शुभजिता में हमारा प्रयास मिथकों में बिखरे इतिहास को समेटना है। यह हैरत की बात है कि आधुनिक बुद्धिजीवी व इतिहासकार बड़ी आसानी से भारत के प्राचीन इतिहास को झुठलाने का प्रयास करते रहे हैं और आज स्थिति यह है कि हमारी नयी पीढ़ी अपनी ही जड़ों से कट गयी है। यह सत्य है कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में समय के साथ कवियों ने अपने समय के साथ बहुत सी चीजों को तोड़ा और मरोड़ा है। बहुत सी बातों से हमारी असहमति हो सकती है और स्वाभाविक है मगर इन अतिरंजनाओं के कारण अपने इतिहास को ही खारिज कर देना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। शुभजिता में हम सनसनीखेज और अन्धविश्वास को प्रोत्साहन नहीं देते मगर यह अवश्य है कि हमारे ग्रन्थों में जो प्रमाण पूरे भारतवर्ष में छिटके पड़े हैं, उनको विभिन्न माध्यमों और स्त्रोंतो की सहायता से सामने लाना प्रयास रहता है ताकि नयी पीढ़ी अपने इतिहास से अवगत हो सके। वो सब ले सके जो उत्तम था…औऱ वह सब छोड़ सके जो अधम था…और यह तभी होगा जब हम प्रामाणिकता के साथ अपने स्थलों को जानें, इतिहास को जानें…जो हमारा विश्वास भी हैं और हमारी अनुपम धरोहर भी। भारत एक आम देश नहीं…उसकी सीमाएँ विशाल हैं….यह देश देव भूमि है…औऱ इस देव भूमि के हर नागरिक को अपनी जड़ों से मिलना होगा…हम बस इसका माध्यम बन रहे हैं और वह भी विभिन्न स्त्रोंतों की सहायता से।
आज हनुमान जन्मोत्सव था और वह चिरंजीवी हैं इसलिए उनकी जयन्ती नहीं जन्मोत्सव ही होता है। इस कड़ी में आप जानिए हनुमान के जन्मस्थल के बारे में, जहाँ हनुमान ने जन्म लिया था। रामायण और राम, दोनों के लिए हनुमान का अपना महत्व है क्योंकि दोनों ही इनके उल्लेख के बगैर अधूरे हैं। हनुमानजी का जन्म स्थान कहां है। जहां हम दर्शन कर पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं। जी हां, हम आज बात कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित टिहरका गांव की। यहां की पौराणिक मान्यता और त्रेता युग के किस्सों में हनुमानजी के जन्म से जुड़ी बातें बताई जाती हैं। वहीं इस गांव में स्थित मंदिरों में पूजा करने के लिए भक्त सिर्फ इसलिए आते हैं कि यहां हनुमानजी ने जन्म लिया था।
दरअसल, टिहरका गांव में हनुमानजी का अतिप्राचीन मंदिर है, इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि भगवान हनुमानजी ने इसी गांव में जन्म लिया था। इसी पावन पवित्र धरा पर चैत्र शुक्ल पक्ष दिन मंगलवार को मारुतिनंदन का जन्म हुआ। अंजनी माता अपने पति केशरी के साथ सुमेरु पर्वत पर निवास करती थीं। जब कई सालों तक माता अंजनी को संतान प्राप्त नहीं हुई तो मतंग ऋषि के कहने पर टिहरका गांव के पर्वत पर करीब 7 हजार सालों तक निर्जल तप किया, तबसे बिल्व की आकृति का पर्वत अडिग खड़ा है।
इसी पर्वत के नीचे भगवान महादेव का धाम भी है। यहां माता अंजनी तपस्या करके पूर्व दिशा में स्थित आकाश गंगा में स्नान करती थीं। वे दोनों कुंड इस गांव में आज भी मौजूद हैं, जिनका पानी कभी नहीं सूखता है। हनुमानजी के जन्म को लेकर इस गांव में एक और किवंदति है कि जिस यज्ञ से भगवान राम का जन्म हुआ था, उसी यज्ञ के प्रसाद से हनुमान जी का भी जन्म हुआ था। जब राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिये यज्ञ कराया तब यज्ञ के बाद ऋषि वशिष्ठ ने चारों रानियों को खीर का प्रसाद दिया था।
इसी दौरान कैकई के हाथ से प्रसाद का कुछ भाग छीनकर एक चील ले भागा। रास्ते में तूफान से उस चील के हाथ से प्रसाद गिर गया। उसी समय पवन देव ने पर्वत पर तपस्या कर रही अंजनी माता के हाथ पर वह प्रसाद डाल दिया, जैसे ही माता ने वह प्रसाद ग्रहण किया, हनुमानजी गर्भ में आ गए और इस तरह हनुमानजी ने टिहरका गांव में जन्म लिया।
टिहरका गांव के इस सिद्ध धाम में बाल हनुमान के साथ माता की पांच मूर्तियां विरजित हैं। कहते हैं कि हनुमानजी के जन्म के बाद शेष नाग दर्शन के लिए आए थे। यहां बाल हनुमान और शेष नाग की मूर्ति भी दर्शन देती है।