माता कुन्ती से है जिसका संबंध….उसे कहते हैं आज कुतवार

मुरैना जिले में कुतवार जगह देखते ही महाभारत की यादें ताजा हो जाती हैं। इस स्थान का संबंध पांडवों की मां कुंती से है। महाभारत काल में इसे कुंतीभोज नाम से भी जाना जाता था। यह जगह ग्वालियर से लगभग 45 किमी दूर मुरैना जिले में स्थित है। यह जगह महाभारत कालीन है, इसे कुछ लोग कुतवार के नाम से जानते हैं। इस स्थान का संबंध पांडवों की मां कुंती से है। महाभारत काल में इसे कुंतीभोज नाम से भी जाना जाता था। वीर पांडव, अर्जुन की ननसार भी यही है और अर्जुन व श्रीकृष्ण द्वारा बनवाए गए हरिसिद्धी मंदिर और देवी कुंती द्वारा पूजा गया शिवलिंग भी यहीं स्थापित है। पास ही आसन नदी का तट जहां आज भी सूर्य के घोड़ों की टाप और सूर्य के पदचिन्हों की छाप मौजूद है।

चंबल घाटी का सबसे प्राचीन नगर कुंतलपुर है, जिसे आज के समय में कुतवार के नाम जाना जाता है। पुराणों के इतिहास संबंधी अंशों तथा प्राचीन राजनीतिक भूगोल पर प्रकाश डालें, तो पता चलता है कि चंबल पर राजा शूरसेन राज करते थे। राजा शूरसेन की पुत्रियों में से एक का नाम प्रथा था, जिसे उन्होंने अपने मित्र राजा कुंतीभोज को गोद दे दिया था। प्रथा के सहोदर भ्राता का नाम वसुदेव था। कुंतीभोज द्वारा उनका लालन-पालन करने के बाद प्रथा का नाम कुंती पड़ गया।  राजा कुंतीभोज का राज्य चंबल के दक्षिण में था।

इतिहास के अनुसार कुंतीभोज महाभारत में द्रोणाचार्य के हाथों मारे गए थे। यह भू-भाग कुंती क्षेत्र के नाम से विख्यात हुआ और दंतिदुर्ग (दतिया) तक फैला हुआ है। 4-हजारों वर्ष से कुतवार में किले के पीछे एक स्थल को कर्णवार कहा जाता है, जहां से कुंती ने नवजात कर्ण को मंजूषा में रख अश्व नदी (अब आसन) में बहा दिया था। यह मंजूषा आसन से चंबल में जा पहुंची। यहां एक स्थान सूर्यवाह के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां का नाम सूर्यवाह इसलिए पड़ा, क्योंकि कुंती के आह्वान पर सूर्यदेव प्रकट हुए थे। उस अद्भुत घटना के स्मृति चिह्न अश्व नदी के किनारे एक ऊंची चट्टान पर घोड़ों की टापों के रूप में प्राचीन काल से बने हुए हैं। यहां एक टूटा हुआ मंदिर भी है। अनुमान लगाया जाता है कि यहां सूर्य मंदिर रहा होगा।

भगवान सूर्य नारायण ने यहां उतारा था अपना रथ
कहा जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत काल में भगवान सूर्य नारायण ने अपना रथ उतारा था और कुंती से भेंट की। किवदंती है कि यहां महर्षि दुर्वासा की तपस्थली भी है। खुदाई में नागराजवंश के समय के सिक्के व बर्तनों का मिलना इस स्थान की ऐतिहासिक सत्यता को और मजबूत बनाता है। सिंधिया स्टेट के समय आसन नदी पर यहां अर्धचंद्राकार बांध भी बनाया गया था। राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 3 पर ग्वालियर से आगरा की ओर जाने पर छौंदा टोल प्लाजा से दाहिने हाथ पर मुड़कर कुतवार जाया जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन मुरैना इस स्थान से लगभग 12 किमी दूर है।
कांतिपुरी की कुंती
विजयेन्द्र कुमार माथुर के अनुसार वर्तमान कोतवार जो डभोरा  (बमोरा) स्टेशन से 12 मील दूर है वही कांतिपुरी है। यह आसन नदी के तट पर स्थित है और ग्वालियर से 20 मील है। कांतिपुरी जो प्राचीन पद्मावती के निकट ही स्थित थी गुप्तकाल में नागराजाओं के अधिकार में थी। विष्णुपुरा 4,24,64 में पद्मावती में नागराजाओं का उल्लेख है। कांतिपुरी के कुंतीपुरी , कुंतीपद, और कुंतलपुरी नाम भी मिलते हैं। पांडवों की माता कुंती संभवत: इसी नगरी के राजा कुंतिभोज की पुत्री थी।

कहते हैं कि इसी स्थान पर सूर्य नारायण कुन्ती से मिलने आये थे जिसके बाद कर्ण का जन्म हुआ। कहते हैं कि आज भी यहाँ घोड़ों की टापों के निशान मौजूद हैं..जो कि चित्र में दिख रहा है

कान्तिपुरी में नागवंशी जाटों का शासन
नागवंश एक सुप्रसिद्ध वंश है जो सूर्यवंश एवं चन्द्रवंश की तरह ही अनेक क्षत्रिय आर्यों के वंशों का समूह है। ऐतिहासिकों का मत है कि ये क्षत्रिय अपनी ‘नाग’ चिन्हित ध्वजा के कारण ही नाग नाम से प्रसिद्ध हुए। यह यक्ष, गंधर्व और देवताओं की कोटि का सुसंस्कृत वंश था।[30] रामायणकाल में भी इस नागवंश की बड़ी प्रसिद्धि थी। इस काल में इस विशाल नागवंश का संगठन कई छोटे-छोटे प्रसिद्ध जाट राजवंशों के द्वारा हुआ जिनमें वैसाति या वैस, तक्षक, काला (कालीधामन), पौनिया (पूनिया), औलक, कलकल, भारशिव (भराईच) आदि हैं। ये जाटवंश नागवंश की शाखा के नाम से प्रसिद्ध हैं। [31] इण्डियन एंटीक्वेरी जिल्द 14, पृ० 45 पर लिखा है कि शेरगढ़ (कोटा राज्य) के द्वार पर नागवंशज राजाओं का शिलालेख, 15 जनवरी 791 ई० का खुदवाया हुआ मिला है जिसने उस स्थान पर विन्दुनाग, पद्मनाम, सर्वनाग, देवदत्त नामक चार नाग नरेशों का शासन होना सिद्ध होता है। [32] इन नागवंशी जाटों का राज्य कान्तिपुरी, मथुरा, पद्मावती, कौशाम्बी, अहिछत्रपुर, नागपुर, चम्पावती (भागलपुर), बुन्देलखण्ड तथा मध्यप्रान्त पश्चिमी मालवा, नागौर (जोधपुर) पर रहा। इनके अतिरिक्त शेरगढ़ कोटा राज्य की प्राचीन भूमि पर, मध्यप्रदेश में चुटिया, नागपुर, खैरागढ़, चक्रकोटय एवं कवर्धा में भी इस वंश का राज्य था। महाविद्वान् महाराजा भोज परमार (जाट) की माता शशिप्रभा नागवंश की कन्या थी। राजस्थानी महासन्त वीरवर तेजा जी (धौल्या गोत्री जाट) का अपनी बहादुर पत्नी बोदल समेत एक बालू नामक नागवंशी वीर से युद्ध करते हुए ही प्राणान्त हुआ था। वहीं पर वीर तेजा जी की समाधि बनी हुई है। आज भी राजस्थान में इस वंश के जाटों की संख्या अधिक है। उत्तरप्रदेश जि० बदायूं में रम्पुरिया, खुदागंज, धर्मपुर, जि० बुलन्दशहर के अहार गांव में नागवंशी जाट हैं। यह ‘अहार’ वही प्राचीन गांव है जहां कि दुर्योधन द्वारा विष खिलाकर अचेत भीमसेन को गंगा में फेंक दिया गया था, जिसे नागवंशियों ने बचा लिया था।


मुरैना से महाभारत काल का नाता और गहराता जा रहा है। वर्ष 1997 में जिले के कुतवार गांव में हुई खुदाई में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को महाभारत कालीन कुंतलपुर शहर (राजा कुंतिभोज के राज्य की राजधानी) मिला था। अब पुरातत्व विभाग को सिंहौनिया (कच्छपघात कालीन राजाओं की राजधानी सिंहपाणी) में एक और महाभारत कालीन शहर होने के प्रमाण मिले हैं। इस शहर की खुदाई के लिए प्रस्ताव एएसआई को भेजा गया है। पुरातत्व विभाग को सिंहौनिया थाने के पीछे स्थित मिट्टी के विशाल टीले में करीब चार से पांच हजार साल पुराना (महाभारत कालीन) नगर होने के प्रमाण मिले हैं। वर्ष 2012 में एक सर्वे के दौरान विभाग को महाभारत कालीन मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) व अन्य पुरातत्व महत्व के अवशेष मिले थे। इसके बाद यह पुष्ट हुआ कि सिंहौनिया के इस टीले पर कुतवार जैसा ही कोई नगर बसा करता था। ज्ञात हो कि कुतवार गांव के एक मिट्टी के टीले से पुरातत्व विभाग को मृदभांड व अन्य अवशेष मिले थे। इसके बाद खुदाई करने पर शहर सामने आया था।
पानसिंह तोमर का गाँव भी महाभारत काल का है
एथलीट व डकैत रहे पानसिंह तोमर के गाँव भिड़ौसा व लेपा भी महाभारत काल के ही हैं। यहां भी पुरातत्व विभाग को महाभारत कालीन पुरावशेष मिले हैं, जिनमें चार से पांच हजार साल पुराने मृदभांड प्रमुख हैं। पुरातत्वविदों की मानें तो यहां भी महाभारत काल में कोई गांव या शहर बसा हुआ होगा।
महाभारत में उल्लेखित कई जगह हैं अंचल में
महाभारत में पांडवों की मां कुंती का मायका कुंतलपुर नाम से उल्लेखित है। यहां पर कुंती ने कर्ण को आसन नदी में प्रवाहित किया था। यह नगर एएसआई को कुतवार गांव में मिला। यहां वह कर्णखार भी मिली, जहां से कर्ण को बहाया गया था। महाभारत में महाराज शांतनु द्वारा बसाए गए नगर शांतनु नगर का भी उल्लेख है। यह नगर आज भी चंबल किनारे के शांतनुखेरा नामक गांव के नाम से जाना जाता है।
महाभारत में चर्मण्यवती गंगा (चंबल) नामक नदी का उल्लेख है जहां महाराज शांतनु नौका विहार करते थे। यह चंबल नदी, शांतनु खेरा आज भी उसी स्थिति में है। हमने वर्ष 2012 में जो सर्वे किया था उसमें हमें सिंहौनिया व लेपा भिड़ौसा से महाभारत काल की चीजें मिलीं। हम यहां खुदाई करने का प्रस्ताव एएसआई को भेज चुके हैं। अंचल में और भी जगह हैं जो इतनी पुरानी हो सकती हैं, लेकिन इसके लिए हम दूसरे चरण में सर्वे करेंगे।

कुतवार देवी मंदिर

कुंती ने बनवाया था हरिसिद्धि माता का मंदिर
कालपी से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब ग्वालियर आईं तो अंग्रेजों से नफरत करने वाली ग्वालियर की बागी सेना ने उनका साथ दिया रानी ने किले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद जयाजीराव सिंधिया पांडवों की मां के कुतवार में बनाए हरिसिद्धि माता के मंदिर में जा छिपे थे। जयाजीराव सिंधिया ने जिस मंदिर में शरण ली थी वह कुंती के पिता कुंति भोज ने राजधानी कुंतलपुर में आसन नदी के किनारे अपनी पुत्री के लिए बनवाया था। इसी मंदिर के किनारे कुंती ने सूर्य देव की कृपा से महाभारत युद्ध के महारथी कर्ण को जन्म दिया था। लोकलाज से बचने इसी मंदिर के किनारे बने घाट से सोने की पेटी में कवच-कुंडलों के साथ कर्ण को सुरक्षित रख कर नदी में बहा दिया था।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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