दीपावली बीत चली मगर दीयों का नाता किसी एक दिन से तो नहीं होता तो बात कही जा सकती है । दीया चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, वह प्रकाश है, दीया विश्वास है, दीया संघर्ष है, दीया परिवर्तन है। घनघोर अन्धेरे में बस एक दीया जलाकर रख दीजिए और उसे मोमबत्ती का सहारा दीजिए…वह अपनी क्षमता भर अन्धेरे से लड़ेगा । दीया जब अन्धेरे से जूझ रहा होता है तो बदले में कालिमा के कुछ भी तो नहीं मिलता। उसकी सज -धज तभी तक रहती है जब तक उसे जलाया नहीं गया । यही बात मोमबत्ती के साथ भी है..वह तभी तक सुन्दर दिखती है, जब तक कि उसे जलाया नहीं जाता । मोमबत्ती को जलाइए तो मोम गलने लगती है मगर मोमबत्ती की लौ से दीये को जलाया जाए तो मोमबत्ती असंख्य दीयों का प्रकाश बन जाती है। सोचिए क्या होगा अगर मोमबत्ती को अन्धेरे से प्रेम हो जाए और वह दीये को प्रकाश देना बंद कर दे और वह इस अहंकार में उसके बगैर तो दीये का अस्तित्व नहीं है । वृक्ष का अस्तित्व जड़ से है मगर उसकी शोभा पत्तों, तनों, फूल और फलों से है क्योंकि वह उसके होने का प्रमाण हैं, उसकी योग्यता का प्रतीक हैं। याद रहे कि दीया और मोमबत्ती तभी तक जलते हैं जब तक वे एक दूसरे को प्रकाशित करते रहें । अकेले न तो दीया जल सकता है और न ही मोमबत्ती की लौ की कोई उपयोगिता रह जाती है इसलिए अन्धेरा चाहता ही नहीं कि दोनों एक दूसरे के साथ आएं । कुरीतियों, रूढ़ियों और सामन्तवाद का अन्धेरा भी परिवर्तन के प्रकाश से डरता है इसलिए वह तोड़ना चाहता है, कभी दीये को तो कभी मोमबत्ती को। ज्ञान का प्रकाश, सृजनात्मकता का प्रकाश बिखेरना दीये का दायित्व है तो दीये को अपने ज्ञान से समृद्ध करना मोमबत्ती की जिम्मेदारी…इसलिए दोनों अपना काम कर रहे हैं..कोई किसी पर उपकार नहीं कर रहा । पारिवारिक परिदृश्य में इस सन्दर्भ को नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी से जोड़िए, सामाजिक सन्दर्भ में गुरू और शिष्य से और कॉरपोरेट क्षेत्र में अधिकारी व कर्मचारियों से…सन्देश स्पष्ट है। आप दूसरों को प्रकाशित होंगे तो उसके प्रकाश के माध्यम से आपका अस्तित्व व्यापक होगा मगर अहंकार के अन्धेरे में दबाना चाहेंगे तो खुद भी समाप्त हो जाएंगे…इसलिए आप दोनों एक दूसरे की जरूरत हैं, बोझ नहीं।