हिन्दी भाषी जनता ने प्रेमचन्द को सांस्कृतिक नायक नहीं बनाया

कोलकाता : इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के प्रो. वसंत त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में यथार्थवाद अपने युग की खौफनाक सच्चाइयाँ व्यक्त करता है। उन्हें हिन्दी भाषी जनता ने उस तरह अपना सांस्कृतिक नायक नहीं बनाया जिस तरह से बंगाल की जनता ने रवींद्रनाथ को बनाया है। दिल्ली से आए साहित्यकार डॉ.प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने हिंदी को लोकप्रिय बनाया और उनके साहित्य ने इंसान को लड़ने की ताकत दी। यह अफसोस कि बात है कि किसी हिन्दी भाषी राज्य के विश्‍वविद्यालय का नाम प्रेमचंद के नाम पर नहीं है। भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती में विद्वानों ने ये बातें कहीं। प्रेसिडेंसी विश्‍वविद्यालय के प्रो.ॠषिभूषण चौबे ने कहा कि प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू मिजाज को समझ कर अपनी कथा भाषा की रचना की थी और अपने समाज की रूढ़ियों पर चोटें की थीं। खिदिरपुर कॉलेज की प्रो.इतु सिंह ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी जनता के हृदय सम्राट हैं। उनके कथा साहित्य में जो राजनीति है उसका उद्देश्य संकीर्ण न होकर संपूर्ण भारत को एक नई दिशा में बदलना था। कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो सत्या उपाध्याय ने कहा कि प्रेेमचंद का समय सामाजिक सुधारों और स्वाधीनता आंदोलनों का भारत था और वे इस भारत के प्रतिनिधि साहित्यकार थे अध्यक्षीय भाषण देते हुए शंभुनाथ ने कहा कि प्रेमचंद का राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीयतावाद दोनों ही उच्च मानवीय मूल्यों को लेकर चलता है। उनके कथा साहित्य के केंद्र में दलित और स्त्री के साथ पूरा भारत भी था। वर्तमान भारत को बदलने की सबसे बड़ी दृष्टि प्रेमचंद से मिलती है। संगोष्ठी में विनोद यादव ने अपना आलेख पाठ किया। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इतनी बड़ी संख्या में युवाओं की उपस्थिति प्रेमचंद की महानता को एक बड़ा नमन है। प्रो.संजय जायसवाल ने संगोष्ठी का संचालन किया और परिषद की मंत्री बिमला पोद्दार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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