नयी दिल्ली । अमूल डेयरी गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) का हिस्सा है। आज ये दुनिया की सबसे बड़ी दुग्ध संस्था है। इसके साथ आज सीधे तौर पर करीब 36 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। इसमें गुजरात के 18 जिला दुग्ध संघ शामिल हैं। दूध का ब्रांड बन चुकी अमूल डेयरी 22 फरवरी को स्वर्ण जयंती मना रही है। अमूल को चलाने वाली गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) की स्थापना साल 1973-74 में हुई थी। इस संस्था को बने हुए 50 साल पूरे हो गए हैं। इसकी स्थापना का विचार भी बड़े ही खराब हालात के दौरान आया था। साल 1946 से 1974 के बीच डेयरी सहकारी आंदोलन चला था। उस दौरान ये आंदोलन गुजरात के छह जिलों में चल रहा था। यह आंदोलन बिचौलियों से परेशान होकर शुरू हुआ था। यह वो दौर था जब बिचौलिए दूध की सारी मलाई खा रहे थे और किसानों को काफी कम पैसा मिलता था। आज किसान आंदोलन के दौर में अमूल की यह अनूठी कहानी एक मिसाल है। आईए जानते हैं अमूल की शुरुआत किस तरह से हुई थी। कैसे यह आंदोलन चला था।
बिचौलियों से थी परेशानी – एक समय तक दूग्ध उत्पादक अपना मिल्क बिचौलियों और व्यापारियों को बेचने पर मजबूर थे। इस दौरान दूग्ध उत्पादकों को काफी कम पैसा मिलता था। बिचौलिए उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा ले जाते थे। 1940 के दशक में गुजरात में व्यापारियों द्वारा दूध उत्पादक किसानों का खूब शोषण किया जाता था। उस वक़्त की मुख्य डेयरी पोलसन के एजेंटों द्वारा कम दामों में किसानों से दूध खरीदकर महंगे दामों में बेचा जा रहा था। ऐसे में एक सहकारी समिति स्थापित करने की जरूरत महसूस की गई, जिसमें दूग्ध उत्पादकों के ही प्रतिनिधि हों। इसके लिए लंबा आंदोलन चला था।
सरदार पटेल का विचार – इस समस्या से निजात दिलाने के लिए किसानों ने वहां के स्थानीय नेता त्रिभुवनदास पटेल से संपर्क साधा था। इसके बाद उन्होंने अपने लोगों के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल से मुलाकात की थी। सरदार पटेल ने समाधान करने के लिए मोरारजी देसाई को गुजरात भेजा था। उन्होंने हालात का जायजा लिया, फिर साल 1945 में बॉम्बे सरकार ने बॉम्बे मिल्क योजना शुरू की थी। साल 1949 में त्रिभुवन भाई पटेल ने डॉक्टर वर्गीज कुरियन से मुलाकात कर इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए राजी किया था। दोनों ने सरकार की मदद से गुजरात के दो गांवों को सदस्य बनाकर डेयरी सहकारिता संघ की स्थापना की थी।ऐसे पड़ा अमूल नाम
वर्गीज कुरियन सहकारिता संघ को कोई आसान नाम देना चाहते थे, जो आसानी से जुबान पर आ जाए। इस दौरान कुछ कर्मचारियों ने इसका नाम संस्कृत शब्द अमूल्य सुझाया, जिसका मतलब अनमोल होता है। इसी को बाद में अमूल के नाम पर रखा गया। इसकी शुरुआत में कुछ किसानों द्वारा डेयरी में 247 लीटर दूध का उत्पादन किया जाता था। इसके लिए गांव में कई सहकारी समितियों का गठन किया गया था। 14 दिसंबर 1946 में त्रिभुवन दास पटेल के प्रयासों द्वारा अहमदाबाद से 100 किमी दूर आणंद शहर में खेड़ा जिला सहकारी समिति की स्थापना की गई थी।
लाखों किसानों का बदला जीवन – आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) एक डेयरी सहकारी संस्था है। यह गुजरात के आणंद में स्थित है। अमूल ब्रॉन्ड गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) के अधीन है। आज देशभर में अमूल की 144,500 डेयरी सहकारी समितियों में 15 मिलियन से ज्यादा दूग्ध उत्पादक अपना मिल्क पहुंचाते हें। इस दूध को 184 जिला सहकारी संघों में प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद 22 राज्य मार्केटिंग संघों द्वारा इनकी मार्केटिंग की जाती है। यह दूध हर दिन लाखों लोगों तक पहुंचता है।