रात गुजार लेती हूँ

पार्वती शॉ

घनघोर अँधेरी रात में
घड़ी की सुइयों की आवाज़
पंखे के चलने की आवाज़
कुत्ते का भौकना
साँसों का चलना
सब कुछ गूँज रहा है
लोग सो रहे हैं
मैं जाग रही हूँ….
मेरे सामने अन्तर्द्वन्द्व की बौछार है
इन सब बीच अचानक मन होता है
चीख़ने,चिल्लाने ,ख़ूब रोने का
लेकिन मैंने मन को
संवेदनाओं को
विचारों को दबा रखा हैं
वरना सब जाग कर डर जाएंगे…..
रात किसी तरह गुजार लेती हूँ
कभी किताबों के साथ
कभी मोबाइल में बजते गानों के साथ
कभी विचारों में खोये रहने के साथ
दिल के कोने में बसे साथी के साथ ..…
देखती हूँ सूरज निकल आया है ।।।।

शुभजिता

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