“एक दीप जलाकर तो देखो” प्रो प्रेम शर्मा का सद्य प्रकाशित कविता संग्रह है।भाषा नहीं, भाव ही कविता को संप्रेषित करते हैं। 50 से अधिक कविताओं में से किसी भी कविता को पढ़ते हुए पाठक समाज कल्याण की ही भावना को महसूस करता है। एक आदर्श समाज कैसे निर्मित हो? कैसे देश का गौरव बढ़ाया जा सकता है? कैसे बच्चों में अच्छे चरित्र का निर्माण किया जा सकता है? आधुनिक अपसंस्कृति की आंधी से दूर भारतीय संस्कृति को कैसे रोपित किया जाए? आदि द्वन्द्वों से गुजरती हुई कवयित्री प्रेम शर्मा विविध भावों को शब्दों में उतारती है। अपने आशावादी विचारों से अनुप्रेरित कवयित्री ने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति में एक आदर्श परिवार समाज और देश की कल्पना की है।
कवयित्री जानती है –
‘आँखों से अश्क जो बहा सकते नहीं
पीकर गम जो घटा सकते नहीं
खुद को उतार देते हैं, कागज पर वो
बस फिर कुछ और वो करते नहीं’
कविता अपने ख़्यालात, अपने जज़्बात को पेश करने का एक बेहद ख़ूबसूरत ज़रिया है। कविताओं में भाव तत्व की प्रधानता है। रस को कविता की आत्मा माना जाता है जो कविता के अवयवों में आज भी सबसे अहम है।कवयित्री शब्दों के द्वारा अपनी अनकही बातों को आकार देती है।
इन कविताओं में एक लय है, भावों की लय, जो पाठक को बांँधे रखती हैं।एक और अंडर करेंट भी है जो देश, समाज और सत्ता में बैठे लोगों के लिए एक चेतावनी भी है। आधुनिकता की आँधी और तृष्णा की चाह में जो मनुष्य अपनी लालसाओं को पूरा करने में लगा हुआ है, इंसान से जानवर बन चुका है। ऐसे लोगों के पापों के सर्वनाश के लिए काल के अवतार का अवतरण होना निश्चित है। वह प्रकृति के इस नियम को जानती है कि काल के आगे बड़े -बड़े लोग धराशायी हुए हैं।
हृदय में यदि कोई तीक्ष्ण हूक उठती है। एक अनाम-सी व्यग्रता संपूर्ण व्यक्तित्व पर छा जाती है और कुछ कर गुज़रने की उत्कट भावना आत्मा को झिंझोड़ती रहती है। ऐसी परिस्थिति में कितने ही लंबे समय का अंतराल हो, रचनाशीलता अवसर मिलते ही हृदय में एकत्रित समस्त भावनाओं , विचारों और संवेदनाओं को अपनी संपूर्णता से अभिव्यक्त होती हैं। सिर्फ़ ज्वलंत अग्नि पर जमी हुई राख को हटाने मात्र का अवसर मिलना होता है, तदुपरांत प्रसव पीड़ा के पश्चात जिस अभिव्यक्ति का जन्म होता है, वह सृजनात्मक एवं गहन अनुभूति का सुखद चरमोत्कर्ष होता है। यह काव्य संग्रह ऐसी ही प्रसव पीड़ा के पश्चात जन्मी अभिव्यक्ति का संग्रह है।