सेवानिवृत्त फौजी अपने आविष्कारों से निकाल रहा है किसानों की मुश्किलों का समाधान

रिटायरमेंट के बाद हर सरकारी कर्मचारी जहां आराम भरी जिंदगी जीने लगता है वहीं हिमाचल के मंडी जिले के छात्र गांव के एक रिटायर्ड फौजी, परमाराम कृषि क्षेत्र में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती करने वाले 67 वर्षीय परमाराम किसानों के लिए औजार बनाते हैं। किसानों के लिए कृषि उपकरण बनाने की वजह से भारत सरकार की ओर से उन्हें कृषि वैज्ञानिक की उपाधि से भी नवाजा जा चुका है।
परमाराम ने केवल दसवीं तक की पढ़ाई की है। वह इन दिनों 7 बीघा भूमि में बिना रसायनों के प्रयोग वाली प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। किसानों को खेती में कम मेहनत करनी पड़े इसके लिए परमाराम ने एक दर्जन से अधिक कृषि यंत्रों की खोज की है।
परमाराम ने द बेटर इंडिया को बताया, “फौज से रिटायरमेंट के बाद मैंने सक्रिय रूप से खेती शुरू की। हालांकि खेती-बाड़ी में मेरे परिवारवालों की रूचि नहीं थी, इसलिए वे मदद भी नहीं करते थे। मुझे अकेले ही खेती-बाड़ी का काम करना पड़ता था। खेती में मेहनत कम लगे इसके लिए मैंने नए-नए कृषि यंत्रों की खोज शुरू की। कृषि से संबंधित यंत्र बनाने में कबाड़ के सामान का अधिक प्रयोग करता हूँ। ”
कई औजारों का किया है अविष्कार
परमाराम बताते हैं कि उनके अधिकतर यंत्र मल्टी फंक्शनल हैं और दैनिक कृषि कार्य में प्रयोग किए जाते हैं। स्कूटर हल, साइकिल हल, खड्डे बनाने वाला यंत्र, मक्के के दानों को अलग करने वाला यंत्र, इसके अलावा परमाराम ने फोल्डिंग हल भी तैयार किया है। जिसे फोल्ड कर कहीं भी बैग में डालकर खेतों में ले जाया जा सकता है। इसके अलावा एक लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी और मिट्टी खोदने के लिए भी उन्होंने खास तरह का औजार बनाया है।
साइकिल हल दिखाते परमाराम
परमाराम बताते हैं कि खेती में नए-नए प्रयोग करने से कई बार उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है। इसलिए परिवारवालों की नाराजगी से बचने के लिए वे उन्हें हर साल प्रत्येक बीघा 10 हजार रूपये के हिसाब से खेत का किराया देते हैं।
दशकों पुराने परम्परागत बीजों का बनाया है सीड बैंक
परमाराम बताते हैं कि उनके पास कई दशक पुराने ऐसे बीज हैं जो आजकल बहुत कम देखने को मिलते हैं। उन्होंने पुराने और दुर्लभ बीजों का सीड बैंक तैयार किया है। उनके सीड बैंक में पुराने अनाज कोदा, सौंक, पुरानी मक्की, धान, गेहूं, जौ, राजमाश और कई अन्य बीज हैं। वह इन बीजों को मल्टीप्लाई भी करते हैं और इसके बाद इन्हें अन्य किसानों को भी देते हैं। वह कहते हैं, “पुराने बीजों में बीमारियों से लड़ने और विपरित मौसम में भी टीके रहने की बहुत अच्छी क्षमता होती है, इसलिए इन बीजों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।”परमाराम बताते हैं, “बहुत से वैज्ञानिक कहते हैं कि मशरूम की वेस्ट कंपोस्ट में कुछ नहीं उग सकता और इसे फेंक देना चाहिए, लेकिन मैंने इसी वेस्ट कंपोस्ट में सब्जी उगाई है। वेस्ट कंपोस्ट को पॉली बैग में छत में रखा है और इसमें मटर, मूली, गोभी, भींडी और अन्य सब्जी उगाई जा रही है।”
फसलों को जंगली जानवरों से बचाने का अनूठा प्रयोग
परमाराम ने अपनी फसलों को जंगली जानवरों और आवारा पशुओं से बचाने के अनूठा प्रयोग किया है। परमाराम बताते हैं कि वह फसलों के बाहरी क्षेत्र में देसी भिंडी लगाते हैं जिसके पत्तों में काफी मात्रा में कांटे होते हैं। कांटों की वजह से जंगली जानवर उनकी फसलों में नहीं आ पाते हैं। इससे एक तो उन्हें भिंडी से आय हो रही है वहीं दूसरी ओर खेतों में खड़ी फसलों की भी रक्षा हो रही है। परमाराम को अपने आविष्कारों के लिए साल 2009 में गुजरात सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मानित किया था। इसके अलावा उनके अनगिनत पुरस्कारों की फेहरिस्त में बाबू जगजीवन राम पुरस्कार भी शामिल है। अपने अनुभवों के आधार पर परमाराम किसानों को प्राकृतिक खेती से जुड़ने का आग्रह करते हैं। उनका मानना है कि यह एक ऐसा विकल्प है जिससे खेती में खर्च कम होगी, साथ ही स्वास्थ्य पर भी विपरित असर नहीं पड़ेगा।
(साभार – द बेटर इंडिया)

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