हल्दिया । मर्चेंट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इडस्ट्री ने हल्दिया में “एमसीसीआई डेस्टिनेशन हल्दिया 2022” नामक सेमिनार आयोजित किया। कठिन समय में विकास विषय पर आयोजित यह सेमिनार द्विस्तरीय एवं त्रिस्तरीय शहरों तक पहुँचने के अभियान का अंग था। सेमिनार का उद्धाटन । मुख्य अतिथि के रूप में राज्य के एमएसएमई एवं टेक्सटाइल राज्य मंत्री श्रीकांत महता ने किया हल्दिया नगर पालिका के अध्यक्ष सुधांशु मण्डल और विशिष्ट अतिथि हल्दिया विकास प्राधिकरण के चेयरमैन ज्योर्तिमय कर उपस्थित थे।
सेमिनार को संबोधित करते हुए राज्य मंत्री श्रीकांत महता ने हल्दिया की विकास क्षमता के बारे में बताया। उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बनाए गए उद्योग अनुकूल माहौल और इस क्षेत्र में नए उद्योग स्थापित करने के लिए एकल खिड़की योजना के बारे में बताया। उन्होंने हल्दिया को विकास पथ पर ले जाने के लिए उद्योग और सरकार के बीच आपसी समर्थन और सहयोग पर जोर दिया। सुधांशु मंडल ने उद्योगपतियों को हल्दिया और उसके आसपास के क्षेत्र में निवेश करने और इकाइयां स्थापित करने के लिए आगे आने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि इस क्षेत्र में उद्योग रखने के लिए इसका सबसे अच्छा पारिस्थितिकी तंत्र है।
ज्योतिर्मय कर ने हल्दिया में उद्योग के अनुकूल माहौल का उल्लेख किया जहां कोई हड़ताल नहीं है और न ही मानव दिवस का नुकसान होता है। उन्होंने औद्योगिक इकाइयों के लिए हर संभव समर्थन का आश्वासन दिया।
सेमिनार के अन्य मुख्य वक्ताओं में पूर्व मिदनापुर के अतिरिक्त। जिला मजिस्ट्रेट, भूमि और भूमि सुधार श्री अनिर्बान कोले, हल्दिया की अतिरिक्त। पुलिस अधीक्षक श्रद्धा एन पांडे, पूर्व मिदनापुर के डिस्ट्रिक्ट इंडस्ट्रीज सेंटर के जी एम गौतम साधुखान, इंडोरामा इंडिया प्रा। लिमिटेड के सीओओ चंद्र शेखर प्रसाद, एक्साइड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चीफ ऑपरेशन मैनेजर टी. के. पान, और पश्चिम मिदनापुर जिला चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष आनन्द गोपाल उपस्थित थे।
स्वागत भाषण में एमसीसीआई की ट्रान्सपोर्ट एवं शिपिंग की लॉजिस्टिक काउंसिल के चेयरमैन लवेश पोद्दार ने कहा कि चेम्बर हल्दिया के विकास को अगले स्तर पर ले जाने के लिए सभी महत्वपूर्ण हितधारकों के साथ हल्दिया में एक परिषद स्थापित करने की योजना बना रहा है। उन्होंने इस पहल में अधिकारियों और हितधारकों से समर्थन और सहयोग मांगा।
फोरम में सरकारी अधिकारियों, हल्दिया के कॉर्पोरेट क्षेत्र और पुरबा और पश्चिम मिदनापुर की एमएसएमई इकाइयों ने भाग लिया। सत्र का समापन एमसीसीआई के डायरेक्टर जनरल डॉ. सौगत मुखर्जी के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
हल्दिया के विकास के लिए उद्योग और सरकार में हो साझीदारी
बीएचएस में इंटर हाउस डिबेट आयोजित
कोलकाता । बिड़ला हाई स्कूल में हाल ही में इंटर हाउस डिबेट आयोजित किया गया। स्कूल के 6 हाउस इस प्रतियोगिता में प्रतिभागी बने जिसका विषय था – भारत लोकतंत्र के रूप विफल रहा। हर हाउस में दो वक्ता थे जिसमें एक पक्ष और दूसरा विपक्ष में। विपक्ष में बात रखने वाली टीम को सवाल पूछने का अवसर दिया गया। प्रतियोगिता का संचालन बीएचएस के पूर्व छात्र ईशान बनर्जी ने किया। प्रतियोगिता में अशोक हाउस को सर्वश्रेष्ठ टीम का और गाँधी हाउस के सुनरित कुमार चन्दा को सर्वश्रेष्ठ वक्ता का पुरस्कार मिला। सर्वश्रेष्ठ प्रश्न पूछने के लिए श्रृंगल भट्टाचार्य को पुरस्कार मिला।
सुशीला बिड़ला में आयोजित हुआ कॅरियर फेयर -2022
कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में कॅरियर फेयर आयोजित किया गया। 11 एवं 12वीं कक्षा के लिए आयोजित इस कॅरियर मेले में 15 प्रख्यात कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों ने भाग लिया। इन संस्थानों में साई यूनिवर्सिटी, चेन्नई, इंडियन स्कूल ऑफ हॉस्पिटैलिटी. बंगलुरू, थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, पटियाला, अहमदाबाद यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद, एंग्लो ईस्टर्न अकादमी, मुम्बई, वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन. सोनीपत, फ्लेम्स यूनिवर्सिटी, पुणे, द एमिराट्स अकादमी ऑफ हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट, यूएई. कुलीनरी इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका, यूनिवर्सल बिजनेस स्कूल, मुम्बई, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट एंड डिजाइन. नयी दिल्ली, इकोल इन्टुट लैब, जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम एवं आईएफआईएम, बंगलुरू शामिल थे। इस कॅरियर मेले में थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, पटियाला के प्रोफेसर पद्मकुमार नैयर, जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी की पुष्पा जोशी एवं आईएफआईएम, बंगलुरू की दीपू कृष्णन ने विचार रखे। विद्यार्थियों ने इन संस्थानों के स्टॉल पर बहुत सारी जानकारी प्राप्त की जिससे भविषय की दिशा तय करने में उनको मदद मिली।
रक्षक फाउंडेशन ने पैरोल पर आए तीन कैदियों को उनके काम के लिए किया सम्मानित
कोलकाता । हाल ही में रक्षक फाउंडेशन की तरफ से पैरोल पर आए कुछ कैदियों के लिए उनके बेहतर कार्य हेतु सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस दौरान पैरोल पर आए तीन कैदियों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर पूर्व डीजीपी आईपीएस मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। वहीं संयुक्त आयुक्त आईपीएस सुजय चंदा भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता व रक्षक फाउंडेशन की तरफ से चैताली दास ने कहा कि इस प्रकार के सम्मान समारोह के आयोजित करने का हमारा मुख्य लक्ष्य इनके जीवन को बेहतर बनाने का है। जीवन में मौका भी उन्हीं को मिलता है जिनमें कुछ अच्छा करने व बनने की इच्छा होती है। उन्होंने बताया कि आजीवन कारावास काट रहे तीन दोषियों मैदुल मोल्लाह, मुक्खलेचुर रहमान मंडल और इंद्रजीत पॉल को कोरोना के दौरान पैरोल दी गई थी। उन्होंने अपने जीवन को बदलने और समाज को कुछ वापस देने का फैसला किया। रक्षक फाउंडेशन ने उन्हें जूट के क्षेत्र में अच्छा करने का मौका दिया और उन्होंने करके दिखाया भी। चैताली ने बताया कि उनकी फाउंडेशन के साथ वे 2016 से ही दमदम केंद्रीय सुधार गृह में काम कर रहे हैं। कोरोना के दौरान पैरोल मिली थी लेकिन अब जेल वापस जाने का समय आ गया है। वहीं संयुक्त आयुक्त आईपीएस सुजय चंदा ने मैदुल मोल्लाह, मुक्खलेचुर रहमान मंडल और इंद्रजीत पॉल की कड़ी मेहनत की सराहना करते हुए कहा कि जीवन में बेहतर होने और दुनिया को कुछ साबित करने के लिए जो उन्होंने हासिल किया है वह जीने का एक बेहतर उद्देश्य है।
अंतर पीएसयू महाकवि निराला काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता सम्पन्न
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) कोलकाता
कोलकाता । भारत सरकार द्वारा गठित नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) कोलकाता के तत्वावधान में पावरग्रिड पूर्वी क्षेत्र-2 द्वारा दिनांक 15 जुलाई 2022 को “महाकवि निराला काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन सुप्रियो चट्टोपाध्याय, मुख्य महाप्रबंधक (परियोजनाएं), धर्मेन्द्र कुमार ज़वेरी, मुख्य महाप्रबंधक (संपदा प्रबंधन), संजीव कुमार, महाप्रबंधक (मा.सं) कोल इंडिया व सदस्य सचिव नराकास (उपक्रम) कोलकाता, अंजन सन्याल, महाप्रबंधक (मा.सं) द्वारा दीप प्रदीपन करके किया गया। प्रतियोगिता के निर्णायक के रूप में डॉ. संजय जायसवाल, युवा कवि व सहायक प्रोफेसर, विद्यासागर विश्वविद्यालय और डॉ विमलेश त्रिपाठी, हिंदी अधिकारी, साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स युवा कवि एवं कथाकार आमंत्रित थें।
प्रतियोगिता में कोलकाता स्थित विभिन्न पीएसयू कार्यालयों से 66 प्रतिभागियों ने, सुप्रसिद्ध संकलित व स्वरचित कविताओं की आवृत्ति की। कार्यक्रम के समापन सत्र में विनय रंजन, निदेशक (कार्मिक), कोल इंडिया व अध्यक्ष, नराकास (उपक्रम) कोलकाता ने विजेताओं को पुरस्कार व प्रमाणपत्र प्रदान करके कार्यक्रम का गौरव बढ़ाया। उन्होंने पावरग्रिड द्वारा इस प्रथम नराकास कार्यक्रम को बेहतरीन रूप से आयोजित किए जाने की सराहना की। प्रतिक्रिया सत्र में प्रतिभागियों ने कार्यक्रम की प्रशंसा की। उल्लेखनीय है कि हिंदीतर भाषी वर्ग की प्रतियोगिता में पावरग्रिड के प्रतिभागी सास्वत सुंदर सुर, वरिष्ठ महाप्रबंधक (वि.व ले) ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।
वर्षा और हमारे भाव

महिलाओं पर समाज परिवार और देश का दायित्व रहा है। बच्चों से लेकर परिवार, संस्कृति से लेकर संस्कार, शिक्षा से लेकर अच्छे नागरिक बनाने का कार्य सब कुछ महिलाओं पर होता है। तीज-त्यौहार रीति-रिवाज परंपराओं को महिलाएँ ही आगे बढ़ाती हैं। वसंत के समान ही वर्षा भी भारतीय साहित्य में सम्मान और गौरव का स्थान पाती रही है। हर भाषा के लोक गीत हैं, वैदिक ऋषियों ने मेघों के शक्तिशाली रूप का यशोगान उल्लसित कंठ से किया है।इंद्र मेघों के शक्तिशाली अधिपति रहे। समय के साथ उनका प्रभाव असफल होता गया और इंद्र देवता की छवि में कमी आती गई और बाद में उपेंद्र देवता ने भारतवर्ष में धर्म साहित्य शिल्प संगीत और कला के क्षेत्र को छा लिया।
घनों के राजा इंद्र रंगमंच से चुपचाप हट गए और घनश्याम वहाँ डट गए। हिंदू पुराणों के अनुसार यह घटना द्वापर युग में घटी थी। भागवत पुराण में इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन पूजा करवाई। इंद्र ने भी बदला लेने के लिए मूसलाधार वर्षा करवाई जिससे द्युलोक से भूलोक तक जल ही जल हो गया।
श्रावण का महीना उत्सव का महीना है। मानसूनी हवाएँ वारिश लाती हैं और तपती धरती को भीगो देती हैं। नागार्जुन की पंक्तियाँ हैं –
बादल को घिरते देखा है बहुत ही प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं।
कन्हैयालाल सेठिया जी की पंक्तियाँ –
नीर भरी नदियाँ लहराते सागर उनमें प्यास बुझाते
किंतु गगन की एक बूंद हित चातक के नयनों में जल है।
वेदों से लेकर अभी तक न जाने कितने ही कवियों, साहित्यकारों और दार्शनिकों आदि ने वर्षा के प्रति अपने भावों को व्यक्त किया है। आषाढ़ से ही वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। बंगाल में काल बैशाखी बैशाख से ही वारिश की दस्तक देने लगती है। कालिदास ने मेघदूत की रचना ही कर डाली जो विश्व में एक अनूठी और अद्भुत रचना है।
आषाढ़स्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्ट सानु ।
वप्र क्रीडा परिणत गज प्रेक्षणियम ददर्श।।
प्रथम श्लोक से ही मेघों को अपना संदेशवाहक मानते हुए अभूतपूर्व वर्णन किया है। बादल वही हैं जो प्रकृति जड़चेतन और पूरे ब्रह्माण्ड को अपनी शीतलता प्रदान करते हैं।
सावन और संगीत का अटूट रिश्ता है। सावन पर मेरी कविता को देखें – – –
मन का सावन–
सावन मन में बरसता है।
जब रस रंग और रास से मन पूर्ण होता है तो सावन होता है।
निश्छल और उन्मुक्त हँसी से चेहरा भरा हो तो सावन है।
चिंताओं की तमाम लकीरें जब पानी की तरह पारदर्शी हो जाए तो सावन है।
होठ पर जब बचपन के गीत आने लगें तो सावन है।
एक पैर से दूसरा पैर जब खेलने लगे तो सावन है।
पेड़ों की पत्तियों से गिरती बूदें जब शरीर को भिगो दें तो सावन है।
तन और मन के पोर पोर कुछ कहकर भी जब कुछ न कहें तो सावन है।
आसमान में सात रंगों का इंद्रधनुष दिखाई दे तो सावन है।
हमारे मन का मयूर जब नाचे तो सावन है।
यूँ ही तो कोई सावन नहीं मनाता है।
किसान अपनी लहलहाती फसलें देखकर झूम उठता है, तब सावन है
भारत ऋतुओं से फलता-फूलता है, त्योहार मनाता है, खुशियाँ मनाता है। तब सावन है
कोयल की कूंक जब सुनाई दे तो सावन है।
हर बच्चा वृद्ध और स्त्री के चेहरे पर सुकून हो तो सावन है
मजदूर जब त्योहार मनाए तो सावन है
कृषि के साथ कृष्ण बांसुरी बजाएं तो सावन हैं
क्रोधित वर्षा के नैनों की धारा जब बुझ जाएं तो सावन है
बाढ़ के खतरे न आएं पशु-पक्षी और मानव के जीवन सुरक्षित हों तो सावन है।
निराला कहते हैं – बादल गरजो
घेर घेर घोर गगन धाराधर ओ
ललित ललित काले घुंघराले
बाल कल्पना के से पाले
सूर तुलसी जायसी सभी ने पावस ऋतु का सुंदर सरस वर्णन किया है।
महादेवी वर्मा जी ने – – नीर भरी दुख की बदली
नागार्जुन – – मेघ बजे घन कुरंग
बादल को घिरते देखा है।
बूंदों की रिमझिम में संगीत का सरगम होता है। इस मौसम में हवा बादल पेड़ पपीहे सब झूमते गाते हुए से लगते हैं।
भक्ति संगीत और कविताओं में वर्षा ऋतु प्रकृति की सहचरी है। वर्षा मानव मन की अनुभूतियों की ही अभिव्यक्ति है।
यह उल्लास लोककंठ से बारहमासी कजरी झूलागीतों के रूपों में फूटता है। मेघ मल्हार का आदि राग कवि हृदय में भी गीत के रूप में उतरता है। सावन और संगीत का अटूट संबंध कई नवगीतों में मिलता है।
बरसात का प्रेम से चिर संबंध है। इस ऋतु में प्रणय की पुरानी स्मृतियाँ ताजा हो उठती हैं। विरह की वेदना तीव्र हो जाती है और मिलन की आतुरता बढ़ जाती है। बादलों का अत्याचार बाढ़ के रूप में तबाही भी लाता है। बाढ़ की त्रासदी के कई वर्णन मिलते हैं।
तुलसी के रामचरित मानस में सीता वियोग में राम को भी बादलों के गरजने से डर लगता है।
घन घमंड नभ गरजत घोरा,
प्रिया हीन डरपत मन मोरा।
सूर की गोपियाँ कृष्ण के वियोग में कहती हैं – –
निस दिन बरसत नैन हमारे,
सदा रहत पावस ऋतु इन पे जब से स्याम सिधारे।
कबीर की उलटवासी देखें –
बरसे कंबल भीजे पानी
कबिरा बादल प्रेम का
हम परि बरष्या आइ
अंतरि भीगी आत्मां हरि भयी बनराई
जायसी ने महाकाव्य पद्मावत में – – – नागमती की विरह की पीड़ा को इस प्रकार व्यक्त किया है। – –
चढ़ा असाढ़ गगन घन बाजा
साजा विरह दुंद दल बाजा **
सावन बरस मेह अति पानी
भरनी परिहौं बिरह झुरानी
वर्षा ऋतु सांस्कृतिक नवोन्मेष का बीजारोपण करता है।
यूपीआई : ऐप आपकी अनुमति के बिना नहीं करेंगे डेटा रिकॉर्ड
नयी दिल्ली । नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने कहा कि सभी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) बेस्ड एप्लिकेशन उपभोक्ताओं का लोकेशन या जियोग्राफिक डेटा रिकॉर्ड करने से पहले उनकी परमिशन मांगेगा।
नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने कहा कि सभी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) बेस्ड एप्लिकेशन उपभोक्ताओं का लोकेशन या जियोग्राफिक डेटा रिकॉर्ड करने से पहले उनकी अनुमति मांगेगा। एक सर्कुलर में, एनपीसाआई ने कहा कि यदि उपभोक्ता ने सर्विसेस का उपयोग करते समय मूल रूप से लोकेशन का खुलासा करने के लिए पहले ही सहमति दे दी है, तो इसके प्रावधान बिना किसी समस्या के पेश किए जाने चाहिए। सर्कुलर में कहा गया है, “ग्राहक द्वारा ऐप के लिए लोकेशन या जियोग्राफिकल डिटेल शेयर करने के लिए सहमति रद्द करने के बाद भी ऐप्स को यूपीआई सेवाएं प्रदान करना जारी रखना चाहिए।”
अगर नहीं किया ये काम तो होगी कड़ी कार्रवाई
जब भी कोई ग्राहक अपना लोकेशन रिकॉर्ड करने की अनुमति देता है, तो अनुमति को यूपीआई को उचित रूप से सूचित किया जाना चाहिए; नहीं तो कंपनी कड़ी कार्रवाई करेगी। यदि ग्राहक सहमति देने से मना करता है तो कोई भी सर्विस प्रोवाइडर को पेमेंट सर्विसेस को अस्वीकार या डिसेबल नहीं करना चाहिए। 1 दिसंबर, 2022 तक सभी सदस्यों द्वारा उपरोक्त सभी नियमों का पालन किया जाना चाहिए, और ये केवल इंडिविजुअल्स के बीच डोमेस्टिक यूपीआई ट्रांजेक्शन पर लागू होते हैं।
क्रेडिट कार्ड को यूपीआई से जोड़ने के साथ डिजिटल पेमेंट्स में क्रेडिट कार्ड की पहुंच बढ़ने का अनुमान है। यूपीआई सिस्टम, जो देश में सबसे समावेशी भुगतान के रूप में विकसित हुई है, शुरुआत में आरबीआई की प्रारंभिक योजना के तहत रुपे क्रेडिट कार्ड से जुड़ी थी। लेनदेन के माध्यम के रूप में बढ़ते उपयोग से फिनटेक प्लेटफार्मों को लाभ होने का अनुमान है। यह अनुमान है कि यूपीआई के साथ क्रेडिट कार्ड के एकीकरण से फुल-स्टैक फाइनेंशियल सॉल्यूशन प्रोवाइडर पेटीएम को लाभ होगा।
यूपीआई और रूपे कार्ड की सेवा जल्द ही फ्रांस में उपलब्ध होंगी। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, एनपीसीआई की अंतरराष्ट्रीय शाखा ने फ्रांस में यूपीआई और रुपे की स्वीकृति के लिए लाइरा नेटवर्क के साथ एक समझौता ज्ञापन पर सहमति जताई है।
भारत एक महीने में 5.5 अरब यूपीआई लेनदेन कर रहा
केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “पूरी दुनिया देख रही है कि भारत एक महीने में 5.5 अरब यूपीआई लेनदेन कर रहा है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। फ्रांस के साथ आज का समझौता ज्ञापन दुनिया की ओर एक बड़ा कदम है।”
क्या है यूपीआई
यूपीआई एनपीसीआई द्वारा शुरू किया गया एक पेमेंट सिस्टम है, जो लाभार्थी के बैंक अकाउंट के किसी भी डिटेल की आवश्यकता के बिना, एक मोबाइल प्लेटफॉर्म पर दो बैंक अकाउंट्स के बीच इंस्टैंट मनी ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करती है।
बलदेव सिंह: बंटवारा न चाहने वाला सिख जो पहला रक्षा मंत्री बना
सरदार बलदेव सिंह… चंडीगढ़ के ज्यादातर लोगों को नहीं पता होगा कि उनके शहर को बसाने में इस नाम का कितना योगदान है। सिंह इसी इलाके से पहली बार 1937 में लाहौर की पंजाब में विधायक बने थे। उस वक्त यह इलाका अम्बाला जिले में आता था। पहाड़ियों से निकलने वाले झरने और नाले कहर बरपाते थे, इसकी गिनती सबसे पिछड़े इलाकों में होती थी। बंटवारे के बाद नए पंजाब की राजधानी कुछ समय के लिए शिमला रही। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू राजधानी के रूप में ऐसा शहर बसाना चाहते थे जो नया और आधुनिक हो।
नेहरू पर सरदार बलदेव सिंह का असर ही था कि इस इलाके में नई राजधानी बनाने का फैसला हुआ। आज चंडीगढ़ देश के सबसे खुशहाल शहरों में से एक है। पंजाब सिखों के प्रतिनिधि के रूप में सिंह भारत की स्वतंत्रता को लेकर चल रही सियासी बातचीत का हिस्सा थे। बंटवारे में भी सरदार बलदेव सिंह की अहम भूमिका रही। 11 जुलाई, 1902 को जन्मे बलदेव सिंह 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के पहले रक्षा मंत्री बने।
बलदेव सिंह: सिखों का बड़ा तरफदार था तारा सिंह का चेला
बलदेव सिंह एक संपन्न परिवार में जन्मे। अमृतसर के खालसा कॉलेज से पढ़ाई के बाद बलदेव ने अकाली पार्टी के जरिए राजनीति में दस्तक दी। मास्टर तारा सिंह को पूरी उम्र गुरु मानने की कसम खाई। लाहौर में सिख नैशनल कॉलेज बनवाले में बलदेव सिंह की बड़ी भूमिका रही। जब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा तो बलदेव सिंह ने सेना में सिखों की ज्यादा से ज्यादा भर्ती की वकालत की। कांग्रेस इस विचार का विरोध कर रही थी।
1942 का क्रिप्स मिशन… जिन्ना की वो जिद
1942-
ब्रिटिश युद्ध कैबिनेट ने 1942 में भारत का राजनीतिक भविष्य के लिए खास प्रस्तावों के साथ क्रिप्स मिशन को भेजा। सरदार बलदेव सिंह सिखों के डेलिगेशन का हिस्सा थे। इस डेलिगेशन में मास्टर तारा सिंह, सर जोगेद्र सिंह और सरदार उज्जल सिंह थे। मिशन फेल साबित हुआ क्योंकि कोई राजनीतिक दल किसी प्रस्ताव पर सहमत नहीं हो पाया।
स्वतंत्रता की कोशिशें तेज हो चली थीं मगर मुस्लिम समुदाय ने मोहम्मद अली जिन्ना को अपना इकलौता प्रवक्ता मान लिया। जिन्ना इस बात पर अड़े थे कि उन्हें मुस्लिम बहुत इलाका, मुस्लिमों के टोटल कंट्रोल में चाहिए। इसके अलावा वो कोई दूसरा प्रस्ताव मंजूर नहीं करेंगे।
पंजाब की धुर विरोधी पार्टियों को एक करा दिया
जून 1942 में यूनियनिस्ट पार्टी के सर सिकंदर हयात खान पंजाब के प्रीमियर बने। सरदार बलदेव सिंह ने अकाली नेताओं और यूनियनिस्ट पार्टी के बीच लंबे वक्त से चली आ रही खींचतान खत्म कराई। दोनों दलों के बीच एक समझौता हुआ और अकाली गठबंधन सरकार का हिस्सा बने। बलदेव सिंह ने 26 जून, 1942 को विकास मंत्री के पद की शपथ ली।
दिसंबर 1942 में जब सर सिकंदर गुजरे तो मलिक खिजर हयात तिवाना सीएम बने। बलदेव सिंह 1946 तक अपने पद पर बने रहे। 2 सितंबर, 1946 को उनसे भारत की पहली राष्ट्रीय सरकार में रक्षा मंत्री के रूप में शामिल होने को कहा गया।
देश का बंटवारा नहीं चाहते थे सरदार बलदेव सिंह
भावी संविधान पर भारतीय नेताओं से बातचीत करने ब्रिटिश कैबिनेट मिशन 1946 में भारत आया। बलदेव सिंह को सिखों के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया। वह सिखों की विशेष सुरक्षा के लिए अलग से मिशन से मिले। वह देश का बंटवारा नहीं चाहते थे। बलदेव सिंह की राय थी कि एकजुट भारत हो जिसमें अल्पसंख्यकों की रक्षा के प्रावधान हों।
अगर मुस्लिम लीग की तरफ से थोपा गया बंटवारा होता है तो बलदेव सिंह पंजाब की सीमाओं का फिर से निर्धारण चाहते थे। वह रावलपिंडी और मुल्तान जैसे मुस्लिम बहुल डिविजंस को काटकर अलग कर देना चाहते थे ताकि बाकी पंजाब में सिखों के पक्ष में पलड़ा झुका रहे।
ब्रिटिश काल के तीसरे सबसे बड़े पद पर बैठे सरदार
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव में मुस्लिमों के ऑटोनॉमी के दावे को काफी हद तक मान लिया गया था। मई 1946 में सिखों ने पूरी कवायद का बहिष्कार करते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया। जवाहरलाल नेहरू की अपील पर पंथिक प्रतिनिधि बोर्ड ने 14 अगस्त, 1946 की एक बैठक में दोहराया कि कैबिनेट मिशन योजना सिखों के साथ अन्याय है, मगर बहिष्कार वापस ले लिया।
जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी कैबिनेट में सिखों के प्रतिनिधि के रूप में सरदार बलदेव सिंह 2 सितंबर, 1946 को शामिल हुए। रक्षा मंत्रालय ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के कमांडर-इन-चीफ के पास रहता आया था। यह पद अंग्रेजी हुकूमत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के बाद तीसरे नंबर पर था।
सिखों का वो फैसला जिसने इतिहास की दिशा बदल दी
अंग्रेजों ने आखिरकार भारत छोड़ने और उससे पहले उसके दो टुकड़े करने का फैसला किया। कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग और सिखों के एक-एक प्रतिनिधि को लंदन बुलाया गया। इसमें जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और सरदार बलदेव सिंह शामिल थे। अंग्रेजों ने पूरी कोशिश की कि सिख किसी तरह पाकिस्तान के साथ रह जाएं। वह चाहते थे कि सरदार बलदेव सिंह इस बारे में जिन्ना से मोल-भाव करें।
सिखों ने मास्टर तारा सिंह की अगुवाई में मुस्लिम लीग के सारे प्रलोभन ठुकरा दिए। सरदार बलदेव सिंह की अकाली पार्टी की कोशिशों के चलते पंजाब का बंटवारा हो पाया। एक सीमा आयोग बनाया गया। 15 अगस्त, 1947 को जब उसका फैसला आया तो सबसे तगड़ी चोट सिखों को सहनी पड़ी।
‘बलदेव की अगुवाई में सेना ने हैदराबाद को भारत में मिलाया’
स्वतंत्रता के बाद रक्षा मंत्री के रूप में, सरदार बलदेव सिंह ने रक्षा बलों को बदलकर रख दिया। सेना के पूरी तरह से राष्ट्रीयकरण के पीछे बलदेव सिंह ही थे। कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ, जूनागढ़ और हैदराबाद में पुलिस कार्रवाई… रक्षा मंत्री के रूप में बलदेव सिंह के आगे चुनौतियां कड़ी थीं, मगर उन्होंने जिस तरह मुकाबला किया, उसकी खूब तारीफ हुई। हालांकि, सिख समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में बलदेव सिंह को लगता था कि कांग्रेस पार्टी ने सिखों को एक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में जो संवैधानिक अधिकार देने का वादा किया था, उसे वह पूरा नहीं करवा सके।
वह नेहरू और बाकी नेताओं से स्वतंत्रता आंदोलन के समय किए गए वादों को पूरा करने की गुहार लगा रहे थे। सरदार बलदेव सिंह 1952 में सांसद चुने गए मगर उन्हें कैबिनेट में नहीं लिया गया। नेहरू के निजी सहायक रहे एमओ मथाई अपनी किताब Reminiscences of the Nehru Age में लिखते हैं कि नेहरू को बलदेव सिंह की राजनीतिक ईमानदारी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए उन्हें हटा दिया। बलदेव की जगह पंजाब से स्वर्ण सिंह को कैबिनेट में जगह दी गई। एन. गोपालस्वामी आयंगर भारत के दूसरे रक्षा मंत्री बने।
1957 में सरदार बलदेव सिंह दोबारा सांसद निर्वाचित हुए मगर उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी। 29 जून, 1961 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली में उनका निधन हो गया।
(साभार नवभारत टाइम्स)
जानिए अशोक स्तम्भ की कहानी
हमारा जो राष्ट्रीय प्रतीक है, वह अशोक स्तंभ का शीर्ष भाग है। मूल स्तंभ के शीर्ष पर चार भारतीय शेर एक-दूसरे से पीठ सटाए खड़े हैं, जिसे सिंहचतुर्मुख कहते हैं। सिंहचतुर्मुख के आधार के बीच में अशोक चक्र है जो राष्ट्रीय ध्वज के बीच में दिखाई देता है।
केवल सात स्तंभ ही बच पाए, सारनाथ वाला उनमें से एक
करीब सवा दो मीटर का सिंहचतुर्मुख आज की तारीख में सारनाथ म्यूजियम में रखा है। जिस अशोक स्तंभ का यह शीर्ष है, वह अब भी अपने मूल स्थान पर ही है। सम्राट अशोक ने करीब 250 ईसा पूर्व सिंहचतुर्मुख को स्तंभ के शीर्ष पर रखवाया था। ऐसे कई स्तंभ अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में फैले अपने साम्राज्य में कई जगह लगवाए थे, जिनमें से सांची का स्तंभ प्रमुख है। अब केवल सात अशोक स्तंभ ही बचे हैं। कई चीनी यात्रियों के विवरणों में इन स्तंभों का जिक्र मिलता है। सारनाथ के स्तंभ का भी ब्योरा दिया गया था मगर 20वीं सदी की शुरुआत तक इसे खोजा नहीं जा सका था। वजह, पुरातत्वविदों को सारनाथ की जमीन पर ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता था कि नीचे ऐसा कुछ दबा हो सकता है।
एक सिविल इंजिनियर जिसे आर्कियोलॉजी का ‘अ’ नहीं पता था
1851 में खुदाई के दौरान सांची से एक अशोक स्तंभ मिल चुका था। उसका सिंहचतुर्मुख सारनाथ वाले से थोड़ा अलग है। ब्रिटिश राज पर कई किताबें लिखने वाले मशहूर इतिहासकार चार्ल्स रॉबिन एलेन ने सम्राट अशोक से जुड़ी खोजों पर भी लिखा। अशोका : द सर्च फॉर इंडियाज लॉस्ट एम्परर में वह सारनाथ के अशोक स्तंभ की खोज का विवरण देते हैं। फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल की पैदाइश जर्मनी में हुई थी। वह जवानी में जर्मन नागरिकता छोड़कर भारत आए और तबके नियमों के हिसाब से ब्रिटिश नागरिकता ले ली। रुड़की के थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजिनियरिंग (अब IIT रुड़की) से डिग्री ली। रेलवे में बतौर सिविल इंजिनियर काम करने के बाद फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल ने लोक निर्माण विभाग में ट्रांसफर ले लिया।
1903 में ओरटेल की तैनाती बनारस (अब वाराणसी) में हुई। सारनाथ की वाराणसी से दूरी बमुश्किल साढ़े तीन कोस होगी। ओरटेल के पास आर्कियोलॉजी का कोई अनुभव नहीं था, इसके बावजूद उन्हें इजाजत मिल गई कि वो सारनाथ में खुदाई करवा सकें। सबसे पहले मुख्य स्तूप के पास गुप्त काल के मंदिर के अवशेष मिले, उसके नीचे अशोक काल का एक ढांचा था। पश्चिम की तरफ फ्रेडरिक को स्तंभ का सबसे निचला हिस्सा मिला। आस-पास ही स्तंभ के बाकी हिस्से भी मिल गए। फिर सांची जैसे शीर्ष की तलाश शुरू हुई। एलेन अपनी किताब में लिखते हैं कि विशेषज्ञों को लगा कि किसी समयकाल में स्तंभ को जानबूझकर ध्वस्त किया गया था। फ्रेडरिक के हाथ तो जैसे लॉटरी लग गई थी। मार्च 1905 में स्तंभ का शीर्ष मिल गया।
फ्रेडरिक ने घर का नाम ‘सारनाथ’ रखा
जहां स्तंभ मिला था, फौरन ही वहां म्यूजियम यानी संग्रहालय बनाने के आदेश दे दिए गए। सारनाथ म्यूजियम भारत का पहला ऑन-साइट म्यूजियम है। अगले साल जब शाही दौरा हुआ तो फ्रेडरिक ने वेल्स के राजकुमार और राजकुमारी (बाद में किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी) को सारनाथ में अपनी खोज दिखाई। अगले 15 सालों के दौरान फ्रेडरिक ने बनारस, लखनऊ, कानपुर, असम में कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण करवाया। 1921 में वह यूनाइटेड किंगडम लौट गए। 1928 तक फ्रेडरिक लंदन के टेडिंगटन स्थित जिस घर में रहे, उसे उन्होंने ‘सारनाथ’ नाम दिया था। वह भारत से कई ऐतिहासिक कलाकृतियां, मूर्तियां अपने साथ ले गए थे।
अशोक स्तंभ का सिंहचतुर्मुख कैसे बना राष्ट्रीय प्रतीक?
सारनाथ में अशोक स्तंभ की खोज भारत में आर्कियोलॉजी की बेहद महत्वपूर्ण घटना है। जब भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ तो एक राष्ट्रीय प्रतीक की जरूरत महसूस हुई। भारतीय अधिराज्य ने 30 दिसंबर 1947 को सारनाथ के अशोक स्तंभ के सिंहचतुर्मुख की अनुकृति को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया। इधर संविधान ड्राफ्ट किए जाने की शुरुआत हुई। हाथों से लिखे जा रहे संविधान पर भी राष्ट्रीय प्रतीक उकेरा जाना था।
संविधान की हस्तलिखित प्रति को सजाने का काम मिला आधुनिक भारतीय कला के पुरोधाओं में से एक नंदलाल बोस को। बोस ने एक टीम बनाई जिसमें 21 साल के दीनानाथ भार्गव भी थे। बोस का मन था कि संविधान के शुरुआती पन्नों में ही सिंहचतुर्मुख चित्रित होना चाहिए। चूंकि भार्गव कोलकाता के चिड़ियाघर में शेरों के व्यवहार पर रिसर्च कर चुके थे, इसलिए बोस ने उन्हें चुना। 26 जनवरी, 1950 को ‘सत्यमेय जयते’ के ऊपर अशोक के सिंहचतुर्मुख की एक अनुकृति को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया।
नयी संसद ऐसी होगी
1921 से 1927 के बीच पुराने संसद भवन का निर्माण हुआ था। नया संसद भवन 64,500 वर्ग मीटर में फैला है जो अभी की इमारत से 17,000 वर्ग मीटर ज्यादा है। लोकसभा का आकार मौजूदा सदन से लगभग तिगुना होगा। लोकसभा में 888 सदस्यों के लिए सीटें होंगी। वहीं दूसरी ओर राज्यसभा में 326 सीटें होंगी। संयुक्त सत्र के दौरान 1224 सदस्य साथ में बैठ सकेंगे।
नई इमारत तीन मंजिला है। नए संसद भवन का डिजाइन त्रिकोणीय है। नई बिल्डिंग की डिजाइन में लोकसभा, राज्यसभा और एक खुला आंगन है। दोनों ही सदन सुविधाओं व डिजाइनिंग के लिहाज से स्टेट ऑफ आर्ट हैं।
वर्तमान संसद भवन का गेट आप दाईं ओर देख सकते हैं। नए संसद भवन का गेट आकार में बड़ा है। उसपर अशोक चक्र बना है और ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है।
संसद भवन की छत पर एक गुंबद है। नई बन रही इमारत की छत पर 6.5 मीटर ऊंचा राष्ट्रीय प्रतीक ‘अशोक स्तंभ’ स्थापित किया गया है। इमारत में बड़ा सा कांस्टीट्यूशन हॉल, सांसदों के लिए लाउंज, एक लाइब्रेरी, कमिटी रूम, डाइनिंग एरिया और पार्किंग भी होगी। इसका बड़ा आकर्षण कांस्टीट्यूशन हॉल होगा, जहां भारत की लोकतांत्रिक विरासत को दर्शाने के लिए तमाम चीजों के साथ-साथ संविधान की मूल प्रति, डिजिटल डिस्प्ले वगैरह दिखाए जाएंगे।
नई संसद में दोनों सदनों के साथ-साथ सभी सांसदों के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस ऑफिस की व्यवस्था भी होगी। यहां सांसदों के लिए डिजिटल सुविधाएं उपलब्ध होंगी। नए सदन में सांसदों की बैठने की व्यवस्था मौजूदा व्यवस्था से हटकर ज्यादा खुली व आरामदेह होगी। एक टेबल पर दो सासंद बैठेंगे। सभी मंत्रियों के एक ही जगह पर बैठने की व्यवस्था की गई है, जिससे उनके आने जाने में लगने वाले वक्त की बचत हो सके।
भारत का राजकीय प्रतीक क्या है?
भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, भारत का राजचिह्न सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है, जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं। इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर ‘धर्मचक्र’ रखा हुआ है।
भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नही देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक सांड और बाईं ओर एक घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। आधार का पदम छोड़ दिया गया है। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- ‘सत्य की ही विजय होती है’।’
(साभा नवभारत टाइम्स)
केदारनाथ में स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित
रुद्रप्रयाग । केदारनाथ में हर समय मौसम से जुड़ी सटीक जानकारी पाने के लिए रूद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के वैज्ञानिकों की मदद से हिमालयी धाम में स्वचालित मौसम केंद्र (स्टेशन) स्थापित किया है।
इस मौसम केंद्र से केदारनाथ के पल-पल बदलते मौसम की जानकारी प्रशासन के साथ ही भगवान शिव के धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों को भी आसानी से उपलब्ध होगी। आईआईटी कानपुर के प्रो. इंद्रसेन ने रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन के अनुरोध पर यह प्रणाली केदारनाथ में स्थापित की है।
रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी ने बताया कि केदारनाथ धाम में मौसम प्रणाली लगने से वहां पुनर्निर्माण, यात्रा संचालन और हेलीकॉप्टर सेवा का संचालन भी और बेहतर तरीके से होगा। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही केदारनाथ धाम में दर्शन करने के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों को भी मौसम की जानकारी समय से मिलेगी और वे अपनी यात्रा सुगमता के साथ कर सकेंगे।