Sunday, July 27, 2025
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दिवाली पर ‘संदूक’ प्रदर्शनी-सह-बिक्री आरम्भ

कोलकाता । त्योहारी सीजन को देखते हुए रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर, संदूक द्वारा एक मेगा दिवाली बोनान्ज़ा, लाइफस्टाइल उत्पादों की एक प्रदर्शनी-सह-बिक्री का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में फैशन का सबसे अच्छा प्रदर्शन, दिवाली सजावट, गृह सज्जा देखने को मिली। प्रदर्शनी का उद्घाटन आइस स्केटिंग रिंक में किया गया। इस अवसर पर सेलिब्रिटी जोड़ी-बिक्रम घोष और जया सील घोष उपस्थित रहे। वहीं रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर के अध्यक्ष मनीष बियानी और कोषाध्यक्ष संजय बालोटिया भी उपस्थित रहे। जयपुर, दिल्ली, लखनऊ, बैंगलोर जैसे शहरों से पूरे भारत में चुने गए प्रदर्शकों से मर्चेंडाइज कोलकाता वासियों के लिए उपलब्ध है। इनमें से कुछ उत्पादों में विशेष उत्सव और दुल्हन के वस्त्र, हीरे, मीना, कुंदन और पोल्की आभूषण, अद्वितीय घरेलू सजावट आइटम, दस्तकारी कलाकृतियां, पर्स, बैग, फैशन के सामान, टेबल वेयर और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं और दिवाली की सजावट और उपहार देने के समान भी हैं। रमणीय और सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन वातावरण प्रदान करने के लिए, मेले के मुख्य द्वार, फ़ोयर और सभी स्टूडियो और स्टालों को विशेष रूप से सजाया गया है। तीन दिवसीय आयोजन की आय का उपयोग रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर की विभिन्न धर्मार्थ गतिविधियों के लिए किया जाएगा, जिसमें जरूरतमंद बच्चों के लिए मुफ्त हृदय शल्य चिकित्सा, इसके नेत्र अस्पताल हरि चरण गर्ग रोटरी महानगर नेत्रालय, रक्तदान हेल्पलाइन, आपदा राहत में वंचितों के लिए मुफ्त मोतियाबिंद सर्जरी , छात्रवृत्ति और डायलिसिस केंद्र शामिल है।

लक्ष्मी वहीं रहती हैं जहाँ सृजन भी हो और विवेक भी

उत्सव चल रहे हैं…दुर्गा पूजा के बाद दिवाली की तैयारी… माँ लक्ष्मी के स्वागत को सब तैयार हैं। भव्यता…ताम -झाम…ठाठ – बाट…दिवाली ऐसा त्योहार है जो इन सबका मौका देता है। लक्ष्मी की पूजा करते हुए हम सभी चाहते हैं कि घर में उनका वास हो मगर लक्ष्मी का सही अर्थ और सही सन्देश हम नहीं समझते। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ घर की लक्ष्मी नहीं है। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ गृहिणी होना भर नहीं है बल्कि हर वह स्त्री लक्ष्मी है जो घर से लेकर देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में अपनी भूमिका किसी न किसी तरीके से अपनाती हैं। पता है समस्या क्या है, लक्ष्मी चाहिए सबको मगर खुद लक्ष्मी क्या चाहती हैं, यह कोई नहीं समझना चाहता। राम से लेकर रावण तक, कुबेर से लेकर दुर्योधन तक.हर कोई लक्ष्मी पर अधिकार जताना चाहता है मगर लक्ष्मी चंचला हैं…वह टिकती वहीं हैं…जहाँ उनकी बहन सरस्वती हों…..जहाँ सृजन हो…कोई गुण हो..जहाँ लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है..वहाँ महालक्ष्मी रहती हैं। कहने का मतलब यह कि अपनी लक्ष्मी को सिर्फ मोम की गुड़िया मत बनाइए बल्कि उसे मजबूत, आत्मनिर्भर और सृजनात्मक व्यक्तित्व बनाइए। धन की देवी विवेक और बुद्धि दें…सबका जीवन मंगल करें…यही शुभकामना है…शुभ उत्सव

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आदिवासियों के उत्थान में जुटी प्रोफेसर द्वारा स्थापित संस्था बनी सामाजिक प्रयोगशाला

हेमा वैष्णवी 
डॉ. प्रबोध कुमार भौमिक ने विदिशा की स्थापना की, जिसे 100 लोढ़ा परिवार अब घर कहते हैं

आज शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोगों के पास बुनियादी सुविधाएं और अवसर समान रूप से उपलब्ध हैं, लेकिन जब बुनियादी सुविधाओं की बात आती है तो आदिवासी लोग ऐसा नहीं कह सकते। वहाँ अभी भी खानाबदोश जनजातियाँ और समुदाय मौजूद हैं जो निराश्रित जीवन जीते हैं क्योंकि वर्तमान समाज इन लोगों और उनके जीने के तरीके को समझने में विफल रहता है।
अभी भी ऐसी जनजातियाँ हैं जो अपनी दुनिया में रहना पसन्द करती हैं और बाहरी दुनिया में आने से डरती हैं। इनको सामने लाना, इन समुदायों के सतत उत्थान की दिशा में काम करना समय की मांग है और यह काम शुरू किया प्रो. प्रबोध कुमार भौमिक ने। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में वे आदिवासियों के लिए काम करते रहे।
प्रो. प्रबोध ने 1949 में बंगबासी कॉलेज से एन्थ्रोपोलॉजी यानी नृविज्ञान में बीएससी (ऑनर्स) किया, और फिर 1951 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इसी विषय में एमएससी किया। पश्चिम बंगाल के लोधा समुदाय के सामाजिक – आर्थिक जीवन पर पीएचडी पूरी करने के लिए उनके बीच गये।
अपने शोध के माध्यम से उन्होंने बदलाव लाने की मुहिम आरम्भ की और समाज सेवक संघ और उसके बाद 1955 में इंस्टीट्यूट फॉर द सोशल रिसर्च एंड अप्लाइड एन्थ्रोपोलॉजी स्थापित किया जो विदिशा के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना लोधा समुदाय के विकास एवं उनकी आपराधिक प्रवृत्तियों को बदलने के लिए की गयी थी।
प्रो. प्रबोध ने अपना जीवन आर्थिक सुधार, शैक्षिक प्रगति और जनजातियों के स्थायी जीवन, और आदिवासी लोगों के उत्थान, विशेष रूप से क्षेत्र के लोधाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया । उनके निधन के बाद 2003 में, डॉ. प्रदीप कुमार भौमिक, एसोसिएट प्रोफेसर, ग्रामीण विकास केंद्र, आईआईटी, खड़गपुर, प्रो. प्रहोद के निधन के बाद, मानद सचिव के स्थान पर भरे गए।
लगभग छह दशकों की यात्रा के बाद, विदिशा अब लोढ़ा, संताल, मुंडा, महली, कोरा और भूमिज जनजातियों सहित लगभग सौ आदिवासी परिवारों का घर है और यहाँ उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई प्रकार के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं। लोधा ही नहीं बल्कि संथाल, मुंडा, महाली, कोरा एवं भूमिज समुदाय के लोग भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं। डॉ. प्रदीप के अनुसार यह केन्द्र एक सामाजिक प्रयोगशाला है।
प्रो. प्रबोध ने सरकार के साथ लोधा समुदाय के 20 परिवारों को दहारपुर कृषियोग्य भूमि के वितरण में शामिल थे। खेती और टसर उत्पाद जैसे कई क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमिनार, कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। एक बायो गैस यूनिट और वर्मीकम्पोस्ट प्लांट स्थापित कर युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया। 2006 -08 में आदिवासी महिलाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देते हुए बाटिक प्रिंट का काम सिखाया गया। 90 आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए भी विदिशा काम कर रहा है।
विदिशा ने एक इको म्यूजियम और प्रबोध कुमार भौमिक मेमोरियल लाइब्रेरी नामक पुस्तकालय स्थापित किया है। विदिशा  पिछले 37 साल से समाज विज्ञान पर एक जरनल मेन एंड लाइफ प्रकाशित कर रहा है। विदिशा हर साल नवान्न उत्सव आयोजित करता है जिसमें आदिवासी समुदाय सांस्कृतिक कलाएं एवं नृत्य प्रदर्शित किये जाते हैं। अब यह एन्थ्रोपोलॉजी, ग्रामीण विकास और सोशियोलॉजी के विद्यार्थियों के लिए शोध केन्द्र बन गया है।

(साभार – योर स्टोरी हिन्दी)

पति भी जबरन यौन संबंध बनाए तो वो रेप ही है – सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली । यदि कोई महिला विवाहित होने के बावजूद अपनी मर्जी के बगैर गर्भवती होती है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी  एक्‍ट के अंतर्गत इसे दुष्कर्म ही माना जाएगा। किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति के बगैर छूना और उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है, चाहे ऐसा करने वाला उसका विवाहित पति ही क्‍यों न हो। हम गर्भपात के अधिकार को सिर्फ विवाहित महिलाओं तक ही सीमित नहीं रख सकते। गर्भवती होने पर बच्‍चे को जन्‍म देना है या नहीं, यह अधिकार पूरी तरह सिर्फ स्‍त्री का है। यह स्‍त्री की स्‍वायत्ता और उसकी देह पर उसके संपूर्ण एकाधिकार का मामला है। ऊपर लिखी सारी बातें गुरुवार को एक केस के संबंध में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट न कही हैं। जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अबॉर्शन से जुड़े एक केस पर फैसला सुनाते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए उपरोक्‍त बातें कहीं

।हालांकि भारत में अभी भी मैरिटल रेप कानूनन अपराध नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्‍पणी इस विषय पर लगातार उठाए जा रहे सवालों और सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा रही याचिकाओं का स्‍पष्‍ट जवाब तो है। पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा एएस बोपन्‍ना और जेबी पारदीवाला भी शामिल थे। तीन जजों की पीठ ने एकमत से ये फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट एक 25 साल की अविवाहित लड़की की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लड़की ने दिल्‍ली हाईकोर्ट में अपनी 24 हफ्ते की प्रेग्‍नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी एक्‍ट में 2021 में हुए संशोधन के तहत गर्भपात करवाने की अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया था, लेकिन मौजूदा प्रावधानों के तहत यह अधिकार सिर्फ तलाकशुदा, विधवा और कुछ अन्‍य श्रेणी की महिलाओं के लिए ही है। अविवाहित सिंगल महिलाओं के लिए अभी भी इस कानून में गर्भपात की अवधि 20 सप्‍ताह है, जिसे उक्‍त महिला ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनौती दी।

इस केस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “रेप का अर्थ है बिना आपसी सहमति के यौन संबंध बनाना और विवाहित महिला भी रेप की इस परिभाषा के दायरे में आ सकती है। करीबी पार्टनर के द्वारा की जाने वाली हिंसा हमारे समाज का एक सच है। कोई भी प्रेग्‍नेंसी जो सह‍मति के विरुद्ध जबरन सेक्‍स के कारण हुई हो, वह रेप है।” भारतीय संविधान की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, लेकिन रेप की इस परिभाषा के दायरे में मैरिटल रेप नहीं आता। यदि विवाह संस्‍था के भीतर कोई पुरुष अपनी पत्‍नी के साथ बलपूर्वक जबर्दस्‍ती करता है और उसकी इच्‍छा के विरुद्ध संबंध बनाता है तो वह महिला आईपीसी की किसी धारा के अंतर्गत रेप का मुकदमा दायर नहीं कर सकती। इसी साल दिल्‍ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दोनों जजों की राय बिलकुल भिन्‍न थी। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 375 के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को संवैधानिक रूप से चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान एक जज का मानना था कि विवाह के भीतर भी मर्जी के बगैर जबर्दस्‍ती संबंध बनाना रेप के दायरे में आता है और दूसरे जज का कहना था कि विवाह के भीतर बन रहे संबंधों को रेप के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने भी 2017 में हाईकोर्ट के जवाब मांगने पर कहा था कि मैरिटल रेप को कानूनन अपराध के दायरे में रखने का नकारात्‍मक असर विवाह संस्‍था पर पड़ेगा। दुनिया के 150 देशों में रेप कानून के मुताबिक में मैरिटल रेप अपराध के दायरे में आता है और उसके लिए वैसी ही सजा का प्रावधान है, जो रेप के लिए है। दुनिया के 24 देशों में मैरिटल रेप को लेकर कोई स्‍पष्‍ट कानून नहीं है. 19 देशों ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप कानून जुर्म नहीं है।  इथियोपिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, जॉर्डन, म्‍यांमार, तंजानिया, फिलिस्‍तीन, श्रीलंका, ईरान, ईराक, सीरिया, जमैका, ओमान, जॉर्डन और नाइजीरिया जैसे देश उन्‍हीं 19 देशों की फेहरिस्‍त में शामिल हैं। जहां विवाह के भीतर पति के द्वारा की जा रही जबर्दस्‍ती किसी यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आती. दुर्भाग्‍य से भारत भी दुनिया के उन 19 देशों की सूची में शामिल है।

त्वचा को ध्यान में रखकर परिधान चुनें पुरुष

आमतौर पर बेहतरीन लुक पाने के लिए महिलाओं के पास परिधान से लेकर मेकअप तक कई विकल्प मौजूद रहते हैं। पुरुष अक्सर स्मार्ट दिखने के लिए कपड़ों पर ही ज्यादा फोकस करते हैं।
वहीं अधिकतर पुरुष फैशन के अनुसार ही परिधान चुनते हैं। हालांकि जरूरी नहीं है कि फैशन में मौजूद हर ड्रेस आप की करेगी. ऐसे में व्यक्तित्व पर फबेगी। अपनी त्वचा के मुताबिक परिधान चुन सकते हैं।
दरअसल, ज्यादातर पुरुष अपने त्वचा को नजरअंदाज करके फैशन ट्रेंड को फॉलो करते हैं। त्वचा के अनुसार आप इस तरह के कपड़े पहन सकते हैं –
गेहुंआ रंग
गेहुंआ रंग वाले पुरुषों के लिए ब्राउन, टैन, खाकी, पीला, ग्रे, नारंगी, नेवी ब्लू और हरे कलर के वस्त्र सही रहेंगे। गेहुंआ रंग के पुरुषों पर सुनहरे रंग के कपड़े और आभूषण भी अच्छे लगेंगे।
सांवला रंग
अगर आपका रंग सांवला है तो आप मटमैला, क्रीम, ब्लू, खाकी, ग्रे, ऑरेंज, लाल, मरून, गुलाबी और गहरे पर्पल रंग के कपड़े आजमा सकते हैं। सांवले पुरुषों को पीला और हरे रंग के परिधान पहनने से बचना चाहिए।
गोरा रंग
गोरे पुरुषों पर अमूमन सारे रंग अच्छे लगते हैं मगर नीला, हरा, गुलाबी और पर्पल और भी अच्छे लगेंगे। इसके गहरा नीला और लाल रंग भी गोरे रंग के पुरुषों पर काफी जंचता है।
फुटवियर का चुनाव
वैसे तो त्वचा के रंग का फुटवियर से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन परफेक्ट लुक पाने के लिए ड्रेस से मैचिंग फुटवियर पहनना भी जरूरी होता है। ऐसे में आप अपनी सुविधा और ओकेजन के अनुसार स्लीपर, शूज, लोफर, स्नीकर जैसे फुटवियर पहन सकते हैं।

ऐसे साफ करें काले-गंदे चूल्हे हो या फिर लोहे की कढ़ाई

घरों में दिवाली की सफाई होना शुरू हो गई है। ऐसे में किचन का कैबिनेट हो या फिर पुराने बर्तन सभी लोग इस दौरान गंदी चीजों को साफ कर रहे हैं। किचन में स्टोव खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे में कई बार इस पर खाना गिर जाता है और फिर चूल्हा बूरी तरह से गंदा हो जाता है। जिसे साफ करना काफी मुश्किल होता है। वहीं कुछ चीजों को लोहे के बर्तन में पकाया जाता है और इसे भी साफ करना डिफिकल्ट है। ऐसे में दोनों चीजों की चमक वापस लाने के लिए आप कुछ हैक्स को अपना सकते हैं।

गंदा स्टोव साफ करने के तरीके
इसे साफ करने के लिए आपको चाहिए बेकिंग सोडा और विनेगर। इसके लिए बेकिंग सोडा में विनेगर को मिक्स करें और एक पेस्ट तैयार करें। अच्छे से जब पेस्ट बन जाए तो इसे स्टोव पर स्प्रेड करें। कुछ देर रुकें और फिर स्क्रबर की मदद से इसे साफ करें। आपको इसे हल्के हाथों से ही रगड़ना है। अच्छे से स्क्रब हो जाने के बाद इसे गीले कपड़े से साफ करें। आप देखेंगे की स्टोव पहले से ज्यादा चमक गया है।
लोहे की कढ़ाई कैसे साफ करें
लोहे की कढ़ाई में अक्सर जंग लग जाती है। ऐसे में इसको साफ करने के लिए आप क्लीनिंग हैक को अपना सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले पैन या कढ़ाई को अच्छे से साफ करें और फिर इसे कपड़े से पोंछ कर सुखा लें। अब इसमें तेल डालें और इसे कपड़े की मदद से पूरी तरफ करें। तेल को अच्छे से सब तरफ लगाएं।ऐसा करने पर आप बर्तनों को जंग लगने से बचा सकते हैं।

निवेश के लिए सुरक्षित विकल्प है नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट

नयी दिल्ली । हर व्यक्ति अपनी नौकरी की शुरुआत के साथ ही निवेश की योजना बनाने लगता है. आज भी देश में बड़ी संख्या में लोग हैं तो मार्केट में निवेश करने से बचते हैं और केवल वहीं पैसे निवेश करते हैं जहां जोखिम नहीं हैं। अगर आप भी सुरक्षित निवेश के विकल्प की तलाश में हैं तो हम आपके लिए पोस्ट ऑफिस की एक शानदार निवेश स्कीम लेकर आए हैं।
इस योजना का नाम है नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट। इस स्कीम में निवेश करने पर आपको सरकारी गारंटी तो मिलती है। इसके साथ ही आपको शानदार रिटर्न भी प्राप्त होता है। अगर आप भी नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में निवेश की प्लानिंग बना रहे हैं तो हम आपको इस स्कीम के ब्योरा और मिलने वाले रिटर्न की जानकारी दे रहे हैं।
एनएससी पर मिल रहा इतना रिटर्न
पोस्ट ऑफिस की नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट पर ग्राहकों को 6.8 प्रतिशत का रिटर्न सालाना आधार पर मिलता है। इस स्कीम में निवेशक कुल 5 सालों के पैसे का निवेश कर सकते हैं। ध्यान देने वाली बात ये है कि एनएससी स्कीम पर आपको कंपाउंडिंग के आधार पर ब्याज दर मिलता है।
आपको बता दें कि सरकार एनएससी स्कीम के साथ-साथ अन्य स्मॉल सेविंग स्कीम की ब्याज दरों की समीक्षा समय-समय पर करती है। अगर आप एनएससी स्कीम में 5 लाख रुपये का निवेश 5 सालों के लिए करते हैं तो आपको मैच्योरिटी पर 6.94 लाख रुपये का रिटर्न मिलेगा यानी आप 5 सालों में करीब 2 लाख रुपये बतौर टैक्स के रूप में प्राप्त कर लेंगे।
एनएससी स्कीम में निवेश करने हेतु पात्रता
इस स्कीम में आप सिंगल, प्वाइंट के रूप में अकाउंट खोल सकते हैं।
ज्वाइंट अकाउंट में दो या तीन लोग एक साथ खोल सकते हैं।
इस स्कीम में आप कम से कम 1000 रुपये और अधिकतम कितने भी पैसे निवेश कर सकते हैं।
वहीं स्कीम में आप 1,000 रुपये के मल्टीपल में पैसे निवेश कर सकते हैं।
10 साल के बच्चे की अकाउंट की देखरेख उनके माता-पिता बच्चे के 18 साल तक के होने तक करते हैं।
टैक्स छूट का मिलता लाभ
इस स्कीम में निवेश करने पर आपको इनकम टैक्स की धारा 80सी के तहत छूट मिलती है। आपको 1.5 लाख रुपये के निवेश पर छूट का लाभ मिलता है लेकिन इस स्कीम का लॉक इन पीरियड 5 साल का है।

दादा द्वारका प्रसाद मिश्र की किताबों से प्रेरित वेबसीरीज निर्देशित करेंगे सुधीर मिश्रा

70 और 80 के दशक पर आधारित होगी सीरीज
मुम्बई। बॉलीवुड के जाने-माने निर्देशक सुधीर मिश्रा अपने दादा, स्वतंत्रता सेनानी द्वारका प्रसाद मिश्र की लिखी किताबों से प्रेरित वेबसीरीज का निर्देशन करेंगे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे द्वारका प्रसाद मिश्रा ने लिविंग ए एरा: इंडियाज, मार्च टू फ्रीडम, द नेहरू एप्रोच: फ्रॉम डेमोक्रेसी टू मोनोक्रेसी, द पोस्ट नेहरू एरा, लंका की खोज जैसी किताबें लिखी हैं। सुधीर मिश्रा इन किताबों से प्रेरित वेबसीरीज का निर्देशन करेंगे।
सुधीर मिश्रा ने कहा कि यह सीरीज 70 और 80 के दशक पर आधारित है। मेरे दादा डीपी मिश्रा ने कई किताबें लिखी हैं। उन्होंने मेरी मां को भी कई किताबें दी थीं, क्योंकि मैं एक फिल्म निर्माता हूं, और उन्हें लगता था, कि मैं इन किताबों के साथ कुछ कर सकता हूं। मैं उनकी किताबों को फिर से पढ़ रहा हूं। मैं उनकी बातों को लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं।

नौकरी छोड़ दी, पीएफ ट्रांसफर नहीं किया तो ध्यान दें

नयी दिल्ली । अगर आप रिटायर हो गए हैं या नौकरी छोड़ दी है, तो तीन साल के अंदर पीएफ खाते से पैसा निकाल लें। ऐसा नहीं करने पर आपका पीएफ खाता इनएक्टिव हो सकता है। एक मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कुछ इसी तरह का फैसला दिया है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसले में कहा है कि रिटायर होने वाला या विदेश में स्थायी रूप से बस जाने वाला कर्मचारी तीन साल तक अपने पीएफ अकाउंट से पैसा नहीं निकालता, तो खाता निष्क्रिय हो जाएगा। साथ ही कर्मचारी के खाते में इस पीरियड का ब्याज भी नहीं दिया जाएगा। दरअसल, एक शख्स ने कोर्ट से गुजारिश की थी कि उसे 2017 से 2021 तक का पीएफ का ब्याज दिलवाया जाए। इस पर कोर्ट ने मांग नामंजूर करते हुए कहा कि शख्स 2006 में रिटायर हो गया था। उसने रिटायरमेंट के 3 साल के अंदर विड्रॉल के लिए अप्लाई नहीं किया। ऐसे में उसे 2017 से 2021 तक का ब्याज नहीं दिया जा सकता।
रिटायरमेंट या विदेश में स्थायी रूप से बस जाने या कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में इस तरह के मामले सामने आते हैं। जब पीएफ खाते में तीन साल तक कोई योगदान नहीं किया जाए, तो उसे एक निष्क्रिय खाता माना जाता है। इस समय कर्मचारी की 58 वर्ष की आयु तक ब्याज दिया जाता है। आप इस आयु तक पहुंच जाएंगे, तो खाता निष्क्रिय हो जाएगा।निष्क्रिय खाते से इस तरह निकालें रकम
ईपीएफओ मेंबर अपने पीएफ खाते को दोबारा एक्टिव भी करवा सकते हैं। इसके लिए आपको ईपीएफओ के ऑफिस में आवेदन देना होगा। निष्क्रिय पीएफ खातों से संबंधित क्लेम को निपटाने के लिए उस क्लेम को कर्मचारी के नियोक्ता द्वारा सर्टिफाइड किया जाना जरूरी होता है। अगर कंपनी बंद हो चुकी है और क्लेम सर्टिफाइड करने के लिए कोई नहीं है, तो ऐसे क्लेम को बैंक केवाईसी दस्तावेजों के आधार पर सर्टिफाई करते हैं। केवाईसी दस्तावेजों में आपको आधार कार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट, पैन कार्ड, राशन कार्ड, ईएसआई आइडेंटिटी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत पड़ सकती है। अगर पीएफ खाते में 50 हजार रुपये से अधिक की रकम है, तो यह पैसा असिस्टेंट प्रोविडेंट फंड कमिश्नर की मंजूरी के बाद निकलता है। 25 हजार रुपए से अधिक और 50 हजार रुपए से कम रकम होने पर अकाउंट ऑफिसर की मंजूरी लेनी होती है। वहीं, पीएफ की रकम 25 हजार रुपए से कम है, तो निकासी के लिए डीलिंग असिस्टेंट मंजूरी दे सकते हैं।
मान लीजिए किसी कर्मचारी ने 5 साल से कम नौकरी की है और पीएफ राशि 50,000 रुपये से अधिक है। ऐसे में पीएफ से पैसा निकालने पर ब्याज की राशि से 10 फीसदी टीडीएस की कटौती होगी। मान लीजिए किसी कर्मचारी ने 5 साल लगातार नौकरी की है, तो ईपीएफ में योगदान नहीं करने की तारीख से लेकर निकासी के समय तक के लिए आप ब्याज पाने के योग्य होंगे। हालांकि, इस ब्याज पर टैक्स देना होगा। यहां आपकी नौकरी के दौरान की ब्याज आय टैक्स फ्री रहती है।

56 धोती, पैरों से खून… जब हजारीबाग जेल से भाग निकले थे जयप्रकाश

नयी दिल्‍ली । संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश का पूरा जीवन संघर्ष करते हुए बीता। धीरे-धीरे वह जेपी के नाम से मशहूर हो गए। आपातकाल के दौरान उनके नेतृत्‍व में जेपी आंदोलन ने इंदिरा गांधी सरकार की चूलें हिला दी थीं। इस आंदोलन ने राजनीति की तस्‍वीर बदल दी थी। इसने इंदिरा से पीएम की कुर्सी छीन ली थी। इसके पहले जेपी भारत छोड़ो आंदोलन और सर्वोदय आंदोलन का हिस्‍सा रह चुके थे। इस स्‍वतंत्रता सेनानी से जुड़ा एक और बहुत दिलचस्‍प किस्‍सा है। यह आजादी से पहले का है। तब जयप्रकाश हजारीबाग जेल से भाग निकले थे। इसमें वह अकेले नहीं थे। वह अपने पांच साथियों के साथ जेल से फरार हुए थे। आजादी के इन मतवालों के जज्‍बे के सामने जेल की 17 फीट ऊंची दीवार भी बौनी पड़ गई थी। जेल से निकल भागने के लिए इन क्रांतिकारियों ने 56 धोतियों का इस्‍तेमाल किया था। इसने अंग्रेजी हुकूमत के मुंह पर कालिख पोत दी थी। तस्‍वीर में दिख रही यह वही ऐतिहासिक जेल है। 2001 में इस जेल का नाम जेपी पर कर दिया गया था।
वो साल 1942 था। दिन था 9 नवंबर। सब कुछ रोजमर्रा की तरह था। लेकिन, दिन ढलने के साथ कुछ बड़ा घटने वाला था। रात होते ही जयप्रकाश अपने पांच साथियों के साथ जेल से फरार हो गए थे। जेल की 17 फीट ऊंची दीवार फांदकर वो सभी बाहर निकल आए थे। इसमें उन्‍होंने 56 धोतियों का इस्‍तेमाल किया था। जेपी के साथ फरार होने वालों में रामानंद मिश्र, शालीग्राम सिंह, सूरज नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ला और गुलाब चंद गुप्‍ता शामिल थे। तब जेल में बंद क्रांतिकारियों ने जमकर दिवाली का जश्‍न मनाया था।
देखते ही गोली मारने के थे आदेश
दरअसल, 9 अगस्‍त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। इसने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। 91 हजार से ज्‍यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया था। पुलिस फायरिंग में हजार से ज्‍यादा लोगों की जान गई थी। यही वह समय था जब जयप्रकाश हजारीबाग सेंट्रल जेल से भाग निकले थे।
जेल से फरार इन 6 क्रांतिकारियों को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 10 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया गया था। जंगलों में आजादी के इन 6 सिपाहियों को तलाशने के लिए ब्रितानी सैनिकों की दो कंपनियां लगाई गई थीं। जरूरत पड़ने पर देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया था। तब हजारीबाग जिला कमिश्‍नर केवीएस रमण की नींद उड़ गई थी। उनके आदमियों ने इन छह को ढूढने की पूरी कोशिश की। लेकिन, यह नाकाम साबित हुई।
तब 40 साल के थे जेपी
जब जेपी जेल से फरार हुए थे तब उनकी उम्र 40 साल थी। फरार होने की योजना तो अक्‍टूबर में ही थी। लेकिन, किन्‍हीं कारणों से इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। शुरुआत में जेपी समेत 10 लोगों का जेल से भागने का प्‍लान था। हालांकि, बाद में यह तय हुआ कि 6 लोग बाहर जाएंगे। बाकी के 4 गार्डों का ध्‍यान भटकाने का काम करेंगे। फरार होने वाले 6 क्रांतिकारियों में सबसे फुर्तीले योगेंद्र शुक्‍ला थे। वह तेजी से दीवारों पर चढ़-उतर लेते थे।
उसी दिन दिवाली थी। जेल में ढेरों दिये जल र‍हे थे। हिंदू वॉर्डनों को दिवाली की छुट्टी मनाने के लिए ड्यूटी से छुट्टी मिली थी। पूरे जेल में त्‍योहारी माहौल था। रात 10 बजे 6 लोग जेल के आंगन में पहुंचे। यह समय इसलिए चुना गया था क्‍योंकि वॉर्डन रात का भोजन करने के बाद अक्‍सर सिगरेट या पान खाने के लिए जाते थे। डिनर टेबल दीवार के पास रखी गई थी। शुक्‍ला घुटनों पर झुककर टेबल के ऊपर बैठ गए थे। एक दल वॉर्डनों पर नजर रख रहा था। इसके बाद सूरज नारायण सिंह के पेट के चारों ओर धोती लपेटी गई। गुलाब चंद, शुक्‍ला की पीठ पर चढ़े और सूरज गुलाब के कंधों पर चढ़कर दीवार पर चढ़ गए। चंद मिनटों में देखते ही देखते सभी क्रांतिकारी जेल के बाहर थे।
इस कवायद में जेपी के पैर में चोट आ गई थी। वह चलने में लाचार हो गए थे। साथ‍ियों ने उनके कटे पांव पर धोती बांध दी थी। वह फूल गया था और उसमें से तेजी से खूब बह रहा था। जब साथियों ने देखा कि उनके लिए चलना नामुमकिन है तो उन्‍होंने जेपी को कंधों पर बैठा लिया था। 30 नवंबर की रात को पूरा दल हजारीबाग क्रॉस करके गया गया जिले पहुंच गया था। वे सभी एक पत्‍थर के पास सोए थे। इसे आज जेपी रॉक के नाम से जाना जाता है। वहां से भागकर सभी एक गांव पहुंचे थे। यहां उन्‍होंने जेपी के दोस्‍तों के यहां शरण ली थी। 9 घंटे तक हजारीबाग जेल से उनके फरार होने की भनक तक नहीं लगी थी। यह संयोग ही था कि उस समय जेल सुप्रिंटेंडेंट टी नाथ 7 नवंबर से तीन हफ्तों के लिए छुट्टी पर थे। 9 नवंबर को उनका रिप्‍लेसमेंट पहुंचा था।

(साभार – नवभारत टाइम्स)