Wednesday, March 19, 2025
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भारतीयता को आवाज देने वाले फनकार फिराक गोरखपुरी

ललित गर्ग
रघुपति सहाय से फिराक गोरखपुरी बने, वे भारत के एक प्रसिद्ध उर्दू शायर, कवि, लेखक और आलोचक थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा कविता, गजल, नज्म और निबंध सहित विभिन्न शैलियों में फैली हुई है। प्रगतिशील लेखक आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व, गोरखपुरी की रचनाओं में मानवीय भावनाओं, सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ झलकती है। उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति ने शास्त्रीय लालित्य को आधुनिक संवेदनाओं के साथ जोड़ा, जिन्होंने शायरी को लोक बोलियों से जोड़कर उसमें नई लोच, नई रंगत, नई ऊर्जा एवं नये मानक उत्पन्न किये। उन्हें फारसी, हिन्दी, ब्रजभाषा और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ थी, इन्हीं कारणों से उनकी शायरी में भारत की विविधताओं युक्त सांझी रची-बसी हुई है। वे जन-कवि और सौन्दर्य के परम उपासक के रूप में असंख्य लोगों के दिल और दिमाग में रचे-बसे हैं। वैसे भी फ़िराक़ के दौर को देखा जाए तो उस वक्त हर तरफ कद्दावर लोग थे। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के अलावा पंडित जवाहर लाल नेहरू, महादेवी वर्मा, अमरनाथ झा, हरिवंशराय बच्चन समेत और भी कई बड़े कलमकार उसी इलाहाबाद में थे। इलाहाबाद के बाहर की दुनिया की बात करें तो महात्मा गांधी के उस दौर में कई बड़े दार्शनिक, कवि और शायर राष्ट्रीय फलक पर सितारे की तरह चमक रहे थे। उस कहकशां में भी फ़िराक़ की चमक कहीं कम नहीं पड़ती है।
फिराक को शायरी की प्रेरणा पिता मुंशी गोरख प्रसाद से भी मिली। बचपन के चमकते-दमकते वैभव के बावजूद उनकी नजरें हमेशा जमीन की ओर देखती रही। उनकी जिन्दगी और रचनाओं का सफर न केवल रोचक रहा, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी रहा। वे साहिर, इकबाल, फैज, तथा कैफी आजमी से अत्यधिक प्रभावित हुए। रामकृष्ण परमहंस की कहानियों से आरंभ करने के बाद उन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। सन् 1917 में डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए परंतु महात्मा गांधी के स्वराज्य आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने 1918 में पद से त्यागपत्र दे दिया। 1920 में स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनको डेढ़ वर्ष की जेल की यात्रा सहन करनी पड़ी। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक भी रहे। उनका कहना था कि उर्दू केवल मुसलमानों की भाषा नहीं है बल्कि आम भारतवासियों की भाषा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू उनकी इस सोच से अत्यधिक प्रभावित हुए, नेहरू ने फिराक को जेल से छूटने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस के कार्यालय में अन्डर सेक्रेटरी बना दिया। इंदिरा गांधी भी उनको बहुत सम्मान देती थी और उनको राज्यसभा में भेजना चाहती थी। लेकिन उन्होंने राज्यसभा जाने से इंकार कर दिया।
फिराक अपनी हाजिर जवाबी की वजह से फिराक काफी मशहूर थे। उनका बातचीत का लहजा इतना चुटीला होता था कि एक बार कोई उनके पास बैठ जाए तो उठता नहीं था। वह जो भी बोलते थे, बेधड़क बोलते थे और अंदाज ऐसा कि महफिल ठहाकों में भर उठती थी। वे जिन्दादिल इंसान थे तो चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे। स्वभाव में एक औलियापन है, फक्कड़पन है और अलमस्त अंदाज है। किसी को उनका व्यक्तित्व भाया तो किसी को वह बिल्कुल पसंद नहीं आए लेकिन उनके शेरों की कद्र हर किसी ने पूरी तबीयत से की। उनका लोहा तब भी जग ने माना और आज भी मान रहा है। वे सदियों तक इसी तरह अपनी शायरी के कारण जीवंत बने रहेंगे।
फिराक की जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा इलहाबाद बीता। और यहीं से वे शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचे। इलाहाबाद में फिराक, महादेवी वर्मा और निराला को मिलाकर उस दौर के साहित्य की दुनिया की त्रिवेणी बनती थी। उनकी अनौपचारिक संगोष्ठियों में अंग्रेजी के विद्वानों के साथ-साथ तुलसी, कालिदास और मीर के पाठ भी समानांतर चलते थे। उनके आवास लक्ष्मी निवास पर साहित्यकारों की खूब महफिल सजती थी। महफिल सजाने वालों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द भी शामिल थे। फिराक भरी-पूरी संभावनाओं का नाम रहा है, जहां साहित्य की अनेक सरिताएं प्रवहमान रही हैं। फिराक तबीयत से भले ही हर किसी को बागी नजर आए लेकिन उनकी शायरी सहज थी। उनके शेरों में संवेदनाएं, नेकदिली और जिंदादिली का अहसास कोई भी कर सकता है। उर्दू गजल के पारंपरिक अंदाज में बिना किसी छेड़छाड़ के नए लहजे की शायरी की जो अद्भुत मिसाल उन्होंने पेश की, उससे शायरी के कद्रदानों के अलावा मशहूर शायर भी उनके कायल हो गए।
निदा फाजली जैसे शायर ने तो शायरी की दुनिया में गालिब और मीर के बाद फिराक को तीसरे पायदान पर रखा है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों के सान्निध्य में उन्होंने अपनी शायरी को ऊंचाई दी। पद्मश्री अली सरदार जाफरी ने फिराक को उर्दू शायरी की नई आवाज करार दिया। जोश मलीहाबादी ने कहा कि फिराक उर्दू के उस्ताद शायरों में एक बड़े नामवर गोशे के मालिक हैं। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने फक्कड़, मूडी, गुस्सैल आदि अनेक परिचय के धनी फिराक को शायरी के दुनिया का बेताज बादशाह कहा है। यही कारण है कि मिर्जा गालिब और अमीर खुसरो की तरह ही फिराक गोरखपुरी के जीवन पर भी कई फिल्में बन चुकी हैं। एक फिर फिल्म गवर्नमेंट आफ इंडिया के फिल्म डिविजन ने भी बनाई है।
फिराक के जीवन पर कई किताबें भी लिखी गईं हैं। उनकी स्वयं की अनेक पुस्तक हैं, जिनमें प्रमुख हैं- गुल-ए-नगमा, बज्म-ए-जिंदगी, रंगे शायरी, मशअल, रूह-ए-कायनात, नग्मा-ए-साज, गजलिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधी रात, परछाइया और ताराना-ए-इश्क, सत्यम शिवम सुंदरम। इसके अलावा फिराक ने एक उपन्यास ‘साधु और कुटिया’ तथा कई कहानियां भी लिखीं हैं। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं- 1960 में साहित्य अकादमी अवार्ड, 1968 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण सम्मान, 1969 में गुल-ए-नगमा के लिए ज्ञानपीठ अवार्ड एवं 1969 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार। वे ऐसे लेखक एवं शायर हैं, जिनके जीवन की चादर पर सकारात्मकता, संवेदना एवं प्रेम के रंग बिखरे हुए है। फिराक दार्शनिक कवि-शायर हैं तो सनातन सत्य एवं जीवनमूल्यों को सहजता से उद्घाटित करने वाले जादूगर भी है। वे उर्दू नक्षत्र का ऐसा जगमगाता सितारा हैं, जिसकी रोशनी शायरी को सराबोर करती रहेगी, इस अलमस्त शायर की शायरी की गूंज हमारे दिल और दिमाग में हमेशा जिन्दा रहेगी।

(साभार – प्रभासाक्षी)

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