मैं बनारस हूं।
भक्ति भाव से ओतप्रोत,
आध्यामिकता का उज्जवल कपोत,
पूजन,वन्दन का अक्षय श्रोत।
जिसको स्पर्श किया वो बना सोना,
वो अनमोल मैं पत्थर पारस हूं।
बाबाभोले का नगर बनारस हूं।
कहीं कबीर की साखी हूं।
कहीं नजीर की रूबाई हूं।
भारतेन्दु का अमर साहित्य हूं मैं,
कहीं तुलसी के मानस की चौपाई हूं।
संकट मोचन की आरती में गूंजे,
वो बिस्मिल्लाह खान की मैं शहनाई हूं।
लमही का प्रेमचंद भी मेरे अन्दर,
यहीं कामायनी के हैं जयशंकर।
विश्वनाथ धाम पहचान मेरी,
मैं हीं हूं मानस मन्दिर।
कबीर ने जिसको धरिदीन्ही,
वो चदरिया मैं जस की तस हूं।
बाबा भोले का नगर बनारस हूं।
आस्था की डगर बनारस हूं।