निंद्रावस्था और अर्द्धचेतन अवस्था में अंतर है। अर्द्ध चेतन अवस्था के दौरान कई बार हमें भी कुछ ऐसे स्वप्न आते है। जिनके पीछे कुछ संकेत होते है। स्वप्न कई बार हमें सचेत भी करते है। भगवान महावीर जब माता त्रिशला के गर्भ में पधारे तब माता को 14 भव्य नजारे स्वप्न में नजर आए थे। संकेत यह स्पष्ट कर रहे थे की गर्भ में स्थान लेने वाला जीव बहुत मजबूत, साहसी और सद्गुणों से भरा होगा। वह बहुत धार्मिक होगा और एक महान राजा या आध्यात्मिक नेता बनेगा। वह धार्मिक व्यवस्था में सुधार और पुनर्स्थापना करेगा। वह जीवन और मृत्यु से परे हो जाएगा। वह स्वयं भी मोक्ष में जाएगा और ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करेगा।
क्या था पहला स्वप्न
पहले स्वप्न में माता त्रिशला को गजराज (हाथी) नजर आए थे। इस सपने ने संकेत दिया कि असाधारण चरित्र गर्भ में स्थापित हुआ है। गजराज पर हौदा भी था। यह स्पष्ट कर रहा था की यह जीव सम्पूर्ण जगत के लिए एक अलग ही आध्यात्मिक चेतना का मार्गदर्शन करेगा ।
दूसरा स्वप्न
माता त्रिशला ने दूसरे स्वप्न में एक वृषभ (बैल) के दर्शन किए थे। इस सपने ने संकेत दिया कि गर्भ का जीव महान आध्यात्मिक शिक्षक होगा। वह धर्म की फसल लहलहाएगा।
तीसरा स्वप्न
माता त्रिशला को तीसरे स्वप्न में जंगल के नायक सिंह का दीदार हुआ था। इस सपने का संकेत स्पष्ट था की गर्भस्थ जीव सिंह की तरह शक्तिशाली और मजबूत होगा। वह निडर, सर्वशक्तिमान और दुनिया पर राज करने में सक्षम होगा।
चौथा सपना
मातारानी त्रिशला देवी को चौथे स्वप्न में धन की देवी लक्ष्मीजी का दर्शन हुआ था। धन, समृद्धि और शक्ति की देवी के स्वप्न में आने से यह स्पष्ट हो गया था की गर्भस्थ जीव को धन और वैभव की कोई कमी नही रहेगी। वह एक उत्कृष्ट दानी होगा।
पंचम स्वप्न
पाचवें स्वप्न में माता त्रिशला ने आकाश से उतरती एक सुंदर पुष्पमाला देखी। इस सपने का संकेत था की गर्भस्थ जीव के शिक्षण की खुशबू पूरे ब्रह्मांड में फैलेगी, और वह सभी का सम्मान करेगा।
छठां स्वप्न
माता रानी त्रिशला ने छठे स्वप्न में पूर्णमासी का चन्द्र देखा था। इस सपने का संकेत यह माना गया की गर्भस्थ जीव जगत के सभी प्राणियों के दुख को कम करने में मदद करेगा। वह शीतलता और शांति के लिए समर्पित होगा। वह संपूर्ण मानवता की आध्यात्मिक प्रगति में मदद करेगा।
माता त्रिशला को सातवें स्वप्न में चमकदार किरणों से युक्त सूर्य दिखाई दिया था। इस सपने का संकेत यह माना गया की गर्भस्थ जीव को सर्वोच्च ज्ञान होगा और वह भ्रम के अंधेरे को दूर कर देगा।
आठवां स्वप्न
माता रानी त्रिशला को स्वप्नों की श्रंखला में दिखाई दिया अष्टम स्वप्न का नजारा अद्भुद था। माता ने सुनहरी छड़ी पर लहराते एक विशाल ध्वज का दर्श किया था। इस सपने का संकेत माना गया कि गर्भस्थ जीव धर्म का बैनर लेकर चलेगा। वह पूरे ब्रह्मांड में धार्मिक व्यवस्था को बहाल करेगा।
नौवां स्वप्न
माता रानी त्रिशला को नवम स्वप्न में एक स्वर्ण कलश दिखाई दिया था। यह कलश शुद्ध स्वच्छ जल से भरा था।
इस सपने ने संकेत दिया कि गर्भस्थ जीव सभी गुणों में परिपूर्ण होगा और सभी जीवित प्राणियों के लिए दया से भरा होगा।
दसवां सपना
माता त्रिशला ने दसवें स्वप्न में खिलते कमल के फूलों से भरी झील का दर्श किया था। इस सपने का संकेत माना गया की गर्भस्थ जीव सांसारिक लगाव से परे अध्यात्म का पुष्प पल्लवित करेगा। वह प्राणी मात्र को संसार के सुख – दुखों से परे रहने और जन्म – मरण से मुक्त होने का बोध देगा।
ग्यारहवां सपना
माता त्रिशला को दिखाई दिया ग्यारहवां स्वप्न एक महासागर का था। इस सपने का संकेत यह माना गया की गर्भस्थ जीव ज्ञान का अथाह सागर होगा। वह असीम ज्ञान प्राप्त कर सांसारिक जीवन से मुक्ति की राह पर चलेगा और अन्य सभी के लिए इस राह को प्रशस्त करेगा।
बारहवां स्वप्न
माता रानी त्रिशला ने बारहवें स्वप्न में आकाश में विचरण करते एक देव विमान का दर्श किया था।
इस सपने का संकेत यह माना गया कि ब्रह्मांड की सभी दिव्य आत्माएं गर्भस्थ जीव की आध्यात्मिक शिक्षाओं का सम्मान करेंगे।
तेरहवां स्वप्न
माता रानी त्रिशला को तेरहवें स्वप्न में रत्नराशी का दर्श हुआ था। इस सपने ने संकेत दिया कि गर्भस्थ जीव का अनंत गुण और ज्ञान संसार सागर में फैलेगा।
चौदहवां स्वप्न
माता रानी त्रिशला को अंतिम चौदहवें स्वप्न में धुंए से रहित प्रज्ववलित अग्नि नजर आई थी। इस सपने ने संकेत दिया कि गर्भस्थ जीव संसार से अज्ञान रूपी धुंए को दूर करेगा। अंध-विश्वास और रूढ़िवादी संस्कारों से परे जाकर ज्ञान की अग्नि प्रज्ववलित करेगा। वह अशुभ कर्मो को तप की अग्नि से जलाने का ज्ञान देगा।