मुस्लिम औरतों के हक और खुशियों पर कब्जा जमाते ते वे तीन शब्द

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ‘ट्रिपल तलाक’ और बहु विवाह प्रथा का प्रभाव सामाजिक स्थिति और मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करता है और उन्हें संविधान द्वारा मिले मूल अधिकारों से दूर रखता हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अभिवेदन में सरकार ने अपने पिछले रुख को दोहराया है और कहा है कि ये प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों की तुलना में और अन्य समुदायों की महिलाओं की तुलना में असमान एवं कमजोर बना देती हैं। केंद्र ने कहा, मौजूदा याचिका में जिन प्रथाओं को चुनौती दी गई है, उनमें ऐसे कई ऐसी बात कही गई है जो मुस्लिम महिलाओं को संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का लाभ लेने से वंचित करते हैं।गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को कहा था कि मुस्लिमों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह की प्रथाएं ऐसे अहम मुद्दे हैं, जिनके साथ भावनाएं जुड़ी हैं। मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिका पर संविधान पीठ 11 मई से सुनवाई करेगी। यह पहली बार होगा जब गर्मी की छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट के कम से कम 15 जज महत्वपूर्ण संवैधानिक महत्व के तीन मामलों की सुनवाई करेंगे। बहरहाल इस मसले पर पड़ताल में पेश हैं मशहूर पत्रकार आफरीन हुसैन की कलम से निकले विचार –

आफरीन हुसैन

तीन तलाक लफ्ज ही ऐसा है जिसे सुनकर कोई भी काँप सा जाता है क्योंकि इससे शादीशुदा जिन्दगी की डोर टूट जाती है…ये बात आजकल सभी की जुबान पर है…अलग – अलग इस्लामिक स्कूल ऑफ थॉट्स (विचारधाराओं) का कहना है कि एक साथ तीन मर्तबा (बार) लफ्ज तलाक कहने पर भी इसे एक बार कहना ही माना जाता है।

अलग – अलग तीन मौकों पर कई चरण पर कहने पर ही तलाक होता है तो दूसरा स्कूल ऑफ थॉट्स इस पर यकीन रखता है कि एक बार में तीन मर्तबा तलाक कह दिया जाए तो तलाक हो जाता है।

सवाल यह उठता है कि आखिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा ही क्यों और शाहबानो केस 1978 में क्यों आया जब शाहबानो ने अपनी खन्देरी तलाक के बाद अपने तलाकशुदा शौहर से देने की माँग की। असल में औरत चाहे, जिस मजहब, कौम की हो, उसे अपने लिए तहाफुज (सुरक्षा) चाहिए चाहिए, चाहे वह माली हो या समाजी।

खवातीन के नुक्ते नजर से तीन तलाक को देखें तो अलग – अलग राय पायी जा रही है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की खातून विंग की सरभ आसमां जोहरा ने सवाल उठाया कि हिन्दुस्तान के 30 जिलों में हुए सर्वे से ये बात जाहिर हुई है कि दीगर मजहिब के मुकाबले मुसलमानों के तलाक के दर सबसे कम हैं। ऐसे में तलाक शब्द का ही दुरुपयोग हो रहा है क्या ?

दूसरी तरफ उपराष्ट्रपति की बीवी सलमा अंसारी के इस बयान ने खुद कुरान का सन्दर्भ देकर ऐसी बात कही कि विवाद बढ़ गया है। मुम्बई की 21 साल की शगुफ्ता सईद, शादी के चंद घंटों बाद ही उसके शौहर ने एक ही नशिस्त में तीन बार तलाक कह दिया, ने कहा कि जब 20 इस्लामी देशों, पाकिस्तान और बांग्लादेश में एक बार में 3 तलाक नहीं माना जाता है तो यहाँ कैसे हो सकता है?

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इसी बात की वकालत की है कि जब 20 इस्लामी देशों में इस तरह तलाक को नहीं मानते तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इसकी वकालत क्यों की जा रही है? हर मुस्लिम महिला आन्दोलन की नेत्री नूरजहाँ सोफिया ने स्पीड पोस्ट से भेजे जाने वाले तलाक का जबरदस्त विरोध किया है।

(लेखिका अखबार- ए -मशरीक की एक्जिक्यूटिव सम्पादक हैं)

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