सुन्दरवन…यह नाम जुबान पर आते ही आपको सबसे पहले क्या ध्यान में आता है? मैनग्रोव जंगल, जंगल के बीच से होकर गुजरती नदी और रॉयल बंगाल टाइगर। सुन्दरवन दुनिया का सबसे बड़ा दलदली इलाका है। पीली-काली धारी वाले बाघ जिन्हें सुन्दरवन क्षेत्र में रहने वाले लोग ‘दक्षिणराय’ के नाम से जानते हैं। बाघ कितने खतरनाक और खुंखार होते हैं, ये बात हर किसी को पता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं, कोई हैं सुन्दरवन में भी जिनसे दक्षिणराय भी डरते हैं। जिनपर होती है इन खतरनाक बाघों से वहां के निवासियों की रक्षा करने की जिम्मेदारी। जी हां, इन बाघों से सुन्दरवन के निवासियों की रक्षा करने की जिम्मेदारी उठाती हैं ‘बोनोबीबी’ या ‘वनदुर्गा’।
सुन्दरवन के आसपास करीब 45 लाख लोगों की आबादी रहती है, जिनका मुख्य पेशा मछलियां व केंकड़े मारना, जंगलों से शहद और लकड़ियां काटना इत्यादि। ये काम करते समय स्थानीय लोग हर बार अपनी जान हथेली पर लेकर जंगलों में जाते हैं, क्योंकि यहां पानी में मगरमच्छ तो जमीन पर बाघों का खतरा मंडराता ही रहता है। हाल के दिनों में बाघों के नदी में तैरकर नाव तक पहुंचने और लोगों को अपना शिकार बनाने की खबरें भी सुर्खियों में छायी रहती हैं। वनदुर्गा को स्थानीय लोग वनदेवी, व्याघ्रदेवी और वनचंडी के नाम से भी पुकारते हैं।
सुन्दरवन जो भारत से लेकर बांग्लादेश तक फैला हुआ है। कहा जाता है कि सुन्दरवन का 60 प्रतिशत हिस्सा बांग्लादेश में और 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में मौजूद है। यहां के निवासी अगर किसी देव-देवी पर सबसे अधिक विश्वास करते हैं तो वह है वनदुर्गा। सुन्दरवन क्षेत्र में रहने वाले मछुआरे, शहद इकट्ठा करने वाले और लकड़हारा समुदाय के सभी लोग, फिर वह चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, वनदुर्गा की पूजा पूरे भक्तिभाव से करता है। स्थानीय कथा के अनुसार वनदुर्गा या बोनोबीबी की मां गुलाल बीबी मदीना से और उनके पिता इब्राहिम मक्का से सुन्दरवन में आए थे।
यहीं पर उन्होंने वनदुर्गा को जन्म दिया। वहीं दूसरी तरफ दक्षिणराय जशोर (वर्तमान बांग्लादेश) के एक शहर ब्राह्मननगर के राजा के अधिनस्थ एक सामंत थे। दक्षिणराय काफी अत्याचारी अधिकारी थे। उनके अत्याचारों से स्थानीय लोगों को मुक्त करवाने के लिए वनदुर्गा ने उनसे कई युद्ध किये, जिसमें हर बार दक्षिणराय को हार का सामना करना पड़ा। इस हार को स्थानीय लोग सुन्दरवन का सबसे बड़ा आतंक और बुराई का प्रतीक यानी बाघ पर जीत के रूप में देखते हैं।
कहा जाता है कि वनदुर्गा जंगल (सुन्दरवन) की अधिष्ठात्री देवी हैं। उन्हें 18 भाटी की मालकिन माना जाता है। नदी में ज्वार खत्म होकर भाटा आने के तुरंत बाद अगर फिर से ज्वार आए तो उसे 1 भाटी कहा जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार अगर 18 भाटी के समय कोई व्यक्ति जंगल में जाकर मछली-केंकड़ा पकड़ता शहद इकट्ठा करना, लकड़ियां काटना आदि काम करता है तो उस समय दक्षिणराय से उसकी रक्षा स्वयं वनदुर्गा करती हैं।
स्थानीय लोगों का मानना है कि जब बाघ किसी मछुआरे या लकड़हारे पर हमला करता है, तब हिंदू या मुसलमान का फर्क मिट जाता है। उस समय उस व्यक्ति को बाघ के चुंगल से बचाना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य बन जाता है। इसलिए जब बोनोबीबी या वनदुर्गा की पूजा करने की बारी आती है तब यहां धर्म की दीवार भी मिट जाती है।
पिछले कई सालों से लगातार आए चक्रवाती तूफानों की वजह से सुन्दरवन को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा पेड़ों की अंधाधुन कटाई की वजह से भी जंगल को काफी नुकसान पहुंच रहा है। इसके प्रति लोगों को जागरुक बनाने के उद्देश्य से ही कोलकाता में दुर्गा पूजा पर ‘सेविंग द सुन्दरवन’ थीम पर दुर्गा पूजा पंडाल तैयार किया गया है। यह दुर्गा पूजा पंडाल सॉल्टलेक इलाके के सी ई ब्लॉक में बनाया गया है। यहां आपको मैनग्रोव जंगल से लेकर वॉच टॉवर से वनबीबी की पूजा को अनुभव कर सकते हैं। यहां जंगल को और भी वास्तविक रूप प्रदान करने के लिए जानवरों की प्रतिकृति से भी पंडाल को सजाया गया है।