नरसिंह देव क द्वारा शुरू कैल गैल पंजी प्रथा आजुक भोजपत्र आओर कागज क रूप मे धूल खा रहल अछि । किछु एतेक पुरान भए गेल अछि जे ओकरा पढ़ल नहि जा सकैत अछि, जे बचल छल ओ या त धुरा फाँकि रहल अछि वा कोनो सरकारी दफ्तर क अलमारी मे बन्न भए विलुप्त हेबाक कगार पर अछि । जरूरत अछि एकर डिजिटलाइजेशन क ताकि एकर आम लोगक पहूँच तक होए आ आसानी स सबकए उपलब्ध भए सकय । उक्त गप पिछला दिन पंजीकार दिवाकर झा कहलथि ।
ओ बतौलथि जे हुनकर परिवार 1558 ई स पंजीकार होएत आबि रहल अछि । हुनकर घर मे ओ 11म पुस्त छथि जे पंजीकार बनल । अखैन धरि जे पंजीकार बनल ओहि मे क्रमश: स्व० पुराई झा, हरि झा, पोषण झा, महामहोभजन झा, दुल्ला झा, कृष्णा झा, जगधर झा, उमाकांत झा, पंडित पंजीकार श्री देवनारायण झा आ तकर बाद दिवाकर झा छथि ।
एहि गप क आँँगा बढ़ाबैत श्री दिनकर झा बतौलथि जे ओ पंजिकारी मे करीब 40 से लागल छथि आ अखैन धरि करीब 3000 से बेसी पंजीयण कए चुकल छथि । हरेक साल ओ 50-60 टा पंजियण त करते टा छथि । ओ इहो बतौलथि जे सभटा पंजियण ओ तिरहुता लिपी मे करैत अछि । संगे ओ बतेलथिि जे एहि कुलक नवीण पंजीकार दिवाकर जी छथि जे सबसे कम बयस मे पंजीकार बनल । दिवाकर झाजी एकटा बी-टेक इंजिनीयर छथि संगे संग अपन पुश्तैनी कलाक बचेबा मे लागल छथि । ओ एकटा कुशल पंजीकार, कुशल चित्रकार आ कुशल अभियंता सेहो छथि । पंजिकरण क एहि काज कए ओ अपन दादा श्री देवनाराण झा स सिखने छथि । श्री झा चाहैत छथि जे सभटा चिज जे पोथी मे बन्न अछि ओकरा पुरा दुनिया जानय । ओ चाहैत छथि जे आभासी दुनिया क लोग सेहो पंजी व्यवस्था स परिचित भए सकय । एहि क लेल ओ एकटा एप्प बनाबय चाहैत छथि जाहि स पंजीयण व्यवस्था प्रस्तुत भए सकय आ आसान भए सकय आ सहजहि लोकसभ कए उपलब्ध भए सकय ।
कि अछि पंजी व्यवस्था –
पंजी व्यवस्था क शुरूआत मिथिला नरेश हरिसिंह देव (1310-1324) सर्वप्रथम शुरू केने छथि । आ इ खाली ब्राह्मण आ कायस्थ समाज लेल छल । दरअसल पंजी प्रथा एक प्रकारक जिनोलॉजिकल रिकॉर्ड अछि जेकरा हम पंजी कहैत छी, अर्थात ओ पोथी जाहि मे हमर पूर्वज क जिनोलॉजिकल रिकॉर्ड होए । एहि प्रथा क लागु करबाक पाछाँ एतबे टा उद्देश्य छल शादी बियाह एहन परिवार मे होए जेकर वर आ वधु पक्ष मे कोनो संबध नहि होए । जाहि स हुनकर परिवार मे सुख शांति होए आ वंश मे सुयोग्य आ कुलीन संतान उत्पन्न होए । मिथिला नरेश सबसे पहिने एहि विचार कए 14टा गाम मे लागू करने छलथि जाहि मे सौराष्ट्र, परतापुर, शिवहर, गोविंदपुर,गोविंदपुर, फतेहपुर, सजौल, सुखसनिया, अखयारी हेमनगर, बलुआ, बरौली, समसौल, सहसलुका इत्यादि । एहि व्यवस्था कए सुचारू रूप से लागू करबाक लेल पंजीकार क नियुक्ती कैल गेल जे वर वधु क मूल गोत्र क ध्यान मे राखि कए पंजी व्यवस्था कए सुचारू रूप स लागू करैत छलाह ।
वर वधू पक्ष मे सर्वप्रथम संबंध स्थापित करबाक काज पंजीकारे क होएत छल । ओ दूनू पक्षक गोत्र, मूल, आ वंशज कए मिलाकए देखैत छल जे दूनू पक्ष कए पूर्वज मे कोनो संबंध त नहि छल । जो वर पक्ष आ वधु पक्ष क प्रपितामह, अतिवृध प्रपितामह तक मे कोनो संबंध नहि होएत छल तखने दुनू गोटेक विवाह क प्रस्ताव स्वीकार होएत छल । ओकर बाद अपन पंजी मे उत्तेर ( एक प्रकार क डाक्यूमेंटेशन ) बनाबैत छल आओर ओ हुनकर नाम, ग्राम आ मूल गोत्र क हिसाब से पंजी पुस्तक मे राखैत छल । ओकर बाद बधु पक्ष लेल एकटा परामर्श पत्र बनाबैत छल आओर ओहि परामर्श पत्र कए वर द्वारा पढ़ाकए हुनका संग संबंध स्थापित करल जाएत छल । ई एकटा वैज्ञानिक प्रणाली छल जेकार जीनोम फ्यूजन कहल जाएत छल । विपरित जीन मे विवाह केला स संतान कुलीन आ स्वस्थ पैदा लैत अछि । एकरा वैज्ञानिक सेहो प्रमाणित केने अछि । ज्ञात होए कि पंजीकारी प्रथा क लेल मिथिला मे सौराष्ट्र सभा गाछी बड्ड बेसी प्रसिद्ध छल । ओतय हरेक साल सभाक आयोजन होएत छल । ओतय हरेक साल एकटा सभा क आयोजन होएत छल जे आब विलुप्त भए गेल अछि । मिथिला क लेल इ दुखद गप अछि ।
(लेखक मधुबनी चित्र शैली के चित्रकार हैं)