टीम शुभजिता
जल:एक प्रेरणा
निखिता पाण्डेय
‘जल’
एक ऐसी धारा है,
जिसे. न प्रकृति बांध सकती है
और न ही हम मनुष्य
इसे कैद कर
सकते हैं।
इसकी लीला तो
इतनी निराली है
कि……..
यह जिस भी
बनावट में ढलता है,
उसका आकार ग्रहण
कर लेता है।
हम मनुष्यों को भी…
इस ‘जल’ की भांति
हर परिस्थिति में
ढल जाना चाहिये….
चाहे परिस्थिति
कितनी ही विकट
क्यों न हो?
हमें डटकर
जल की अविरल धारा
के समान
निरंतर आगे बढ़ना चाहिये।
यही है ‘जल’
और यही इसकी ‘प्रेरणा’।
2
जल की व्यथा
पार्वती शॉ
मैं जल, तुम सबको
प्राणकथा सुनाने आया हूँ
पहले मुझे पीते थे
नदी से लाकर
फिर तालाब से
फिर कुएँ से
फिर चापाकल से
फिर पम्प नल से…..
देखो ये आकार छोटा होता जा रहा हैं
मुझे डर है
कि कहीं ख़त्म न हो जाऊं एक दिन !
मेरा ख़त्म होना, तुम्हारा ख़त्म होना है
इसलिए बचाये रखो मुझको….
जैसे बचाये रखते हो रुपया…!
सोचो, कैसा होगा वह जीवन
निचोड़ लिया हो पृथ्वी का जल
घरों में भर रखे खूब रुपये
लेकिन पृथ्वी पर हो न एक बूंद भी जल
हाहाकार करेगी पृथ्वी
तब क्या जीवन देगा यह रुपया ?
डरो मत !
यह कल्पना भयावह सच की है
तुम इसे कभी सच नही होने देना
बचाकर रखना एक – एक बूंद
जैसे सहेज कर रखते हो
अपने प्रियजनों को
जैसे माँ पिता रखते है अपने बच्चे को
मुझे भी वैसे ही बचाना – सहेजना
अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानना
हालाँकि मैं हूँ
परंतु तुम भूल गए हो
वहीं याद दिलाने आया हूँ!
मैं जल तुम्हारे जीवन का आधार
आधार को मजबूत बनाओ
देखना भवन भी उतना ही शानदार बनेगा
मेरे प्राणों से ही तुम्हारी जीवनकथा है।
3
मृदुल रागिनी
दीपा ओझा
ये लाल सूरज
ये सफेद चांदनी
उतरती संध्या की
नयी मृदुल रागिनी
ये पेड़ों की अंगड़ाइयाँ
सहसा जगना
ये फूलों का
शर्मा कर उठना
ये मन्द हवाओं की
सहमी हुई थपकियाँ
तंद्रालस्य में डूबी
प्रकृति की सहेलियां
ये ढलता हुआ दिन
सुकून देती ये संध्या
ये लाल सूरज
ये सफेद चांदनी
ये उतरती संध्या की
नयी मृदुल रागिनी।
~
4
जल यानी नीर
संचिता सिंह
जल यानी नीर
है यह नारी का स्वरूप ,
कोमल ,शीतल और समर्पित ।
विज्ञान में..
हायड्रोजन और ऑक्सीजन का मिश्रण !
कहने को मात्र मिश्रण ,
बारिश करती ऐसे समर्पण !
खेतों में ,बंजर ज़मीनों में ,
रेगिस्तान में , शहरों में !
बहता है जल कहीं धारा बनकर ,
तो बरसता है अबाध होकर ।
अपनी सौम्य शीतलता से करता सबको तृप्त।
किंतु शक्ति में है यह अधीश्वरी ।
जो कर सकती इस अवनी को ध्वस्त ।
जल की तरह नारी भी
ढल जाती उसी रंग -आकार में ,
जिसमें यह मिल जाती ।
दिखाती अपने नए रूप ,
कभी तालाब में दर्पण बन कर ,
शिखा की शोभा बनकर ,
सागर -लहरों का चमकती अलंकार बनकर ।
नीर…नारी है ।
है यह हर जगह विद्यमान ।
हर अस्तित्व में ।
ओस से लेकर सागर तक ।
बादल से लेकर भूमि के गर्भ तक ।
असीमित ,अतुल्य ।
जीवनदायिनी नीर ।
5
पानी और मनुष्य
प्रियंका सिंह
आओ एक संकल्प लेते हैं
जीवन को बचाने का
पानी को बचाने का
सागर की शीतल लहरों सी
बादल की स्वच्छ बूंदों से
जीवन को पानी सा निर्मल बनाते है
सोचो एक संकल्प बनाते हैं
पानी के बुलबुले की भांति ही सही
लोगों को क्षणिक सुख देते हैं
खुद को निजी स्वार्थ से विहीन कर
सभी पात्रों में ढलने की प्ररेणा लेते हैं
चलों आओ एक संकल्प करते हैं
शहरों को नयी हरियाली देने का
हां, हरपल एक संकल्प जगाते हैं
अपने धरोहर को बचाने का
अपने अमृत्व को संजोने का
पानी और मनुष्य को बचाये रखने का!!!