जिस रक्षा सूत्र से राजा बलि बंधे, उसी से बंधे भाई

हमारे यहां हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा बांधने का विधान है। यह धागा व्यक्ति के उपनयन संस्कार से लेकर उसके अंतिम संस्कार तक सभी संस्कारों में बांधा जाता है। राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है। स्नेह और विश्वास की डोर है।

हाथ में बांधे जाने वाले धागे से संपन्ना होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। रक्षाबंधन से जुड़ी कई कथाएं ऐसी भी हैं जिनमें राखी बांधने वाली बहन नहीं हो तो पत्नी या ब्राह्मण भी रक्षासूत्र बांधता है। यह सूत्र रक्षा का सूत्र है।

पुरातन काल में वृक्षों को भी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा रही है। बरगद के वृक्ष को स्त्रियां धागा लपेटकर रोली, अक्षत, चंदन, धूप और दीप दिखाकर पूजा कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं। आंवले के पेड़ पर धागा लपेटने के पीछे मान्यता है कि इससे परिवार में धन-धान्य की प्रचुरता बनी रहती है।

श्रावण मास की पूर्णिमा का महत्व इससे और बढ़ जाता है कि इस दिन कष्टों पर पुण्यों की विजय का आरंभ हो जाता है। जो व्यक्ति अपने शत्रुओं या प्रतिद्वंद्वियों को परास्त करना चाहता है उसे इस दिन वरुण देव की पूजा करनी चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवों और असुरों में युद्ध छिड़ा।

लगातार 12 वर्ष तक युद्ध चलता रहा। असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। इसके बाद इंद्र देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और सलाह मांगी। बृहस्पति ने इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा।

तब श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन गुरु बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया। मंत्रोच्चार से रक्षा सूत्र को मजबूत किया गया और देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहते हैं उन्होंने इस सूत्र को देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा।

इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने में और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए। जिस दिन यह रक्षासूत्र बांधा गया उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी और तभी से इस दिन रक्षासूत्र बांधने की परंपरा की शुरुआत हुई।

इसके अलावा एक अन्य कथा है कि जब राजा बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार से वचन में पाताल लोक में निवास करने का आग्रह किया था तो विष्णु भगवान रात-दिन उनके सामने रहने लगे। जब भगवान विष्णुलोक नहीं पहुंचे तो लक्ष्मीजी चिंतित हुईं।

नारदजी ने लक्ष्मीजी को सलाह दी कि राजा बली को रक्षासूत्र बांधकर उपहार में विष्णुजी को अपने साथ ले आइए। जिस दिन मां लक्ष्मी जी ने राजा बलि से विष्णुजी को मांगा उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी और इसलिए यह प्रसंग भी रक्षाबंधन के साथ जुड़ा है।

महाभारत में भी रक्षाबंधन पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब कृष्ण ने उन्हें तथा उनकी सेना को राखी का त्योहार बनाने की सलाह दी थी।

शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की की तर्जनी में चोट आ गई थी तो द्रौपदी ने लहू को बहने से रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दी थी। कृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की लाज बचाकर इस रक्षासूत्र का कर्ज चुकाया था।

कब बांधें राखी 

इस वर्ष राखी पर चंद्रग्रहण है। पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 6 अगस्त को 10.28 मिनट पर होगा परंतु भद्रा काल व्याप्त रहेगा। रक्षाबंधन का पर्व भद्रा रहित काल में ही मनाना चाहिए। अत: उदयातिथि के अनुसार रक्षाबंधन 7 अगस्त को भद्रारहित काल में मनाया जाएगा। किसी कारणवश भद्राकाल में रक्षाबंधन मनाना भी हो तो भद्रामुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ काल में रक्षा बंधन का त्योहार मनाना श्रेष्ठ होगा।

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