पटना । बिहार के नए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजविंदर सिंह भट्टी होंगे। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पूर्वी कमांड में अपर महानिदेशक (एडीजी) के पद पर कार्यरत थे।
वर्तमान में प्रदेश के डीजीपी पद पर कार्यरत संजीव कुमार सिंघल का कार्यकाल सोमवार को पूरा हो गया । गत रविवार को ही गृह विभाग की ओर से नए डीजीपी के नाम की औपचारिक घोषणा कर दी गई।
पंजाब के रहने वाले बिहार कैडर के आईपीएस
आईपीएस आरएस भट्टी मूल रूप से पंजाब के रहने वाले हैं। लेकिन उनका कैडर बिहार है। बिहार में अपनी सेवा देने के दौरान आईपीएस भट्टी ने कई बड़े बाहुबलियों को धूल चटाई। वहीं कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हरसंभव प्रयास किया।
शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी में निभाई भी महत्वपूर्ण भूमिका
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने की जो विशेष गुप्त योजना बनी थी, उसे आरएस भट्टी ने ही अंजाम दिया था। साल 2005 में विधानसभा चुनाव के वक्त विशेष तौर पर उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बिहार लाया गया था। सीवान एसपी के रूप में 5 नवंबर 2005 को आरएस भट्टी की ओर से शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी महिला इंस्पेक्टर गौरी कुमारी को सौंपी थी। गौरी ने शहाबुद्दीन को दिल्ली वाले आवास से गिरफ्तार किया था। उस वक्त एसपी भट्टी सीवान में बैठकर पूरे ऑपरेशन को ऑपरेट कर रहे थे। उसके बाद इन्हें सीवान में डीआईजी के रूप में पदभार सौंपा गया था।
बिहार में डीजी रैंक के है 11 अफसर
बिहार में वर्तमान में डीजी रैंक के 11 अफसर हैं। इनमें से छह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर राज्य में आए हुए हैं। केंद्र सरकार की ओर से तीन नामों का चयन कर सूची बिहार सरकार के गृह विभाग को भेजी गई थी। इन्हीं तीन नामों से एक को बिहार के डीजीपी के लिए चुनना था। राज्य सरकार की ओर नए डीजीपी के रूप में आईपीएस राजविंदर सिंह भट्टी को चुना गया।
1990 बैच के आईपीएस राजविंदर सिंह भट्टी होंगे नए डीजीपी
फाइनल हार कर भी दिल जीत गए किलियन एम्बाप्पे
23 साल के एम्बाप्पे ने महान पेले की कर ली है बराबरी
लुसैल । फीफा वर्ल्ड कप 2022 के फाइनल मुकाबले में 79वें मिनट तक अर्जेंटीना के पास 2-0 की बढ़त थी। पहले ही हाफ में लियोनेल मेसी और एंजेल डि मारिया के गोल से टीम को बढ़त मिल गई थी। दूसरे हाफ में भी फ्रांस को मौके नहीं मिल रहे थे। ऐसे में अर्जेंटीना की जीत आसान दिखने लगी थी। लेकिन इन सब के बीच फ्रांस की टीम में एक ऐसा खिलाड़ी था जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। 23 साल के किलियन एम्बाप्पे।
97 सेकेंड में दागे दो गोल
अर्जेंटीना के निकोलस ओटामेंडी ने बॉक्स के अंदर फ्रांस के खिलाड़ी पर फाउल कर दिया। रेफरी ने इसपर पेनल्टी दे दी। पेनल्टी ली किलियन एम्बाप्पे ने। 80वें मिनट में गोल इसे गोल में बदलकर उन्होंने अपनी टीम की वापसी करवाई। स्कोर 2-1 हो गया। एम्बाप्पे ने गोल का जश्न भी नहीं मनाया क्योंकि अभी भी उनकी टीम पीछे थी।
इसके 97 सेकेंड बाद ही फ्रांस ने दूसरा गोल कर दिया। यह गोल भी किलियन एम्बाप्पे ने दी दागा। 81वें मिनट में थुरम के पास पर बैलेंस खराब होने के बाद भी जोरदार प्रहार करते हुए गोल दाग दिया। इससे मुकाबला 2-2 की बराबरी पर आ गया। एम्बाप्पे ने इस गोल का जश्न जोरदार मनाया। स्टेडियम में फ्रांस के फैंस भी झूम उठे, जो 79 मिनट से शांत बैठे थे।
दूसरे एक्स्ट्रा टाइम में मेसी ने एक बार फिर गोल करके अपनी टीम को आगे कर दिया। लेकिन एम्बाप्पे कहां हार मानने वाले थे। 118 मिनट में पेनल्टी पर गोल करके उन्होंने मुकाबले को एक बार फिर बराबर कर दिया। वह फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल में हैट्रिक लगाने वाले सिर्फ दूसरे खिलाड़ी हैं। 1966 में इंग्लैंड ने ज्योफ हर्स्ट ने हैट्रिक लगाई थी। अंत में अर्जेंटीना ने पेनल्टी शूटआउट में मैच जीत लिया लेकिन दिल एम्बाप्पे जीत गए।
टूर्नामेंट में हुए 8 गोल
किलियन एम्बाप्पे के फीफा वर्ल्ड कप 2022 में 8 गोल किये। वह टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी भी रहे और गोल्डन बूट जीता। इसके साथ ही फीफा वर्ल्ड कप के 14 मैच में उनके 12 गोल हो गए हैं। महान पेले ने भी ब्राजील के लिए 14 वर्ल्ड कप मैचों में 12 गोल किये थे। एक्टिव खिलाड़ियों में सिर्फ मेसी के उनसे ज्यादा 13 गोल हैं। लेकिन मेसी ने 26 मैच खेले हैं।
मेसी का सपना पूरा, अर्जन्टीना बना फीफा विश्वकप विजेता
दोहा । महान लियोनेल मेसी का विश्व विजेता बनने का सपना आखिरकार पूरा हो गया। 2014 में खिताब चूकने वाले मेसी की टीम ने फीफा वर्ल्ड कप इतिहास के सबसे रोमांचक फाइनल में फ्रांस को फुल टाइम में 3-3 से स्कोर बराबर रहने के बाद पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हरा दिया। यह अर्जेंटीना का तीसरा खिताब है। इससे पहले उसने 1978 और 1986 में ट्रॉफी अपने नाम की थी। पेनल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना के गोलकीपर मार्टिनेज ने कमाल कर दिया। उन्होंने मौके बचाए और मेसी का सपना पूरा कर दिया। इसके साथ ही मेसी का नाम माराडोना के साथ सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।
लियोनेल मेसी ने दागा पहला गोल, हाफ आइम तक अर्जेंटीना 2-0 से आगे
लियोनेल मेसी की अगुवाई में अर्जेंटीना ने फ्रांस के खिलाफ विश्व कप फाइनल में हाफटाइम तक 2-0 से बढ़त बना ली थी। मेसी ने 23वें मिनट में पेनल्टी किक पर गोल किया, जो उन्हें उन्हें जब फ्रांस के डेम्बेले के एंजेल डि मारिया पर फाउल करने पर मिला था। इसके 13 मिनट बाद एंजेल डि मारिया ने दूसरा गोल दागा। मेसी के अब विश्व कप में पेले के समान 12 गोल हो गए हैं। वह एक ही विश्व कप में ग्रुप चरण और नॉकआउट चरण के हर मैच में गोल करने वाले पहले खिलाड़ी बने। मेसी का यह रिकॉर्ड 26वां विश्व कप मैच है और उन्होंने जर्मनी के लोथार मथाउस का रिकॉर्ड तोड़ा। वह 2006 से अब तक पांच विश्व कप में 11 गोल कर चुके हैं।
दो मिनट में दो गाल दाग एम्बाप्पे ने पलट दिया पासा
दूसरे हाफ में गेम अर्जेंटीना के पक्ष में जाता दिख रहा था कि किलियन एम्बाप्पे ने दो मिनट में दो गाल दागते हुए पासा ही पलट दिया। एम्बाप्पे ने 80वें मिनट में पेनल्टी पर गोल दागा, जबकि 97 सेकंड बाद गेंद जाल में उलझाते हुए फ्रांस को 2-2 की बराबरी पर ला खड़ा किया। पेरिस सेंट जर्मेन में साथी एम्बाप्पे की रफ्तार के आगे मेसी के सूरमा डिफेंडर पूरी तरह फेल हो गए। अर्जेंटीना की दीवार माने जाने वाले गोलकीपर मार्टिनेज भी असहाय दिखे। इस तरह एम्बाप्पे अब मेसी से एक गोल आगे हो गए।
एक्स्ट्रा टाइम में फिर मेसी-एम्बाप्पे ने दागे गोल, फिर अर्जेंटीना ने शूट किया
इसके बाद दोनों टीमों की ओर से गोल नहीं लग सके। अर्जेंटीना के पास दो मौके थे, लेकिन फ्रांस के डिफेंस ने गोल नहीं होने दिया। मैच को एक्स्ट्रा टाइम के लिए बढ़ाया गया। 108वें मिनट में मेसी ने गोल दागते हुए टीम को 3-2 की बढ़त दिलाई तो पेनल्टी पर गोल दागते 118वें मिनट में स्कोर 3-3 से बराबर कर दिया। बाद में पेनल्टी शूटआउट में मेसी की टीम ने मैदान मारते हुए इतिहास रच दिया।
कब कौन बना चैंपियन
ब्राजील (1958, 1962, 1970, 1994, 2002)
जर्मनी (1954, 1974, 1990, 2014)
इटली (1934, 1938, 1982, 2006)
अर्जेंटीना (1978, 1986, 2022)
फ्रांस दो बार (1998, 2018)
उरुग्वे दो बार (1930, 1950)
इंग्लैंड (1966)
स्पेन (2010)
पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये का ऋण लेकर नारायण मूर्ति ने शुरू की थी इन्फोसिस
नयी दिल्ली । इन्फोसिस आज देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। इसकी स्थापना 1981 में एन आर नारायण मूर्ति और उनके छह साथी इंजीनियरों ने सीमित संसाधनों के साथ की थी। लेकिन अपनी चार दशक की यात्रा में इस कंपनी ने कई कीर्तिमान अपने नाम किए हैं। इन्फोसिस साल 1999 में अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध हुई और यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये लेकर इस कंपनी की नींव रखी थी। आज इसका मार्केट कैप 640,617.19 करोड़ रुपये है और यह रिलायंस इंडस्ट्रीज , टीसीएस और एचडीएफसी बैंक के बाद भारत की चौथी सबसे मूल्यवान कंपनी है। आज यह देश की स्टार्टअप कंपनियों के लिए एक मिसाल है।
दरअसल इन्फोसिस नारायण मूर्ति का दूसरा वेंचर था। इससे पहले उन्होंने 1970 के दशक में पहला वेंचर शुरू किया था लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद उन्होंने पटनी कम्प्यूटर में भी नौकरी की लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। उन्होंने एक बार फिर कोशिश करने की सोची। लेकिन इसके लिए उनके पास पैसा नहीं था। नारायण मूर्ति का कहना है कि उनके लिए उनकी पत्नी सुधा मूर्ति सबसे बड़ी ताकत हैं। हर मुश्किल में वो उनके साथ खड़ी रहीं। इन्फोसिस के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये उधार मांगे। एक इंटरव्यू में सुधा मूर्ति ने बताया कि कैसे उनके पति ने उन्हें पैसे देने के लिए मनाया।
मां की सीख
सुधा से जब पूछा गया कि 10 हजार रुपये देते समय क्या आपको इसे लेकर चिंतित नहीं थी, तो उन्होंने कहा, ‘जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां ने मुझे सीख दी थी कि अपने पास कुछ पैसे रखने चाहिए और उनका इस्तेमाल केवल एमरजेंसी में करना चाहिए। इसका इस्तेमाल साड़ी, सोना या कुछ और खरीदने में नहीं होना चाहिए। इसे केवल एमरजेंसी में यूज करना है। मैं हर महीने मूर्ति और अपनी सैलरी में से कुछ पैसे अलग रखती थी। मूर्ति को इसकी जानकारी नहीं थी। ये पैसे में एक बॉक्स में रखती थी। इस बॉक्स में 10,250 रुपये थे।’
सुधा मूर्ति ने कहा, ‘मूर्ति ने सॉफ्टवेयर क्रांति के बारे में बताया। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि हम क्यों पिछड़ गए। जब मैंने उनसे पूछा कि इसमें क्या एमरजेंसी है तो उन्होंने कहा कि मेरा एक सपना है। यह पूरा होगा किया नहीं, मैं नहीं जानता। मैं जानती थी कि वह मेहनती आदमी हैं। अगर मैं यह पैसा नहीं देती को उन्हें ताउम्र इसका मलाल रहता। यह नाकामी से ज्यादा बदतर होता। अगर वह फेल होते तो फिर नौकरी कर लेते। लेकिन मुझे इसका जो मलाल होता वह ज्यादा बदतर होगा। इसलिए मैंने उन्हें केवल 10,000 रुपये दिए और 250 रुपये अपने पास रख लिए।
तीन लाख से ज्यादा कर्मचारी
नारायण मूर्ति के साथ नंदन निलेकणी, एन एस राघवन, एस गोपालकृष्णन, एस डी शिबूलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा इन्फोसिस के सह संस्थापक थे। ये सभी लोग पटनी कम्प्यूटर में साथ काम करते थे। इन लोगों ने सीमित संसाधनों के दम पर देश की सबसे सफल आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस की नींव रखी। 31 मार्च, 2022 को इन्फोसिस का रेवेन्यू 16.3 अरब डॉलर था और इसमें 314,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। एक अगस्त 2014 को कंपनी ने सभी को चौंकाते हुए विशाल सिक्का को अपना सीईओ बनाया। पहली बार कंपनी का बागडोर किसी आउटसाइडर को सौंपी गई थी। हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा और तीन साल बाद उन्होंने पद छोड़ दिया।
वैज्ञानिक प्रकाशन – वैश्विक रैंकिंग में 7वें से तीसरे स्थान पर पहुंचा भारत
नयी दिल्ली । भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों की वैश्विक रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा के बाद इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ (एनएसएफ) के विज्ञान और इंजीनियरिंग संकेतक 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिक प्रकाशनों में विश्व स्तर पर भारत की स्थिति 2010 में सातवें स्थान से सुधरकर 2020 में तीसरे स्थान पर आ गई। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के शोध पत्रों की संख्या 2010 में 60,555 से बढ़कर 2020 में 1,49,213 हो गई। वहीं, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) को आगामी केंद्रीय बजट 2023-24 में पिछले साल की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक आवंटन मिलने की संभावना है।
तीन वर्षों से लगातार बढ़ रही पेटेंट की संख्या
मंत्री ने बताया कि साइंस और इंजीनियरिंग में पीएचडी की संख्या के मामले में भारत की रैंकिंग तीसरी हो गई है। भारतीय पेटेंट ऑफिस (आईपीओ) से भारतीय वैज्ञानिकों को मिलने वाले पेटेंट की संख्या में भी पिछले तीन वर्षों से वृद्धि दर्ज की जा रही है। उन्होंने बताया कि 2018-19 में 2,511, 2019-20 में 4003 जबकि 2020-21 में 5,629 पेटेंट भारतीय वैज्ञानिकों के नाम से दर्ज हुए हैं।
साइंस-टेक्नोलॉजी के लिए बढ़ा बजट
पिछले बजट में डीएसटी को 6,002 करोड़ रुपये मिला था जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को मिले कुल 14,217 करोड़ रुपये के बजट का 42 प्रतिशत है। वहीं, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग को 5,636 करोड़ रुपये आवंटित हुए जो मंत्रालय के कुल आवंटन का 40 प्रतिशत है। वहीं, 18 प्रतिशत यानी 2,581 करोड़ रुपये की राशि बायोटेक्नॉलजी डिपार्टमेंट को दी गई।
जीआईआई रैंकिंग में भी जबर्दस्त सुधार
ध्यान रहे कि नैशनल साइंस फाउंडेशन अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो चिकित्सा से इतर साइंस और इंजीनियरिंग के सभी क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान एवं शिक्षण को बढ़ावा देती है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) 2022 में भी भारत की जीआईआई रैंकिंग भी जबर्दस्त तरीके से सुधरी है। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (विपो) की ओर से की जाने वाली जीआईआई रैंकिंग में भारत 2022 में 40वें स्थान पर पहुंच गया है जो 2014 में 81वें स्थान पर था।
बिहार के इस गाँव में 30 साल में 1 रुपये की फीस लेकर आई टी की तैयारी करवाते हैं दुर्गेश्वर
पटना । देश के लाखों बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं। इसके लिए वो पूरी जी-जान लगाकर मेहनत करते हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं, तो वहीं डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए नीट की। अब तो देश के लगभग हर शहर में लाखों कोचिंग सेंटर खुल गए हैं, जहां बच्चों से मोटी फीस वसूल कर उन्हें इन परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती है। आईआईटी और नीट के लिए सबसे प्रसिद्ध शहर राजस्थान का कोटा है, जहां तमाम कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। यहां देशभर से बच्चे पढ़ने आते हैं। लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि बिहार में एक गांव ऐसा है, जहां लगभग हर घर में आईआईटियंस हैं तो शायद आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन ये बिल्कुल सच है। बिहार के गया जिले में आने वाला ‘मानपुर पटवाटोली’ गांव आईआईटी के लिए मशहूर है। इसे ‘बिहार का कोटा’ और ‘आईआईटियंस के गांव’ के नाम से जाना जाता है।
30 साल पहले शुरू हुआ सिलसिला
गांव में करीब 1 हजार परिवार रहते हैं। गांव के हर घर से कोई न कोई इंजीनियर या डॉक्टर है। यहां के बच्चे आज विदेशों में नौकरियां कर रहे हैं। गांव में इंजीनियर बनने का सिलसिला 1992 से शुरू हुआ था। यहां से सबसे पहले जितेंद्र प्रसाद ने आईआईटी की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गांव के अन्य बच्चों में भी आईआईटी के प्रति रुझान बढ़ा। अगर बात जितेंद्र की करें तो उन्होंने आईआईटी बीएचयू से इंजीनियरिंग की। इसके बाद उनकी जॉब टाटा स्टील में लगी जहां उन्होंने करीब दो साल नौकरी की इसके बाद वो अमेरिका में नौकरी करने चले गए।
जितेंद्र की सफलता ने गांव के दूसरे बच्चों को बहुत प्रभावित किया। बच्चों ने खुद से ही आईआईटी की तैयारी करना शुरू कर दिया। लेकिन गांव में पढ़ाई के संसाधन नाकाफी थे। इसके बाद बच्चों की मदद करने के लिए गांव के ही दुर्गेश्वर प्रसाद और चंद्रकांत पाटेश्वरी सामने आए। उन्होंने गांव के बच्चों की पढ़ाई के लिए एक लाइब्रेरी शुरू की। इसके साथ ही तैयारी करने वाले बच्चों को फ्री में कोचिंग देना शुरू किया। इन दो युवाओं के प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले साल इनके यहां तैयारी करने वाले 40 बच्चों में से 19 ने आईआईटी की परीक्षा पास की।
प्राथमिक से लेकर जेईई की तैयारी करने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं
दुर्गेश्वर प्रसाद ने बताया कि गांव के बच्चों में पढ़ने की ललक है। इसे देखते हुए उन्होंने साल 2013 में वृक्ष नाम की संस्था शुरू की। शुरुआत में उन्होंने गांव के निर्धन और बेसहारा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पहले उन्होंने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देनी शुरू की। वो क्लास एक से लेकर आठवीं तक बच्चों को पढ़ाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वो बच्चों को आईआईटी और नीट के लिए तैयार करने लगे।
उनके सेंटर पर फिलहाल करीब 200 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 40 बच्चे आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे हैं। वहीं 150 से ज्यादा बच्चे प्राइमरी और अन्य क्लासेस के हैं। दुर्गेश्वर ने इन बच्चों को पढ़ाने के लिए शानदार तरीका निकाला है। उनकी कोचिंग में सीनियर अपने जूनियर्स को पढ़ाते हैं। यानी प्राइमरी के बच्चों को क्लास 8वीं तक के बच्चे पढ़ाते हैं, आठवीं तक के बच्चों को 10वीं तक के बच्चे और इसी तरह उनके सीनियर उन्हें पढ़ाते हैं। लेकिन आईआईटी और नीट की तैयारी करने वाले बच्चों को वो खुद भी पढ़ाते और आसपास के गेस्ट टीचर्स को भी बुलाते हैं।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे आईआईटी में पढ़ाई कर रहे हैं या फिर देश विदेश में अच्छी नौकरियां कर रहे हैं। जब भी ये बच्चे गांव आते हैं तो कोचिंग सेंटर पर जाकर गांव के बच्चों की वर्कशॉप करते हैं। आईआईटी की तैयारी करने वाले जूनियर बच्चों को परीक्षा की तैयारी के गुर सिखाते हैं। गांव के लोगों के प्रयास का ही नतीजा है जो इस गांव से हर साल 10-12 बच्चों का सिलेक्शन आईआईटी के लिए होता है।
सेंटर पर पढ़ने के लिए ‘वन डे वन रुपये’ स्कीम शुरू की गई है। बच्चों से एक रुपये प्रतिदिन के हिसाब से फीस लेते हैं। इसके लिए भी बच्चों पर कोई दवाब नहीं है, वो देना चाहें तो दें वरना कोई बात नहीं।
केवल 1 रुपये लेते हैं फीस
जब दुर्गेश्वर से हमने पूछा कि गांव में सेंटर चलाने में आने वाला खर्च निकालने के लिए आप क्या करते हैं? तो उन्होंने बताया कि गांव के लोग और आसपास के लोग इस काम में उनकी मदद करते हैं। दो साल पहले जब देश में कोरोना वायरस ने दस्तक दी, तब भी पटवाटोली के बच्चों की तैयारी जारी रही। वृक्ष संस्था के लोगों ने समाज से पुराने मोबाइल और लेपटॉप इकट्ठे किए और बच्चों को दिए ताकि वो ऑनलाइन अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। इसके अलावा उन्होंने ‘वन डे वन रुपये’ स्कीम शुरू की है। इसके तहत सेंटर पर पढ़ने वाले बच्चे उन्होंने एक दिन की 1 रुपये फीस देते हैं। उनका मानना है कि इससे बच्चों के पेरेंट्स पर कोई एक्स्ट्रा बोझ नहीं पढ़ता है और सेंटर भी ठीक से चल जाता है।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि गांव के बच्चों के बेहतरीन प्रदर्शन को देखकर आसपास के लोग भी अक्सर गांव में आते हैं। साथ ही पास कस्बे के एसबीआई बैंक के मैनेजर ने यहां के बच्चों को कई बार सम्मानित किया है। एसबीआई मैनेजर ने कहा है कि जब भी गांव का कोई बच्चा आईआईटी में सिलेक्ट होगा तो उसे बैंक की तरफ से एजुकेशन लोन की व्यवस्था वो करेंगे। गांव के प्रधान प्रेम नारायण भी इस काम में काफी सहयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में सदियों से पावरलूम का काम होता आ रहा है। यहां दरी और अन्य तरह के कपड़े बनाए जाते हैं। इसलिए पहले इस गांव को ‘बिहार का मैनचेस्टर’ भी कहा जाता था। लेकिन अब गांव का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। गांव के बच्चे बिजनस को करते ही हैं साथ में कई बच्चे आईआईटी और नीट को पास कर रहे हैं। अगर आप कभी गया जाएं तो एक बार आईआईटियंस के इस गांव नें भी जा सकते हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
अरबों को धूल चटाने वाले शासक नागभट्ट
नयी दिल्ली । भारत के एक महान राजा नागभट्ट-1 ने अरबों को सिखाया था। भारतीय इतिहास में भुला दिए गए प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम ने अपने शासनकाल के दौरान अरबों को युद्ध में बुरी तरह हराया था। देश की तरफ आंख दिखाने वाले अरबों को इस महान राजा ने न केवल सालों तक सीमा से खेदेड़े रखा बल्कि अपनी अदभुत वीरता से हमेशा दुश्मनों के दांत खट्टे करते रहे।
माना जाता है कि 6-7वीं सदी के दौरान गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना हरिचंद्र ने की थी। नागभट्ट-1 की राजधानी उज्जैन थी। उनके नाम से दुश्मन खौफ खाते थे। लेकिन इतिहास में नागभट्ट प्रथम को वो स्थान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। अरब की सेनाएं अपनी क्रूरता के लिए विख्यात थीं। वो जहां भी जाते थे वहां कत्लेआम मचा देते थे। सिंध के पतन के बाद अरब आक्रमणकारी भारत समेत आसपास के इलाके में लगातार आक्रमण करते रहते थे। अरब खुद को श्रेष्ठ बताने की होड़ में शामिल रहते थे। तो क्या भारत में अरबों की श्रेष्ठता स्थापित हो पाई थी? इसका जवाब आपको ना में मिलेगा। क्योंकि नागभट्ट प्रथम के रूप में देश को विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाने वाला एक महान राजा मिला हुआ था। नागभट्ट प्रथम ने देश को अरबों के आक्रमण से सालों तक बचाकर रखा था।
प्रतिहार राजवंश को अरबों को हमेशा मात देने वाले एक राजवंश के रूप में ही जाना जाता रहा है। अगर अरब आक्रांताओं को दुनिया में कहीं भी सबसे ज्यादा मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा तो वो भारत था। नागभट्ट प्रथम के शासनकाल के समय को लेकर हालांकि विवाद है लेकिन माना जाता है कि उनका शासनकाल 730 से 756 के बीच रहा था। ये वही समय था जब सिंध पर अरबों ने कब्जा कर लिया था। नागभट्ट प्रथम का राज मौजूदा वक्त के भरूच, मालवा और ग्वालियर तक फैला हुआ था।
सिंध पर कब्जा करने के बाद अरब आक्रमणकारी भारत पर हमला करने लगे। अरब अपने ताकतवर सेनापति अमीर जुनैद ने सैनिकों को भारत में हमले का आदेश दे दिया। अरब सेनाओं ने सौराष्ट्र और भीलमाला पर कब्जा भी कर लिया। कहा जाता है कि अरब सेनाएं जोधपुर, जैसलमेर, भरूच और मालवा में तबाही मचाते हुए उज्जैन तक पहुंच गए थे। उन्होंने उज्जैन के करीब घेरा बना लिया था। इसके बाद नागभट्ट प्रथम ने पड़ोसी क्षत्रिय राजाओं गोहिल, परमार और चालुक्य के साथ मिलकर एक गठबंधन बना लिया। अरब सेनापति जुनैद 50 हजार सेना के साथ उज्जैन के पास डेरा जमाए हुए था। जब उसे भारतीय राजाओं के गठबंधन की खबर मिली। लेकिन जुनैद को अपनी घुड़सवार सेना की बदौलत बड़ा घमंड था। वो मानकर चल रहा था कि भारतीय सेनाओं को वो हरा देगा।
अरबों के दांत खट्टे कर दिए थे
इधर, नागभट्ट प्रथम ने 40 हजार घुड़सवार और पैदल सेना का मजबूत रक्षा दल तैयार कर लिया। माना जाता है कि मौजूदा समय में सिंध और राजस्थान की सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई थी। नागभट्ट ने बेहतरीन सैन्य संचालन की बदौलत अरब सेनाओं के छक्के छुड़ा दिए थे। अपने को बेहद मजबूत मान रहे जुनैद को भारतीय घुड़सवारों के आक्रमण ने चौंका दिया। जिस सर्वोच्चता पर अरब सेनाओं को घमंड था उसे भारतीय सेनाओं ने ध्वस्त कर दिया था। अरबों की योजना चारों खाने चित हो गई थी। भारतीय सेनाओं ने उनके छक्के छुड़ा दिए। नागभट्ट प्रथम की घुड़सवार और पैदल सेना ने अरबों को रौंदना शुरू कर दिया। इस लड़ाई में जुनैद भी मारा गया। इसके बाद अरब सेनाएं युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गईं।
अरब को ध्वस्त करने के बाद नागभट्ट प्रथम ने नारायण की उपाधि धारण की। उनकी इस जीत ने उन्हें पश्चिम में देश की सीमा का रक्षक के रूप में स्थापित कर दिया। अरब शासक नागभट्ट प्रथम को जुर्ज शासक को पुकारने लगा। यानी ऐसा राजा जिसने भारत में अरबों के कदम को रोक दिया। हालांकि, सेनापति जुनैद की मौत के बाद उसके सक्सेसर तमीम को भी हार का सामना करना पड़ा। नागभट्ट प्रथम की सेनाओं को ये आभास था कि अरब पलटवार करेंगे। इसलिए उन्होंने इसकी बहुत पहले से तैयारी कर रखी थी। इस राजवंश ने दशकों तक अरबों को भारतीय सीमा से खदेड़े रखा था।
नागभट्ट प्रथम के बाद भी प्रतिहार राजवंश ने अपने इस पूर्व राजा की गरिमा को बनाए रखा और भारत को अरबों के आक्रमण से बचाए रखा। नागभट्ट द्वितीय, महान राजा भोज ने भी अरबों को युद्ध के मैदान में दांत खट्टे कर दिए थे।
फ्लैट की सीलन से हैं परेशान? 47 लाख रुपये की राहत वाले फैसले ने दिखा दिया है नया रास्ता
नयी दिल्ली । जब आप किसी बिल्डर से फ्लैट या घर खरीदते हैं तो आपको उसके रखरखाव के लिए मेंटेनेंस चार्ज देना होता है। जरूरत पड़ने पर मरम्मत भी बिल्डर या सोसाइटी की जिम्मेदारी होती है लेकिन मेंटेनेंस चार्ज देने के बावजूद अगर सीलन या छत या फिर दीवारों से रिसाव से परेशान हैं तो बॉम्बे हाई कोर्ट का हालिया फैसला उम्मीद जगाने वाला है। कोर्ट ने हाउसिंग सोसाइटी को आदेश दिया है कि वह छत की रिसाव के लिए फ्लैट खरीददार को 47 लाख रुपये अदा करे। 12 प्रतिशत की दर से ब्याज अतिरिक्त होगा। सीलन या रिसाव ही क्यों, मेंटेनेंस को लेकर किसी भी तरह की परेशानी की हालत में ये फैसला नई राह दिखाने वाला है।
रिसाव से परेशान फ्लैट मालिक को 47 लाख रुपये देने का आदेश
सबसे पहले बात बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले की। कृष्णा बजाज नाम की एक महिला ने भारतीय भवन को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में 1992 में पिछले मालिक से एक फ्लैट खरीदा। लेकिन सोसाइटी ने मेंटेनेंस को नजरअंदाज किया जिस वजह से फ्लैट के छत से रिसाव होने लगा। इससे फर्नीचर समेत घर के सामानों को नुकसान हुआ। उसने हाउसिंग सोसाइटी से कई बार मरम्मत की गुहार लगाई लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आखिरकार, फ्लैट मालिक ने 2004 में खुद के खर्च से दोबारा छत की ढलाई कराई जिसमें करीब 47 लाख रुपये खर्च हुए। को-ऑपरेटिव अपीलेट कोर्ट से महिला के पक्ष में फैसला आया। उसने सोसाइटी को छत ढलाई में आए खर्च को फ्लैट ओनर को देने का आदेश दिया। साथ में रिसाव की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अलग से 40 लाख रुपये देने का आदेश दिया।
इस फैसले के खिलाफ हाउसिंग सोसाइटी हाई कोर्ट पहुंची। हाई कोर्ट ने मरम्मत पर आए खर्च को फ्लैट मालिक को देने के आदेश को बरकरार रखा। सोसाइटी को 47 लाख रुपये 12 प्रतिशत साधारण ब्याज के हिसाब से देने का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट ने सोसाइटी को भी राहत दी। उसने निचली अदालत के फर्नीचर और अन्य सामानों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 40 लाख रुपये अतिरिक्त देने के आदेश को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि फ्लैट मालिक यह साबित करने में नाकाम रहीं हैं कि उन्हें नुकसान हुआ है। जस्टिस एस. के. शिंदे की बेंच ने कहा कि छत सोसाइटी की संपत्ति है और उसे अच्छी हालत में रखना उसकी जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि अगर सोसाइटी ने छत की मरम्मत करा दी होती तो फ्लैट मालिक को 1992 से अबतक परेशान नहीं होना पड़ता।
क्या होता है मेंटेनेंस चार्ज
मेंटेनेंस चार्ज में आमतौर पर हाउसिंग सोसाइटी के रखरखाव का खर्च और बाद में मरम्मत के काम में आने वाला खर्च शामिल होता है। इस्तेमाल में लाए जा रहे कॉमन एरिया के रखरखाव और मरम्मत के लिए भी मेंटेंनेंस चार्ज वसूला जाता है। भारत में आमतौर पर मेंटेनेंस चार्ज 2 रुपये से लेकर 25 रुपये प्रति वर्ग फुट है। मेंटेनेंस की जिम्मेदारी सोसाइटी की होती है और अगर उसकी लापरवाही की वजह से किसी शख्स को नुकसान होता है तो इसका हर्जाना भी उसे ही देना होगा। पार्किंग, सीढ़ियों, बेसमेंट वगैरह की साफसफाई और रखरखाव की जिम्मेदारी हाउसिंग सोसाइटी की होती है।
जब सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को 33 करोड़ रुपये मेंटेनेंस चार्ज लौटाने को कहा
मेंटेंनेंस चार्ज वसूलने का मतलब है कि बिल्डर सही से रखरखाव करेगा। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसे मैंटिनेंस चार्ज वसूलने का हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में गुरुग्राम के एक बिल्डर को फ्लैट खरीदारों से वसूले गए 33 करोड़ मेंटेनेंस चार्ज को लौटाने का आदेश दिया। मामला एंबिएंस लगून अपार्टमेंट का था जो नैशनल हाईवे 8 पर बने एंबिएंस मॉल के पीछे है। इसमें 15 ब्लॉक हैं। 2002 में बिल्डर ने खरीदारी के वक्त फ्लैट बायर्स से वादा किया था कि वह हर 10 फ्लैट पर एक लिफ्ट देगा। लेकिन ज्यादातर ब्लॉक में वादे के मुताबिक 4 के बजाय सिर्फ 2 ही लिफ्ट उपलब्ध कराया गया। इसके खिलाफ 66 फ्लैट मालिकों ने कोर्ट का रुख किया। 19 मार्च 2014 को नैशनल कंज्यूमर डिस्पुट रिड्रेसल कमिशन ने फ्लैट खरीदारों के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन बिल्डर इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के फैसले को बरकरार रखते हुए बिल्डर को आदेश दिया कि 2002 से फ्लैट बायर्स से मेंटेनेंस फीस के तौर पर जितनी भी राशि वसूली गई है, उसका 70 प्रतिशत उन्हें रीफंड किया जाए। ये राशि 33.38 करोड़ रुपये थी। इसका फायदा एंबिएंट लगून अपार्टमेंट के सभी 345 फ्लैट मालिकों को हुआ।
बिना ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट बिल्डर नहीं वसूल सकते मेंटेंनेंस चार्ज
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इसी साल जनवरी में फ्लैट खरीददार के लिए बहुत बड़ी राहत देने वाला फैसला सुनाया। आयोग ने कहा कि बिना ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट के बिल्डर मेंटेनेंस चार्ज नहीं वसूल सकते। आयोग ने कहा कि जबतक सिविक अथॉरिटी से फ्लैट बायर्स को ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता तबतक उनसे मेंटेनेंस चार्ज की मांग करना उचित नहीं है। यह बात तब भी लागू होगी जब फ्लैट बायर पजेशन लेने के बाद अपने-अपने फ्लैटों में रहने भी लगे हों। जबतक ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता, मैंटिनेंस चार्ज नहीं वसूला जाएगा।
वादाखिलाफी करे बिल्डर तो क्या है रास्ता?
अगर बिल्डर ने वादाखिलाफी की है या गैरवाजिब पैसे वसूले हैं या उससे किसी अन्य तरह की शिकायत है तो इसे कहां और कैसे दर्ज कराएं? इसका जवाब है रेरा या फिर उपभोक्ता आयोग में। फ्लैट खरीददार बिल्डर के खिलाफ रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (RERA) में शिकायत दर्ज करा सकता है। लेकिन अगर फ्लैट 2016 में रेरा कानून लागू होने से पहले खरीदा गया है तो उसे कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट, 1986 के तहत ही शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
यूट्यूब से बढ़ी जीडीपी, हुई 10 हजार करोड़ की वृद्धि
मीडिया में एक खबर चर्चा में है कि यूट्यूब से कमाई कर ब्रिटेन में रहने वाले एक शख्स ने न सिर्फ 40 लाख रुपये का कर्ज चुका दिया बल्कि अब उसकी जिंदगी भी पूरी तरह से बदल गई है ।जी हां, आज के दिन में यूट्यूब रोजगार और कमाई का एक बड़ा जरिया बनता जा रहा है ।
भारत में इसका आकार और नये नये लोग लगातार जुड़ रहे हैं । लोग यूट्यूब पर वीडियो डालकर अच्छी कमाई कर रहे हैं । ऑक्सफोर्ड की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में भारत की जीडीपी में यूट्यूब ने 10 हजार करोड़ से ज्यादा का योगदान दिया जो देश में साढ़े 7 लाख नौकरियों के बराबर है ।
जीडीपी में 10 हजार करोड़ से ज्यादा का योगदान: यूट्यूब की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूट्यूब ने भारत के जीडीपी में 10 हजार करोड़ से ज्यादा का योगदान दिया है । यूट्यूब हाल के दिनों में रोजगार का एक बड़ा जरिया बनकर उभरा है । देश में कई लोग यूट्यूब में वीडियो डालकर लाखों की कमाई कर रहे है । सबसे ज्यादा युवाओं का आकर्षण इस क्षेत्र में बढ़ा है ।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में खास कर कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में यूट्यूबर्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ है । यूट्यूब के जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत की जीडीपी में यूट्यूब का योगदान 6800 करोड़ रुपये का था । वहीं, यूट्यूब के जरिये 6,83,900 लोग फुल टाइम जुड़कर जॉब की तरह पैसे कमा रहे हैं । कोरोना काल के लॉकडाउन में यूट्यूब चैनलों की संख्या काफी बढ़ी है ।
कमाई का अच्छा जरिया है यूट्यूब: गौरतलब है कि देश में कमाई का यूट्यूब अच्छा जरिया बनता जा रहा है । लोग यू ट्यूब पर किसी खास कैटेगरी में वीडियो बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं । हालांकि, कमाई के लिए आपके चैनल का मॉनिटाइजेशन जरूरी है, लेकिन जब मॉनिटाइजेशन शुरू होने लगता है तो इससे अच्छी खासी कमाई होने लगती है ।
विज्ञापनों के जरिए होती है तगड़ी कमाई: यूट्यूब पर यूट्यूबर्स विज्ञापनों के जरिए तगड़ी कमाई कर सकते हैं । इसके लिए जरूरी है कि आपके यूट्यूब चैनल पर कंपनी विज्ञापन दे । हालांकि जब चैनल मोनेटाइज होने लगता है तो ऐड भी मिलने शुरू हो जाते हैं । दरअसल, वीडियो के बीच में दिखने वाला ऐड से क्रिएटर को पैसे मिलते हैं ।
सदैव गतिशील रहता है महाविध्वंसक सुदर्शन चक्र
हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं ने कोई न कोई अस्त्र और शस्त्र धारण किया हुआ है जिसमें जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु सुदर्शन चक्र धारण करते हैं मान्यता है कि ये चक्र बेहद शक्तिशाली और महाविध्वंसक अस्त्र है यह भगवान ब्रह्मा के ब्रह्मास्त्र से भी अधिक ताकतवार है भगवान श्री हरि विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कई बड़े बड़े राक्षसों का वध किया था तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भगवान श्री हरि विष्णु के इसी महाविध्वंसक अस्त्र के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
शास्त्रों के अनुसार सभी महा अस्त्रों में से सिर्फ सुदर्शन चक्र ही ऐसा है जो लगातार गतिशील रहता है सुदर्शन चक्र के निर्माण को लेकर यह कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने खांडव वन को जलाने में अग्नि देवता की सहायता की थी बदले में उन्होंने श्री कृष्ण को एक चक्र और एक कौमोदकी गदा भेंद की थी एक प्रचलित कथा यह भी है कि परशुराम ने भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था।
वही सुदर्शन चक्र की खासियत यह है कि इसे दुश्मन पर फेंका नहीं जाता है यह मन की गति से चलता है और शत्रु का विनाश करके फिर वापस लौट आता है ऐसा माना जाता है कि इस चक्र से बचने के लिए पूरी धरती पर कोई जगह नहीं है वही पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह एक सेकंड में लाखों बार घूमता है ।
इसका वजन 2200 किलो माना जाता है। आपको बता दें कि सुदर्शन चक्र एक गोलाकार अस्त्र है जो आकार में लगभग 12-30 सेंटीमीटर व्यास का है इस चक्र में दो पंक्तियों में लाखों कीलें विपरीत दिशाओं में चलती हैं जो इसे एक दांतेदार किनारा देती है ऐसा कहा जाता है कि यह अस्त्र ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली अस्त्र है।
(साभार – प्रदेश लाइव डॉट कॉम)