पिछले दिनों प्रोसेनियम आर्ट सेंटर की नयी नाट्य प्रस्तुति (WILD EXPERIMENT )’वाइल्ड एक्सपेरिमेंट ‘ नाटक का लगातार तीन दिनों तक (7’8’ और 9 जून को ) प्रोसेनियम आर्ट सेंटर में नाम प्रस्तुत किया गया।जिस कहानी का मंचन हुआ उस कहानी को लोग एक झूठी कहानी मानते है । दरअसल “द रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट ” इंटरनेट पर वायरल हुई कहानी थी जिसे ‘आँरेज सोड़ा’नाम के एक युजर ने Creepyasta.wikia.com पर पोस्ट किया था। हालाँकि यह ऑरेंज सोडा कौन है?इस बारे में आजतक पता नहीं चल सका।गुमनाम रूप से लिखी गयी इस छोटी सी कहानी ने फिल्म मीडिया के कलाकारों को प्रेरित किया और उसके परिणाम स्वरूप कई लघु फिल्में और एक उपन्यास का प्रकाशन हुआ जो काफी चर्चित रहा।यह नाटक ताकि वायरल कहानी प्रेरित होकर टी.जे.स्मीथ ने लिखी और फिल्म निर्देशित किया उसी पर फिल्म पर आधारित नाटक है।
सामाजिक, राजनैतिक सुझ बूझ वाले कलात्मक विषयों वाले नाटकों की तलाश सिर्फ हिंदी में ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय रंगमंच को जरूरत है ।ऐसा सकंट महसूस किया जाता रहा है।अगर हिन्दी में नाटक है भी तो उन नाट्य संस्थाओं तक नहीं पहुँच रहे हैं और पहुँच भी रहे हैं तो उस नाटककार और निर्देशकों के बीच कोई संवाद नही बन पाता जो जरूरी है । अज़ुम रिज़वी द्वारा इस तरह की कहानी खोज निकालना और उसे अनुदित कर मंचस्थ करना एक प्रसंशनीय काम है, यह नाटक उसी कमी को जरूर पूरा करता है।
“राक्षस वास्तव में एक बहुत ही वास्तविक ,मानवीय स्थान से आते है,
जो मानव पर जहरीले प्रयोग कर ताकतवर और प्रशंसनीय बन जाते हैं।”
कहानी 1940 दशक के अंत में सोवियत संघ में एक सैन्य मंजूरी के बाद एक प्रकार की रासायनिक गैस को लेकर मानव पर वैज्ञानिक प्रयोग किया गया था। उसी वैज्ञानिक प्रयोगात्मक विषय से अवगत कराते हुए यह नाटक उत्तेजित करता है ।
नाटक की कहानी कुछ यूं है कि एक वैज्ञानिक शोधकर्ता द्वारा तीन राजनैतिक कैदियों को एक सील बंद गैस चेम्बर में एक सैन्य अस्त्र के परीक्षण लिए रखा गया । शर्तानुसार अनुसार उन्हें एक प्रकार की गैस में छोड़ा जायेगा जो उन्हें सोने नहीं देगा और उन्हें तीस दिनों तक जाग कर रहना होगा। उसी शर्तानुसार अनुसार प्रयोग के बाद उन्हें हमेशा के लिए स्वतंत्र कर दिया जायेगा यदि वे इस प्रयोग को पूरा करते हैं।गैस चेम्बर में उन कैदियों की बातचीत को इलेक्ट्रानिक रुप से माँनिटर किया गया क्योंकि उस समय सर्किट कैमरा नहीं हुआ करता था।उनके व्यवहार को गुप्त रूप से पाँच इंच मोटी ग्लास जो पोरथोल आकार की खिड़की है उसी के माध्यम देखा जा रहा ।
प्रारम्भिक दिनों के दौरान देखा जा रहा कि कैदी सामान्य रूप से व्यवहार करते है,एक दूसरे से बातचीत करते हैं और फुसफुसा रहे हैं।कुछ दिनों बाद सभी ने असमान्य व्यवहार करना शुरू कर दिया। उनकी बातचीत अपना एक गहरा पक्ष लेती है। कुछ दिन बाद वे परिस्थितियों के बारे शिकायत करना शुरू करते हैं और गम्भीर व्यामोह (आसक्ति )प्रदर्शित करना शुरू कर देते हैं। उसके बाद अनियंत्रित रुप से चीखना शुरु कर देते है। एक दूसरे पर हमला करते,कुछ दिनों बाद अपना ही मांस खाना शुरू कर देते है। बारह दिनों के बाद जब,शोधकर्ता कैदियों को निर्देश देता है कि अब उन्हें मुक्त कर दिया जा रहा है लेकिन शोधकर्ता को आश्चर्य तब होता है कि एक कैदी कहता है ,हम अब मुक्त नहीं होना चाहतें ।लेकिन गैस प्रयोग चलता रहता है उसी दौरान ही वे मर जाते और मारे जाते हैं।
नाटक में कहानी यही है।लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि इस कहानी की घटना और पात्र काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविक थे।
यह कहानी1940-45 द्वितीय महा विश्व युद्ध के समय की है।
जोसेफ स्टालिन से हिटलर हार चुके थे ,स्टालिन सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व करते हुए और शक्तिशाली बने थे। उस काल में रूस दिनरात प्रगति कर रहा था और शस्त्र बनाने के होड़ में लगा था ।रूस किसी भी आने वाले युध्द के लिए हर हाल में लड़ने के लिए तैयार रहना चाहता था शायद इसलिए गैस 76आईए का परीक्षण करना चाह रहा था ।
हिटलर के कुछ नाजियों को गिरफ्तार कर लिया गया था।जिन्हें दस साल की कठोर श्रम सजा सुनाई गयी थी। संघ द्वारा इन राजनैतिक कैदियों को जिन्हें राज्य का दुश्मन समझा गया था ।उन्हीं में से पांच कैदियों को चुन जाता है (ताकि नाटक में तीन पात्र दिखाये गये है।),उन्ही पाँच सिपाहियों के साथ साइबेरिया की जगंलों में संघ के द्वारा अनुमोदित एक वैज्ञानिकों के दल ने उन कैदियों को एक प्रकार की रासायनिक गैस के बीच रख गुप्त और अनैतिक रूप से मानव वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंटल किया था लेकिन इस जधन्य वैज्ञानिक प्रयोग की जिम्मेदारी रशियन सरकार ने आजतक नहीं स्वीकार किया इसलिए आज भी इस कहानी का सच रहस्य बना हुआ है।
लेकिन इस सत्य घटना को पुरी दुनिया में “रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट”के नाम से जानती है। यह भयानक क्रूर अमानवीय प्रयोगों में से एक था। यह पूरी दुनिया में अपनी भयावहता के लिए जितना प्रसिद्ध है उतना ही मानव समाज के लिए कलंकित है ।
कहानी के भीतर छिपे आतंक के हर पल भयावह है ,क्योंकि इस नाटक की यात्रा काफी गहन है साथ ही गहराई से वास्तविक विचार प्रकट होने देता है। दुनिया में होने वाले राजनैतिक अत्याचार, हत्या ,रक्तपात, युध्द के लिए मानव हथियारों इस्तेमाल, इन सबके लिए दुनिया के तमाम राज्य और राष्ट्र ही जिम्मेदार है । यह बात इस कहानी में बड़ी तीव्रता से यह व्यंजित होता है। साथ ही यह नाटक परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल न हो इसकी पैरवी करता है।
अज़ूम रिज़वी के निर्देशन में खेले गये इस नाटक का चुनाव और अनुवाद ही उन्हें मजबूत बना देता है। हालांकि अनुवाद कुछ शाब्दिक जरूर हो गये हैं। इस नाटक की कथा वस्तु के अनुसार हर पात्र मानसिक और दैहिक रूप से कष्ट भोग रहा है इसलिए आंतरिक और दैहिक यत्रंणा की अभिनय शैली को माध्यम द्वारा उजागर करने की जरूरत है। हालांकि नाटक की कथा वस्तु में इतनी मजबूत है कि नाटक उतना प्रभावित नहीं होता है।अभिनेताओं में अरविंद प्रेमचंद ,आनंद चतुर्वेदी, बलराम कुडंलिया और शरभ चटर्जी ने जरूर कोशिश किया है। प्रकाश योजना पर ध्यान देने की जरूरत है। सेट और पार्श्व संगीत प्रोसेनियम जैसे अतंरंग मंच के लिए बिल्कुल ठीक है । पूरी टीम इसके लिए बधाई की पात्र है।
(लेखक वरिष्ठ रंगकर्मी हैं)