संक्षिप्त महाभारत

अभिषेक दम्मानी

सत्यवती के लिए कभी हस्तिनापुर का रथ नहीं होता
जो स्त्री मोह फंसे शांतनु का कोई मनोरथ नहीं होता
कुंती ने कौतूहलता में जब सूर्य देव का आह्वान किया
तब प्रत्यक्ष देव ने पुत्र रूप में अपना अंश वरदान दिया
उत्कट इच्छा पर काबू रख जो पांडव ने संयम ना छोड़ा होता
तो धृतराष्ट्र ने अपनी उच्चाकांछा का पृष्ठ नही जोड़ा होता
द्रोणाचार्य ने अर्जुन हित की रक्षा में मर्यादा को लाँघ लिया
और एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया
अपमानित द्रुपद प्रतिशोध की अग्नि में इस हद तक जला गया
और मित्र वध की तीव्र मंशा में दिव्य पुत्र प्राप्ति को चला गया
दानवीर कर्ण होकर भी हो गया एक ऐसे ऋण का आभारी
और कृतज्ञ मित्रता के आगे एक निष्ठ हो गई निष्ठा सारी
सत्य, अहिंसा और धर्म फिर अन्याय, कपट से हारा था
जब धृतराष्ट्र का पुत्र मोह उसके राज धर्म का हत्यारा था
किसने जाना था षडयंत्रो से लाक्षागृह जलने वाला था
बातों में प्रेम मधुर रखकर यूं अंतर्मन से छलने वाला था
विदुर नीति का कर अनुसरण अगर भरत वंश चल जाता
क्या दृश्य मनोहर होता वह और हर दुर्भाग्य बदल जाता
एकचक्रा नगरी में ब्राह्मण बन पांडवों ने जीवन की शिक्षा ली
जब सबको भोजन बांटने वालों ने खुद के भोजन को भिक्षा ली
दो माता के आधे- आधे शिशुओं का शरीर जुड़कर जब संग हुआ
प्राण चेतना आ गई शिशु में और फिर दो से एक जरासंध हुआ
जब जब मर्यादा का बांध तोड़ कर कोई भी शिशुपाल बनेगा
तब तब गिरीवर धारी का चक्र सुदर्शन उसका काल बनेगा
पूर्ण पुरुषोत्तम होकर भी नटवर ने रणछोड़ नाम स्वीकार किया
और राजधानी को द्वारिका लाकर उसका निष्कंटक विस्तार किया
महलों में रहने वालों ने कैसे अपने दिन काटे वनवासों में
जब पांडवों का भाग्य बदल डाला था शकुनी वाले पासों ने
राज सभा भी मौन विवश थी कोई रोक ना पाया दु:शासन को
और द्रोपदी का चीरहरण भरी सभा में चुनौती था सिंहासन को
जब पांडवों ने अपना अज्ञातवास बताया सेवकों के वेश में
तब जाना कि जीवन कितना दुर्गम हैं दासत्व के परिवेश में
शांति का मूल्य समझता और जो दुर्योधन क्रुद्ध नहीं होता
केवल पांच ग्राम दे देता तो महाभारत का युद्ध नहीं होता
युद्ध ठहर जाने पर ऋषि वेदव्यास ने संजय को संज्ञान दिया
और भूत भविष्य वर्तमान देखने को दिव्य दृष्टि का दान दिया
इच्छा मृत्यु का वर पाकर भी भीष्म ने मृत्यु को जान लिया
और पुनर्जन्म की राजकुमारी अंबा को शिखंडी में पहचान लिया
अगर सुभद्रा अर्जुन से चक्रव्यूह का पूर्ण रहस्य सुनकर सोई होती
तो उत्तरा कदाचित अभिमन्यु वध पर कभी नहीं रोई होती
पितृ वध की क्रोधाग्नि का अश्वत्थामा ने अनुचित उपयोग किया
और पांडव कुल का वध करने को दिव्यास्त्रों का दुरुपयोग किया
जब गांधारी ने अपने निन्यानवे पुत्रों की मृत्यु का अवसाद किया
तब शेष दुर्योधन को एक दृष्टि में वज्र शरीर का आशीर्वाद दिया
किंतु वज्र कवच भी बचा न पाया दंभी दुर्योधन के प्राण को
और धर्म ध्वज ले पांडव आगे बढ़ गए नवयुग के निर्माण को
नाश सुनिश्चित हो जाता है, जब अभिमान शिखर पर जाता है
और एक भूल, निर्णय से फिर संपूर्ण कुटुंब बिखर सा जाता है
जब ह्रदय में पंच दोष की प्रवृत्ति हद से ज्यादा बढ़ जाती है
तब आदर्श जीवन मूल्यों की परिभाषा दुविधा में पड़ जाती है
महाभारत कोई कथा नहीं यह शाश्वत जीवन का सार है
कर्म श्रेष्ठ है, कर्म सर्वोपरि ,कर्म ही जीवन का आधार है
सशक्त समाज की स्थापना ही महाभारत का संदेश है
और कर्तव्य पथ पर अविरल बढ़ना ही गीता का उपदेश है

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