स्त्री को अपने साथ हर स्त्री के सम्मान के लिए लड़ना होगा

बहुत बातें होती हैं स्त्री को मजबूत बनाने के लिए। आज तो पहले से भी ज्यादा, स्त्रियों वाला महीना आ गया है न। अचानक महसूस होने लगता है कि स्त्रियाँ न हो संसार में कुछ भी न बचे, बात तो सच भी है मगर क्या खुद स्त्री इस बात को जानती है कि वह कितनी महत्वपूर्ण है।

स्त्री अब भी एक कहानी है, बाजार का हिस्सा है, उसके बहाने न जाने कितनी चीजें खरीदी और बेची जा रही हैं मगर हर बातचीत का सिरा एक ही जगह पर अटक जाता है – उसका शरीर और उसकी खूबसूरती। शायद यह समाज ही चाहता है कि स्त्री भूल जाए कि वह एक दिमाग भी रखती है या फिर वह असुरक्षा की ऐसी जंजीर से बँध गयी है कि उसकी सोच का एक जरूरी हिस्सा खूबसूरत दिखने और लगने में खर्च हो जाता है और वह भी अपने लिए नहीं बल्कि एक पुरुष के लिए, जो उसे नियंत्रित करता है और अपने अहंकार को तृप्त करता है।

क्या यही असुरक्षा नहीं है कि वह दूसरी स्त्री की शत्रु बन जाती है या सुन्दरता उसकी वह कमजोर नस बना दी गयी है जिसे दबाकर अक्सर पुरुष अपने पौरुष को सहलाता है? प्रेम अगर स्त्री से हो तो वह भी उसके सौंदर्य और उसकी कामुकता पर अटक जाता है और साहित्य से लेकर गीतों तक में शायद यही कारण है कि दिमाग और सोच रखने वाली स्त्री नजर नहीं आती।

अगर हिंसा होती है तो पहला वार उसके चेहरे पर होता है और इसका अंत उपभोग की वस्तु बनाने पर होता है। द्रोपदी और सीता के बाल ही पहले खींचे गए थे, तमिलनाडु में जयललितता और बंगाल में ममता बनर्जी के बाल ही खींचे गए मगर इन सभी घटनाओं ने इतिहास को पलटकर रख दिया। स्त्री विरोध करे तो उसके साथ यौन हिंसा की धमकी दी जाती है।

 

अब गुरमेहर का मामला लीजिए, मैं उसके कथन से सहमत नहीं हूँ मगर क्या हमारा स्तर इतना गिर गया है कि असहमति का उत्तर यौन हिंसा और बलात्कार और सम्भोग की धमकियों से दिया जाए?  निश्चित रूप से देशभक्ति का स्तर इतना नीचे तो नहीं गिरना चाहिए कि भारत माँ की बेटी को आप ऐसी घटिया धमकियाँ दें।

मत भूलिए, आप भारत को भी माता ही कहते हैं और कोई माँ यह बर्दाश्त नहीं करेगी कि उसकी बेटी को उसके नाम पर बलात्कार की धमकी मिले। गुरमेहर महज 20 साल की बच्ची है, उसका तर्क गलत है मगर वह कहाँ गलत है, यह समझाने की जरूरत है।

अगर आप उसे समझाने में सक्षम होते तो इन धमकियों की जरूरत नहीं पड़ती। मैं गुरमेहर से असहमत हूँ मगर एक स्त्री और एक भारतीय होने के नाते आपकी धमकियों का समर्थन मैं नहीं कर सकती। शर्म कीजिए जो आप एक 20 साल की बच्ची पर अपनी मर्दानगी दिखाने चले हैं।

जो पुरुष यौन हिंसा को अपनी मर्दानगी का नाम देते हैं, दरअसल, वे हारे हुए होते हैं और उनका पौरुष हमेशा स्त्री की देह के सामने हार मान जाता है और वहीं दम तोड़ देता है मगर माफ कीजिएगा, यह पुरुष होने का नहीं, आपकी कमजोरी का प्रतीक है क्योंकि वास्तविक अर्थों में पुरुष भी स्त्री की तरह ही संवेदनशील है और वह हिंसा नहीं करता बल्कि स्त्री का सम्मान करता है।

स्त्री अगर प्रेम को स्वीकार न करे तो भी वह उसकी इच्छा का सम्मान करता है, उसके चेहरे पर एसिड नहीं फेंकता और न ही उसे बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया को हथियार बनाता है। दरअसल, दम्भ से भरा पौरुष वह मानसिकता है जो स्त्री को सम्पत्ति और भोग्या समझती आ रही हैं और इन मानसिकता की परवरिश हमारे साहित्यकारों और फिल्मकारों ने की है। निश्चित रूप से इनमें से अधिकतर पुरुष ही हैं मगर जब स्त्री खुद को आलू, झंडू बाम और तंदूरी मुर्गी समझकर उस पर थिरकने लगे तो आप दोषी किसे मानेंगे? धारावाहिकों में स्त्री पुरुष का मोहरा मात्र बनती है। तर्क का जवाब तर्क हो सकता है, बलात्कार की धमकी नहीं। निश्चित रूप से ऐसा लिखने की घटिया हरकत जिसने की है, स्त्री उसके परिवार में भी होगी किसी न किसी रूप में।

क्यों नहीं एक स्त्री सबसे पहले अपने बच्चों को यह सिखाती कि वह दूसरी स्त्रियों का भी सम्मान करे। हमारी शिक्षित और ग्लैमरस नायिकाएं क्यों नहीं आइटम गीतों को न करना सीख रही हैं जबकि उनको भी पता है कि ऐसे गीतों से आम लड़की का जीवन दूभर हो सकता है। सम्मान माँगने से नहीं मिलता, उसे प्राप्त करना पड़ता है और उसे प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि आप अपनी ही नहीं, दूसरी स्त्री के सम्मान की लड़ाई लड़ें, शायद तब हमारी लड़ाई आसान हो जाए। बहरहाल स्त्री वाले एक महीने में महिला दिवस की शुभकामनाएं मगर अभी लम्बी राह  चलनी है, याद रहे।

शुभजिता

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