्रह किया कि रात को ऐसा न करें। गबैयाजी नहीं माने।
फिर महाराज ने मुकदमा दायर किया। कोर्ट ने भी फैसला सुना दिया कि कोई व्यक्ति अपने मकान में कुछ भी कर सकता है। ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे हम उसे रोक सकें।
महाराज ऐसे ही मानवाधिकार के नियमों में सुधार लाने के लिए दिन-रात सोचते रहते थे। लंदन का कानून देखा तो उसमें एक था- न्यूसेंस लॉ। कोई व्यक्ति अपने घर में ऐसा ही काम कर सकता है ताकि उसके पड़ोसी को कोई कष्ट न हो। ‘यह कानून तो भारत में भी होना चाहिएʼ– महाराज ने ठान लिया।
सरसो-पाही के पास बिट्ठो गाँव से कलकत्ता बुलाये गये ताशा बजाने वाले
बस यहाँ से बिट्ठो गाँव की कथा आरम्भ होती है। महाराज का ननिहाल लोहना गाँव था। उससे कुछ पश्चिम बिट्ठो गाँव का ताशा बाजा बहुत नामी था। यह गाँव वर्तमान में मधुबनी जिला के पंडौल प्रखण्ड में सरसो पाही से उत्तर आधा कि.मी. पर है। छोटा गाँव है पर पुराना है। करमहे बेहट मूल के लोग यहाँ बसते हैं। महाराज राघव सिंह ने भी इस गाँव में विवाह किया था। राज परिवार से जुड़ा गाँव है। हलाँकि लक्ष्मीश्वर सिंह के समय तक इस गाँव में गरीबी बहुत थी। गाँव में बुधेश पोखरा है, जहाँ शायद कभी बौद्ध मन्दिर रहा हो, अब केवल नाम बचा है।
सारुख खाकर शास्त्रार्थ करने वाले पंडित
इसी गाँव की कहानी है कि यहाँ दो भाई विद्वान् रहा करते थे। दोनों एक से एक विद्वान्। हमेशा शास्त्रार्थ होता रहता था। यहाँ तक कि जब वे दोनो भाई चौर-चाँचर से सारुख उखाड़ने जाते थे। वही सारुख उनका और उनके परिवार का भोजन था। एक दिन राजा उस चौर के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने दोनों भाइयों का शास्त्रार्थ सुना। राजा ठमक गये। दोनों भाइयों को बुलाया और कहा कि हम आपको जमीन देते हैं, आप खाइए-पीजिए और शास्त्र-चिन्तन कीजिए। इन्होंने कहा कि धन आते ही विद्या लुप्त हो जाती है। सरस्वती सारुख खाकर गुजारा करने वाले को पसंद करती है। अतः हमे आपका दिया धन नहीं चाहिए। हम पर बहुत कृपा हो तो इतना भर आश्वासन दीजिए कि इस चौर-चाँचर में आपके दल का हाथी न पैठे। उसके पैठने से सारुख नष्ट हो जाता है और हमें भोजन करने में दिक्कत होती है।
तो ऐसा है वह गाँव। उस गाँव के विद्वान् ही नामी नहीं थे, ताशा बाजा भी नामी था। बल्कि आज भी उस परोपट्टा में ताशा के लिए लोग बिट्ठो गाँव को ही दौड़ लगाते हैं। ताशा एक प्रकार का मारू बाजा है- लड़ाई में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने वाला। जब हँसेड़ी चलती थी तो यही ताशा बजाया जाता था।
यह मुगलकाल का यह वाद्ययंत्र है। मिट्टी का कस्तरा (छाँछ) बनाया जाता है लगभग एक हाथ व्यास का। यह कस्तरा ठीक वैसा ही, जैसा दही जमाने के लिए बनाते हैं। इसी कस्तरे को चमड़ा से मढ़ दिया जाता है और बाँस की दो पतली कपचियों से इसे बजाया जाता है। बजानेवाले इसे गले में लटका लेते हैं और काफी तेजी से हाथ चलाते  हुए बजाते रहते हैं। एक भी ताशा बजने लगे तो भीड़ में कान फटने लगता है। आपस में कुछ बात करना सम्भव नहीं पाता।
मिथिला में इसे बजाने वालों का दल बारात के साथ चलता है। कोई भी मांगलिक अवसर हो तो इसकी आबाज होनी चाहिए। कहा जाता है कि यात्रा के समय कोई छींक दे या अशुभ बोल तो इसकी आवाज में सब कुछ खो जाता है। यदि चार लोग भी एक साथ ताशा बजाने लगे तो दो किलमीटर तक तो आवाज जरूर गूँज जायेगी।
ताशा वाले पहुँच गये कलकत्ता
हाँ, तो महाराज ने बिट्ठो गाँव खबर भिजबायी कि ताशा बजानेवालों का एक दल कलकत्ता भेजिए। सरकार का आदेश था तो भला देर क्यों हो!। चुने हुए कुछ ताशा बजाने वाले कलकत्ता पहुँचे। महाराज के आवास पर ठहरे।कहते हैं कि जाड़े का मौसम था। जाड़े में ताशा को गरम किया जाता है, तब वह जोरों से बजता है, नहीं तो ‘मेहाएलʼ (moisturized) होता है तो आबाज फुस्स हो जाती है। बजाने वालों ने ताशा को इसे सेंकने में अपनी पूरी कला दिखायी तथा ठीक जिस समय गबैयाजी का राग-तान शुरू हुआ, उसी समय महाराज के बंगले की छत पर ताशा तड़तड़ना शुरू हुआ।
दो किलोमीटर तक खलबली मच गयी। कई अंगरेज अधिकारी के भी घर थे। वे जज साहब भी उसी आसपास रहते थे, जिन्होंने गबैयाजी के पक्ष में फैसला दिया था। सबलोग अपने-अपने घर से बाहर निकल पड़े। अनुमान है कि वे ऐसे ही निकल पड़े होंगे, जैसे भूकम्प होने पर लोग मैदान की ओर भागते हैं। पता लगाना शुरू किया कि कहाँ से आबाज आ रही है; फिर महाराज के घर पर इसे बंद कराने के लिए आदेश आने लगे; कुछ ने मनुहार की; तो कुछ ने प्रार्थना का संदेश भिजबाया।
महाराज ने कहा कि हम अपने घर पर कुछ भी करें, तो दूसरे को भला उससे क्या मतलब? यह देखिए कोर्ट का फैसला!
कहा जाता है कि वे जज साहब खुद इनके पास आये। हो सकता है कि इस बात में कुछ बढ़ा-चढाकर कहा जा रहा हो! बिट्ठो गाँव के स्रोत से मेरे पास तक यह कहानी आयी है, तो कुछ तो काव्यात्मकता होगी ही। आजकल जिसे ‘नमक-मिर्च लगानाʼ कहते हैं, उसे शिष्ट शब्दों में काव्यात्मकता कहते हैं, अतिशयोक्ति कहते हैं, अतिरंजना कहते हैं, जो एक अलंकार है।
जो हो, जज साहब खुद आये हों अथवा उनके कोई आदमी आया हो, उन्होंने मनुहार किया- अभी बंद कराइए महाराज! कल इस पर फैसला करते हैं।
आखिरकार ताशा बंद हुआ; सबने चैन पायी। दूसरे दिन जज साहब ने खुद अपना फैसला बदला और लिखा कि कोई व्यक्ति तभी तक अपने घर में मनमाना काम कर सकता है कि तक कि उस काम से पड़ोसी को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
महाराज यही तो चाहते थे। अगले ही दिन बिट्ठो के ताशा वालों को इनाम देकर गाँव भेज दिया। इधर उस समय के देश की राजधानी कलकत्ता में इस बात की चर्चा चलने लगी। सबको यह बात पसंद आयी और तब से कानून मे ही सुधार कर लिया गया जो आज न्यूसेंस लॉ के रूप में हम देखते हैं।
कहानी संख्या 2- हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है!
बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहते थे। राजा होते हुए भी कभी-कभार पंडित वेश में घूमने निकल जाते थे। आखिर थे तो ब्राह्मण पंडित घराने के ही न! सो कलकत्ता की गलियों में सैर करने निकल जाते थे। बस, साथ में एक मैनेजर टाइप का कोई आदमी वैसे ही धोती-कुरता में रहता होगा!
एक दिन इसी रूप में एक गहने की दुकान पर पहुँच गये। दुकानदार से हीरे की एक अंगूठी दिखाने को कहा। दुकानदार को विश्वास नहीं हुआ कि यह अदना-सा आदमी कुछ खरीदेगा भी; नाहक परेशान करेगा। दुकानदार ने मुँह बिजुकाकर हँस दिया। बोला तो कुछ भी नहीं, पर भाव था कि – ‘अबे! चल फूट यहाँ से! बड़ा आया है गहना देखने वाला। नाहक परेशान न कर।ʼ
फिर भी महाराज ने आग्रह किया तो उसने अनमने ढंगे से एक अंगूठी दिखाई। ये देख ही रहे थे कि उसने हाथ से झपट लिया और कहा कि क्या देख रहे हो, मोशाय! तुमि की देखछो! आपनार शक्ति देखून!
महाराज हँस पड़े। बोले कि आपकी दुकान की कितनी कीमत है- आपनार पूरो दूकानेर मूल्य कत?
दुकानदार ने मजाक में ही कुछ बोल दिया। ये तो कुछ लेने वाला है नहीं, तब तो कुछ भी बोल दो, क्या फर्क पड़ता है! फिर भी उसने दो-तीन गुना बढ़ाकर तो जरूर कहा होगा।
महाराज लौट गये और उसी मैनेजर को सरकारी वेश में भेजा- पूरे रुपये लेकर। उसने दुकानदार को थैली थमा दी और उसे दुकान से खींचकर बाहर कर दुकान में ताला जड़ दिया। इसके बाद की कोई कहानी कहने लायक नहीं है। दुकानदार दौड़ा आया महाराज के पास। माफी माँगी। महाराज थे तो बड़े दयालु वे भला किसी की पेट पर लात क्यों मारते। उन्होंने माफ कर दिया पर हिदायत दी कि आइन्दा किसी का वेश देखकर उसका मजाक मत उड़ाया करो। हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है।

विजयादशमी पर खाएं पारम्परिक व्यंजन

जलेबी
सामग्री : 1/2 कप मैदा, 1 चम्मच कॉर्न फ्लोर/कॉर्न स्टार्च या अरारोट पाउडर, 1/4 कप दही, पीला रंग पाने के लिए 1 चुटकी  पाउडर, 1/4 कप पानी, 1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर। चाशनी हेतु सामग्री : 1/2 कप शकर, 1/4 कप पानी, 1 चम्मच नींबू का रस, कुछेक केसर के लच्छे, चुटकीभर इलायची पाउडर।
विधि – लाजवाब जलेबी बनाने के लिए सबसे पहले एक बाउल में मैदा छान लें। फिर उसमें 1 चम्मच अरारोट, 1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर, चुटकीभर हल्दी पाउडर और 1/4 कप दही डाल दें। अब आवश्‍यकतानुसार पानी डालें और इडली के घोल से थोड़ा गाढ़ा घोल तैयार कर लें। फिर इस घोल को 1 ढक्कन से 24 घंटे के लिए कमरे के तापमान पर खमीर उठाने के लिए ढंक कर रख दें। अब 1 पतीले में शकर, पानी और केसर डालकर धीमी आंच पर पकने के लिए रख दें। जब 1 तार की चाशनी बन हो जाए तो उसमें नींबू का रस और इलायची पाउडर डालें। लीजिए आपकी चाशनी तैयार है। फिर जलेबी बनाने से पूर्व घोल को 1 चम्मच से अच्छी तरह से फैंट लें। और 1 जिपलॉक बेग या कपड़े में बीचोंबीच छोटासा होल करके घोल उसमें भर लें। एक कढ़ाई में मध्यम आंच पर घी और थोड़ासा तेल मिलाकर गरम करके जिपलॉक बैग या कपड़े के घोल को दबाते हुए गोल-गोल घुमाते हुए जलेबी बना लें और उन्हें हल्का सुनहरी तथा क्रंची होने तक तल लें। अब तैयार जलेबी को गर्म चाशनी में डुबाएं और थोड़ी देर उसी में रहने दें। जब जलेबी में चाशनी भर जाएं, तब उसे एक परात निकाल लें और गरमा गरम लाजवाब जलेबी परोसें।
आलू कचोरी
सामग्री –  3 कप बारीक सूजी, 1 कप मैदा, 2 बड़ा चम्मच तेल, चुटकीभर मीठा पीला रंग, दूध अंदाज से, 1/2 चम्मच नमक, तलने के लिए तेल कवर बनाने हेतु लगने वाली सामग्री।
विधि – भरावन हेतु 250 ग्राम उबले व मैश किए हुए आलू, 2 छोटे चम्मच दरदरी सौंफ, 2 हरी मिर्च कद्दूकस की हुई, लाल मिर्च पाउडर, अमचूर पाउडर, चाट मसाला, अदरक 1 टुकड़ा कद्दूकस, नमक स्वादानुसार। इसे बनाने के लिए सबसे पहले सूजी और मैदा छानकर उसमें नमक, मीठा रंग व तेल मिलाकर दूध की सहायता से सख्त गूंथ लें। तत्पश्चात आलू में सभी मसाले मिलाएं और मिश्रण को एकसार कर लें। अब गूंथे हुए आटे की छोटी-छोटी लोई बनाकर उसे बेले और आलू मसाला भरकर सभी कचोरियां तैयार कर लें। एक कढ़ाई में तेल गर्म करके धीमी आंच पर सुनहरी और कुरकुरी होने तक कचोरियों को तल लें। अब गरमा-गरम तथा कुरकुरी आलू की कचोरी को चटनी तथा सेंव के साथ पेश करें।

देश भर में मनाए जाने वाले प्रख्यात दशहरा उत्सव

दशहरा भारत के बड़े त्योहारों में से एक है । दशहरे के दिन अधिकतर जगहों पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन, कुछ स्थान ऐसे हैं, जो इस पर्व की भव्यता व आकर्षण के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं –
मैसूर में होता है राज्य त्योहार का आयोजन – मैसूर में इस पर्व को स्टेट फेस्टिवल यानी राज्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। दशहरे के दिन मैसूर का राज दरबार सभी लोगों के लिए खोल दिया जाता है। नृत्य, संगीत और प्रदर्शनी के साथ दस दिनों तक यहां दशहरा मेला लगता है। दसवें दिन जम्बू की सवारी नामक भव्य जुलूस निकाला जाता है। 21 तोपों की सलामी के साथ महल से हाथियों के जुलूस की शुरुआत होती है। इस जुलूस का नेतृत्व सजे-धजे हाथी करते हैं। इसमें से एक हाथी पर 750 किलो सोने का हौदा लगा होता है, जिस पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा रखी होती है। इस जुलूस में ड्रम बजानेवाले, विशाल कठपुतलियां, एनसीसी कैडेट स्काउट और गाइड, लोक नर्तक और संगीतज्ञ और झांकी शामिल होती है। मैसूर का दशहरा देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं।
बस्तर में 75 दिनों तक चलता है यह पर्व – छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है। बस्तर के दशहरे का संबंध रावण वध से नहीं, बल्कि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से जुड़ा है। यहां दशहरे के पर्व में मां दंतेश्वरी का रथ खींचा जाता है। बड़े पैमानै पर आदिवासी इस आयोजन में शामिल होते हैं। प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस को इस पर्व की पहली रस्म के तौर पर पाट जात्रा का विधान पूरा किया जाता है। पाट जात्रा अनुष्ठान के अंतर्गत स्थानीय निवासियों द्वारा जंगल से लकड़ियां एकत्रित की जाती हैं जिसका उपयोग विशालकाय रथ बनाने में होता है। बस्तर के तहसीलदार द्वारा समस्त ग्रामों के देवी देवताओं को दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है जिसमें 6166 ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है कुल्लू का दशहरा – हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है, उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव की रौनक बढ़नी शुरू होती है। इस पर्व की शुरुआत मनाली के हिडिंबा मंदिर की आराधना से होती है, फिर पूरे कुल्लू में रथ यात्रा आयोजित की जाती है। रथ यात्रा में रघुनाथ, सीता और हिडिंबा मां की प्रतिमाओं को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस रथ को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं और छह दिनों तक रथ को यहां रोक कर रखा जाता है। उत्सव के 7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है। सात दिनों तक चलनेवाले इस पर्व में नाच-गाने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
कृष्णा नदी में स्नान का है विशेष महत्व – आंध्र प्रदेश, विजयवाड़ा में कृष्णा नदी के किनारे बने श्री कनका दुर्गा मंदिर से दशहरा के आयोजन की शुरूआत होती है। यहां कनक दुर्गा देवी को दस दिनों तक अलग-अलग अवतारों में सजाया जाता है। वहीं विजयवाड़ा कनक दुर्गा मंदिर की भी खास आभा देखते ही बनती है। यहां दशहरा के समय कई तरह की पूजा होती है, जिसमें सरस्वती पूजा की खास मान्यता है। इस पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कृष्णा नदी में स्नान करते हैं।
कोटा में लगता है दर्शकों का तांता – राजस्थान के कोटा शहर मे भी दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कोटा में मेले का आयोजन महाराव भीमसिंह द्वितीय ने किया था। तब से यह परंपरा आज तक निभायी जा रही है। इस दिन यहां पर मेले का आयोजन होता है। भजन कीर्तन के साथ-साथ कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है. इसलिए यह मेला प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है।
(साभार – प्रभात खबर)

दुनियाभर में हर तीसरे बच्चे में मायोपिया का खतरा

आंखों की बीमारियां हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर रही हैं। बच्चों में भी ये खतरा बढ़ता जा रहा है। आपने भी अपने आस-पास कई बच्चों की आंखों पर नजर का चश्मा लगा देखा होगा। आंखों की रोशनी कमजोर होने की दिक्कत क्वालिटी ऑफ लाइफ को भी प्रभावित करती है।
बच्चों में आंखों की एक बढ़ती बीमारी को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अलर्ट किया है। वैश्विक स्तर पर किए गए एक विश्लेषण से पता चलता है कि बच्चों में दृष्टि से संबंधित समस्याओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। हर तीन में से एक बच्चा निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) से पीड़ित पाया गया है।
आंखों की इस बीमारी में दूर की चीजों को देखने में कठिनाई होने लगती है। विशेषज्ञों की चिंता है कि जिस तरह से साल-दर-साल ये बीमारी बढ़ती जा रही है ऐसे में साल 2050 तक लाखों और बच्चे इसके शिकार हो सकते हैं।
एशियाई देशों में खतरा अधिक – ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में बच्चों में मायोपिया की बढ़ती समस्या को लेकर अलर्ट किया गया है। 50 देशों में पांच मिलियन (50 लाख) से अधिक बच्चों और किशोरों पर किए गए शोध में पाया गया है कि एशियाई देशों में इसका जोखिम सबसे अधिक देखा जा रहा है। जापान में 85 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 73 प्रतिशत बच्चे निकट दृष्टि दोष से ग्रस्त हैं, जबकि चीन और रूस में 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे इससे प्रभावित हैं। बच्चों में बढ़ रहे हैं मायोपिया के मामले – पैराग्वे और युगांडा में मायोपिया का स्तर सबसे कम था, जहां लगभग 1 प्रतिशत बच्चों में ये दिक्कत पाई गई है। यूके, आयरलैंड और यूएस में यह लगभग 15 प्रतिशत है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड महामारी के बाद इस समस्या में और तेजी से वृद्धि हुई है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मायोपिया आमतौर पर स्कूल के वर्षों के दौरान शुरू होता है और लगभग 20 वर्ष की आयु तक इसके लक्षण काफी बिगड़ सकते हैं। कई कारण हैं जो इस समस्या का खतरा बढ़ाते जा रहे हैं। अपने शुरुआती वर्षों में जिन बच्चों का स्क्रीन पर अधिक समय बीतता है उनमें इस बीमारी का खतरा अधिक हो सकता है।
स्मार्ट डिवाइस बढ़ा रहे हैं खतरा – इससे पहले ‘द लैंसेट डिजिटल हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया था कि स्क्रीन टाइम ने बच्चों और युवाओं में मायोपिया के जोखिम को पहले की तुलना में काफी बढ़ा दिया है। स्मार्ट डिवाइस की स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताना मायोपिया के खतरे को 30 फीसदी तक बढ़ा देता है। इसके साथ ही कंप्यूटर के अत्यधिक उपयोग के कारण यह जोखिम बढ़कर लगभग 80 प्रतिशत हो गया है।
नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) से संबंधित समस्या है, जिसमें रोगी को अपने निकट की वस्तुएं तो स्पष्ट रूप से देखती हैं, लेकिन दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं। इसमें आंख का आकार बदल जाता है। सामान्यतौर पर आंख की सुरक्षात्मक बाहरी परत कॉर्निया के बड़े हो जाने के कारण ऐसी समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति में आंख में प्रवेश करने वाला प्रकाश ठीक से फोकस नहीं कर पाता है।

मां दुर्गा का सबसे शक्तिशाली पाठ है दुर्गा सप्तशती

मां दुर्गा की आराधना कर रहे हैं तो आपको कई नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है इस कड़ी में आज हम आपको दुर्गा सप्तशती के पाठ के बारे में बता रहे है। यह मां दुर्गा का सबसे शक्तिशाली पाठ में से एक होता है इसे पढ़ना आसान नहीं होता है क्योंकि इस कई पाठ होते हैं जो हर कोई आसानी से पूरा नहीं करता है। यहां पर दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर आप करने वाली हैं तो हम आपको आसान तरीका बताते हैं जिससे आप इस खास पाठ को पढ़ पाएंगे। आपको मात्र उन 7 श्लोकों को पढ़ना जिनमें दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का सार छुपा हुआ है। इन श्लोकों के जाप से इस संपूर्ण पाठ को पढ़ने जितना ही फल मिलता है और अनेकों लाभ भी पहुंचते हैं।
इन 7 श्लोकों में समाया हैं पाठ का पूरा सार – अगर आप प्रभावशाली पाठ में से एक दुर्गा सप्तशती का पाठ पूरा करना चाहते हैं तो, इन 7 श्लोकों को आसानी से पढ़ सकते है। इन श्लोकों के जाप से इस संपूर्ण पाठ को पढ़ने जितना ही फल मिलता है और अनेकों लाभ भी पहुंचते हैं।
1- ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।1।।
2- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।2।।
3- सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते॥3॥
4- शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥4॥
5-सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते॥5॥
6- रोगानशेषानपंहसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति॥6॥
7-सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम्॥7॥
जानिए 7 श्लोकों को पढ़ने के फायदे
-यहां पर दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां हल दूर हो जाएगा।
-जीवन में आ रही कठिनाईयों को दूर करने की शक्ति इस पाठ से मिलती है।
-महिलाओं को इस सप्तशती का पाठ करने से जीवन में सफलता (जीवन में सफलता पाने के वास्तु टिप्स) का उच्च पद मिलता है।
-इन श्लोकों का पाठ करने से संतान, वैवाहिक सुख और सामाजिक प्रतिष्ठा में मदद मिलती है।
कहा जाता है कि, इन सातों श्लोकों में भगवान शिव (भगवान शिव की विशेष स्तुति) ने माता पार्वती के रूप का वर्णन और उनके अवतारों के बारे में बताया है। यह 7 श्लोक दुर्गासप्तश्लोकी के हैं। यानी कि सात श्लोकों से बना दुर्गासप्तशती पाठ का छोटा भाग। इन श्लोकों में मां दुर्गा के दिव्य तेज, उनके सौंदर्य और उनके साहस का संपूर्ण वर्णन मिलता है।

शुभजिता दुर्गोत्सव 2024 : महानगर में सजने लगे मंडप

दुर्गापूजा आरम्भ हो गयी है और दिखने लगे मनोहारी मंडप । शुभजिता दुर्गोत्सव के माध्यम से हम ऐसे ही मंडप आपके सामने ला रहे हैं जो कला के माध्यम से बहुत कुछ कह रहे हैं –
यंग बॉयज  क्लब की थीम एक टुकड़ो आकाश
सेंट्रल कोलकाता में सुप्रसिद्ध यंग बॉयज़ क्लब की ओर से 55वें वर्ष में “एक टुकड़ों आकाश” थीम रखी गयी है।“एक टुकड़ों आकाश” थीम कोलकाता में शहरी विकास से जुड़ी चिंताओं पर प्रकाश डालती है, खास तौर पर ऊंची इमारतों के निर्माण पर, जिन्होंने शहर के क्षितिज को बदल दिया है और इसकी प्राकृतिक सुंदरता को धुंधला कर दिया है। जबकि इस विकास ने बढ़ती आबादी को रहने का आशियाना प्रदान किया है, इसने खुली जगहों के साथ प्राकृतिक प्रकाश को भी कम किया है, इसके कारण नीला आकाश अब कंक्रीट की संरचनाओं के पीछे छिपता जा रहा है। यंग बॉयज क्लब के मुख्य आयोजक राकेश सिंह ने कहा, इस वर्ष हम अपने आयोजन का 55वां वर्ष मना रहे हैं, हम इस आयोजन में न केवल अपनी परंपराओं का सम्मान कर रहे हैं, बल्कि शहरीकरण के बीच हमारे शहर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में  ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता पर भी प्रकाश डाल रहे हैं। ‘एक टुकड़ो आकाश’ हमें उस सुंदरता की याद दिलाता है, जो हम निरंतर विकास के कारण खो रहे हैं। हम सभी को उन जगहों पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करता है जहाँ हम रहते हैं। इस अवसर पर यंग बॉयज़ क्लब के युवा अध्यक्ष विक्रांत सिंह ने कहा, हमारी थीम युवा पीढ़ी को साथ गहराई के साथ जोड़ रही है, जो हमारे पर्यावरण में हो रहे बदलावों के बारे में तेजी से जागरूक हो रहे हैं।  यंग बॉयज़ क्लब के सह-आयोजक विनोद सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमें उम्मीद है कि ‘एक टुकड़ो आकाश’ हमारे पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना समाज के हर वर्ग को के साथ हर पीढ़ी को प्रेरित करेगा और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
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भवानीपुर 75 पल्ली द्वारा हीरक  की “तोबुओ तोमार काचे आमार हृदय” 
भवानीपुर 75 पल्ली दुर्गापूजा कमेटी की ओर से इस वर्ष अपने हीरक जयंती के आयोजन में “तोबुओ तोमार काचे आमार हृदय” नामक एक जीवंत थीम पर मंडप का निर्माण किया है। यह पूजा कमेटी दक्षिण कोलकाता की सबसे लोकप्रिय पूजा कमेटियों में से एक है। सोमवार को पूजा कमेटी द्वारा बने भव्य मंडप का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर समाज की कई अन्य विशिष्ठ हस्तियां इसमें शामिल थे। इस मंडप में कोलकाता की स्थायी भावना और विकसित होती संस्कृति से जुड़े दृश्यों को दर्शाया गया है। प्रसिद्ध कलाकार शिवशंकर दास द्वारा तैयार की गई थीम पर आधारित इस उत्सव में एक भव्य मंडप होगा, जिसमे लोहे और एस्बेस्टस शीट जैसी पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का उपयोग करते हुए एक देहाती सौंदर्यबोध को दर्शाया गया है। इस मंडप की कलात्मक दृष्टि को विश्व प्रसिद्ध कलाकार सनातन डिंडा द्वारा जटिल मूर्ति डिजाइन द्वारा किया गया है, जो परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण सुनिश्चित करता है। कवि जीबनानंद दास के शब्दों में, “तोबुओ तोमार काचे आमार हृदय” (“फिर भी मेरा दिल तुम्हारे साथ है”) कोलकाता के निवासियों की भावनाओं के साथ प्रतिध्वनित है, जो अपने जीवंत शहर में खुद की पहचान स्थापित कर पाते हैं। मीडिया से बात करते हुए, क्लब के सचिव सुबीर दास ने कहा कि, इस वर्ष भवानीपुर 75 पल्ली दुर्गापूजा कमेटी 60वीं वर्षगांठ मना रहा हैं। यह पल हमे हमारे राज्य की उस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाती है, जिसने हमेशा हमे आपस में एक दूसरे को एक समुदाय में बांधकर रखना और रहना सिखाया है।
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हाजरा पार्क  दुर्गोत्सव की थीम शुद्धिकरण
हाजरा पार्क दुर्गापूजा कमेटी द्वारा अपने 82वें वर्ष में “शुद्धि” थीम पर मंडप का निर्माण किया गया है, जिसका अर्थ है शुद्धिकरण। इस आकर्षक मंडप का उद्घाटन रविवार को सुब्रत बख्शी (सांसद), शोभनदेब चट्टोपाध्याय (कृषि मंत्री, पश्चिम बंगाल सरकार) एवं सायन देब चटर्जी हाजरा पार्क दुर्गोत्सव समिति के संयुक्त सचिव ने संयुक्त रूप से किया। इस मौके पर समाज के कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। पिछले कुछ वर्षों में यह पूजा एक छोटे से आकर से बढ़कर भव्य आयोजन बन गई है, जिसमें पूरे राज्य से श्रद्धालु आते हैं। मुख्य रूप से दलित समुदाय से आने वाले आयोजक इस आयोजन में सामाजिक न्याय और समानता के महत्व पर जोर देते रहते हैं। इस वर्ष पूजा का विषय “शुद्धि” है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। यह याद दिलाता है कि समाज में बहुत प्रगति हुई है, फिर भी आपसी समानता के लिए संघर्ष अब भी जारी है। यह पूजा उन लोगों के लिए प्रेरणा का काम करेगी, जो अधिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह पूजा समानता और मानवाधिकारों के संघर्ष में सबसे आगे रही है। मुख्य रूप से दलित समुदाय द्वारा आयोजित यह पूजा सामूहिक कार्रवाई की शक्ति को प्रदर्शित करती है। यह पूजा कोलकाता की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। पूजा की उत्पत्ति 1940 के दशक के सामाजिक-राजनीतिक संघर्षों में गहराई से निहित है। हाजरा पार्क दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है। यह मानवीय भावना और आशा की शक्ति का एक प्रमाण है। हाजरा पार्क दुर्गापूजा के मंडप का थीम दर्शकों के लिए आशा की किरण पेश करती है। हाजरा पार्क दुर्गोत्सव समिति के संयुक्त सचिव सायन देब चटर्जी ने कहा, इस वर्ष की थीम ‘शुद्धि’ हमारे समाज को भेदभाव और असमानता से मुक्त करने का संदेश देती है।
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मोहम्मद अली पार्क में यूथ एसोसिएशन  की थीम “व्हाइट हाउस” 
मोहम्मद अली पार्क में यूथ एसोसिएशन 56वें वर्ष में निर्मित प्रतिष्ठित व्हाइट हाउस, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास और कार्यस्थल से प्रेरित थीम पर निर्मित मंडप का निर्माण किया गया है। इस आकर्षक और भव्य पूजा मंडप का उद्घाटन रविवार को चतुर्थी के दिन लोकसभा सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने किया। इस वर्ष दुर्गा प्रतिमा प्रसिद्ध कलाकार कुश बेरा ने बनाया है जिसमे जल संरक्षण के महत्वपूर्ण विषय को उजागर किया गया है। इस मंडप की मूर्ति बंगाल में बढ़ते जल संकट के मद्देनजर जल को जीवन के रूप में दर्शाकर जल प्रदूषण और बर्बादी के खिलाफ जागरूकता और कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है। मोहम्मद अली पार्क यूथ एसोसिएशन के महासचिव सुरेंद्र कुमार शर्मा ने कहा, मेदिनीपुर के प्रतिभाशाली कारीगर गोपाल दास द्वारा तैयार की गई कलात्मक दृष्टि ने मंडप में बंगाली हस्तशिल्प की प्रतिभा को मंडप में बिखेरा गया है, जिसमें जटिल जूट के काम और हस्तनिर्मित सजावट शामिल हैं। इस साल की दुर्गा मां की प्रतिमा को प्रसिद्ध कलाकार कुश बेरा ने बेहतरीन कलात्मक तरीके से गढ़ा है। मूर्ति में पानी को एक महत्वपूर्ण जीवन स्रोत के रूप में दर्शाया गया है, जो जल प्रदूषण और इसी बर्बादी के खिलाफ जागरूकता और कार्रवाई के महत्वपूर्ण महत्व पर जोर देता है। यह पूजा कमेटी इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर जनता को जागरूक करने के लिए समर्पित है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह उत्सव भविष्य की पीढ़ियों के लिए सार्थक संदेश पहुंचाने में सफल हो सके। हर साल हम परंपरा को समकालीन प्रासंगिकता के साथ मिलाने का प्रयास करते हैं। प्रसिद्ध कलाकार कुश बेरा द्वारा कुशलता से बनाई गई इस वर्ष की मूर्ति, जल संरक्षण पर केंद्रित एक शक्तिशाली संदेश लेकर आएगी, जो बंगाल के बढ़ते जल संकट को दूर करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालेगी।
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एनआईपी एनजीओ द्वारा नेत्रहीनों के लिए ब्रेल डिस्प्ले स्टैंड 
एनआईपी एनजीओ- दिव्यांगों के लिए शिक्षा और सांस्कृतिक केंद्र ने इस दुर्गापूजा में फोरम फॉर दुर्गोत्सव, सैनी इंटरनेशनल स्कूल और रोटरी क्लब ऑफ डिस्ट्रिक्ट 3291 के सहयोग से उन पूजा समितियों के लिए पुरस्कार आयोजित करने का फैसला किया है, जो अपने पंडालों को वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए अनुकूल बनाने का प्रयास किए हैं, इस प्रतियोगिता में 250 दुर्गापूजा कमेटियां भाग लें रही है। उन्होंने इस दौरान तीन पूजा पंडालों में नेत्रहीनों के लिए ब्रेल डिस्प्ले स्टैंड को लॉन्च किया है। इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियां मौजूद रहीं, जिसमे विश्वजीत चक्रवर्ती (अभिनेता), बॉबी चक्रवर्ती (टॉलीवुड अभिनेता), पार्थ घोष (अध्यक्ष, फोरम फॉर दुर्गोत्सव), तपन पटनायक सीईओ (सैनी ग्रुप), सिबब्रत राय (भूतपूर्व अध्यक्ष, रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3291), आशिफ शाह (भूतपूर्व अध्यक्ष, रोटरी क्लब ऑफ बल्लीगंज) के साथ एनआईपी एनजीओ के सचिव देबज्योति रॉय के साथ समाज की  कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। एनआईपी एनजीओ के सचिव देबज्योति रॉय ने कहा, समाज में समावेशी माहौल बनाना सिर्फ़ एक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हमारे लिए सामूहिक मानवता का उत्सव है। ब्रेल डिस्प्ले स्टैंड की शुरुआत के साथ हम यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक सार्थक कदम उठा रहे हैं कि, हर कोई, चाहे उसकी क्षमता कुछ भी हो, वे दुर्गा पूजा के आनंद और भावना में खुद को डुबो सके। यह पहल इस बात का प्रमाण है कि, जब हम सहानुभूति और एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एक साथ आगे आते हैं, तो हम क्या-क्या हासिल कर सकते हैं। कार्यक्रम के बारे में बोलते हुए रोटरी क्लब ऑफ बल्लीगंज के भूतपूर्व अध्यक्ष आशिफ शाह ने कहा, जैसा कि हम इस त्यौहारी सीज़न की शुरुआत कर रहे हैं, इसमें हम सभी को यह याद रखना ज़रूरी है कि, एक सच्चे उत्सव की सफलता सबको साथ लेकर चलने में हीं है। ब्रेल डिस्प्ले स्टैंड यह सुनिश्चित करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि, हर कोई दुर्गा पूजा के आनंद में भाग ले सके। हम सब मिलकर एक ऐसा माहौल बना सकते हैं, जहाँ हर व्यक्ति, चाहे उसकी योग्यताएँ कुछ भी हों, खुद को मूल्यवान और सम्मानित महसूस करे। इस अवसर पर सैनी ग्रुप के सीईओ तपन पटनायक ने कहा, दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्यौहार है। पश्चिम बंगाल के लोग इस त्योहार का बहुत धूमधाम से आनंद लेते हैं। लेकिन इनमें कुछ लोग समाज के दूसरे तबके को भूल जाते हैं, जिनमे दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिक भी आते हैं। उन लोगों को सरलता से पंडालों में पहुँच के लिए पूजा पंडालों में कुछ व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए। हम पूजा समितियों से अनुरोध करते हैं कि वे इस मिशन में पूरे दिल से हमारा साथ दें।

दुर्गा के देश में खुद को तलाशती दुर्गा

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
दुर्गा के देश में दुर्गा खुद को ही खोजने निकली है। हर साल नवरात्रि आती है..साल में दो बार आती है। इस दौरान हर स्त्री में दुर्गा दिखती है। लोग देवी को पूजते हैं..अलौकिक…चमत्कार से भरी देवी। दस भुजाओं और दस शस्त्रों वाली देवी जिसे बल देवताओं से मिला। देवताओं ने क्या अपनी इच्छा से देवी को सशक्त बनाया या फिर अपनी रक्षा के लिए अपने – अस्त्र -शस्त्र देवी को दिए और देवी ने उनकी रक्षा करते हुए महिषासुर का वध किया । महिषासुर को अहंकार था अपने पौरुष का…उसे लगता था कि कोई स्त्री उसका क्या बिगाड़ लेगी इसलिए उसने जब वरदान मांगा तो यही मांगा कि उसका वध कोई स्त्री ही करे। महिषासुर को लगा था कि स्त्री में इतनी शक्ति ही नहीं होती कि वह उस जैसे बलशाली असुर के प्राण ले सके। वह स्त्रियों को अपनी भोग-लिप्सा का साधन मात्र समझता था। उसे स्त्री नहीं बल्कि सुन्दर स्त्री चाहिए थी..वह भूल गया था कि स्त्री में सौन्दर्य ही नहीं, बुद्धि, तेज, साहस, ममता, बल भी होते हैं । उसे याद ही नहीं रहा कि स्त्री सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि अपने आप में पूरी सृष्टि है। संसार का संचालन क्या पुरुष अकेले कर सकता है भला? महिषासुर नहीं समझा यह बात…स्त्री उसके लिए पैर की जूती मात्र थी। उसे नहीं पता था कि शक्ति शिव का बल हैं..लक्ष्मी वैकुण्ठ की समृद्धि और सरस्वती हैं ब्रह्मलोक का ज्ञान । वेदों की अनगिनत ऋचाएं स्त्रियों ने ही रची हैं मगर ऋषिकाएं ही नहीं मिलतीं। अपने दम्भ में पुरुष इतना फूल गया कि वह स्त्री के हक के फैसले भी खुद ही करने लगा । वह यह तय करने लगा कि स्त्री क्या खाएगी, स्त्री क्या पहनेगी..स्त्री क्या करेगी…किससे बात करेगी..कहां जाएगी..। उसने यह तक तय कर डाला कि अगर वह नहीं रहा तो स्त्री को जीने का अधिकार ही नहीं । वह स्त्री की कोख पर अधिकार जताने लगा..यहाँ तक कि उसे पता चलता कि स्त्री की कोख में स्त्री है तो वह उस स्त्री को मार देता । पुरुष ने अपना अधिकार समझ लिए कि स्त्री जिए तो उसके लिए जीए। उसने मान लिया कि दैहिक सुख के लिए वह किसी दूसरी स्त्री के पास जाता है तो यह न्यायसंगत है, उसकी प्रेरणा है.. मगर स्त्री के मन में यह आकांक्षा हो तो वह चरित्रहीन है । पुरुष तुम तो सहचर थे प्रकृति के, आखिर कैसे तुमने प्रकृति का नियंता समझ लिया। कैसी पीढ़ी तैयार की युगों से दम्भ के कारागार में बंदी एक स्वार्थी जीवन जी रही है। तुम उस शक्ति को बंदी बनाने की बात सोच लेते हो जिसने तुमको रचा, जिसमें असीम ब्रह्मांड छिपा है। तुम खुद को इतना महान समझने लगे कि तुम्हें आदि शक्ति की महत्ता तक का ध्यान ही नहीं रहा । जिस शक्ति को खुद शिव सम्मान देते हैं..तुमने उसे कमजोर समझ लिया । इस पृथ्वी पर आकर दुर्गा अपनी शक्ति को विखंडित होते देखती है और दुःख से भर उठती है । वह माता है और माता के समक्ष तुम उसकी बेटियों को प्रताड़ित करते हो, उसके अधिकारों का दमन करते हो और यह समझ लेते हो कि तुम्हारे पाखंड को शक्ति समझेंगी नहीं…तुम सच में मूर्ख है। देखती हूँ कि एक महिषासुर सबके भीतर बैठा है और सृष्टि की रक्षा के लिए हर एक असुर का वध कर देना ही दुर्गा का धर्म है । यही समय की मांग है क्योंकि सृष्टि के संचालन के लिए विश्वास का होना अनिवार्य है परन्तु पाप बढ़ता ही रहा तो वह विश्वास खंडित होगा..निराशा होगी । मनुष्य की चेतना नष्ट होगी इसलिए समय आ गया है कि वह महिषासुर का वध करे जो अपने दंभ में घूम रहा है।
हम सब उत्सव मना रहे हैं मगर देखा जाए तो उत्सव प्रतिवाद का माध्यम बन गया है। अभी भी जूनियर डॉक्टर सड़क पर हैं । आरजी कर का मामला सिर्फ एक अस्पताल का मामला भर नहीं है बल्कि स्त्री सुरक्षा के साथ समाज के मानवीय ढांचे की अस्मिता की रक्षा का प्रश्न है । यह शहर प्रतिवाद करना भूल गया था । यहां तक कि संदेशखाली की वीभत्स घटना के बावजूद लोगों की चेतना नहीं जागी । महिलाओं के प्रतिवाद को भी तमाशा बना दिया गया मगर आरजी कर की अभया ने जैसे मुर्दा दिलों में अग्नि को फिर से जला दिया है। अपनी बात करूं तो इतनी सुन्दर तरीके से बगैर किसी राजनीतिक प्रपंच के अहिंसक और सृजनात्मक प्रतिवाद याद रहते तो नहीं देखा । जूनियर डॉक्टरों के प्रतिवाद में मौलिकता अद्भभुत रही । एक बार सीपी को मेरुदंड तो दूसरी बार स्वास्थ्य भवन में मष्तिष्क प्रदान कर प्रशासन के मुंह पर जो करारा थप्पड़ मारा है, वह हमेशा याद किया जाएगा ।
उत्सव का आनंद पहले जैसा शायद नहीं भी रहे और इसका प्रभाव आर्थिक स्तर पर भी पड़ेगा, यह तय है। कांकुड़गाछी इलाके में श्री श्री सरस्वती और काली माता मंदिर परिषद द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा में आर.जी. कर पीड़िता के दर्द को दर्शाने वाली एक अनूठी मूर्ति का अनावरण किया गया है। इस मूर्ति का नाम ‘लज्जा’ रखा गया है, जिसमें देवी दुर्गा को अपने हाथों से चेहरा ढकते हुए दिखाया गया है, और उनके सामने एक महिला का शव रखा गया है।

पूजा समिति के प्रवक्ता ने बताया कि जब श्रद्धालु पंडाल में प्रवेश करेंगे, तो वे देखेंगे कि देवी अपने चेहरे को ढक रही हैं जबकि उनके सामने महिला का शव रखा हुआ है। देवी के साथ रहने वाला शेर भी महिला के शव के सामने सिर झुकाए शोक में बैठा है। मूर्ति के पास एक सफेद एप्रन और स्टेथोस्कोप रखा गया है, जो चिकित्सा पेशे का प्रतीक है। समिति के प्रवक्ता ने कहा, “यह हमारी ओर से उन महिलाओं पर हो रहे हमलों और हिंसा के खिलाफ विरोध की अभिव्यक्ति है, जो कामदुनी और हंसखाली से लेकर आरजी कर की हालिया त्रासदी तक की घटनाओं को दर्शाता है। यह घटना, जिसने पूरे देश की चेतना को हिला दिया है, के खिलाफ उठ रही आवाज़ें अब तक थमी नहीं हैं। हम चाहते हैं कि इस दुर्गा पूजा के माध्यम से हम अपनी पीड़ा और दुख को व्यक्त करें।”इसके बावजूद, पंडाल के अंत में देवी की पारंपरिक मूर्ति को बनाए रखा गया है। प्रवक्ता ने बताया, “हम ‘साबेकी’ (पारंपरिक) रूप से मां के लुक को नहीं बदलना चाहते थे। यह थीम इस साल समकालीन स्थिति के कारण जोड़ी गई है।” इस बीच, प्रसिद्ध संतोष मित्रा स्क्वायर पूजा पंडाल, जिसने पहले अपने लास वेगास की प्रतिकृति पर लेजर शो की योजना बनाई थी, ने आरजी कर की त्रासदी के मद्देनजर अपने थीम में बदलाव किया है। इस आयोजन के सचिव साजल घोष ने बताया, “अब हम गोलाकार सतह पर ‘आरजी कर के लिए न्याय’ और ‘अभया के लिए न्याय’ जैसे नारे और जलते हुए दीपों की छवियां प्रदर्शित करेंगे।” पिछले 40 वर्षों से, कोलकाता और बाहर के दुर्गा पूजा पंडालों ने अपने मंच पर सांस्कृतिक धरोहर, कला और सामाजिक मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण, मानव तस्करी और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को उजागर किया है।
आर जी कर कांड के विरोध में उत्सव का बहिष्कार करने की मांग बढ़ रही है, जिससे शहर के उत्सव के उत्साह पर असर पड़ रहा है। 9 अगस्त को राज्य द्वारा संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर की हत्या ने पूरे राज्य में गहरी भावनात्मक उथल-पुथल मचा दी है, क्योंकि दुर्गा पूजा का उत्साह शक्ति और सुरक्षा की देवी की पूजा करने के परेशान करने वाले विरोधाभास से फीका पड़ गया है, जबकि वास्तविक जीवन में महिलाओं को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है जबकि कलकत्ता इस त्रासदी से जूझ रहा है, शहर परंपरा और बदलाव के बीच एक चौराहे पर खड़ा है, शक्ति, सुरक्षा और न्याय का प्रतीक देवी दुर्गा की भक्ति और महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली दैनिक हिंसा और अन्याय की कठोर वास्तविकता के बीच फंसा हुआ है। “ऐसा प्रतीत होता है कि आरजी कर घटना और चल रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण इस साल की दुर्गा पूजा बहुत अधिक फीकी रहेगी। कई लोग पूजा में भाग ले सकते हैं, लेकिन उत्सव मनाने से बचना पसंद करते हैं। कई लोग पीड़िता और उसके परिवार से खुद को जोड़ सकते हैं, यही वजह है कि विरोध प्रदर्शन इतने सहज रूप से सामने आए हैं,” समाजशास्त्री प्रशांत रॉय ने बताया। इस घटना ने पूरे राज्य में, खासकर पूर्वी महानगर में, जहाँ लगभग 3,000 दुर्गा पूजा आयोजित की जाती हैं, भावनात्मक आक्रोश पैदा कर दिया।कई कलकत्तावासियों के लिए, इस साल की दुर्गा पूजा एक मात्र त्यौहार से न्याय के लिए चल रहे संघर्ष के प्रतीक में बदल गई है, जिससे देवी की पूजा करने के महत्व पर चिंतन होता है, जब वास्तविक जीवन में उनकी आत्मा का प्रतीक बनी महिलाएँ असुरक्षित रहती हैं। “शहर एक ऐसा त्यौहार कैसे मना सकता है जो दिव्य स्त्रीत्व का महिमामंडन करता है, जबकि वास्तविक जीवन में पीड़ित महिलाओं की ओर से आँखें मूंद लेता है? इस साल, दुर्गा पूजा न केवल एक उत्सव हो सकता है, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के बारे में व्यापक बातचीत का एक मंच भी हो सकता है। यह बातचीत लंबे समय से लंबित थी,” एक सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर ने कहा, जो विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं, लेकिन नाम नहीं बताना चाहते थे। दुर्गा पूजा से पहले के दिनों में, कोलकाता में आमतौर पर तैयारियों का माहौल रहता है – सड़कों पर पंडाल लगे होते हैं, रोशनी की जाती है और हवा में त्योहारी व्यंजनों की खुशबू फैली होती है – लेकिन इस साल, शहर में सन्नाटा पसरा हुआ है, और शहर भर में “हमें न्याय चाहिए” के नारे गूंज रहे हैं। दुर्गा पूजा न केवल बंगाल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक चालक भी है, जो 2019 की ब्रिटिश काउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 32,377 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न करता है, और 2024 में यह आंकड़ा बढ़ने की उम्मीद है, जिससे मंडप एवं मूर्ति निर्माता, ढाकी (पारंपरिक ढोल वादक), इलेक्ट्रीशियन और विक्रेताओं सहित हजारों आजीविका को महत्वपूर्ण समर्थन मिलेगा। “उत्सवों से दूर रहने के इस आह्वान के दो आयाम हैं। हालांकि शहरी और अर्ध-शहरी लोग इस आह्वान पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, लेकिन ग्रामीण लोगों के उत्सव में भाग लेने की संभावना है।सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने बताया, “लेकिन उत्सवों से दूर रहने के इस आह्वान का दुर्गा पूजा के दौरान अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की संभावना है – चाहे वह विभिन्न क्लबों के लिए विज्ञापन राजस्व हो या छोटे व्यापारी, खाद्य स्टॉल मालिक, स्ट्रीट फूड विक्रेता, ढोल बजाने वाले और सजावट करने वाले जो साल भर दुर्गा पूजा का इंतजार करते हैं।”लोकप्रिय बाजारों में पूजा से पहले की खरीदारी में तेजी से कमी आई है, जिससे वे विक्रेता जो अपनी वार्षिक आय के एक बड़े हिस्से के लिए दुर्गा पूजा पर निर्भर हैं, उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है। आरजी कर कांड के मिदनापुर, जयनगर जैसी जगहों में फिर से इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं और इसके साथ ही प्रतिवाद भी दिखा। मिदनापुर में महिलाओं ने ही आरोपित को पीटकर मार डाला। दुर्गा जाग रही है। दुर्गा के देश में दुर्गा खुद को तलाश रही है….माँ….अपनी संतानों के भीतर छिपी अपनी आभा को अभिव्यक्ति दो…यही कामना है