राम अबकी आएं तो शांता और सीता के साथ आएं…स्वप्न वहीं खड़ा है

इस वर्ष जनवरी की जनवरी और विशेष रूप से 22 जनवरी का दिन इतिहास में अपनी जगह बना चुका है। यह वर्ष ही लोकसभा चुनावों का वर्ष है मतलब 2024 में आम चुनाव हैं और श्रीराम के नाम की लहर इस बार चुनाव में बहुत मायने रखने वाली है। अयोध्या के राम मंदिर निर्माण की यात्रा बहुत कठिन रही है, बहुत बलिदान हुए हैं, दमन झेला है असंख्य लोगों ने इसलिए यह दिन सनातन धर्म के लिए बहुत विशेष है । देश भर में और विश्व में तैयारियां चल रही हैं। अयोध्या अब पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हो रही है और माना जा रहा है कि मथुरा और काशी इसके बाद कतार में हैं। बात यह है कि भक्ति तो है, अपनी जगह है मगर कहीं न कहीं आज की भक्ति में भक्ति की वह तन्मयता और एकात्मकता नहीं दिख रही। वह समय और था जब सूर और तुलसी जैसे लोग थे। आम जनता में भक्ति है और राजनीति इस संवेदना को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। उत्सव के इस तामझाम और भव्यता  के बीच श्रीराम के जयकारे के बीच मन उस शांता को खोजता है जो श्रीराम की बड़ी बहन थीं और उनके पति श्रृंगी ऋषि की तपस्या के बाद पुत्र कामेष्टि यज्ञ के कारण अयोध्या को उसके चारों राजकुमार मिले थे मगर आज वह शांता कहीं नहीं हैं…अयोध्या ने उनको निर्वासित कर रखा है। ऐसा लगता है जैसे अयोध्या और निर्वासन का कोई गहरा सम्बन्ध है। अयोध्या के राजमहल ने गोद देने के बहाने पहले राजकुमारी शांता को निर्वासित किया। इसके बाद कैकयी ने श्रीराम को वन भेजा तो उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी गये। 14 साल के वनवास के बाद श्रीराम तो अयोध्या में रहे मगर अयोध्यावासियों के कारण सीता को निर्वासित किया गया। काल के हाथों और समय चक्र ने राम लला को ही उनकी अयोध्या से निर्वासित कर दिया । अब जब 500 वर्षों के पश्चात, अनेकों भक्तों के बलिदानों के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौट रहे हैं तो मन यही कह रहा है कि श्रीराम इस बार अकेले नहीं, शांता और सीता को साथ लेकर लौटिए और फिर कभी उनको निर्वासित न होने दीजिए। भारतीय परिवारों में बहनों की स्थिति शांता जैसी ही है..यह परिवार का चक्र जब तक बहनों को सम्मान देना, उनके अधिकार देना नहीं सीखता…तब सतयुग क्या आ सकेगा? इस देश में जब सिया और राम हों तो शांता को भी मान देना सीखने की जरूरत है। अकेला व्यक्ति पहले चलता अकेला ही है मगर उसकी प्रेरणा कुछ ऐसी होती है कि वह खुद परिवार बना लेता है, लोग साथ आ जाते हैं। अयोध्या में समानता की कल्पना अभी यूटोपिया ही है मगर स्वप्न अभी भी वहीं खड़ा है श्रीराम जब आएं तो शाता और सीता भी साथ आएं।
आप सभी को मकर संक्रांति, नेताजी जयंती, गणतंत्र दिवस के साथ इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह के  ऐतिहासिक क्षण की शुभकामनाएं।

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