उत्तर कोलकाता के बड़ाबाजार में बहुत से मंदिर हैं और बहुत से मंदिर ऐतिहासिक भी हैं। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर है श्री श्री महालक्ष्मी मंदिर। श्री श्री महालक्ष्मी मंदिर 100 साल पुराना है। उत्तर कोलकाता में रवीन्द्र सरणी पर स्थित यह मंदिर काफी लोकप्रिय है। बहुत कम लोग जानते हैं कि यह मंदिर कभी शिव मंदिर ही था। इस मंदिर को सशक्तीकरण का प्रतीक कहा जाये तो यह गलत नहीं होगा। यह मंदिर न सिर्फ सिर्फ देवी महालक्ष्मी के स्वरूप को समर्पित है बल्कि इस मंदिर की सेवायत भी एक महिला ही हैं। कोलकाता में यह एकमात्र मंदिर है जहाँ माँ महालक्ष्मी नारायण के साथ नहीं हैं। इस मंदिर में महालक्ष्मी के साथ गणेश जी की प्रतिमा आपको दिखेगी।
मंदिर की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। मंदिर की स्थापना चुन्नी लाल त्रिवेदी ने की थी। दरअसल, पास ही स्थित लोहिया अस्पताल के मालिकों ने उनसे शिव मंदिर की स्थापना करने को कहा था और चुन्नी लाल त्रिवेदी के परिवार की कुलदेवी महालक्ष्मी हैं तो उन्होंने शिव मंदिर तो स्थापित किया ही, इसके साथ ही अनुमति लेकर महालक्ष्मी मंदिर भी स्थापित किया। इस मंदिर में महालक्ष्मी की 10 विद्याओं में कमला स्वरूप में देवी की पूजा होती है। यहाँ देवी की विशेष साधना होती है और मान्यता है कि यहाँ मनोकामना पूरी होती है। करोड़ों व्यवसायियों ने माँ महालक्ष्मी की पूजा कर सफलता प्राप्त की। यह महानगर में अकेला महालक्ष्मी मंदिर है। लक्ष्मी जन्मोत्सव इस मंदिर का प्रमुख त्योहार है जो राधा अष्टमी को मनाया जाता है। इसके बाद दीपावली का त्योहार उत्साह से मनाया जाता है और दूर – दूर से दर्शनार्थी आते हैं। मंदिर में चारों वेदों का पाठ होता है। उत्सवों के दौरान मंदिर में पुलिस व्यवस्था सख्त होती है।
इस मंदिर की सेवायत एक महिला हैं। प्रो. ममता त्रिवेदी इस समय यह बड़ा दायित्व सम्भाल रही हैं। 2013 से ही यह जिम्मेदारी वे सम्भाल रही हैं। प्रो. त्रिवेदी कहती हैं कि उनको अपने परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है औऱ सारा परिवार ही मंदिर का कार्य़ करता है। मंदिर में महालक्ष्मी की प्रतिमा दक्षिण भारत से है और श्री गणेश जी की प्रतिमा जयपुर से आई है। इस मंदिर में देवी का चेहरा बहुत सुन्दर और सौम्य है।
पास ही हनुमान जी की प्रतिमा और शिवलिंग है। यही शिवलिंग सबसे पहले स्थापित किया गया था। कोरोना काल को देखते हुए दर्शन के नियमों में बदलाव किया गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से भी दर्शन की व्यवस्था की जा रही है।
प्रो. त्रिवेदी मंदिर का विस्तार करना चाहती हैं। युवा पीढ़ी को परम्परा से अवगत करवाना चाहती हैं। संस्कृति और आध्यात्मिक अध्ययन की परम्परा से जोड़ना चाहती हैं। छात्रवृत्ति दादा जी के नाम पर शुरू करना चाहती हैं और मंदिर को भी थोड़ा और बड़ा करना चाहती हैं। निश्चित रूप से यह मंदिर परम्परा और परिवर्तन का शानदार संयोजन है।