पिछले तीन सालों में ई-बुक के बाजार में अचानक बदलाव आया है। इससे पहले जहां ई-बुक पढ़ने वालों की तादात 16 से बढ़कर 23 फीसदी तक जा पहुंची थी, वहीं वर्ष 2018 में ई-बुक का बाजार 917 अरब डॉलर का था, जबकि वर्ष 2017 में यह बाजार 873 अरब डॉलर का था। यह आंकड़ा एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन पब्लिशर्स की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है। वहीं भारत में ई-बुक का बाजार तेजी से बढ़ा है। ई-बुक के क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम कर रही डिवाइस कंपनी किंडल के मुताबिक भारत और चीन में ई-बुक रीडर्स की संख्या 200 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। उद्योग-रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में ई-बुक का बाजार भारत के कुल पुस्तक बाजार का 25 फीसदी है।
वर्तमान में किताबें पढ़ने के शौक को पूरा करने के लिए अब पाठकों के पास पहले से ज्यादा और बेहतर विकल्प हैं। वे अपने स्मार्टफोन या टैबलेट पर कहीं भी और कभी भी किताब पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। अमेरिका में हुए एक सर्वे के अनुसार किताबें पढ़ने वाले करीब 33 प्रतिशत लोग या तो इसके लिए टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं या फिर किंडल या नूक्स जैसे ई-बुक रीडिंग डिवाइसेज का। भारत में भी कमोबेश ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिल रहा है। छपी हुई किताब को हाथों से पकड़कर उसके पन्नों की ताजा खुशबू के साथ ज्ञान बढ़ाने का भारतीयों का पुराना शौक तेजी से बदल रहा है। करीब दो साल पहले तक भारत में ई-बुक्स का बाजार अपनी शुरुआती अवस्था में था, लेकिन आज हालात काफी बदल चुके हैं। यही कारण है कि प्रिंटेड बुक्स के प्रकाशक भी तेजी से ई-बुक्स मार्केट में प्रवेश की योजना बना रहे हैं।
युवाओं के बजाय बुजुर्ग आगे
टाटा लिटरेचर लाइव सर्वे द्वारा भारतीय पाठकों की अभिरुचि की खोज की गई है। इसके अनुसार अधिकांश आयु-वर्ग के लोग पारंपरिक पुस्तकें ही पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। ई-बुक पढ़ने वाले छात्र मात्र 23 प्रतिशत हैं। पाठक का एक बड़ा वर्ग (करीब 77 प्रतिशत) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की अपेक्षा, परंपरागत माध्यम (मुद्रित पुस्तकें) ही पसंद करता है। दिलचस्प बात यह है कि 20 वर्ष से कम उम्र के पाठकों में सर्वाधिक 81 प्रतिशत इस श्रेणी में आते हैं। इनके बाद, 21 से 30 वर्ष आयु वर्ग के 79 प्रतिशत, 31 से 40 वर्ष तथा 41 से 50 वर्ष की उम्र के 75 प्रतिशत पाठक मुद्रित पुस्तकें पसंद करते हैं। इस संबंध में एक रुचिकर जानकारी मिली है कि 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की मुद्रित पुस्तकों में रुचि सबसे कम, 74.24 प्रतिशत है। अर्थात कम उम्र के पाठकों की अपेक्षा अधिक उम्र के पाठक ई-बुक में अधिक रुचि रखते हैं। संभवतः इसलिए कि ई-बुक्स हल्की होने की वजह से उन्हें सुविधाजनक लगती है। साथ ही ई-बुक रीडर पर, इसके प्रिंट को पढ़ने हेतु हम बड़ा कर सकते हैं, शब्दों के अर्थ तुरंत, एक क्लिक से प्राप्त कर लेते हैं (अलग से डिक्शनरी देखने की आवश्यकता नहीं होती) तथा कम प्रकाश में भी इसे पढ़ने की सुविधा रहती है।
1940 के दशक में हुई थी शुरुआत
ई-बुक्स दरअसल किताबों का डिजिटल फॉर्मेट होता है, जिसमें टैक्स्ट और इमेजेस होते हैं और जिसे कम्यूटर अथवा अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर पढ़ा जा सकता है। आमतौर पर ई-बुक्स के प्रिंटेड वर्जन भी होते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है। आजकल कई ऐसी किताबें हैं, जिनके केवल इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट ही होते हैं। ई-बुक्स के आविष्कारक और पहली ई-बुक लेखक के बारे में स्पष्ट जानकारी तो मौजूद नहीं है, लेकिन माना जाता है कि 1940 के दशक के आखिरी वर्षों में इसकी शुरुआत हुई थी। इसी दौरान रॉबर्टो बुसा ने थॉमस एक्विनोस की रचनाओं का एक डिजिटल इंडेक्स तैयार किया था। हालांकि, इससे पहले 1930 के दशक की शुरुआत में बॉब ब्रायन ने मशीनों के जरिए किताबें पढ़ने की चर्चा की थी। उन्हें यह विचार तब आया था, जब उन्होंने पहली टॉकी फिल्म देखी थी, लेकिन उस समय इस पर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि ई-बुक्स की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। उस समय लॉन्च होने वाली ई-बुक्स पाठकों के एक सीमित वर्ग के लिए ही होती थीं, लेकिन इंटरनेट की लोकप्रियता जैसे-जैसे बढ़ी, इसके स्वरूप में भी बदलाव होता गया। आज हर विषय की किताबें डिजिटल फॉर्म में मौजूद हैं।
ई-बुक फॉर्मेट्स
डिजिटल बुक्स के अलग-अलग फॉर्मेट विभिन्न समयों पर लोकप्रिय हुए, जिनमें एडोब का पीडीएफ फॉर्मेट सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ। लेकिन यह हर फॉर्मेट को सपोर्ट नहीं करता था। फिर 1990 के दशक के अंत में ओपन ई-बुक फॉर्मेट की शुरुआत हुई, जिसे अलग-अलग तरह के बुक रीडिंग सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर प्लेटफॉर्म के साथ इस्तेमाल किया जा सकता था।
इन वजहों से बेहतर
हजारों ई-बुक्स एकसाथ, एक जगह पर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में स्टोर कर रखी जा सकती हैं। कई बार मोबाइल डेटा कनेक्शन के साथ भी ये उपलब्ध होती हैं और इन्हें स्टोर करने की जरूरत भी नहीं होती। प्रिंटेड बुक्स सीमित संख्या में छापी जाती हैं या फिर पुरानी होने के बाद उपलब्ध नहीं होतीं। डिजिटल बुक्स कभी आउट ऑफ प्रिंट नहीं होतीं, क्योंकि एक बार अपलोड होने के बाद वे हमेशा के लिए मौजूद रहती हैं।
आर्थिक पहलू
ई-बुक्स के प्रोडक्शन में कागज और स्याही की जरूरत नहीं पड़ती। एक अनुमान के मुताबिक ई-बुक के मुकाबले एक प्रिंटेड बुक की छपाई में तीन गुना ज्यादा रॉ मटेरियल और 78 गुना अधिक पानी की जरूरत होती है। इस तरह ई-बुक की लागत कम आती है। चूंकि ई-बुक के निर्माण में लागत कम आती है, इसलिए किताबों के शौकीन लोगों के लिए यह एक सस्ता विकल्प है। इसकी डिलीवरी आदि में भी कोई खर्च नहीं लगता। कई वेबसाइट्स पर ई-बुक मुफ्त में भी उपलब्ध होती हैं। ई-बुक रीडर डिवाइस मौजूद हो तो बेहद कम खर्च में अपनी पसंद की किताबें पढ़ी जा सकती हैं।
कैसे करें इस्तेमाल
ई-बुक रीडर या डिवाइस एक मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जिसे डिजिटल बुक्स पढ़ने के लिए खास तौर से डिजाइन किया जाता है। कम्प्यूटर्स के लिए ई-रीडर एप्लीकेशन भी मौजूद हैं। अमेजन किंडल, ब्रान्स एंड नोबल बुक, कोबो ई-रीडर और सोनी रीडर जैसे एप्लीकेशंस एंड्रॉयड, ब्लैकबेरी, आईफोन और आईपैड में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।