विदेशी लेखकों, एक्टरों और राजनयिकों को आसान और मजेदार तरीकों से हिंदी सिखा रहीं पल्लवी सिंह

 

भाषा मानवता का पुल है, हमें जोड़ती है। वैश्वीकरण के इस दौर में हम दुनियां भर में आवास-प्रवास करते रहते हैं, हमारे देश में भी लाखों विदेशी आते हैं और उनकी मुहब्बत कहिए या कौतुहल कि उनमें से अधिकतर यहीं बस जाते हैं। ऐसे लोग हमेशा भाषा का अवरोध झेलते हुए देश में रहने के बाद भी अलग-थलग से नज़र आते हैं। इन्हें हमसे जोड़ने के लिए संवाद अनिवार्य है और संवाद के लिए समान भाषा जरूरी होती है।

इसी जरूरत को अपना मिशन बनाते हुए एक इंजीनियर विदेशियों को हिंदी सिखा रही है। उसके छात्रों में तमाम लोग हैं जो इसे जल्द से जल्द सीखकर व्यवहारिक अड़चनों से मुक्ति पा लेना चाहते हैं और जुड़ जाना चाहते हैं भारतीयों से।

पल्लवी सिंह ने दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन से बी टेक की पढाई पूरी करते ही महसूस कर लिया था कि इंजीनियरिंग उनकी पसंद का क्षेत्र नहीं है। 2009 में उन्हें कुछ नहीं पता था कि भविष्य में वो क्या करेंगीं। कुछ विकल्पों के साथ उन्होंने अपनी पढाई जारी रखी और खाली वक़्त में फ्रेंच भाषा सीखने के लिए डिप्लोमा कर लिया क्योंकि उन्हें भाषाएँ सीखने का शौक था।

फ्रेंच भाषा सीखते समय उन्हें कोर्स में सरंचनात्मक अव्यवस्था नज़र आई।

“जिस तरह से हमें फ्रेंच सिखाया जा रहा था, उससे हम फ्रेंच को उस तरह से नहीं बोल सकते थे, जैसे कोई फ़्रांस में रहने वाला बोलता है। मैं चाहती थी कि मुझे कोई फ्रेंच व्यक्ति मिले जिससे मैं हर दिन बातचीत कर के इसे बेहतर सीखूं।” पल्लवी याद करते हुए बताती हैं।

जब पल्लवी के दिमाग में ये बात आई तो इसके साथ एक और विचार आया कि भारत में रहने वाले दूसरे देशों के लोग भी हिंदी के बारे में ऐसा सोचते होंगे। इसके जबाब की तलाश में पल्लवी दिल्ली विश्वविद्यालय में एक अफ्रीकन छात्र से मिली और वो उनका हिंदी सीखने वाला पहला छात्र बन गया।

इस शुरुआत के बाद जल्दी ही पल्लवी को दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले अन्य विदेशी छात्रों ने जाना और हिंदी सीखने की कड़ी में जुड़ते गए। इस तरह पल्लवी ने अगस्त, 2011 में अपनी पहली औपचारिक कक्षाओं की शुरुआत ‘हिंदी लेसन्स’ के नाम से कर दी। अपनी बी. टेक की पढाई पूरी करने के बाद पल्लवी ने अपने पसंदीदा विषय मनौविज्ञान में दाखिला ले लिया।

दिल्ली में एक साल तक सफलता पूर्वक हिंदी सिखाने की कक्षाएं चलाने के बाद 2012 में पल्लवी मुम्बई आ गयीं और मनौविज्ञान में आगे की पढाई जारी रखी। इसी दौरान हिंदी सिखाने का सिलसिला जूनून में बदल रहा था। और पल्लवी ने मुम्बई में हिंदी सीखने के लिए छात्रों की ख़ोज शुरू कर दी।

” एक बार जब मैं अपने अफ़्रीकन स्टूडेंट्स को रंगों के नाम हिंदी में बता रही थी तो एक छात्र ने बताया कि अब वो समझा कि लोग उसे ‘कालू’ क्यों कहते हैं। उसने सीख लिया था कि अंग्रेजी के ब्लैक को हिंदी में काला कहते हैं। मुझे बहुत दुःख हुआ और शर्मिंदगी महसूस हुई लेकिन तब मुझे समझ आया कि जो मैं कर रही हूँ, वो इन स्टूडेंट्स के लिए जरूरी है,” पल्लवी बताती हैं।

पल्लवी की मुम्बई में धमाकेदार शुरुआत तब हुई जब उन्हें अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ने कुछ आप्रवासियों को हिंदी सिखाने के लिए संपर्क किया। और तब से पल्लवी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अब तक पल्लवी भारत में रहने वाले 600 विदेशियों को हिंदी सिखा चुकी हैं।

पल्लवी अभी तक कई राजनयिक अभियानों का हिस्सा रही हैं जहां उन्हें मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने स्टाफ और परिवार के सदस्यों को हिंदी सिखाने के लिए नियुक्त किया है।

पल्लवी टेड-एक्स के मंच पर बोल चुकी हैं और राज्यसभा टेलीविजन की सबसे युवा मेहमान हैं, जिन्हें गुफ़्तगू कार्यक्रम में इंटरव्यू किया गया।

पल्लवी ने विदेशी डेलीगेट्स, टूरिस्ट और विदेश से भारत आए बॉलीवुड सितारों के साथ मॉडलों और आधिकारिक राजनयिकों के साथ भारतीय नागरिकों से विवाह करने वाले विदेशिओं को भी हिंदी सिखाई है।

उनके छात्रों की लिस्ट में लेखक विलियम डेलरिम्पल और बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडिस, नटालिया डि लुसिओ और लुसिंडा निकोलस शामिल हैं।

उनसे हिंदी सीखने वाले जाने माने लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल कहते हैं,
“पल्लवी सिंह एक शानदार हिंदी टीचर हैं जो भाषा सिखाने के उबाऊपन या बोझ जिसमें व्याकरण सीखना फिर क्रिया और लिंग जैसी प्रक्रियाओं को मजेदार बना देती हैं।”

वैसे पल्लवी हमेशा ऐसे लोगों से घिरी रहती हैं, जो उनके काम को सराहते हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं।

” मेरी एक विदेशी स्टूडेंट्स एकबार मुझसे मेरी फीस कम करने को लेकर मोलभाव करती रही, क्योंकि उनको लगता है, कि भारत में किसी भी चीज को लेकर मोलभाव करना जरूरी है। इससे चीजें सस्ती मिल जाती हैं। ऐसे अनुभवों से हंसी आती है लेकिन मैं समझती हूँ कि ये मानसिक धारणा तोड़नी जरूरी है,” पल्लवी एक अनुभव बताती हैं।

कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें सुनकर पल्लवी को गर्व होता है, उनमें से एक का जिक्र करते हुए पल्लवी बताती हैं।

“एक बार मेरी एक विदेशी छात्र ऑटो में जा रही थी, तभी एक बाइक वाले ने ऑटो वाले से हिंदी में कोई पता पूछा, लेकिन ड्राइवर पता नहीं बता पाया तो उस स्टूडेंट ने बाइक वाले को वो पता हिंदी में समझा दिया। और आसपास के लोगों के लिए ये चौंकाने वाला दृश्य था। हालांकि ये छोटी-छोटी घटनाएं हैं लेकिन उन सबके लिए ये बड़ी बात है जिन्हें हमेशा घूरा जाता रहा है और विदेशी समझकर अजीब तरह के व्यवहार होते रहते हैं। ये मुझे मेरे काम को लेकर उत्साहित करता है।”

पल्लवी के हिंदी लेसंस में ऐसी रचनात्मक पद्धतियाँ हैं जो उन्हें एकदम अलग बनाती हैं।

सबसे पहली चीज तो ये कि उनके पास कोई क्लासरूम नहीं है। पल्लवी हिंदी सिखाने या तो अपने छात्रो के घर जाती हैं या फिर किसी कैफे में  कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ हिंदी सिखाई जाती है।

“मेरी हर हिंदी क्लास एक शो है, जिसमें बातचीत को मजेदार बनाकर खुशनुमा माहौल बनाया जाता है। जहां तमाम गतिविधियों के माध्यम से कार्ड, बोर्ड और टीचिंग टूल की सहायता से पढाई को फन बनाते हुए क्लास को जीवन्त बनाया जाता है,” पल्लवी कहती हैं।

पल्लवी ने हिंदी सिखाने का अपना मॉडल बनाया है जो उनके स्टूडेंट्स के फीडबैक पर आधारित है, इसकी सहायता से वे ये दावा करती हैं कि कोई भी घंटे भर की 25 क्लासों में हिंदी बोलना सीख सकता है। हालाँकि वो ये मानती हैं कि युवाओं को सिखाना एक चुनौती का काम है क्योंकि वे अपनी ज़िन्दगी की तमाम समस्याओं में उलझे रहते हैं, ज़िन्दगी के रस्ते तय करने के लिए खुद ही संघर्ष कर रहे इन युवाओ का पूरा ध्यान सीखने पर लगाना मुश्किल होता है। पल्लवी के अनुसार सीखने की कोई उम्र नहीं होती। युवाओं को सिखाने की सबसे अच्छी बात ये है कि वे उसे अच्छे से सुनते हैं और एक ही जगह ध्यान बनाए रखने का समय ज्यादा होता है।
हिंदी सिखाने के लिए किताबों की बजाय पल्लवी ने अलग-अलग तरह के खेल और परस्पर बातचीत की गतिविधियाँ ईजाद की हैं जिससे सीखना मजेदार बन जाता है।

इस टेक्नोलॉजी के ज़माने में तमाम एप्लीकेशन हैं जो हिंदी सिखाने का दावा करते हैं, पर पल्लवी का मानना है कि कोई भी टेक्नोलॉजी मानवीय संवादों का स्थान नहीं ले सकती। पल्लवी अपने आपको खुशनसीब मानती हैं कि वे ऐसे वक़्त में पैदा हुईं हैं जब भारत आर्थिक और वैश्विक जगत में तरक्की कर रहा है।
युवाओं को सन्देश पर 26 वर्षीय इंजीनियर से हिंदी शिक्षक बनी पल्लवी कहती हैं,

” मेरे पास खोने के लिए बहुत कुछ था, मैं वो कोई भी दूसरा इंसान हो सकती थी जो कुछ नहीं करता। पर मैंने जोखिम उठाया, मुझे लगता है आप जिस काम को प्यार करते हैं उसके लिए आपको भी जोखिम उठाने चाहिए।”

हम सलाम करते हैं पल्लवी के जोखिम को और उस प्रयास को जो दुनियां को जोड़ने का काम कर रहा है। बाहर से आने वाले लोगों को इस देश में बेहतर और आसान जीवन बनाने के उनके इस अभियान से हमारी भाषा हिंदी की उन्नति  निहित है।

(साभार – द बेटर इंडिया)

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