दीपावली हम हिन्दुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। हम में ज्यादातर लोग इस त्योहार का सालभर इंतजार करते हैं। यह लोगों के जीवन में आनंद और खुशियों का त्योहार है। देशभर में यह दिवाली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस त्योहार पर लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और खूब मिठाइयों का सेवन किया जाता है। तला-भुना, नमकीन, मीठा, मसालेदार चीजों का अधिक सेवन स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, दिवाली का त्योहार जिस समय पड़ता है, इस दौरान देश में प्रदूषण काफी अधिक होता है। त्योहार के दिन भी खूब बम-पटाखे फूटते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफी अधिक बढ़ सकता है। यह स्वास्थ्य के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप त्योहार के समय अगर अपने स्वास्थ्य की सही तरीके से देखभाल नहीं करते हैं, तो इससे आपके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिवाली पर सेहतमंद कैसे रह सकते हैं और स्वस्थ तरीके से किस तरह हम यह त्योहार मना सकते हैं। आपको बता दें कि कुछ सरल टिप्स को फॉलो और जरूरी बातों को ध्यान में रखकर आप आसानी से सेहतमंद तरीके से खुशियों का त्योहार मना सकते हैं। इस लेख में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
सीमित मात्रा में खाएं – भले ही दिवाली खुशियों, मिठाईयों और खाने-पीने का त्योहार है। लेकिन इस दौरान कोशिश करनी चाहिए, आप कुछ भी अधिक मात्रा में न खाएं। अपनी सामान्य डाइट पर ही रहें। ज्यादा मीठा और पकवान खाने से बचें। यह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
मधुमेह के मरीज मीठा खाने से बचें – जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है ऐसे लोगों को त्योहार पर भूलकर भी मिठाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही कम मात्रा में खाना चाहिए। अपनी दवाओं का भी खास ध्यान रखें।
अस्थमा के मरीज बरतें सावधानी – अस्थमा के मरीजों के लिए दीपावली का त्योहार और भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए क्योंकि प्रदूषण की वजह सांस लेने में परेशानी हो सकती है। कोशिश करें कि अपने घर के भीतर ही रहें। घर में एयर प्यूरीफायर का प्रयोग करें।
मास्क लगाकर रहें – त्योहार पर होने वाला प्रदूषण सिर्फ अस्थमा के मरीजों के लिए ही नहीं, सामान्य लोगों के लिए भी घातक हो सकता है। यह आंखों को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए मांस्क पहनें और आंखों पर चश्मा लगाकर रखें।
पौष्टिक आहार लें – अपने खानपान का खास ध्यान रखें। थोड़ा बहुत मीठा और पकवान भले ही खाएं, लेकिन अपने नियमित आहार को न छोड़ें। स्वस्थ और पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें। फल-सब्जियों का सेवन अधिक करें। साबुत अनाज खाएं, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर आहार लें।
भरपूर पानी पिएं – आपको दिनभर पानी जरूर पीना चाहिए। पानी स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। आपको हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि आप दिनभर खूब पानी पिएं। यह शरीर की आंतरिक रूप से साफ-सफाई करने में मदद करता है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है।
स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर मनाएं दिवाली
दिवाली पर अगर न मिल रही हो छुट्टी तो इस तरह मनाएं उत्सव
दिवाली साल भर का त्योहार होता है और भारत में पर्व व त्योहार लोग अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करते हैं। जो लोग घर से दूर किसी दूसरे शहर में नौकरी या पढ़ाई करते हैं, वो भी दिवाली की छुट्टी पर घर वापसी करते हैं और घरवालों के साथ ही ये त्योहार सेलिब्रेट करते हैं। वैसे तो दिवाली के मौके पर लगभग देशभर में छुट्टी होती है, लेकिन पुलिस और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के अलावा कई ऐसी कंपनियां या नौकरी हैं, जिसमें छुट्टी नहीं मिल पाती। वहीं एक या दो दिन की छुट्टी में दूसरे शहर स्थित अपने घर जा पाना कई लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है।
ऐसे लोग चाहकर भी दिवाली पर अपने घर, गांव व परिवार के साथ त्योहार नहीं मना पाते हैं। अगर आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं, जो किसी कारणवश दिवाली पर घर नहीं जा पा रहे हैं या त्योहार के दिन उन्हें दफ्तर जाकर काम करना पड़ रहा है तो उदास न हों। त्योहार का मौका है, ऐसे समय को भी खुलकर एंजॉय करें और कुछ मजेदार तरीकों से दफ्तर में दिवाली का पर्व मनाएं, ताकि परिवार की कमी को कम किया जा सके और दिवाली की रौनक को महसूस किया जा सके।
कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां 24*7 काम होता है। इसलिए जरूरी नहीं कि दिवाली पर हर शख्स को छुट्टी मिल सके। ऐसे में किसी ना किसी को तो अपनी छुट्टी के साथ समझौता करना ही पड़ता है। अगर इस बार आपको दिवाली पर दफ्तर जाना पड़ रहा है तो इन आसान टिप्स के साथ अपनी ऑफिस वाली दिवाली का आनंद उठा सकते हैं। जानिए, इन टिप्स के बारे में…
उत्सव के लिए पारंपरिक कपड़े पहनकर दफ्तर जाएं, ताकि और दिनों की तुलना में आपको अलग महसूस हो।
तैयार होकर गए हैं तो सेल्फी और फोटो तो बनती हैं। अपने सहकर्मियों के साथ तस्वीरें लें और दिवाली को यादगार बनाने की कोशिश करें।
टीम के सदस्यों के लिए मिठाइयां लेकर जाएं और सबके साथ मिलकर इस त्योहार को एंजॉय करें।
काम से समय निकालकर अपने घरवालों को और दोस्तों को कॉल या वीडियो कॉल करें और घरवाली दिवाली का भी हिस्सा बनें।
वक्त मिले तो दफ्तर को सजाएं, दीये जलाएं और रंगोली भी बना सकते हैं।
दफ्तर में हुई फेस्टिव डेकोरेशन के साथ अपनी तस्वीर लें और इन्हें अपने घरवालों के साथ शेयर करें।
सहकर्मियों के साथ कुछ गेम्स भी खेल सकते हैं, जिससे सभी का मन फ्रेश हो जाएगा और घर से दूर होने के बाद भी किसी को अकेलापन महसूस न हो।
– घरवालों और दोस्तों को ऑनलाइन दिवाली के गिफ्ट और मिठाइयां भेज सकते हैं।
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देश भर में मनाए जाने वाले प्रख्यात दशहरा उत्सव
दशहरा भारत के बड़े त्योहारों में से एक है । दशहरे के दिन अधिकतर जगहों पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन, कुछ स्थान ऐसे हैं, जो इस पर्व की भव्यता व आकर्षण के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं –
मैसूर में होता है राज्य त्योहार का आयोजन – मैसूर में इस पर्व को स्टेट फेस्टिवल यानी राज्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। दशहरे के दिन मैसूर का राज दरबार सभी लोगों के लिए खोल दिया जाता है। नृत्य, संगीत और प्रदर्शनी के साथ दस दिनों तक यहां दशहरा मेला लगता है। दसवें दिन जम्बू की सवारी नामक भव्य जुलूस निकाला जाता है। 21 तोपों की सलामी के साथ महल से हाथियों के जुलूस की शुरुआत होती है। इस जुलूस का नेतृत्व सजे-धजे हाथी करते हैं। इसमें से एक हाथी पर 750 किलो सोने का हौदा लगा होता है, जिस पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा रखी होती है। इस जुलूस में ड्रम बजानेवाले, विशाल कठपुतलियां, एनसीसी कैडेट स्काउट और गाइड, लोक नर्तक और संगीतज्ञ और झांकी शामिल होती है। मैसूर का दशहरा देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं।
बस्तर में 75 दिनों तक चलता है यह पर्व – छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है। बस्तर के दशहरे का संबंध रावण वध से नहीं, बल्कि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से जुड़ा है। यहां दशहरे के पर्व में मां दंतेश्वरी का रथ खींचा जाता है। बड़े पैमानै पर आदिवासी इस आयोजन में शामिल होते हैं। प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस को इस पर्व की पहली रस्म के तौर पर पाट जात्रा का विधान पूरा किया जाता है। पाट जात्रा अनुष्ठान के अंतर्गत स्थानीय निवासियों द्वारा जंगल से लकड़ियां एकत्रित की जाती हैं जिसका उपयोग विशालकाय रथ बनाने में होता है। बस्तर के तहसीलदार द्वारा समस्त ग्रामों के देवी देवताओं को दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है जिसमें 6166 ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है कुल्लू का दशहरा – हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है, उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव की रौनक बढ़नी शुरू होती है। इस पर्व की शुरुआत मनाली के हिडिंबा मंदिर की आराधना से होती है, फिर पूरे कुल्लू में रथ यात्रा आयोजित की जाती है। रथ यात्रा में रघुनाथ, सीता और हिडिंबा मां की प्रतिमाओं को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस रथ को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं और छह दिनों तक रथ को यहां रोक कर रखा जाता है। उत्सव के 7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है। सात दिनों तक चलनेवाले इस पर्व में नाच-गाने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
कृष्णा नदी में स्नान का है विशेष महत्व – आंध्र प्रदेश, विजयवाड़ा में कृष्णा नदी के किनारे बने श्री कनका दुर्गा मंदिर से दशहरा के आयोजन की शुरूआत होती है। यहां कनक दुर्गा देवी को दस दिनों तक अलग-अलग अवतारों में सजाया जाता है। वहीं विजयवाड़ा कनक दुर्गा मंदिर की भी खास आभा देखते ही बनती है। यहां दशहरा के समय कई तरह की पूजा होती है, जिसमें सरस्वती पूजा की खास मान्यता है। इस पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कृष्णा नदी में स्नान करते हैं।
कोटा में लगता है दर्शकों का तांता – राजस्थान के कोटा शहर मे भी दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कोटा में मेले का आयोजन महाराव भीमसिंह द्वितीय ने किया था। तब से यह परंपरा आज तक निभायी जा रही है। इस दिन यहां पर मेले का आयोजन होता है। भजन कीर्तन के साथ-साथ कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है. इसलिए यह मेला प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है।
(साभार – प्रभात खबर)
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दुर्गा के देश में खुद को तलाशती दुर्गा
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
दुर्गा के देश में दुर्गा खुद को ही खोजने निकली है। हर साल नवरात्रि आती है..साल में दो बार आती है। इस दौरान हर स्त्री में दुर्गा दिखती है। लोग देवी को पूजते हैं..अलौकिक…चमत्कार से भरी देवी। दस भुजाओं और दस शस्त्रों वाली देवी जिसे बल देवताओं से मिला। देवताओं ने क्या अपनी इच्छा से देवी को सशक्त बनाया या फिर अपनी रक्षा के लिए अपने – अस्त्र -शस्त्र देवी को दिए और देवी ने उनकी रक्षा करते हुए महिषासुर का वध किया । महिषासुर को अहंकार था अपने पौरुष का…उसे लगता था कि कोई स्त्री उसका क्या बिगाड़ लेगी इसलिए उसने जब वरदान मांगा तो यही मांगा कि उसका वध कोई स्त्री ही करे। महिषासुर को लगा था कि स्त्री में इतनी शक्ति ही नहीं होती कि वह उस जैसे बलशाली असुर के प्राण ले सके। वह स्त्रियों को अपनी भोग-लिप्सा का साधन मात्र समझता था। उसे स्त्री नहीं बल्कि सुन्दर स्त्री चाहिए थी..वह भूल गया था कि स्त्री में सौन्दर्य ही नहीं, बुद्धि, तेज, साहस, ममता, बल भी होते हैं । उसे याद ही नहीं रहा कि स्त्री सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि अपने आप में पूरी सृष्टि है। संसार का संचालन क्या पुरुष अकेले कर सकता है भला? महिषासुर नहीं समझा यह बात…स्त्री उसके लिए पैर की जूती मात्र थी। उसे नहीं पता था कि शक्ति शिव का बल हैं..लक्ष्मी वैकुण्ठ की समृद्धि और सरस्वती हैं ब्रह्मलोक का ज्ञान । वेदों की अनगिनत ऋचाएं स्त्रियों ने ही रची हैं मगर ऋषिकाएं ही नहीं मिलतीं। अपने दम्भ में पुरुष इतना फूल गया कि वह स्त्री के हक के फैसले भी खुद ही करने लगा । वह यह तय करने लगा कि स्त्री क्या खाएगी, स्त्री क्या पहनेगी..स्त्री क्या करेगी…किससे बात करेगी..कहां जाएगी..। उसने यह तक तय कर डाला कि अगर वह नहीं रहा तो स्त्री को जीने का अधिकार ही नहीं । वह स्त्री की कोख पर अधिकार जताने लगा..यहाँ तक कि उसे पता चलता कि स्त्री की कोख में स्त्री है तो वह उस स्त्री को मार देता । पुरुष ने अपना अधिकार समझ लिए कि स्त्री जिए तो उसके लिए जीए। उसने मान लिया कि दैहिक सुख के लिए वह किसी दूसरी स्त्री के पास जाता है तो यह न्यायसंगत है, उसकी प्रेरणा है.. मगर स्त्री के मन में यह आकांक्षा हो तो वह चरित्रहीन है । पुरुष तुम तो सहचर थे प्रकृति के, आखिर कैसे तुमने प्रकृति का नियंता समझ लिया। कैसी पीढ़ी तैयार की युगों से दम्भ के कारागार में बंदी एक स्वार्थी जीवन जी रही है। तुम उस शक्ति को बंदी बनाने की बात सोच लेते हो जिसने तुमको रचा, जिसमें असीम ब्रह्मांड छिपा है। तुम खुद को इतना महान समझने लगे कि तुम्हें आदि शक्ति की महत्ता तक का ध्यान ही नहीं रहा । जिस शक्ति को खुद शिव सम्मान देते हैं..तुमने उसे कमजोर समझ लिया । इस पृथ्वी पर आकर दुर्गा अपनी शक्ति को विखंडित होते देखती है और दुःख से भर उठती है । वह माता है और माता के समक्ष तुम उसकी बेटियों को प्रताड़ित करते हो, उसके अधिकारों का दमन करते हो और यह समझ लेते हो कि तुम्हारे पाखंड को शक्ति समझेंगी नहीं…तुम सच में मूर्ख है। देखती हूँ कि एक महिषासुर सबके भीतर बैठा है और सृष्टि की रक्षा के लिए हर एक असुर का वध कर देना ही दुर्गा का धर्म है । यही समय की मांग है क्योंकि सृष्टि के संचालन के लिए विश्वास का होना अनिवार्य है परन्तु पाप बढ़ता ही रहा तो वह विश्वास खंडित होगा..निराशा होगी । मनुष्य की चेतना नष्ट होगी इसलिए समय आ गया है कि वह महिषासुर का वध करे जो अपने दंभ में घूम रहा है।
हम सब उत्सव मना रहे हैं मगर देखा जाए तो उत्सव प्रतिवाद का माध्यम बन गया है। अभी भी जूनियर डॉक्टर सड़क पर हैं । आरजी कर का मामला सिर्फ एक अस्पताल का मामला भर नहीं है बल्कि स्त्री सुरक्षा के साथ समाज के मानवीय ढांचे की अस्मिता की रक्षा का प्रश्न है । यह शहर प्रतिवाद करना भूल गया था । यहां तक कि संदेशखाली की वीभत्स घटना के बावजूद लोगों की चेतना नहीं जागी । महिलाओं के प्रतिवाद को भी तमाशा बना दिया गया मगर आरजी कर की अभया ने जैसे मुर्दा दिलों में अग्नि को फिर से जला दिया है। अपनी बात करूं तो इतनी सुन्दर तरीके से बगैर किसी राजनीतिक प्रपंच के अहिंसक और सृजनात्मक प्रतिवाद याद रहते तो नहीं देखा । जूनियर डॉक्टरों के प्रतिवाद में मौलिकता अद्भभुत रही । एक बार सीपी को मेरुदंड तो दूसरी बार स्वास्थ्य भवन में मष्तिष्क प्रदान कर प्रशासन के मुंह पर जो करारा थप्पड़ मारा है, वह हमेशा याद किया जाएगा ।
उत्सव का आनंद पहले जैसा शायद नहीं भी रहे और इसका प्रभाव आर्थिक स्तर पर भी पड़ेगा, यह तय है। कांकुड़गाछी इलाके में श्री श्री सरस्वती और काली माता मंदिर परिषद द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा में आर.जी. कर पीड़िता के दर्द को दर्शाने वाली एक अनूठी मूर्ति का अनावरण किया गया है। इस मूर्ति का नाम ‘लज्जा’ रखा गया है, जिसमें देवी दुर्गा को अपने हाथों से चेहरा ढकते हुए दिखाया गया है, और उनके सामने एक महिला का शव रखा गया है।
पूजा समिति के प्रवक्ता ने बताया कि जब श्रद्धालु पंडाल में प्रवेश करेंगे, तो वे देखेंगे कि देवी अपने चेहरे को ढक रही हैं जबकि उनके सामने महिला का शव रखा हुआ है। देवी के साथ रहने वाला शेर भी महिला के शव के सामने सिर झुकाए शोक में बैठा है। मूर्ति के पास एक सफेद एप्रन और स्टेथोस्कोप रखा गया है, जो चिकित्सा पेशे का प्रतीक है। समिति के प्रवक्ता ने कहा, “यह हमारी ओर से उन महिलाओं पर हो रहे हमलों और हिंसा के खिलाफ विरोध की अभिव्यक्ति है, जो कामदुनी और हंसखाली से लेकर आरजी कर की हालिया त्रासदी तक की घटनाओं को दर्शाता है। यह घटना, जिसने पूरे देश की चेतना को हिला दिया है, के खिलाफ उठ रही आवाज़ें अब तक थमी नहीं हैं। हम चाहते हैं कि इस दुर्गा पूजा के माध्यम से हम अपनी पीड़ा और दुख को व्यक्त करें।”इसके बावजूद, पंडाल के अंत में देवी की पारंपरिक मूर्ति को बनाए रखा गया है। प्रवक्ता ने बताया, “हम ‘साबेकी’ (पारंपरिक) रूप से मां के लुक को नहीं बदलना चाहते थे। यह थीम इस साल समकालीन स्थिति के कारण जोड़ी गई है।” इस बीच, प्रसिद्ध संतोष मित्रा स्क्वायर पूजा पंडाल, जिसने पहले अपने लास वेगास की प्रतिकृति पर लेजर शो की योजना बनाई थी, ने आरजी कर की त्रासदी के मद्देनजर अपने थीम में बदलाव किया है। इस आयोजन के सचिव साजल घोष ने बताया, “अब हम गोलाकार सतह पर ‘आरजी कर के लिए न्याय’ और ‘अभया के लिए न्याय’ जैसे नारे और जलते हुए दीपों की छवियां प्रदर्शित करेंगे।” पिछले 40 वर्षों से, कोलकाता और बाहर के दुर्गा पूजा पंडालों ने अपने मंच पर सांस्कृतिक धरोहर, कला और सामाजिक मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण, मानव तस्करी और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को उजागर किया है।
आर जी कर कांड के विरोध में उत्सव का बहिष्कार करने की मांग बढ़ रही है, जिससे शहर के उत्सव के उत्साह पर असर पड़ रहा है। 9 अगस्त को राज्य द्वारा संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर की हत्या ने पूरे राज्य में गहरी भावनात्मक उथल-पुथल मचा दी है, क्योंकि दुर्गा पूजा का उत्साह शक्ति और सुरक्षा की देवी की पूजा करने के परेशान करने वाले विरोधाभास से फीका पड़ गया है, जबकि वास्तविक जीवन में महिलाओं को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है जबकि कलकत्ता इस त्रासदी से जूझ रहा है, शहर परंपरा और बदलाव के बीच एक चौराहे पर खड़ा है, शक्ति, सुरक्षा और न्याय का प्रतीक देवी दुर्गा की भक्ति और महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली दैनिक हिंसा और अन्याय की कठोर वास्तविकता के बीच फंसा हुआ है। “ऐसा प्रतीत होता है कि आरजी कर घटना और चल रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण इस साल की दुर्गा पूजा बहुत अधिक फीकी रहेगी। कई लोग पूजा में भाग ले सकते हैं, लेकिन उत्सव मनाने से बचना पसंद करते हैं। कई लोग पीड़िता और उसके परिवार से खुद को जोड़ सकते हैं, यही वजह है कि विरोध प्रदर्शन इतने सहज रूप से सामने आए हैं,” समाजशास्त्री प्रशांत रॉय ने बताया। इस घटना ने पूरे राज्य में, खासकर पूर्वी महानगर में, जहाँ लगभग 3,000 दुर्गा पूजा आयोजित की जाती हैं, भावनात्मक आक्रोश पैदा कर दिया।कई कलकत्तावासियों के लिए, इस साल की दुर्गा पूजा एक मात्र त्यौहार से न्याय के लिए चल रहे संघर्ष के प्रतीक में बदल गई है, जिससे देवी की पूजा करने के महत्व पर चिंतन होता है, जब वास्तविक जीवन में उनकी आत्मा का प्रतीक बनी महिलाएँ असुरक्षित रहती हैं। “शहर एक ऐसा त्यौहार कैसे मना सकता है जो दिव्य स्त्रीत्व का महिमामंडन करता है, जबकि वास्तविक जीवन में पीड़ित महिलाओं की ओर से आँखें मूंद लेता है? इस साल, दुर्गा पूजा न केवल एक उत्सव हो सकता है, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के बारे में व्यापक बातचीत का एक मंच भी हो सकता है। यह बातचीत लंबे समय से लंबित थी,” एक सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर ने कहा, जो विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं, लेकिन नाम नहीं बताना चाहते थे। दुर्गा पूजा से पहले के दिनों में, कोलकाता में आमतौर पर तैयारियों का माहौल रहता है – सड़कों पर पंडाल लगे होते हैं, रोशनी की जाती है और हवा में त्योहारी व्यंजनों की खुशबू फैली होती है – लेकिन इस साल, शहर में सन्नाटा पसरा हुआ है, और शहर भर में “हमें न्याय चाहिए” के नारे गूंज रहे हैं। दुर्गा पूजा न केवल बंगाल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक चालक भी है, जो 2019 की ब्रिटिश काउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 32,377 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न करता है, और 2024 में यह आंकड़ा बढ़ने की उम्मीद है, जिससे मंडप एवं मूर्ति निर्माता, ढाकी (पारंपरिक ढोल वादक), इलेक्ट्रीशियन और विक्रेताओं सहित हजारों आजीविका को महत्वपूर्ण समर्थन मिलेगा। “उत्सवों से दूर रहने के इस आह्वान के दो आयाम हैं। हालांकि शहरी और अर्ध-शहरी लोग इस आह्वान पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, लेकिन ग्रामीण लोगों के उत्सव में भाग लेने की संभावना है।सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने बताया, “लेकिन उत्सवों से दूर रहने के इस आह्वान का दुर्गा पूजा के दौरान अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की संभावना है – चाहे वह विभिन्न क्लबों के लिए विज्ञापन राजस्व हो या छोटे व्यापारी, खाद्य स्टॉल मालिक, स्ट्रीट फूड विक्रेता, ढोल बजाने वाले और सजावट करने वाले जो साल भर दुर्गा पूजा का इंतजार करते हैं।”लोकप्रिय बाजारों में पूजा से पहले की खरीदारी में तेजी से कमी आई है, जिससे वे विक्रेता जो अपनी वार्षिक आय के एक बड़े हिस्से के लिए दुर्गा पूजा पर निर्भर हैं, उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है। आरजी कर कांड के मिदनापुर, जयनगर जैसी जगहों में फिर से इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं और इसके साथ ही प्रतिवाद भी दिखा। मिदनापुर में महिलाओं ने ही आरोपित को पीटकर मार डाला। दुर्गा जाग रही है। दुर्गा के देश में दुर्गा खुद को तलाश रही है….माँ….अपनी संतानों के भीतर छिपी अपनी आभा को अभिव्यक्ति दो…यही कामना है