बाटिक का नाम सुनते ही दिमाग में शांतिनिकेतन की याद आ जाती है। बंगाल की यह अनमोल धरोहर है मगर यह सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं है। आइए इस धरोहर को जानते हैं…
बाटिक कला का जन्म कहाँ और कब हुआ इसके विषय में मतभेद है। इसके सबसे प्राचीन नमूने बारहवीं शताब्दी के हैं जो इन्डोनेशिया के द्वीप जावा में पाए गए हैं लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि जावा में ही इस कला का आविष्कार हुआ या यह भारतीय पर्यटकों द्वारा वहाँ लायी गयी। खुजराहो की गुफाओं के चित्रों में इसका आरम्भिक रूप बताया जाता है।
मध्यपूर्व, मिस्र, टर्की, चीन जापान और पश्चिम अफ्रीका में भी प्राचीन बाटिक के नमूने मिले हैं किन्तु ये भारतीय और इन्डोनेशियाई कलाकृतियों जैसे कलात्मक नहीं हैं। भारत अत्यंत प्राचीन काल से वस्त्रों पर छपाई और कलाकृतियों के लिये विश्व विख्यात रहा है। यहाँ पर यह कला में उस समय पराकाष्ठा पर थी जिस समय योरप और अन्य देशों में इसका प्रारंभ भी नहीं हुआ था।
मुगलों और अंग्रेज़ों के शासन काल में इस कला में गहरी गिरावट आई, किन्तु २०००वी सदी में इसका उस समय पुनरूद्धार हुआ जब कलकत्ता के प्रसिद्ध शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में इसे एक विषय के रूप में स्थान दिया गया। दक्षिण में मद्रास के निकट प्रसिद्ध शिल्पग्राम चोलमंडल में बाटिक को कलात्मक रूप में ढालने का काम किया गया। बंगाल और मद्रास दोनों के ही बाटिक लोकप्रिय और कला की दृष्टि से संपन्न हुए किन्तु इन दोनों की शैली में काफी अंतर है। बंगाल में अल्पना अाकृतियों का बाहुल्य है और मद्रास में अमूर्त कला को चटकीले रंगों से निखारा गया है।
बाटिक का सही उच्चारण बतीक है जिसका अर्थ है मोम से लिखना या चित्र बनाना। बाटिक की प्रक्रिया में पहले कपड़े पर चित्र बनाया जाता है। इसके बाद जिन स्थानों को बिना रंग के रखना होता है उस पर मोम लगा कर कपड़े को रंग में डुबो दिया जाता है जहाँ जहाँ मोम लगा होता है वहाँ रंग नहीं चढ़ता लेकिन मोम की टूटी हुई दरारों में रंग ज्यामिति के सुन्दर अमूर्त आकारों की दरारें बनाता है।
बाटिक का यही दरार सौन्दर्य इसे अन्य कलाओं से अलग करता है। बंगाल में कपड़ों के साथ चमड़े यानि लेदर बैग और चप्पलों पर भी आपको बाटिक का काम दिखेगा।आज भारत में बाटिक लगभग हर जगह लोकप्रिय और सुलभ है। इसके सीखने और सिखाने की सुविधाएँ लगभग हर नगर में हैं और इसकी लोकप्रियता बेमिसाल है। न केवल वस्त्रों बल्कि कलाकृतियों के रूप में भी इसका प्रयोग अत्यंत लोकप्रिय है।
भारत के साथ साथ श्रीलंका, मलेशिया, इंदोनेशिया और मलेशिया ने भी बाटिक की अपनी अलग अलग पद्धतियाँ विकसित की हैं। हर देश की पद्धति मे थोड़ी बहुत विंभिन्नता और अपने देश की संस्कृति का समन्वय है पर अगर आप ध्यान से देखें तो भारत का प्रभाव हर जगह नज़र आता है। कहीं रंगों में, कहीं शैली में तो कहीं विषय वस्तु में।
(साभार – अभिव्यक्ति)